जैसे ही 2023 समाप्त हो रहा है और एक नए वर्ष की शुरुआत हो रही है, लंबे समय से प्रतीक्षित सामान्यता अभी भी वैश्विक अर्थव्यवस्था से दूर है। 2020 से 2023 के वर्ष शायद इतिहास में 'महान अस्थिरता' की अवधि के रूप में दर्ज किए जाएंगे, जिसमें तात्कालिक बाद की घटनाओं में कई ब्लैक स्वान घटनाएं शामिल होंगी। वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत दिख रहे हैं, हालांकि विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों और सेक्टरों में यह असमान है। एक समूह के रूप में उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाएं (ईएमई) पिछले प्रकरणों के विपरीत, अस्थिरता के मौजूदा दौर में आघात-सहनीय बनी हुई हैं। जबकि हेडलाइन मुद्रास्फीति पिछले वर्ष के उच्चतम स्तर से कम हो गई है, लेकिन यह कई देशों में लक्ष्य से ऊपर बनी हुई है। मूल मुद्रास्फीति स्थिर बनी हुई है, जिससे अवस्फीति के अंतिम चरण में बाधा उत्पन्न हो रही है। प्रमुख केंद्रीय बैंकों ने मौजूदा अनिश्चितताओं के मद्देनजर आगे के मार्गदर्शन (फॉरवर्ड गाइडेंस) से बचते हुए दरों को बरकरार रखा है। ब्याज दरों के भावी मार्ग संबंधी नियत संकेतों की खोज में वित्तीय बाज़ार अस्थिर बने हुए हैं।
- इस अस्थिर वैश्विक आर्थिक पृष्ठभूमि में , भारतीय अर्थव्यवस्था आघात-सहनीयता और गति की तस्वीर प्रस्तुत करती है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की संवृद्धि सभी पूर्वानुमानों से अधिक रही है। बैंकों और कॉरपोरेट्स के तुलन-पत्र बेहतर दिख रहे हैं ; राजकोषीय समेकन निश्चित है ; बाह्य संतुलन अत्यंत प्रबंधनीय बना हुआ है; और विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि बाह्य आघातों से सुरक्षा प्रदान कर रहा है और इन्हीं कारणों से भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत बनी हुई है। उपभोक्ता और व्यावसायिक आशावाद के साथ मिलकर ये कारक, भारतीय अर्थव्यवस्था की निरंतर संवृद्धि के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनाते हैं। आगे चलकर, हमारा प्रयास इन बुनियादी सिद्धांतों को और आगे बढ़ाने का है जो आज की अनिश्चित दुनिया में वैश्विक आघातों के विरुद्ध सबसे अच्छा बफर है।
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के निर्णय और विचार-विमर्श
- मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक 6, 7 और 8 दिसंबर 2023 को हुई। उभरते समष्टि आर्थिक और वित्तीय गतविधियों तथा संभावना के विस्तृत मूल्यांकन के बाद, इसने सर्वसम्मति से नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने का निर्णय लिया। परिणामस्वरूप, स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 6.25 प्रतिशत तथा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.75 प्रतिशत पर यथावत् बनी हुई है। एमपीसी ने 6 में से 5 सदस्यों के बहुमत से निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने का भी निर्णय लिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो।
- अब मैं संक्षेप में इन निर्णयों का औचित्य बताऊंगा। पिछली नीति के बाद से, सीपीआई हेडलाइन मुद्रास्फीति जुलाई में 7.4 प्रतिशत से घटकर अक्तूबर में 4.9 प्रतिशत हो गई। यह कमी, सीपीआई के सभी घटकों - खाद्य, ईंधन और कोर (खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई) देखी गई। मूल मुद्रास्फीति में वैविध्यपूर्ण नरमी आई है जो मौद्रिक नीति कार्रवाइयों के माध्यम से सफल अवस्फीति का संकेत है। हालाँकि, सन्निकट संभावना खाद्य मुद्रास्फीति के जोखिमों से प्रभावित है, जिससे नवंबर और दिसंबर में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। दूसरे दौर के प्रभावों, यदि कोई हो, के लिए इस पर नजर रखने की जरूरत है। जैसा कि पिछली एमपीसी बैठकों में मूल्यांकन किया गया था और 2023-24 की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में दर्शाया गया है,घरेलू आर्थिक गतिविधि अच्छी चल रही है।
- इस पृष्ठभूमि में, एमपीसी ने नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने का निर्णय लिया, लेकिन आवश्यकतानुसार उचित नीतिगत कार्रवाई करने के लिए अत्यधिक सतर्क और तैयार रहेगी। मुद्रास्फीति की अपेक्षाओं का पूर्ण संचरण और स्थिरीकरण सुनिश्चित करने के लिए मौद्रिक नीति को सक्रिय रूप से अवस्फीतिकारी बने रहना चाहिए। अब तक की दर कार्रवाई अभी भी अर्थव्यवस्था में अपना काम कर रही है। अतः एमपीसी ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने का निर्णय लिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो।
संवृद्धि और मुद्रास्फीति का आकलन वैश्विक संवृद्धि
- वैश्विक अर्थव्यवस्था लगातार नाजुक बनी हुई है। संरक्षणवाद के वैश्विक ज्वार के बीच वैश्विक व्यापार में गिरावट आ रही है। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की काफी बहाली के बावजूद, ऋण के उच्च स्तर, दीर्घकालिक भू-राजनीतिक युद्धस्थिति और चरम मौसम की स्थिति जैसे कारक, वैश्विक संवृद्धि और मुद्रास्फीति संभावना के लिए जोखिम को बढ़ाते हैं। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति में नरमी से मौद्रिक सख्ती के चक्र के शीघ्र समाप्त होने की उम्मीद जगी है, जिससे बाजार के मनोभाव मजबूत हुई है। सॉवरेन बांड प्रतिफल में नरमी आ रही है क्योंकि बाजार, दरों में और बढ़ोतरी पर विचार नहीं कर रहा है।
घरेलू संवृद्धि
- मजबूत घरेलू मांग के कारण दूसरी तिमाही में आर्थिक गतिविधियों में उछाल देखा गया। निवेश और सरकारी खपत के कारण सकल घरेलू उत्पाद ने 2023-24 की दूसरी तिमाही में 7.6 प्रतिशत की मजबूत संवृद्धि दर्ज की।
- तीसरी तिमाही में , कुछ राज्यों में ख़रीफ़ फसलों की देर से कटाई के बावजूद रबी की दो-तिहाई बुआई पूरी हो चुकी है। इनपुट लागत का दबाव कम होने और मांग की स्थिति में सुधार से विनिर्माण क्षेत्र को मजबूती मिली। आठ प्रमुख उद्योगों ने अक्तूबर में बेहतर वृद्धि दर्ज की और इस वर्ष जून से अपनी उच्च वृद्धि जारी रखी। विनिर्माण के लिए क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) नवंबर में बढ़ा। जैसाकि उच्च आवृत्ति संकेतकों में परिलक्षित होता है, सेवा क्षेत्र में उछाल बरकरार है। नवंबर 2023 में जीएसटी संग्रह ₹1.68 लाख करोड़ रहा। सेवा पीएमआई ने नवंबर में स्वस्थ विस्तार प्रदर्शित किया।
- मांग पक्ष पर, पारिवारिक खपत को टिकाऊ शहरी मांग और ग्रामीण मांग में धीरे-धीरे बदलाव से समर्थन मिलता है, जैसा कि तेजी से बढ़ने वाली उपभोक्ता वस्तुओं (एफएमसीजी) की बिक्री और अन्य संकेतकों में परिलक्षित होता है। त्योहार संबंधी मांग भी तीसरी तिमाही में परिवारों की विवेकाधीन खपत को बढ़ा रही है। सार्वजनिक क्षेत्र के पूंजीगत व्यय में उछाल से निवेश गतिविधि को सहायता मिल रही है। यह इस्पात की खपत, सीमेंट उत्पादन और पूंजीगत वस्तुओं के आयात में मजबूत वृद्धि में भी परिलक्षित होता है। विनिर्माण क्षेत्र में क्षमता उपयोग (सीयू) दीर्घकालिक औसत से ऊपर बना हुआ है।[16] सूचीबद्ध निजी विनिर्माण कंपनियों द्वारा अचल संपत्तियों में निवेश ने भी 2023-24 की पहली छमाही में स्वस्थ वृद्धि दर्ज की, जो मुख्य रूप से पेट्रोलियम, इस्पात, रसायन और सीमेंट जैसे प्रमुख उद्योगों द्वारा संचालित है। चालू वित्त वर्ष के दौरान अब तक बैंकों और अन्य स्रोतों से वाणिज्यिक क्षेत्र में संसाधनों का कुल प्रवाह ₹17.6 लाख करोड़ है, जो पिछले वर्ष (₹14.5 लाख करोड़) की तुलना में काफी अधिक है। बाह्य मांग में कमजोरी के बावजूद, अक्तूबर में वस्तु और सेवा निर्यात दोनों सकारात्मक क्षेत्र में लौट आए।
