गवर्नर का वक्तव्य: 8 अगस्त 2024 - आरबीआई - Reserve Bank of India
गवर्नर का वक्तव्य: 8 अगस्त 2024
सितंबर 2016 में अपनी शुरुआत के बाद से मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की यह 50वीं बैठक थी।1 लचीला मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (एफआईटी) ढांचा जल्द ही अपने कामकाज के आठ वर्ष पूरे कर लेगा। इस ढांचे ने अत्यधिक तनाव के समय में भी समष्टि-आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में अच्छा काम किया है। इसका अंतर्निहित लचीलापन, महामारी से संबंधित तनाव, यूक्रेन में युद्ध के प्रभाव-प्रसार और जारी भू-राजनीतिक संकट का सामना कर सका है। आज, जबकि भारत की संवृद्धि सुदृढ़ बनी हुई है, मुद्रास्फीति में मोटे तौर पर गिरावट देखी जा रही है। मजबूत समष्टि-आर्थिक बुनियाद ने भारत की संभावनाओं में अधिक विश्वास उत्पन्न किया है। मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के निर्णय और विचार-विमर्श 2. मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक 6, 7 और 8 अगस्त 2024 को हुई। उभरती समष्टि- आर्थिक और वित्तीय स्थितियों और संभावना के विस्तृत मूल्यांकन के बाद, इसने 4-2 की बहुमत से नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने का निर्णय लिया। परिणामस्वरूप, स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 6.25 प्रतिशत और सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.75 प्रतिशत पर बनी हुई है। एमपीसी ने 6 में से 4 सदस्यों के बहुमत से निर्णय लिया कि वह निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखेगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संवृद्धि का समर्थन करते हुए मुद्रास्फीति उत्तरोत्तर लक्ष्य के साथ संरेखित हो। 3. अब मैं इन निर्णयों के तर्क के आधार को संक्षेप में बताऊंगा। अप्रैल और मई 2024 के दौरान 4.8 प्रतिशत पर स्थिर रहने के बाद, जून 2024 में हेडलाइन मुद्रास्फीति बढ़कर 5.1 प्रतिशत हो गई, जो मुख्य रूप से खाद्य घटक द्वारा संचालित है, जोकि अभी भी स्थिर है।2 मूल मुद्रास्फीति (खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई) में नरमी आई, जबकि ईंधन समूह में अपस्फीति बनी रही।3 अनुकूल आधार प्रभावों के कारण 2024-25 की दूसरी तिमाही के दौरान हेडलाइन मुद्रास्फीति में अपेक्षित नरमी तीसरी तिमाही में रिवर्स होने की संभावना है। हालांकि, स्थिर शहरी खपत और ग्रामीण खपत में सुधार के साथ-साथ मजबूत निवेश मांग के कारण घरेलू संवृद्धि अच्छी स्थिति में है। 4. इन कारकों के संगम के बीच, एमपीसी ने यह निर्णय लिया कि मौद्रिक नीति के लिए मुद्रास्फीति के प्रक्षेपवक्र और उसके जोखिमों पर कड़ी निगरानी बनाए रखते हुए अपने मार्ग पर बने रहना महत्वपूर्ण है। जीडीपी में आघात सह और स्थिर संवृद्धि, मौद्रिक नीति को मुद्रास्फीति पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करने के लिए सक्षम बनाता है। इसे टिकाऊ आधार पर मुद्रास्फीति को 4.0 प्रतिशत के लक्ष्य के अनुरूप लाने की अपनी प्रतिबद्धता में अवस्फीतिकारी और दृढ़ रहना जारी रखना चाहिए। तदनुसार, एमपीसी ने इस बैठक में नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने का निर्णय लिया। मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए मौद्रिक नीति की प्रतिबद्धता, सतत अवधि के लिए उच्च संवृद्धि की नींव को मजबूत करेगी। इसलिए, एमपीसी ने निभाव को वापस लेने के अवस्फीतिकारी रुख को जारी रखने की आवश्यकता को दोहराया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संवृद्धि का समर्थन करते हुए मुद्रास्फीति उत्तरोत्तर लक्ष्य के साथ संरेखित रहे। संवृद्धि और मुद्रास्फीति का आकलन वैश्विक संवृद्धि 5. वैश्विक आर्थिक संभावना स्थिर, यद्यपि असमान विस्तार दर्शाता है।4 विनिर्माण क्षेत्र में मंदी का संकेत मिल रहा है, जबकि सेवा गतिविधि स्थिर बनी हुई है।5 स्थिर सेवा कीमतों के बावजूद, प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति में कमी आ रही है। विभिन्न देशों में संवृद्धि और मुद्रास्फीति की अलग-अलग संभावना के साथ, मौद्रिक नीति विभिन्न क्षेत्रों में भिन्नता के संकेत दे रही है। कई केंद्रीय बैंक भावी मार्गदर्शन और दरों में कटौती के माध्यम से नीतिगत बदलावों की ओर सावधानी से बढ़ रहे हैं; साथ ही, कुछ केंद्रीय बैंकों द्वारा नीतिगत सख्ती भी की गई है।6 वैश्विक वित्तीय बाजारों में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। पिछली बैठक के बाद से बॉण्ड प्रतिफल और डॉलर सूचकांक में नरमी आई है। 6. हालांकि निकट अवधि की संभावना सकारात्मक दिख रही है, लेकिन मध्यम- अवधि के वैश्विक संवृद्धि संभावना के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं। जनसांख्यिकीय बदलाव, जलवायु परिवर्तन, भू-राजनीतिक तनाव और विखंडन, बढ़ता सार्वजनिक ऋण और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी नई तकनीकें नई चुनौतियाँ खड़ी करती हैं। एक सुसंगत नीति दृष्टिकोण, जिसमें मौद्रिक नीति को नीतिगत ट्रेड-ऑफ को प्रबंधित करने के लिए अन्य नीतियों द्वारा पूरक बनाया जाता है, ऐसी कई चुनौतियों से निपटने के लिए महत्वपूर्ण होगा। घरेलू संवृद्धि 7. घरेलू आर्थिक गतिविधि आघात सह बनी हुई है। आपूर्ति पक्ष पर, दक्षिण-पश्चिम मानसून में लगातार प्रगति7, खरीफ की उच्च संचयी बुवाई8 और जलाशयों के स्तर में सुधार9 खरीफ उत्पादन के लिए शुभ संकेत है। मानसून के मौसम के दूसरे भाग के दौरान ला नीना की स्थिति विकसित होने की संभावना 2024-25 में कृषि उत्पादन पर असर डाल सकती है।10 8. घरेलू मांग में सुधार के कारण विनिर्माण गतिविधि में वृद्धि जारी है। मई 2024 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) की वृद्धि में तेजी आई। जुलाई में विनिर्माण के लिए क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) 58.1 पर रहा। उपलब्ध उच्च आवृत्ति संकेतकों के अनुसार सेवा क्षेत्र में उछाल बना रहा।