मौद्रिक नीति 2013-14 की पहली तिमाही समीक्षा डॉ. डी.सुब्बाराव, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक का वक्तव्य - आरबीआई - Reserve Bank of India
मौद्रिक नीति 2013-14 की पहली तिमाही समीक्षा डॉ. डी.सुब्बाराव, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक का वक्तव्य
30 जुलाई 2013 मौद्रिक नीति 2013-14 की पहली तिमाही समीक्षा ''सबसे पहले रिज़र्व बैंक की और से मैं आप सभी का हार्दिक स्वागत करता हूं। इस सुबह हमने वर्ष 2013-14 के लिए मौद्रिक नीति की पहली तिमाही समीक्षा प्रस्तुत की। वर्तमान और संभावित समष्टि-आर्थिक स्थिति के आधार पर हमने यह निर्णय लिया है कि चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत नीति रिपो दर के साथ प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में कोई परिवर्तन नहीं किया जाए। तदनुसार, रिपो दर अनुसूचित बैंकों की निवल मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के 7.25 प्रतिशत, प्रत्यावर्तनीय रिपो दर 6.25 प्रतिशत और प्रारक्षित नकदी अनुपात 4.0 प्रतिशत पर बनी रहेगी। सीमांत स्थायी सुविधा दर रिपो दर की 100 आधार अंक अधिक पर बनी रहेगी। आपको स्मरण होगा कि इसके पूर्व इर महीने हमने सीमांत स्थायी सुविधा दर को 10.2 प्रतिशत तक बढ़ाते हुए इस निर्धारण को 300 आधार अंकों तक बढ़ाया था। अब चूंकि रिपो दर में कोई परिवर्तन नहीं है, सीमांत स्थायी सुविधा दर 10.25 प्रतिशत बनी हुई है। नीति प्रयास के पीछे की अवधारणा इस समीक्षा में नीति रूझान दो अवधारणों द्वारा प्रभावित है। पहला, बाह्य गतिविधियों खासकर वैश्विक वित्तीय बाज़ारों से उत्पन्न गतिविधियों से अर्थव्यवस्था के प्रति जोखिमों पर पूर्व सक्रियता से कार्रवाई करने के लिए निरंतर सतर्कता और तैयारी की ज़रूरत। दूसरा, वृद्धि में बढ़ते हुए प्रारंभिक जोखिमों तथा मुद्रास्फीति और मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं के प्रति लगातार बनी हुई जोखिमों द्वारा उत्पन्न शुरूआती जोखिमों का प्रबंध करना। मौद्रिक नीति रुझान तदनुसार हमारी मौद्रिक नीति की चार व्यापक सीमाएं इस प्रकार हैं:
मार्गदर्शन अब मैं अगले मार्गदर्शन का उल्लेख करूंगा जिसे हमने दिया है। पिछले दो वर्षों के दौरान मौद्रिक नीति रूझान व्यापक रूप से वृद्धि मुद्रास्फीति गतिशीलता द्वारा निरूपित हुआ है जबकि बाह्य क्षेत्र चिंताओं का पिछले एक वर्ष के दौरान नीति समायोजन पर वृद्धिगत प्रभाव पड़ा है। सुधरती हुई थोक मूल्य मुद्रास्फीति, मज़बूत मानसून के परिणामस्वरूप खाद्य मुद्रास्फीति में नरमी की संभावना है और कम होती हुई वृद्धि ने वर्तमान स्थित में कमी के रूझान को बनाए रखने के लिए एक समुचित मामला उपलब्ध कराया है। तथापि, भारत वर्तमान में एक पारंपरिक त्रिआयामी 'असंभावित त्रिक' में फंसा हुआ है जिसके द्वारा हमें बाह्य क्षेत्र चिंताओं का समाधान करने के लिए कुछ मौद्रिक नीति विवेकशीलता का त्याग करना पड़ा है। पिछले दो सप्ताहों के दौरान रिज़र्व बैंक द्वारा शुरू की गई चलनिधि की कड़ाई के उपायों का उद्देश्य विदेशी मुद्रा बाज़ार में अनुचित अस्थिरता को रोकना है। वे