"आज सुबह प्रमुख बैंकों के प्रधानों के साथ मेरी बैठक हुईं जहाँ हमने वर्ष 2009-10 के लिए रिज़र्व बैंक की वार्षिक नीति की घोषणा की। इस बैठक ने रिज़र्व बैंक और वाणिज्यिक बैंकों को एक दूसरे की संभावनाओं को समझने और मूल्यांकन करने का एक मूल्यवान अवसर भी उपलब्ध कराया। वर्ष 2009-10 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य गहरी वैश्विक आर्थिक मंदी और वित्तीय बाज़ार अस्थिरता के संदर्भ में निर्धारित किया गया है। विश्वभर की सरकारों और केंद्रीय बैंकों ने पारंपरिक और गैर-पारंपरिक राजकोषीय और मौद्रिक दोनों उपायों के माध्यम से इस संकट के प्रति कार्रवाई की है और वैश्विक स्तर पर अप्रत्याशित समेकित नीति कार्रवाई भी हुई है। संकट और भारत उभरती हुई सभी अर्थव्यवस्थाओं की तरह भारत भी इस संकट से प्रभावित हुआ है और यह प्रभाव उससे अधिक है जितनी कि पूर्व में आशा की गई थी। सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि में न्यूनतर औद्योगिक उत्पादन, नकारात्मक निर्यात, सेवा गतिविधियों में गिरावट, घटी हुई कंपनी मार्जिन और घटते हुए कारोबारी विश्वास को दर्शाते हुए कमी हुई है। अच्छी प्रकार से कार्य करनेवाले वित्तीय बाज़ार, मज़बूत ग्रामीण माँग, न्यूनतर हेडलाइन मुद्रास्फीति और सहज विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधियाँ जैसे कुछ सुखद कारक हैं जिन्होंने संकट के इस सबसे खराब प्रभाव से हमारी रक्षा की है। सरकार के राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज तथा मौद्रिक सहजता और रिज़र्व बैंक की विनियामक कार्रवाई ने वृद्धि में कमी को रोकने तथा हमारे वित्तीय बाज़ारों को सामान्य ढंग से कार्य करते रहने में सहायता की है। मौद्रिक नीति कार्रवाई समष्टि आर्थिक और मौद्रिक स्थितियों के वर्तमान आकलन के अनुरूप रिज़र्व बैंक ने निर्णय लिया है कि :
- चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत रिपो दर में 25 आधार बिन्दुओं तक कमी करते हुए तत्काल प्रभाव से इसे 5.0 प्रतिशत से 4.75 प्रतिशत किया जाए।
- चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो दर में 25 आधार बिन्दुओं तक कमी करते हुए तत्काल प्रभाव से इसे 3.5 प्रतिशत से 3.25 प्रतिशत किया जाए।
- आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को निवल माँग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के 5.0 प्रतिशत तक रखते हुए इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया जाए।
रिज़र्व बैंक का नीति दबाव सितंबर 2008 के मध्य से ही रिज़र्व बैंक की नीति रूझान के दबाव का लक्ष्य पर्याप्त रुपया चलनिधि उपलब्ध कराना, सहज डॉलर चलनिधि सुनिश्चित करना तथा उत्पादक क्षेत्रों को निरंतर ऋण प्रवाह बनाए रखना है। कुल मिलाकर रिज़र्व बैंक के नीति उपायों ने यह सुनिश्चित किया है कि भारतीय वित्तीय बाज़ार एक व्यवस्थित तरीके से कार्य करना जारी रखें। इन उपायों ने वित्तीय प्रणालियों में वास्तविक/संभावित चलनिधि को 4,20,000 करोड़ रुपए से अधिक तक बढ़ा दिया है। इससे वित्तीय बाज़ार