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वर्ष 2008-09 के लिए मौद्रिक नीति पर वार्षिक वक्तव्य की पहली तिमाही समीक्षा

29 जुलाई 2008
29 जुलाई 2008

वर्ष 2008-09 के लिए मौद्रिक नीति पर
वार्षिक वक्तव्य की पहली तिमाही समीक्षा

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2008-09 के लिए मौद्रिक नीति पर वार्षिक वक्तव्य की पहली तिमाही समीक्षा आज प्रस्तुत की।

मुख्य-मुख्य बातें

  • बैंक दर में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।
  • चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो दर में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।
  • रिपो दर में 50 आधार बिन्दुओं तक की बढ़ोतरी करते हुए इसे 8.5 प्रतिशत से 9.00 प्रतिशत किया गया है।
  • आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को 25 आधार बिंदुओं तक बढ़ाते हुए इसे 30 अगस्त 2008 से प्रारंभ होनेवाले पखवाड़े से 9.0 प्रतिशत किया जाएगा।
  • घरेलू और बाह्य आघातों को छोड़कर वर्ष 2008-09 के लिए सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि (जीडीपी) अनुमान को संशोधित करते हुए इसे 8.0 - 8.5 प्रतिशत की सीमा से लगभग 8.0 प्रतिशत किया गया है।
  • जबकि नीति कार्रवाईयों का लक्ष्य मुद्रास्फीति के वर्तमान असहनीय स्तर को यथाशीघ्र 5.0 प्रतिशत के नीचे के सहनीय स्तर तथा मध्यावधि के दौरान इसे लगभग 3.0 प्रतिशत तक लाना है, इस समय एक वास्तविक नीति प्रयास यह होगा कि मुद्रास्फीति के लगभग 11.0 - 12.0 के वर्तमान स्तर से इसे 31 मार्च 2009 तक 7.0 प्रतिशत के निकट के एक स्तर तक नीचे लाया जाए।
  • जबकि मुद्रा आपूर्ति और जमावृद्धि में कुछ सुधार के संकेत पहले से मिल रहे हैं, निरंतर निगरानी और समुचित तथा सामयिक नीति प्रतिक्रियाओं की आवश्यकता को देखते हुए सांकेतिक अनुमानों के ऊपर उनका विस्तार जारी रहेगा।
  • वैश्विक बाज़ारों में बढ़ी हुई अनिश्चितता के विकसित वातावरण तथा घरेलू बाज़ारों में संभावित पिछले जमा स्टॉक के खतरों की दृष्टि से चलनिधि प्रबंध को आगे आनेवाली अवधि के दौरान नीति उद्देश्य के पदानुक्रम में प्राथमिकता प्राप्त करने के लिए जारी रखा जाएगा।

  • अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में होनेवाली किसी प्रतिकूल एवं अप्रत्याशित गतिविधि को छोड़कर और यह मानते हुए कि पूँजी प्रवाह का प्रभावी प्रबंधन होगा तथा वृद्धि एवं मुद्रास्फीति के लिए संभावनाओं सहित अर्थव्यवस्था के वर्तमान आकलन को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2008-09 में मौद्रिक नीति का समग्र रूझान व्यापक रूप से इस प्रकार जारी रहेगा:
    • ऐसा मौद्रिक एवं ब्याज दर माहौल सुनिश्चित करना जो मूल्य स्थिरता को उच्च प्राथमिकता दे, सुनियंत्रित मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं तथा वृद्धि की रफ्तार को बनाए रखते हुए वित्तीय बाज़ार में सुव्यवस्थित स्थितियाँ जारी रखे।
    • विकसित होते हुए प्रतिकूल अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों के समूह तथा मुद्रास्फीति संबंधी प्रत्याशाओं, वित्तीय स्थिरता एवं वृद्धि की रफ्तार संबंधी घरेलू परिस्थितियों से उभर रही चुनौतियों का पारंपरिक और अपारंपरिक उपायों के साथ यथोचित रूप से निरंतर आधार पर तुंत निपटना।
    • वित्तीय समावेशन का अनुपालन करते हुए विशेषत: रोजगार-व्यापक क्षेत्रों में ऋण गुणवत्ता के साथ-साथ ऋण वितरण पर जोर देना।

