गवर्नर का वक्तव्य, 07 अप्रैल 2021 - आरबीआई - Reserve Bank of India
गवर्नर का वक्तव्य, 07 अप्रैल 2021
07 अप्रैल 2021 गवर्नर का वक्तव्य, 07 अप्रैल 2021 मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने 5, 6 एवं 7 अप्रैल 2021 को बैठक की और घरेलू तथा वैश्विक-दोनों की उभरती समष्टिगत आर्थिक एवं वित्तीय गतिविधियों पर विचार-विमर्श किया । एमपीसी ने सर्वसम्मति से नीतिगत रेपो दर को 4 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने के पक्ष में मतदान किया । समिति ने सर्वसम्मति से यह निर्णय भी लिया कि टिकाऊ संवृद्धि को बनाए रखने के लिए जब तक आवश्यक हो तब तक समायोजनकारी रुख को जारी रखते हुए अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभाव में कमी लाने के प्रयास जारी रखे जाएं, यद्यपि यह भी सुनिचित किया जाए कि आगे चलकर मुद्रास्फीति लक्ष्य के भीतर बनी रहे । सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर तथा बैंक दर को 4.25 प्रतिशत के स्तर पर अपरिवर्तित रखा गया है । प्रतिवर्ती रेपो दर 3.35 के स्तर पर अपरिवर्तित रखी गई है । 2. मैं, एमपीसी के निर्णय और उसके औचित्य के बारे में संक्षिप्त प्रस्तुति के साथ अपनी बात प्रारंभ करना चाहूंगा । पिछली बैठक के बाद से, मुख्य मुद्रास्फीति में जनवरी 2021 में लक्ष्य दर के करीब तक कमी आने के बाद फरवरी 2021 में यह 5.0 प्रतिशत तक बढ़ गई । इस वृद्धि का प्राथमिक कारण आधारभूत प्रभाव का प्रतिकूल रहना था । आगे के परिदृश्य पर नज़र डाली जाए तो, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मु्द्रास्फीति के संभावित वक्र (ट्रेजेक्टरी) के ऊर्द्धवगामी तथा अधोगामी-दोनों तरह के दबाव के अधीन रहने की संभावना है । वर्ष 2020-21 में खाद्यान्न के बहुत अधिक उत्पादन के परिणामस्वरूप आगे चलकर अनाज के मूल्यों में कमी होनी चाहिए । प्रोटीन-आधारित घटकों और खाद्य तेलों जैसी मुख्य खाद्य वस्तुओं के मूल्यों पर दबाव में कमी भी आपूर्ति पक्ष के उपायों तथा अंतरराष्ट्रीय मूल्यों में कमी होने पर आश्रित रहेगी । एमपीसी ने इस बात को नोट किया कि अंतर्निहित स्फीतिकारी दबाव अंतरराष्ट्रीय पण्य मूल्यों तथा प्रचालन-तंत्र की लागत अधिक रहने के कारण उत्पन्न हुआ । 3. राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसओ) ने 26 फरवरी 2021 को अपनी अद्यतन सूचना में 2021-21 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कमी के साथ 8.0 प्रतिशत रहने की बात कही है । टीकाकरण कार्यक्रम में हुई प्रगति के साथ 2021-22 के लिए संभावनाएं बजबूत हुई हैं । हालांकि, संक्रमण में हुई हाल की वृद्धि के कारण संभावनाओं की अनिश्चितताएं और अधिक बढ़ गई हैं तथा इस पर अधिक करीब से नजर बनाए रखने की आवश्यकता है । विशेष रूप से, स्थानीय और क्षेत्रीय लॉकडाउनों के कारण मांग की परिस्थितियों में हाल में हुए सुधार कमजोर पड़ सकते हैं और सामान्य स्थिति की बहाली विलंबित हो सकती है । इस पृष्ठभूमि के साथ, एमपीसी ने यह निर्णय लिया कि बहाली को सहारा प्रदान करने तथा उसके पोषण हेतु मौद्रिक नीति को समायोजनकारी बने रहना चाहिए। अन्य शब्दों में कहा जाए तो, बहाली की दीर्घकालीन संभावनाओं के सुरक्षित होने तक मौद्रिक नीति का समायोजनकारी रुख जारी रहेगा, यद्यपि मुद्रास्फीति की उभरती संभावनाओं की भी कड़ी निगरानी की जाएगी । संवृद्धि और मुद्रास्फीति वृद्धि का मूल्यांकन संवृद्धि 4. वैश्विक संवृद्धि मंदी से धीरे-धीरे उबर रही है, किंतु यह बहाली सभी देशों के लिए असमान बनी हुई है, और चल रहे टीकाकरण कार्यक्रमों, मौद्रिक नीतियों के निरंतर समायोजनकारी बने रहने तथा काफी मात्रा में राजकोषीय प्रोत्साहन जारी रहने से इसे सहारा मिल रहा है । आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के अनुमान के अनुसार वैश्विक उत्पादन के 2021 के मध्य तक कोविड-पूर्व के स्तर पर पहुंचने की संभावना है, हालांकि यह संभावना टीका वितरण की गति और विषाणु के नए रूपों के ऊपर इसकी प्रभावकारिता पर काफी निर्भर करेगी । बाहरी मांग के अपेक्षाकृत मजबूत रहने से भारत के निर्यातों और निवेश की मांग को सहारा मिलना चाहिए । 