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उपदान सीमा में बढ़ोतरी - विवेकपूर्ण विनियामकीय पद्धति

आरबीआई /2010-11/544
शबैंवि.बीपीडी.(पीसीबी)परि.सं.49/09.14.000/2010-11

24 मई 2011

मुख्य कार्यपालक अधिकारी
सभी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक

महोदय /महोदया

उपदान सीमा में बढ़ोतरी - विवेकपूर्ण विनियामकीय पद्धति

कृपया 09 फरवरी 1993 के हमारे परिपत्र शबैंवि.सं.आइ एण्ड एल-38 /5.1-92/93 के साथ सलंग्न ज्ञापन का पैरा 10 देखें जिसमें शहरी सहकारी बैंकों को यह सूचित किया गया था कि भविष्य निधि, पेंशन, उपदान आदि के लिए अनुमानित देयताओं की बीमांकिक आधार पर गणना करना आवश्यक है तथा शहरी सहकारी बैंकों को लाभ हानि लेखो में प्रत्येक वर्ष इसके लिए पूर्ण प्रावधान करना चाहिए ।

2. उपदान सीमा में बढ़ोतरी होने तथा उपदान राशि का भुगतान अधिनियम 1972 में संशोधन के फलस्वरूप शहरी सहकारी बैंक तथा उनके असोसिएशन ने यह व्यक्त किया है कि एक वर्ष में इतनी बडी राशि का समायोजन करना कठिन है ।

3. विनियामकिय दृष्टिकोन से मामले की जांच की गयी तथा यह निर्णय लिया गया कि शहरी सहकारी बैंक मामले के संदर्भ में निम्नलिखित कार्रवाई करे :

क. उपर्युक्त पैरा 2 में दर्शाया गया व्यय यदि वित्तीय वर्ष 2010-11 में लाभ हानि लेखे में पूर्णत नही लिया गया होतो 31 मार्च 2011 को समाप्त वर्ष से शुरू करते हुए पांच वर्षो में उसे आस्थगित करे बशर्ते प्रत्येक वर्ष कम से कम 1/5 राशि लाभ हानि लेखे में ली जानी चाहिए ।

ख. इस प्रकार उपदान में बढ़ोतरी के कारण किया गया व्यय का आस्थगन,सेवानिवृत्त /अलग हुए कर्मचारियों को देय राशि के लिए अनुमत नही है ।

4. आस्थागित व्यय को वार्षिक वित्तीय विवरण में उचित रूप से घोषित करना चाहिए।

5. घटना के असामान्य स्वरूप को ध्यान में रखते हुए आस्थागित व्यय शहरी सहकारी बैंकों की टियर- I पूंजी से घटाया नहीं जाएगा ।

6. कृपया हमारे क्षेत्रीय कार्यालय को परिपत्र की प्राप्ति सूचना दें ।  

भवदीया

(उमा शंकर)
मुख्य महाप्रबंधक

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