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भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर द्वारा वर्ष 2003-2004के लिए मौद्रिक और ऋण नीति की घोषणा

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर द्वारा वर्ष 2003-2004
के लिए मौद्रिक और ऋण नीति की घोषणा

29 अप्रैल 2003

डॉ विमल जालान, गवर्नर ने आज मुख्य वाणिज्य बैंकों के प्रमुख कार्यापालकों के साथ आयोजित बैठक में वर्ष 2003-2004 के लिए मौद्रिक और ऋण नीति प्रस्तुत की। गवर्नर महोदय के वक्तव्य में स्थूल आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां और विश्लेषणात्मक और परिचालनगत मामलों के साथ मौद्रिक नीति की स्थिति ब्याज दर, विनिमय दर और आरक्षित निधि प्रबंधन की समीक्षा शामिल है। उन्होंने वित्तीय प्रणाली में सुधार लाने और तकनीकी और संस्थागत बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए कतिपय और उपाय घोषित किये और निम्नलिखित पहलुओं पर बल दिया।

2002-2003 के दौरान सकल देशी उत्पाद वृद्धि 4.4 प्रतिशत

वर्ष 2002-2003 के लिए सकल देशी उत्पाद की समीक्षा करते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि जनवरी 2003 में केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) द्वारा जारी अग्रिम अनुमानों ने सकल देशी उत्पाद की वृद्धि को 4.4 प्रतिशत पर रखा है, जो कृषि और संबद्ध गतिविधियों के उत्पादन में करीब 3.1 प्रतिशत की अनुमानित गिरावट दर्शाती है। सीएसओ के अग्रिम अनुमानों के अनुसार औद्योगिक क्षेत्र का समग्र वृद्धि संबंधी कार्यनिष्पादन 5.8 प्रतिशत है, जो अलबत्ता, पिछले वर्ष के 3.2 प्रतिशत से काफी अधिक है। सेवा क्षेत्र में पिछले वर्ष की 6.5 प्रतिशत की तुलना में 7.1 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है।

मार्च 2003 के अंत में बिंदुवार मुद्रास्फीति दर 6.2 प्रतिशत पर

2. जनवरी 2003 के मध्य तक थोक मूल्य सूचकांक में बिंदु-दर-बिंदु आधार पर मुद्रास्फीति की वार्षिक दर घट-बढ़ के अनुसार 4.0 प्रतिशत से कम रही तथा उसके बाद मार्च 2003 तक वह 6.2 प्रतिशत तक बढ़ गयी। अलबत्ता, वर्ष 2002-2003 में औसत आधार पर मुद्रास्फीति की वार्षिक दर कम हुई। यह एक वर्ष पहले के 3.6 प्रतिशत की तुलना में 3.3 प्रतिशत रही।

खाद्य वस्तुओं की कीमतें सामान्य रखने में खाद्यान्न स्टाक सहायक रहे

3. गवर्नर महोदय ने कहा कि यद्यपि खाद्यान्न ऋण में कमी के कारण सरकारी खरीद और उच्चतर कुल खरीद ने गिरावट की प्रवृत्ति दिखायी, सरकार के पास उपलब्ध बड़े सुरक्षित भंडारों ने खाद्यान्न मदों की बढ़ती हुई कीमतों में रोक का कार्य करने के साथ-साथ वर्ष के दौरान भारी सूखे की स्थिति में सामान्य कीमत स्तर बरकरार रखने में भी सहायता की।

2002-2003 में मौद्रिक संकेतक लक्षित सीमा में

4. मौद्रिक गतिविधियों का संदर्भ देते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि वार्षिक आधार पर मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि, 12.1 प्रतिशत पर शुद्ध विलयन (नेट ऑफ मर्जर्स) लक्षित सीमा के भीतर थी। अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की कुल जमाराशियों में शुद्ध विलयन (नेट ऑफ मर्जर्स) की 12.2 प्रतिशत की वृद्धि वर्ष के प्रारंभ में किये गये अनुमान के अनुरूप थी। गवर्नर महोदय ने कहा कि वर्ष 2002-2003 के दौरान मौद्रिक गतिविधियों की एक महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि भारतीय रिज़र्व बैंक की विदेशी मुद्रा आस्तियों में तीव्र वृद्धि के बावजूद प्रारक्षित मुद्रा में कम वृद्धि हुई तथा सरकार के उधार कार्यक्रम के लिए पर्याप्त प्राथमिक सहायता मिली।

ऋण प्रवाह में पर्याप्त वृद्धि

5. गवर्नर महोदय ने कहा कि वर्ष 2002-2003 के दौरान वाणिज्य क्षेत्र में ऋण प्रवाह में निरंतर वृद्धि हुई जो औद्योगिक सुधार दर्शाती है। अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के गैर-खाद्यान्न ऋण ने 26.2 प्रतिशत की उच्चतर वृद्धि दर्ज की। नेट ऑफ मर्जर्स की दृष्टि से यह पिछले वर्ष के 13.6 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में 17.8 प्रतिशत बढ़ा। गवर्नर महोदय ने यह भी संकेत दिया कि वर्ष 2002-2003 के दौरान 79.0 प्रतिशत वृद्धिशील गैर-खाद्यान्न ऋण जमा अनुपात पिछले पांच वर्षों में दर्ज उच्चतम अनुपात है।

2002-2003 में सरकारी उधारों की लागत में तीव्र गिरावट

6. गवर्नर महोदय ने कहा कि 2002-2003 के दौरान केन्द्र सरकार के 1,04,188 करोड़ रुपये (कुल 1,51,126 करोड़ रुपये) के शुद्ध बाजार उधार बजट अनुमान से 8,259 करोड़ रुपये अधिक तथा संशोधित अनुमान से 8,747 करोड़ रुपये कम थे। सरकारी उधारों की दिनांकित प्रतिभूतियों के माध्यम से वर्ष 2002-2003 के दौरान 7.34 प्रतिशत की भारित औसत लागत पिछले वर्ष की 9.44 प्रतिशत की तुलना में 210 आधार अंक कम थी। अलबत्ता, गवर्नर महोदय ने इस बात की चेतावनी दी कि हालांकि चालू वर्ष में ब्याज दर परिदृश्य में बड़े राजकोषीय घाटे के प्रतिकूल प्रभाव सुस्पष्ट नहीं हैं, प्रभावशाली मौद्रिक और ऋण प्रबंधन परिचालन की सुविधा के लिए यह ज़रूरी है कि राजकोषीय समेकन तथा पर्याप्त रूप से निम्न राजकोषीय घाटे का लक्ष्य रखा जाए।

विभिन्न घटकों के बीच ब्याज दरों में गिरावट

7. ब्याज दर परिदृश्य पर विचार करते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि वर्ष में अधिकांश समय के लिए मुद्रास्फीति स्थिति नरम बनी रही, उच्च स्तर के सरकारी उधारों के बावजूद नरम ब्याज दर परिवेश बनाये रखना संभव हुआ। गवर्नर महोदय ने आगे यह उल्लेख किया कि वर्ष के दौरान एक दिलचस्प गतिविधि यह रही है कि मुद्रा बाजार लिखतों की ब्याज दरें 5.5 से 6.0 प्रतिशत के संकरे दायरे में ऊपर-नीचे होती रहीं जिन्होंने चलनिधि स्थितियों को आसान बना दिया। वर्ष के दौरान सरकारी प्रतिभूतियों पर गौण बाजार प्रतिफलों में अवधि समाप्ति के संदर्भ में सुस्पष्ट अधोमुखी प्रवृत्ति दिखायी दी। एक रोचक बात यह रही कि वर्ष 2002-2003 के दौरान सरकारी प्रतिभतियों के प्रतिफलों की तुलना में गैर-सरकारी बांडों के प्रतिफलों ने तीव्रतर कमी दिखलायी और अब ऐसे बांडों के प्रतिफल पहले की अपेक्षा सरकार द्वारा गारंटीकृत बांडों के अधिक नज़दीक हैं।

8. सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने अपनी मीयादी जमा दरें कम की हैं, इसके साथ दीर्घावधि जमाराशियों पर इस तरह की गिरावट और अधिक मुखर होने की संभावना है। परिणामस्वरूप, जमाराशि दरों का मीयादी ढांचा सपाट होता चला गया है। निधियों की कम लागत के साथ सामंजस्य रखते हुए बैंकों ने भी अपनी मूल उधार दरें कम कर दी हैं।

9. रिज़र्व बैंक की बैंक दर चरणों में कम की गयी है। इसे जुलाई 2000 के 8.0 प्रतिशत से कम करके अक्तूबर 2002 में 6.25 प्रतिशत किया गया, जो मई 1973 के बाद से न्यूनतम दर है। साथ ही, मार्च 1999 में पुनर्खरीद दर 8.0 प्रतिशत से कम करके मार्च 2003 तक 5.0 प्रतिशत कर दी गयी। उसी तरह, भारित औसत मांग मुद्रा दर अगस्त 2000 के 13.06 प्रतिशत से कम करके मार्च 2003 में 5.86 प्रतिशत कर दी गयी।