- आगे चलकर, निजी खपत को ग्रामीण मांग में क्रमिक सुधार, विनिर्माण गतिविधि में मजबूती और सेवाओं में निरंतर उछाल से समर्थन मिलना चाहिए। बैंकों और कॉरपोरेट्स के स्वस्थ ट्वीन तुलन-पत्र , उच्च क्षमता उपयोग, निरंतर व्यापार आशावाद और बुनियादी ढांचे के खर्च पर सरकार के जोर से निजी क्षेत्र के पूंजीगत खर्च को बढ़ावा मिलना चाहिए। माल और सेवा निर्यात में बदलाव के साथ बाहरी मांग का दबाव भी कम होने की उम्मीद है। हालाँकि, दीर्घकालिक भू-राजनीतिक उथल-पुथल, वैश्विक वित्तीय बाजारों में अस्थिरता और बढ़ती भू-आर्थिक विखंडन, संभावना के लिए जोखिम उत्पन्न करते हैं। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2023-24 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि 7.0 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जिसका तीसरी तिमाही में 6.5 प्रतिशत; और चौथी तिमाही 6.0 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है। 2024-25 की पहली तिमाही के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि 6.7 प्रतिशत अनुमानित है; जिसका दूसरी तिमाही में 6.5 प्रतिशत पर; और तीसरी तिमाही 6.4 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं।
मुद्रास्फीति
- खाद्य मुद्रास्फीति, जो जुलाई में दोहरे अंक में थी, तब से सब्जियों की कीमतों में सुधार के साथ अक्तूबर में कम होकर 6.2 प्रतिशत पर आ गई है। ईंधन मुद्रास्फीति सितंबर से अपस्फीति में फिसल गई है, जो मुख्य रूप से अगस्त के अंत में एलपीजी की कीमतों में तेज गिरावट को दर्शाती है। कोर में अवस्फीति ने सितंबर-अक्तूबर के दौरान गति पकड़ी और नीति दर में वृद्धि और मूल वस्तुओं और सेवाओं पर लागत-प्रेरित दबाव में कमी के संयुक्त प्रभाव के कारण 2019-20 की चौथी तिमाही के दौरान देखे गए स्तर पर पहुंच गई।
- आगे, मुद्रास्फीति संभावना, अनिश्चित खाद्य कीमतों से काफी प्रभावित होगा। उच्च आवृत्ति वाले खाद्य मूल्य संकेतक प्रमुख सब्जियों की कीमतों में वृद्धि का संकेत देते हैं जो निकट अवधि में सीपीआई मुद्रास्फीति को बढ़ा सकते हैं। गेहूं, मसालों और दालों जैसी प्रमुख फसलों के लिए चल रही रबी बुआई की प्रगति पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत है। वैश्विक स्तर पर चीनी की बढ़ी कीमतें भी चिंता का विषय है।
- सकारात्मक पक्ष यह है कि चावल को छोड़कर वैश्विक पण्यों की कीमतें, विशेषकर कृषि पण्यों की कीमतें नरम हो गई हैं। खाद्य तेलों जैसे अत्यधिक आयात पर निर्भर खाद्य पदार्थों के लिए, अंतरराष्ट्रीय कीमतें सौम्य बनी हुई हैं। घरेलू दूध की कीमतें स्थिर हो रही हैं। सरकार द्वारा सक्रिय आपूर्ति पक्ष के हस्तक्षेप से घरेलू खाद्य कीमतों पर दबाव भी नियंत्रित हो रहा है। कच्चे तेल में काफी नरमी आई है, हालांकि इसमें उतार-चढ़ाव बना रह सकता है। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए और सामान्य मानसून की धारणा पर, सीपीआई मुद्रास्फीति 2023-24 के लिए 5.4 प्रतिशत अनुमानित है, जिसका तीसरी तिमाही में 5.6 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है। 2024-25 की पहली तिमाही के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति 5.2 प्रतिशत अनुमानित है; जिसका दूसरी तिमाही में 4.0 प्रतिशत पर; और तीसरी तिमाही में 4.7 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं।
मौद्रिक नीति के लिए इन मुद्रास्फीति और संवृद्धि की स्थितियों का क्या मतलब है?