आश्वस्त होंगे कि रिज़र्व बैंक सहज चलनिधि बनाए रखना जारी रखेगा। ब्याज दर के बारे में बैंकों की प्रतिक्रिया बैंकों ने जमा और उधार दरों को और कम करने के बारे में अनुभव की जा रही बाधाओं से हमें अवगत कराया है। उन पर नीति वक्तव्य में चर्चा की गई है। बैंकों की कुछ आशंकाएं वैध हैं और कुछ वैध नहीं हैं। रिज़र्व बैंक द्वारा पहले से ही नीतिगत दर समायोजन के बारे में किए गए समायोजन के अंतर्गत बैंकों के लिए उधार दर को और कम करने की गुंजाइश है ताकि सभी उत्पादक आर्थिक कार्यकलापों के लिए ऋण की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। हम आशा करते हैं और यह अपेक्षा करते हैं कि बैंक अपने ग्राहकों को कम ब्याज दर लाभ पहुँचाते हुए आर्थिक समायोजन की प्रक्रिया में अपनी भूमिका अदा करेंगे। सरकारी उधार वर्ष 2008-09 में सरकारी उधार में काफी वृद्धि हुई है जैसाकि आप नीति वक्तव्य में आँकड़ों से यह देखेंगे कि वर्ष 2008-09 में सरकार द्वारा लिया गया निवल उधार वर्ष 2007-08 की तुलना में तीन गुना था। अंतरिम बज़ट के अनुमानों के अनुसार, वर्तमान वर्ष 2009-10 में भी निवल उधार वृद्धिगत स्तर पर रहेगा। वर्ष 2008-09 की चौथी तिमाही में भी लिए गए उधार में वृद्धि काफी अधिक और आकस्मिक थी, तथापि, उसका हमने बाज़ार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) प्रतिभूतियों को जारी करना, खुले बाज़ार परिचालन और मौद्रिक सुगमता जैसे उपायों के ज़रिए बाधारहित तरीके से प्रबंध किया। मैं स्वीकार करता हूँ कि प्रतिफल बढ़े हैं। तथापि, इसे प्रतितथ्यात्मक रूप से स्वीकार करना महत्त्वपूर्ण है। लेकिन रिज़र्व बैंक द्वारा की गई चलनिधि सुगमता की शुरूआत से प्रतिफल और भी अधिक बढ़ गया होता। हम 2009-10 में भी लिए जानेवाले उधार का बाधारहित प्रबंध करेंगे। इस संबंध में, वर्ष 2009-10 की पहली छमाही में योजना बद्ध तरीके से खुला बाज़ार परिचालन (ओएमओ) के माध्यम से प्रतिभूतियों की खरीद और बाज़ार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) के माध्यम से प्रतिभूतियाँ जारी करना एक प्रयास है जिससे लगभग 1,20,000 करोड़ रुपए की प्राथमिक चलनिधि की प्राप्ति होगी जिसका मौद्रिक प्रभाव 3 प्रतिशत तक आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) घटाने के बराबर है। |
वृद्धि संभवना अब मैं वृद्धि की संभावनाओं की ओर आता हूं। जनवरी 2009 की नीतिगत समीक्षा में हमने अधोगामी पूर्वाग्रह के साथ 2008-09 के लिए 7.0 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया था। चूंकि अब अधोगामी जोखिम वास्तविकता का रूप ले चुके हैं और 2008-09 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि का अब अनुमान लगाया गया है कि यह 6.5-6.7 प्रतिशत की सीमा में रहेगी। आगे बढ़ते हुए 2008-09 के दौरान उठाए गए अपेक्षाकृत कम पण्य मूल्यों के साथ संबद्ध राजकोषीय और मौद्रिक बलकारक उपाय घरेलू आर्थिक गतिविधि में स्थिरता लाकर अधोगामी रुख को एक सुविधा प्रदान करेंगे। संतुलित रूप में, सामान्य मानसून के पूर्वानुमान के साथ नीतिगत प्रयोजन