5. घरेलू अर्थव्यवस्था में, अभी अनिवार्य रूप से विषाणु का प्रसार रोकने के साथ ही साथ आर्थिक बहाली – अभी तक अर्जित उपलब्धियों को और मजबूत बनाने तथा नए वित्तीय वर्ष (2021-22) में संवृद्धि के आवेग को बरकरार रखने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए । वैश्विक महामारी के दौरान भारत में बहाली को स्थिरता प्रदान करने वाले समष्टिगत आर्थिक स्थिरता के आधार को मजबूती प्रदान करना इस कार्यनीति का प्रमुख पहलू रहेगा । इससे हितधारकों को अपेक्षाकृत दीर्घावधियों के दौरान दक्षतापूर्वक खर्च करने संबंधी निर्णय लेने में मदद मिलेगी, जिससे निवेश का माहौल बेहतर बनेगा । आधारभूत संरचना के मुख्य क्षेत्रों में किए जाने वाले सार्वजनिक निवेश का गुणात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसमें प्रत्यक्ष रूप से पूंजी स्टॉक और उत्पादकता को बढ़ाने, तथा निजी निवेश को आकर्षित करने के माध्यम से व्यापक अर्थव्यवस्था को पुनरूज्जीवित करने की क्षमता होने के ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध हैं । वर्ष 2021-22 के संघीय बजट में पूंजीगत व्यय के लिए अधिक आबंटन, विस्तारित रूप में उत्पादन से सहबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाओं, तथा क्षमता के अनुप्रयोग को बढ़ाने (2020-21 की दूसरी तिमाही में 63.3 प्रतिशत से बढ़कर 2020-21 की तीसरी तिमाही में 66.6 प्रतिशत हो जाने) जैसे निवेश आधारित उपायों पर ध्यान केंद्रित किए जाने से आर्थिक बहाली की प्रक्रिया को मजबूती मिलेगी । वस्तुत:, विनिर्माण, सेवाओं और आधारभूत संरचना के क्षेत्र में कार्यरत फर्में, जिनका रिज़र्व बैंक द्वारा मार्च 2021 में जनमत-सर्वेक्षण कराया गया, मांग में सुधार होने और वित्तीय वर्ष 2021-22 में कारोबारी गतिविधि में विस्तार होने को लेकर आशावादी हैं । 6. उच्च बारंबारता वाले प्रमुख एवं अनुरूप सूचकों की तुलना करने से पता चलता है कि संक्रमण के तेजी से बढ़ने के बावजूद आर्थिक गतिविधि सामान्य हो रही है । ग्रामीण मांग उछाल पर है और 2020-21 में रिकॉर्ड कृषि उत्पादन होना इसकी आघातसहनीयता के लिए एक अच्छा संकेत है । शहरी मांग में तेजी आई है और चल रहे टीकाकरण अभियान से इसे और बल मिलेगा । 7. कोविड-19 संक्रमणों में हाल में आई तेजी के कारण, कुछेक राज्य सरकारों द्वारा प्रतिबंधों को और सख्त किए जाने से, हालांकि, घरेलू संवृद्धि परिदृश्य में अनिश्चितता आ गई है। भारत में, हम अब इन संक्रमणों से उभरती चुनौतियों से बेहतर ढंग से निपटने के लिए तैयार हैं। अर्थव्यवस्था में इसके प्रभाव-प्रसार को व्यापक रूप से सीमित करने और जारी आर्थिक बहाली पर इसके असर को रोकने के लिए, राजकोषीय और मौद्रिक प्राधिकार समन्वयित तरीके से कार्य करने के लिए तत्पर हैं। संक्रमण के बढ़ते मामलों को लेकर चिंता जरूर है लेकिन जैसा की मार्टिन लूथर ने कहा है और मैं उद्धृत कर रहा हूँ- “हमें सीमित निराशा स्वीकार करनी चाहिए, लेकिन हमें असीमित आशा कभी नहीं छोड़नी चाहिए।”