11 जुलाई 2024 में पीएमआई सेवाएं 60.3 पर मजबूत रहीं और लगातार सात महीनों से 60 से ऊपर हैं, जो मजबूत विस्तार का संकेत है। 9. मांग पक्ष पर, ग्रामीण मांग12 में सुधार और शहरी क्षेत्रों में स्थिर विवेकाधीन खर्च से घरेलू खपत को समर्थन मिला है।13 पूंजीगत व्यय14 और अन्य नीतिगत समर्थन पर सरकार के निरंतर जोर के बीच, स्थिर निवेश गतिविधि में तेजी15 बनी हुई है।16 बैंक ऋण में विस्तार के कारण निजी कॉर्पोरेट निवेश में तेजी17 आ रही है।18 जून में वस्तुओं के निर्यात में वृद्धि हुई, हालांकि धीमी गति से। तेल से इतर -स्वर्ण से इतर आयात में वृद्धि, घरेलू मांग की आघात-सहनीयता को दर्शाती है।19 सेवा निर्यात ने जून में नरमी से पहले मई 2024 में दोहरे अंकों की वृद्धि दर्ज की।20 10. आगे चलकर, कृषि गतिविधि में सुधार से ग्रामीण उपभोग की संभावनाएँ उज्ज्वल होंगी, जबकि सेवा गतिविधि में निरंतर उछाल से शहरी उपभोग को समर्थन मिलेगा। बैंकों और कॉरपोरेट्स के स्वस्थ तुलन-पत्र; सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय पर जोर; और निजी निवेश में तेजी के स्पष्ट संकेत, निर्धारित निवेश गतिविधि को बढ़ावा देंगे। वैश्विक व्यापार की संभावनाओं में सुधार से बाहरी मांग में मदद मिलने की उम्मीद है।21 हालाँकि, लंबे समय तक भू-राजनीतिक तनाव, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में अस्थिरता और भू-आर्थिक विखंडन से होने वाले प्रभाव-प्रसार अधोगामी जोखिम उत्पन्न करते हैं। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2024-25 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि 7.2 प्रतिशत अनुमानित है, जो पहली तिमाही 7.1 प्रतिशत, दूसरी तिमाही 7.2 प्रतिशत, तीसरी तिमाही 7.3 प्रतिशत और चौथी तिमाही 7.2 प्रतिशत अनुमानित है। 2025-26 की पहली तिमाही के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि 7.2 प्रतिशत अनुमानित है। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं। यह देखा जा सकता है कि हमने जून 2024 के अनुमान के संबंध में चालू वर्ष की पहली तिमाही के लिए संवृद्धि अनुमान को थोड़ा कम कर दिया है। यह मुख्य रूप से कुछ उच्च आवृत्ति संकेतकों पर अद्यतन जानकारी के कारण है जो अनुमानित कॉर्पोरेट लाभप्रदता, सामान्य सरकारी व्यय और मूल उद्योगों के उत्पादन से कम दिखाते हैं।22 मुद्रास्फीति 11. खाद्य मुद्रास्फीति अपेक्षा से अधिक रहने के कारण जून 2024 में हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति बढ़कर 5.1 प्रतिशत हो गई। ईंधन लगातार दसवें महीने अपस्फीति में रहा। मई और जून में मूल मुद्रास्फीति ऐतिहासिक रूप से कम हो गई।23 12. सीपीआई बास्केट में लगभग 46 प्रतिशत के भार के साथ खाद्य मुद्रास्फीति ने मई और जून में हेडलाइन मुद्रास्फीति में 75 प्रतिशत से अधिक का योगदान दिया।24 जून में सब्जियों की कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई और मुद्रास्फीति में इनका योगदान लगभग 35 प्रतिशत रहा।25 अन्य प्रमुख खाद्य वस्तुओं पर भी उच्च मुद्रास्फीति का दबाव बना रहा।26 दूसरी ओर, मई-जून 2024 के दौरान मौजूदा सीपीआई श्रृंखला में मूल सेवाओं की मुद्रास्फीति नए निचले स्तर को छूने के कारण मूल मुद्रास्फीति में नरमी वैविध्यपूर्ण रूप से जारी है।27 13. जुलाई में भी खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेजी जारी रहने की संभावना है।28 हालांकि, बड़े अनुकूल आधार प्रभाव जुलाई में हेडलाइन मुद्रास्फीति को नीचे की ओर धकेल सकते हैं।29 दूध की कीमतों30 और मोबाइल टैरिफ में संशोधन के प्रभाव पर नजर रखने की जरूरत है।31 14. दक्षिण-पश्चिम मानसून में तेजी और बुवाई में अच्छी प्रगति से खाद्य मुद्रास्फीति में कुछ हद तक राहत मिलने की उम्मीद है। अनाज के बफर स्टॉक मानक से ऊपर बने हुए हैं। मार्च 2024 से वृद्धि दर्ज करने के बाद जुलाई में वैश्विक खाद्य कीमतों में नरमी के संकेत मिले।32 सामान्य मानसून मानते हुए और पहली तिमाही में 4.9 प्रतिशत मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए, 2024-25 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत अनुमानित है, जोकि दूसरी तिमाही में 4.4 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 4.7 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 4.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है।33 2025-26 की पहली तिमाही के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति 4.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं। मौद्रिक नीति के लिए मुद्रास्फीति और संवृद्धि की इन स्थितियों का क्या तात्पर्य है? 15. जैसा कि मैंने पहले कहा, खाद्य कीमतों में लगातार हो रहे झटकों ने 2024-25 की पहली तिमाही में अवस्फीति की प्रक्रिया को धीमा कर दिया है। हेडलाइन और मूल मुद्रास्फीति के बीच भी काफी अंतर है।34 इससे यह मुद्दा सामने आया है कि एमपीसी को खाद्य मुद्रास्फीति को कितना महत्व देना चाहिए। मैं इस पर कुछ विस्तार से बात करना चाहूंगा। 16. सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हमारा लक्ष्य हेडलाइन मुद्रास्फीति है जिसमें खाद्य मुद्रास्फीति का भार लगभग 46 प्रतिशत है। उपभोग बास्केट में खाद्य पदार्थों की इतनी अधिक हिस्सेदारी के कारण, खाद्य मुद्रास्फीति के दबावों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा, जन सामान्य हेडलाइन मुद्रास्फीति के अन्य घटकों की तुलना में खाद्य मुद्रास्फीति के संदर्भ में मुद्रास्फीति को अधिक समझती है। इसलिए, हम केवल इसलिए संतुष्ट नहीं हो सकते और न ही होना चाहिए क्योंकि मूल मुद्रास्फीति में काफी गिरावट आई है। 