के लिए 2009-10 के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि 6.0 प्रतिशत के आसपास रखी गई है। मुद्रास्फीति संभावना हमने पण्य मूल्यों और घरेलू मांग-आपूर्ति संतुलन की वैश्विक प्रवृत्ति को दृष्टिगत रखते हुए मार्च 2010 की समाप्ति तक थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यू पी आई) मुद्रास्फीति 4.0 प्रतिशत के आसपास रहने का अनुमान लगाया है। वैश्विक पण्य मूल्यों में गिरावट को दर्शाते हुए अगस्त 2008 में हेडलाइन थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में तेजी से गिरावट आई। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति लगातार लगभग दो-अंकीय स्तर पर बनी हुई है और आशा की जाती है कि आनेवाले महीनें में यह और संभलेगी। तथापि,आशा की जाती है कि 2009-10 के शुरुआती हिस्से में थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति नकारात्मक हिस्से में रहेगी जो मात्र सांख्यिकीय महत्व की है और इसका अर्थ यह नहीं है कि मांग कम हो गई है जैसाकि आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं के मामले में है। मुद्रा आपूर्ति 2009-10 के लिए मुद्रा आपूर्ति (एम3) वृद्धि 17.0 प्रतिशत आंकी गई है। इसके अनुरूप वाणिज्य बैंकों की सकल जमाराशियों में 18.0 प्रतिशत की वृद्धि होना अनुमानित की गई है। समायोजित खाद्येतर ऋण-जिसमें सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों के बांडों/डिबेंचरों/शेयरों में तथा निजी कारपोरेट क्षेत्र और सीपी में किया गया निवेश भी सम्मिलित है - की वृद्धि 20.0 प्रतिशत आंकी गई है। हमेशा की तरह ये संख्याएं सांकेतिक अनुमान हैं, न कि निर्धारित लक्ष्य। आगे आनेवाली चुनौतियां अर्थव्यवस्था विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रही है। इन चुनौतियों में सम्मिलित हैं - (क) अर्थव्यवस्था को उच्च वृद्धि की पटरी पर लौटाने में सक्षम बनाने के लिए सकल मांग के कारकें का समर्थन करना; (ख) अर्थव्यवस्था के सभी उत्पादक क्षेत्रों को ऋण प्रवाह की गति तेज़ करना; (ग) 2009-10 के लिए बृहद सरकारी कार्यक्रमों का प्रबंधन बाधारहित तरीके से करना; (घ) राजकोषीय समेकन प्रक्रिया की बहाली करना; (ङ) अर्थव्यवस्था की उत्पादकीय आवश्यकताओं की सहायता के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा सितंबर 2008 से प्रणाली में उपलब्ध कराई गई भारी-भरकम चलनिधि को संयत विधि से निकालना सुनिश्चित करना; (च) वैश्विक संकट से सीख लेते हुए अपनी वित्तीय प्रणाली के स्थायित्व को संरक्षित रखने की निरंतर चुनौती। अंत में सबसे बड़ी चुनौती है एक ऐसे ब्याज दर का परिवेश निर्मित करना जो निवेश मांग को फिर से पटरी पर ला सके। अक्तूबर 2008 से मुद्रास्फीति दर कम हुई है और नीति दरों में कटौती की गई है और तभी से बाज़ार की ब्याज दरें भी कम हुईं हैं। परंतु सभी मीयादी ढाँचे और बाज़ारों में ब्याज दरों में कमी एकसमान रूप से नहीं हुई है। अत: मैं कहना चाहूंगा कि ब्याज दर ढाँचे को समग्र रूप से कम करने की गुंजाइश अभी है। वास्तव में, इस नीति के अंग के रूप में नीतिगत दर में आगे होने वाली कटौती उधार दर कम करने के लिए निश्चयात्मक संकेत होगी। |
