4 मार्च 2014 डीआरजी अध्ययन सं. 40 - ‘भारत में कंपनी बांड बाजार का अध्ययन: सैद्धांतिक और नीतिगत प्रभाव’ भारतीय रिजर्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर "भारत में कंपनी बांड बाजार का अध्ययनः सैद्धांतिक और नीतिगत प्रभाव" शीर्षक से डीआरजी अध्ययन जारी किया। इस अध्ययन के सह-लेखक प्रो. सुंदर राघवन, वित्त प्रोफेसर, एंब्री रिड्डल एरोनॉटिकल यूनिवर्सिटी; और श्री अशोक साहू, निदेशक, वित्तीय स्थिरता इकाई; श्री अंगशुमान हाइत, सहायक सलाहकार, सांख्यिकी और सूचना प्रबंधन विभाग; और डॉ. सौरभ घोष, सहायक सलाहकार, आर्थिक और नीति अनुसंधान विभाग, रिजर्व बैंक हैं। अध्ययन का मुख्य उद्देश्य पिछले एक दशक के दौरान भारत में कंपनी बांड बाजार में शुरू किए गए सुधारों और इसके बाद की गतिविधियों का पता लगाना था। इसके अलावा, इस अध्ययन में विकास के समान स्तर पर जापान, कोरिया, सिंगापुर, मलेशिया और ब्राजील जैसी अन्य उभरती हुई और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईडीईज़) के अनुभव का विश्लेषण किया जिससे कि भारतीय कंपनी बांड बाजार के विकास के संबंध में सबक लिया जा सके। अध्ययन यह नोट करता है कि यद्यपि कंपनी बांड बाजार में सुधार प्रक्रिया प्रोत्साहित करने वाली रही है, फिर भी सुधारों का कार्यान्वयन धीमी गति से हुआ है। निर्गम प्रक्रिया को सरल बनाने और नए तथा लुप्त बाजारों के सृजन के लिए खुदरा और संस्थागत भागीदारी को प्रोत्साहित करने हेतु लागू की गई नीतियों के बावजूद कंपनियां अपने निवेश का वित्तपोषण सार्वजनिक इश्यूज़ और कंपनी बांडों की बजाय निजी प्लेसमेंट और बैंक ऋण के माध्यम से कर रही हैं। इस अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष हैं:
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विश्लेषण दर्शाता है कि विभिन्न कारकों जिन्होंने कंपनी बांड बाजार के विकास को प्रभावित किया है, सरकारी बांड बाजार के विकास का भारत में कंपनी बांड बाजार के विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है जैसाकि दक्षिण कोरिया जैसे अन्य देशों में हुआ है।
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जैसाकि बैंकिंग क्षेत्र द्वारा प्रदान किए गए घरेलू ऋण में परिलक्षित हुआ है, सरकारी घाटा खर्च के वित्तपोषण से इसके विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। भारत जैसे देशों में कंपनी बांड बाजार में बैंकिंग प्रणाली द्वारा उपलब्ध कराए गए घरेलू ऋण के नकारात्मक प्रभाव का एक कारण यह हो सकता है कि बैंकों से सरकारी प्रतिभूति धारण करके सरकारी बजट घाटे को वित्तपोषित करना अपेक्षित है।
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अर्थव्यवस्था के आकार, खुलेपन, शेयर बाजार के आकार जैसे अन्य कारकों और भ्रष्टाचार जैसे संस्थागत कारकों का कंपनी बांड बाजार के विकास पर कम या कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
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पेकिंग आदेश सिद्धांत के अनुसार लाभकारी फर्में पहले आंतरिक स्रोतों और फिर बाहरी स्रोतों से वित्तपोषण करती हैं। बाहरी स्रोतों में कंपनियां पहले ऋण अथवा कंपनी बांड जारी करके और उसके बाद इक्विटी के माध्यम से वित्तपोषण करती है। फिर भी भारत में कंपनियां पेकिंग आदेश सिद्धांत का अनुपालन नहीं करती हैं और आंतरिक स्रोतों के बजाय बाहरी स्रोतों पर निर्भर रही हैं। बाहरी स्रोतों में बैंक ऋण इन कंपनियों के उधारों में प्रमुख प्रतीत होता है।
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निगमों द्वारा बैंक वित्त को वरीयता देने का मुख्य कारण बैंकों में नकदी ऋण प्रणाली की उपलब्धता है जिसमें निगमों के नकदी प्रबंध का कार्य वस्तुत: बैंकों द्वारा किया जाता है। इससे यह संकेत मिलता है कि अभी भी कंपनियों के अपने निवेशों के वित्तपोषण में कंपनी बांड बाज़ार को व्यवहार्य स्रोत बनने के लिए काफी लंबा रास्ता पार करना है।
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व्यापार लॉट को कम करने और कंपनी बांड बाज़ार में विदेशी निवेशकों की सीमा में हाल की वृद्धि जैसे विशिष्ट सुधारों के बावजूद भारत में कंपनी बांड बाज़ार में खुदरा निवेशकों की उपस्थिति अब भी कम है। अध्ययन के अनुसार भारत को खुदरा निवेशकों को आकर्षित करने के लिए नवोन्मेषी उपायों की आवश्यकता है।
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देश भर में स्टाम्प ड्यूटी संरचना को तर्कसंगत बनाने और कंपनी ऋण में जनता के प्रस्तावों के प्रोत्साहन के लिए अवधि और निर्गम मूल्य के आधार पर स्टाम्प ड्यूटी का निर्धारण करने जैसे कुछ क्षेत्रों में और सुधार की गुंजाइश है।
मंजुला रत्तन महाप्रबंधक प्रेस प्रकाशनी : 2013-2014/1739 |