पुन: एक समायोजित तरीके से प्रत्यावर्तित होंगे क्योंकि विदेशी मुद्रा बाज़ार में स्थिरता लौट आई है जो मौद्रिक नीति मुद्रास्फीति पर निरंतर सतर्कता के साथ वृद्धि की सहायता करेगी। हमने यह ज़ोर डाला है कि अब उपलब्ध समय का उपयोग चालू खाता घाटे को धारणीय स्तरों पर लाने के लिए तत्परता के साथ संरचनात्मक उपायों को लागू करना चाहिए। रिज़र्व बैंक किसी प्रतिकूल गतिविधि के प्रति पूर्व-सक्रियता के साथ और तेज़ी से कार्रवाई करने के लिए अपने नियंत्रण में सभी उपलब्ध लिखतों और उपायों का उपयोग करने के लिए तैयार है। वैश्विक और घरेलू गतिविधयां सर्वदा की तरह हमारा नीति निर्णय वैश्विक और घरेलू समष्टि-आर्थिक स्थिति के एक विस्तृत और सतर्क आकलन पर आधारित रहा है। अब मैं वैश्विक संभावना के हमारे आकलन पर बात करना चाहूंगा। वैश्विक अर्थव्यवस्था वैश्विक वृद्धि प्रारंभ में की गई अपेक्षा के बदले असमान और मंद रही है। वैश्विक सुधारों से जुड़ी हुई जोखिमें वर्ष के प्रारंभिक भाग में कम हुई हैं लेकिन इस सुधार पर यूएस फेडरल द्वारा गुणात्मक कमी (क्यूई) को बंद किए जाने के 'घोषणा प्रभाव' के कारण वित्तीय बाज़ारों में उभरती हलचल द्वारा प्रभाव पड़ा है। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) में गतिविधि कमज़ोर हुई है। उभरती हुई और विकासशील अर्थव्यवस्थाएं (ईडीई) मंद हो रही हैं तथा व्यापक रूप से पूंजी की सुरक्षित सहज निकासी के कारण अपने वित्तीय बाज़ारों में बिकवाली का अनुभव भी कर रही हैं। यूई बंद होने की बाज़ार प्रत्याशाएं तथा अमरीका में वास्तविक ब्याज दरों में परिणामी वृद्धि ने अमरीकी डॉलर का तेज़ी से मूल्य बढ़ाया है तथा इसके परिणामस्वरूप उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं में मूल्यह्रास हुआ है। पण्य व्सतुओं की कीमतें सामान्यत: नरम हुई हैं लेकिन कच्चे तेल की कीमतें बढ़ी हुई हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था यहां घरेलू स्तर पर इस वर्ष की पहली तीमाही में आर्थिक गतिविधि कमज़ोर हुई है। अग्रणी संकेतक विनिर्माण और सेवा क्षेत्र गतिविधि द्वारा निरंतर सामना किए जाने वाले वातावरण का संकेत करते हैं। अप्रैल-मई के दौरान औद्योगिक उत्पादन 0.1 प्रतिशत पर शांत रहा है। मई में 1.6 प्रतिशत की निरपेक्ष कमी आई जो विद्युत उत्पादनों को छोड़कर सभी संघटक उप-क्षेत्रों में व्याप्त हो गई। पूंजीगत वस्तु उत्पादन लगातार कम हो रहा है जो खराब निवेश स्थितियों को दर्शाता है। भाग्यवश, मानसून समय पर पहुंचा है तथा वर्षा आज की तारीख में दीर्घावधि औसत से अधिक रही है। फलस्वरूप खरीफ की बुआई उल्लेखनीय रूप से एक वर्ष पूर्व की अपेक्षा अधिक हुई है। मई की नीति में रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2013-14 के लिए सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि का अनुमान 5.7 प्रतिशत लगाया था जो कृषि वृद्धि को अपनी प्रवृत्ति के स्तर पर लौटाने वाले सामान्य मानसून के अधीन था। तथापि, औद्योगिक गतिविधि की संभावना के दबे रहने की आशा की गई थी। सेवाओं और निर्यात में वृद्धि वैश्विक वृद्धि में उल्लेखनीय सुधार नहीं