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गवर्नर का वक्तव्य

6 अप्रैल 2023

गवर्नर का वक्तव्य

वर्ष 2023 की शुरुआत एक नई आशा के साथ हुई क्योंकि आपूर्ति की स्थिति में सुधार हो रहा था, आर्थिक गतिविधि आघात-सह बनी हुई थी, वित्तीय बाज़ारों ने अधिक आशावाद का संचार किया और केंद्रीय बैंक अपनी अर्थव्यवस्थाओं को आसान उतराई (सॉफ्ट लैंडिंग) की ओर ले जा रहे थे। मार्च के दौरान कुछ ही सप्ताह में, इस स्थिति में नाटकीय परिवर्तन आया है। वैश्विक अर्थव्यवस्था अब कतिपय उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में बैंकिंग क्षेत्र की उथल-पुथल से नई विपरीत परिस्थितियों के साथ अशांति के एक नए चरण का सामना कर रही है। बैंक विफलताओं और संक्रामक जोखिम ने वित्तीय स्थिरता के मुद्दों को सबसे आगे ला दिया है। मुद्रास्फीति में दृढ़ता को देखते हुए, केंद्रीय बैंक मौद्रिक नीति में सख्ती को जारी रख रहे हैं, यद्यपि धीमी गति से। हाल के महीनों में विश्व स्तर पर मुद्रास्फीति में कमी आई है, लेकिन लक्ष्य तक इसका पहुंचाना दीर्घकालिक और कठिन प्रतीत हो रहा है।

2. अमेरिकी फेडरल रिज़र्व के पूर्व अध्यक्ष एलन ग्रीनस्पैन ने कहा था: "अनिश्चितता मौद्रिक नीति परिदृश्य की परिभाषित विशेषता है।"1 उन्होंने आज की स्थिति की तुलना में बहुत अधिक संतुलन के युग में और अधिक सामान्य समय में यह बात कही थी। आज हम जो देख रहे हैं वह भू-राजनीति, आर्थिक गतिविधियों, मूल्य दबावों और वित्तीय बाज़ारों में अभूतपूर्व अनिश्चितता है जो पहले कभी नहीं देखी गई। आज के विश्व में केंद्रीय बैंकों और अन्य नीति निर्माताओं के सामने आने वाली चुनौतियों के परिमाण की कल्पना की जा सकती है।

मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के निर्णय और विचार-विमर्श

3. मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक 3, 5 और 6 अप्रैल 2023 को हुई और इसमें समष्टि आर्थिक स्थिति और इसकी संभावना का मूल्यांकन किया गया। इस बैठक में आवश्यकता पड़ने पर कार्रवाई हेतु तैयार रहने के साथ नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया गया। परिणामस्वरूप, स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 6.25 प्रतिशत तथा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.75 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रहेंगी। एमपीसी ने 6 में से 5 सदस्यों के बहुमत से निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने का भी निर्णय लिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति संवृद्धि को सहारा प्रदान करते हुए उत्तरोत्तर लक्ष्य के साथ संरेखित हो। मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूं कि रेपो दर पर विराम लगाने का निर्णय केवल इसी बैठक के लिए है।

4. अब मैं नीतिगत दर और रुख पर इन निर्णयों के लिए एमपीसी के तर्क के बारे में बताना चाहूंगा। जबकि हाल के उच्च आवृत्ति संकेतक वैश्विक आर्थिक गतिविधि में कुछ सुधार की ओर इशारा करते हैं, संभावना अब वित्तीय स्थिरता चिंताओं के अतिरिक्त अधोगामी जोखिम के कारण कम हो गई है। हेडलाइन मुद्रास्फीति कम हो रही है लेकिन केंद्रीय बैंकों के लक्ष्यों से काफी ऊपर है। इन घटनाक्रमों ने वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में अस्थिरता को बढ़ा दिया है, जो बॉण्ड प्रतिफल में बड़े पैमाने पर दोतरफा उतार-चढ़ाव, इक्विटी बाज़ारों में गिरावट और अमेरिकी डॉलर के सितंबर 2022 के अपने चरम स्तर से गिरावट के रूप में परिलक्षित होता है।