10. हालांकि सन्तुलित मुद्रास्फीति सुलभ चलनिधि और नरम ब्याज दर वातावरण समग्र मौद्रिक स्थितियों की तुलना में इस समय संतोषजनक हैं, गवर्नर महोदय ने कहा कि रिज़र्व बैंक अपने मौद्रिक प्रबंधन के व्यवहार के लिए देशी और बाहरी स्थिति पर नज़दीकी से निगरानी जारी रखेगा।

ब्याज दर जोखिम

11. वर्ष 2002-2003 के दौरान ब्याज दर की दो-तरफा गतिविधियों का संदर्भ देते हुए गवर्नर महोदय ने इस बात पर बल दिया कि बैंकों को चाहिए कि वे बेहतर जोखिम प्रबंधन के लिए निवेश के अस्थिर प्रारक्षित निधि को सरल और क्रमबद्ध तरीके से बनाने के लिए तत्काल उपाय करें।

वैश्विक आर्थिक दृश्य अनिश्चित बना रहा

12. वैश्विक अर्थव्यवस्था की गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने यह अनुमान किया है कि पिछले वर्ष की 3.0 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2003 के दौरान विश्व अर्थव्यवस्था 3.2 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी। अलबत्ता, आर्थिक दृष्टिकोण के संबंध में अनिश्चितता भू-राजनीतिक गतिविधियों के कारण ऊंची बनी रही। स्थूल आर्थिक नीतियों को अर्थव्यवस्था के मूल तत्त्वों को मज़बूत बनाने, वित्तीय स्थिरीकरण और दीर्घावधि लाभों की सहायता के लिए अच्छे कार्पोरेट गवर्नेन्स के प्रवर्तन करने पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखना होगा।

विदेशी मुद्रा भंडार अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर

13. गवर्नर महोदय ने कहा कि भारत की विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधियां 21.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि के साथ 54.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से मार्च 2002 के अंत में 75.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर हुई। साथ ही, भारत सरकार ने उच्च मूल्य बाह्य ऋण के 2.97 बिलियन अमेरिकी डॉलर का समयपूर्व भुगतान किया। कंपनी निकायों ने भी 595 मिलियन अमेरिकी डॉलर के बाह्य वाणिज्यिक उधारों की चुकौती की। प्रारक्षित निधि की यह वृद्धि एकल वर्ष में अभिलिखित उच्चतम वृद्धि है और अंतर्राष्ट्रीय तेल कीमतों में हुई भारी वृद्धि तथा कई अन्य प्रतिकूल गतिविधियों जैसे अवधि के दौरान विकासशील देशों को कम अंतर्राष्ट्रीय पूंजी प्रवाहों के बावजूद इसे दर्ज किया गया है। रिज़र्व बैंक द्वारा हाल ही में किये गये अध्ययन की ओर ध्यान दिलाते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में प्रारक्षित निधियों में किया गया करीब समग्र परिवर्धन बाह्य ऋण के समग्र स्तर में वृद्धि के बिना किया गया है। प्रारक्षित निधियों में अभिवृद्धि की लागत उल्लेखनीय नहीं पायी गयी है, क्योंकि अधिकतर वृद्धि गैर-ऋण अंतर्प्रवाहों के कारण हुई।

14. भारत का विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधियों के प्रबंधन संबंधी हाल ही का समग्र दृष्टिकोण भुगतान संतुलन के परिवर्तनशील घटकों को प्रतिबिंबित करता है और साथ ही विभिन्न प्रकारों के प्रवाहों और अन्य आवश्यकताओं से संबद्ध चलनिधि जोखिमों को प्रतिबिंबित करने का प्रयास करता है। इस तरह प्रारक्षित निधि प्रबंधन के लिए नीति विवेकपूर्ण रूप से पहचान योग्य घटकों और अन्य आकस्मिकताओं पर आधारित है। इन घटकों में अन्य बातों के साथ-साथ चालू खाता घाटे का आकार, अल्पावधि देयताओं का आकार (दीर्घावधि ऋणों पर चालू चुकौती दायित्वों सहित) संविभाग निवेश में संभाव्य परिवर्तनीयता और अन्य प्रकार के नकदी प्रवाह, बाह्य आघातों के कारण भुगतान संतुलन पर आनेवाले अप्रत्याशित दबाव और अनिवासी भारतीयों की अप्रत्यावर्तनीय विदेशी मुद्रा जमाराशियों की गतिविधियां/प्रारक्षित निधियों में वृद्धि उच्चतर प्रेषण निर्यात आय की शीघ्रतर अ-प्रत्यावर्तनीयता (नॉन रिपैट्रिएबिलिटी) और गैर-ऋण अंतर्प्रवाहों को प्रतिबिंबित करती है। विदेशी मुद्रा मूल्यवर्ग के अनिवासी भारतीय अंतर्प्रवाहों को ध्यान में लेते हुए (जहाँ ब्याज दरों को लिबोर के साथ जोड़ा जाता है) हाल ही की भारत की अतिरिक्त प्रारक्षित निधि की अभिवृद्धि की वित्तीय लागत बहुत कम है, और अतिरिक्त प्रारक्षित निधियों की वापसी पर वह ऑफसेट से भी अधिक होने की संभावना है।

विनिमय दर नीति समय की कसौटी पर खरी उतरी

15. विदेशी मुद्रा प्रबंधन पर विस्तार से बताते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि हाल ही के अनुभव ने फिर एक बार इस बात पर प्रकाश डाला है कि विकासशील देशों के लिए यह बात जरूरी है कि वे बाजार गतिविधियों पर सतत निगरानी रखें तथा पर्याप्त सुरक्षा नेट का महत्त्व जान लें जो अप्रत्याशित आघातों और बाजार अनिश्चितताओं के प्रभावों को सह सकें। इस संदर्भ में भारत की चालू विनिमय दर नीति समय की कसौटी पर खरी उतरी है। उसने निर्धारित दर लक्ष्य के बिना अस्थिरता प्रबंधन पर अपना ध्यान केंद्रित किया है तथा समय के दौरान सुचारू रूप से विनियम दर निर्धारित करने के लिए पूर्वताप्राप्त मांग और आपूर्ति स्थितियों की अनुमति दी है। गवर्नर महोदय ने इस बात पर संतोष प्रकट किया कि उभरते बाजारों में व्यवहार्य विनिमय दर रणनीतियों पर हाल ही में किये गये अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान ने भारत द्वारा अपनायी गयी विनिमय दर नीति का यथोचित समर्थन किया है। गवर्नर महोदय ने आश्वासन दिया कि रिज़र्व बैंंक देश और विदेश के वित्तीय बाजारों की गतिविधियों की नज़दीकी निगरानी करके सतर्कता, सावधानी, लचीलेपन के दृष्टिकोण का अनुपालन जारी रखेगा।

विदेशी मुद्रा अन्तर्प्रवाहों की तुलना में प्रतिरूप देखी करेंसी संसाधन जारी करना

16.गवर्नर महोदय ने स्पष्ट किया कि हाल ही की अवधि में प्रारक्षित निधियों में हुई अधिकतर वृद्धि रिज़र्व बैंक द्वारा देशी विदेशी मुद्रा बाजार में की गयी निवल खरीद के माध्यम से हुई, जिसके लिए संबंधित देशी कंपनियों जिनमें सरकारी क्षेत्र की इकाइयां, कंपनियां और अलग-अलग व्यक्ति शामिल हैं, को समतुल्य देशी करेंसी जारी की गयी। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि यह प्रतिरूप देशी करेंसी प्राप्तकर्ता कंपनियों द्वारा अर्थव्यवस्था में और निवेश के लिए इस्तेमाल की गयी, औद्योगिक मांग और वृद्धि पर प्रभाव अनुकूल होगा।

वायदा बाजार प्रीमियमों की गतिविधि

17. गवर्नर महोदय ने हाल ही के मीडिया और बाजार सहभागियों द्वारा वायदा बाजार प्रीमियमों से संबद्ध विशेषज्ञ अभिमतों का संदर्भ दिया। प्रीमियमों ने हाल ही के सप्ताहों में अधोगामी गतिविधि दर्शायी है। इस तरह 25 अप्रैल 2003 तक 6 महीने के अमेरिकी डॉलर का वायदा प्रीमियम एक वर्ष पहले के 5.9 प्रतिशत तथा जनवरी 2003 के प्रारंभ के 3.4 प्रतिशत की तुलना में केवल 2.1 प्रतिशत (वार्षिक दर) था। गवर्नर महोदय ने कहा कि वायदा प्रीमियमों ने तीव्र अधोमुखी गतिविधि इसलिए हुई क्योंकि इस समय निर्यातकों और अन्य कंपनियों द्वारा डॉलर की तुलना में रुपये के और मूल्यह्रास से पहले वायदा बाजार में डॉलर बेचने की होड़ लगी है। इस अपेक्षा के जवाब में डॉलर उधार लेने (बाद में चुकौती के लिए) और उन्हें रुपये में परिवर्तित करने की भी होड़ लगी है। इसके परिणामस्वरूप कंपनियों और अन्य बाजार सहभागियेां के अपनी भावी डॉलर देयताओं पर बड़ा अनारक्षित भंडार हो गया है। है। हालांकि रिज़र्व बैंक हाजिर और वायदा बाजारों में अपनी विदेशी मुद्रा प्रबंधन नीतियों के अनुसार परिचालन करना जारी रखेगा, गवर्नर महोदय ने कहा कि रिज़र्व बैंक रक्षा न किये गये उधारों में वृद्धि करने और डॉलर रुपया विनिमय दर की भावी गतिविधियों की अपेक्षाओं के कारण उभरी उधार डॉलर की मांग को पूरा करने के लिए बैंकों की अल्पावधि विदेशी मुद्रा देयताओं को बढ़ाने के पक्ष में नहीं है। बाजार की रिज़र्व बैंक संबंधी स्थिति के सट्टे को समाप्त करने के संबंध में गवर्नर महोदय ने स्पष्ट किया कि -