1 8. फरवरी के नीतिगत निर्णय के बाद से अंतरराष्ट्रीय पण्य कीमतों में वृद्धि और फरवरी के उत्तरार्ध में महसूस किए गए दौर जैसी वैश्विक वित्तीय बाजार अस्थिरता की पुनरावृति ने अधोगामी जोखिमों को बढ़ा दिया है। तथापि, ऊर्ध्वमुखी जोखिमों में (i) तीव्रतर होते टीकाकरण कार्यक्रम और आबादी के और अधिक व्यापक दायरे तक इसकी सतत बढ़ती पहुँच; (ii) अवरुद्ध मांग में क्रमशः वृद्धि; और (iii) सरकार द्वारा निवेश बढ़ाने और संवृद्धि को बल देने वाले सुधारात्मक उपायों के कारण, वृद्धि हुई है। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2021-22 में 10.5 प्रतिशत वास्तविक जीडीपी संवृद्धि का पूर्वानुमान बनाए रखा गया है, जो पहली तिमाही में 26.2 प्रतिशत; दूसरी तिमाही में 8.3 प्रतिशत; तीसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 6.2 प्रतिशत रहेगी। मुद्रास्फीति 9. जहाँ फरवरी 2021 में 5.0 प्रतिशत हेडलाइन मुद्रास्फीति सह्य-सीमा में बनी हुई है, वहीं कुछ अंतर्निहित घटक ऊपरी सह्य-सीमा को छू रहे हैं। 10. आगे, खाद्य मुद्रास्फीति प्रक्षेप-पथ निश्चय ही 2021 में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की अस्थायी और स्थानिक प्रगति पर विशेष तौर पर निर्भर करेगा। दूसरी बात, केंद्र और राज्यों द्वारा समन्वित कार्रवाई के जरिये पेट्रोलियम उत्पादों पर घरेलू करों पर कुछ रियायत से, अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में हालिया नरमी के अलावा भी राहत मिलेगी। तीसरी बात, उच्च अंतरराष्ट्रीय पण्य कीमत और लॉजीस्टिक लागत दोनों, पूरे विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों पर निविष्टि कीमत दबावों को बढ़ा सकते हैं। इन सभी कारकों को ध्यान रखते हुए, सीपीआई मुद्रास्फीति के पूर्वानुमान को संशोधित कर, 2020-21 की चौथी तिमाही में 5.0 प्रतिशत; 2021-22 की पहली तिमाही में 5.2 प्रतिशत; दूसरी तिमाही में 5.2 प्रतिशत; तीसरी तिमाही में 4.4 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.1 प्रतिशत कर दिया गया है और जोखिमों को व्यापकतः संतुलित रखा गया है। 11. 31 मार्च, 2021 को, सरकार ने मुद्रास्फीति का लक्ष्य अगले पाँच वर्षों (अप्रैल 2021-मार्च 2026) के लिए 4 प्रतिशत बनाए रखा जिसमें उच्च और निम्न सह्य-सीमा क्रमशः 2 प्रतिशत और 6 प्रतिशत रहेगी। मध्यावधि के लिए 4 प्रतिशत की मुद्रास्फीति दर को आर्थिक परिदृश्य में सफलतापूर्वक समाहित कर लिया गया है। मूल्य स्थिरता को प्रभावी ढंग से बनाये रखने के अनुभव और 2016 में मुद्रास्फीति लक्ष्य वाले फ्रेमवर्क की शुरुआत से मौद्रिक नीति की बढ़ती विश्वसनीयता को, इस बहाल रखे गए मुद्रास्फीति लक्ष्य और सह्य-सीमा से पुनः बल मिला है। सितंबर, 2016 में मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) गठित होने के बाद, अक्तूबर 2016 से फरवरी 2020 की अवधि में- कोविड-19 महामारी के प्रसार से पहले तक- औसत सीपीआई मुद्रास्फीति 3.8 प्रतिशत थी, जनवरी 2012 से सितंबर 2016 की अवधि के दौरान रही 7.3 प्रतिशत की औसत से कम थी। हमारा अनुसंधान बताता है कि लचीले मुद्रास्फीति-लक्ष्य वाली अवधि के दौरान प्रवृत्त मुद्रास्फीति हाल के वर्षों में लगभग 4 प्रतिशत तक नरम हो गई थी। कोविड-19 अवधि के दौरान हुए अनुभव ने यह सिद्ध कर दिया है कि इस फ्रेमवर्क का लचीलापन, कारोबारी चक्र के दौरान तीक्ष्ण संवृद्धि-मुद्रास्फीति दुविधाओं और आपूर्ति-पक्ष के चरम आघातों को संभाल पाने में सक्षम है। अगले पाँच वर्षों में मौद्रिक नीति का लक्ष्य होगा कि मुद्रास्फीति के लचीले लक्ष्य-निर्धारण के प्रथम पाँच वर्षों में अर्जित विश्वसनीयता को और अधिक सुदृढ़ और समृद्ध किया जाए। चलनिधि मार्गदर्शन 12. मैंने, पिछली कुछ नीतिगत घोषणाओं में अपने वक्तव्यों में, रिज़र्व बैंक की प्रतिबद्धता को बार-बार दुहराया है कि एमपीसी के समायोजी रुख के अनुरूप, पर्याप्त प्रणालीगत चलनिधि सुनिश्चित की जाएगी। जब मैं पर्याप्त चलनिधि कहता हूँ तो मेरा आशय चलनिधि के ऐसे स्तर से है जो सभी वित्तीय बाजार खंडों और अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों की आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद भी प्रणाली को अधिशेष में रखेगा। उस परिप्रेक्ष्य से, हमारा प्रयास रहा है कि व्यवस्थित बाजार स्थितियों के अनुकूल चलनिधि प्रबंधन परिचालन आयोजित किए जाएँ। इससे 2020-21 के दौरान, रिकॉर्ड कम लागत पर दीर्घकालिक परिपक्वता वाले लगभग 22.0 लाख करोड़ रुपये के केंद्रीय और राज्य सरकारों के उधारी कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक पूरा करने में सहूलियत हुई है। इससे कॉर्पोरेट बॉन्डों, वाणिज्यिक पत्रों और डिबेंचरों के माध्यम से निजी उधारी की उल्लेखनीय राशि जुटाने में भी सहूलियत हुई है। 13. यह नोट करना उचित होगा कि 15 जनवरी, 2021 से 14-दिवसीय परिवर्ती दर रिवर्स रेपो (वीआरआरआर) नीलामियों की पुनः शुरुआत के बावजूद, नियत दर रिवर्स रेपो के जरिये अवशोषित चलनिधि, 16-29 जनवरी के दौरान 4.3 लाख करोड़ रुपए के पाक्षिक औसत से निरंतर बढ़कर 30 जनवरी-31 मार्च, 2021 के दौरान 4.9 लाख करोड़ रुपये हो गई है। अधिशेष चलनिधि को परिलक्षित करते हुए, मुद्रा मांग से संचालित होकर, रिज़र्व मुद्रा 26 मार्च, 2021 को 14.2 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) बढ़ गई, जबकि मुद्रा आपूर्ति (एम3) 11.8 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) बढ़ गई (26 मार्च तक) और बैंक ऋण संवृद्धि 5.6 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) हो गई (26 मार्च तक)। वीआरआरआर की सफलता और अधिशेष चलनिधि के बढ़ते स्तर को देखते हुए, अब दीर्घावधि परिपक्वता वाली वीआरआरआर नीलामियाँ आयोजित करने का निर्णय लिया गया है। इसका संकेत 06 फरवरी, 2020 को घोषित हुए संशोधित चलनिधि प्रबंधन फ्रेमवर्क में दिया गया था। इन नीलामियों की राशि और परिपक्वता अवधि का निर्णय, उभरती चलनिधि और वित्तीय स्थितियों के आधार पर किया जाएगा। यह आरबीआई के चलनिधि प्रबंधन परिचालनों का हिस्सा है और इसे चलनिधि में सख्ती के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। वस्तुतः, वीआरआरआर नीलामियों के जरिये चलनिधि अवशोषणों पर उच्चतर ब्याज दर भुगतान कर, आरबीआई परोक्ष रूप से चलनिधि को विस्तार ही दे रहा है। 14. इस वर्ष मध्य-फरवरी से, वैश्विक वित्तीय बाजार अस्थिर होता गया, जो मजबूत संवृद्धि संबंधी प्रत्याशाओं के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय पण्य कीमतों में बढ़ोतरी के कारण मुद्रास्फीति संबंधी बढ़ती चिंताओं की वजह से सरकारी स्वर्ण बॉण्ड प्रतिफल में वृद्धि से संचालित था। बॉण्ड बाजार की अस्थिरता तथा मजबूत हो रहे अमरीकी डॉलर का प्रभाव उभरते बाज़ारों पर पड़ता रहा। अमरीका में संस्फीतिय चक्र की प्रत्याशा के कारण उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) से पोर्टफोलियो प्रवाह घट गया जो मार्च में भी जारी रहा। 