मौद्रिक नीति का रुझान इस समग्र मूल्यांकन के आधार पर 2009-10 में मौद्रिक नीति का रुझान मोटे तौर पर इस प्रकार रहेगा:-
- एक ऐसा नीतिगत माहौल सुनिश्चित करना जिसमें ऋण गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए व्यवहार्य दर पर ऋण प्रसार को सक्षम बनाया जा सके ताकि अर्थव्यवस्था उच्च वृद्धि दर पर फिर वापस आ सके।
- वैश्विक एवं घरेलू स्थितियों पर अनवरत निगरानी रखना और आवश्यकतानुसार नीतिगत समायोजनों के माध्यम से त्वरित एवं प्रभावी कार्रवाई करना ताकि प्रतिकूल घटनाओं के असर को कम किया जा सके तथा सकारात्मक घटनाओं के असर को सहारा दिया जा सके।
- वैश्विक वित्तीय संकट से लिए गए सबक को ध्यान में रखते हुए ऐसा मौद्रिक तथा ब्याज दर का माहौल बनाए रखना जो मूल्य स्थिरता तथा वित्तीय स्थिरता में सहायक हो।
विकासात्मक तथा विनियामक मामले अब मैं विकासात्मक तथा विनियामक मसलों की बात करना चाहूंगा। इन नीतियों को बनाते समय वैश्विक वित्तीय संकट से लिए गए सबक भी हमारे दिमाग में थे क्योंकि ये भारत पर भी लागू होते हैं। नीति वक्तव्य में विस्तृत सूची तथा स्पष्टीकरण दिए गए हैं। मैं कुछेक पर ही प्रकाश ड़ालूंगा। हमारी बैंकिंग प्रणाली अंतर्निहित रूप से सदृढ़ है तथा वित्तीय बाजार सामान्य रूप से काम कर रहे हैं। तथापि, वैश्विक वित्तीय संकट के मद्देनज़र वैश्विक स्तर पर इस उद्देश्य से अभूतपूर्व तरीके से मिल-जुलकर कई कदम उठाए गए हैं कि संकट का समाधान हो सके तथा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय ढाँचे को मज़बूती प्रदान की जा सके। वित्तीय क्षेत्र मूल्यांकन समिति (सीएफएसए) ने भारतीय वित्तीय क्षेत्र का समग्र मूल्यांकन किया तथा यह पाया कि भारतीय वित्तीय क्षेत्र मोटे तौर पर सुदृढ़ तथा लचीला है, समिति ने कुछ चिंताजनक तथ्यों का पता लगाया है तथा कई सिफारिशें की हैं। रिज़र्व बैंक का प्रस्ताव है कि जी-20 कार्य समूह हेतु एक कार्य दल का गठन किया जाए; सीएफएसए की सिफारिशों के कार्यान्वयन हेतु कार्य समूह बनाया जाए; तथा रिज़र्व बैंक में वित्तीय स्थिरता इकाई बनाई जाए। ऋण की कीमत पारदर्शी तरीके से निर्धारित करने के लिए बेंचमार्क मूल उधार दर (बीपीएलआर) की वर्तमान प्रणाली की समीक्षा करने एवं 01 अप्रैल 2010 से दैनिक उत्पाद आधार पर बचत बैंक खातों में ब्याज के भुगतान करने की समीक्षा करने सरीखे कदम ब्याज दर से संबंधित नीतिगत उपायों में शामिल हैं। वित्तीय बाजारों से संबंधित उपायों में शामिल हैं:-
- एफसीसीबी की वापसी खरीद नीति को और उदार बनाना;
- 31 दिसंबर 2009 तक बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) हेतु समग्र लागत की उच्चतम सीमा में दी गई रियायतों को विस्तार दिया जाना।
- 31 मार्च 2010 तक बैंकों हेतु विशेष पुनर्वित्त सुविधा तथा मीयादी रिपो सुविधा को विस्तार तथा निर्यात ऋण पुनर्वित्त की सीमा में वृद्धि;