17. दूसरी और उतनी ही महत्वपूर्ण वास्तविकता यह है कि उच्च खाद्य मुद्रास्फीति, घरेलू मुद्रास्फीति अपेक्षाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, जिसका मुद्रास्फीति के भावी प्रक्षेपवक्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। मई 2022 और सितंबर 2023 के बीच नरमी का रुख देखने के बाद, घरेलू मुद्रास्फीति की उम्मीदें नवंबर 2023 से उच्च खाद्य मुद्रास्फीति की वजह से बढ़ गई हैं।35 लगातार उच्च खाद्य मुद्रास्फीति और अनियंत्रित मुद्रास्फीति की प्रत्याशाएं- यदि वे साकार होती हैं - तो जीवन-यापन की लागत के आधार पर मजदूरी में वृद्धि के माध्यम से मूल मुद्रास्फीति पर असर डाल सकती हैं। बदले में, यह सेवाओं के साथ-साथ वस्तुओं के लिए उच्च कीमतों के रूप में फर्मों द्वारा आगे बढ़ाया जा सकता है, विशेष रूप से मजबूत समग्र मांग की स्थिति में। तीसरा, इन व्यवहारिक परिवर्तनों के परिणामस्वरूप खाद्य मुद्रास्फीति कम होने के बाद भी समग्र मुद्रास्फीति स्थिर हो सकती है। 18. एमपीसी उच्च खाद्य मुद्रास्फीति को देख सकता है यदि यह क्षणिक है; लेकिन उच्च खाद्य मुद्रास्फीति के माहौल में, जैसा कि हम अभी अनुभव कर रहे हैं, एमपीसी ऐसा करने का जोखिम नहीं उठा सकता है। इसे लगातार खाद्य मुद्रास्फीति से होने वाले प्रभाव-प्रसार या दूसरे दौर के प्रभावों को रोकने और मौद्रिक नीति विश्वसनीयता में अब तक प्राप्त लाभ को बनाए रखने के लिए सतर्क रहना होगा। चलनिधि और वित्तीय बाजार स्थिति 19. प्रणालीगत चलनिधि, जून में घाटे से जुलाई में अधिशेष की स्थिति में पहुंच गई।36 बदलती चलनिधि स्थितियों के अनुरूप, रिज़र्व बैंक ने एलएएफ37 के अंतर्गत दो-तरफ़ा परिचालन किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अंतर-बैंक एक दिवसीय दर, नीति रेपो दर के साथ निकटता से जुड़ी रहे।38 20. चलनिधि गतिशीलता को प्रतिबिंबित करते हुए, भारित औसत मांग दर (डबल्यूएसीआर) औसतन एलएएफ़ कॉरिडोर के मध्य के करीब रही।39 समूचे सावधि मुद्रा बाजार खंड में जमा प्रमाणपत्र (सीडी) और 3 महीने के खज़ाना बिल (टी-बिल) पर प्रतिफल कम हुआ, जबकि वाणिज्यिक पत्रों (सीपी) पर प्रतिफल स्थिर रहा।40 10 वर्ष की जी-सेक प्रतिफल जून-जुलाई और अगस्त में अब तक कम हुई है.41 हाल के महीनों में मीयादी प्रीमियम स्थिर बना हुआ है।42 ऋण बाजार में संचरण जारी है।43 21. भविष्य में, रिज़र्व बैंक उभरती हुई चलनिधि स्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपने चलनिधि प्रबंधन कार्यों में चुस्त और लचीला बना रहेगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रा बाजार ब्याज दरें व्यवस्थित तरीके से विकसित हों। 22. 2024-25 (7 अगस्त तक) के दौरान, भारतीय रुपया (आईएनआर) काफी हद तक सीमित दायरे में रहा।44 भारतीय रुपये की कम अस्थिरता, भारत की समष्टि आर्थिक और वित्तीय स्थिरता तथा बाह्य क्षेत्र के बेहतर होती संभावना का प्रमाण है। 23. पिछले कुछ दिनों में, वैश्विक वित्तीय बाजारों में एक प्रमुख अर्थव्यवस्था में संवृद्धि की मंदी, मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक तनाव बढ़ने और कैरी ट्रेड के समाप्त होने की चिंताओं के कारण उथल-पुथल देखी गई है। इन घटनाक्रमों का उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव हो रहा है। इस संदर्भ में, बाजार सहभागियों के लिए भारत की समष्टि आर्थिक बुनियादी बातों की मजबूती को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण होगा, जो मजबूत बनी हुई है। भारत ने मजबूत प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण किया है जो घरेलू अर्थव्यवस्था को ऐसे वैश्विक प्रभाव- विस्तार से आघात- सहनीयता प्रदान करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक अपने विनियामक क्षेत्र में वित्तीय बाज़ारों का सुव्यवस्थित विकास सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। वित्तीय स्थिरता 24. भारतीय वित्तीय प्रणाली आघात-सह बनी हुई है और व्यापक समष्टि आर्थिक स्थिरता से उसे मजबूती मिल रही है। इसकी अच्छी तरह से पूंजीकृत और सुचारू तुलन-पत्र उच्च जोखिम अवशोषण क्षमता को दर्शाती है।45 एनबीएफसी क्षेत्र और शहरी सहकारी बैंकों में भी सुधार जारी है।46 25. वित्तीय क्षेत्र की ऐसी स्थिर परिस्थितियों में भी, संभावित जोखिमों और चुनौतियों, यदि कोई हों, की सक्रिय पहचान पर जोर से दूर नहीं जा सकते। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में, मैं चार मुद्दों पर प्रकाश डालना चाहूंगा। प्रथम, यह देखा गया है कि वैकल्पिक निवेश के रास्ते, खुदरा ग्राहकों के लिए अधिक आकर्षक होते जा रहे हैं तथा बैंकों को वित्तपोषण के मोर्चे पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि बैंक जमा ऋण वृद्धि से पीछे है। परिणामस्वरूप, बैंक बढ़ती ऋण मांग को पूरा करने के लिए अल्पकालिक गैर-खुदरा जमा और देयता के अन्य साधनों का अधिक सहारा ले रहे हैं। जैसा कि मैंने अन्यत्र जोर दिया है, इससे बैंकिंग प्रणाली में संरचनात्मक चलनिधि संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए, बैंक नवीन उत्पादों और सेवाएं प्रदान कर तथा अपने विशाल शाखा नेटवर्क का पूरा लाभ उठाकर घरेलू वित्तीय बचत को जुटाने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। 26. दूसरा, यह देखा गया है कि जिन क्षेत्रों में पिछले वर्ष नवंबर में रिज़र्व बैंक द्वारा पूर्व-निवारक विनियामक उपायों की घोषणा की गई थी, उनमें ऋण संवृद्धि में नरमी देखी गई है।47 हालाँकि, व्यक्तिगत ऋण के कुछ क्षेत्रों में उच्च संवृद्धि जारी है।48 खुदरा ऋणों के माध्यम से अतिरिक्त ऋण, जो कि मुख्यतः उपभोग उद्देश्यों के लिए है, पर वृहद-विवेकपूर्ण दृष्टिकोण से सावधानीपूर्वक निगरानी की आवश्यकता है। इसके लिए आवश्यकतानुसार अंडरराइटिंग मानकों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन और अंशांकन करना, जितना आवश्यक हो, साथ ही ऐसे ऋणों की मंजूरी के बाद निगरानी करना जरूरी हो जाता है। 