  • वर्तमान में दरअसल स्पॉट और वायदा बाज़ारों, दोनों में अमेरिकी डॉलर की बेशी सप्लाई है जो कंपनियों, बैंकों तथा अन्यों द्वारा सभी वास्तविक लेनदेनों तथा निवेश मांगों को पूरा कर सकती है। बाज़ार में विदेशी मुद्रा उपलब्धता में कोई कमी नहीं है।
  • विनिमय दर अथवा प्रीमियम की इकतरफा अपेक्षाओं को हमेशा पूरा करना संभव नहीं होता। मौजूदा अ-रक्षित (अनहेज्ॅड) एक्सपोज़र रुपये में अबाधित वृद्धि की अपेक्षाओं के कारण सामने आये प्रतीत होते हैं। अलबत्ता, विनिमय दरों के संबंध में गतिविधियां, जरूरी नहीं कि एक ही दिशा में हों। इसे 17 सितंबर 2002 और 11 मार्च 2003 के बीच अमेरिकी डॉलर की तुलना में यूरो की 0.9606 से 1.1086 के बीच, 11 मार्च से 21 मार्च 2003 के बीच 1.1087 से 1.0501 के बीच, 21 मार्च से 25 अप्रैल 2003 के बीच 1.0501 से 1.0997 के बीच उसकी गतिविधि से देखा जा सकता है। इसी तरह के उतार-चढ़ाव पौंड-स्टर्लिंग/अमेरिकी डॉलर के दरों में भी देखे जा सकते हैं।
  • इन्हीं कारणों से यह निहायत जरूरी हो जाता है, विशेष रूप से अपेक्षाकृत कम विकसित देशों के बाज़ारों के मामले में, कि कंपनियों तथा अन्यों के द्वारा विदेशी मुद्रा एक्सपोज़र अपेक्षित विदेशी मुद्रा अर्जनों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हेज या कवर किये जाते हैं। आपको याद होगा कि अतीत में कई उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं द्वारा महसूस की गयी समस्या का एक हिस्सा ऐसी अवधियों के दौरान देश में हेज न की गयी अत्यधिक विदेशी मुद्रा एक्सपोज़र के कारण हुआ है जब विनिमय दर में (स्थिर विनिमय दर नीति के कारण) कोई गतिविधि न होने कारण सामने आया है अथवा तब आया है जब मुद्रा ऊपर बढ़ रही थी।

निर्यात ऋण सुपुर्दगी प्रणाली ग्राहकोन्मुखी बनायी जायेगी

18. गवर्नर महोदय ने कहा कि 2002-03 के दौरान (दिसंबर 2002 तक) भारत के निर्यातों की निष्पादकता निरंतर वैश्विक मंदी के बावजूद उत्साहजनक रही है। गवर्नर महोदय ने आग्रह किया कि निर्यातों के अर्थव्यवस्था के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटक होने के नाते बैंकों को चाहिए कि वे ग्राहकोन्मुखी निर्यात ऋण सुपुर्दगी प्रणाली को जारी रखें। गवर्नर महोदय ने उल्लेख किया कि यदि मौजूदा संकेतकों को मानें तो भारत 2002-03 में लगातार दूसरी बार चालू खाता अधिशेष दर्शायेगा।

पूंजी आगमन उदार बनाना तथा क्रियाविधि/प्रलेखन सरल बनाना

19. गवर्नर महोदय ने रिज़र्व बैंक द्वारा सीमा पार पूंजी आगमनों की गतिविधि को और उदार बनाने की दृष्टि से विशेष रूप से बाह्य विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, आवक प्रत्यक्ष तथा पोर्टफोलियो निवेश, अनिवासी जमाराशियां तथा बाह्य वाणिज्यिक उधारों के क्षेत्र में और अधिक उदारीकरण की दृष्टि से चालू तथा पूंजी खातों में लिये गये महत्त्वपूर्ण उपायों के बारे में याद दिलाया। गवर्नर महोदय ने कहा कि अब स्थानीय संसाधनों/बाज़ार खरीदों से बिना किसी सीमा के स्वचालित रूट के अंतर्गत बाह्य वाणिज्यिक उधारों के पूर्व भुगतान की अनुमति दी गयी है। इस संदर्भ में गवर्नर महोदय ने कंपनियों के बड़े पैमाने पर अनरक्षित एक्सपोज़र की निगरानी की आवश्यकता पर बल दिया।

चलनिधि प्रबंध की चुनौतियां

20. गवर्नर महोदय ने कहा कि भारतीय रिज़र्व बैंक की देशी मुद्रा आस्तियों में तीव्र वृद्वि के कारण वर्ष के दौरान चलनिधि प्रबंध संबंधी कुछ चुनौतियां सामने आयींं। विदेशी मुद्रा के भारी अंतरप्रवाह को प्रभावशून्य बनाने के लिए पर्याप्त खुले बाजार परिचालन बिक्री का आश्रय लेना पड़ा। स्टरलाइज़ेशन के माध्यम से भारतीय रिज़र्व बैंक के हस्तक्षेप के बावजूद ब्याज दर मजबूत नहीं हो पायी, क्योंकि भारतीय रिज़र्व बैंक की चलनिधि समायोजन सुविधा के उचित परिचालन के माध्यम से प्रणाली में चलनिधि स्तर बनाये रखा जा सकता था।

21. भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंक दर, चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत रिपो दर में कमी की तथा सांविधिक चलनिधि अनुपात में कमी करके बैंकिंग तंत्र के ऋण प्रदान करने योग्य संसाधनों में वृद्वि की। चूंकि वर्ष की अधिकांश अवधि के दौरान मुद्रा स्फीति सामान्य बनी रही, सूखे तथा तेल की ऊंची कीमतों के बावजूद बाजार की ब्याज दर में सामान्य कमी बनी रही। यद्यपि इस समय इस वजह से किसी प्रकार की आत्म संतुष्टि नहीं होनी चाहिये, गवर्नर महोदय ने कहा कि तंत्र में पर्याप्त चलनिधि बनाये रखने तथा सुगम ब्याज दर परिवेश बनाये रखने का प्रस्ताव है। यदि मांग का दबाव बढ़ता है और मुद्रा स्फीति की स्थिति और बिगड़ती है, तो यह आशा की जानी चाहिये कि यदि ऐसा नहीं होगा तो मौजूदा मौद्रिक नीति की समीक्षा करना आवश्यक हो जायेगा।

सकल देशी उत्पाद तथा वर्ष 2003-04 के लिए मौद्रिक पूर्वानुमान

22. जहां तक सकल देशी उत्पाद के पूर्वानुमान का संबंध है, गवर्नर महोदय ने कहा कि वर्ष 2003-04 की समग्र वृद्धि दर औद्योगिक तथा सेवा क्षेत्र में स्थिर सुधार तथा कृषि क्षेत्र के उत्पादन में सुधार पर निर्भर करती है। यह मानकर कि मानसून संतोषजनक तथा सभी क्षेत्रों में बराबर बंटा रहेगा तथा यदि वर्षा दीर्घावधि औसत 96 प्रतिशत के आसपास रहे तो गवर्नर महोदय को उम्मीद है कि कृषि क्षेत्र के उत्पादन में सुधार आयेगा। इसे देखते हुए मौद्रिक नीति तैयार करने के लिए वर्ष 2003-04 में वास्तविक सकल देशी उत्पाद की वृद्धि दर 6.0 प्रतिशत निर्धारित की जा सकती है।

23. मुद्रा स्फीति के संबंध में बोलते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि वर्ष 2003 की अंतिम तिमाही के दौरान मुद्रा स्फीति में वृद्धि खाद्य तेल, खली, और खनिज तेल जैसे कुछ पण्यों के कारण रही है। गवर्नर महोदय ने संगत कारकों के वर्तमान मूल्यांकन के आधार पर संकेत दिया कि वर्ष 2003-04 में मुद्रा स्फीति की दर 5.0 से 5.5 प्रतिशत के बीच निर्धारित की जा सकती है। जबकि खाद्य तेलों की कीमतों में अंशत: सूखे के कारण तीव्र वृद्धि हुई, देशी खनिज तेल की कीमतों में अंतर्राष्टी्रय कीमतों में हुई वृद्धि के परिणामस्वरूप पर्याप्त वृद्धि हुई। इन मदों की कीमतों में वर्ष के दौरान कमी होने का अनुमान है। ऐसे उपाय किये जाने चाहिये कि जिन पण्यों की कीमतों में पिछले वर्ष असामान्य वृद्धि हुई है उनमें इस वर्ष कमी लाने में सहायता मिले। देश में समय पर किये गये उपायों से मुद्रास्फीति की अनुमानित दर में और कमी लाने में सुविधा होगी जो मौद्रिक तथा वित्तीय प्रबंध के लिए अत्यधिक वांछनीय है।