- सरकारी जीरो कूपन आय वक्र के विकास में सहायता हेतु पंजीकृत हित और मुख्य प्रतिभूतियों का अलग व्यापार (स्ट्रिप्स) को शुरू करना; तथा
- अन्य बातों के बीच अस्थिर दर बांडों के निर्गम ढांच का संशोधन।
ऋण संवितरण व्यवस्था और बैंकिंग सेवाओं से संबंधित उपायों में निम्नलिखित शामिल हःं
- रुग्ण लघु और मध्यम उद्यमों की पुनर्व्यवस्था के संबंध में बैंकों को दिशा-निर्देश;
- क्षेत्रीय ग्रामीणों बैंकों (आर आर बी) के लिए जोखिम भारित आस्तियों में पूंजी का अनुपात (सीआरएआर) मानदंड चरणबद्ध रूप से लागू करना;
- यह सुनिश्चित करना कि 2012 तक केवल वे ही बैंक सहकारी क्षेत्र में काम करेंगे जिनके पास लाइसेंस होगा और
- पूर्वोत्तर क्षेत्र में वाणिज्यिक रूप से अव्यवहार्य केंद्रों में बैंकिंग सुविधाओं की स्थापना करना।
|
महत्वपूर्ण विवेकपूर्ण उपायों में सम्मिलित हैं - अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (एससीबी) को पूर्वानुमोदन प्राप्त किए बिना परंतु रिपोर्टिंग करने के अधीन रहते हुए कार्यस्थल से दूर एटीएम स्थापित करने की अनुमति देना, केंद्रीय काउंटरपार्टियों के प्रति बैंकों के एक्सपोजर संबंधी पूंजी पर्याप्तता उपाय हेतु मानदंड निर्धारित करना, ऋणों को प्रतिभूतिकृत करने के लिए न्यूनतम कालावधि तथा न्यूनतम धारणीय मानदंड निर्धारित करना, बैंकिंग सेवाओं की पहुंच आम आदमी के लिए सुलभ बनाने हेतु कारोबार प्रतिनिधि के लिए अधिकतम दूरी मानदंड में वृद्धि करना। मौजूदा वैश्विक वित्तीय बाज़ार संकट को ध्यान में रखते हुए यह भी निर्णय लिया गया है कि कुछ समय तक भारत में विदेशी बैंको की उपस्थिति को नियंत्रित कर रही मौजूदा नीति और क्रियाविधि जारी रखी जाए। एक बार विश्व भर में वैश्विक वित्तीय प्रणाली की स्थिरता और विनियामक और पर्यवेक्षी ढ़ाँचा पर सह-समझौता पर बेहतर स्पष्टीकरण हो जाने के बाद सभी शेयरधारकों के साथ विधिवत परामर्श करने के बाद इस विषय पर 2005 की नीति के एक भाग के रूप में प्रस्तावित समीक्षा की जाएगी। संस्थागत गतिविधियों से संबंधित उपायों में निम्नलिखित शामिल है
- पात्र अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को सभी श्रेणियों के पूर्वदत्त (प्रीपेड) भुगतान लिखत जारी करने की अनुमति देना।
- पात्र गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों सहित गैर-बैंकिंग संस्थाओंं को अर्ध- बंद लिखत जारी करने की अनुमति देना।
- पंजीकरण के संपूर्ण राज्य के ग्रेड I में टियर II शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) के परिचालन के क्षेत्र को बढ़ाने की अनुमति देना।
- आंतरिक नियंत्रणों, जोखिम प्रबंधन प्रणालियों, आस्ति-देयता प्रबंधन और प्रकटीकरण मानदंडों पर शहरी सहकारी बैंकों को दिशा-निर्देश।
- बड़े शहरी सहकारी बैंकों के संबंध में बाज़ार जोखिमों के लिए पूँजी प्रभार लागू करना और
- प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण जमाराशियां स्वीकार न करनेवाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए जोखिम भारित परिसंपत्ति की तुलना में पूंजी का अनुपात (सीआरएआर) के कार्यान्वयन को एक वर्ष से स्थगित करना।"
|