होने के कारण मंद रहने की आशा की गई थी। जबकि मानसून की शुरूआत और इसका विस्तार मज़बूत रहा है, औद्योगिक गतिविधि में जारी कमज़ोर वृद्धि के प्रति जोखिम बढ़े हुए हैं। इसके अतिरिक्त भारत के निर्यात, विनिर्माण और सेवाओं पर प्रतिकूल प्रभावों के परिणामस्वरूप वैश्विक वृद्धि उत्साहहीन रही है। उपर्युक्त अवधारणाओं के आधार पर वर्तमान वर्ष के लिए वृद्धि के अनुमान को गिरावट के साथ संशोधित करते हुए इसे 5.7 प्रतिशत से 5.5 प्रतिशत रखा गया है। मुद्रास्फीति अब मैं मुद्रास्फीति की ओर लौटूंगा। थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति (डब्ल्यूपीआई) द्वारा मापित हेडलाईन मुद्रास्फीति 5 महीनों तक गिरावट के बाद जून में थोड़ा बढ़कर 4.9 प्रतिशत हुई है। यह तेज़ी मुख्यत: खाद्य मुद्रास्फीति खासकर सब्जियों और अनाजों से संबंधित तेज़ी द्वारा संचालित हुई है। ईंधन मुद्रास्फीति में मार्च में कोयला की कीमतों में कमी और आधार प्रभावों के कारण विद्युत की कीमतों में मुद्रास्फीति में कमी के कारण गिरावट हुई है। गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति जून में गिरकर 2.0 प्रतिशत हुई है जो दिसंबर 2009 के बाद सबसे न्यूनतम है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) की नई श्रृंखलाओं द्वारा यथामापित खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल-मई के दौरान कुछ नरम हुई है लेकिन प्रारंभिक रूप से खाद्य कीमतों में तेज़ बढ़ोतरी के द्वारा संचालित होकर जून में दुहरे अंकों तक पहुंच गई है। मई की नीति में रिज़र्व बैंक ने उल्लेख किया था कि वर्तमान वर्ष के दौरान थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति मुख्य रूप से आधार प्रभावों पर पहली छमाही में थोड़ी कमी तथा दूसरी छमाही में हल्की बढ़ोतरी के साथ लगभग 5.5 प्रतिशत तक सीमाबद्ध रहेगी। इस वर्ष की पहली तिमाही में मुद्रास्फीति पथ इन प्रत्याशाओं के व्यापक रूप से अनुरूप रही है। घरेलू मांग आपूर्ति संतुलन को ध्यान में रखते हुए वैश्विक पण्य वस्तु कीमतों की संभावना तथा इस प्रत्याशा पर की इस मौसम के बचे हुए भाग के दौरान मानसून का छिटपुट और स्थानिक वितरण सामान्य रहेगा, रिज़र्व बैंक अपने नियंत्रण में सभी लिखतों का उपयोग करते हुए मार्च 2014 में मुद्रास्फीति की बढ़ोतरी को 5.0 प्रतिशत के स्तर पर बनाए रखने का प्रयास करेगा। मौद्रिक और चलनिधि स्थितियां अब मैं मौद्रिक और चलनिधि स्थितियों पर बात करूंगा। मुद्रा आपूर्ति (एम3) 12 जुलाई को वर्ष-दर-वर्ष 12.8 प्रतिशत थी जो सांकेतिक पथ 13.0 प्रतिशत के नज़दीक थी। दूसरी ओर 14.3 प्रतिशत पर गेर-खाद्य ऋण वृद्धि सभी प्रमुख क्षेत्रों में व्याप्त मंदी के साथ 15.0 प्रतिशत के सांकेतिक अनुमान की अपेक्षा न्यूनतर थी। मई की नीति में परिकल्पित उसी स्तर पर व्यापक रूप से कायम सामान्य वृद्धि के साथ मौद्रिक सकल राशियों को अनुमानित पथ की ओर जाने की आशा थी। तदनुसार वर्तमान वर्ष के लिए एम3 वृद्धि अनुमान 13.0 प्रतिशत और सकल जमा वृद्धि 14.0 प्रतिशत पर रखा गया है। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) का गैर-खाद्य ऋण 15.0 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है। सर्वदा की तरह ये संख्याएं सांकेतिक अनुमान हैं, लक्ष्य नहीं। मई की नीति के बाद चलनिधि स्थितियों में व्यापक कमी आई है। चलनिधि समायोजन सुविधा (एएलएफ) के अंतर्गत आवश्यक दैनिक निवल चलनिधि प्रक्षेपण वर्ष 2012-13 की अंतिम तिमाही के दौरान ₹ 1,078 बिलियन से घटकर इस वर्ष की पहली तिमाही में ₹ 828 बिलियन रह गया है। सरकारी शेष 28 जून से घाटे में रहे हैं और उन्होंने चलनिधि को सुविधा दी है जिसके द्वारा चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत निधियों की मांग में उल्लेखनीय कमी आई है। चलनिधि समायोजन सुविधा से निवल आहरण में जुलाई के प्रभम सप्ताह के दौरान उल्लेखनीय गिरावट हुई है। 26 जुलाई को सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) से ₹ 229 बिलियन आहरण सहित निवल आहरण ₹ 558 बिलियन था। जोखिम कारक अब तक मैंने आपको वैश्विक और घरेलू समष्टि-आर्थिक स्थिति के रिज़र्व बैंक का आकलन और वर्तमान वर्ष के लिए हमारा अनुमान प्रस्तुत किया है। अब मैं संक्षिप्त रूप से उन जोखिमों का उल्लेख करूंगा जो समष्टि-आर्थिक संभावना के लिए है।
हमारी समष्टि-आर्थिक चिंताओं का सारांश प्रस्तुत करते हुए मैं अपनी बात समाप्त करना चाहता हूं। मानसून के मज़बूत प्रारंभ और विस्तार के होते हुए भी वृद्धि के प्रति जोखिमें बढ़ी हैं। औद्योगिक उत्पादन घटती हुई आदेश पुस्तिकाओं तथा रुपया अवमूल्यन पर निर्मित ईनपुट कीमत दबावों के अग्रणी संकेतकों के साथ मंद हुआ है। इस बीच चिंताजनक वैश्विक स्थितियां निर्यात निष्पादन की उपेक्षा कर रही हैं जबकि पूंजी प्रवाहों में बढ़ी हुई अस्थिरता ने बाह्य निधि सहायता जोखिमों को बढ़ाया है। थोक मूल्य मुद्रास्फीति दबाव घट रहे हैं लेकिन खुदरा मुद्रास्फीति उच्च बनी हुई है। आगे जाकर मौद्रिक नीति का स्वरूप वृद्धि की सहायता, मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को व्यवस्थित करने और बाह्य क्षेत्र स्थिरता को बनाए रखने की अवधारणाओं के द्वारा निर्धारित होगा। विदेशी मुद्रा बाज़ार मई की शुरूआत से गंभीर तनाव में रहा जिससे रिज़र्व बैंक को तत्परता के साथ अस्थिरता को रोकने के लिए चलनिधि की कड़ाई के उपायों को लागू करना पड़ा है। विदेशी मुद्रा बाज़ार में स्थिरता वापस लाने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा हाल के प्रयासों का उपयोग चालू खाता घाटे को धारणीय स्तरों तक लाने के लिए नीतियां लागू करने हेतु अवसर के एक विंडो के रूप में किया जाए। पिछले एक वर्ष के दौरान सरकार ने निवेश वातारण में सुधार के लिए कई नीति प्रयास किए है। चूंकि ये प्रयास प्रणाली के माध्यम से कार्य करते हैं और वे पुन: निर्मित किए जाते हैं, वर्तमान मंदी को एक उच्चतर वृद्धिपथ की ओर अर्थव्यवस्था को वापस लाते हुए प्रत्यावर्तित किया जा सकता है। रिज़र्व बैंक को यह सुनिश्चित करना होगा कि मूल्य स्थिरता और वित्तीय स्थिरता के वातावरण में उच्चतर वृद्धिपथ की ओर अर्थव्यवस्था गतिशील रहे। ध्यान से सूनने के लिए आपको धन्यवाद।'' अल्पना किल्लावाला प्रेस प्रकाशनी : 2013-2014/205 |