24. गवर्नर महोदय ने सकल देशी उत्पाद की वृद्धि तथा मुद्रा स्फीति की अनुमानित दर के अनुरूप वर्ष 2003-04 के लिए व्यापक मुद्रा (एम3) में 14.0 प्रतिशत विस्तार का अनुमान प्रस्तुत किया। सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों तथा निजी क्षेत्र के वाणिज्य पत्र, शेयरों/डिबेंचरों/ बांडों में निवेश के लिये समायोजित खाद्येतर बैंक ऋण में 15.5 से 16.0 वृद्धि अनुमानित है। इससे वर्ष 2003-04 के दौरान औद्योगिक कार्यकलापों की निरंतर वृद्धि सुनिश्चित करने में सुविधा होगी।

25. बैंकों तथा बाजार के अन्य सहभागियों के लिए नीतिगत महत्त्व का एक विषय यह है कि क्या पिछले 2-3 वर्षों के दौरान तीव्र गिरावट के पश्चात ब्याज दर स्थिर हो गयी है। जैसा कि सुविदित है, ब्याज दर संबंधी दृष्टिकोण बहुत कुछ, मुद्रा स्फीति, वृद्धि की संभावनाओं तथा निवेश की मांग पर निर्भर करता है तथा अन्य समग्र आर्थिक चरों में होनेवाले संभावित परिवर्तनों पर विचार किये बिना अल्पावधि के लिए ब्याज दर में निम्नवर्ती अथवा ऊर्ध्ववर्ती परिवर्तन का पूर्व अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। इन चरों पर अप्रत्याशित देशी अथवा विदेशी घटनाक्रम के कारण होने वाले अप्रत्याशित परिवर्तनों का भी प्रभाव पड़ता है।

26. गवर्नर महोदय ने कहा कि कतिपय संरचनागत सीमाओं को देखते हुए समष्टि आर्थिक परिवेश में सामान्य स्थिरता तथा सामान्य दशाओं को देखते हुए यह स्वाभाविक है कि वर्तमान सांकेतिक तथा वास्तविक ब्याज दर अपेक्षाकृत निम्न है और भारत में इनमें और अधिक कमी किये जाने की गुंजाइश नहीं है।

मौद्रिक नीति 2003-04 की अवस्थिति

27. मौद्रिक नीति की अवस्थिति की व्याख्या करते हुए गवर्नर महोदय ने बताया कि वर्तमान मूल्यांकन के अनुसार, अर्थ व्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में विपरीत तथा अप्रत्याशित घटनाओं को छोड़ कर वर्ष 2003-04 के लिए समग्र मौद्रिक नीति का लक्ष्य निम्नानुसार रहेगा:

  • कीमतों के स्तर में परिवर्तन पर निरंतर निगरानी रखते हुए अर्थ व्यवस्था में ऋण वृद्धि की जरूरतों को पूरा करने तथा निवेश की मांग को सहायता प्रदान करने के लिए पर्याप्त चलनिधि का प्रावधान।
  • उपर्युक्त के अनुरूप समष्टि आर्थिक स्थिरता के ढांचे में सुगम तथा लचीली ब्याज दर परिवेश की वर्तमान नीति जारी रखना।

मौद्रिक उपाय

(क) बैंक दर

  • आज (29 अप्रैल 2003) को कारोबार समाप्त होने के समय से बैंक दर 6.25 से 0.25 प्रतिशत घटाकर 6.0 प्रतिशत करने का प्रस्ताव है।
  • 28. बैंक दर में कमी किये जाने के संबंध में टिप्पणी करते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि पिछले पांच वर्षों के दौरान बैंक दर 11.0 प्रतिशत से घटाकर 6.0 प्रतिशत कर दी गयी है, अर्थात इसमें 500 आधार अंकों की कमी की गयी है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात की गयी यह सबसे बड़ी कमी है। गवर्नर महोदय ने कहा कि जब तक घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में कोई परिवर्तन नहीं होता, बैंक दर के संबंध में नीति यह रहेगी कि इसे अक्तूबर 2003 की मध्यावधि समीक्षा तक स्थिर रखा जाए।

    (ख) सांविधिक चलनिधि अनुपात

    29. बैंकों के सांविधिक चलनिधि अनुपात को सांविधिक न्यूनतम 3.0 प्रतिशत के स्तर पर लाने के मध्यावधि लक्ष्य की ओर बढ़ने के एक कदम के रूप में गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि :

    • 14 जून 2003 से प्रारंभ होने वाले पखवाड़े से सांविधिक चलनिधि अनुपात 4.75 प्रतिशत से और घटाकर 4.50 प्रतिशत कर दिया जाए।

    गवर्नर महोदय ने उल्लेख किया कि इस कमी के साथ पिछले तीन वर्षों के दौरान सांविधिक चलनिधि अनुपात में 4.0 प्रतिशत बिंदुओं की कमी हो जायेगी।

    (ग) पात्र सांविधिक चलनिधि अनुपात खाता शेष राशियों पर मासिक आधार पर ब्याज का भुगतान

    30. गवर्नर महोदय ने सूचित किया कि जैसा कि अक्तूबर 2002 की मध्यावधि समीक्षा में संकेत किया गया था, भारतीय रिज़र्व बैंक में बैंकाें द्वारा रखे गये पात्र सांविधिक चलनिधि अनुपात शेष राशियों पर अप्रैल 2003 से मासिक आधार पर ब्याज अदा किया जायेगा।

    (घ) निर्यात ऋण पुनर्वित्त सुविधा

    31. गवर्नर महोदय ने घोषणा की कि निर्यातक समुदाय से प्राप्त सुझाव के अनुसरण में वर्तमान अस्थिर भू-राजनैतिक परिवेश को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि :

    • लदानोत्तर ऋण के अंतर्गत 90 दिन से 180 दिन तक बकाया रहे पात्र निर्यात ऋणों को पुनर्वित्त प्रदान करने की सुविधा जारी रखी जाए।

    इस उपाय की समीक्षा पुन: अक्तूबर 2003 में की जायेगी।

    (ङ) बैक-स्टॉप सुविधा

    32. गवर्नर महोदय ने संकेत किया कि चलनिधि समायोजन सुविधा परिचालनों की प्रभावशीलता में वृद्धि करने के लिए ये वांछनीय है कि जिन दरों पर चलनिधि आत्मसात/क्षेपित की जाती है उनकी विभिन्न दरों को युक्तिसंगत बनाया जाए। तदनुसार, गवर्नर महोदय ने प्रस्तावित किया कि :

    • बैक-स्टॉप दर रिवर्स रिपो कट-ऑफ दर पर होगी जिस दर पर नियमित चलनिधि समायोजन सुविधा निलामियों के अंतर्गत उस दिन निधियां उपलब्ध करायी गयी थी।
    • जहां चलनिधि समायोजन सुविधा नीलामियों के अंग के रूप में कोई रिवर्स रिपो बोली स्वीकार न की गयी हो वहां ब्याज दर सामान्यत: उस दिन चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत रिपो कट-ऑफ दर के 2.0 प्रतिशत बिंदु अधिक होगी।
    • उन दिनों में, जब रिपो अथवा रिवर्स रिपो निलामियों के लिये कोई भी बोली प्राप्त न हो/स्वीकार न की गयी हो तो भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैक-स्टॉप ब्याज दर तदर्थ आधार पर निश्चित की जायेगी।

    गवर्नर महोदय ने कहा कि उपर्युक्त परिवर्तनों को देखते हुए यह अपेक्षा की जाती है कि अब बैक-स्टॉप ब्याज दर वर्तमान बैक-स्टॉप दर से 1.0 प्रतिशत बिंदु कम होगी। इससे इस सुविधा का उपयोग कर रहे बैंकों (तथा उधार लेने वालों) को लाभ होगा।

    ब्याज दर नीति

    (क) मूल उधार दर तथा दायरा

    33. बैंकों के ऋण उत्पादों के मूल्यन में अधिक पारदर्शिता लाने तथा यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कि मूल उधार दर वास्तविक लागत दर्शाती है, गवर्नर महोदय ने बैंकों को परामर्श दिया कि वे अपनी मूल उधार दर का निर्धारण करते समय आगे दिये गये सुझावों पर विचार करें:

    • बैंकों को अपनी बेंच-मार्क मूल उधार दर निर्धारित करते समय अपनी (i) निधियों की वास्तविक लागत; (ii) परिचालन लागत तथा (iii) प्रावधान/पूंजी प्रभार तथा लाभ मार्जिन संबंधी विनियामक अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए न्यूनतम मार्जिन को ध्यान में रखना चाहिये। बैंकों को अपने बोर्डों के अनुमोदन से बेंच मार्क मूल उधार दर घोषित करनी चाहिए।
    • जैसे कि पहले ही व्यवस्था है, बेंच-मार्क मूल उधार दर 2 लाख रुपये तक की ऋण सीमाओं के लिए अधिकतम दर बनी रहेगी।
    • क्योंकि अन्य सभी उधार दर आवधिक किस्त/जोखिम किस्त को ध्यान में रखते हुए बेंच-मार्क मूल उधार दर के अनुसार निर्धारित की जायेगी, टेनर-संबंद्ध मूल उधार दर की प्रणाली को समाप्त किया जाना उचित होगा। इन किस्तों को मूल उधार दर के कुछ तथा निम्न दायरों में फेक्टर किया जा सकता है। टेनर-संबंद्ध मूल उधार दर को समाप्त किये जाने के लिए प्रभावी तारीख के संबंध में बैंकों से आगे चर्चा की जायेगी तथा यथासमय अलग से निर्णय की घोषणा की जायेगी।