5. इस अस्थिरता के बीच, भारत में बैंकिंग और गैर-बैंकिंग वित्तीय सेवा क्षेत्र मजबूत बने हुए हैं तथा वित्तीय बाज़ार एक व्यवस्थित तरीके से विकसित हुए हैं। आर्थिक गतिविधि आघात-सह बनी हुई है और 2022-23 में वास्तविक जीडीपी संवृद्धि दर 7.0 प्रतिशत रहने की आशा है। तथापि, उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति दिसंबर 2022 से बढ़ी है, जो अनाज, दूध और फलों में कीमतों के दबाव से प्रेरित है। मूल मुद्रास्फीति उच्च बनी हुई है।

6. आगे देखते हुए, 2023-24 में हेडलाइन मुद्रास्फीति के कम होने का अनुमान है। मई 2022 से की गई मौद्रिक नीति कार्रवाइयों का प्रभाव अभी भी प्रणाली के माध्यम से हो रहा है। तदनुसार, एमपीसी ने उभरती मुद्रास्फीति संभावना की बारीकी से निगरानी करते हुए अब तक हुई प्रगति का आकलन करने के लिए नीतिगत दर को अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया। एमपीसी अपनी भविष्य की बैठकों में आवश्यक कार्रवाई करने में संकोच नहीं करेगी।

7. अब तक की गई कार्रवाइयों को संक्षेप में बताने हेतु, हमने मई 2022 से पिछले 11 महीनों में नीतिगत रेपो दर को संचयी रूप से 250 बीपीएस बढ़ा दिया है। इससे पहले स्थिर दर प्रतिवर्ती रेपो की तुलना में 40 बीपीएस अधिक दर पर स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) की शुरुआत की गई थी। इस प्रकार, पिछले वर्ष अप्रैल से प्रभावी दर वृद्धि 290 बीपीएस रही है। ये वृद्धि पूरी तरह से एक दिवसीय भारित औसत मांग मुद्रा दर (डब्ल्यूएसीआर) में अंतरित हो गई है, जो मौद्रिक नीति का परिचालन लक्ष्य है, जो मार्च 2022 में दैनिक औसत 3.32 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2023 में 6.52 प्रतिशत हो गया है। अब इन दरों में वृद्धि के संचयी प्रभाव का मूल्यांकन करना आवश्यक है। इन परिस्थितियों में हमें अपने कार्यों में अत्यंत विवेकपूर्ण होना होगा। हम सदैव अत्यधिक सतर्क रहते हैं और हमने एक सुविचारित और संतुलित दृष्टिकोण अपनाया है तथा आगे भी ऐसा करना जारी रखेंगे।

8. जब हमने संवृद्धि को समर्थन प्रदान करने के लिए फरवरी 2019 में दर में कटौती का चक्र शुरू किया था, तब सीपीआई मुद्रास्फीति लगभग 2 प्रतिशत थी2 और नीतिगत रेपो दर 6.50 प्रतिशत थी। अब, नीतिगत दर 6.50 प्रतिशत है लेकिन मुद्रास्फीति 6.4 प्रतिशत (फरवरी 2023) है। कुल मिलाकर, मुद्रास्फीति लक्ष्य से ऊपर है और इसके मौजूदा स्तर को देखते हुए, वर्तमान नीतिगत दर को अभी भी निभावकारी माना जा सकता है। अतः, एमपीसी ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया।

संवृद्धि और मुद्रास्फीति का आकलन

संवृद्धि

9. जैसा कि पहले कहा है, भारत के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 2022-23 में 7.0 प्रतिशत की संवृद्धि दर्ज करने की आशा है। अतः, आर्थिक गतिविधि आघात-सह बनी हुई है।

10. आपूर्ति पक्ष पर, 2022-23 में रबी खाद्यान्न उत्पादन में 6.2 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। पीएमआई विनिर्माण मार्च में 56.4 पर मजबूत रहा, जिसमें अनुकूल घरेलू मांग के कारण लगातार 21वें महीने विस्तार दर्ज किया गया। सेवा क्षेत्र की गतिविधि ने भारी वृद्धि हुई। पीएमआई सेवाएं मार्च में 57.8 पर विस्तार क्षेत्र में रहीं, जो अनुकूल मांग की स्थिति और नए व्यावसायिक लाभ से प्रेरित था।