15. वैश्विक वित्तीय चक्र में सभी देशों के वित्तीय बाजारों की मजबूत अंतर-संबद्धता तथा प्रगामी एकीकरण को देखते हुए, आरबीआई द्वारा बार-बार दिए गए चलनिधि संबंधी आश्वासन और भावी मार्गदर्शन के बावजूद भारत में निवेशकों की असहजता बढ़ रही थी। बेंचमार्क 10-वर्षीय प्रतिफल, जो अप्रैल 2020-जनवरी 2021 के दौरान 5.93 प्रतिशत (औसतन) पर कारोबार कर रहा था, पुनः नीचे आने से पहले 10 मार्च 2021 को 6.25 प्रतिशत तक बढ़ गया। सरकारी-प्रतिभूतियों के प्रतिफल के अनुरूप, हाल की अवधि में सभी जारीकर्ताओं और रेटिंग श्रेणियों में कॉरपोरेट बॉन्ड प्रतिफल भी कठोर हुआ। जनवरी 2021 के अंत से, 3-वर्षीय और 5-वर्षीय एएए कॉरपोरेट बॉन्ड प्रतिफल की परिपक्वता 31 मार्च 2021 तक क्रमशः 30 बीपीएस और 31 बीपीएस तक बढ़ी। इन घटनाक्रमों को दर्शाते हुए, कॉरपोरेट बॉण्ड निर्गमन दिसंबर 2020 में दर्ज ₹88,130 करोड़ की अपनी ऊंचाई से घटकर फरवरी में ₹45,685 करोड़ रहा। 16. बाजार की इस असहजता को ध्यान में रखते हुए तथा पर्याप्त चलनिधि और बाजार की सुव्यवस्थित स्थिति सुनिश्चित करने की हमारी प्रतिबद्धता के अनुरूप रिज़र्व बैंक ने अपने खुला बाजार परिचालन (ओएमओ) को फरवरी में और बढ़ाया तथा फरवरी और मार्च में पाँच विशेष ओएमओ (ऑपरेशन ट्विस्ट) आयोजित किया; 4 मार्च 2021 को ऑपरेशन ट्विस्ट (ओटी) नीलामी की राशि को बढ़ाकर ₹10,000 करोड़ से ₹15,000 करोड़ कर दिया गया था; तथा 10 मार्च 2021 को एक नए असमान स्वरूप का नवोन्न्मेषी विशेष ओएमओ (₹20,000 करोड़ की खरीद और ₹15,000 करोड़ की बिक्री) अपनाया गया ताकि टर्म-प्रीमिया को कम किया जा सके तथा चलनिधि डाली जा सके जिसपर बाजार ने अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाई। ये स्पष्ट संकेत थे कि रिज़र्व बैंक अपने टूलकिट के विभिन्न उपकरणों के माध्यम से पर्याप्त चलनिधि द्वारा बाजार को सहारा प्रदान करेगा। ओएमओ के चलते चलनिधि-प्रभाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हमने 2020-21 के दौरान ₹3.13 लाख करोड़ शुद्ध खरीद की। 17. वर्ष 2021-22 के लिए, इस अनुभव से सीख लेते हुए, इसे एक अलग रूप देने के लिए द्वितीयक बाजार सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम या जी-एसएपी 1.0 लाने का फैसला किया है। इस कार्यक्रम के तहत, चलनिधि की सहज स्थिति के बीच प्रतिफल वक्र के स्थिर और व्यवस्थित विकास को सक्षम बनाने के उद्देश्य से आरबीआई सरकारी प्रतिभूतियों के खुले बाजार खरीद की एक विशिष्ट राशि के लिए अग्रिम प्रतिबद्धता प्रस्तुत करेगा। प्रयास यह होगा कि बहाली के लिए अनुकूल वित्तीय स्थितियां सुनिश्चित की जाएं ताकि उसे पटरी पर बनाए रखा जा सके । इसलिए 2021-22 की पहली तिमाही के लिए ₹1 लाख करोड़ के जी-एसएपी की घोषणा करने का निर्णय लिया गया है। जी-एसएपी 1.0 के तहत ₹25,000 करोड़ की कुल राशि के लिए सरकारी प्रतिभूतियों की पहली खरीद 15 अप्रैल 2021 को आयोजित की जाएगी। 18. जी-एसएपी 1.0 परिचालनों के सकारात्मक आकार को वित्तीय बाजारों के उन क्षेत्रों के संदर्भ में देखने की आवश्यकता है जो मूल्य निर्धारक बेंचमार्क के रूप में सरकारी प्रतिभूति प्रतिफल वक्र पर भरोसा करते हैं। इसके अलावा, परिपक्वता तक धारित (एचटीएम) व्यवस्था के विस्तार से ₹4.0 लाख करोड़ से अधिक के निवेश के लिए दरवाजा खुला है। हम एलएएफ के तहत अपने नियमित परिचालन, दीर्घावधि रेपो/रिवर्स रेपो नीलामी, विदेशी मुद्रा परिचालन और विशेष ओएमओ सहित खुला बाजार परिचालन भी जारी रखेंगे ताकि मौद्रिक नीति के रुख के अनुरूप चलनिधि की स्थिति विकसित हो सके और वित्तीय स्थितियां सभी हितधारकों के लिए सहायक हों। 19. 