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सूक्ष्म और लघु उद्यम क्षेत्र को ऋण प्रदान करना

भारिबैं /2008-09/501
शबैंवि.बीपीडी.सं.71 /09.09.001/2008-09

16 जून 2009

मुख्य कार्यपालक अधिकारी
प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक

महोदय /महोदया

सूक्ष्म और लघु उद्यम क्षेत्र को ऋण प्रदान करना

सूक्ष्म और लघु उद्यम क्षेत्र (एमएसई) जिन समस्याओं को झेल रहा था उनको पहचानने, विशेषत: वित्तीय रूप से सक्षम होने के लिए संभावित रुग्ण इकाइयों के पुनर्वास के संदर्भ में भारतीय रिज़र्व बैंक ने डॉ. के.सी. चक्रवर्ती, अध्यक्ष तथा प्रबंध निदेशक, पंजाब नेशनल बैंक  की अध्यक्षता में एक कार्यदल का गठन किया था।

2. उपर्युक्त समूह ने अप्रैल 2008 में अपनी रिपोर्ट भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत कर दी थी जिसमें यह क्षेत्र जिन मामलों और समस्याओं से (ऋण एवं गैर ऋण संबंधी) जूझ रहा था उन पर व्यापक रूप से प्रकाश डाला गया है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस रिपोर्ट को अपनी वेबसाइट पर लगा दी थी तथा सभी पणधारकों से उनके विचार आमंत्रित किए थे। रिपोर्ट पर प्राप्त प्रतिक्रियाओं और विचारों की सावधानीपूर्वक समीक्षा की गयी है।

3. कार्यदल द्वारा की गयी सिफारिशों पर भारत सरकार, राज्य सरकारों तथा वाणिज्यिक बैंकों (क्रमश: अनुबंध I से III) द्वारा विचार किए जाने की जरूरत है। भारत सरकार से संबंधित सिफारिशों को उसके विचारार्थ तथा आवश्यक कार्रवाई के लिए भेज दिया गया है। राज्य सरकारों से संबंधित सिफारिशें, राज्य स्तरीय बैंकर समिति के संयोजक बैंक को समिति की बैठकों  में मामले को प्रस्तुत करने के लिए भेज दिया गया है। सिडबी से संबंधित सिफारिशें उसे भेज दी गयी हैं।

4. सूक्ष्म और लघु उद्यम के लिए क्रेडिट गारंटी ट्रस्ट फंड योजना (सीजीटीएमएसइ) पर कई सिफारिशें की गयी हैं। 2009-10 की वार्षिक नीति के पैरा 114 के अनुसार सूक्ष्म और लघु उद्यमों को संस्थागत ऋण प्रवाह पर स्थायी परामर्शदात्री समिति द्वारा इन सिफारिशों पर विचार किया जाएगा।

5. इस कार्यदल ने पर्याप्त ऋण और समय पर ऋण मिलने के मामले में इस क्षेत्र के समक्ष खड़ी समस्याओं पर भी विचार किया है। उसने न केवल रुग्णता की शुरूआत का समय पर पता लगाने और उसकी निवारक कार्रवाई के संबंध में सिफारिशें की है, बल्कि उन रुग्ण इकाइयों के पुनर्वास की सिफारिश भी की है जिन्हें पुनर्जीवित किया जा सकता है।

6. आपको सूचित किया जाता है कि सूक्ष्म और लघु उद्यम क्षेत्र को समय पर और पर्याप्त ऋण उपलब्ध कराने से संबंधित अनुबंध III में दी गयी कार्यदल की सिफारिशों पर विचार करें ताकि उनको त्वरित रूप से कार्यान्वित किया जा सके।

7. भारतीय रिर्ज़व बैंक ने वित्तीय रूप से सक्षम होने के लिए संभावित सूक्ष्म और लघु उद्यम इकाइयों /उद्यमों के पुनर्वास से संबंधित कार्यदल की उन सिफारिशों पर विचार किया है जिनका मुख्य उद्देश्य रुग्णता की पहचान करना तथा वित्तीय रूप से सक्षम होने के लिए संभावित इकाइयों के पुनर्वास के लिए निवारक उपाय अपनाना है। कार्यदल की सिफारिशों के आशय से पूर्णत: सहमत होते हुए भी रुग्ण्ता के लक्षण दिखाने वाले उधार खातों के संबंध में सूक्ष्म और लघु उद्यमों को ऋण की पुनर्संरचना पर निम्नलिखित परिपत्रों के माध्यम से जारी दिशानिर्देशों को ओर आपका ध्यान आकर्षित किया जाता है:

