मौद्रिक नीति 2011-12 की तीसरी तिमाही समीक्षा - आरबीआई - Reserve Bank of India
मौद्रिक नीति 2011-12 की तीसरी तिमाही समीक्षा
डॉ. डी. सुब्बाराव भूमिका अक्टूबर 2011 में की गई मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही की समीक्षा से अब तक वैश्विक परिदृश्य में महत्त्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। एक ओर, यह चिंता बढ़ गई है कि यूरो क्षेत्र में सरकारी ऋण संभलेगा या नहीं। दूसरी ओर, अमेरिका में हालात सुधरने के हलके संकेत हैं। उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईडीईज़) में विकास पहले किए गए मौद्रिक कसाव तथा विकसित अर्थव्यवस्थाओं में छाई सुस्ती के कारण धीमा रहा है। कुल मिलाकर, अमेरिका में हालात सुधरने के संकेतों के बावज़ूद, दूसरी तिमाही की समीक्षा के बाद से विश्व स्तर पर विकास की संभावनाएं कमज़ोर हुई हैं। 2. भारत में भी विकास धीमा पड़ा है। विशेष रूप से, निवेश कार्यों में तेजी से ह्रास हुआ है जो बढ़ी हुई वैश्विक अनिश्चितता, घरेलू राजकोषीय, मौद्रिक, राजनीतिक और प्रशासनिक हालात को दर्शाता है। 3. जैसा कि अनुमान लगाया गया था, रुपए के मूल्यह्रास के बावज़ूद, मुद्रास्फ़ीति में कमी आ रही है। विशेष रूप से, खाद्य मुद्रा स्फ़ीति में प्रत्याशा से अधिक कमी से कुछ राहत मिली, भले ही इसमें सब्जियों की कीमतों में मौसमी गिरावट का बड़ा हाथ रहा हो। रिज़र्व बैंक के पिछले पूर्वानुमानों के अनुरूप, मार्च 2012 तक मुद्रास्फ़ीति के और घटकर 7 प्रतिशत होने की संभावना है। 4. तथापि, खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फ़ीति (नॉन फूड मैन्यूफैक्चर्ड प्रॉडक्ट्स इन्फ्लेशन) ऊँची और स्वीकार्य स्तर से काफ़ी अधिक बनी हुई है। मूल्य निर्धारण क्षमता के संकेतक जहाँ बता रहे हैं कि घटने का दौर जारी रहेगा, वहीं बढ़ने के जोखिम अहम बने हुए हैं। खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फ़ीति के गति संकेतक (मोमेंटम इंडिकेटर) में घटने का चिह्न अभी भी साफ़ तौर पर सामने नहीं आया है। तदनुसार, रिज़र्व बैंक की नीति को जहाँ, विकास से जुड़े ख़तरों के प्रति अधिक संवेदनशील होना है, वहीं लगातार बने हुए मुद्रास्फ़ीति जोख़िमों से बचाव की भी जरूरत है। 5. यह नीति समीक्षा एक ऐसे परिप्रेक्ष्य में तैयार की गई है जहाँ वैश्विक माहौल बड़ा अनिश्चित है और विकास व मुद्रास्फ़िति का घरेलू संतुलन नाजुक है। इसे रिज़र्व बैंक द्वारा कल जारी की गयी समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों में दी गयी विस्तृत समीक्षा के साथ पढ़ा और समझा जाए । 6. यह वक्तव्य चार भागों में है। भाग I में वैश्विक और घरेलू समष्टि आर्थिक घटनाचक्र का एक खाका दिया गया है; भाग II में आर्थिक विकास, मुद्रास्फीति, और मौद्रिक समुच्चयों (एग्रिगेट्स) से जुड़े परिदृश्य और पूर्वानुमान हैं, भाग III में मौद्रिक नीति के रुख़ को समझाया गया है और भाग IV में मौद्रिक नीति उपायों का उल्लेख है। वैश्विक अर्थव्यवस्था 7. 2011 की तीसरी तिमाही में अमेरिकी जीडीपी विकास [तिमाही-दर-तिमाही (क्यू-ओ-क्यू), मौसमी रूप में समायोजित वार्षिकृत दर (एसएएआर)] को 2 प्रतिशत से घटाकर 1.8 प्रतिशत पर लाया गया। हालांकि यह 2011 की पहली छमाही के एक-प्रतिशत-से-कम के स्तर से बेहतर है, परंतु ट्रेंड से काफ़ी नीचे है। यूरो क्षेत्र में, जीडीपी वृद्धि (क्यू-ओ-क्यू, एसएएआर) दूसरी तिमाही के 0.8 प्रतिशत से गिरकर तीसरी तिमाही में 0.4 प्रतिशत पर आ गई। भूकंप/सुनामी के चलते पहली तिमाही (-6.6 प्रतिशत) में और दूसरी तिमाही(-2.0 प्रतिशत) पीछे धकेले जाने के बाद जापान में तीसरी तिमाही में विकास (क्यू-ओ-क्यू, एसएएआर) सुधरकर 5.6 प्रतिशत हो गया। 8. प्रमुख उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईडीईज़) में, 2011 की चौथी तिमाही में चीन में विकास [वर्ष-दर-वर्ष (वाई-ओ-वाई)] घटकर 8.9 प्रतिशत पर आ गया जबकि तीसरी तिमाही में वहाँ विकास 9.1 प्रतिशत और दूसरी तिमाही में 9.5 प्रतिशत था; विकास ब्राजील में भी धीमा पड़ा, दूसरी तिमाही के 3.3 प्रतिशत से तीसरी तिमाही में 2.1 प्रतिशत और दक्षिण अफ़्रिका में 3.2 प्रतिशत से 3.1 प्रतिशत। अलबत्ता रूस में विकास में तेजी आई और 2011 की दूसरी तिमाही के 3.4 प्रतिशत से बढ़कर तीसरी तिमाही में वह 4.8 प्रतिशत बढ़ा। विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने विकसित अर्थव्यवस्थाओं और ईडीईज़, दोनों में विकास के संबंध में 2011 के अपने आकलन और 2012 के पूर्वानुमान को पहले की अपेक्षा घटा दिया है। 9. अक्टूबर और नवंबर 2011 दोनों में 50-अंक के बेंचमार्क से नीचे रहने (संकुचन का द्योतक) के बाद विनिर्माण संबंधी वैश्विक पर्च़ेज़िंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) दिसंबर में सुधरकर बढ़ने लगा। सेवा सूचकांक (सर्विसेज़ इंडेक्स) 50-अंक से ऊपर (विस्तार का द्योतक) बना रहा और नवंबर के 52.7 से बढ़कर दिसंबर में 53.2 पहुँच गया। सितंबर 2011 से यूरो क्षेत्र का मिला-जुला पीएमआई 50-अंक के बेंचमार्क से काफ़ी नीचे रहा है, हालांकि नवंबर के 47.0 से मामूली रूप से सुधरकर सूचकांक दिसंबर में 48.3 पर आया। 