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बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथा लागू) की धारा 22(4) के अंतर्गत बैंकिंग लाइसेंस रद्द - दि म्‍युनिसिपल को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड., अहमदाबाद (गुजरात)

20 फरवरी 2014

बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथा लागू)
की धारा 22(4) के अंतर्गत बैंकिंग लाइसेंस रद्द -
दि म्‍युनिसिपल को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड., अहमदाबाद (गुजरात)

इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि दि म्‍युनिसिपल को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड., अहमदाबाद (गुजरात) अर्थक्षम नहीं रह गया है और गुजरात सरकार के साथ परामर्श से इसे पुनरुज्जीवित करने के सभी प्रयास असफल हो जाने तथा सतत अनिश्चितता के कारण जमाकर्ताओं को होने वाली असुविधा के परिप्रेक्ष्य में भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने बैंक का लाइसेंस रद्द करने का आदेश जारी किया जोकि, 03 फरवरी 2014 को कारोबार की समाप्ति के बाद से लागू है। निबंधक, सहकारी समिति (आरसीएस), गुजरात से भी बैंक के परिसमापन और परिसमापक नियुक्त करने के लिए आदेश जारी करने का अनुरोध किया गया है। यह उल्लेख किया जाता है कि बैंक के समापन पर हर जमाकर्ता निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम (डीआईसीजीसी) से सामान्य शर्तों पर 1,00,000/- (एक लाख रुपये मात्र) की उच्चतम मौद्रिक सीमा तक अपनी जमाराशियों को वापस पाने का हकदार होता है।

बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथा लागू) की धारा 35 के अंतर्गत 31 मार्च 2009 के संदर्भ में आयोजित सांविधिक निरीक्षण से यह पता चला है कि  बैंक की निवल संपत्ति (–)706.33 लाख रुपये पर ऋणात्‍मक रही,  9% के विनियमाक पूंजी अपेक्षाओं की तुलना में सीआरएआर (जोखिम भारित आस्तियों की तुलना में पूंजी का अनुपात) (–)27.9% पर ऋणात्‍मक पाया गया, बैंक का 25.9% तक का जमा-ह्रास हो चुका था, 31 मार्च 2009 की स्थिति के अनुसार बैंक की अनर्जक आस्तियां (एनपीए) 96.73 लाख रहीं जोकि सकल अग्रिमों का 11.4% थी, बैंक की मूल्‍यांकित निवल हानि (-)718.15 लाख पर पहुँच गई थी, आदि। गैर-ज़मानती अग्रिमों के लिए मंज़ूरी देकर तथा गैर-ज़मानती गारंटी प्रदान करके उपर्युक्‍त बैंक ने भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 01 जुलाई 2008 तथा 05 जनवरी 2009 के पत्र के ज़रिए बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949(सहकारी समितियों पर यथा लागू) की धारा 36(1) के अंतर्गत उन्‍हें जारी किए गए परिचालनगत अनुदेशों का उल्‍लंघन किया है। बैंक की वित्‍तीय स्थिति को सहकारी बैंकों के लिए कार्यबल (टाफकब) के समक्ष प्रस्‍तुत की गई तथा टाफकब की सिफारिशों के अनुसार, बैंक को बैककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 35 ए के अंतर्गत भारतीय रिजर्व बैंक , शहरी बैंक विभाग, केंद्रीय कार्यालय के 11 फरवरी 2010 के पत्र के माध्‍यम से 15 फरवरी 2010 की कारोबार समाप्ति से छ:माह की अवधि के लिए निदेश जारी किए गए।  इसके अलावा, बैंक का कार्य-संचालन संतोषजनक न पाए जाने के मद्देनज़र, शहरी बैंक विभाग केंद्रीय कार्यालय के 08 फरवरी 2010 के पत्र के माध्‍यम से आरसीएस से बैंक के निदेशक मंडल का अधिक्रमण करने के लिए अनुरोध किया था। इसके बाद, आरसीएस, गुजरात द्वारा 17 फरवरी 2010 के उनके आदेश के माध्‍यम से एक प्रशासक की नियुक्ति की गई। 