  1. शबैंवि.बीपीडी.परि.सं.36/09.09.001 /2005-06, दिनांक 09 मार्च 2006
  2. शबैंवि.पीसीबी.बीपीडी.सं.53/13.05.000 /2008-09, दिनांक 06 मार्च 2009

वास्तव में इन दिशानिर्देशों से रुग्णता की प्रारंभिक स्थिति का पता चल सकता है तथा यदि उन्हें अपेक्षित ढंग से लागू किया जाए तो प्रारंभिक स्तर पर ही रुग्णता को रोका जा सकता है। ऋण पुनर्संरचना के बावजूद रुग्ण इकाई बनने वाले सूक्ष्म और लघु उद्यम इकाइयां /उद्यम बहुत ही कम होंगे और वित्तीय रूप से सक्षम होने के लिए संभावित रुग्ण इकाइयां/उद्यमों के पुनर्वास पर विद्यमान दिशानिर्देश (19 जुलाई 2002 के परिपत्र शबैंवि.सं.पीसीबी.पीओटी.01/09.09.01 /2002-03 द्वारा जारी) की परिधि मे आएंगे। अत: बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे ऋण पुनर्संरचना के दिशानिर्देशों का इष्टतम और पूर्ण प्रयोग करें। यह उनके तथा उनके सूक्ष्म और लघु उद्यम ग्राहक के हित में होगा।

8. तदनुसार, कार्यदल की सिफारिशों को तथा भारतीय बैंकिंग संहिता और मानक बोर्ड (बीसीएसबीआई) की सूक्ष्म और लघु उद्यम उधारकर्ताओं के प्रति प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए आप अपने बैंक की समीक्षा करें तथा निदेशक मंडल की अनुमति से सूक्ष्म और लघु उद्यम क्षेत्र के लिए निम्नलिखित नीतियां बनाएं:

  1. ऋण सुविधाओं को बढ़ाने वाली ऋण नियंत्रक नीति
  2. वित्तीय रूप से सक्षम बनने के लिए संभावित रुग्ण इकाई /उद्यम को पुनर्जीवित करने के लिए पुनर्संरचना /पुनर्वास नीति

9. कृपया प्राप्ति-सूचना संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को दें तथा उसे कृत कार्रवाई रिपोर्ट 31 जुलाई 2009 तक प्रेषित करें ।

     
भवदीय

(ए.के.खौंड)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक


अनु: अनुबंध - I से III
अनुबंध I

क्र.सं.

भारत सरकार से संबंधित कार्रवाई

1.

चूंकि यह देखा गया है कि रूग्ण एसएमई का पुनर्वास कई मामलों में प्रवर्तकों का अंशदान उपलब्ध न होने के कारण नहीं किया जा सका इसलिए दल यह सिफारिश करता है कि इस क्षेत्र की सुविधा के लिए सरकार निम्नलिखित निधियां निर्मित करें:

i.

रूग्ण माइक्रो, छोटे और मध्यम उद्यमों के पुनर्वास के लिए एका स्वतंत्र पुनर्वास निधि निर्मित की जाए। निधि की राशि 1000 करोड़ रुपए होगी। जबकि 75% निधि माइक्रो और छोटे उद्यमों के लिए निश्चित की जा सकेगी, शेष निधि को मध्यम उद्यमों की सहायता करने के लिए उपयोग में लाया जा सकेगा। यह निधि माइक्रो और छोटे उद्यमों के पुनर्वास में काफी हद तक मदद कर सकेगा। इस निधि का उपयोग रियायती ब्याज दर जैसे कि 5-6% पर सुलभ ऋण / 75 लाख रुपए की अधिकतम सीमा के अधीन प्रवर्तकों के अपेक्षित अंशदान के 50% तक क्वैसी इक्विटी प्रदान करने के लिए किया जा सकता है। (पैरा 3.21इ (i))

ii.

प्रौद्योगिकीय उन्नयन अपनाने वाली यूनिटों के प्रवर्तकों द्वारा लाई जाने वाली अपेक्षित मार्जिन में अंशदान करने के लिए एक दूसरी निधि निर्मित की जाए। यह सहायता सुलभ ऋण/क्वैसी इक्विटी/इक्विटी के रूप में प्रदान की जानी चाहिए। (पैरा 3.21इ(ii))

iii.