    34. गवर्नर महोदय ने यह भी परामर्श दिया कि ग्राहकों की सुरक्षा की दृष्टि से तथा ग्राहकों को लगाये गये वास्तविक ब्याज दरों के संबंध में अधिक पारदर्शिता लाने की दृष्टि से बैंकों से अपेक्षा है कि वे लगाये गये अधिकतम तथा न्यूनतम ब्याज दर तथा बेंच-मार्क मूल उधार दर के संबंध में जानकारी प्रदान करना जारी रखें। बैंकों द्वारा बेंच-मार्क मूल उधार दर का निर्धारण तथा बेंच-मार्क मूल उधार दर के वास्तविक दायरे की समीक्षा सितम्बर 2003 में की जायेगी।

    (ख) अनिवासी विदेशी (एनआरई) जमाराशियां

    35. सभी प्रकार की प्रत्यावर्तनीय जमाराशियों के परिपक्वता ढांचे में एकरूपता लाने की दृष्टि से, भले ही वे विदेशी मुद्रा में हो अथवा रुपयों में, गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि :

    • नई एनआरई जमाराशियों की परिपक्वता अवधि एफसीएनआर (बी) योजना के अनुरूप तत्काल प्रभाव से एक से तीन वर्ष होगी। यह उनकी वर्तमान परिपक्वता अवधि पूरी होने पर नवीकृत की जाने वाली एनआरई जमाराशियों पर भी लागू होगी।

    ऋण वितरण तंत्र

    (क) प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण

    1. ड्रिप सिंचाई/स्प्रिंक्लर सिंचाई प्रणाली/कृषि मशीनरी के लिए ऋण का उदार बनाया जाना
    2. 36. गवर्नर महोदय ने कहा कि ग्रामीण/अर्धशहरी क्षेत्रों में ड्रिप सिंचाई/स्प्रिंक्लर सिंचाई प्रणाली/कृषि मशीनरी के विक्रेताओं को प्रदान किये गये ऋणों पर कृषि के लिए प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के ऋणों के लिए वर्तमान सीमा 20 लाख रुपये थी। चूंकि यह योजना कृषक समुदाय के लिए लाभकारी है अत: गवर्नर महोदय ने इस योजना में आगे बताये गये और उदारीकरण का प्रस्ताव किया:

      • ड्रिप सिंचाई/स्प्रिंक्लर सिंचाई प्रणाली/कृषि मशीनरी के विक्रेता कृषि के लिए प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण के अंतर्गत ऐसे अग्रिमों के लिए पात्र होंगे भले ही वे कहीं भी स्थित हों।

      ii. आवास ऋण

      37. ग्रामीण तथा अर्धशहरी क्षेत्रों में आवास निर्माण की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए तथा इन क्षेत्रों में आवास निर्माण वित्त पोषण की स्थिति बेहतर बनाने की दृष्टि से गवर्नर महोदय ने प्रस्तावित किया कि:

      • बैंक, अपने बोर्डों के अनुमोदन से शहरी तथा अर्धशहरी क्षेत्रों में प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण के रूप में आवास निर्माण क्षेत्रों को 10 लाख रुपये तक के प्रत्यक्ष वित्त प्रदान करने के लिए स्वतंत्र होंगे।

      (ख) सूखे से प्रभावित किसानों को राहत

      38. गवर्नर महोदय ने कहा कि सूखे से प्रभावित राज्यों के किसानों की परेशानियों को दूर करने की दृष्टि से सरकार ने एक बारगी उपाय के रूप में इन राज्यों में खरीफ ऋणों पर पहले वर्ष की आस्थगित ब्याज देयताओं को पूरी तरह माफ करने का निर्णय लिया है। बैंकों द्वारा माफ किये जाने वाले आस्थगित ब्याज की किस्त की प्रतिपूर्ति सरकार द्वारा की जायेगी। आस्थगित ब्याज पर कोई ब्याज वसूल नहीं किया जायेगा और आस्थगित ब्याज की शेष राशि को यथोचित किस्तों में वसूल किया जायेगा।

      (ग) अवसंरचना वित्तीयन संबंधी ढील

      39. गवर्नर महोदय ने कहा कि इस क्षेत्र में ऋण प्रवाह बढ़ाने के प्रयोजनार्थ बैंकों को पहले ही विनियामक और विवेकपूर्ण पहलुओं संबंधी कतिपय ढील दी जा चुकी है। दी गई ढील में अवसंरचनात्मक उधार की परिभाषा का दायरा बढ़ाने, विवेकपूर्ण एकल उधारकर्ता प्रकटन सीमा में पूंजी निधि के 20 प्रतिशत तक छूट देना, अवसंरचना सुविधा से संबंधित सिक्यूरिटाइज्ड पेपर में निवेश पर 50 प्रतिशत रियायती जोखिम भार दिया जाना आदि शामिल हैं।

      (घ) माइक्रो वित्त

      40. एक अधिक सक्षम माइक्रो-वित्त सुपुर्दगी व्यवस्था उपलब्ध कराने की दृष्टि से गवर्नर महोदय ने कहा कि माइक्रो वित्तदाताओं के पूरे समुदाय के साथ भारतीय रिज़र्व बैंक का परस्पर संपर्क का दायरा काफी विस्तृत है। इन्हीं परस्पर संपर्कों के अनुसरण में (i) संरचना और सहनशक्ति (ii) वित्तीयन (iii) विनियम और (iv) माइक्रो वित्त डिलीवरी के लिए क्षमता निर्मित करने से संबंधित बातों को देखने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा चार अनौपचारिक दल बनाए गए।

      मुद्रा बाजार

      (क) विशुद्ध अंतर-बैंक मांग/नोटिस मुद्रा बाज़ार की ओर बढ़ना

      41. गवर्नर महोदय ने याद दिलाया कि अप्रैल 2001 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में गैर-बैंकिंग भागीदारों को चरणबद्ध ढंग से हटाकर विशुद्ध अंतर-बैंक मांग/नोटिस मुद्रा बाज़ार की ओर बढ़ने के इरादे को प्रमुखता दी गई थी। इसके बाद के उत्साहजनक परिणामों के मद्देनज़र गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि

      • 14 जून 2003 से प्रारम्भ पखवाड़े से विशुद्ध अंतर-बैंक मांग/नोटिस मुद्रा बाजार में गमन का द्वितीय चरण प्रभावी होगा जिसमें गैर-बैंक भागीदारों को अनुमति होगी कि वे उधार दे सकें। यह उधार वे वर्ष 2000-2001 के दौरान मांग/नोटिस मुद्रा बाज़ार में अपने औसत दैनिक उधार के 75 प्रतिशत तक किसी एक रिपोर्टिंग पखवाड़े में औसतन दे सकते हैं।

      42. तथापि गवर्नर महोदय ने उल्लेख किया कि यदि कोई विशेष गैर-बैंक संस्था आवश्यकता से अधिक चलनिधि के निवेश के लिए उचित वैकल्पिक अवसर जुटा पाने में कठिनाई महसूस करती हो तो भारतीय रिज़र्व बैंक मामला दर मामला बेशी राशि को किसी अवधि विशेष के लिए मांग/नोटिस मुद्रा बाज़ार में उधार दिये जाने की अस्थायी अनुमति प्रदान कर सकता है।

      (ख) मांग/नोटिस मुद्रा बाज़ार लेन-देनों को एनडीएस प्लेटफार्म पर सूचित करना

      43. गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि

      • 3 मई 2003 से प्रारम्भ पखवाड़े से सभी एनडीएस सदस्यों (निगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम) के लिए अधिदेश है कि वे मांग/नोटिस मुद्रा बाज़ार संबंधी अपने सभी सौदे एनडीएस पर सूचित करें। एनडीएस के बगैर किया गया कोई भी सौदा पंद्रह मिनट के भीतर, सौदा कितना बड़ा है अथवा दूसरा पक्ष एनडीएस का सदस्य है या नहीं, इस बात को ध्यान में न रखते हुए, एनडीएस पर सूचित किया जाना चाहिए।
      • एनडीएस की रिपोर्टिंग अपेक्षाओं के संपूर्ण अनुपालन की संवीक्षा सितंबर 2003 में की जायेगी। यदि कोई एनडीएस सदस्य सौदों को बार-बार सूचित नहीं करता तो इसे माना जाएगा कि सदस्य विशेष द्वारा सूचित न किये गये सौदे भविष्य में किसी तारीख विशेष से अमान्य होंगे।

      (ग) नया ओटीसी रुपया डेरिवेटिव चलन में लाना

      44. रुपया डेरिवेटिव और गठित कार्यदल की सिफारिशों के आधार पर गवर्नर ने प्रस्ताव किया कि प्रारंभ में