10. दिसंबर 2011 के चौथे सप्ताह से, वैश्विक अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतें मुख्यत: भू-राजनैतिक अनिश्चतताओं के कारण बढ़ी हैं। इसके विपरीत, विश्व स्तर पर कमज़ोर आर्थिक कार्य-कलाप के कारण तेल से इतर पण्यों की कीमतों में नरमी आई है। ऊर्जा से इतर कीमतों का विश्व बैंक सूचकांक दिसंबर 2011 में 11 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) घट गया। 11. अंतर्राष्ट्रीय पण्य कीमतों की हलचल के अनुरूप मुद्रास्फ़ीति का शीर्ष (हेडलाइन) माप नवंबर-दिसंबर 2011 में कई देशों में कुछ कम होने के बावज़ूद अभी भी ऊँचे स्तरों पर बना हुआ है। प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं में अमेरिका में शीर्ष मुद्रास्फ़ीति (हेडलाइन इन्फ्लेशन) 3.0 प्रतिशत थी और यूरो क्षेत्र में 2.7 प्रतिशत। उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईडीईज़) में चीन में शीर्ष मुद्रास्फ़ीति 4.1 प्रतिशत, ब्राज़िल में 6.5 प्रतिशत तथा रूस व अफ्रिका में 6.1 प्रतिशत रही है। ध्यान देने की बात यह है कि मुद्रास्फ़ीति पर वैश्विक पण्य कीमतों के प्रभाव की विभिन्न मात्राओं में नरमी का लाभ कई ईडीईज़ को नहीं मिल पाया क्योंकि 2011 की दूसरी छमाही में उनकी मुद्राओं का काफ़ी मूल्यह्रास हुआ। 12. वैश्विक वित्तीय बाज़रों में तनाव के नए सिरे से उभरने को देखते हुए, छह बड़े केंद्रीय बैंकों ने नवंबर 2011 में घोषणा की कि वैश्विक वित्तीय प्रणाली को लिक्विडिटी सपोर्ट देने की अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए वे समन्वित कार्रवाई करेंगे । यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ईसीबी) ने 36 महीने की परिपक्वता की दीर्घावधि पुनर्वित्त कार्रवाइयों (एलटीआरओज़) की घोषणा की। इन कार्रवाइयों का उद्देश्य है मुद्रा बाज़ार और सरकारी बॉण्ड बाज़ार में बैंकों से लेन-देन को प्रोत्साहन मिले। घरेलू अर्थव्यवस्था 13. घरेलू मोर्चे पर, जीडीपी 2011-12 में पहली तिमाही (अप्रैल-जून) के 7.7 प्रतिशत से घटकर दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में 6.9 प्रतिशत पर आ गई। इसका मुख्य कारण था औद्योगिक वृद्धि का 6.7 प्रतिशत से गिरकर 2.8 प्रतिशत पर आना। तथापि, इसकी तुलना में सेवा क्षेत्र बेहतर रहा। परिणामत:, 2011-12 की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में जीडीपी विकास 7.3 प्रतिशत रहा जो गत वर्ष की पहली छमाही में 8.6 प्रतिशत था। 14. माँग पक्ष में, विकास में धीमेपन का मुख्य कारण था, दूसरी तिमाही में स्थिर पूंजी निर्माण (फ़िक्स्ड कैपिटल फ़ॉर्मेशन) में कमी। वास्तविक सकल (रिअल ग्रॉस) स्थिर पूंजी निर्माण और जीडीपी अनुपात पहली तिमाही के 31.2 प्रतिशत से घटकर दूसरी तिमाही में 30.5 प्रतिशत हो गया। यदि यह क्रम जारी रहा तो, मध्यावधि विकास को आघात लगेगा। निजी खपत पहली तिमाही में 6.3 प्रतिशत बढ़ी जो कि दूसरी तिमाही के 5.9 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में कुछ कम रही, पर एक वर्ष पहले के 9.0 प्रतिशत के मुकाबले काफी कम रही। कमज़ोर औद्योगिक प्रदर्शन और निवेश कार्यों में सुस्ती के लिए वैश्विक परिदृश्य केवल अंशत: ही जिम्मेदार है; इसमें कई घरेलू कारकों –राजकोष की अस्वस्थ स्थिति, ऊँची ब्याज दरें और प्रशासनिक अनिश्चितता की भूमिका भी है । 15. औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) अस्थिर बना रहा। वर्ष-दर-वर्ष औद्योगिक विकास अक्टूबर के (-) 4.7 प्रतिशत से सुधरकर नवंबर में 5.9 हुआ। तथापि वर्ष में अप्रैल-नवंबर 2011 के दौरान औद्योगिक उत्पादन एक वर्ष पहले के 8.4 प्रतिशत से धीमा पड़कर कर 3.8 प्रतिशत पर आया। यह सुस्ती मुख्यत: विनिर्माण (मैन्यूफ़ैक्चरिंग) और खनन (माइनिंग) क्षेत्रों का कारण आई है। उपयोग-आधारित वर्गीकरण के संदर्भ में, पूँजीगत वस्तुओं, अर्धनिमिर्त/ मध्यवर्ती वस्तुओं व टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं के क्षेत्र में कमज़ोरी औद्योगिक उत्पादन को नीचे खींच लाई। अलबत्ता, पीएमआई-मैन्यूफ़ैक्चरिंग नवंबर के 51.0 से मज़बूत होकर दिसंबर 2011 में 54.2 के स्तर पर आया। पीएमआई-सर्विसेज़ भी पहले के दो महीनों के 50 से नीचे के स्तर से उल्लेखनीय रूप से सुधरते हुए नवंबर में 53.2 और दिसंबर में 54.2 रहा। कृषि के क्षेत्र में 20 जनवरी 2012 की स्थिति के अनुसार रबी की बुआई गत वर्ष की तुलना में कुछ कम (-1.1 प्रतिशत) रही। 16. रिज़र्व बैंक के आदेश बही (ऑर्डर बुक्स), स्टॉक सूची (इन्वेन्टरीज़) और क्षमता उपयोग (कैपेसिटी यूटिलाइजेशन) (ओबीआइसीयूएस) सर्वेक्षण के अनुसार 2011-12 की दूसरी तिमाही में मैन्यूफ़ैक्चरिंग क्षेत्र का क्षमता उपयोग मोटे तौर पर लगभग पिछली तिमाही जैसा रहा। रिज़र्व बैंक के औद्योगिक परिदृश्य (इंडस्ट्रिअल आउटलुक) सर्वेक्षण के कारोबारी प्रत्याशा सूचकांकों में 2011-12 की तीसरी तिमाही में कारोबारी विश्वास में हल्की बढ़ोतरी दिखी और अगली तिमाही में कमी का संकेत पाया गया। 