11. 2022-23 की चौथी तिमाही में समग्र मांग की स्थिति आघात-सह थी, यद्यपि निजी खपत में गिरावट के कुछ संकेत प्रतीत हुए। यात्री वाहनों की बिक्री और क्रेडिट कार्ड व्यय जैसे शहरी मांग संकेतकों ने फरवरी में मजबूत संवृद्धि दर्ज की, जबकि उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं में जनवरी में कमी आई। गैर-टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं, ट्रैक्टर और दुपहिया वाहनों की बिक्री जैसे ग्रामीण मांग संकेतकों ने मजबूत संवृद्धि दर्ज की। बुनियादी ढांचे पर व्यय पर सरकार के जोर, उच्च क्षमता उपयोग और कतिपय महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कॉर्पोरेट निवेश में बहाली के कारण निवेश गतिविधि में भारी वृद्धि दर्ज की गई।3 24 मार्च 2023 तक खाद्येतर बैंक ऋण में 15.4 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) की वृद्धि हुई। वाणिज्यिक क्षेत्र में संसाधनों का कुल प्रवाह 2022-23 के दौरान एक वर्ष पहले के 19.0 लाख करोड़ रुपये की तुलना में 26.0 लाख करोड़ रुपये बढ़ गया है। फरवरी में पण्य निर्यात और गैर-तेल गैर-स्वर्ण आयात में कमी आई। सेवा निर्यात में मजबूत संवृद्धि जारी रही। वैश्विक स्तर पर और साथ ही घरेलू स्तर पर आपूर्ति श्रृंखलाएं सामान्य स्थिति की ओर वापस आ रही हैं।

12. आगे देखते हुए, उच्च रबी उत्पादन ने कृषि क्षेत्र और ग्रामीण मांग की संभावनाओं को आशान्वित किया है। संपर्क-गहन सेवाओं में स्थिर संवृद्धि, शहरी मांग के लिए सकारात्मक होनी चाहिए। पूंजीगत व्यय पर सरकार का ज़ोर, दीर्घावधि औसत से अधिक क्षमता उपयोग और कमोडिटी की कीमतों में नरमी से विनिर्माण और निवेश गतिविधि को बढ़ावा मिलना चाहिए। बढ़ी हुई वैश्विक विपरीत परिस्थितियों के कारण निवल बाह्य मांग में कमी जारी रह सकती है। दीर्घकालिक भू-राजनीतिक तनाव और वैश्विक वित्तीय बाज़ार में उतार-चढ़ाव संभावना के लिए अधोगामी जोखिम उत्पन्न कर रहे हैं। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2023-24 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि दर पहली तिमाही में 7.8 प्रतिशत; दूसरी तिमाही में 6.2 प्रतिशत; तीसरी तिमाही में 6.1 प्रतिशत; और चौथी तिमाही में 5.9 प्रतिशत के साथ 6.5 प्रतिशत अनुमानित है। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं।

मुद्रास्फीति

13. नवंबर-दिसंबर 2022 के दौरान मुद्रास्फीति में नरमी सीपीआई हेडलाइन मुद्रास्फीति के जनवरी-फरवरी 2023 के दौरान उच्च सहन-सीमा को पार करने के साथ अस्थायी हो गई।4 खाद्य मुद्रास्फीति में तीव्र बदलाव से हेडलाइन मुद्रास्फीति में तेजी आई क्योंकि कई वस्तुओं और सेवाओं में मूल मुद्रास्फीति उच्चतर बनी रही।

14. आगे देखते हुए, रिकॉर्ड रबी फसल की आशा, खाद्य कीमतों के दबाव के कम होने के मजबूत संकेत देती है। सरकार द्वारा आपूर्ति पक्ष में मध्यक्षेप के कारण मार्च में गेहूं की कीमतों में सुधार के पहले से ही प्रमाण हैं। तथापि, देश के कतिपय हिस्सों में हाल की बेमौसम बारिश के प्रभाव पर नजर रखने की आवश्यकता है। वैश्विक कमोडिटी की कीमतें एक वर्ष पहले अपने उच्च स्तर से उल्लेखनीय रूप से कम हुई हैं। जैसा कि हमारे सर्वेक्षण बताते हैं, लागत की स्थिति कुछ हद तक बेहतर हो गई है। परिवारों की मुद्रास्फीति प्रत्याशा भी कम हो गई है। ऊपर की ओर, प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियां भविष्य में मुद्रास्फीति के प्रक्षेपवक्र के लिए जोखिम हैं। मांग-आपूर्ति संतुलन और चारा लागत के दबाव के कारण दूध की कीमतें भी गर्मी के मौसम में स्थिर रहने की संभावना है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में बढ़ती अनिश्चितता और आयातित मुद्रास्फीति के दबावों पर बारीकी से नजर रखने की आवश्यकता है। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए तथा 85 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल की वार्षिक औसत कच्चे तेल की कीमत (भारतीय समूह) और एक सामान्य मानसून की कल्पना करते हुए, सीपीआई मुद्रास्फीति पहली तिमाही में 5.1 प्रतिशत; दूसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत; तीसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत; और चौथी तिमाही में 5.2 प्रतिशत के साथ 2023-24 के लिए 5.2 प्रतिशत तक कम होने का अनुमान है। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं।