      • प्रथम चरण में कम जटिल ओवर दि काउंटर (ओटीसी) ब्याज दर रुपया विकल्प की अनुमति दी जानी चाहिए जिसमें नियत आय वाले लिखतों/बैंच मार्क रेट पर वेनीला कैप्स, फलोर्स एंड कोलार्स, यूरोपियन स्वैप्सन्स, कॉल एंड पुट ऑप्शन्स और ओवरनाइट इंडेक्स्ड स्वैप्स (ओआइएस) पर आधारित अनलिवरेज्ड स्ट्रक्चर स्वैप्स तथा फॉरवड़ रेट एग्रीमेंट्स (एफआरए) सम्मिलित हैं। अनलिवरेज्ड स्ट्रक्चर स्वैप्स में जोखिम प्रोफाइल की रचना भवन खंडों जैसी है।
      • अनुसूचित वाणिज्य बैंकों, वित्तीय संस्थाओं और प्राधिकृत व्यापारियों को आप्शन्स के क्रय और विक्रय, दोनों ही की अनुमति दी जानी चाहिए; कंपनियाँ प्रारंभ में आप्शन्स का विक्रय कर सकती हैं बशर्ते वे प्रीमियम की विशुद्ध प्राप्तकर्ता न हाें।

      45. उपर्युक्त प्रस्तावों को परिचालित करने के संबंध में प्रस्तुत दिशानिर्देश बाज़ार भागीदारों के परामर्श से जारी किये जायेंगे।

      (घ) वाणिज्य पत्र (कमर्शियल पेपर)

      46. निर्गमकर्ताओं और निवेशकों, दोनों को ही और लचीला बनाने की दृष्टि से गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि

      • कंपनियों सहित गैर-बैंक निकाय वाणिज्य पत्रों के निर्गम के लिए ऋण बढ़ाने हेतु बिना शर्त और अटल गारंटी तब तक प्रदान करें जब तक (i) निर्गमकर्ता सीपी के निर्गम के लिए विनिर्दिष्ट पात्र मानदंड पूरी करता हो, (ii) गारंटीकर्ता की क्रेडिट रेटिंग किसी अनुमोदित क्रेडिट रेटिंग एजेंसी द्वारा निर्गमकर्ता की क्रेडिट रेटिंग की तुलना में कम से कम एक नॉच ऊपर आंकी गयी हो (iii) सीपी से संबंधित ऑफर दस्तावेज़ जिसमें गारंटीकर्ता कंपनी के विशुद्ध मूल्य, उन कंपनियों के नाम जिन्हें गारंटीकर्ता ने ऐसी ही गारंटियां दी हैं, गारंटीकर्ता कंपनी द्वारा ऑफर की गयी गारंटियों की सीमा तथा वे शर्तें जिनके तहत गारंटी लागू की जा सकती है, बातों को उचित रूप से दर्शाया गया हो ।
      • बैंकों को अनुमति है कि वे गैर-बैंक निकायों द्वारा गारंटीकृत सीपी में निवेश करें बशर्ते उनका प्रकटन (एक्सपोज़र) विनियामक सीमा के अंतर्गत उतना ही हो जितना अरक्षित प्रकटनों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनिर्दिष्ट किया गया है।

      गवर्नर महोदय ने संकेत किया कि इससे संबंधित कार्यविधियों और दस्तावेज़ीकरण के बारे में विस्तृत दिशा निदेश एफआइएमएमडीए द्वारा जारी किये जायेंगे।

      विदेशी मुद्रा बाज़ार

      (क) म्यूच्युअल फंडों द्वारा ओवरसीज़ निवेश किया जाना - सामान्य अनुमति

      1. वर्तमान में म्यूच्युअल फंडों को सेबी तथा भारतीय रिजर्व बैंक की अनुमति से भारतीय कंपनियों के एडीआर/जीडीआर तथा रेटेड विदेशी ऋण लिखतों/ईक्विटी में 1.0 अमेरिकी बिलियन डॉलर की अधिकतम सीमा के अंतर्गत निवेश करने की अनुमति है। इस कार्यविधि को सुगम बनाने और निवेश प्रस्तावों पर की जानेवाली कार्रवाई को शीघ्र पूरा करने की दृष्टि से गवर्नर ने प्रस्ताव किया कि
        • अधिकतम सीमा के अंतर्गत म्यूच्युअल फंडों को उनके ओवरसीज़ निवेशों के लिए सामान्य अनुमति प्रदान करने के लिए सेबी से एक बार की अनुमति ली जाती है। यह सामान्य अनुमति अगले नोटिस तक उपलब्ध रहेगी।

        (ख) भारतीय कंपनियों/व्यक्तियों द्वारा रेटेड बांडों/नियत आय वाली प्रतिभूतियों में निवेश

        48. वर्तमान में भारतीय कंपनियों और निवासी व्यक्तियों को कतिपय शर्तों के अधीन विदेश स्थित लिस्टेड कंपनियों के शेयरों में निवेश करने की अनुमति है। गवर्नर महोदय ने यह सुविधा ऋण लिखतों के लिए भी दिये जाने का प्रस्ताव किया। तदनुसार:

        • भारतीय कंपनियों और निवासी व्यक्तियों को भी कतिपय शर्तों के अधीन विदेश स्थित लिस्टेड पात्र कंपनियों के रेटेड बांडों/नियत आयवाली प्रतिभूतियों में निवेश करने की अनुमति होगी।

        (ग) विदेशी प्रत्यक्ष निवेशों के तहत आवक के लिए फॉरवड़ कवर

        49. बैंकों को उनके ओवरसीज़ निवेशकों के विदेशी प्रत्यक्ष निवेशों को रक्षा कवच के रूप में फॉरवड़ कॉन्ट्रॅक्ट प्रदान करने के लिए भारत में किये गये निवेश की सीमा तव सामान्य अनुमति दी गयी है। तथापि, ऐसे विदेशी प्रत्यक्ष निवेशों के आवकों को आगे बैंकों को बेचने की अनुमति नहीं दी जाती है। विदेशी निवेशकों को अधिक लचीलापन देने तथा विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को बढ़ावा देने की दृष्टि से गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि :

        • भारत में दीर्घावधि निवेश करनेवाले ओवरसीज़ निवेशकों को उनके विदेशी मुद्रा निवेश हेतु रक्षा कवच के रूप में, भारत में निवेश रहने तक, भारत में बैंकों के साथ फॉरवड़ बिक्री करार करने की अनुमति देना।

        (घ) विदेशी मुद्रा निवेशों, जहां निपटान रुपयों में किया जाता है, के लिए फॉरवड़ कवर

        50. वर्तमान में निवासी निकायों को विदेशी मुद्रा में मूल्यवर्गित, परंतु जिनका निपटान रुपये में किया गया है, लेनदेनों के मामले में फॉरवड़ कवर बुक करने की अनुमति नहीं दी जाती है। गवर्नर महोदय ने ऐसे निकायों के निवेशों के प्रति विनिमय दर जोखिम को ध्यान में रखते हुए प्रस्ताव किया कि

        • विदेशी मुद्रा में मूल्यवर्गित, परंतु जिनका निपटान रुपये में किया गया है, लेनदेन करनेवाले निकायों को फॉरवड़ कॉन्ट्रक्ट करने की अनुमति दी जाये। ऐसे कॉन्ट्रॅक्ट्स परिपक्वता होने तक रखे जायें और नकद राशि का निपटान परिपक्वता की तारीख को किया जायेगा।

        (ङ) एफसीएनआर जमा के लिए क्रॉस करेन्सी फॉरवड़ कवर

        51. वर्तमान में अनिवासी भारतीय और ओवरसीज़ कंपनी निकाय (ओसीबी) एफसीएनआर (बी) अथवा एनआरई के खातों में धारित शेष राशियों के रक्षा कवच के रूप में उपलब्ध करेन्सियों में से रुपया करेन्सी में फॉरवड़ कॉन्ट्रॅक्ट कर सकते हैं। तथापि ऐसे जमा के लिए क्रॉस करेन्सी कवर की अनुमति नहीं है। अनिवासी भारतीयों तथा ओवरसीज़ कंपनी निकायों द्वारा रक्षा कवच को बेहतर बनाने की दृष्टि से गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि:

        • अनिवासी भारतीयों/ओवरसीज़ कंपनी निकायों को उनके एफसीएनआर (बी) में धारित शेष राशि के रक्षा कवच के रूप में क्रॉस करेन्सी फॉरवड़ कॉन्ट्रॅक्ट की अनुमति दी जाये। तथापि, एक बार रद्द किये जा चुके कॉन्ट्रॅक्ट को पुन: बुक नहीं किया जा सकता है।

        (च) विदेशी मुद्रा समाशोधन

        52. गवर्नर महोदय ने सूचित किया कि स्पॉट और फॉरवड़ डॉलर-रुपया लेनदेनों के लिए समाशोधन और निपटान हेतु जीवंत परिचालनों का प्रारंभ सीसीआइएल द्वारा 12 नवंबर 2002 से किया जा चुका है। भारत में डॉलर-रुपया लेनदेनों के समाशोधन और निपटान की इस नयी सुविधा से लागत में बहुत कमी आयेगी तथा बैंकों को समय का पूरा लाभ मिलेगा।