2021-22 के लिए चलनिधि प्रबंधन रणनीति तैयार करते समय, मैं यह स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि रिज़र्व बैंक का प्रयास प्रतिफल वक्र का सुव्यवस्थित विकास सुनिश्चित करना है जो उसके किसी भी विशिष्ट स्तर के बजाय बुनियादी तथ्यों से नियंत्रित हो। सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में सभी मीयादी संरचना और जारीकर्ताओं में अन्य वित्तीय बाजार लिखतों के मूल्य निर्धारण में इसकी केंद्रीय भूमिका को देखते हुए हमारा उद्देश्य सरकारी प्रतिभूति बाजार में अस्थिरता को दूर करना है । नवोदित और संशयशील बहाली को उठाने और स्थायी बनाने की यह आवश्यक शर्तें हैं। कहने की आवश्यकता नहीं है कि, एक बाजार के नजरिए से बुनियादी तथ्यों के अनुरूप बॉण्ड प्रतिफल में दोनों ओर उतार-चढ़ाव बहुत सामान्य हैं; यद्यपि, यदि वित्तीय स्थिरता को संरक्षित किया जाना है तो इस तरह के उतार-चढ़ाव अप्रत्याशित और विघटनकारी नहीं होना चाहिए । 20. रिज़र्व बैंक निश्चित रूप से वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने तथा वैश्विक प्रभाव विस्तार और परिणामी अस्थिरता से घरेलू वित्तीय बाजारों को बचाने के लिए जो कुछ भी करता है, करना जारी रखेगा । मैं बाजार सहभागियों से आग्रह करूंगा कि वे हमारे कार्यों, संप्रेषणों और संकेतों पर संतुलित तरीके से ध्यान दें । हम एक साथ मिलकर चुनौतियों से उबर सकते हैं और महामारी के बाद एक स्थायी बहाली की नींव रख सकते हैं । हमें अपनी सुदृढ़ क्षमता के साथ अपने वादों के लिए मजबूती से तैयार करना चाहिए । अतिरिक्त उपाय 21. इस पृष्ठभूमि में, और बहाली को पोषित करने की दृष्टि से, कुछ अतिरिक्त उपायों की घोषणा की जा रही है । मौद्रिक नीति विवरण की विकासात्मक और नियामकीय नीतियों (भाग-बी) पर दिए गए वक्तव्य में उपायों का ब्यौरा दिया गया है । टीएलटीआरओ ऑन टैप योजना – समय-सीमा का विस्तार 22. विशिष्ट क्षेत्रों में गतिविधियों की बहाली हेतु चलनिधि उपायों पर अधिक ध्यान बढ़ाने के उद्देश्य से 9 अक्टूबर 2020 को टीएलटीआरओ ऑन टैप योजना घोषित की गई थी जिसे 31 मार्च 2021 तक उपलब्ध कराया गया था, अब इसे आगे छह महीने की अवधि अर्थात 30 सितंबर 2021 तक और बढ़ाया जा रहा है। अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों के लिए चलनिधि सुविधा 23. अप्रैल-अगस्त 2020 के दौरान नाबार्ड, सिडबी, एनएचबी और एक्जिम बैंक जैसी अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाओं (एआईएफआई) को ₹75,000 करोड़ की विशेष पुनर्वित्त सुविधाएं प्रदान की गईं। अभी भी नवोदित विकास प्रयोजनों के पोषण हेतु, वास्तविक अर्थव्यवस्था में निरंतर क्रेडिट प्रवाह बनाए रखना आवश्यक महसूस किया गया है । तदनुसार, 2021-22 के दौरान एआईएफआई को नए ऋण हेतु ₹50,000 करोड़ रुपये की चलनिधि सहायता प्रदान की जाएगी: नाबार्ड को ₹25,000 करोड़; एनएचबी को ₹10,000 करोड़ और सिडबी को 15,000 करोड़। भुगतान बैंकों के लिए अधिकतम शेष राशि की सीमा में वृद्धि 24. वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ाने और अपने ग्राहकों की बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भुगतान बैंकों की क्षमता का विस्तार करने के उद्देश्य से, प्रत्येक ग्राहक की ₹1 लाख के अधिकतम दैनिक शेष की वर्तमान सीमा को तत्काल प्रभाव से ₹2 लाख तक बढ़ाया जा रहा है। आस्ति पुनर्निर्माण कंपनी - समिति का गठन 25. आस्ति पुनर्निर्माण कंपनियां (एआरसी) दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हालांकि, अभी तक उनकी क्षमता का अहसास पूरी तरह से नहीं हो पाया है। इसलिए, एक समिति का गठन करने का प्रस्ताव है जो आस्ति पुनर्निर्माण कंपनियों के कामकाज की गहन समीक्षा करे और वित्तीय क्षेत्रों की बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इन संस्थाओं को सक्षम बनाने के लिए उपायों की सिफारिश करे। एनबीएफसी के माध्यम से बैंकों को आगे ऋण देने की अनुमति प्रदान करना 26. अंतिम छोर तक ऋण उपलब्ध कराने में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए कृषि, एमएसएमई तथा आवास क्षेत्र को आगे ऋण देने के लिए बैंक द्वारा पंजीकृत एनबीएफसी को ऋण दिए जाने को प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋण के रूप में वर्गीकृत किए जाने की अनुमति प्रदान की गई। 