15. अब तक मैंने जो कुछ कहा है, उसे संक्षेप में कहता हूं। हम बहुत ही अस्थिर समय में रह रहे हैं। कुछ दिनों पहले ओपेक+ द्वारा अचानक उत्पादन में कटौती की घोषणा और इसके परिणामस्वरूप कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि इस अस्थिरता का एक और प्रमाण है। इस प्रकार समग्र संभावना गतिशील है और तेजी से विकसित हो रही है। हाल की अवधि में हमारी मौद्रिक नीति ने महामारी काल के प्रोत्साहन उपायों से गैर-विघटनकारी सामान्यीकरण का लक्ष्य रखा है। जब तक मौद्रिक नीति निर्णायक रूप से निभाव को वापस लेने की ओर बढ़ी, वित्तीय स्थितियां अर्थव्यवस्था की उत्पादक अपेक्षाओं के अनुरूप विकसित हुईं। संवृद्धि तब से व्यापक-आधारित हो गई है। एक वर्ष पहले के उच्च स्तर से महंगाई में कमी आई है; तथापि, यह अभी भी उच्च सहन स्तर से ऊपर है। 2023-24 के अनुमान मुद्रास्फीति में नरमी की ओर इशारा करते हैं, तथापि मूल या अंतर्निहित मुद्रास्फीति दबावों में दृढ़ता को देखते हुए अवस्फीति धीरे-धीरे और लंबी होने की संभावना है। इस समय, हम उभरती संभावनाओं और पिछले एक वर्ष के दौरान की गई हमारी कार्रवाइयों का व्यापक वास्तविक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पर नजर रख रहे हैं। जबकि हमने नीतिगत दर को अपरिवर्तित रखा है, यह ध्यातव्य है कि यह निर्णय आज तक उपलब्ध जानकारी के संदर्भ में समष्टि आर्थिक और वित्तीय स्थितियों के हमारे मूल्यांकन के आधार पर लिया गया है। हमारा काम अभी खत्म नहीं हुआ है और मुद्रास्फीति के विरुद्ध कार्रवाई तब तक जारी रहेगी जब तक हम लक्ष्य के करीब मुद्रास्फीति में टिकाऊ गिरावट नहीं देखते हैं। हम उचित और समय पर कार्रवाई करने के लिए तैयार हैं। हमें विश्वास है कि हम मध्यम अवधि में मुद्रास्फीति को लक्षित दर पर लाने के लिए सही मार्ग पर हैं। जैसे-जैसे हम इस उद्देश्य की ओर बढ़ते हैं, मुझे दो हज़ार वर्ष से भी पहले की कौटिल्य की बुद्धिमान सलाह याद आती है: "संपूर्ण कार्य पूर्ण होने से पूर्व आलस्य न करें।"5

वित्तीय स्थिरता

16. हालांकि मुद्रास्फीति के विरुद्ध लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है, वैश्विक अर्थव्यवस्था, अब कुछ उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में बैंकिंग क्षेत्र की गतिविधियों से गंभीर वित्तीय स्थिरता चुनौतियों का सामना कर रही है। यह विश्व भर में नियामकों और विनियमित संस्थाओं की जिम्मेदारियों और वित्तीय प्रणाली की स्थिरता की सुरक्षा में उनकी सामूहिक भूमिका के पुनर्मूल्यांकन की मांग करता है। जबकि नियामकों को संभावित कमजोरियों की पहचान करने और सक्रिय विनियामक और पर्यवेक्षी उपाय करने की आवश्यकता है, यह विनियमित संस्थानों पर निर्भर है कि वे अपने जोखिम प्रबंधन और कॉर्पोरेट सुशासन प्रणालियों में उचित परिश्रम करें। पर्याप्त पूंजी बफर तैयार करते समय और समय-समय पर तनाव परीक्षण करते समय उन्हें परिसंपत्ति-देयता बेमेल और उनके जमा आधार के प्रोफाइल पर बारीकी से ध्यान देने की आवश्यकता है।