        सरकारी प्रतिभूति बाज़ार

        53. सरकारी प्रतिभूति बाज़ार विधियों की समीक्षा करते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि हाल ही में रिज़र्व बैंक ने सरकारी प्रतिभूति बाज़ार को विकसित करने तथा उसे समृद्ध बनाने में कई उपाय किये हैं। इसके अलावा, ऑन-लाइन ट्रेडिंग निपटान को मूर्त रूप देने तथा निकटतम रीयल टाइम आधार पर ट्रेड सूचनाओं के प्रसार के लिए एनडीएस को परिचालित किया गया है। प्राथमिक डीलरों के लिए कतिपय न्यूनतम प्रकटन मानदंड विनिर्दिष्ट करते हुए तथा सीएसजीएल/गिल्ट खाता धारकों को भी रिपो पात्रता प्रदान करते हुए प्राथमिक डीलरों के पर्यवेक्षण को मजबूत किया गया है।

        शहरी सहकारी बैंक
        अन्य शहरी सहकारी बैंकों में रखे स्वर्ण ऋणों,
        जमाराशियों के संबंध में ढील तथा आरक्षित अग्रिमों के आकार

        54. सरकार द्वारा बनायी गयी समिति (अध्यक्ष माननीय श्री अनंत गीते) की सिफारिशों के अनुसरण में भारत सरकार के परामर्श से निम्नांकित उपाय प्रस्तावित किये जाते हैं :

        (क) ऋण असंगतता की पहचान के लिए नब्बे दिवसीय मानदंड - छूट

        • ऋण असंगतता की पहचान के लिए विनिर्दिष्ट नब्बे दिनों के मानदंड से स्वर्ण ऋणों और लघु ऋणों, दोनों के लिए एक लाख रुपये तक की छूट। एनपीए के रूप में वर्गीकृत किये जाने के लिए इन ऋणों पर 180 दिवसीय मानदंड लागू रहेंगे।
        • (ख) अन्य अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों में जमाराशियां रखने देने की सुविधा

          शहरी सहकारी बैंकों को उनकी जमाराशियां कतिपय शर्तों के अधीन मज़बूत अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों (कमजोर अथवा बीमार रूप में वर्गीकृत बैंकों से इतर) के पास रखने की अनुमति दिया जाना। इस संबंध में निश्चित दिशानिर्देश अलग से जारी किये जा रहे हैं।

          (ग) अरक्षित अग्रिमों के लिए उच्चतम सीमा को बढ़ाना

          55. और अधिक लचीलापन दिया जाने की दृष्टि से प्रस्ताव किया जाता है कि अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों द्वारा अरक्षित अग्रिमों की उच्चतम सीमा संशोधित करके रुपये 2 लाख कर दी जाये। इस प्रकार का ऊर्ध्वगामी संशोधन गैर अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों के अरक्षित अग्रिमों, उनकी मात्रा को देखते हुए, की उच्चतम सीमा के लिए भी किया गया है। तथापि बढ़ायी गयी उच्चतम सीमा निर्बल/बीमार शहरी सहकारी बैंकों पर लागू नहीं होगी।

          (घ) निरीक्षण रिपोर्टों का समय से अनुपालन

          56. संयुक्त संसदीय समिति, जिसने शेयर बाज़ार घोटाले तथा उससे जुड़ी बातों की जांच की है, ने सिफारिश की है कि :

          "भारतीय रिज़र्व बैंक ऐसी प्रणाली लागू करे जिसके द्वारा वार्षिक निरीक्षण रिपोर्टों में दर्शायी गयी अनियमितताओं को सभी बैंक दूर करते हैं तथा इन बैंकों द्वारा निरीक्षण की तारीख से छह महीनों की अवधि के भीतर अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है।"

          • संयुक्त संसदीय समिति की उपर्युक्त सिफारिशों का अनुसरण करते हुए यह निर्णय किया गया है कि शहरी सहकारी बैंकों को निरीक्षण रिपोर्ट में दर्शायी गयी अनियमितताओं को हर प्रकार से दूर करने के लिए निरीक्षण रिपोर्ट की तारीख से अधिकतम छह माह की अवधि दी जायेगी, असफल रहने पर भारतीय रिज़र्व बैंक दांडिक प्रावधानों को लागू करेगा।

          (ङ) अधिदेशात्मक सहवर्ती लेखा परीक्षा

          57. संयुक्त संसदीय समिति आगे सिफारिश करती है कि

          "यद्यपि भारतीय रिज़र्व बैंक के लिए प्रत्येक लेनदेन पर नज़र रखना संभव नहीं है परंतु फिर भी शीर्षस्थ निकाय होने के नाते यह आवश्यक है कि नियमित आधार पर बैंकों में सहवर्ती लेखा परीक्षा की जाती है। भारतीय रिज़र्व बैंक इसे अधिदेशात्मक बनाने पर विचार करे।

          (च) शहरी सहकारी बैंकों द्वारा अपने निदेशकों को ऋण तथा अग्रिम

          58. गवर्नर महोदय ने कहा कि शहरी सहकारी बैंकों द्वारा अपने निदेशकों को ऋण अथवा अग्रिम अथवा अन्य वित्तीय सुविधाओं के संबंध में संयुक्त संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि:

          "समिति द्वारा जांच किये गये कुछेक सहकारी बैंकों के मामले में सामने आयी अनियमितताओं के प्रकार को रोकने के लिए, वे यह राय रखते हैं कि निदेशकों तथा उनके संबंधितों को अथवा ऐसी कंपनियों को जिनमें उनका हित है, ऋण तथा अग्रिम मंजूर करने पर पूरी तरह रोक लगाये जाने की ज़रूरत है। यह सुनिश्चित किये जाने के लिए यथोचित विधिक क्रियाविधियां शुरू की जाएं कि निदेशकों तथा उनके संबंधितों तथा उन कंपनियों को जिनमें उनका हित है, ऋण तथा अग्रिम मंजूर करने में हितों का कोई टकराव न हो"।

          • संयुक्त संसदीय समिति की उपर्युक्त सिफारिश के अनुरूप, शहरी सहकारी बैंक तत्काल प्रभाव से निर्देशकों, उनके संबंधियों तथा ऐसी फर्मों/संस्थानों/कंपनियों को, जिनमें उनके हित हों, ऋण तथा अग्रिम (जमानत वाले तथा बिना जमानत वाले, दोनों) मंजूर न करें।

          अलबत्ता, गवर्नर महोदय ने स्पष्ट किया कि 29 अप्रैल 2003 से दिये गये मौजूदा अग्रिम, उनके देय होने की तारीख तक जारी रहने की अनुमति दी जाए। इनके अग्रिमों को न तो नवीकृत किया जाए और न ही उन्हें आगे बढ़ाया जाए।

          पर्यवेक्षण तथा निगरानी

          59. अक्तूबर 2002 की मध्यावधि समीक्षा में की गयी कुछेक घोषणाओं के संबंध में हुई इस प्रगति की समीक्षा इस प्रकार है:

          (क) जोखिम आधारित पर्यवेक्षण

          60. गवर्नर महोदय ने कहा कि 2003 के दौरान बैंकों के जोखिम आधारित पर्यवेक्षण की तरफ मुड़ने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा कुछेक प्रबंधन प्रक्रियाएं शुरू की गयीं थीं। यह प्रस्ताव है कि कुछेक चुनिंदा बैंकों का प्रायोगिक आधार पर जोखिम आधारित पर्यवेक्षण अप्रैल-जून 2003 के दौरान शुरू किया जाए। प्राप्त अनुभव के आधार पर जोखिम आधारित पर्यवेक्षण चरणबद्ध रूप में सभी बैंकों पर लागू किया जाए।

          (ख) त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई

          61. गवर्नर महोदय ने कहा कि चुनिंदा कमज़ोर बैंकों पर त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई ढांचे के असर का अध्ययन करने के लिए एक आंतरिक दल गठित किया गया था। त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई की योजनाओं को शुरूआत के तौर पर एक वर्ष की अवधि के लिए शुरू किया गया है और दिसंबर 2003 में इसकी समीक्षा की जाएगी। बैंकों को सूचित किया गया है कि वे अपने बोर्डों के समक्ष इस योजना को रखें और अग्रिम रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाये कि जहां तक हो सके वे त्वरित सुधारात्मक ढांचे के दायरे के भीतर नहीं आते हैं।

          (ग) समेकित लेखाकरण तथा पर्यवेक्षण

          62. गवर्नर महोदय ने कहा कि समेकित लेखाकरण तथा पर्यवेक्षण पर अंतिम दिशानिर्देश जारी कर दिये गये हैं तथा बैंकों को यह सुनिश्चित करने के लिए सूचित किया गया था कि वे 31 मार्च 2003 को समाप्त होने वाले वर्ष से शुरू करते हुए इनका कड़ाई से अनुपालन करें। दिशानिर्देशों की, उन्हें लागू किये जाने की तारीख से एक वर्ष के बाद समीक्षा की जाएगी।