ब्यौरे

डॉ. वाई.वेणुगोपाल रेड्डी, गवर्नर ने आज वर्ष 2008-09 के लिए मौद्रिक नीति पर वार्षिक वक्तव्य की प्रथम तिमाही की समीक्षा प्रस्तुत की। समीक्षा के तीन भाग हैं: भाग I में समष्टि और मौद्रिक गतिविधियों का मूल्यांकन; II मौद्रिक नीति का रूझान; और III मौद्रिक उपाय।

घरेलू विकास

  • केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ ) ने अपने मई 2008 के अनुमानों में वर्ष 2007-08 के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद को फरवरी 2008 में जारी 8.7 प्रतिशत के अग्रिम अनुमानों को बढ़ाकर 9.0 प्रतिशत कर दिया।
  • वर्ष दर वर्ष आधार पर थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में घट-बढ़ के आधार पर नापी जानेवाली मुद्रास्फीति मार्चांत 2008 के 7.75 प्रतिशत से और एक वर्ष पहले की 4.76 प्रतिशत से बढ़कर 11.89 प्रतिशत हो गई।
  • वर्ष दर वर्ष के आधार पर जून 2008 में कृषि श्रमिकों और ग्रामीण श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) एक वर्ष पहले के 7.8 प्रतिशत और 7.5 प्रतिशत से बढ़कर क्रमशः 8.8 प्रतिशत और 8.7 प्रतिशत हो गया।
  • मई 2008 में औद्योगिक कामगारों और शहरी नॉन-मौनुअल कर्मचारियों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित वर्ष दर वर्ष मुद्राफीति एक वर्ष पहले की 6.6 प्रतिशत ऐर 6.8 प्रतिशत की तुलना में क्रमशः 7.8 प्रतिशत और 6.8 प्रतिशत रही।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति मापकों में जनवरी 2008 के अपने स्तर से 2.0-3.2 प्रतिशत के परास में वृद्धि हुई।
  • कच्चे तेल की भारतीय बास्केट का मूल्य मार्च 2008 के 99.4 अमरिकी डालर प्रति बैरल से बढ़कर जून 2008 में 129.8 अमरीकी डॉलर और आगे, 25 जुलाई 2008 को गिरकर 121.9 अमरिकी डॉलर हो जाने से पहले 3 जुलाई 2008 को 141.5 अमिरीकी डॉलर हो गया।
  • वर्ष दर वर्ष आधार पर 4 जुलाई 2008 को मुद्रा आपूर्ति (एम3) में 20.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो एक वर्ष पहले का तुलना में 21.8 प्रतिशत से कम थी।
  • 4 जुलाई 2008 तक अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (एससीबी) की कुल जमाराशियों में वर्ष दर वर्ष की 21.7 प्रतिशत (5,89,646 करोड़ रुपए) की वृद्धि एक वर्ष पहले की 24.6 प्रतिशत (5,36,617 करोड़ रुपए) की तुलना में कम थी।
  • 4 जुलाई 2008 तक अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (एससीबी) के खाद्येतर ऋण में 25.9 प्रतिशत (4,85,709 करोड़ रुपए) की वृद्धि हुई जो एक वर्ष पहले के 24.6 प्रतिशत (3,69,109 करोड़ रुपए) की तुलना में कम थी।
  • 25 जुलाई 2008 तक सार्वजनिक क्षेत्र की तेल बचने वाली कंपनियों को विशेष बिक्री परिचालन (एसएमओ) के अंतर्गत खरीदे गए ऑइल बाण्डों की जमानत पर 4.3 बिलियन अमरीकी डॉलर (19,325 करोड़ रुपए) प्रदान किए गए।
  • एलएएफ, एमएसएस के अंतर्गत शेषों और केंद्र सरकार के नकदी शेषों दोनों को मिलाकर, में दर्शाई गई चलनिधि की कुल अधिकता अप्रैल 2008 के 2,42,370 करोड़ रुपए की औसत से कम होकर मई 2008 में 2,12,201 करोड़ रुपए और 25 जुलाई 2008 को कम होकर 1,45,200 करोड़ रुपए होने से पहले जून 2008 को 1,93,726 करोड़ रुपए (8 अप्रैल 2008 को 2,93,048 करोड़ रुपए के साथ वर्ष के अंदर सर्वोच्च) रही।