17. शीर्ष थोक मूल्य सूचकांक (हेडलाइन डब्ल्यूपीआई) मुद्रास्फ़ीति जिसका औसत अप्रैल-अक्टूबर 2011 के दौरान 9.7 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) रहा, नवंबर में घटकर 9.1 प्रतिशत तथा दिसंबर में और घटकर 7.5 प्रतिशत रही। मुद्रास्फ़ीति में कमी प्रधानत: प्राथमिक खाद्य व खाद्येतर वस्तुओं की मुद्रास्फ़ीति में कमी के कारण रही। मौसमी तौर पर समायोजित (सीज़नली एडजस्टेड) 3-महीनों के गतिशील औसत मुद्रास्फ़ीति दर (मूविंग एवरेज इन्फ़्लेशन रेट) द्वारा मापे गए डब्ल्यूपीआई के गति संकेतकों (मोमेंटम इंडिकेटर्स) में भी ढलान देखने को मिला। 18. प्राथमिक वस्तुओं (प्राइमरी आर्टिकल्स) की मुद्रास्फ़ीति जो सिंतबर 2009 से अक्टूबर 2011, दो वर्षों तक दुहरे अकों में रही, नवंबर में घटकर 8.5 प्रतिशत तथा दिसंबर में और घटकर 3.1 प्रतिशत पर आ गई। ऐसा मुख्यत: सब्जियों और खाद्येतर वस्तुओं, विशेषत: रेशों (फ़ाइबर्स) के कारण हुआ। तथापि प्रोटीन के आइटमों-‘अंडों, मछली और मांस’, दूध व दालों- में मुद्रास्फ़ीति दुहरे अकों में रही। सब्जियों को छोड़ दें तो, खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फ़ीति नवंबर के 8.0 प्रतिशत से मामूली रूप से घटकर दिसंबर में 7.1 प्रतिशत हुई; जबकि इसके विपरीत इसी अवधि में खाद्य पदार्थों (सब्जियों को लेकर) की मुद्रास्फ़ीति में 8.5 प्रतिशत से 0.7 प्रतिशत की तेज़ गिरावट देखी गई। 19. कच्चे तेल की ऊँची कीमतें और रुपए के मूल्यह्रास के कारण ईंधन वर्ग में मुद्रास्फ़ीति दिसंबर 2011 में 14.9 प्रतिशत की ऊँचाई पर बनी रही। यह तथ्य है कि, ईंधन वर्ग में मुद्रास्फ़ीति का एक बड़ा हिस्सा दबा हुआ है क्योंकि नियंत्रित मूल्य बाज़ार भाव को पूरी तरह नहीं दर्शाते। 20. ध्यान देने की बात है कि खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फ़ीति ऊँची बनी हुई है। अक्तूबर के 8.1 प्रतिशत के स्तर से घटकर यह नवंबर में 7.9 प्रतिशत और दिसंबर में और घटकर 7.7 प्रतिशत तक आई। तथापि, अक्तूबर 2011 के संशोधन को देखते हुए नवंबर और दिसंबर के मुद्रास्फ़ीति आँकड़ों में भी संशोधन की संभावना है। यह संकेतक अंतर्राष्ट्रीय पण्य कीमतों और मुद्रा हलचलों के प्रति संवेदनशील है तथा जैसा कि इस इंडिकेटर को देखने से पता चलता है हाल में हुए रुपए के मूल्यह्रास ने कीमतों के दबाव को और भी बढ़ा दिया है। 21. औद्योगिक श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के माप के अनुसार, सितंबर में दुहरे अंकों में रही मुद्रास्फ़ीति घटकर नवंबर में 9.3 प्रतिशत पर आई। कृषि व ग्रामीण श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों के अनुसार मुद्रास्फ़ीति दिसंबर में उल्लेखनीय रूप से घटी। नए मिश्रित (ग्रामीण और शहरी) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (आधार: 2010=100) नवंबर के 114.4 से मामूली रूप से घटकर दिसंबर में 113.9 पर आया जिसका कारण खाद्य कीमतों में आई नरमी रही है। 22. बैंकों द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि किए जाने से जमारशियों में हुई मज़बूत बढ़ोतरी के कारण मुद्रा आपूर्ति (एम3) में जो वृद्धि वित्तीय वर्ष के प्रारंभ में 17.2 प्रतिशत रही, वह इस वर्ष के संबंध में किए गए 15.5 प्रतिशत के अनुमानित पथ के अनुरूप, दिसंबर 2011 के अंत तक घटकर 15.6 पर आ गई। 23. तथापि खाद्येतर ऋण वृद्धि मार्च के अंत के 21.3 प्रतिशत से घटकर दिसंबर के अंत तक 15.7 प्रतिशत तक आ गई और यह दर दूसरी तिमाही समीक्षा में बताई गई 18 प्रतिशत के सांकेतिक अनुमान से कम है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में ऋण-ह्रास विशेष तौर पर तीव्र रहा जिनका विकास इसी अवधि में 21 प्रतिशत से लगभग 15 प्रतिशत रह गया। नवंबर के अलग-अलग आँकड़ों को देखने से पता चलता है कि निजी ऋणों को छोड़कर हर क्षेत्र में सामान्यत: ऋण प्रवाह में कमी आई थी। कृषि, रिअल इस्टेट, आधारभूत संरचना के क्षेत्र, इंजीनियरिंग, सीमेंट और सीमेंट उत्पादों में कमी खास तौर पर तेज रही। 24. अन्य स्रोतों से वाणिज्य क्षेत्र को मिलने वाले संसाधनों से बैंक ऋण में आए ह्रास की आंशिक रूप से भरपाई हुई। बैंको, बैंकों से इतर व बाह्य स्रोतों से वाणिज्य क्षेत्र को जाने वाला कुल वित्तीय संसाधन अनुमानत: लगभग ₹9.2 ट्रिलियन था जो कि गत वर्ष की इसी अवधि के ₹9.5 ट्रिलियन से कम रहा। 25. 2011-12 की तीसरी तिमाही के दौरान बैंकों के मोडल डिप़ॉजिट रेट में 1 वर्ष तक की परिपक्वता के लिए 44 आधार अंक तथा 1 से तीन वर्ष वर्षों तक की परिपक्वता के लिए 9 आधार अंकों की वृद्धि हुई। तीसरी तिमाही के दौरान 23 बैंकों ने अपनी आधार दरें (बेस रेट्स) 10 -100 आधार अंकों तक बढ़ाईं जबकि बैंकों का मोडल बेस रेट 10.75 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रहा। वाणिज्य क्षेत्र की ओर कुल संसाधनों के प्रवाह का धीमा पड़ना और बैंकों के बेस रेट का बढ़ना निवेश कार्यों में आई मंदी को दर्शाते हैं। 