27. तीसरा मुद्दा जो हमारा ध्यान आकर्षित कर रहा है, वह है आवास इक्विटी ऋण, या टॉप-अप आवासीय ऋण जैसाकि भारत में इन्हें कहा जाता है, जो तीव्र गति से बढ़ रहा है। बैंकों और एनबीएफसी भी स्वर्ण ऋण जैसे अन्य संपार्श्विक ऋणों पर टॉप-अप ऋण प्रदान कर रहे हैं। यह देखा गया है कि ऋण-मूल्य (एलटीवी) अनुपात, जोखिम भार और निधियों के अंतिम उपयोग की निगरानी से संबंधित विनियामक निर्देशों का कुछ संस्थाओं द्वारा सख्ती से पालन नहीं किया जा रहा है। मैं दोहरा रहा हूँ कतिपय संस्थाएं। इस तरह की पद्धतियों के कारण ऋण राशि का उपयोग अनुत्पादक क्षेत्रों में या सट्टेबाजी के उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। अतः, बैंकों और एनबीएफसी को ऐसी पद्धतियों की समीक्षा करने और सुधारात्मक कार्रवाई करने की सूचना दी जानी चाहिए। 28. चौथा, हाल ही में विश्व स्तर पर अनोखा आईटी व्यवधान हुआ, जिससे कई देशों में व्यवसाय प्रभावित हुए। इस व्यवधान ने यह प्रदर्शित कर दिया कि यदि कोई छोटा सा तकनीकी परिवर्तन गड़बड़ा जाए तो वह वैश्विक स्तर पर तबाही मचा सकता है। इसने बड़ी प्रौद्योगिकी कम्पनियों और तृतीय-पक्ष प्रौद्योगिकी समाधान प्रदाताओं पर तेजी से बढ़ती निर्भरता को भी दर्शाया। इस पृष्ठभूमि में, यह आवश्यक है कि बैंक और वित्तीय संस्थान परिचालनगत आघात सहनीयता बनाए रखने के लिए अपनी आईटी, साइबर सुरक्षा और तृतीय-पक्ष आउटसोर्सिंग व्यवस्था में उचित जोखिम प्रबंधन ढांचा तैयार करें। रिज़र्व बैंक ने ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए मजबूत व्यवसाय निरंतरता योजनाओं (बीसीपी) के महत्व पर बार-बार जोर दिया है। बाह्य क्षेत्र 29. कम व्यापार घाटे और मजबूत सेवाओं और विप्रेषण प्राप्तियों के कारण भारत का चालू खाता घाटा (सीएडी) 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद के 2.0 प्रतिशत से घटकर 2023-24 में सकल घरेलू उत्पाद का 0.7 प्रतिशत हो गया। वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में, निर्यात की तुलना में आयात में तेजी से वृद्धि होने के कारण पण्य व्यापारिक घाटा बढ़ गया। सेवाओं के निर्यात में तेजी49 और मजबूत विप्रेषण प्राप्तियों से 2024-25 की पहली तिमाही में चालू खाता घाटा (सीएडी) को टिकाऊ स्तर पर बनाए रखने की उम्मीद है। हमारा अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान चालू खाता घाटा (सीएडी) काफी हद तक प्रबंधनीय बना रहेगा। 30. बाहरी वित्तपोषण के मामले में, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक जून 2024 से घरेलू बाजार में शुद्ध खरीदार बन गए हैं, अप्रैल और मई में 4.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बहिर्वाह के बाद जून-अगस्त (6 अगस्त तक) के दौरान 9.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का शुद्ध प्रवाह हुआ। 2024-25 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह में तेजी आई क्योंकि अप्रैल-मई 2024 के दौरान सकल एफडीआई में 20 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई, जबकि इस अवधि के दौरान शुद्ध एफडीआई प्रवाह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में दोगुना हो गया।50 अप्रैल-जून 2024-25 के दौरान बाह्य वाणिज्यिक उधार में कमी आई, जबकि अनिवासी जमा में पिछले वर्ष की तुलना में अप्रैल-मई के दौरान अधिक शुद्ध अंतर्वाह दर्ज किया गया।51 भारत का विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि 2 अगस्त 2024 तक 675 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंच गया।52 कुल मिलाकर, भारत का बाह्य क्षेत्र आघात सह बना हुआ है क्योंकि प्रमुख संकेतकों में सुधार जारी है।53 हमें विश्वास है कि हम अपनी बाह्य वित्तपोषण आवश्यकताओं को आराम से पूरा कर लेंगे। अतिरिक्त उपाय 31. अब मैं कुछ अतिरिक्त उपायों की घोषणा करूंगा। डिजिटल ऋण ऐप्स की सार्वजनिक रिपोज़िटरी 32. भारत में डिजिटल ऋण पारिस्थितिकी तंत्र के व्यवस्थित विकास के लिए रिज़र्व बैंक ने कई उपाय54 किए हैं। इस दिशा में एक और कदम के रूप में और अनधिकृत डिजिटल ऋण ऐप (डीएलए) से उत्पन्न होने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए, रिज़र्व बैंक अपने विनियमित संस्थाओं द्वारा तैनात डीएलए का एक सार्वजनिक भंडार बनाने का प्रस्ताव करता है। विनियमित संस्थाएँ (आरई) इस रिपोज़िटरी में अपने डीएलए से संबंधित जानकारी रिपोर्ट करेंगी और अपडेट करेंगी। यह उपाय उपभोक्ताओं को अनधिकृत ऋण ऐप की पहचान करने में मदद करेगा। साख सूचना कंपनियों को ऋण सूचना की रिपोर्टिंग की आवृत्ति 33. सटीक क्रेडिट जानकारी की उपलब्धता ऋणदाताओं और उधारकर्ताओं दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। वर्तमान में, ऋणदाताओं को मासिक आधार पर या ऐसे छोटे अंतराल, जिस पर ऋणदाताओं और सीआईसी के बीच सहमति हो, पर क्रेडिट सूचना कंपनियों (सीआईसी) को ऋण संबंधी जानकारी रिपोर्ट करना आवश्यक है। ऋण संबंधी जानकारी की रिपोर्टिंग की आवृत्ति को पखवाड़े के आधार पर या कम अंतराल पर बढ़ाने का प्रस्ताव है। परिणामस्वरूप, उधारकर्ताओं को अपनी ऋण सूचना के तेजी से अद्यतन होने से लाभ होगा, खासकर जब वे अपने ऋण चुकाते हैं। इससे ऋणदाता, अपनी ओर से, उधारकर्ताओं का बेहतर जोखिम मूल्यांकन करने में सक्षम होंगे। यूपीआई के माध्यम से कर भुगतान के लिए लेनदेन की सीमा बढ़ाना 34. वर्तमान में, यूपीआई के लिए लेन-देन की सीमा ₹1 लाख है, सिवाय भुगतानों के कुछ श्रेणी के, जिनकी लेन-देन सीमा अधिक है। अब यूपीआई के माध्यम से कर भुगतान की सीमा को ₹1 लाख से बढ़ाकर ₹5 लाख प्रति लेन-देन करने का निर्णय लिया गया है। इससे उपभोक्ताओं द्वारा यूपीआई के माध्यम से कर भुगतान को और आसान बनाया जा सकेगा। यूपीआई के माध्यम से 'प्रत्यायोजित भुगतान' की शुरूआत 35. यूपीआई में "प्रत्यायोजित भुगतान" की सुविधा शुरू करने का प्रस्ताव है। इससे एक व्यक्ति (प्राथमिक उपयोगकर्ता) दूसरे व्यक्ति (द्वितीयक उपयोगकर्ता) को प्राथमिक उपयोगकर्ता के बैंक खाते से एक सीमा तक यूपीआई लेनदेन करने की अनुमति दे