17. इसी संदर्भ में हमने, रिज़र्व बैंक में, हाल के वर्षों में समष्टि- और व्यष्टि विवेकपूर्ण उपायों पर ध्यान केंद्रित किया है ताकि वित्तीय कमजोरियों के निर्माण को रोका जा सके। हमने विनियमन और पर्यवेक्षण के प्रति विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया है और हाल के वर्षों में इन क्षेत्रों में कई कदम उठाए हैं।6 इनमें से कुछ विनियामक उपायों को इस वक्तव्य के फुटनोट में सूचीबद्ध किया गया है।

18. हमारी पर्यवेक्षी प्रणाली भी हाल के वर्षों में काफी मजबूत हुई है। हमने वाणिज्यिक बैंकों, एनबीएफसी और शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) के लिए एक एकीकृत और सुसंगत पर्यवेक्षी दृष्टिकोण अपनाया है।7 अकेले लक्षणों से निपटने के बजाय अब कमजोरियों के मूल कारण की पहचान करने पर अधिक ध्यान दिया जाता है। परिणामस्वरूप, भारतीय बैंकिंग प्रणाली, मजबूत पूंजी और तरलता की स्थिति, संपत्ति की गुणवत्ता में सुधार, बेहतर लाभप्रदता के साथ बेहतर प्रावधान कवरेज के साथ मजबूत और स्वस्थ बनी हुई है।8

19. फिर भी, हम कुछ विकसित देशों में बैंकिंग क्षेत्र की उथल-पुथल पर कड़ी नजर रख रहे हैं। इस संदर्भ में, मैं एक बार फिर कौटिल्य के ज्ञान को याद करता हूं, जो आज की दुनिया के लिए भी प्रासंगिक है: “देश की समृद्धि के हित में, ….. [हमें] आपदाओं की संभावना का पूर्वाभास करने में सतर्क रहना चाहिए, टालने का प्रयास करना चाहिए इससे पहले कि वे उत्पन्न हों, जो हो रहा है उसे दूर करें, आर्थिक गतिविधियों में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करें….”।9

चलनिधि और वित्तीय बाजार की स्थिति

20. रिज़र्व बैंक चलनिधि प्रबंधन के लिए सूक्ष्म और चुस्त दृष्टिकोण अपनाना जारी रखेगा। अधिशेष चलनिधि में बड़े संतुलन के बीच, रिज़र्व बैंक ने 10 फरवरी और 10 मार्च को 14-दिवसीय परिवर्तनीय दर रेपो (वीआरआर) नीलामी (मुख्य परिचालन) और 24 मार्च 2023 को 5-दिवसीय वीआरआर नीलामी का आयोजन किया। आने वाले समय में, रिज़र्व बैंक,जब आवश्यक हो, दोतरफा परिचालनों के माध्यम से अर्थव्यवस्था की उत्पादक आवश्यकताओं को पूरा करने में लचीला बना रहेगा। हम 2023-24 के दौरान बाजार की स्थितियों को सुव्यवस्थित बनाए रखते हुए सरकार के उधार कार्यक्रम को गैर-विघटनकारी तरीके से पूरा करना भी सुनिश्चित करेंगे।

21. भारतीय रुपया, कैलेंडर वर्ष 2022 में एक व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ा है और 2023 में भी ऐसा ही बना रहेगा। यह घरेलू समष्टि आर्थिक आधार की ताकत और वैश्विक स्पिलओवर के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आघात-सह को दर्शाता है। हम भारतीय रुपये की स्थिरता बनाए रखने पर सतर्क और केंद्रित हैं।