अपने उत्पादों की बिक्री करने के लिए एमएसएमई इकाइयों को प्रोत्साहन देने के लिए विपणन विकास निधि (मार्केटिंग डेवलपमेंट फंड) स्थापित करना वांछनीय होगा जिसका उपयोग, अन्य कार्यों के साथ-साथ, वितरण और विपणन संबंधी बुनियादी सुविधाएं/बिक्री केद्र स्थापित करने के लिए किया जा सकेगा। इस निधि से विभिन्न स्तरों पर प्रदर्शनियां आदि आयोजित करने वाली संस्थाओं के लिए संसाधन जुटाने में योगदान मिल सकता है। (पैरा 3.21 इ(iii))

iv.

राष्ट्रीय इक्विटी निधि योजना (नैशनल इक्विटी फंड स्कीम) पुन: आरंभ की जाए। इस निधि का उपयोग हरित क्षेत्र या विस्तार परियोजनाओं के लिए किया जा सकेगा। (पैरा 3.21 इ (iv))

v.

नए तरीके स्थापित करने के लिए उद्यमियों को प्रोत्साहित करने हेतु जोखिम पूंजी/मेज़नाइन फाइनेंस को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। छत्र संस्था (रिपोर्ट में दिए गए सुझाव के अनुसार)/सिडबी में अलग से एक निधि होनी चाहिए जिससे इक्विटी/मेज़नाइन फाइनेंस/सुलभ ऋण आदि के रूप में छोटे उद्यमियों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जोखिम पूंजी निधियों को सहायता मिल सके। (पैरा 3.21इ(v))

vi.

ऋण सहबद्ध पूंजीगत सब्सिडी योजना (ग्रामीण क्षेत्र की यूनिटों को छोड़कर अन्य यूनिटों के लिए) और केवीआइसी मार्जिन मनी योजना (ग्रामीण क्षेत्र की इकाइयों के लिए) जैसी योजनाओं की सहायता पुनर्वास पैकेजों को भी प्रदान की जानी चाहिए। (पैरा 3.21इ(vi))

2.

संबंधित क्षेत्र के औद्योगिकरण में राज्य वित्त निगमों के योगदान को देखते हुए तथा इन निगमों की क्षमता को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार संबंधित राज्य सरकारों को निर्देश दे कि वे  अर्थक्षम राज्य वित्त निगमों के पुनर्पूंजीकरण के लिए एकबारगी वित्तीय सहायता प्रदान करें। जो राज्य वित्त निगम अर्थक्षम नहीं पाए गए हैं उन्हें अपने परिचालन बंद करने की अनुमति दी जाए तथा राज्य सरकार ऋणदाताओं/उधारदाताओं के ऋणों का निपटान करें। (पैरा 3.22)

3.

प्रवर्तकों के पास प्रौद्योगिकीय उन्नयन के लिए बहुत कम निधि उपलब्ध है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग जो छोटे और बड़े उद्योगों के लिए नई प्रौद्योगिकी के विकास के लिए सक्रिय रूप से कार्यरत है, भारत के एमएसएमई क्षेत्र की जरूरतों के मुताबिक अन्य देशों में विकसित प्रौद्योगिकी को अपनाने पर विचार करे ताकि इस क्षेत्र को किफायती और ग्राहकों की आवश्यकताओं से जुड़ा हुआ बनाया जा सके। (पैरा 5.4.2)

4.

यह आवश्यक है कि सभी पर्णधारक, इंजीनियरिडग कॉलेजों/आइआइटियों को माइक्रो, छोटे और मध्यम उद्यमों में प्रौद्योगिकीय उन्नयन के लिए रिसर्च करने हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करें। माइक्रो, छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए प्रौद्योगिकी के उन्नयन के प्रति अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) को प्रोत्साहन देने के लिए दल यह प्रस्तावित करता है कि आय कर अधिनियम की धारा 10(21) में संशोधन किया जाए जिसके अनुसार इंजीनियरिडग संस्थाओं में अनुसंधान और विकास कार्य के लिए निधियन के प्रति किए गए अंशदान के लिए 150% कटौती की अनुमति दी जाए। (पैरा 5.4.3)

5.