सकेगा, इसके लिए द्वितीयक उपयोगकर्ता को अलग से बैंक खाता यूपीआई से जोड़कर रखने की आवश्यकता नहीं होगी। इससे डिजिटल भुगतान की पहुंच तथा उपयोग और अधिक गहन होगा। चेकों का निरंतर समाशोधन 36. वर्तमान में, चेक ट्रंकेशन प्रणाली (सीटीएस) के माध्यम से चेक का समाशोधन बैच प्रोसेसिंग मोड में संचालित होती है और इसमें दो कार्य दिवसों तक का समाशोधन चक्र होता है। सीटीएस में 'ऑन-रियलाइज़ेशन-निपटान' के साथ निरंतर समाशोधन शुरू करके समाशोधन चक्र को कम करने का प्रस्ताव है। इसका तात्पर्य है कि चेक प्रस्तुत किए जाने के दिन कुछ घंटों के भीतर ही उसका समाशोधन हो जाएगा। इससे चेक भुगतान में तेज़ी आएगी और भुगतानकर्ता और आदाता दोनों को लाभ होगा। निष्कर्ष 37. मौजूदा मौद्रिक नीति व्यवस्था के अंतर्गत, मुद्रास्फीति और संवृद्धि संतुलित तरीके से विकसित हो रहे हैं तथा समग्र समष्टि आर्थिक स्थितियाँ स्थिर हैं। संवृद्धि आघात-सह बनी हुई है, मुद्रास्फीति में गिरावट का रुझान रहा है और हमने मूल्य स्थिरता प्राप्त करने में प्रगति की है; लेकिन हमें अभी और दूरी तय करनी है। मूल्य स्थिरता के हमारे लक्ष्य की ओर प्रगति बड़े और लगातार आपूर्ति पक्ष के झटकों, विशेष रूप से खाद्य पदार्थों में, के कारण असमान रही है। इसलिए हमें यह सुनिश्चित करने के लिए सतर्क रहने की आवश्यकता है कि मुद्रास्फीति, संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ती रहे। यह दृष्टिकोण सतत उच्च संवृद्धि के लिए पूर्णतः सकारात्मक होगा। 38. हम रास्ते में आने वाली चुनौतियों को पहचानते हैं, लेकिन हमें अपने काम को पूरा करने के लिए धैर्य रखना होगा। वर्तमान संदर्भ में, महात्मा गांधी के ये शब्द अत्यंत प्रासंगिक हैं: "निर्णय में थोड़ी सी भी गलती, जल्दबाजी में किया गया कोई भी काम या जल्दबाजी में कही गई कोई भी बात प्रगति की घड़ी की सुइयों को पीछे धकेल सकती है। इसलिए, नीतियों को सावधानीपूर्वक विकसित किया जाना चाहिए।…"55 धन्यवाद। नमस्कार। (पुनीत पंचोली) प्रेस प्रकाशनी: 2024-2025/851 1 27 जून, 2016 को आरबीआई अधिनियम, 1934 में संशोधन के माध्यम से मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण ढांचे को संस्थागत बनाने वाला वित्त अधिनियम 2016 लागू हुआ। उसी दिन, सरकार ने एमपीसी के सदस्यों के चयन की प्रक्रिया और उनकी नियुक्ति नियम, 2016 के नियम एवं शर्तों के साथ-साथ मुद्रास्फीति लक्ष्य प्राप्त करने में विफलता के कारकों को अधिसूचित किया। 5 अगस्त 2016 को सरकार ने मुद्रास्फीति लक्ष्य अधिसूचित किया। 29 सितंबर 2016 को सरकार ने पहली एमपीसी के गठन की अधिसूचना जारी की, जिसकी पहली बैठक 3-4 अक्तूबर 2016 को हुई। 2 जून में सीपीआई खाद्य मुद्रास्फीति 8.4 प्रतिशत रही, जो मई में 7.9 प्रतिशत थी। ऐसा मुख्य रूप से सब्जियों और खाद्य तेलों की कीमतों में तेज वृद्धि के साथ-साथ अनाज, दूध, फल और तैयार भोजन में मुद्रास्फीति में वृद्धि के कारण हुआ। नवंबर 2023 से सीपीआई खाद्य मुद्रास्फीति औसतन 8.0 प्रतिशत रही। 3 मई-जून 2024 के दौरान मूल (खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई) मुद्रास्फीति 3.1 प्रतिशत पर रही, जो वर्तमान सीपीआई शृंखला में एक नया निचला स्तर है। ईंधन समूह में अपस्फीति बनी रही, जो अगस्त 2023 और मार्च 2024 में एलपीजी की कीमत में भारी कटौती के संचयी प्रभाव को दर्शाती है। 4 अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने 16 जुलाई 2024 को जारी अपने नवीनतम वर्ल्ड इकोनोमिक आउटलूक (डब्ल्यूईओ) अपडेट में 2024 के लिए वैश्विक संवृद्धि पूर्वानुमान को 3.2 प्रतिशत (अप्रैल 2024 डब्ल्यूईओ के अनुसार बरकरार रखा गया) पर बनाए रखा और 2025 के लिए संवृद्धि पूर्वानुमान को 10 आधार अंकों (बीपीएस) से ऊर्ध्वगामी संशोधित कर 3.3 प्रतिशत कर दिया। 5 वैश्विक विनिर्माण पीएमआई जून में 50.8 की तुलना में जुलाई 2024 में 49.7 पर संकुचन में चला गया। वैश्विक सेवाएँ विस्तार में रहीं और इसका पीएमआई जून में 53.1 की तुलना में जुलाई में 53.3 पर रही। 6 पिछली एमपीसी बैठक के बाद से, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) में यूके, कनाडा, स्विट्जरलैंड और चेक गणराज्य तथा उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) में चीन, चिली, कोलंबिया, हंगरी, रोमानिया और श्रीलंका ने अपनी नीतिगत दरों में कटौती की है। दूसरी ओर, जापान और रूस ने अपनी बेंचमार्क दरें बढ़ा दी हैं। 7 12 जून से विराम के बाद, दक्षिण-पश्चिम मॉनसून (एसडब्ल्यूएम) ने 28 जून से गति पकड़ी और सामान्य तिथि (08 जुलाई) से छह दिन पहले पूरे देश को कवर कर लिया। वर्तमान एसडब्ल्यूएम सीजन के दौरान अब तक (1 जून-7 अगस्त) संचयी वर्षा दीर्घावधि औसत (एलपीए) से 7 प्रतिशत अधिक रही है, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान एलपीए से 2 प्रतिशत अधिक थी। 8 2 अगस्त 2024 तक खरीफ फसलों के अंतर्गत कुल 904.6 लाख हेक्टेयर में बुवाई की गई जो एक वर्ष पहले की तुलना में 2.9 प्रतिशत अधिक है। धान, दलहन, मोटे अनाज, तिलहन और गन्ने का रकबा पिछले वर्ष से अधिक रहा, जबकि कपास के अंतर्गत इसमें कमी आई। 9 अखिल भारतीय स्तर पर, 150 प्रमुख जलाशयों में जल भंडारण स्तर 1 अगस्त 2024 तक कुल क्षमता का 51 प्रतिशत था। कुल क्षमता के प्रतिशत के रूप में जल भंडारण, दशकीय औसत को पार कर गया। 10 हालांकि, बारिश की प्रगति पर सावधानीपूर्वक नजर रखने की जरूरत है क्योंकि ला नीना घटनाएं अक्सर अत्यधिक बारिश से जुड़ी होती हैं, जिससे बाढ़ और जलभराव हो सकता है और इससे कुछ क्षेत्रों में फसल की कटाई प्रभावित हो सकती है। 11 जून 2024 में ई-वे बिल में 16.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जीएसटी राजस्व में 10.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई और जुलाई के दौरान टोल संग्रह में 9.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। घरेलू एयर कार्गो और पोर्ट कार्गो ने जून 2024 में क्रमशः 10.3 प्रतिशत और 6.8 प्रतिशत की अच्छी वृद्धि दर्ज की। 