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"भारत में विनिमय दर नीति और मॉडल तैयार करना" पर डीआरजी अध्ययन

25 फरवरी 2010

"भारत में विनिमय दर नीति और मॉडल तैयार करना" पर डीआरजी अध्ययन

भारतीय रिज़र्व बैंक ने "भारत में विनिमय दर नीति और मॉडल तैयार करना" विषय पर डीआरजी अध्ययन जारी किया। दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के अर्थव्यवस्था विभाग की प्रो. पम्मी दुआ तथा भारतीय रिज़र्व बैंक के आर्थिक विश्लेषण और नीति विभाग के निदेशक डॉ. राजीव रंजन इस अध्ययन के सह-लेखक हैं। इस अध्ययन के दो मुख्य विषय है : पहला, विनिमय दर के संबंध में आर्थिक नीति के विभिन्न पहलु और दूसरा विनिमय दर का मॉडल तैयार करना और पूर्वानुमान करना।

इस अध्ययन में भारत की विनिमय दर नीति का विश्लेषण किया गया है और इसका उद्देश्य सहभागिता, लिखतों और व्यापार मंच तथा भारतीय विदेशी मुद्रा बाज़ार में प्रतिलाभ और वायदा प्रीमीया के अंतर्गत भारत में विदेशी मुद्रा बाज़ार के ढाँचे पर विचार-विमर्श करना है। इसके बाद इस अध्ययन में मौद्रिक और लघु ढाँचा मॉडलों से घट-बढ़ तथा केंद्रीय बैंक द्वारा हस्तक्षेप सहित अन्य घट-बढ़ को गिनती में लेते हुए रुपया-डॉलर विदेशी मुद्रा दर के लिए मॉडल विकसित करने का प्रयास किया गया है। संपूर्ण ध्यान भारतीय रुपया (उदाहरण के लिए अमरीकी डॉलर) अर्थात् रुपया/डॉलर दर का विनिमय दर पर है।

इस अध्ययन में व्यापक पूँजी प्रवाहों की पृष्ठभूमि में भारत में विनिमय दर नीति को भी शामिल किया गया है। भारतीय रुपए की गति मुख्य रूप से व्यापार प्रवाहों जैसे पारंपरिक तत्वों के बजाए पूँजी प्रवाह उतार-चढ़ाव से प्रभावित होती है। हालांकि पूँजी प्रवाह सामान्य: अर्थव्यवस्था के लिए लाभप्रद होती है फिर भी अल्प समय में प्रवाह घरेलू खपत क्षमता से प्रवाहों का अत्यधिक बढ़ जाना अर्थव्यवस्था के लिए तनाव का ॉााटत हो सकता है। इसके कारण विनिमय दर पर अत्यधिक दबाव, अर्थव्यवस्था में ओवर-हीटिंग तथा आस्ति मूल्य में वृद्धि की संभावना हो जाती है।

इस अध्ययन में यह उल्लेख किया गया है कि जबकि भाषणों और प्रेस प्रकाशनियों के माध्यम से संचार का मानार्थ अथवा समांतर का राह चुना है, उतार-चढ़ाव के विभिन्न अवसरों के लिए भारत में नीति प्रतिक्रिया का महत्तवपूर्ण पहलु वित्तीय स्थिरता से बचने के लिए मौद्रिक और प्रशासनिक उपायों सहित बाज़ार हस्तक्षेप रहा है। विनिमय दर नीति की तर्ज़ पर यह भी पाया गया है कि सुधार के बाद की अवधि में भारतीय रुपया आर्थिक मूल सिद्धांतों के साथ चल रहा है। आगे बढ़ते हुए जैसे-जैसे भारत पूर्ण पूँजी खाता परिवर्तनीयता की ओर बढ़ रहा है और विश्व के अन्य देशों के साथ अधिक से अधिक समेकित हो रहा है स्वतंत्र मौद्रिक नीति, खुला पूँजी खाता और विनिमय दर प्रबंध की असंभव त्रिपक्ष के फलस्वरूप उतार-चढ़ाव की अवधियों का प्रबंध करना अधिक चुनौतिभरा होगा। बाज़ार में स्थिरता बनाए रखने के लिए चलनिधि प्रबंधन तथा विनिमय दर प्रबंधन के लिए रणनीति के संबंध में अधिक लचीलापन, उसे अपनाना और और नवोन्मेष की आवश्यकता होगी। भविष्य में विदेशी मुद्रा बाज़ार में प्रतिलाभ की संभावना से सहबद्ध जोखिमों का प्रबंधन करने के लिए विदेशी मुद्रा बाज़ार का और अधिक विकास महत्त्वपूर्ण होगा।