  • चलनिधि स्थितियों में आए बदलाव को वित्तीय बाज़ारों ने 2008-09 की पहली तिमाही में दर्शाया।
  • चालू वित्त वर्ष में अब तक प्राथमिक तथा द्वितीयक दोनों ही खण्डों में सरकारी प्रतिभूति बाज़ार के प्रतिलाभ में पर्याप्त वृद्धि हुई।
  • चालू वित्त वर्ष में अब तक प्राथमिक तथा द्वितीयक दोनों ही खण्डों में ईक्विटी बज़ार में बड़ी गिरावट आई है। जनवरी 2008 के शुरू से छाई यह मंदी बरकार है।
  • 2008-09 के पहले 4 महीनों (25 जुलाई तक) में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की जमा दर, विशेषत: दीर्घावधि की परिपक्वता वाली, में वृद्धि हुई।
  • वाणिज्य बैंकों की सरकारी तथा अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों की धारिता बैंकिंग प्रणाली की निवल माँग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) का 27.7 प्रतिशत थीं। ये पिछले वर्ष 28.7 प्रतिशत की तुलना में मार्च 2008 की समाप्ति पर आंशिक रूप से कम होकर 27.8 प्रतिशत के स्तर पर रहीं।
  • 2008-09 में अब तक (25 जुलाई 2008 तक) दिनांकित प्रतिभूतियों के माध्यम से लिया गया केंद्र सरकार का सकल बाज़ार उधार 72,000 करोड़ रुपए (पिछले वर्ष 73,000 करोड़ रुपए) था। यह बज़ट अनुमान का 41.0 प्रतिशत था, जबकि निवल बाज़ार उधार 47,982 करोड़ रुपए (पिछले वर्ष 45,232 करोड़ रुपए) था। यह बज़ट अनुमान का 48.5 प्रतिशत था।

बाह्वा गतिविधियाँ

  • वाणिज्यिक आसूचना और अंक संकलन महानिदेशालय (डीजीसीआईएण्डएस) द्वारा जारी सूचना से यह संकेत मिलता है कि वर्तमान वित्तीय वर्ष के पहले दो महीनों के दौरान अमरीकी डॉलर में निर्यात में 21.7 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है जो पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में 24.2 प्रतिशत थी। पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में 37.9 प्रतिशत की तुलना में आयात में 31.8 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है।
  • जबकि गैर-पेट्रोलियम, तेल और चिकनाई के पदार्थों (पीओएल) का आयात एक वर्ष पूर्व के 43.8 प्रतिशत से सुधरकर 24.6 प्रतिशत हो गया है, पेट्रोलियम, तेल और चिकनाई के पदार्थों (पीओएल) का आयात गत वर्ष की तदनुरूपी अवधि में 25.7 प्रतिशत की तुलना में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के कारण 48.6 प्रतिशत तक बढ़ा है। परिणामत: पण्य वस्तु व्यापार घाटा पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के 13.9 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर अप्रैल-मई 2008 के दौरान 20.7 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया है।
  • विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधि आंशिक रूप से वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान अब तक 2.6 बिलियन तक कम हुई है और यह 18 जुलाई 2008 को 307.1 बिलियन अमरीकी डॉलर पर थी।
  • वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान 25 जुलाई 2008 तक रुपए का अवमूल्यन अमरीकी डॉलर के बदले 5.4 प्रतिशत, यूरो के बदले 5.0 प्रतिशत, पाउण्ड स्टर्लिंग के बदले 5.2 प्रतिशत और जापानी येन के बदले 1.3 प्रतिशत तक हुआ है।