26 जुलाई 2024 तक कुल बैंक ऋण में 15.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। 12 मई 2024 में उपभोक्ता गैर-टिकाऊ वस्तुओं की बिक्री में 2.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि जून में दोपहिया वाहनों की बिक्री में 21.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के अंतर्गत मांग जून 2024 में 21.7 प्रतिशत और जुलाई में 19.4 प्रतिशत घटी, जो कृषि क्षेत्र में रोजगार में सुधार को दर्शाता है। जून में ट्रैक्टर की बिक्री में 3.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करके बदलाव दर्ज किया गया। 13 मई 2024 में उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं की बिक्री में 12.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, और जून में यात्री वाहनों की बिक्री में 4.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जून 2024 में घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या में 6.9 प्रतिशत और जुलाई में 6.0 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो बहुत ऊंचे आधार पर है क्योंकि जून 2023 में इसमें 19.2 प्रतिशत और जुलाई 2023 में 26.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 14 2024-25 के लिए बजट अनुमान (बीई) के अनुसार पूंजीगत व्यय बढ़कर ₹11.1 लाख करोड़ (जीडीपी का 3.4 प्रतिशत) हो गया, जो 2023-24 के अनंतिम खातों (पीए) के ₹9.5 लाख करोड़ से 17.1 प्रतिशत अधिक और बीई 2023-24 के ₹10.0 लाख करोड़ से 11.0 प्रतिशत अधिक है। 15 जुलाई 2024 में इस्पात की खपत में 14.6 प्रतिशत की तीव्र वृद्धि हुई। जून 2024 में सीमेंट उत्पादन में 1.9 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई। जून 2024 के दौरान पूंजीगत वस्तुओं के आयात में 11.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि मई 2024 में पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 16 उत्पादन सहबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) [3 करोड़ अतिरिक्त घरों के निर्माण के लिए विस्तारित] और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) [चरण IV का शुभारंभ] जैसी सरकारी योजनाएं पूंजी निर्माण को गति प्रदान करेंगी। 17 विनिर्माण क्षेत्र में क्षमता उपयोग 2023-24 की चौथी तिमाही में 76.8 प्रतिशत रही, जो 11 वर्षों में सबसे अधिक है। 18 26 जुलाई 2024 को समाप्त पखवाड़े में, बैंक ऋण में वर्ष-दर-वर्ष15.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जून 2024 में खाद्य प्रसंस्करण, कपड़ा, रसायन, मूल धातु और इंजीनियरिंग सामान के लिए प्रदत्त बैंक ऋण में क्रमशः 10.8 प्रतिशत, 6.2 प्रतिशत, 11.7 प्रतिशत, 11.7 प्रतिशत और 8.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई। अवसंरचना क्षेत्रों में, जून 2024 के दौरान बिजली, सड़क और दूरसंचार में बैंक ऋण में क्रमशः 3.3 प्रतिशत, 8.8 प्रतिशत और 7.0 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 19 जून 2024 में भारत का पण्य निर्यात 2.5 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) बढ़कर 35.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, तथा आयात 5.0 प्रतिशत बढ़कर 56.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। पण्य व्यापार घाटा जून 2024 में 21.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जबकि जून 2023 में यह 19.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। 20 जून 2024 में जबकि सेवा निर्यात में 3.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई, सेवा आयात में 3.8 प्रतिशत की कमी आई। 21 आईएमएफ वर्ल्ड इकोनोमिक आउटलुक (जुलाई 2024 अपडेट) के अनुसार, वैश्विक व्यापार मात्रा (वस्तुओं और सेवाओं) में 2024 में 3.1 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है, जबकि 2023 में 0.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई। विश्व व्यापार संगठन के अनुसार, वैश्विक पण्य व्यापार की मात्रा में 2024 में 2.6 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है, जबकि 2023 में 1.2 प्रतिशत की गिरावट हुई। 22 अब तक उपलब्ध 483 सूचीबद्ध निजी विनिर्माण कंपनियों के परिणाम दर्शाते हैं कि 2024-25 की पहली तिमाही में उनके सकल लाभ में मामूली 4.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि 2023-24 की चौथी तिमाही में यह 7.0 प्रतिशत थी। 2024-25 की पहली तिमाही के दौरान केंद्र और राज्य सरकारों के पूंजीगत व्यय में क्रमशः 35.0 प्रतिशत और 22.1 प्रतिशत की कमी आई। तिमाही के दौरान केंद्र और राज्य सरकारों के ब्याज भुगतान और सब्सिडी के बाद राजस्व व्यय में क्रमशः 1.5 प्रतिशत और 0.2 प्रतिशत की कमी आई। आठ प्रमुख उद्योगों के सूचकांक में जून 2024 में वर्ष-दर-वर्ष (वाई-ओ-वाई) 4.0 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि मई 2024 में यह 6.4 प्रतिशत थी। 23 अप्रैल-मई में हेडलाइन मुद्रास्फीति 4.8 प्रतिशत थी जो जून में बढ़कर 5.1 प्रतिशत हो गई। खाद्य मुद्रास्फीति अप्रैल-मई में 7.9 प्रतिशत से बढ़कर जून में 8.4 प्रतिशत हो गई। जून में ईंधन में अपस्फीति (-) 3.7 प्रतिशत रही। खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई अप्रैल में 3.2 प्रतिशत से घटकर मई-जून 2024 में 3.1 प्रतिशत हो गई, जो मौजूदा सीपीआई शृंखला में एक नया निचला स्तर है। 24 अप्रैल में हेडलाइन मुद्रास्फीति में खाद्य पदार्थों का योगदान 74.7 प्रतिशत से बढ़कर मई में 75.2 प्रतिशत और जून में 76.3 प्रतिशत हो गया। जून 2023 में खाद्य पदार्थों का योगदान 44.8 प्रतिशत था। 