डीआरजी अध्ययन : धान का मूल्य निर्धारण : आंध्र प्रदेश का एक मामला अध्ययन - आरबीआई - Reserve Bank of India
डीआरजी अध्ययन : धान का मूल्य निर्धारण : आंध्र प्रदेश का एक मामला अध्ययन
20 सितंबर 2012 डीआरजी अध्ययन : धान का मूल्य निर्धारण : आंध्र प्रदेश का एक मामला अध्ययन रिज़र्व बैंक ने आज डॉ. रामनामूर्ति और श्रीमती रेखा मिश्रा द्वारा लिखित ''डीआरजी अध्ययन : धान का मून्य निर्धारण : आंध्र प्रदेश का एक मामला अध्ययन'' पर डीआरजी अध्ययन जारी किया। इस डीआरजी अध्ययन श्रृंखला संख्या 38 के बाद रिज़र्व बैंक डीआरजी अध्ययन केवल वेबसाईट पर डालेगा और मुद्रित संस्करण उपलब्ध नहीं कराएगा। इस अध्ययन का मुख्य प्रयोजन अन्य बातों के साथ-साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के बीच अंतरालों के विस्तार की जांच करना था। यह वह दर है जिसपर किसान अपने उत्पाद बेच सकेगा, मूल्य प्रभारित करेगा तथा आंध्र प्रदेश राज्य में किसानों के आर्थिक और वित्तीय अर्थक्षमता के साथ-साथ कृषि की लागत का निर्धारण करेगा। यह अध्ययन परिवर्तनशील कृषि संरचना, सिंचाई ढांचे, कृषि प्रौद्योगिकी के उपयोग में परिवर्तनों, फसल ढांचे, कृषि ऋण और बीमा की उपलब्धता के विश्लेषण का प्रयत्न भी आंध्र प्रदेश की कृषि प्रोफाईल की संक्षिप्त पृष्ठभूमि में करेगा। पद्धति धान की खेती में मूल्यों, लागतों और प्रतिलाभों की प्रवृत्ति का विश्लेषण करने के लिए 8 जिलों नामत: पूर्वी गोदावरी, कृष्णा, करीमनगर, निजामाबाद, वारंगल, मेड़क, नलगोंडा और महबूबनगर के 13 गांवों में 192 परिवारों को शामिल करते हुए एक नमूना सर्वेक्षण कराया गया था। 192 नमूना परिवारों के वर्ग वितरण में 39 सीमांत, 118 लघु और 35 मध्यम परिचालन परिवार शामिल थे। यह अध्ययन प्रारंभिक और द्वितीयक ढांचे दोनों पर निर्भर था। डीआरजी अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष अध्ययन यह उल्लेख करता है कि आंध्र प्रदेश राज्य में कृषि संरचना अपनी खेती के अंतर्गत भूमि के बढ़ते हुए हिस्से के साथ लघु और सीमांत किसानों के अधिपत्य में हैं। उत्पादन तालाब और कुएं द्वारा सिंचाई के अंतर्गत खेती वाले क्षेत्र के बढ़े हिस्से के कारण अस्थिर रहा है, जो वर्षा पर निर्भर है। इस अध्ययन के सर्वेक्षण के निष्कर्षों के अनुसार वर्ष 2011-12 के दौरान राज्य में धान के उत्पाद की औसल लागत न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक थी। इस न्यूनतम समर्थन मूल्य में केवल भुगतान की गई लागतें [कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) द्वारा उपलब्ध कराए गए वर्गीकरण के अनुसार भुगतान की गई लागतों में किराए को छोड़कर सभी निर्धारित और परिवर्तनीय भुगतान वाली लागतें] शामिल हैं। इसके अतिरिक्त निष्कर्ष यह स्पष्ट करते हैं कि राज्य में क्षेत्र के निरपेक्ष खेती की लागतें बढ़ी हुई हैं। गैर-कृषि क्षेत्र में मज़दूरों की मांग में भारी बढ़ोतरी, महात्मा गांधी राष्ट्रीय और ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस) तथा मज़दूरों के पलायन से भी मज़दूरी लागतों में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है जिसके द्वारा खेती की लागत बढ़ी है। इस अध्ययन का दूसरा महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह दर्शाता है कि सीएसीपी की पद्धति के आधार पर उत्पादन की लागत को कम करके आंका गया है। इसके अलावा धान का बेहतर मूल्य प्राप्त करने के लिए किसानों को सुविधा देने की दृष्टि से अध्ययन ने यह प्रस्तावित किया है कि चयनित स्थानों में स्व-सहायता समूहों (जिन्हें आईकेपी समूह कहा जाता है) को सरकारी खरीद परिचालनों को सौंपते हुए राज्य द्वारा शुरू किए गए सरकारी खरीद नवोन्मेषण का प्रयोग संपूर्ण राज्य में किया जा सकता है। अपने निष्कर्ष में अध्ययन ने यह प्रस्तावित किया है कि किसानों को धान का उचित मूल्य प्राप्त करने के लिए राज्य को अतिरिक्त भंडारण सुविधाओं के निर्माण के साथ-साथ अतिरिक्त अनाज़ की आवाजाही के लिए अधिक रेलवे रैक आबंटित करने की ज़रूरत है। आर. आर. सिन्हा प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/483 |