13 अगस्त 2019 से 31 मार्च 2021 तक उपलब्ध इस छूट को 30 सितंबर 2021 तक अगले छह महीने के लिए आगे बढ़ाया जाता है। प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण (पीएसएल) - ईएनडब्ल्यूआर / एनडब्ल्यूआर के बदले ऋण सीमा में वृद्धि 27. कृषि उत्पादों को गिरवी/ दृष्टिबंधक रखने के बदले व्यक्तिगत किसानों को कृषि ऋण दिए जाने को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया गया है कि गोदाम विकास और विनियामक प्राधिकरण (WDRA) में पंजीकृत गोदामों द्वारा जारी परक्राम्य गोदाम रसीदों (NWRs)/ इलेक्ट्रॉनिक परक्राम्य गोदाम रसीदों (e-NWR) द्वारा समर्थित कृषि उत्पादों को गिरवी/ दृष्टिबंधक रखने के बदले प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के अधीन प्रति उधारकर्ता ऋण सीमा को ₹ 50 लाख से बढ़ाकर ₹ 75 लाख कर दिया जाए। अन्य गोदाम रसीदों के लिए प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण के अधीन वर्गीकरण के लिए ऋण सीमा प्रति उधारकर्ता ₹ 50 लाख ही बनी रहेगी। वित्तीय समावेशन सूचकांक 28. सरकार, रिज़र्व बैंक और अन्य नियामकों के लिए वित्तीय समावेशन एक महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है, जिसमें वर्षों से महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। देश में वित्तीय समावेशन के फैलाव को मापने के लिए, रिज़र्व बैंक कई मापदंडों के आधार पर वित्तीय समावेशन सूचकांक (एफआई इंडेक्स) तैयार करने और उसे प्रकाशित किए जाने का प्रस्ताव करता है। इसे हर साल जुलाई में पिछले मार्च को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष के लिए प्रकाशित किया जाएगा। केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली (सीपीएस) – यथा आरटीजीएस और एनईएफटी - बैंकों के अलावा अन्य संस्थाओं के लिए सदस्यता 29. भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा परिचालित केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली (सीपीएस)- आरटीजीएस और एनईएफटी की सदस्यता वर्तमान में कुछ अपवादों के साथ बैंकों तक ही सीमित है। अब यह प्रस्तावित है कि रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट (पीपीआई) जारीकर्ता, कार्ड नेटवर्क, व्हाइट लेबल एटीएम ऑपरेटर और ट्रेड रिसीवेबल्स डिस्काउंटिंग सिस्टम (टीआरईडीएस) प्लेटफॉर्म जैसे गैर-बैंक भुगतान प्रणाली ऑपरेटरों को सीपीएस में सीधी सदस्यता लेने के लिए सक्षम बनाया जाए। इस सुविधा से वित्तीय प्रणाली में निपटान जोखिम को कम करने और सभी उपयोगकर्ता क्षेत्रों में डिजिटल वित्तीय सेवाओं की पहुंच बढ़ने की उम्मीद है। प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट्स (पीपीआई) की अंतरसंचालनीयता (इंटरऑपरेबिलिटी) और खाता सीमा में ₹ 2 लाख तक वृद्धि 30. रिज़र्व बैंक ने अक्टूबर 2018 में पूर्ण-केवाईसी प्रीपेड भुगतान इंस्ट्रूमेंट्स (पीपीआई) के लिए स्वैच्छिक आधार पर इंटरऑपरेबिलिटी अपनाने के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे। चूंकि इंटरऑपरेबिलिटी के लिए माइग्रेशन महत्वपूर्ण नहीं है, इसलिए अब पूर्ण-केवाईसी पीपीआई तथा सभी भुगतान स्वीकृति इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए इंटरऑपरेबिलिटी को अनिवार्य बनाया जाना प्रस्तावित है। पीपीआई के पूर्ण-केवाईसी में माइग्रेशन