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"जीडीपी-सूचकांक बॉण्ड" संबंधी डीआरजी अध्ययन

21 अप्रैल 2010

“जीडीपी-सूचकांक बॉण्ड” संबंधी डीआरजी अध्ययन

भारतीय रिज़र्व बैंक ने “जीडीपी-सूचकांक बॉण्ड’ शीर्षक से डीआरजी अध्ययन जारी किया। प्रो. एरोल डिसूजा, प्रोफेसर, भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद, श्री संजय कुमार, सहायक परामर्शदाता, आईडीएमडी, डॉ. कुमारजीत मंडल, पूर्व अनुसंधान अधिकारी, डीईएपी और श्री विनीत विरमानी, सहायक उपाध्यक्ष, मात्रात्मक जोखिम टीम, नोमुरा सर्विसेज इंडिया लिमिटेड, इस अध्ययन के सह-लेखक हैं ।

1990 के दशक में कई उभरते बाजारों में वित्तीय और ऋण संकट के बाद, वित्तीय लिखतों में रुचि का पुनरुद्धार हुआ है जो विकासशील देशों की चक्रीय भेद्यता को सीमित कर सकता है और चूक की संभावना को कम कर सकता है। जीडीपी-सूचकांक बॉण्ड ऐसे वित्तीय लिखतों में से एक है। अध्ययन में वित्तीय बाजारों में निराकरण जोखिम और नैतिक जोखिम वाले जीडीपी सूचकांक बांड की भूमिका का विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है।

सोवरेन ऋण के मार्ग को स्थिर करने में जीडीपी-सूचकांक बांडों के प्रभाव और विशेष रूप से ऐसे बांडों के मूल्य निर्धारण के संदर्भ में जीडीपी-सूचकांक बांडों की शुरूआत की बाधाओं का भी विश्लेषण किया गया है। जीडीपी-सूचकांक बांडों के मूल्य निर्धारण के लिए शैमोन और मौरो (2006) दृष्टिकोण का उपयोग करके, इस अध्ययन में भारतीय संदर्भ में जीडीपी-सूचकांक बांड के मूल्य निर्धारण मुद्दे को हल करने का प्रयास किया गया है।

अध्ययन में पाया गया है कि सूचकांक के मामले में, जीडीपी-सूचकांक बॉन्ड की कीमत अवमूल्य पर हो सकती है और सरकार एवं मॉडल के अन्य इनपुट के विकास दर, वास्तविक प्रभावी विनिमय दर और प्राथमिक बजट शेष जैसे यादृच्छिक चर के संयुक्त वितरण के आधार पर चूक की संभावना भी बढ़ सकती है। अध्ययन से जीडीपी-सूचकांक बांडों से संबंधित कई व्यावहारिक मुद्दों का भी पता चलता है जो भारतीय संदर्भ में इस लिखत की वांछनीयता को कम करता है।

अजीत प्रसाद
प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2009-2010/1426

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