26. चलनिधि परिस्थितियां जो 2011-12 में समानायत: कमी (डेफ़िसिट) में रही हैं, उनमें नवंबर 2011 के दूसरे सप्ताह से और अधिक कसाव आ गया जिसका कुछ कारण विदेशी मुद्रा बाज़ार में रिज़र्व बैंक के ऑपरेशन्स और मध्य-दिसंबर के आस-पास अग्रिम कर के प्रवाह रहे। रिज़र्व बैंक की दैनिक चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ़) के तहत औसत उधारी (बॉरोइंग) अप्रैल–सितंबर 2011 में ₹480 बिलियन से नवंबर में बढ़कर ₹920 बिलियन तथा दिसंबर 2011 में और बढ़कर ₹1170 बिलियन तक गई। एलएएफ के तहत औसत दैनिक उधार जनवरी में ( 20 जनवरी 2012) तक लगभग ₹1200 बिलियन रहे। चलनिधि में कसाव को ढीला करने के लिए तथा चलनिधि को अल्प कमी वाली स्थिति में सुनिश्चित करने हेतु मैनेज करने के मौद्रिक नीति के रुख के अनुरूप, रिज़र्व बैंक ने नवंबर 2011 से मध्य जनवरी 2012 तक कुल ₹700 बिलियन के ओपन मार्केट ऑपरेशन्स (ओएमओ) किए। 27. सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) के तहत, बैंक अपने निर्धारित सांविधिक चलनिधि अनुपात संविभाग (एसएलआर पोर्टफोलिओ) से अपनी निवल माँग और मीयादी देयताओं के एक प्रतिशत तक ड्रा-डाउन कर सकते हैं। 21 दिसंबर, 2011 को रिज़र्व बैंक ने स्पष्ट किया कि बैंकों के पास एसएलआर अतिरिक्त (एक्सेस) हो तब भी वे एमएसएफ सुविधा का उपयोग कर सकते हैं। चलनिधि परिस्थितियों को देखते हुए, कुछ बैंकों ने दिसंबर 2011-जनवरी 2012 के दौरान एमएसएफ खिड़की से फ़ंड लिए। 28. मई 2011 में नई मौद्रिक नीति के लागू होने के बाद, ओवरनाइट मुद्रा बाज़ार दरें अधिक स्थिर हो गई हैं। 2011-12 के दौरान (20 जनवरी 2012) तक ओवरनाइट ब्याज दरें सामान्यत: रिपो रेट के पास रही हैं, सिवाय कुछ दिनों के जब एमएसएफ द्वारा तय ब्याज दर सीमा को कॉल रेट ने तोड़ दिया जिसकी वज़ह अग्रिम कर के बाहर जाने (एडवान्स टैक्स आउटफ्लो) के कारण चलनिधि की तंगी थी। 29. 2011-12 (अप्रैल-नवंबर) के दौरान केंद्र सरकार के प्रमुख घाटा संकेतकों में गत वर्ष की तत्सबंधी अवधि के सापेक्ष व्यापकता देखी गई और एकबारगी स्पेक्ट्रम प्राप्तियों के समायोजन के पश्चात भी गत वर्ष के घाटा स्तर की तुलना में ये अधिक थे। यह देखने को मिला सरकारी उधारियों में आई अधिकता में। सरकार ने सितंबर में लगभग ₹530 बिलियन और फ़िर दिसंबर में ₹400 बिलियन की दिनांकित प्रतिभूतियों (डेटेड सिक्यूरिटीज़) के माध्यम से उधारियों में वृद्धि की घोषणा की जो ₹4170 बिलियन के बजटित आकलन के अतिरिक्त है। परिणामत: वर्ष की संशोधित सकल (निवल) उधारी अब लगभग ₹5100 बिलियन (₹4360 बिलियन) की हुई। संशोधित सकल उधारियों का लगभग 83 प्रतिशत (₹4220 बिलियन) और निवल बाज़ार उधारियों का 80 प्रतिशत (₹3480 बिलियन) 16 जनवरी 2012 तक उठा लिया गया था। केंद्र सरकार ने ₹1025 बिलियन के ट्रेज़री बिलों के निवल निर्गम (नेट इश्यूएंस) द्वारा भी उधारी में वृद्धि की घोषणा की है जो 2011-12 के लिए ₹150 मिलियन की बजटित राशि के अतिरिक्त है। 30. 10-वर्षीय बेंचमार्क सरकारी सिक्यूरिटी यील्ड जो 2011-12 की पहली छमाही में सीमा में रही, सरकार के उधार कार्यक्रम की दूसरी छमाही की शुरुआत के बाद अक्टूबर में ऊपर चढ़ी। हालांकि, बाद में यील्ड में नरमी आई जो कि अक्टूबर-अंत के 8.89 से नवंबर-अंत में 8.74 और 20 जनवरी 2012 को 8.22 प्रतिशत पर आ गई। यील्ड में आई कमी ऋण मांग में कमी के कारण सरकारी प्रतिभूतियों की माँग में बढ़ोतरी, रिज़र्व बैंक द्वारा ओएमओ क्रय, सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश पर विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफ़आईआईज़) के लिए ऋण सीमा में बढ़ोतरी और मुद्रास्फ़ीति में कमी की प्रत्याशा दर्शाती है। 31. प्रतिकूल वैश्विक मिज़ाज और आने वाली पूँजी में कमी के कारण 2011-12 की तीसरी तिमाही में विदेशी मुद्रा बाज़ार दबाव में रहे। मार्च 2011 के अंत और 13 जनवरी 2012 के बीच 6, 30 और 36-मुद्रा वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (रीर), प्रत्येक लगभग 9 प्रतिशत बढ़ी जिसका प्राथमिक कारण अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपए का लगभग 13.2 प्रतिशत तक नॉमिनल मूल्यह्रास (डेप्रिशिएसन) था। अधिकांश मूल्यह्रास अगस्त-दिसंबर के दौरान हुआ। अस्थिरता को काबू में करने व उथल-पुथल करने वाली हलचलों को रोकने की अपनी नीति के अनुरूप रिज़र्व बैंक ने कई कदम उठाए व बाज़ार में हस्तक्षेप भी किया ताकि आने वाली पूँजी को बढ़ावा मिले और अटकलबाजी पर लगाम लगे। रिज़र्व बैंक बाह्य क्षेत्र में हो रही घटनाओं और विनिमय दर (एक्सचेंज रेट) पर उनके प्रभाव पर लगाता निगरानी रख रहा है और, जैसा कि दिसंबर 2011 की मध्य-तिमाही समीक्षा (एमक्यूआर) में कहा गया है, ज़रूरत पड़ने पर उचित कार्रवाई करेगा। 32. 