बाहरी क्षेत्र

22. 2022-23 की पहली तीन तिमाहियों के लिए चालू खाता घाटा (सीएडी) सकल घरेलू उत्पाद का 2.7 प्रतिशत रहा। तीसरी तिमाही में, सीएडी दूसरी तिमाही में 3.7 प्रतिशत से काफी कम होकर 2.2 प्रतिशत हो गया, जिसका कारण पण्य व्यापार घाटा कम होना और सेवा निर्यात में मजबूत वृद्धि है। वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) में वृद्धि द्वारा समर्थित आईटी सेवाओं, कारोबार प्रणाली प्रबंधन (बीपीएम), और इंजीनियरिंग अनुसंधान और डिजाइन (ईआर एंड डी) जैसे प्रमुख कार्यक्षेत्रों में मजबूत सॉफ्टवेयर सेवाओं के निर्यात में वृद्धि देखी गई।

23. आयात में निरंतर गिरावट के कारण, पण्य व्यापार घाटा, 2022-23 की तीसरी तिमाही के स्तर से जनवरी और फरवरी 2023 के दौरान और कम हो गया। इसके अलावा, 2023 के पहले दो महीनों में भारत का सेवा निर्यात स्वस्थ गति से बढ़ता रहा। खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) देशों की बेहतर संवृद्धि संभावनाओं से विप्रेषण के मजबूत रहने की उम्मीद है। वास्तव में, आवक सकल विप्रेषण, कैलेंडर वर्ष 2022 के दौरान 107.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर को छू गया। चालू खाता घाटा(सीएडी) 2022-23 की चौथी तिमाही और वर्ष 2023-24 में एक ऐसे स्तर पर मध्यम रहने की उम्मीद है जो व्यवहार्य और प्रबंधनीय दोनों है।

24. कुल मिलाकर, हमारे बाहरी क्षेत्र के संकेतकों में काफी सुधार हुआ है। 21 अक्तूबर 2022 को विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि का 524.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से पलटाव हुआ है और अब हमारी अग्रिम परिसंपत्तियों को ध्यान में रखते हुए 600 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया है।

अतिरिक्त उपाय

25. अब मैं कुछ अतिरिक्त उपायों की घोषणा करूंगा।

एक तटीय (ऑनशोर) गैर- प्रदेय (नॉन-डिलीवरेबल) व्युत्पन्नी बाज़ार विकसित करना

26. भारत में आईएफ़एससी बैंकिंग इकाइयों (आईबीयू) वाले बैंकों को पहले अनिवासियों और आईबीयू वाले अन्य पात्र बैंकों के साथ भारतीय रुपया (आईएनआर) गैर- प्रदेय विदेशी मुद्रा व्युत्पन्नी संविदा (एनडीडीसी) में लेनदेन करने की अनुमति थी। अब आईबीयू वाले बैंकों को तटीय बाज़ार में निवासी उपयोगकर्ताओं को आईएनआर से जुड़े एनडीडीसी प्रदान करने की अनुमति देने का प्रस्ताव है। यह उपाय भारत में विदेशी मुद्रा बाज़ार को और गहरा करेगा और निवासियों को उनकी हेजिंग आवश्यकताओं को पूरा करने में अधिक लचीलापन प्रदान करेगा।

नियामक प्रक्रियाओं की दक्षता बढ़ाना

27. वर्तमान में, संस्थाओं के लिए विभिन्न कानूनों/विनियमों के अंतर्गत रिज़र्व बैंक से लाइसेंस/प्राधिकरण या विनियामक अनुमोदन प्राप्त करने के लिए आवेदन करने की प्रक्रिया ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से होती है। ऐसी प्रक्रियाओं को सरल और सुव्यवस्थित करने के लिए और केंद्रीय बजट 2023-24 की घोषणा के अनुरूप, ऐसी प्रक्रियाओं के लिए 'PRAVAAH' (विनियामक आवेदन, सत्यापन और प्राधिकरण के लिए मंच) नामक एक सुरक्षित वेब आधारित केंद्रीकृत पोर्टल बनाने का निर्णय लिया गया है। पोर्टल मांगे गए आवेदनों/अनुमोदनों पर निर्णय लेने की समय-सीमा दिखाएगा। यह उपाय विनियामक प्रक्रियाओं में अधिक दक्षता लाएगा और रिज़र्व बैंक की विनियमित संस्थाओं के लिए व्यापार करने में आसानी की सुविधा प्रदान करेगा।

