2010-11 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2010) के दौरान भारत के भुगतान संतुलन की गतिविधियां - आरबीआई - Reserve Bank of India
2010-11 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2010) के दौरान भारत के भुगतान संतुलन की गतिविधियां
30 सितंबर 2010 2010-11 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2010) के दौरान वत्तीय वर्ष 2010-11 की पहली तिमाही (ति.1) अर्थात अप्रैल-जून 2010 से संबंधित भारत के भुगतान संतुलन के प्रारंभिक आंकड़े अब उपलब्ध हैं। इन आंकड़ों का संपूर्ण ब्यौरा विवरण I और II में भुगतान संतुलन प्रस्तुतीकरण के मानक फार्मेट में दिया गया है। भुगतान संतुलन की मुख्य-मुख्य बातें (i) 2010-11 की पहली तिमाही के दौरान वर्ष-दर-वर्ष आधार पर निर्यात में 37.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई जबकि 2009-10 की पहली तिमाही के दौरान 31.8 प्रतिशत की गिरावट आई थी। (ii) 2010-11 की पहली तिमाही के दौरान आयात में 35.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि 2009-10 की पहली तिमाही के दौरान 21.7 प्रतिशत की गिरावट आई थी। (iii) आयातों की तुलना में निर्यात की वृद्धि दर उच्चतर रहने के बावजूद 2010-11 की पहली तिमाही के दौरान व्यापार घाटे में वृद्धि हुई। (iv) सेवाओं से प्राप्त राशि में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 22.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई जिसमें यात्रा, परिवहन, सॉफ्टवेयर तथा वित्तीय सेवाओं का योगदान था। (v) 2010-11 की पहली तिमाही के दौरान निजी अंतरण प्राप्तियों में सुदृढ़ता बनी रही। (vi) तथापि, विशेष रूप से निवेश आय के अंतर्गत उच्चतर भुगतान किए जाने तथा यात्रा, परिवहन, कारोबार तथा वित्तीय सेवाओं के लिए अधिक मात्रा में भुगतान किये जाने के कारण अदृश्य मद भुगतानों की राशि अपेक्षाकृत अधिक होने से निवल अदृश्य मदों में गिरावट आई। (vii) अदृश्य मद अधिशेष के कम रहने के साथ-साथ व्यापार घाटा अधिक होने से 2010-11 की पहली तिमाही के दौरान चालू खाता घाटे में वृद्धि हुई। (viii) पूंजी खाता अधिशेष में पिछले वर्ष की तदनुरूप तिमाही की तुलना में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हुई जिसमें मुख्यत: अल्पावधि ऋण, बाह्य वाणिज्यिक उधारों (ईसीबी), बाह्य सहायता तथा बैंकिंग पूंजी का योगदान था। (ix) परंतु, निवल विदेशी निवेश पिछले वर्ष की तदनुरूप तिमाही की तुलना में काफी कम रहा जिसका कारण विदेशी संस्थागत निवेशकों के निवेश के अंतर्गत निवल अंतर्वाह में उल्लेखनीय रूप से गिरावट आना था। 2010-11 की पहली तिमाही के दौरान विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के अंतर्गत निवल अंतर्वाह भी कम रहा। (x) चालू खाता घाटे की तुलना में पूंजी खाता अधिशेष अधिक रहने के कारण 3.7 बिलियन अमरीकी डॉलर पर समग्र शेष अधिशेष में रहा जिसके कारण 2010-11 की पहली तिमाही के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में इतनी ही राशि की वृद्धि हुई। 2010-11 के अप्रैल-जून (ति.1) के लिए भुगतान संतुलन 2010-11 की पहली तिमाही (ति.1) के लिए बीओपी की प्रमुख मदें सारणी 1 में नीचे दी गई हैं।