- अनिरंतर आपूर्ति के आघातों के कारण समय-समय पर गिरावट के बावजूद हमने अक्तूबर 2023 में मुद्रास्फीति को 5 प्रतिशत से नीचे लाने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। 2022 की गर्मी हमारे पीछे है। इस अवस्फीति को लाने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए आपूर्ति-पक्ष उपायों के साथ-साथ संवृद्धि की जगह मुद्रास्फीति को प्राथमिकता देने, सुविचारित तरीके से नीतिगत दर में 250 आधार अंकों की बढ़ोतरी और अतिरिक्त चलनिधि को समाप्त करने की हमारी नीति ने अच्छी तरह से काम किया है। तथ्य यह है कि मूल मुद्रास्फीति भी कम हो गई है और घरेलू मुद्रास्फीति की उम्मीदें बेहतर नियंत्रित हो गई हैं, जिससे हमें साहस और दृढ़ विश्वास मिलता है कि मौद्रिक नीति अपना काम कर रही है। दूसरी ओर, संवृद्धि आघात-सहनीय और मजबूत बना हुआ है, जिससे सभी को आश्चर्य हो रहा है।
- इस प्रगति के बावजूद, 4.0 प्रतिशत सीपीआई का लक्ष्य अभी तक प्राप्त नहीं किया जा सका है और हमें इस रास्ते पर बने रहना होगा। आपूर्ति पक्ष के कई आघातों, जो निरंतर और तीव्र हो गए हैं, के कारण हेडलाइन मुद्रास्फीति लगातार अस्थिर बनी हुई है। खाद्य मुद्रास्फीति के प्रक्षेप पथ पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत है। सब्जियों की कीमतों में अनिरंतर आघात नवंबर और दिसंबर में एक बार फिर हेडलाइन मुद्रास्फीति को बढ़ा सकते हैं। हालाँकि मौद्रिक नीति ऐसे एकबारगी झटकों पर ध्यान देगी, लेकिन उसे ऐसे झटकों के सामान्यीकृत होने और चल रही अवस्फीति प्रक्रिया के पथ से भटकने के जोखिम के प्रति सचेत रहना होगा। इन अनिश्चितताओं के बीच, संवृद्धि को समर्थन देते हुए हेडलाइन मुद्रास्फीति को 4.0 प्रतिशत की लक्षित दर तक टिकाऊ संरेखण सुनिश्चित करने के लिए मौद्रिक नीति को सक्रिय रूप से अवस्फीतिकारी बने रहना होगा।
चलनिधि और वित्तीय बाज़ार की स्थितियाँ
- अधिकांश अन्य केंद्रीय बैंकों की तरह, रिज़र्व बैंक ने अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 संबंधी प्रभावों का सामना करने के लिए प्रणाली में अतिरिक्त चलनिधि डाली थी। परिणामस्वरूप, रिज़र्व बैंक के तुलन-पत्र का आकार काफी बढ़ गया था। इस तरह के विस्तारित तुलन-पत्र का बहुत लंबे समय तक बने रहने से समष्टिआर्थिक और वित्तीय अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है। उल्लेखनीय है कि रिज़र्व बैंक ने समय रहते सफलतापूर्वक अपने तुलन-पत्र का आकार कम कर दिया है। उदाहरण के तौर पर, 2020-21 में रिज़र्व बैंक के तुलन-पत्र का आकार बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद का 28.6 प्रतिशत हो गया। कोविड के बाद की अवधि में चलनिधि में बदलाव के साथ, तुलन-पत्र का आकार 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद का 23.3 प्रतिशत और चालू वित्तीय वर्ष (1 दिसंबर तक) में 21.6 प्रतिशत तक कम हो गया। हम इसे एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानते हैं।
- चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत निवल स्थिति द्वारा मापी गई प्रणाली चलनिधि, मई 2019 से लगभग साढ़े चार वर्ष के अंतराल के बाद सितंबर 2023 में पहली बार घाटे की स्थिति में बदल गई। घाटे वाली चलनिधि की स्थिति अक्तूबर के दौरान बनी रही और नवंबर में बैंकों द्वारा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) के लिए बड़े पैमाने पर सहारा लिया गया। समानांतर में, स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) का उपयोग भी अधिक रहा है।