2011-12 की पहली छमाही (एच1/ अप्रैल-सितंबर) के दौरान चालू खाता घाटा (सीएडी), गत वर्ष के एच1 की तुलना में समग्र तौर पर अधिक रहा जो कि आयातित पण्यों विशेषत: कच्चे तेल व सोने की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों का काफी बढ़ जाना तथा सेवाओं के निर्यात की वृद्धि में आई कमी के प्रभाव को दर्शाता है। तथापि, जीडीपी के एक अनुपात के रूप में देखें तो, 3.6 प्रतिशत का सीएडी गत वर्ष की पहली छमाही (एच1) में दर्ज़ 3.7 प्रतिशत से कम है। 2011-12 की तीसरी तीमाही के दौरान पण्य-निर्यात की वृद्धि 2011-12 की पहली छमाही के 36.9 प्रतिशत से गिरकर औसतन 7.7 प्रतिशत वर्ष-दर-वर्ष पर आ गई। निर्यात वृद्धि की तुलना में आयात वृद्धि में कमी अधिक धीरे आने की वज़ह से तीसरी तिमाही में व्यापार घाटा और बढ़ गया। वैश्विक परिदृश्य विकास 33. सीमित मौद्रिक व राजकोषीय दायरे में यूरो क्षेत्र में सरकारी ऋण को लेकर बढ़ती हुई चिंता के माहौल में 2012 में वैश्विक विकास की संभावनाएं बदतर हुई हैं। विकसित अर्थ -व्यवस्थाओं में विकास की कमज़ोर संभावनाओं तथा ईडीईज़ में मुद्रास्फ़ीति को रोकने हेतु किए गए मौद्रिक कसाव के बाद ईडीईज़ में भी विकास दर घट रही है। इस प्रकार, 2012 में वैश्विक विकास, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा सितंबर 2011 में किए गए 4.00 प्रतिशत के अनुमान से कम होने की संभावना है। मुद्रास्फ़ीति 34. यद्यपि 2011 में तेल से इतर पण्यों की कीमतों में कुछ सुधार देखा गया, परंतु कच्चे तेल की कीमतें मज़बूत बनी हुई हैं। आपूर्ति सीमाओं और प्रमुख विकसित देशों में लगातार जारी अति निभावी मौद्रिक नीतियों के कारण 2012 में पण्यों की कीमतों के ऊपर जाने का ख़तरा बना हुआ है। ईडीईज़ में 2011 की दूसरी छमाही में देखा गया मुद्रा मूल्यह्रास और घरेलू कीमतों पर अंतराल के साथ पड़ने वाला प्रभाव भी ईडीईज़ में मुद्रास्फ़ीतीय दबावों को बढ़ा सकता है। घरेलू परिदृश्य विकास 35. 2011 की दूसरी तिमाही में, रिज़र्व बैंक ने 2011-12 में 7.6 प्रतिशत जीडीपी विकास का अनुमान लगाया था, पर यह भी कहा था कि इसके नीचे जाने का खतरा उल्लेखनीय रूप से अधिक है। दिसंबर 2011 की मध्य तिमाही समीक्षा में, रिज़र्व बैंक ने संकेत दिए कि इनमें से कुछ खतरे वास्तव में घटित हो रहे हैं, जैसे वैश्विक अनिश्चितता का बढ़ना, औद्योगिक विकास का कमज़ोर पड़ना, निवेश कार्य में मंदी और वाणिज्य क्षेत्र को होने वाले संसाधन प्रवाह में ह्रास। परिणामत: कृषि संबंधी संभावनाएं अच्छी दिख रही हैं लेकिन औद्योगिक उत्पादन में ह्रास आया है। औद्योगिक उत्पादन में सुस्ती का असर सेवा क्षेत्र के विकास पर भी पड़ेगा। पुन:, कमज़ोर वैश्विक विकास का एक प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। तदनुसार, 2011-12 में जीडीपी विकास का आधार अनुमान (बेसलाइन प्रोजेक्शन) 7.6 प्रतिशत से घटाकर 7.0 प्रतिशत किया जा रहा है (चार्ट 1)। 36. आगे 2012-13 की ओर देखें तो, यद्यपि अप्रैल में जारी होने वाले वार्षिक नीति वक्तव्य में एक औपचारिक अनुमान बताया जाएगा, रिज़र्व बैंक का आधारभूत परिदृश्य यह है कि अर्थव्यवस्था में हल्का समुत्थान (रिकवरी) देखने को मिलेगा, जिसमें चालू वर्ष की अपेक्षा विकास कुछ तीव्रतर होने की आशा है। 37. यह अवश्य रेखांकित किया जाए कि निवेश कार्य महत्त्वपूर्ण रूप से धीमा पड़ा है। जैसा कि ऊपर बताया गया है, वैश्विक कारकों का तो योगदान है ही, घरेलू परिस्थितियों का भी हाथ है तथा निवेश के माहौल में बदलाव इन प्रतिकूल परिस्थितियों को दूर करने की नीतिगत कार्रवाइयों पर निर्भर है। इसके बिना, निवेश में लगातार जारी कमी अर्थव्यवस्था के विकास के ट्रेंड रेट को नीचे धकेल देगी जिससे मुद्रास्फ़ीतीय दबाव और गहराएंगे तथा बाह्य व आंतरिक स्थिरता पर आँच आएगी। मुद्रास्फ़ीति 38. सब्जियों की कीमतों में तेज़ गिरावट के कारण खाद्य मुद्रास्फ़ीति आशा से अधिक कम हो गई है। परंतु इसका फ़ायदा काफ़ी हद तक इसलिए नहीं मिल पाया कि खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फ़ीति (नॉन फ़ूड मैन्यूफैक्चर्ड प्रॉडक्ट्स इन्फ्लेशन) में उतनी कमी नहीं हुई जितनी प्रत्याशा थी। ईंधन मुद्रास्फ़ीति दुहरे अंकों में काफ़ी अधिक बनी हुई है। खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फ़ीति में प्रत्याशित कमी, घरेलू आपूर्ति कारकों और पण्य कीमतों में वैश्विक ट्रेंडों को देखते हुए थोकमूल्य सूचकांक मुद्रास्फ़ीति (डब्ल्यू पी आई इन्फ्लेशन) का आधारभूत अनुमान (बेसलाइन प्रोजेक्शन) 7 प्रतिशत पर बनाए रखा गया है, जैसा कि दूसरी तिमाही समीक्षा में (चार्ट 2) बताया गया था। 