को प्रोत्साहित करने के लिए, इस तरह के पीपीआई में बकाया राशि पर वर्तमान सीमा को ₹ 1 लाख से बढ़ाकर 2 लाख रुपए किए जाने का प्रस्ताव है। गैर-बैंकों द्वारा जारी पूर्ण-केवाईसी पीपीआई से नकदी आहरण 31. वर्तमान में, केवल बैंकों द्वारा जारी पूर्ण-केवाईसी पीपीआई के लिए नकदी आहरण की अनुमति है। आत्मविश्वास बढ़ाने वाले एक उपाय के रूप में तथा पीपीआई जारीकर्ताओं में एकरूपता लाने के लिए, अब गैर-बैंक पीपीआई जारीकर्ताओं के पूर्ण-केवाईसी पीपीआई के लिए नकद निकासी की अनुमति दिया जाना प्रस्तावित है। इंटरऑपरेबिलिटी के अधिदेश के साथ-साथ यह उपाय, पूर्ण-केवाईसी पीपीआई के लिए माइग्रेशन को बढ़ावा देगा और टीयर III से VI केंद्रों में स्वीकृति बुनियादी ढांचे के लिए भी सहायक होगा। मीयादी जमा में बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) आय को रखने की अवधि में छूट 32. बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) ढांचे के तहत, उधारकर्ताओं को भारत में एडी श्रेणी- I बैंकों में अधिकतम 12 महीनों के लिए मीयादी जमा में ईसीबी आय को रखने की अनुमति है। कोविड -19 महामारी के कारण उधारकर्ताओं के सामने आने वाली कठिनाई को ध्यान में रखकर यह निर्णय लिया गया है कि भारत में एडी श्रेणी- I बैंकों में मीयादी जमा में 1 मार्च 2020 से पहले आहरित की गई अप्रयुक्त ईसीबी आय को रखने की अनुमति प्रदान की जाए। राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के अर्थोपाय अग्रिमों (डब्ल्यूएमए) की सीमा 33. हमने राज्य सरकारों / संघ राज्य प्रदेशों के अर्थोपाय अग्रिमों (डब्ल्यूएमए) की समीक्षा करने एवं अन्य संबंधित मुद्दों के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा गठित एक सलाहकार समिति की सिफारिशों को स्वीकार करने का निर्णय लिया है। तदनुसार, राज्यों और संघ शासित प्रदेशों की सकल डब्ल्यूएमए सीमा को बढ़ाकर ₹ 47,010 करोड़ करने का निर्णय लिया गया है जो फरवरी 2016 में तय की गई ₹ 32,225 करोड़ की वर्तमान सीमा से लगभग 46 प्रतिशत अधिक है। आगे, महामारी के कारण भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अर्थोपाय अग्रिम के लिए मंजूर की गई ₹ 51,560 करोड़ की अंतरिम सीमा को आगे छह महीनों की अवधि, अर्थात 30 सितंबर 2021 तक जारी रखने का निर्णय लिया गया है। निष्कर्ष 34. पिछले वर्ष के विपरीत, वर्ष 2021 की शुरुआत में कई देशों में टीकाकरण अभियान से जगी आशा ने दुनिया भर में बढ़ते संक्रमण और नए म्यूटैंट स्ट्रेनों की चुनौती को कुछ हद तक कम किया है। फिर भी, जिस गति से और सामूहिक प्रयास के साथ दुनिया ने वैक्सीन विकसित करने के लिए वैज्ञानिक ऊर्जा जुटाई और महामारी से संबंधित ऐसे प्रोटोकॉल विकसित किए, जो अब जीवन-पद्धति बन गए हैं, हमें आशा और विश्वास दिलाते हैं कि हम इस नए दूसरे/ तीसरे उछाल से उबर जाएंगे। आशा है कि कोविड-19 के लिए टीकाकरण अभियान से संक्रमण की दर में स्थानीयकृत बढ़ोतरी कम होगी। मैं वास्तव में मानव जाति के अदम्य साहस पर विश्वास करता हूँ जिसने मजबूती और जीने की इच्छा-शक्ति के साथ वर्ष 2020 के दौरान वायरस का सामना किया। हमारी कामना है कि वर्ष 2021 भारत के लिए एक नए आर्थिक युग का अग्रदूत बने। मैं महात्मा गांधी के एक उद्धरण के साथ अपनी बात को विराम देना चाहता हूँ जो हमेशा हम सभी को प्रेरित करता है: “यदि किसी भी स्थिति में धैर्य की आवश्यकता है, तो उसे समय के अंत तक कायम रखना होगा। और एक अटूट विश्वास ही अत्यंत घोर तूफान के बीच में भी बना रहेगा।”2 धन्यवाद। सुरक्षित रहें। सकुशल रहें। नमस्कार। (योगेश दयाल) प्रेस प्रकाशनी: 2021-2022/15 |