सरकार प्रौद्योगिकी के उन्नयन और आधुनिक प्रौद्योगिकी वाली नई इकाइयां स्थापित करने के लिए टीयूएफएस की तर्ज पर एसएमई के लिए उद्योग विशिष्ट ब्याज सब्सिडी योजना आरंभ करे। तथापि, आधुनिक प्रौद्योगिकी जिसे प्रत्येक उद्योग में कवर किया जाए, मंत्रालय द्वारा विनिर्दिष्ट होनी चाहिए। (पैरा 5.4.4)

6.

आधुनिक प्रौद्योगिकी पर कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के लिए सरकार, विशेषत: उपयोगकर्ता उद्योग के कमांड एरिया में ज्यादा से ज्यादा आइटीआई, टूल रूम प्रशिक्षण केद्र आदि स्थापित करे।(पैरा 5.4.5)


अनुबंध II

क्रम सं.

राज्य सरकार/एसएलबीसी संयोजक बैंकों से संबंधित कार्रवाई

1

स्वामित्व, भागीदारी, सहकारी समिति, न्यास, कंपनी या किसी अन्य रूप में दर्ज किए गए उधारकर्ताओं की सभी चल और अचल संपत्तियों के संबंध में सभी बैंकों और अन्य ऋणदात्री संस्थाआंट के प्रभारों के पंजीकरण हेतु राज्य सरकारों द्वारा एक केंद्रीय रजिस्ट्री स्थापित करना। (पैरा 3.20डी)

2

कार्रवाई योग्य दावों के समनुदेशन पर स्टॉम्प ड्युटी देय होती है । स्टाम्प ड्यूटी पर छूट या उच्चतम सीमा निर्धारण के माध्यम से इन कारकों के उपबंधों में संशोधन से इस कार्य को बढ़ावा मिलेगा।
(पैरा 3.21 बी)

3

अत्यंत लघु माइक्रो उद्यमों को प्रशिक्षण सेवाएं उपलब्ध कराने हेतु निर्दिष्ट एनजीओ का उपयोग करने की योजना पर विचार किया जा सकता है। (पैरा 4.10)

4

प्रत्येक राज्य सरकार में एमएसएमइ के लिए अलग मंत्रालय भी हो। इसके अतिरिक्त, राज्य सरकार में एमएसएमइ क्षेत्र के विकास/उन्नयन हेतु दीर्घावधि और अल्पावधि नीति भी होनी चाहिए। (पैरा 5.9)

5

राज्य सरकार को चाहिए कि वह एमएसएमई को निरंतर विद्युत आपूर्ति उपलब्ध कराने को प्राथमिकता दे। यदि यह संभव नहीं है तो राज्य सरकार डीजी सेट खरीदने हेतु लिए गए ऋण पर सब्सिडी का अंतिम भाग प्रदान करें। (पैरा 5.11)

6

केवल एमएसएमई के लिए औद्योगिक संपदा स्थापित करने हेतु राज्य सरकारों को सामान्य दर के 50 प्रतिशत पर भूमि उपलब्ध कराने हेतु प्रोत्साहित किया जाए। साथ ही, सामान्य सुविधाएं जैसे अपगामी ट्रीटमेंट प्लांट, पॉवर प्लांट आदि की पूंजीगत लागत पर 50 प्रतिशत की सब्सिडी प्रदान की जाए।
(पैरा 7.9)

7

राज्य औद्योगिक विकास निगम या डीआइसी द्वारा विकसित औद्योगिक संपदाओं में प्रत्येक एसएमइ इकाइयों या एसएमई के लिए निजी उद्यमियों द्वारा विकसित अनुमोदित औद्योगिक संपदाओं के लिए डीआइसी द्वारा पंजीकरण को छोड़कर और कोई अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होगी चूंकि अनुमोदित लेआउट के अनुसार वे विकसित हैं। इसके अतिरिक्त, संपूर्ण आधारभूत संरचना को स्थापित करके निक्रााय पड चुके औद्योगिक संपदाओं को पुन: सक्रिय बनाया जाए ताकि राष्ट्रीय संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल किया जा सके।(पैरा 7.10)