39. सामान्यतया विकास अनुमान को जब कभी कम किया जाता है तो साथ ही साथ मुद्रास्फ़ीति अनुमान भी संशोधित करके नीचे लाया जाता है। परंतु, वर्तमान परिस्थितियों में, दो कारणों ने ऐसा नहीं होने दिया। पहला, रुपए का मूल्यह्रास मूल मुद्रास्फ़ीति को बढ़ा रहा है जिसके चलते मुद्रास्फ़ीति और धीमे विकास के एडजस्टमेंट में विलंब हो रहा है। दूसरा और बहुत महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि पेट्रोलियम उत्पाद और कोयले की कीमतों में दबी हुई मुद्रास्फ़ीति अभी भी बड़ी है। हालांकि, कीमतों का तर्कसंगत किया जाना विभिन्न सुपरिचित कारणों से स्वागत योग्य कदम है, परंतु इससे प्रत्यक्ष मुद्रास्फ़ीति (ऑब्ज़र्ब्ड इन्फ्लेशन) पर अल्पावधि में प्रभाव पड़ेगा। यह अनुमान इन कीमतों में कुछ एडजस्टमेंट किए जाने की संभावना पर आधारित है। 40. 2012-13 की ओर देखें तो यद्यपि अप्रैल में जारी होने वाले वार्षिक नीति वक्तव्य में एक औपचारिक अनुमान बताया जाएगा, रिज़र्व बैंक का आधारभूत परिदृश्य यह है कि शीर्ष मुद्रास्फ़ीति में कुछ कमी देखी जा सकती है, परंतु जैसा कि इस समीक्षा में आगे बताया गया है, कई उर्ध्वमुखी जोखिमों से इसके प्रभावित होने की आशंका बनी रहेगी। 41. यद्यपि विगत दो वर्षों से मुद्रास्फ़ीति लगातार ऊँची बनी हुई है, यह नोट करना महत्त्वपूर्ण है कि 2000 के दशक में डब्ल्यूपीआई और सीपीआई दोनों के अनुसार औसतन यह लगभग 5.5 प्रतिशत रही जो कि इससे पहले के लगभग 7.5 प्रतिशत के ट्रेंड रेट से कम है। इस रिकॉर्ड की पृष्ठभूमि में मौद्रिक नीति का संचालन मुद्रास्फ़ीति की अवधारणा को 4.0-4.5 प्रतिशत की रेंज में बनाए रखने व नियंत्रित करने का होगा। विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ भारत के व्यापक एककीकरण के अनुरूप 3.0 प्रतिशत मुद्रास्फ़ीति के मध्यावधि लक्ष्य के अनुसार होगा। मौद्रिक समुच्चय (मॉनिटरी एग्रेट्स) 42. दिसंबर 2011 में 15.6 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) मुद्रा आपूर्ति (एम3) वृद्धि 2011-12 के लिए 15.5 प्रतिशत के सांकेतिक पथ के अनुसार है। तथापि 15.7 प्रतिशत की खाद्येतर ऋण वृद्धि 18 प्रतिशत के सांकेतिक अनुमान से कम है जो एक धीमी पड़ रही अर्थव्यवस्था और जोखिम से बचने की बैंकों की बढ़ती प्रवृत्ति, दोनों के मिले हुए प्रभाव को दर्शाता है। खाद्येतर बैंक ऋण में ह्रास का एक बड़ा कारण सरकार को निवल बैंक ऋण में बढ़ोतरी है जो गत वर्ष के 17.3 प्रतिशत की तुलना में 24.4 प्रतिशत की उल्लेखनीय ऊँची दर से बढ़ी। बढ़ी हुई सरकारी उधारियां और निजी ऋण मांग में सुस्ती को देखते हुए, 2011-12 में एम3 वृद्धि अनुमान को 15.5 प्रतिशत पर बनाए रखा गया है, जबकि खाद्येतर ऋण वृद्धि को घटाकर 16 प्रतिशत कर दिया गया है। हमेशा की तरह, ये संख्याएं, सांकेतिक अनुमान हैं और लक्ष्य नहीं। जोखिम के कारक 43. 2011-12 में विकास और मुद्रास्फ़ीति से संबंधित सांकेतिक अनुमान कई तरह के जोखिमों पर निर्भर हैं जिसे नीचे बताया जा रहा है: i) यूरो क्षेत्र में सरकारी ऋण संबंधी चिंता समग्र विकास परिदृश्य को नीचे खींच ले जाने वाला एक खतरा दिख रहा है। यद्यपि हाल के आँकड़ों में अमेरिकी समुत्थान (रिकवरी) में कुछ बेहतरी नज़र आ रही है, पर यूरो क्षेत्र की समस्या का एक विश्वनीय समाधान का न होने का दबाव वैश्विक विकास परिदृश्य पर बना हुआ है। यूरो क्षेत्र में अगर अनिश्चितता बनी रहती है तो व्यापार, वित्त और विश्वास के रास्तों से भारतीय विकास पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। ii) वैश्विक अनिश्चितता को देखते हुए विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफ़आईआईज़) ने अपने संविभाग का पुनर्संतुलन (पोर्टफोलिओ रि-बैलेंसिंग) किया है जिससे भारत आने वाली पूँजी का प्रवाह धीमा पड़ गया है। यह बात विशेष रूप से चिंताजनक इसलिए है कि भारत का चालू खाता घाटा (करेंट अकाउंट डेफिसिट) बढ़ गया है। एक्सचेंज रेट पहले से ही काफ़ी दबाव में है और इससे मुद्रास्फ़ीतीय दबाव भी बढ़े हैं। यदि वैश्विक स्थिति बेहतर नहीं होती, तो पूँजी प्रवाहों पर प्रतिकूल प्रभाव जारी रहेगा। ऐसी हालत में, चालू खाता घाटे (करेंट अकाउंट डेफिसिट) का आकार, समष्टि-आर्थिक स्थिरता के लिए महत्त्वपूर्ण खतरा बना हुआ है। iii) एक और जहाँ वैश्विक खाद्य व धातु कीमतें कुछ और कम हुईं हैं, वहीं वैश्विक ऊर्जा कीमतें बढ़ गई हैं। भू-राजनैतिक (जीओ-पॉलिटिकल) कारणों से आपूर्ति (सप्लाइ) संबंधी बाधाओं के चलते कच्चे तेल की कीमतें उछलें या वैश्विक समष्टि-आर्थिक स्थिति के बदतर होने के चलते काफ़ी गिर जाएं, दोनों सूरतों में घरेलू विकास व मुद्रास्फ़ीति पर उनका प्रभाव पड़ेगा। घरेलू कीमतों पर वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों के असर को आकार देने में एक्सचेंज रेट की हलचलों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रहेगी। iv) खाद्येतर ऋण वृद्धि (नॉन फूड क्रेडिट ग्रोथ) धीमी पड़ गई है। यद्यपि मौद्रिक कसाव के कारण ऋण वृद्धि का धीमा पड़ना प्रत्याशित था, पर ऋण वृद्धि में ह्रास प्रत्याशा से कहीं अधिक हुआ और वर्तमान में यह 18 प्रतिशत के सांकेतिक पथ से नीचे है। आर्थिक कार्यकलापों में धीमेपन के अलावा इसका दूसरा कारण है अनर्जक आस्तियों में बढ़ोतरी के कारण बैंकों का जोखिम से कतराना। यद्यपि ऋण प्रस्तावों को मंजूरी देने में बैंकों