(i) बीओपी आधार पर, 2010-11 की पहली तिमाही के दौरान भारत के पण्य निर्यात में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 37.2 प्रतिशत की वञिद्ध हुई जबकि 2009-10 की पहली तिमाही में 31.8 प्रतिशत की गिरावट आई थी। (ii) 2010-11 की पहली तिमाही के दौरान पण्य आयात में 35.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि 2009-10 की पहली तिमाही के दौरान 21.7 प्रतिशत की गिरावट आई थी। (iii) आयातों की तुलना में निर्यातों में उच्चतर वृद्धि होने के बावजूद 2010-11 की पहली तिमाही के दौरान 34.2 बिलियन अमरीकी डॉलर पर व्यापार घाटा उच्चतर था जबकि 2009-10 की पहली तिमाही में यह राशि 25.6 बिलियन अमरीकी डॉलर थी। (iv) 2010-11 की पहली तिमाही के दौरान अदृश्य मद प्राप्तियों में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 13.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई (2009-10 की पहली तिमाही के दौरान 4.6 प्रतिशत की गिरावट आई थी) जो मुख्यत: सेवाओं के निर्यात में वृद्धि की वजह से थी। (v) यात्रा तथा परिवहन के साथ-साथ सॉफ्टवेयर, कारोबार तथा वित्तीय सेवाओं जैसी विविध सेवाओं के निर्यात में वृद्धि की वजह से सेवा निर्यात में 22.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई (एक वर्ष पूर्व 7.5 प्रतिशत की गिरावट आई थी)। (vi) 2010-11 की पहली तिमाही के दौरान निजी अंतरण प्राप्तियों की राशि 3.0 प्रतिशत की सामान्य वृद्धि के साथ बढ़कर 13.7 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गई (एक वर्ष पूर्व 5.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी)। (vii) तिमाही के दौरान निवेश आय प्राप्तियों में 3.5 प्रतिशत की मामूली गिरावट आई (एक वर्ष पूर्व 20.3 प्रतिशत की तीव्र गिरावट हुई थी) जो मुख्यत: विदेशों में ब्याज दर कम रहने की वजह से थी। (viii) अदृश्य मद भुगतनों में 35.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई (एक वर्ष पूर्व 5.7 प्रतिशत की गिरावट आई थी) जो मुख्यत: निवेश आय के अंतर्गत उच्चतर भुगतान के साथ-साथ यात्रा, परिवहन, कारोबार तथा वित्तीय सेवाओं के अंतर्गत उच्चतर भुगतान किये जाने की वजह से थी (सारणी 2)।
ix) प्राप्तियों में वृद्धि की तुलना में अदृश्य मद भुगतानों की वृद्धि की दर उच्चतर रहने के कारण तिमाही के दौरान निवल अदृश्य मद (अदृश्य मद प्राप्तियां घटाव अदृश्य मद भुगतान) की राशि 3.4 प्रतिशत की सामान्य गिरावट के साथ 20.5 बिलियन अमरीकी डॉलर रही (2009-10 की पहली तिमाही में 21.2 बिलियन अमरीकी डॉलर)। (x) अदृश्य मद प्राप्तियों की राशि कम रहने के साथ-साथ व्यापार घाटा उच्चतर रहने के कारण 2010-11 की पहली तिमाही के दौरान चालू खाते का घाटा बढ़कर 13.7 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया (2009-10 की पहली तिमाही के दौरान 4.5 बिलियन अमरीकी डॉलर)। (xi) प्रमुख रूप से अल्पावधि ऋण, बाह्य वाणिज्यिक उधारों तथा बाह्य सहायता साथ ही बैंकिंग पूंजी के अंतर्गत बड़ी मात्रा में अंतर्वाह के कारण पूंजी प्रवाह में प्रचुरता बनी रहने के चलते 2010-11 की पहली तिमाही के दौरान पूंजी खाते में 18.4 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवल अधिशेष दर्ज हुआ जबकि 2009-10 की पहली तिमाही के दौरान अधिशेष की राशि कम अर्थात 4.0 बिलियन अमरीकी डॉलर थी। (xii) 2010-11 की पहली तिमाही के दौरान भारत को अल्पावधि व्यापार ऋण में 5.6 बिलियन अमरीकी डॉलर का भारी निवल अंतर्वाह दर्ज हुआ (2009-10 की पहली तिमाही के दौरान 1.5 बिलियन अमरीकी डॉलर के बहिर्वाह की तुलना में) जो सुदृढ़ देशी आर्थिक गतिविधियों तथा वैश्विक वित्तीय बाजारों की बेहतर स्थितियों के कारण आयातों में वृद्धि के अनुरूप है। (xiii) तिमाही के दौरान 2.7 बिलियन