- चलनिधि की स्थिति में समग्र सख्ती का श्रेय मुख्य रूप से त्योहारी सीजन के दौरान उच्च मुद्रा रिसाव, सरकारी नकदी शेष और रिज़र्व बैंक के बाजार परिचालन को दिया जाता है। इन स्वायत्त कारकों से प्रेरित होकर, प्रणाली की चलनिधि अक्तूबर के नीतिगत वक्तव्य में की गई परिकल्पना की तुलना में काफी सख्त हो गई। परिणामस्वरूप, अभी तक ओएमओ बिक्री की नीलामी करने की आवश्यकता उत्पन्न नहीं हुई है। चलनिधि की स्थितियों का उद्भव मौद्रिक नीति रुख के अनुरूप रहा है। हालाँकि, हाल ही में, जैसे-जैसे सरकारी खर्च बढ़ा है और बाजार सहभागियों के बीच प्रणाली चलनिधि समान रूप से अत्यंत संतुलित हो गई है, दबाव कम हो गया है और निवल एलएएफ स्थिति मोटे तौर पर समान हो गई है। आगे चलकर, सरकारी व्यय से चलनिधि की स्थिति और आसान होने की संभावना है। हमारी ओर से, रिज़र्व बैंक चलनिधि प्रबंधन में सक्रिय रहेगा।
- वित्तीय बाज़ार के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग सीमा तक मौद्रिक संचरण देखा गया है। दीर्घकालिक जी-सेक प्रतिफल नरम हो गई है, जो वित्तीय संस्थानों से इन बॉण्डों की मजबूत मांग और वैश्विक बॉण्ड प्रतिफल में नरमी को दर्शाती है। ऋण बाजार में, मौद्रिक नीति संचरण अभी भी प्रणाली के माध्यम से अपना काम कर रहा है।
- एलएएफ के अंतर्गत रिज़र्व बैंक की स्थायी सुविधाओं के संबंध में, हमने बैंकों द्वारा एमएसएफ और एसडीएफ दोनों का एक साथ उच्च उपयोग देखा है। पिछले मौद्रिक नीति वक्तव्य में यह बताया गया था। हम इस स्थिति को ठीक करने का प्रस्ताव करते हैं और 30 दिसंबर 2023 से सप्ताहांत और छुट्टियों के दौरान भी एसडीएफ और एमएसएफ दोनों के अंतर्गत चलनिधि सुविधाओं के प्रत्यावर्तन की अनुमति देने का निर्णय लिया है। यह आशा की जाती है कि इस उपाय से बैंकों को बेहतर निधि प्रबंधन की सुविधा मिलेगी। छह महीने बाद या जरूरत पड़ने पर उससे पहले इस उपाय की समीक्षा की जाएगी।
- अमेरिकी ट्रेजरी प्रतिफल में बढ़ोत्तरी और मजबूत अमेरिकी डॉलर के बावजूद, कैलेंडर वर्ष 2023 में भारतीय रुपये ने अपने ईएमई समकक्षों की तुलना में कम अस्थिरता प्रदर्शित की है।[26] भारतीय रुपये की सापेक्ष स्थिरता, भारतीय अर्थव्यवस्था के समष्टि आर्थिक बुनियादी सिद्धांतों में सुधार और भयानक वैश्विक सुनामी के सामने इसके लचीलापन को दर्शाती है।
- हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक और बैंक ऑफ इंग्लैंड ने रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित और पर्यवेक्षित एक केंद्रीय प्रतिपक्षकार (सीसीपी), भारतीय समाशोधन निगम लि.(सीसीआईएल) से संबंधित जानकारी के सहयोग और आदान-प्रदान पर एक सहमति ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। यह एमओयू, बैंक ऑफ इंग्लैंड को सीसीआईएल के माध्यम से अपने लेनदेन को निपटाने के लिए यूके स्थित बैंकों के लिए तीसरे देश सीसीपी के रूप में मान्यता के लिए सीसीआईएल का मूल्यांकन करने में सक्षम करेगा। यह एमओयू दोनों देशों के नियामकों के बीच आपसी सहयोग और विश्वास के सिद्धांतों पर आधारित है। हमें उम्मीद है कि अन्य अधिकारक्षेत्रों के नियामक भी इन सिद्धांतों को स्वीकार करेंगे।
वित्तीय स्थिरता