को समझ से काम लेना चाहिए, पर बैंकिंग क्षेत्र के जोखिम से परहेज करने से अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों को जाने वाले ऋण प्रवाह पर बुरा असर पड़ेगा। v) यद्यपि हाल में खाद्य मुद्रास्फ़ीति कुछ कम हुई है, पर इसकी बड़ी वज़ह थी सब्जियों की कीमतों में मौसमी कमी । पिछले ट्रेंडों पर जाएं तो, सब्जियों की कीमतों में इस बार जितनी कमी आई है, जाड़े के मौसम (दिसंबर-फरवरी) में आम तौर उतनी कमी देखने को मिलती है। इस प्रकार, आने वाले महीनों में खाद्य मुद्रास्फ़ीति में कमी सीमित रहने की संभावना है। इसके अलावा, प्रोटीन-प्रधान पदार्थों में मुद्रास्फ़ीति ऊँची बनी हुई है। जहाँ संरचनागत असंतुलन हैं उनमें, विशेषत: प्रोटीन-प्रधान पदार्थों में, समुचित आपूर्ति कार्रवाइयों के अभाव में खाद्य मुद्रास्फ़ीति ऊपर की ओर कायम रहेगी। एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि दालों के रबी रकबे (एकरिज) में कमी आई है जिसका कीमतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। vi) अभी भी मुद्रास्फ़ीति का एक बड़ा हिस्सा दबा हुआ है क्योंकि नियंत्रित उत्पादों की घरेलू कीमतों में उनसे जुड़ी हुई बाज़ार की स्थितियां नहीं झलक रही हैं। कोयले के मामले में यह ख़ास तौर पर सच है जिसमें गत वर्ष वृद्धि देखी गई थी, पर इस वर्ष अब तक कुछ भी नहीं। चूँकि कोयला बिजली बनाने के काम आता है, इसलिए कोयले की कीमतें जब और जितनी बढ़ेंगी, उनका असर बिजली के शुल्कों पर भी पड़ेगा। आगे, पेट्रोलियम पदार्थों की घरेलू कीमतों के वर्तमान स्तरों में अंतर्राष्ट्रीय कीमतें नहीं दिख रहीं हैं। कच्चे तेल की कीमतों के अनुसार पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बदलाव भी नहीं किया गया है जिससे राजकोष पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और मुद्रास्फ़ीति का दबा हुआ अंश बढ़ता है। घरेलू नियंत्रित कीमतों में संशोधन से मुद्रास्फ़ीतीय दबाव तो बढ़ेगा, पर माँग व आपूर्ति के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए ऐसे संशोधन आवश्यक हैं। विशेषत:, चूँकि खाद्य सब्सिडी के बढ़ने की संभावना है, समग्र माँग व व्यापार घाटे को काबू में रखने के लिए डीजल की कीमतों को नियंत्रण से पूर्णत: मुक्त करना विवेकपूर्ण होगा। vii) 2008-09 से ही सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़ा हुआ है। यदि सरकारी उधार में वृद्धि की अब तक की घोषणा को संकेत माना जाए तो 2011-12 का राजकोषीय घाटा बजट अनुमान की तुलना में काफी अधिक हो जाएगा। वर्तमान समय में जबकि निजी निवेश को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है, ऐसे में राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी से ऋण (क्रेडिट) प्राइवेट सेक्टर की ओर चला जाएगा। इसके अतिरिक्त राजकोषीय घाटे के बढ़ने से मुद्रास्फ़ीतीय दबाव बढ़ रहा है और इससे मुद्रास्फ़ीति के लिए ख़तरा बना हुआ है। 44. अक्टूबर 2009 में रिज़र्व बैंक ने संकट-चालित विस्तारकारी नीति से बाहर आना शुरु कर दिया। जनवरी 2010 और अक्तूबर 2011 के बीच, रिज़र्व बैंक ने आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) कुल 100 आधार अंक बढ़ाए और नीति दर (रिपो रेट) 13 बार बढ़ाकर कुल 375 आधार अंक बढ़ाए। विकास-मुद्रास्फ़ीति की गतिविधियों की भारत विशेष में स्थिति के आधार पर मौद्रिक नीति की यह नपी-तुली और क्रमिक कार्रवाई थी। मई-अक्टूबर 2011 के दौरान मौद्रिक नीति का रुख़ मुद्रा स्फ़ीति को रोकने और मुद्रास्फ़ीतीय प्रत्याशाओं को स्थिर करने का था भले ही इस क्रम में विकास की कुछ बलि देनी पड़ी हो। तथापि, विकास, विशेषत: निवेश कार्यों में, धीमेपन और दिसंबर के प्रारंभ से मुद्रास्फ़ीति में प्रत्याशित कमी को देखते हुए दिसंबर 2011 की मध्य तिमाही समीक्षा में ठहराव (पॉज़) का निर्णय लिया गया था। 45. नवंबर 2011 से मुद्रास्फ़ीति मोटे तौर पर अनुमानित पथ पर चली है और इसमें प्रत्याशित नरमी दिखलाई पड़ी है। कुछ नरमी के बावज़ूद, एक और जहाँ मुद्रास्फ़ीति ऊँची बनी हुई है, वहीं विकास के नीचे जाने के ख़तरे बढ़ गए हैं। मौद्रिक नीति का विकास-मुद्रास्फ़ीति संतुलन अब विकास की तरफ़ जा रहा है और साथ ही यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि मुद्रास्फ़ीतीय दबाव काबू में रहें। तदनुसार, इस समीक्षा में निम्नलिखित तीन प्रमुख विचारों ने नीति के रुख़ को ढाला है: 46. प्रथम, विकास ढलान पर है। यह कई कारकों का मिला-जुला प्रभाव दर्शाता है: अनिश्चित वैश्विक माहौल, पहले किए गए मौद्रिक नीति कसाव का संचित प्रभाव और घरेलू नीतिगत अनिश्चितताएं। ऋण-उठाव (क्रेडिट ऑफटेक) भी अनुमानित पथ से पीछे रहा है। विकास में धीमापन तो मुद्राफ़ीति रोकने के लिए पहले की गई मौद्रिक नीति कार्रवाइयों का प्रत्याशित परिणाम था, परंतु वर्तमान में विकास के प्रति खतरे बढ़ गए हैं। 2011-12 हेतु रिज़र्व बैंक द्वारा विकास अनुमान को कम किए जाने में भी यह प्रतिबिंबित हुआ है। 