          (घ) मैक्रो विवेकशील संकेतक

          63. गवर्नर महोदय ने सूचित किया कि मैक्रो विवेकशील संकेतकों की खास-खास बातें बढ़ायी गयीं थीं और मार्च 2002 में उनकी समीक्षा भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति तथा प्रगति पर रिपोर्ट 2001-02 में प्रकाशित की गयी थी।

          (ङ) अन्य पर्यवेक्षी प्रयास

          64. गवर्नर महोदय ने नीचे बताये गये अनुसार अन्य पर्यवेक्षी प्रयासों को रेखांकित किया-

            1. रिज़र्व बैंक ने दिसंबर 2002 में बैंकों को जोखिम आधारित आंतरिक लेखा-परीक्षा प्रणाली पर दिशानिर्देश टिप्पणी जारी की थी। बैंकों को सूचित किया गया है कि वे चरणबद्ध रूप में प्रणाली की ओर मुड़ने के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए इसे अपने बोड़ के सामने प्रस्तुत करें।
            2. बैंकों को अनुत्पादक आस्तियों के अवमानक से संदेहास्पद/हानि श्रेणी में सरकने से रोकने के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किये गये थे और उन्हें अन्य बातों के साथ साथ यह सुझाव दिया गया था कि बैंक मानक तथा अवमानक खातों के बीच अपने स्वयं की आंतरिक निगरानी तथा अनुवर्ती कार्रवाई के लिए एक विशेष उल्लेख खातों की नयी आस्ति श्रेणी की शुरूआत कर सकते हैं।
            3. कंप्यूटर लेखा-परीक्षा पर समिति द्वारा की गयी सिफारिश के अनुसार कंप्यूटर लेखा-परीक्षा करने के लिए एक व्यापक जांच सूची बैंकों तथा वित्त संस्थाओं को भेजी गयी थी। इसके अलावा, रिज़र्व बैंक में एक सूचना प्रणाली लेखा-परीक्षा कक्ष गठित किया गया है जो शुरूआत के ही स्तर पर प्रारंभिक सुधारात्मक कार्रवाई, यदि कोई हो, करने के लिए वार्षिक वित्तीय निरीक्षण रिपोर्टों की छानबीन करेगा। कक्ष को अद्यतन गतिविधियों के साथ चेक-लिस्ट को अद्यतन बनाने, कंप्यूटर तथा संचार प्रणालियों में जोखिमों तथा नियंत्रणों पर बैंकों के लिए दिशानिर्देश टिप्पणी को संशोधित करने और कंप्यूटरीकृत परिवेश में बैंकों के पर्यवेक्षण के लिए मैन्युअल को निरंतर आधार पर अद्यतन बनाने का काम भी सौंपा गया है।

          विवेकशील मानदंड

          (क) निवेश उतार-चढ़ाव प्रारक्षित निधि

          65. बैंकों द्वारा दिये गये सुझाव के अनुसार तथा निवेश उतार-चढ़ाव प्रारक्षित निधि के सृजन में और अधिक छूट देने के लिए गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि :

          • हालांकि निवेश उतार-चढ़ाव प्रारक्षित निधि को टियर-II पूंजी के रूप में माना जाता रहेगा, इसे कुल जोखिम आधारित आस्तियों के 1.25 प्रतिशत की अधिकतम सीमा के अधीन नहीं लिया जायेगा। अलबत्ता, पूंजी पर्याप्तता मानदंडों के अनुपालन के प्रयोजन के लिए निवेश उतार-चढ़ाव प्रारक्षित निधि सहित टियर-II पूंजी को टियर-I पूंजी के अधिकतम 100.00 प्रतिशत तक माना जाएगा।

          (ख) शाखा लाइसेंसिंग

          66. पूरे देश में और अधिक कुशल बैंकिंग सेवाओं को प्रोत्साहित करने के प्रयोजन से गवर्नर महोदय ने प्रस्ताव किया कि :

          • रिज़र्व बैंक किसी वाणिज्यिक बैंक से दूसरे बैंक में ग्रामीण तथा अर्ध-शहरी केंद्रों में शाखाओं के आपसी सहमति द्वारा हस्तांतरण के लिए किसी भी प्रस्ताव पर अनुकूल रूप से विचार करेगा। बैंकों से यह सुनिश्चित करने की अपेक्षा की जाएगी कि इस तरह से आपस में सहमति से होनेवाले हस्तांतरण उस क्षेत्र में उपलब्ध बैंकिंग सेवाओं पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालते हैं।

          (ग) ऐसी अनुत्पादक आस्तियों के संबंध में प्रावधानीकरण जो सेक्युरीयटेज़ेशन/आस्ति पुनर्निर्माण कंपनियों को बेची जायेंगी

          67. गवर्नर महोदय ने इस बात का उल्लेख किया कि सिक्युरीटायजेॅशन एंड रिकन्स्ट्रक्शन ऑफ फिनान्शियल एसेट्स एंड इन्फोर्समेंट ऑफ सिक्युरिटी इंटरेस्ट एक्ट, 2002 अधिनियम के अंतर्गत सृजित सिक्युरीटायज़ेशन/रिकन्स्ट्रक्शन कंपनी को यह अनुमति देता है कि वह बैंकों से अनुत्पादक आस्तियां खरीद सकती हैं। सिक्युरीटायज़ेशन/रिकन्स्ट्रक्शन कंपनियां अनुत्पादक आस्तियों की खरीद कर सकें, इस प्रयोजन के लिए बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं को दिशानिर्देश जारी किये गये हैं। गवर्नर महोदय ने बैंकों को सूचित किया कि वे न्यूनतम विनियामक अपेक्षाओं से काफी ऊपर प्रावधान रखें ताकि वे अपने अनुत्पादक आस्तियों विशेष रूप से ऐसी आस्तियों के लिए, जो वे सिक्युरीटायज़ेशन कंपनियों/रिकन्स्ट्रक्शन कंपनियों को बेचने का प्रस्ताव रखती हैं, व्यवस्था कर सकें।

          प्रौद्योगिकीय अपग्रेडेशन

          68. गवर्नर महोदय ने कहा कि रिज़र्व बैंक ने वित्तीय प्रणाली में प्रौद्योगिकीय आधारभूत ढांचे में अपग्रेडेशन को प्राथमिकता के स्तर पर रखा है। इस दिशा में एक पेमेंट सिस्टम विज़न डॉक्युमेंट तैयार किया गया था जिसमें विज़न को प्राप्त करने के लिए अपेक्षित सुधारों की प्रकृति तथा दिशा को शामिल किया गया था। तब से वित्तीय सेवा क्षेत्र के लिए एक आधुनिक, सक्षम, समेकित तथा सुरक्षित भुगतान तथा समायोजन प्रणाली विकसित करने की दिशा में काफी प्रगति हो चुकी है।

          मुद्रा प्रबंध प्रणाली में गतिविधियां

          69. गवर्नर महोदय ने कहा कि पिछले वर्षों के दौरान मुद्रा की मात्रा में वृद्धि काफी बढ़ी है और इससे नोटों की आपूर्ति, नोटों की गुणवत्ता तथा परिचलन से नोटों को हटाने के क्षेत्रों में रिज़र्व बैंक के मुद्रा प्रबंध कार्य के संबंध में गंभीर समस्याएं उठ खड़ी हुई हैं। ग्राहक सेवा के एक हिस्से के रूप में बैंकों को सूचित किया गया है कि वे नोट बदलने की सुविधा देने तथा सिक्कों के वितरण के लिए रविवारों को अपनी कुछेक करेंसी शाखाएं खुली रखें। रिज़र्व बैंक वेबसाइट पर एक करेंसी लिंक बनाया गया था जिसके अंतर्गत भारतीय मुद्रा तथा सिक्के, महात्मा गांधी द्राृंखला में इस समय चल रहे बैंक नोटों के इमेजेस तथा सुरक्षा लक्षणों से संबंधित विभिन्न पहलुओं, बार-बार पूछे जानेवाले प्रश्नों तथा मुद्रा संबंधी मामलों पर प्रेस प्रकाशनियों को शामिल किया गया है। गवर्नर महोदय ने बैंकों को सूचित किया कि वे जनता की सुविधा के लिए मुद्रा प्रबंध के क्षेत्र में और साथ ही साथ अच्छी क्वालिटी के नोटों के प्रावधान के लिए भी प्रयासों का व्यापक प्रचार करें।

          विधिक सुधार

          70. गवर्नर महोदय ने उल्लेख किया कि हाल ही में वित्तीय बाज़ारों में परिवर्तनों तथा सूचना तथा प्रौद्योगिकी में विकास ने विधिक ढांचे में परिवर्तनों को आवश्यक बना दिया है। तदनुसार, विधिक प्रणाली उभरते हुए परिदृश्य का और अधिक कुशलता से सामना कर सकें इसके लिए सरकार को कई प्रस्ताव भेजे गये हैं।

          मध्यावधि समीक्षा

          71. गवर्नर महोदय ने अपना व्याख्यान इस संदेश के साथ समाप्त किया कि चालू वर्ष की पहली छमाही में मौद्रिक तथा ऋण गतिविधियों की समीक्षा अक्तूबर 2003 में की जायेगी।

          सूरज प्रकाश
          प्रबंधक

          प्रेस प्रकाशनी : 2002-2003/1104

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