25 सीपीआई टमाटर में जून में 48.7 प्रतिशत (माह-दर-माह) की वृद्धि हुई, सीपीआई प्याज में 24.2 प्रतिशत (माह-दर-माह) और आलू में 12.2 प्रतिशत (माह-दर-माह) की वृद्धि हुई, जिसके परिणामस्वरूप सब्जियों के लिए वर्ष-दर-वर्ष मुद्रास्फीति 29.3 प्रतिशत रही। कुल मिलाकर, सीपीआई बास्केट में 6.0 प्रतिशत भार वाली सब्जियों ने जून में मुद्रास्फीति में 34.9 प्रतिशत का योगदान दिया। 26 अनाज की महंगाई दर जून में बढ़कर 8.8 प्रतिशत हो गई, जो अप्रैल में 8.6 प्रतिशत थी। फलों की महंगाई दर जून में बढ़कर 7.2 प्रतिशत हो गई, जो अप्रैल में 5.2 प्रतिशत थी। दालों की महंगाई दर जून में 16.1 प्रतिशत रही, जो लगातार 13वें महीने दोहरे अंकों में दर्ज की गई। 27 खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई में जून में मूल वस्तुओं की मुद्रास्फीति 3.5 प्रतिशत रही, जबकि अप्रैल में यह 3.6 प्रतिशत थी। मूल सेवाओं की मुद्रास्फीति जून में घटकर 2.7 प्रतिशत रह गई, जो अप्रैल में 2.8 प्रतिशत थी। 28 उपभोक्ता मामलों के विभाग (डीसीए) के उच्च आवृत्ति वाले खाद्य मूल्य डेटा से पता चलता है कि माह-दर-माह जुलाई में टमाटर की कीमतों में 62.1 प्रतिशत, प्याज की कीमतों में 22.6 प्रतिशत और आलू की कीमतों में 18.0 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जुलाई में प्रमुख दालों की कीमतों में भी 0.4 से 4.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 29 जुलाई में सीपीआई हेडलाइन मुद्रास्फीति 2.9 प्रतिशत अंकों के अनुकूल आधार प्रभाव का अनुभव करेगी। 30 सीपीआई बास्केट में दूध का भार 6.4 प्रतिशत है। जून 2024 की शुरुआत में कुछ प्रमुख डेयरियों ने दूध की कीमतों में 2 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की है। 31 जुलाई की शुरुआत में प्रमुख कंपनियों द्वारा मोबाइल टैरिफ में 10-22 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई थी। 32 मार्च-जून 2024 के दौरान वृद्धि दर्ज करने के बाद एफएओ खाद्य मूल्य सूचकांक, ,जुलाई में (-) 0.18 प्रतिशत के महीने-दर-महीने परिवर्तन के कारण घट गया। 33 वर्ष 2024-25 की चौथी तिमाही में खाद्य मुद्रास्फीति के दबाव में उल्लेखनीय कमी देखने को मिल सकती है, क्योंकि मानसून की अच्छी स्थिति शेष मौसम के दौरान भी जारी रह सकती है। ला नीना की स्थिति के कारण नमी की मात्रा बढ़ सकती है, जो रबी की अच्छी बुवाई के लिए अनुकूल है। जलाशय का अच्छा स्तर खाद्य उत्पादन के जोखिम को और कम करेगा। 34 हेडलाइन और मूल मुद्रास्फीति के बीच का अंतर जून 2024 में 2 प्रतिशत अंक तक बढ़ गया, जो अप्रैल में 1.6 प्रतिशत अंक और एक वर्ष पहले 0.3 प्रतिशत अंक था। 35 मई 2022 और सितंबर 2023 के बीच 3 माह और 1 वर्ष आगे की घरेलू मुद्रास्फीति अपेक्षाओं में क्रमशः 170 बीपीएस और 120 बीपीएस की गिरावट आई है। नवंबर 2023-जून 2024 के दौरान खाद्य मुद्रास्फीति औसतन लगभग 8 प्रतिशत रही। नवंबर 2023 से मुद्रास्फीति अपेक्षाओं में गिरावट रुक गई है। पिछले सर्वेक्षण दौर (मई 2024) की तुलना में सर्वेक्षण के जुलाई 2024 दौर में 3 महीने और एक वर्ष आगे की मुद्रास्फीति में 20 बीपीएस की वृद्धि हुई। 36 चलनिधि समायोजन सुविधा (नेट एलएएफ) के तहत निवल स्थिति द्वारा मापी गई प्रणालीगत चलनिधि, जून के दौरान औसतन लगभग ₹0.45 लाख करोड़ के घाटे में थी, लेकिन जुलाई के दौरान लगभग ₹1.1 लाख करोड़ के अधिशेष में बदल गई। इसके बाद, अगस्त (6 अगस्त तक) में यह लगभग ₹2.7 लाख करोड़ के अधिशेष में रही। जून की शुरुआत में अधिशेष से महीने के उत्तरार्ध के दौरान घाटे की स्थिति में परिवर्तन अग्रिम कर भुगतान और माल और सेवा कर (जीएसटी) से संबंधित बहिर्वाह के कारण बैंकिंग प्रणाली से चलनिधि रिसाव के कारण हुआ। महीने के अंत में सरकारी खर्च में वृद्धि के कारण, 28 जून से प्रणालीगत चलनिधि फिर से अधिशेष में बदल गई। 38 जैसे-जैसे चलनिधि की स्थिति सख्त होती गई, रिज़र्व बैंक ने जून के उत्तरार्ध में परिवर्ती दर रेपो (वीआरआर) परिचालनों के माध्यम से चलनिधि डाला, लेकिन जुलाई में चलनिधि की स्थिति आसान होने पर परिवर्ती दर प्रतिवर्ती रेपो (वीआरआरआर) नीलामियों के माध्यम से अधिशेष चलनिधि को वापस ले लिया। 10-28 जून के दौरान, एक मुख्य और 4 परिष्कृत कार्य वीआरआर नीलामियों (3 से 6 दिन की परिपक्वता) ने संचयी रूप से ₹3.5 लाख करोड़ की चलनिधि डाली, जबकि 2 मुख्य और 23 परिष्करण वीआरआरआर परिचालनों (1 से 7 दिन की परिपक्वता) ने जुलाई-अगस्त (6 अगस्त तक) के दौरान ₹7.1 लाख करोड़ की सीमा तक की तरलता को अवशोषित किया। 28 जून को मुख्य 14-दिवसीय संचालन के स्थान पर 3-दिवसीय वीआरआर नीलामी आयोजित की गई, क्योंकि महीने के अंत में सरकारी व्यय में सामान्य वृद्धि के कारण चलनिधि की स्थिति में शीघ्र ही सुधार होने की उम्मीद थी। 39 स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 6.25 प्रतिशत (रेपो दर से 25 बीपीएस नीचे) और सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर 6.75 प्रतिशत (रेपो दर से 25 बीपीएस ऊपर) रेपो दर 6.50 प्रतिशत के आसपास एक दायरा प्रदान करती है। भारित औसत मांग दर (डब्ल्यूएसीआर) जून-अगस्त (6 अगस्त तक) के दौरान औसतन 6.54 प्रतिशत रही, जबकि अप्रैल-मई के दौरान यह 6.58 प्रतिशत थी। संपार्श्विक खंड में दरें - ट्राइपार्टी और बाजार रेपो दरें - यद्यपि अपेक्षाकृत नरम थीं, लेकिन डब्ल्यूएसीआर के साथ तालमेल में चलीं। 40 सीडी और खज़ाना-बिल पर औसत प्रतिफल अप्रैल-मई में क्रमशः 7.34 प्रतिशत और 6.90 प्रतिशत से घटकर जून-अगस्त (6 अगस्त तक) के दौरान क्रमशः 7.13 प्रतिशत और 6.76 प्रतिशत हो गया, जबकि इसी अवधि के दौरान सीपी पर यह मामूली रूप से 7.75 प्रतिशत से बढ़कर 7.76 प्रतिशत हो गया। 41 जून-अगस्त (6 अगस्त तक) के दौरान 10-वर्षीय जी-सेक का औसत प्रतिफल 6.97 प्रतिशत रहा, जबकि अप्रैल-मई 2024 के दौरान यह 7.08 प्रतिशत था। 42 टर्म प्रीमियम की गणना 10 वर्षीय जी-सेक और 91 दिवसीय खज़ाना बिल पर प्रतिफल के बीच के अंतर के रूप में की जाती है। औसतन, जून-अगस्त (6 अगस्त तक) के दौरान टर्म प्रीमियम 22 बीपीएस था, जबकि अप्रैल-मई के दौरान यह 18 बीपीएस था। 