भारतीय रिज़र्व बैंक की आरटीजीएस प्रणाली के दायरे ने 15,000 बैंक शाखाओं का लक्ष्य पार किया - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक की आरटीजीएस प्रणाली के दायरे ने 15,000 बैंक शाखाओं का लक्ष्य पार किया
4 जनवरी 2006
भारतीय रिज़र्व बैंक की आरटीजीएस प्रणाली के दायरे ने 15,000 बैंक शाखाओं का लक्ष्य पार किया
भारतीय रिज़र्व बैंक की रीयल टाइम ग्रॉस सैटलमेंट प्रणाली का दायरा देश में 15,000 बैंक शाखाओं से आगे बढ़ गया है। यह लक्ष्य दो महीने पहले प्राप्त किया गया, जिससे निधि अंतरण सेवा की लोकप्रियता निर्दिष्ट होती है। आपको याद होगा कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने आरटीजीएस प्रणाली मार्च 2004 में चार बैंक शाखाओं की सहभागिता के साथ केवल अंतर-बैंक लेनदेनों के लिए प्रायोगिक आधार पर शुरू की थी। उसके बाद ग्राहक-आधारित लेनदेनों को भी उसमें शामिल किया गया। अब आरटीजीएस प्रणाली की सदस्यता में 96 बैंक, 14 प्राथमिक व्यापारी और भारतीय रिज़र्व बैंक का समावेश है।
आरटीजीएस प्रणाली बैंकों की पहचानी गयी शाखाओं के बीच रीयल टाइम, अर्थात् तत्काल आधार पर निधि अंतरण आसान बनाती है। बैंकों से अपेक्षित है कि वे आरटीजीएस प्रणाली में केवल ऐसी शाखाओं का समावेश करें जो नेटवर्क के माध्यम से जुड़ी हुई हैं और रीयल टाइम आधार पर संदेश प्राप्त करने में सक्षम हैं। इस प्रणाली की एक अपेक्षा यह है कि प्राप्तकर्ता बैंक को चाहिए कि लेनदेनों की प्राप्ति के बाद यदि वे किसी कारण के लिये निधियों का विनियोग नहीं कर सकते तो दो घंटों के भीतर उन्हें लेनदेनों को लौटाना होगा। इस तरह आरटीजीएस प्रणाली के माध्यम से सुबह 11.00 बजे निधि प्रेषित करने वाला ग्राहक यह अपेक्षा कर सकता है कि हिताधिकारी के खाते में निश्चित रूप से दोपहर 1.00 बजे, यदि पहले न हो, राशि जमा हो जाती है। यह देखा गया है कि अधिकांश बैंक, खाता धारकों के खाते में तत्काल राशि जमा करते हैं।
देश में 15,000 शाखाओं की व्याप्ति, देशभर में कार्यक्षम और स्थिर भुगतान प्रणाली की बुनियादी सुविधा को बनाने में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है। देशभर के 500 केंद्रों में फैली हुई ये 15,000 शाखाएं हररोज 50,000 करोड़ रुपये के कुल मूल्य के लिये करीब 7,000 लेनदेन करती हैं। यद्यपि, सर्वोच्च 25 प्रमुख केंद्रों में शाखाओं का संकेंद्रण है, सभी राज्यों के छोटे शहर भी आरटीजीएस के अंतर्गत कवर किये गये हैं, जिसने इसे राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली बनाया है
जी. रघुराज
उप महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2005-2006/828