वैश्विक गतिविधियाँ

  • जुलाई 2008 में जारी अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (आइएमएफ) की विश्व आर्थिक संभावना (डब्ल्यूईओ) की अद्यतन स्थिति के अनुसार क्रय शक्ति समानता आधार पर वैश्विक वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि में वर्ष 2007 में 5.0 प्रतिशत से वर्ष 2008 में 4.1 प्रतिशत (अप्रैल 2008 में डब्ल्यूईओ में 3.7 प्रतिशत) तक तथा पुन: वर्ष 2009 में 3.9 प्रतिशत (अप्रैल 2008 में डब्ल्यूईओ में 3.8 प्रतिशत) तक कमी की आशा है।
  • हाल के महीनों में मुद्रा स्फीति वैश्विक अद्भुत घटना के रूप में नजर आयी। मुद्रा स्फीति के दबाव मे उभरती बाजार अर्थव्यवस्था वाले देशों यथा एशिया, लैटिन अमेरिका तथा अफ्रिका के लिए गहरी चिंता बढ़ायी है इसकी वजह, मुख्यतः खाद्य , इंघन तथा पण्यगत बाजार की आपूर्ति-मांग में असंतुलन रहा।
  • कच्चे तेल की कीमत में जुलाई 2007 से पलटाव आया जो कि एक वर्ष पूर्व रहे अपने स्तर से 25 जुलाई 2008 को 60.00 की वृद्धि हुई। वर्ष 2008 की प्रथम छमाही के दौरान विश्व तेल बाजार में विशेष रूप से तेजी रही तथा पेट्रोलियम निर्यातक देशों के गैर संगठनों के बीच वैश्विक तेल खपत में वर्ष प्रति वर्ष की वृद्धि 1 मिलियन बैरल प्रतिदिन के हिसाब से हुई।
  • अमेरिका में जोरदार तरीके से लंबे समय तक रही आर्थिक मंदी की वजह से वैश्विक वित्तीय बाजार के रुझान पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। हाल में देखे गए उपभोक्ता रुझान, टिकाऊ वस्तुओं के आर्डर, उपभोक्ता व्यय तथा तेल की कीमतों की वजह से इसमें थोड़ी कमी आयी है। परंतु इसके अतिरिक्त, कर्ज अप्राप्तियों में बढ़ोत्तरी की वजह से वित्तीय क्षेत्र को होने वाले घाटों में और वृद्धि हुई।
  • केंद्रीय बैंकों ने वित्तीय बाजार में चलनिधि स्थिति पर नजर रखने के लिए मिल जुलकर कार्य किया और नियमित रूप से आपस में मशवरा करते रहे।
  • वृद्धि में कमी एवं मुद्रा स्फीति में बढ़ोत्तरी के साथ वित्तीय संवेदनशीलता के मेल ने पूरे विश्व में मौद्रिक प्राधिकारियों के कार्य को जटिल बना दिया और भविष्य में नीति निर्देशों के गठन को अनिश्च त बना दिया।
  • कुछ केंद्रीय बैंकों यथा ईसीबी, रिज़र्व बैंक आफ आस्ट्रेलिया, बैंक इंडोनेशिया, बैंक आफ थाइलैंड, दी बैंकों सेंट्रल दी चील, बैंकों सेंट्रल दो ब्राज़िल तथा बैंकों दी मैक्सिको ने हाल के महीनों में अपनी नीतिगत दरों में कड़ाई लायी है।

समग्र मूल्यांकन

  • घरेलू रूप से औसत मांग दबाव ठीक-ठाक दिखायी देता रहा परंतु आपूर्ति में कमी की वजह से इसमें कठोरता लायी गयी।
  • वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान मुद्रा स्फीति में आए उछाल के लिए निम्नलिखित कारण रहे कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों को 05 जून 2008 से घरेलू कीमतों पर लागू किया जाना; कच्चे तेल की कीमतों के अलावा मुद्रा स्फीति दबाव; प्रमुख वस्तुओं की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में हलचल रही जिसकी वजह से बहुत सी वस्तुओं की घरेलू कीमतों में जटिलता के साथ बढ़ोत्तरी परिलक्षित रही।
  • मौद्रिक उपायों के परिप्रेक्ष्य में प्रमुख मौद्रिक एवं बैंकिंग समूह में संयम के संकेत नजर आए जिसकी वजह से सिस्टम से चलनिधि खींच ली गयी और ब्याज दरों की संरचना शर्तों में एक समान कड़ाई लायी गयी।
  • वर्ष 2008-09 की वक्र रेखा के सामंजस्य में जून से मुद्रा आपूर्ति तथा जमावृद्धि दर संयमित रही।
  • तथापि, मौद्रिक एवं चलनिधि स्थिति संतुलन ने बैंक ऋण मांग को प्रभावित नहीं किया क्योंकि वह वर्ष - दर - वर्ष आधार पर तेज होती रही।
  • अप्रैल 2008 के वार्षिक नीति वक्तव्य के बाद से वैश्विक आर्थिक प्रत्याशाओं की उतरती जोखिम में तीव्रता दिखाई दी जो आवास और श्रम बाजार अत्यधिक कमज़ोर होने के कारण अमेरिका से होकर अन्य विभिन्न विकसित अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि की गति धीमी हुई।