43 मई 2022 से 250 बीपीएस की संचयी नीति रेपो दर वृद्धि के सापेक्ष, एससीबी के नए और बकाया रुपया ऋण पर भारित औसत उधार दरों (डब्ल्यूएएलआर) में मई 2022 से जून 2024 के दौरान क्रमशः 181 बीपीएस और 119 बीपीएस की वृद्धि हुई है, जबकि इसी अवधि के दौरान एससीबी की नई और बकाया जमाराशियों पर भारित औसत घरेलू मीयादी जमा दर (डब्ल्यूएडीटीडीआर) में क्रमशः 243 बीपीएस और 188 बीपीएस की वृद्धि हुई है। जमा संवृद्धि की तुलना में ऋण संवृद्धि में वृद्धि के साथ, बैंकों ने सीडी के अधिक जारी करने के माध्यम से धन जुटाने के अलावा अपनी मीयादी जमा दरों में वृद्धि की है। 2024-25 (जुलाई तक) में, सीडी जारी करने की राशि ₹3.2 लाख करोड़ थी, जबकि 2023-24 की इसी अवधि में यह ₹1.9 लाख करोड़ थी। 44 वित्तीय वर्ष के आधार पर (7 अगस्त तक), भारतीय रुपये (आईएनआर) ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले मैक्सिकन पेसो, ब्राजीलियन रियल, अर्जेंटीना पेसो, तुर्की लीरा, फिलीपीन पेसो, वियतनामी डोंग और इंडोनेशियाई रुपिया जैसे उभरते बाजारों के कुछ समकक्षों के मूल्यह्रास की तुलना में कम मूल्यह्रास (-0.7 प्रतिशत) दर्ज किया। 2024-25 (7 अगस्त तक) के दौरान, आईएनआर चीनी युआन, वियतनामी डोंग, इंडोनेशियाई रुपिया, थाईलैंड बहत और तुर्की लीरा सहित समकक्ष ईएमई मुद्राओं के बीच सबसे कम अस्थिर (भिन्नता के गुणांक के संदर्भ में) था। 45 मार्च 2024 के अंत में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) का जोखिम भारित आस्तियों की तुलना में पूंजी अनुपात (सीआरएआर) और सामान्य इक्विटी टियर 1 (सीईटी 1) अनुपात क्रमशः 16.8 प्रतिशत और 13.9 प्रतिशत है, जो विनियामक सीमा से काफी ऊपर है। दूसरी ओर, एससीबी की सकल अनर्जक आस्तियां (जीएनपीए) और निवल अनर्जक आस्तियां (एनएनपीए) अनुपात मार्च 2024 के अंत में क्रमशः 2.8 प्रतिशत और 0.6 प्रतिशत तक कम हो गया। परिणामस्वरूप, एससीबी का कुल इक्विटी से एनएनपीए का अनुपात मार्च 2018 में 43.9 प्रतिशत के शीर्ष स्तर से मार्च 2024 में 4.1 प्रतिशत के सर्वकालिक निम्न स्तर पर आ गया है। रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए समष्टि तनाव परीक्षणों से यह भी पता चलता है कि बैंकिंग क्षेत्र तनाव परिदृश्यों में भी आघात सह बना रहेगा (वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट, जून 2024)। 46 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (एनबीएफसी) मजबूत बनी हुई हैं, जिनका मार्च 2024 के अंत में सीआरएआर 26.6 प्रतिशत, जीएनपीए अनुपात 4.0 प्रतिशत और आस्तियों पर प्रतिलाभ (आरओए) 3.3 प्रतिशत है। समाधान के अंतर्गत एनबीएफसी को छोड़कर, एनबीएफसी के लिए जीएनपीए अनुपात 3 प्रतिशत से कम है। महामारी के बाद की अवधि में यूसीबी की पूंजी स्थिति में लगातार सुधार हो रहा है [31 मार्च 2024 तक सीआरएआर 17.5 प्रतिशत था]। 47 रिज़र्व बैंक ने 16 नवंबर 2023 को इन क्षेत्रों में किसी भी संभावित जोखिम के निर्माण को रोकने के लिए गैर-जमानती उपभोक्ता ऋण और एनबीएफसी को बैंक ऋण पर जोखिम भार बढ़ा दिया। परिणामस्वरूप, जिन क्षेत्रों में जोखिम भार बढ़ाया गया था, उनमें कुल उपभोक्ता ऋण वृद्धि नवंबर 2023 में 23.3 प्रतिशत से घटकर जून 2024 में 13.9 प्रतिशत हो गई। समानांतर रूप से, इसी अवधि के दौरान एनबीएफसी को बैंक ऋण 18.5 प्रतिशत से घटकर 8.2 प्रतिशत हो गया। 48 'क्रेडिट कार्ड बकाया' जैसे गैर-जमानती व्यक्तिगत ऋणों में ऋण वृद्धि में गिरावट आई है, लेकिन नवंबर 2023 में 34.2 प्रतिशत की तुलना में जून 2024 में यह 23.3 प्रतिशत पर उच्च स्तर पर रही। 49 अनंतिम आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-जून 2024-25 के दौरान भारत के सेवा निर्यात में 10.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि इसी अवधि के दौरान सेवा आयात में 6.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इसी अवधि के दौरान निवल सेवा निर्यात में 15.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 50 सकल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह अप्रैल-मई 2024-25 में 22.8 प्रतिशत बढ़कर 15.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो एक वर्ष पहले इसी अवधि के दौरान 12.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। कम प्रत्यावर्तन के कारण निवल एफडीआई प्रवाह अप्रैल-मई 2024-25 में दोगुना बढ़कर 7.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो एक वर्ष पहले 3.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। 51 अप्रैल-जून 2024-25 के दौरान भारत में बाह्य वाणिज्यिक उधारी घटकर 1.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गई, जबकि एक वर्ष पहले इसमें 5.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का अंतर्वाह हुआ था। अप्रैल-मई 2024-25 में अनिवासी जमाराशियों में एक वर्ष पहले के 0.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में 2.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का उच्च निवल अंतर्वाह दर्ज किया गया। 52 2 अगस्त 2024 तक भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि 674.92 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी। 53 भारत का सीएडी/ जीडीपी अनुपात 2022-23 के दौरान 2.0 प्रतिशत से घटकर 2023-24 में 0.7 प्रतिशत हो गया। भारत का जीडीपी से बाह्य ऋण अनुपात मार्च 2023 के अंत में 19.0 प्रतिशत से घटकर मार्च 2024 के अंत में 18.7 प्रतिशत हो गया। इसी अवधि के दौरान जीडीपी से निवल अंतर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति अनुपात में (-) 11.3 प्रतिशत से सुधार होकर (-) 10.3 प्रतिशत हो गया। 54 इनमें डिजिटल ऋण और प्रथम हानि डिफ़ॉल्ट गारंटी पर क्रमशः सितंबर 2022 और जून 2023 में जारी दिशानिर्देश शामिल हैं। 55 महात्मा गांधी, संग्रहित कृतियाँ, खंड 67 और हरिजन, 17 अगस्त 1935 |