47. द्वितीय, यद्यपि शीर्ष डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति नरम पड़ रही है, पर इसका बड़ा कारण मौसमी खाद्य पदार्थों की कीमतों का तेजी से कम होना है । अन्य प्रमुख वस्तुओं, विशेषत: प्रोटीन-आधारित खाद्य पदार्थों और खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद (नॉन-फूड मैन्यूफैक्चर्ड प्रॉडक्ट्स) में मुद्रास्फीति अभी भी उँची बनी हुई है । इसके अतिरिक्त कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों, रूपए के मूल्य-हास और राजकोषीय घाटे के बढ़ने के कारण मुद्रास्फीति के बढ़ने का खतरा है । 48. तृतीय, चलनिधि की स्थिति (लिक्विडिटी कन्डीशन्स) रिज़र्व बैंक की स्वीकार्य सीमा से अधिक कसी हुई हैं । हालांकि, रिज़र्व बैंक ने खुले बाज़ार में सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद करके ₹700 बिलियन से अधिक की लिक्विडिटी डाली है, परंतु सिस्टम में संरचनागत घाटा (स्ट्रक्चरल डेफिसिट) काफी बढ़ गया है जिससे अर्थव्यवस्था के उत्पादनशील क्षेत्रों को जाने वाला ऋण प्रवाह प्रभावित हो सकता है । सिस्टम में बड़े संरचनागत घाटे को देखते हुए इस बात का मज़बूत आधार बनता है कि सिस्टम में स्थायी प्राथमिक चलनिधि (प्राइमरी लिक्विडिटी) डाली जाए।. 49. इस पृष्ठभूमि में, मौद्रिक नीति का रूख़ है कि:
50. वर्तमान आकलन के आधार पर और भाग III में बताए गए नीतिगत रुख़ के अनुसार रिज़र्व बैंक निम्नलिखित नीतिगत उपायों की घोषणा करता है: आरक्षित नकदी निधि अनुपात 51. यह निर्णय लिया गया है कि:
52. सीरआरआर में कटौती से बैंकिंग सिस्टम में ₹320 बिलियन की प्राथमिक चलनिधि (प्राइमरी लिक्विडिटी) आएगी। रिपो रेट 53. चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत पॉलिसी रिपो रेट को 8.5 प्रतिशत बनाए रखा गया है। रिवर्स रिपो रेट 54. एलएएफ़ के तहत रिवर्स रिपो रेट जिसमें रिपो रेट से 100 आधार अंकों से कम का अंतर होता है, 7.5 प्रतिशत पर है। मार्जिनल स्थायी सुविधा (एमएसएफ़) दर 55. रेपो दर से 100 आधार अंक अधिक पर निर्धारित की जानेवाली मार्जिनल स्थायी सुविधा (एमएसएफ़) दर 9.5 प्रतिशत पर है। बैंक दर 56. बैंक दर को 6.0 प्रतिशत पर बनाए रखा गया है। 57. सीआरआर को कम करके, रिज़र्व बैंक ने चलनिधि पर संरचनागत दबावों के समाधान का जो प्रयास किया है, वह वर्तमान मौद्रिक रुख से असंगत नहीं है। पिछले दो मार्गदर्शनों में यह संकेत दिया गया था कि दरों में वृद्धि का चक्र अपने चरम पर है तथा और आगे की कार्रवाई से चक्र उलट भी सकता है । मुद्रास्फ़ीति के वर्तमान पथ और साथ ही दबी हुई मुद्रास्फ़ीति को देखें, तो नीतिगत दर (पॉलिसी रेट) में कटौती का समय अभी नहीं आया है। मुद्रास्फ़िति में कायम रहने वाली कमी के संकेतों के अनुसार हीपॉलिसी रेट में कटौती की जाएगी। तथापि, लिक्विडिटी (चलनिधि) के तंगी के बने रहने से ऋण प्रवाह गड़बड़ा जाएगा और विकास के लिए खतरे बढ़ जाएंगे। इस संदर्भ में, लंबे समय के लिए स्थायी चलनिधि डालने के लिए सीआरआर सबसे प्रभावी उपकरण है। कटौती को इस मार्गदर्शन की पुष्टि के रूप में भी देखा जा सकता है कि दरों के संबंध में भावी कार्रवाइयां कम करने की दिशा में होंगी। 58. तथापि, यह रेखांकित कर दिया जाए कि दरों के संबंध में भावी कार्रवाइयों का समय और आकार कई बातों पर निर्भर है। खाद्य और आधारभूत संरचना में आपूर्ति-बाधाओं को दूर करने में सहायक निवेश को प्रोत्साहित करने वाली नीतिगत और प्रशासनिक कार्रवाइयां बेहद अहम हैं। श्रमिक बाज़ार में कार्य-कौशल संबंधी विसंगतियों को कम करने की कार्रवाइयों से वेतन पर दबाव को कम करने में सहायता मिलेगी। मुद्रास्फ़ीति प्रबंधन और व्यापक तौर पर समष्टि-आर्थिक स्थिरता, दोनों के लिए प्रत्याशित राजकोषीय घाटा एक उल्लेखनीय खतरा है जो अधिकांशत: सरकार के खपत व्यय के काफ़ी बढ़ने के चलते होता है । 59. समग्र मांग के संतुलन को सार्वजनिक से निजी की ओर तथा खपत से पूँजी निर्माण की ओर ले जाने वाले राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के मज़बूत संकेत नीतिगत दर को कम करने का माहौल बनाएंगे जिसमें नए सिरे से बढ़ रही मुद्रास्फ़ीति के आसन्न खतरे न हों। विश्वसनीय राजकोषीय सुदृढ़ीकरण न हो तो, घटते निजी खपत और निवेश व्यय के रेस्पॉन्स में रिज़र्व बैंक पॉलिसी रेट को घटाने की ओर प्रवृत्त नहीं हो पाएगा। आगामी बजट को इस प्रक्रिया को विश्वसनीय व टिकाऊ ढंग से प्रारंभ करने के अवसर का अवश्य उपयोग करना चाहिए। प्रत्याशित परिणाम 60. ऐसी प्रत्याशा है कि इन मौद्रिक नीति कार्रवाइयों और वक्तव्य में दिए गए मार्गदर्शन से:
मौद्रिक नीति 2011-12 की मध्य तिमाही समीक्षा 61. वर्ष 2011-12 की मौद्रिक नीति की अगली मध्य तिमाही समीक्षा की घोषणा गुरुवार, 15 मार्च, 2012 को प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से की जाएगी। मौद्रिक नीति 2012-13 62. 2012-13 की मौद्रिक नीति मँगलवार, 17 अप्रैल, 2012 को घोषित की जाएगी। मुंबई 24 जनवरी 2012 |