दावारहित जमाराशियों को खोजने हेतु जनता के लिए केंद्रीकृत वेब पोर्टल विकसित करना

28. वर्तमान में, जमाकर्ताओं या लाभार्थियों को 10 वर्ष या उससे अधिक की दावारहित बैंक जमाराशियों का पता लगाने के लिए कई बैंकों की वेबसाइटों के माध्यम से जाना पड़ता है। अब, ऐसी अदावी जमाराशियों के बारे में सूचना तक जमाकर्ताओं/लाभार्थियों की पहुंच में सुधार लाने और उनका विस्तार करने के लिए, यह निर्णय लिया गया है कि एक वेब पोर्टल विकसित किया जाए ताकि संभावित अदावी जमाराशियों के लिए कई बैंकों में खोज की जा सके। इससे जमाकर्ताओं/लाभार्थियों को अदावी जमाराशि वापस पाने में मदद मिलेगी।

साख संस्थाओं द्वारा साख सूचना रिपोर्टिंग तथा साख सूचना कंपनियों द्वारा प्रदान की गई साख जानकारी से संबंधित शिकायत निवारण तंत्र

29. हाल ही में, साख सूचना कंपनियों (सीआईसी) को रिज़र्व बैंक एकीकृत लोकपाल योजना (आरबी-आईओएस) के दायरे में लाया गया था। अब निम्नलिखित उपायों को लागू करने का प्रस्ताव है: (i) साख सूचना रिपोर्ट के अद्यतन/सुधार में विलंब के लिए एक मुआवजा तंत्र; (ii) ग्राहकों को एसएमएस/ईमेल अलर्ट का प्रावधान जब भी उनकी साख सूचना रिपोर्ट को एक्सैस किया जाते हैं; (iii) साख संस्थाओं से सीआईसी द्वारा प्राप्त आंकड़ों को शामिल करने की समय-सीमा; और (iv) सीआईसी द्वारा प्राप्त ग्राहक शिकायतों पर प्रकटीकरण। ये उपाय उपभोक्ता संरक्षण को और बढ़ाएंगे।

यूपीआई के माध्यम से बैंकों में पूर्व-स्वीकृत ऋण व्यवस्था का परिचालन

30. यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) ने भारत में खुदरा भुगतान को बदल दिया है। समय-समय पर नए उत्पादों और सुविधाओं को विकसित करने के लिए यूपीआई की सुदृढ़ता का उपयोग किया गया है। हाल ही में रुपे क्रेडिट कार्ड को यूपीआई से लिंक करने की अनुमति दी गई थी। यह जमा खातों के साथ यूपीआई को जोड़ने की मौजूदा सुविधा के अतिरिक्त था। अब यूपीआई के माध्यम से बैंकों में पूर्व-स्वीकृत ऋण व्यवस्थाओं के परिचालन की अनुमति देकर यूपीआई के दायरे का विस्तार करने का प्रस्ताव है। इस पहल से नवाचार को और बढ़ावा मिलेगा।

निष्कर्ष

31. 2020 की शुरुआत से ही विश्व अत्यधिक अनिश्चितता के दौर से गुजर रही है। इस चुनौतीपूर्ण माहौल में, भारत का वित्तीय क्षेत्र आघात-सहनीय और स्थिर बना हुआ है। कुल मिलाकर, आर्थिक गतिविधियों का विस्तार; मुद्रास्फीति में अपेक्षित कमी; पूंजीगत व्यय पर ध्यान देते हुए राजकोषीय समेकन; चालू खाते के घाटे को अधिक टिकाऊ स्तरों तक काफी हद तक कम करना; और विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि का सहज स्तर एक प्रशंसनीय घटनाक्रम हैं, जो भारत की समष्टि-आर्थिक स्थिरता को और मजबूत करेगा। यह मौद्रिक नीति को मुद्रास्फीति पर दृढ़तापूर्वक केंद्रित रहने की अनुमति देता है। अडिग मूल मुद्रास्फीति के साथ, हम मूल्य स्थिरता को बनाए रखने में दृढ़ और अटल बने हुए हैं जो सतत संवृद्धि के लिए सर्वोत्तम गारंटी है। पिछले 12 महीनों में हमारी कार्रवाइयों का असर अब भी दिख रहा है और यह भावी मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र को अत्यधिक प्रभावित करेगा। जैसा कि मैंने पिछले वर्ष अप्रैल में अपने नीतिगत वक्तव्य में उल्लेख किया था, मूल्य स्थिरता, सतत संवृद्धि और वित्तीय स्थिरता के हमारे लक्ष्य पारस्परिक रूप से सुदृढ़ बने हुए हैं और हम इस दृष्टिकोण से निर्देशित होते रहेंगे। हम मूल्य और वित्तीय स्थिरता के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता के साथ चुनौतियों का सामना करने के लिए सतर्क और तैयार रहते हैं। महात्मा गांधी ने जो कहा था, उससे हम प्रेरित हैं: "... अटूट दृढ़ता और धैर्य से... कोई हार नहीं सकता।"10