8

श्रेष्ठ उद्योग या क्षेत्र में अच्छी संकेंद्रित गतिविधियों का बैंकों और डीआइसी द्वारा पता लगाया जाए। सामान्य रूप से मौजूद उद्योग की विभिन्न आकार के लिए परियोजना की मॉडल लागत तथा गतिविधि की समग्र व्यवहार्यता का आकलन एक समिति द्वारा किया जाए जिसमें अग्रणी बैंक के तत्वावधान में जिले के 2-3 प्रमुख बैंक शामिल हों, ताकि अलग-अलग मामलों में टीइवी अध्ययन तैयार करने में किसी विशेषज्ञ/व्यवसायी की आवश्यकता न पड़े। मशीनरी और अन्य आवश्यक अचल संपत्तियों की कीमत, कच्चे माल के स्रोत, तकनीकी सुविज्ञता और कुशल श्रमिक की उपलब्धता, बाजार तक पहुंच आदि पर विचार करने के बाद यह कार्रवाई आवधिक रूप से की जाए। डीआइसी को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाए। छोटे उद्यमी भी इस परियोजना प्रोफाइलों का उपयोग करें तथा अधिक समय लेनेवाले और मंहंगे टीइवी अध्ययन/व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार करने में व्यवसायी की मदद न लें। वित्तपोषण करते समय बैंक प्रत्येक मामले में टीइवी अध्ययन न करवाएं। शुरुआत के तौर पर इस प्रथा को 1 करोड़ तक का मीयादी ऋण, जो समीक्षा के बाद प्राप्त किया जा सकता ह। की परियोजनाओं से आरंभ किया जाए।
(पैरा 3.6.1)


अनुबंध III

क्रम सं.

बैंकों से संबंधित कार्रवाई

1

सामान्य रूप से मौजूद उद्योग की विभिन्न संख्या के लिए परियोजना की मॉडल लागत तथा गतिविधि की समग्र व्यवहार्यता का आकलन एक समिति द्वारा किया जाए जिसमें अग्रणी बैंक के तत्वावधान में जिले के 2-3 प्रमुख बैंक शामिल हों, ताकि अलग-अलग मामलों में टीइवी अध्ययन तैयार करने में किसी विशेषज्ञ/व्यवसायी की आवश्यकता न पड़े। मशीनरी और अन्य आवश्यक अचल संपत्तियों की कीमत, कच्चे माल के स्रोत, तकनीकी सुविज्ञता और कुशल श्रमिक की उपलब्धता, बाजार तक पहुंच आदि पर विचार करने के बाद यह कार्रवाई आवधिक रूप से की जाए। डीआइसी को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाए। छोटे उद्यमी भी इस परियोजना प्रोफाइलों का उपयोग करें तथा अधिक समय लेनेवाले और महंगे टीइवी अध्ययन/व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार करने में व्यवसायी की मदद न लें। वित्तपोषण करते समय बैंक प्रत्येक मामले में टीइवी अध्ययन न करवाएं।
एसएमई की मंजूरी/पुनर्वास के लिए अधिकारों का पर्याप्त प्रत्यायोजन फील्ड स्तर पर किया जाना चाहिए। (पैरा 3.6.1)
अग्रणी बैंक आवश्यक कार्रवाई करें।

2

2 करोड़ तक के सभी अग्रिमों का उधार स्कोरिडग मॉडल के आधार पर किया जाए। स्कोरिडग मॉडल की आवश्यक जानकारी आवेदन फार्म में ही दी जानी चाहिए। ऐसे मामलें में अलग-अलग जोखिम निर्धारण की आवश्यकता नहीं है । (पैरा 3.6.3ए)

3

बैंक  ऋण आवेदनों का केंद्रीयकृत पंजीकरण शुरू  कर सकते हैं। इसी प्रौद्योगिकी को ऋण आवेदन की ऑन-लाइन प्रस्तुति तथा ऋण आवेदनों की ऑन लाइन ट्रेकिंग के लिए भी उपयोग में लाया जा सकता है। (पैरा 3.6.3बी)

4

आवेदन फार्म इस तरह से बनाए जाएं कि ऋण स्वीकृति पर उधारकर्ता द्वारा भरे जानेवाले सभी आवश्यक दस्तावेज उनका एक भाग बन जाएं। फार्म में अनिवार्य रूप से दस्तावेजों की जांच-सूची होनी चाहिए जो स्वीकृति के बाद आवेदक द्वारा आवेदन तथा आवश्यक औपचारिकताएं पूरी करने, कार्योत्तर मंजूरी के साथ प्रस्तुत किए जाने होते हैं। (पैरा 3.6.3सी)

5

सभी माइक्रो उद्यमों के मामलों में 1 करोड़ रुपए तक के ऋण तथा नायक समिति के मानदंडों के अंतर्गत कार्यशील पूंजी के लिए सरल आवेदन व स्वीकृति फार्म (जो स्थानीय भाषा में भी छपवाया जाए) शुरू  किए जाएं। (पैरा 3.6.3डी)