  • ग्राहक और कारोबारी भाव में क्षरण और इस संकेत के साथ वित्तीय स्थितियों के और कठोर होने से कि सामान्यतः प्रमुख वित्तीय केंद्रों में वित्तीय अशांति गहरा जाने से समष्टि आर्थिक दृष्टिकोण की स्थिति और खराब हो गई है।
  • विकसित अर्थव्यवस्थाओं की मंदी का प्रभाव उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं पर नहीं हो सकता लेकिन इससे परिस्थितियों पर विपरीत असर अवश्य पड़ा है लेकिन देशी मांग विशेषकर, निवेश की ताकत के चलते यह सीमित रहा है और उपभोग व्यय स्थिर रहा है।
  • तथापि, विकसित अर्थव्यवस्थाओं में आयात मांग घटने से इन अर्थव्यवस्थाओं के लिए विकल्प की संभावनाओं के लिए जोखिम पैदा हुआ है।
  • वैश्विक संभावनाओं के लिए मुद्रास्फीति सबसे बड़े जोखिम के रूप में उभरी है और पूरे विश्व में बहुत ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है और ऐसे स्तर सामान्यतः कई दशकों से दिखाई तक नहीं दिए हैं।
  • एक जैसी विकसित और उभरती अर्थव्यवस्थाएं मुद्रास्फीति की बहुवर्षीय ऊंचाइयां सूचित कर रही हैं जो अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ती चिंताओं के बीच मुख्यतः बढ़ते लक्ष्य मूल्यों विशेषकर ऊर्जा खाद्यान्न और धातुओं के मूल्यों में वृद्धि से संचालित हैं और ऊर्जा के मूल्य दूसरे-दौर के प्रभावों के माध्यम से एक और भी सामन्यीकृत मुद्रास्फीति प्रारंभ कर रहे हैं।
  • वैश्विक वित्तीय प्रणाली में ऐसा लगता है कि जहां वैश्विक वित्त में संभावित समस्या का निवारण किया गया है वहीं अग्रणी वित्तीय केंद्रों में अनेक जोखिम प्रवणताएं बनी हुई हैं जो संभावनाओं के अनिश्चितता स्वरूप को बढ़ा रही हैं।
  • इस संदर्भ में केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप भी असाधारण हैं और उस दर्जे के हैं जो भारी मंदी के समय भी नहीं देखे गए हैं जो वित्तीय स्थिरता के लिए खतरों के प्रति निर्णायात्मक कार्रवाई करने के संकल्प दर्शाते हैं।
  • कुछ विकसित देशों में चल रही वित्तीय खलबली के संदर्भ में वित्तीय स्थिरता के लिए सापेक्षतः अत्यधिक बढ़ रही चिंताओं से मुद्रास्फीति के प्रति नीतिगत प्रतिक्रिया बाधित हुई है।
  • समग्र आकलन में, अप्रैल 2008 के वार्षिक नीति वक्तव्य के समय वैश्विक अर्थव्यवस्था के ऊपर लटक रही अनेक जोखिमें या तो दूर हो गई हैं या फिर भारत सहित प्रत्येक राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए निहितार्थों के साथ गहरा गई हैं जिसकी वजह से अत्यंत निगरानी और इन गतिविधियों से निपटने के लिए की गई तैयारी की दबाव झेल सकने की क्षमता का परीक्षण आवश्यक है।

2008-09 की शेष अवधि के लिए मौद्रिक नीति का वक्तव्य

  • सकल माँग प्रबंध और आपूर्ति संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए 1008-09 में भारतीय अर्थव्यवस्था के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का अनुमान जो अप्रैल 2008 के वार्षिक नीति वक्तव्य में 8.0 से 8.5 प्रतिशत के बीच लगाया गया था, यह आशावादी सिद्ध हो सकता है और इसलिए नीतिगत प्रयोजनों हेतु घरेलू या बाह्य आघातों को छोड़कर, इस समय लगभग 8.0 प्रतिशत के अनुमान का केंद्रीय परिदृश्य अधिक वास्तविक प्रतीत होता है।