धन्यवाद। नमस्कार।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2023-2024/21


1 “मोनेटरी पॉलिसी अंडर अनसर्टेनिटी”, जैक्सन हॉल सिम्पोजियम, व्योमिंग, 29 अगस्त 2003।

2 सीपीआई मुद्रास्फीति दिसंबर 2018 में 2.1 प्रतिशत और जनवरी 2019 में 2.0 प्रतिशत थी।

3 फरवरी 2023 में इस्पात की खपत और सीमेंट उत्पादन में क्रमशः 12.5 प्रतिशत और 7.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2022-23 की तीसरी तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में क्षमता उपयोग 74.3 प्रतिशत (74.1 प्रतिशत, मौसमी रूप से समायोजित) था, जो दीर्घावधि औसत 73.7 प्रतिशत से ऊपर था।

4 दिसंबर 2022 में 5.7 प्रतिशत के हाल के निचले स्तर से, हेडलाइन मुद्रास्फीति 80 बीपीएस बढ़कर जनवरी में 6.5 प्रतिशत और फरवरी 2023 में 6.4 प्रतिशत हो गई।

5 चाणक्य नीति, बी.के. चतुर्वेदी।

6 इन उपायों में अन्य के अलावा लीवरेज अनुपात, चलनिधि कवरेज अनुपात (एलसीआर), निवल स्थिर निधीयन अनुपात (एनएसएफआर), बृहद एक्सपोजर फ्रेमवर्क (एलईएफ), वाणिज्यिक बैंकों में सुशासन पर दिशानिर्देश, एनबीएफसी के लिए स्केल-आधारित नियामक (एसबीआर) ढांचे का कार्यान्वयन शामिल है। प्रतिकूल प्रतिफल से बैंकों को बचाने हेतु एक बफर बनाने के लिए, रिज़र्व बैंक ने बैंकों सूचित किया है कि वे निवेश उतार-चढ़ाव वाले आरक्षित निधि (आईएफआर) को व्यापार के लिए धारित (एचटीएफ़) और बिक्री के लिए उपलब्ध (एएफ़एस) पोर्टफोलियो के 2 प्रतिशत के आईएफआर की वांछनीय फ्लोर के साथ निर्मित करें। इसके अलावा, पूंजी और चलनिधि की अपेक्षाएँ सभी बैंकों पर समान रूप से लागू होती हैं, भले ही उनकी संपत्ति का आकार और जोखिम कुछ भी हो।

7 दास, शक्तिकान्त (2023), "भारत की अध्यक्षता के दौरान एक बेहतर वैश्विक आर्थिक व्यवस्था के लिए जी20", 17वां केपी होर्मिस स्मारक व्याख्यान, 17 मार्च, t /en/web/rbi/-/speeches-interview/g20-for-a-better-global-economic-order-during-india-s-presidency-1356 पर उपलब्ध

8 दिसंबर 2022 के अंत तक बैंकिंग प्रणाली के लिए जोखिम भारित आस्ति की तुलना में पूंजी अनुपात (सीआरएआर) 16.0 प्रतिशत पर आवश्यक न्यूनतम 9.0 प्रतिशत से काफी ऊपर रहा। एससीबी का चलनिधि कवरेज अनुपात (एलसीआर) फरवरी 2023 में 145 प्रतिशत पर रहा, जबकि एससीबी का निवल स्थिर निधीयन अनुपात, चलनिधि के लिए दीर्घकालिक उपाय, 100 प्रतिशत की न्यूनतम नियामक आवश्यकता से काफी ऊपर है। दिसंबर 2022 में बैंकिंग प्रणाली का निवल एनपीए 1.2 प्रतिशत था।

9 स्त्रोत: एल.एन. रंगराजन द्वारा संपादित अर्थशास्त्र, कौटिल्य,

10 महात्मा, वॉल्यूम। 4., डी. जी. तेंदुलकर द्वारा

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