बैंक की वित्‍तीय स्थिति में अगले तीन वर्षों अर्थात 31 मार्च 2010, 31 मार्च 2011 तथा 31 मार्च 2012 में कोई सुधार नहीं हो पाया जैसाकि इस अवधि के दौरान किए गए निरीक्षणों से यह पता चला है।

31 मार्च 2013 के संदर्भ में आयोजित सांविधिक निरीक्षण से यह पता चला कि बैंक की वित्‍तीय स्थिति और खराब होती गई है जैसे 0.9% की विनियामक पूंजी अपेक्षा की तुलना में बैंक का सीआरएआर का हिस्‍सा (-) 77.7% रहा, बैंक की निवल संपत्ति (-) 344.12 लाख रही, 14.8 % का जमा-ह्रास होने की वजह से बैंक अपने वर्तमान और भावी जमाकर्ताओं को पूरी राशि अदा करने की स्थिति में नहीं थी, पिछले निरीक्षण से सतत अनियमितताएं पाई गईं, जिनका बैंक ने अनुपालन नहीं किया है, 31 मार्च 2013 को बैंक के सकल एनपीए,उसके सकल अग्रिमों के 55.1% रहे, संचित हानि (-)674.13 लाख पर पहुँची हुई थी। किंतु, प्रावधान करने की दृष्टि से 129.91 लाख की  गणना करने बाद संचित हानि को (-)804.04 लाख रुपए तक मूल्‍यांकित किया गया, बैंक ने पुराने खातों के संबंध में केवाईसी मानदंड का अनुपालन नहीं किया है।

जमा-ह्रास, लगातार ऋणात्‍मक निवल संपत्ति और प्रभावी एवं उचित प्रबंधन के अभाव में बैंक को 15 फरवरी 2010 से सर्वसमावेशी निदेश जारी किए गए जिसकी अवधि को समय-समय पर कुल 3 वर्ष तक के लिए बढ़ाया गया। बैंक की अस्थिर वित्‍तीय स्थिति को ध्‍यान में रखते हुए 10 अक्‍तूबर 2013 को कारण बताओ नोटिस(एससीएन) जारी किया गया था जिसमें यह कहा गया था कि अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू)  की धारा 22 के अंतर्गत उन्हें भारत में बैंकिंग कारोबार करने के लिए 22 दिसंबर 1986 को जारी किया गया लाइसेंस क्यों न रद्द किया जाए तथा बैंक का परिसमापन क्यों न किया जाए। 25 अक्‍तूबर 2013 के पत्र के माध्यम से कारण बताओ नोटिस हेतु बैंक द्वारा दिए गए उत्तर की जांच की गई लेकिन वह संतोषजनक नहीं पाया गया। किसी भी बैंक से विलयन संबंधी कोई मजबूत प्रस्‍ताव प्राप्‍त नहीं हुआ है। 

इसलिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंक के जमाकर्ताओं के हित में बैंक का लाइसेंस रद्द करने का निर्णय लिया है। लाइसेन्स रद्द किए जाने और परिसमापन प्रक्रिया आरंभ करने से दि म्‍युनिसिपल को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, अहमदाबाद, गुजरात के जमाकर्ताओं को डीआईसीजीसी अधिनियम, 1961 के अंतर्गत बीमाकृत राशि के भुगतान की प्रक्रिया निक्षेप बीमा योजना की शर्तों के अधीन प्रारंभ की जाएगी।

लाइसेन्स रद्द किये जाने के अनुसरण में दि म्‍युनिसिपल को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड., अहमदाबाद, (गुजरात) पर बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 (सहकारी सोसायटियों पर यथालागू) की धारा 5(ख) के अंतर्गत परिभाषित 'बैंकिंग' कारोबार करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

किसी भी स्पष्टीकरण के लिए जमाकर्ता, महाप्रबंधक, शहरी बैंक विभाग, अहमदाबाद क्षेत्रीय कार्यालय, भारतीय रिजर्व बैंक, अहमदाबाद से सपर्क कर सकते हैं। उनका संपर्क ब्यौरा निम्नानुसार है:

डाक पता: शहरी बैंक विभाग, अहमदाबाद क्षेत्रीय कार्यालय, ला-गज्‍जर चेंबर्स, आश्रम रोड, अहमदाबाद- 380009. दूरभाष सं. (079) 26585184, फैक्‍स: (079)26584853, ई-मेल

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2013-2014/1678

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