  • हालाँकि नीतिगत कार्रवाइयों का लक्ष्य होगा कि जितनी जल्द हो सके मुद्रास्फीति के मौजूदा असहनीय स्तर को 5.0 प्रतिशत से नीचे के सहनीय स्तर तक लाया जाए और मध्यावधि में लगभग 3.0 प्रतिशत के आस-पास रखा जाए। लेकिन इस समय वास्तविक नीतिगत प्रयास यह होगा कि मुद्रास्फीति को लगभग 11.00 - 12.0 प्रतिशत के मौजूदा स्तर से घटाकर 31 मार्च 2009 तक 7.0 प्रतिशत के पास लाया जाए।

  • यह आवश्यक है कि मौद्रिक प्रसार को कम किया जाए तथा वृद्धि तथा मुद्रास्फीति की संभावनाओं के अनुरूप 2008-09 में मुद्रा आपूर्ति की वृद्धि का दायरा 17.0 प्रतिशत के आसपास रखा जाए ताकि आगे आने वाली अवधि में समष्टि आर्थिक तथा वित्तीय स्थायित्व सुनिश्चित किया जा सके।
  • मुद्रा आपूर्ति के अनुमानों के अनुरूप 2008-09 में सकल जमाराशियों में 17.5 प्रतिशत या 6,00,000 करोड़ रु. के आसपास की बढ़त का अनुमान है।
  • जैसा कि वार्षिक नीति वक्तव्य में उल्लेख किया गया था उसके तथा मौद्रिक अनुमानों के अनुरूप 2008-09 में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों तथा निजी क्षेत्र के बांडों /डिबेंचरों / शेयरों तथा वाणिज्यि पत्रों में निवेश सहित खाद्येतर ऋण में 20 प्रतिशत के आसपास बढ़त होने का अनुमान है।
  • चरम पर पहुंचे अनिश्चितता भरे माहौल, वैश्विक बाजारों में उथल-पुथल तथा घरेलू ईक्विटी एवं मुद्रा बाजार में आने वाली संभाव्य चुनौतियों के खतरों के मद्देनज़र आगे आने वाले समय में भी नीतिगत उद्देश्यों के पदानुक्रम में चलनिधि के प्रबंधन को प्राथमिकता मिलती रहेगी।
  • पूंजीगत लेखा प्रबंधन के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के पास लिखत विनियोजन हेतु लोच, सरीखी गुंजाइश है। विवेकसम्मत विनियम तथा लिखत इसमें सहायता करते हैं।
  • 2008-09 में अब तक कुछ बैंकों ने प्रणालीगत स्तर वृद्धि की तुलना में ऋण की मात्रा में तीव्र विस्तार किया है जिससे उनका ऋण-जमा अनुपात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। ऐसे बैंकों से अनुरोध किया गया है कि वे अपनी कारोबारी नीतियों की समीक्षा करें ताकि वे इस स्थिति में आ सकें जिससे उनके दीर्घावधि व्यवहार्य वित्तपोषण का मेल परिचालनों की लाभप्रदता, कारोबारी चक्रों की वास्तविकता की पहचान तथा प्रतिचक्रीय मौद्रिक नीति प्रतिसादों के साथ हो सके।
  • यदि आवश्यक हुआ तो रिज़र्व बैंक उन ऐसे चुनिंदा बैंकों की पर्यवेक्षी समीक्षा करने पर विचार कर सकता है जिन्हें उनकी निधियों की तुलना में अपने ऋण संविभाग हेतु विस्तार प्रदान किया गया था।
  • बैंकों को क्षेत्रवार आधार पर कठोर ऋण मूल्यांकन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, मूल्य अनुपात के प्रति ऋण निगरानी करनी चाहिए तथा सामान्यतः अवांछनीय रूप से आस्ति-देयता असंतुलन का सामना किए बिना सुदृढ़ ऋण संविभाग सुनिश्चित करना चाहिए।
  • बजट से इतर बढ़ती हुई देयताओं तथा सब्सिडी पर बढ़ता व्यय, ऋण माफी एवं शेष बचे वर्ष के वेतन व्यय के मद्देनज़र राजकोषीय गतिविधियों पर सजग तथा सावधानीपूर्वक निगरानी रखने की आवश्यकता है।
  • मौद्रिक नीति की सबसे पहली प्राथमिकता यह है कि मुद्रास्फीतिय दबावों की सघनता को आगे बढ़ने से रोका जाए तथा मुद्रास्फीतिय प्रत्याशाओं को विराम दिया जाए।
  • जैसा कि अप्रैल 2008 के वार्षिक नीति वक्तव्य में उल्लेख किया गया था उसी के अनुसार आज की स्थिति में यह बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है कि मौद्रिक प्रत्याशाओं में यदि किसी तरह की प्रतिकूल गतिविधि होती है तो उसे दूर करने के लिए निर्णयात्मक तथा प्रभावी रुप से अनवरत आधार पर दृढ़निश्चय के साथ काम किया जाए।
  • उपर्युक्त अभूतपूर्व अनिश्चिातताओं तथा उहापाहे की स्थिति के मद्देनज़र यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि नीतिगत कार्रवाईयों के समय तथा महत्व के बारे में जागरूक निर्णय लिए जाएं। आवश्यकता इस बात की है कि अनवरत रूप से मिलने वाली सूचना से ये निर्णय परिपुर्ण हों तथा उनका लाभ लिया जाए।