6

जिन बैंकों ने एकल या संयुक्त रूप से मीयादी ऋण स्वीकृत किए हों वे एकल (या संयुक्त रूप से मीयादी ऋण के अनुपात में) डब्ल्यूसी सीमा भी स्वीकृत करें ताकि वाणिज्यिक उत्पादन शुरू करने में विलंब न हो। यह सुनिश्चित किया जाए कि ऐसे मामले न हो जहां मीयादी ऋण तो स्वीकृत किया गया हों लेकिन कार्यशील पूंजी सुविधाएं स्वीकृत करना बाकी हो। (पैरा 3.8)

7.

केद्रीयकृत ऋण प्रोसेसिंग कक्ष शुरू किए जाएं। इन कक्षों का उपयोग एकल बिंदु मूल्यांकन, स्वीकृति, प्रलेखीकरण, नवीकरण तथा बढ़ोतरी के लिए किया जाए। केद्रीयकृत ऋण प्रोसेसिंग के कार्य की समीक्षा बैंक के नियंत्रक कार्यालय द्वारा की जाए। सीपीसी को बैंक के बैक ऑफिस के रूप में कार्य करना चाहिए। (पैरा 3.9)।

8.

नए ऋण की स्वीकृति तथा पुनर्वास मामलों के लिए समिति दृष्टिकोण अपनाया जाए। माइक्रो, छोटे और मध्यम उद्यम क्षेत्र की हरित क्षेत्र परियोजनाओं या पुनर्वास प्रस्तावों के ऋण आवेदनों पर निर्णय लेते समय इससे निर्णय की गुणवता बढ़ेगी क्योंकि इसमें सदस्यों के सामूहिक विवेक का उपयोग होगा।
(पैरा 3.10)

9.

बैंक, स्टाक और प्राप्य राशियों के संयुक्त स्तर पर विचार करें और ऋणकर्ताओं के लिए कोई उप सीमा निर्धारित न की जाए। बैंक एक सुविधा के अंतर्गत स्टॉक और प्राप्य राशियों की जमानत पर सीसी/ओडी की अनुमति दे सकते हैं। (पैरा 3.14)

10.

नायक समिति के मानदंडों के अनुसार बैंकों से बिजनेस उद्यम को बैंक वित्त के रुप में आवर्त का 20% प्रदान करना और 5% मार्जिन के रूप में प्राप्त करना अपेक्षित है। यह 1.25 का चालू अनुपात होता है। (पैरा 3.15)

11.

बैंक सिडबी द्वारा विकसित साफ्टवेयर की तर्ज पर उचित ऋण मूल्यांकन और रेटिंग तंत्र (सीएआरटी) विकसित करें या छोटे और मध्यम उद्यमों के ऋण/कार्यशील पूंजी के प्रस्तावों पर कार्रवाई करने के लिए ऐसे तंत्र की सहायता लें। (पैरा 3.19)

12.

बैंक अधिकाधिक विशेषीकृत माइक्रो छोटे और मध्यम उद्यम शाखाएं खोलने पर ध्यान दें। चुने गए सभी समूहों और औद्योगिक संपदाओं में विशेषीकृत शाखा नेटवर्क के विस्तार का कार्य समयबद्ध तरीके से 3-5 वर्ष में पूरा कर लिया जाना चाहिए। (पैरा 3.20बी)

13.

बैंक तकनीकी संस्थाओं द्वारा प्रदान किए गए मंचों का उपयोग करें तथा ऐसी संस्थाओं में अपने स्टाफ को नियमित रूप से भेजें। शाखा प्रबंधकों और ऋण अधिकारियों को भी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि एमएसएमई क्षेत्र को किए जानेवाले वित्तपोषण को जोखिम मानने की उनकी समस्या को दिमाग से हटाया जा सके। एमएसएमई को वित्तपोषण करने में अच्छे कार्यानिष्पादन के लिए प्रोत्साहन देने की एक प्रणाली लागू की जाए जो कार्यनिष्पादन मूल्यांकन रिपोर्ट में विशेष उल्लेख या विशेष प्रशिक्षण आदि के रूप में हो सकती है । (पैरा 3.20ए)

14.

रूग्ण माइक्रो, छोटे  और मध्यम उद्यमों की सही पहचान और रिपोर्टिंग करने के लिए प्रौद्योगिकी को अपनाया जाना चाहिए। (पैरा 9.19)

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