विनिमय दर के संबंध में आर्थक नीति के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययन करने के बाद यह अध्ययन एक अलग तरह से विनिमय दरों के संबंध में आर्थिक मॉडल की पूर्वानुमान की योग्यता को बढ़ाने का प्रयास करता है। अलग तरीका यह है कि यह विकासशील देश के संदर्भ में किया जाता है जो प्रबंधित अस्थिर (लचीलेपन के विपरित) विनिमय दर को अपनाता है। नयी मॉडल से शुरुआत करते हुए यह अध्ययन मौद्रिक मॉडल तथा वेक्टर ऑटोरेगरेसिव (वीएआर) और बायेसियन वेक्टर ऑटोरेगरेसिव (बीवीएआर) ढाँचा के विभिन्न विस्तारों में पूर्वानुमान कार्यनिष्पादन की जाँच करता है। यह अध्ययन यह जाँच करता है कि पहला, क्या मौद्रिक मॉडल एक रेंडम वॉक से बेहतर है? दूसरा, यह जाँच करता है कि क्या मौद्रिक मॉडल को विस्तारित करके उसके पूर्वानुमान कार्यनिष्पादन में सुधार लाया जा सकता है? तिसरा, यह अध्ययन पीएसआर मॉडल की तुलना में बीवीएआर मॉडल के पूर्वानुमान कार्यनिष्पादन का मूल्यांकन करता है। अंतत: यह इस बात पर विचार करता है कि क्या केंद्रीय बैंक द्वारा हस्तक्षेप की जानकारी पूर्वानुमान के सही होने में सुधार कर सकता है? मुख्य निष्कर्ष निम्नानुसार है:

(i) मौद्रिक मॉडल सामान्यत: सीधा-सादा मॉडल से बेहतर कार्य करता है। यह मैस्सी और रोगौफ (1983) द्वारा सेमिनल अध्ययन के निष्कर्ष को नकार देता है जो यह कहता है कि आर्थिक मूल सिद्धांतों पर आधारित मॉडल सीधा-सादा रेन्डम मॉडल से बेहतर है।

(ii) यह माना गया है कि सीधा-सादा मॉडल से बेहतर मॉडल संभव है इस तथ्य से हो सकता है कि केंद्रीय बैंक द्वारा हस्तक्षेप माँग-आपूर्ति के बीच असंतुलन के कारण उभरे उतार-चढ़ाव को रोकने में सहायक हो सकता है और विनिमय दर में स्थिरता ला सकता है। रिज़र्व बैंक की विनिमय दर नीति अत्यधिक उतार-चढ़ाव को कम करने की आवश्यकता पर निर्भर होती है।

(iii) पूर्वानुमान का सही होने में सुधार मौद्रिक मॉडल में वायदा प्रीमियम, पूँजी अंतर्वाह में घट-बढ़ और एक समान प्रवाह को शामिल करके बढ़ाया जा सकता है।

(iv) केंद्रीय बैंक द्वारा हस्तक्षेप पर जानकारी पूर्वानुमान में सुधार लंबे समय तक सहायक होती है।

(v) बायेसियन वेक्टर ऑटोरेगरेसिव मॉडल सामान्यत: अपने तदनुरूपी वीएआर से बेहतर होता है।

अत: नियमित अंतराल में कतिपय प्रमुख घट-बढ़ पर उपलब्ध जानकारी जो विनिमय दर को प्रभावित करती है भविष्य के विनिमय दरों की आदतों के बारे में एक जानकारीयुक्त अभिमत प्रस्तुत कर सकते है। इससे बाज़ार सहभागी अपने विदेशी मुद्रा एक्सपोज़रों को बेहतर तरीके से सुरक्षित रख सकते है। ऐसे मुख्य घट-बढ़ में विनिमय दर के पुराने आँकड़े, वायदा प्रीमिया, पूँजी प्रवाह, प्रतिलाभ और केंद्रीय बैंकों का हस्तक्षेप शामिल हो सकता है। भारतीय विदेशी मुद्रा बाज़ार से संबंधित मुख्य घट-बढ़ पर उपलब्ध आँकड़ों के संबंध में अधिकतर आँकड़े सार्वजनिक डोमेन पर उपलब्ध है और उसे बाज़ार सहभागी, शिक्षाविद और व्यावसायिक अनुसंधानकर्ता आसानी से प्राप्त कर सकते है। इन घट-बढ़ का कौशलपूर्ण प्रयोग से उन्हें भविष्य की विनिमय दर की गतिविधियों पर सही जानकारी प्राप्त हो सकती है।

टिप्पणी : वर्तमान रूचि के विषयों पर एक मज़बूत विश्लेषणात्मक और प्रायोगिक आधार वाले प्रभावी नीति आधारित अनुसंधान करने के लिए रिज़र्व बैंक के आर्थिक विश्लेषण और नीति विभाग ने विकास अनुसंधान समूह (डीआरजी) का गठन किया गया है। इन अध्ययनों में व्यक्त किए गए विचार केवल लेखक के हैं और इसमें रिज़र्व बैंक के अभिमत नहीं दर्शाए गए हैं।

अजीत प्रसाद
प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2009-2010/1177

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