  • आवश्यकतानुसार रिज़र्व बैंक बाज़ार स्थिरीकरण योजना एवं चलनिधि समायोजन सुविधा समेत आरक्षित नकदी निधि अनुपात निर्धारणों एवं खुला बाज़ार परिचालनों (ओएमओ) सहित इसके पास जितने भी नीतिगत लिखत उपलब्ध हैं उनका उपयोग करते हुए चलनिधि की सक्रिय माँग प्रबंधन करने की अपनी नीति बरकरार रखेगा।
  • अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में होनेवाली किसी प्रतिकूल एवं अप्रत्याशित गतिविधि को छोड़कर और यह मानते हुए कि पूँजी प्रवाह का प्रभावी प्रबंधन होगा तथा वृद्धि एवं मुद्रास्फीति के लिए संभावनाओं सहित अर्थव्यवस्था के वर्तमान आकलन को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2008-09 में मौद्रिक नीति का समग्र रूझान व्यापक रूप से इस प्रकार जारी रहेगा:
    • ऐसा मौद्रिक एवं ब्याज दर माहौल सुनिश्चित करना जो मूल्य स्थिरता को उच्च प्राथमिकता दे, सुनियंत्रित मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं तथा वृद्धि की रफ्तार को बनाए रखते हुए वित्तीय बाज़ार में सुव्यवस्थित स्थितियाँ जारी रखे।
    • विकसित होते हुए प्रतिकूल अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों के समूह तथा मुद्रास्फीति संबंधी प्रत्याशाओं, वित्तीय स्थिरता एवं वृद्धि की रफ्तार संबंधी घरेलू परिस्थितियों से उभर रही चुनौतियों का पारंपरिक और अपारंपरिक उपायों के साथ यथोचित रूप से निरंतर आधार पर तुंत निपटना।
    • वित्तीय समावेशन का अनुपालन करते हुए विशेषत: रोजगार-व्यापक क्षेत्रों में ऋण गुणवत्ता के साथ-साथ ऋण वितरण पर जोर देना।

मौद्रिक उपाय

  • बैंक दर को 6.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया।
  • चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो दर को 6.00 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया है।
  • चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत निर्धारित रिपो दर को तत्काल प्रभाव से 50 आधार बिंदु से बढ़ाते हुए 8.5 प्रतिशत से 9.0 प्रतिशत किया गया।
  • रिज़र्व बैंक के पास बाजार परिस्थितियों तथा संबंधित कारकों को देखते हुए चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत ओवर-नाइट अथवा दीर्घावधि रिपो/प्रत्यावर्तनीय रिपो प्रस्तावित करने का विकल्प होगा। रिज़र्व बैंक चलनिधि समायोजन सुविधा के तहत निविदा (निविदाओं) को, पूरे या आंशिक रूप से, जैसा उपयुक्त समझा जाए, स्वीकार करने या अस्वीकार करने सहित ऐसे लचीलेपन का प्रयोग जारी रखेगा ताकि दैनिक चलनिधि प्रबंध में चलनिधि समायोजन सुविधा का सक्षम उपयोग किया जा सके।
  • वर्तमान चलनिधि परिस्थिति की समीक्षा करने पर यह वांछनीय है कि 30 अगस्त 2008 को प्रारंभ होनेवाले पखवाड़े से आरक्षित नकदी निधि अनुपात में 25 आधार बिन्दुओं तक वृद्धि करते हुए उसे 9.0 प्रतिशत किया जाए।

जी. रघुराज
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2008-2009/122

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