अमरीकी डॉलर पर निवल बाह्य वाणिज्यिक उधार उल्लेखनीय रूप से उच्चतर थीं (2009-10 की पहली तिमाही के दौरान 0.4 बिलियन अमरीकी डॉलर की गिरावट के विपरीत) जो मुख्यत: भुगतान की जाने वाली राशि कम रहने के साथ-साथ भारत को वाणिज्यिक ऋण का उच्चतर संवितरण की वजह से थी। (xiv) तिमाही के दौरान बैंकिंग पूंजी में 4.0 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवल अंतर्वाह दर्ज हुआ (2009-10 की पहली तिमाही के दौरान 3.4 बिलियन अमरीकी डॉलर के निवल बहिर्वाह की तुलना में) जो मुख्यत: अनिवासी भारतीय जमाराशियों तथा बैंकों की विदेशों से विदेशी मुद्रा उधारियों के अंतर्गत निवल अंतर्वाह की वजह से थी। वाणिज्य बैंकों द्वारा विदेशी आस्तियों के आहरण की वजह से भी अंतर्वाह में वृद्धि हुई। (xv) तिमाही के दौरान निवल एफडीआइ प्रवाह (निवल एफडीआइ अंतर्वाह घटाव निवल एफडीआइ बहिर्वाह) 3.2 बिलियन अमरीकी डॉलर का रहा (2009-10 की पहली तिमाही के स्तर का लगभग आधा) जो मुख्यत: निवल एफडीआइ अंतर्वाह कम होने (2009-10 की पहली तिमाही के 8.7 बिलियन अमरीकी डॉलर की तुलना में 2010-11 की पहली तिमाही में 6.0 बिलियन अमरीकी डॉलर) की वजह से थी। निवल एफडीआइ बहिर्वाह 2.8 बिलियन अमरीकी डॉलर पर मामूली रूप से उच्चतर था (2009-10 की पहली तिमाही में 2.6 बिलियन अमरीकी डॉलर)। (xvi) भारत को विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में कमी आई जिसका कारण मुख्यत: खनन, निर्माण, स्थावर संपदा तथा कारोबार और वित्तीय सेवाओं के अंतर्गत कम एफडीआइ अंतर्वाह होना था। (xvii) तिमाही के दौरान 4.6 बिलियन अमरीकी डॉलर पर निवल पोर्टफोलियो निवेश उल्लेखनीय रूप से कम था (2009-10 की पहली तिमाही में 8.3 बिलियन अमरीकी डॉलर) जो मुख्यत: यूरो क्षेत्र के देशों के सरकारी ऋण संकट के चलते वैश्विक निवेशकों की जोखिम विमुखता के कारण एफआइआइ प्रवाह में कमी आने की वजह से था (सारणी 3)। (xviii) 2010-11 की पहली तिमाही के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में बीओपी आधार पर (अर्थात मूल्यन को छोड़कर) 3.7 बिलियन अमरीकी डॉलर की वृद्धि हुई जबकि 2009-10 की पहली तिमाही में 0.1 बिलियन अमरीकी डॉलर की मामूली वृद्धि हुई थी। सांकेतिक आधार पर (अर्थात मूल्यन परिवर्तन को शामिल करके) तिमाही के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में 3.3 बिलियन अमरीकी डॉलर की गिरावट आई जो तिमाही के दौरान प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं की तुलना में अमरीकी डॉलर के मूल्य में हुई वृद्धि को दर्शाता है (विदेशी मुद्रा भंडार में परिवर्तन के स्रोतों के संबंध में प्रेस प्रकाशनी अलग से जारी की गयी है)।
2. चुनिंदा प्रमुख बाह्य क्षेत्र संकेतक (i) प्रमुख बाह्य क्षेत्र संकेतकों के ब्यौरे सारणी 4 में दिए गए हैं।
3. जून 2010 को समाप्त तिमाही का बाह्य ऋण वर्तमान प्रथा के अनुसार मार्च तथा जून को समाप्त होने वाली तिमाहियों के बाह्य ऋण का संकलन और प्रकाशन भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किया जाता है जबकि सितंबर तथा दिसंबर को समाप्त होने वाली तिमाहियों के बाह्य ऋण का संकलन और प्रकाशन वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किया जाता है। तदनुसार, जून 2010 को समाप्त होने वाली तिमाही के बाह्य ऋण के आंकड़े भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा आज जारी किए जा रहे हैं। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2010-2011/453 |