- वित्तीय स्थिरता एक सार्वजनिक वस्तु है। रिज़र्व बैंक वित्तीय स्थिरता की सुरक्षा के लिए सूक्ष्म और वृहद-विवेकपूर्ण उपकरणों का विवेकपूर्ण उपयोग करता है। बैंकों और एनबीएफसी के संबंध में रिज़र्व बैंक द्वारा हाल ही में उठाए गए निवारक उपाय संभावित जोखिमों को संबोधित करने और वित्तीय क्षेत्र के लचीलेपन को संरक्षित करने के लिए तैयार किए गए थे।[29] हम घर में आग लगने का इंतज़ार नहीं करते और फिर कार्रवाई करते हैं। नियामकों और विनियमित संस्थाओं दोनों के लिए विवेक हर समय मार्गदर्शक दर्शन होना चाहिए।
बाह्य क्षेत्र
- अक्तूबर 2023 में, व्यापारिक निर्यात और आयात दोनों विस्तारवादी क्षेत्र में वापस आ गए। 2023-24 की दूसरी तिमाही के दौरान सेवा निर्यात में उछाल रहा। भारत विप्रेषण प्राप्त करने वाला शीर्ष देश बना हुआ है। सेवाओं और विप्रेषण के अंतर्गत शुद्ध संतुलन से भारत के चालू खाता घाटे की आंशिक रूप से ऑफसेट होने और इसे व्यवहार्यता के मापदंडों के भीतर रखने की उम्मीद है।
- वित्तपोषण पक्ष पर, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) प्रवाह में 2023-24 में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखा गया है, जिसमें पिछले दो वर्षों में शुद्ध बहिर्वाह की तुलना में 24.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर (6 दिसंबर तक) का शुद्ध एफपीआई अंतर्वाह हुआ है। दूसरी ओर, शुद्ध विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) अप्रैल-अक्तूबर 2023 में एक वर्ष पहले के 20.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर से कम होकर 10.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) और अनिवासी जमा खातों के तहत शुद्ध अंतर्वाह पिछले वर्ष की तुलना में काफी अधिक है। भारत के बाहरी भेद्यता संकेतक ईएमई सहयोगियों के साथ-साथ टेंपर टैंट्रम अवधि की तुलना में उच्च लचीलापन प्रदर्शित करते हैं। 1 दिसंबर 2023 को भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि 604 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी। हम अपनी बाहरी वित्तपोषण आवश्यकताओं को आराम से पूरा करने के प्रति आश्वस्त हैं।
अतिरिक्त उपाय
- अब मैं कुछ अतिरिक्त उपायों. की घोषणा करूंगा।
विदेशी मुद्रा जोखिमों की हेजिंग के लिए विनियामक ढांचे की समीक्षा
- विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव लेनदेन के लिए विनियामक ढांचे की आखिरी बार 2020 में समीक्षा की गई थी। बाजार की गतिविधियों और बाजार सहभागियों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर, विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव लेनदेन के लिए मौजूदा विनियामक ढांचे को एक ही मास्टर निदेश के अंतर्गत संशोधित और समेकित किया गया है। यह परिचालन दक्षता और उपयोगकर्ताओं के लिए पहुंच में आसानी को बढ़ाकर विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव बाजार को और मजबूत करेगा।
संबद्ध (कनेक्टेड) उधार के लिए रूपरेखा
- संबद्ध उधार पर मौजूदा दिशानिर्देशों का दायरा सीमित है। रिज़र्व बैंक की सभी विनियमित संस्थाओं के लिए संबद्ध उधार पर एक एकीकृत विनियामक ढांचा तैयार करने का निर्णय लिया गया है। इससे विनियमित संस्थाओं द्वारा ऋण के मूल्य निर्धारण और प्रबंधन को और मजबूती मिलेगी।
ऋण उत्पादों के वेब-एकत्रीकरण के लिए विनियामक ढांचा
- रिज़र्व बैंक ने अगस्त/सितंबर 2022 में डिजिटल उधार देने के लिए विनियामक ढांचा प्रस्तुत किया था। डिजिटल ऋण पारिस्थितिकी तंत्र में ऐसी सेवाएँ भी शामिल हैं जो ग्राहकों के मार्गदर्शन के लिए ऋणदाताओं के ऋण प्रस्ताव को एकत्र करती हैं (जिन्हें ऋण उत्पादों का वेब-एकत्रीकरण कहा जाता है)। उपभोक्ताओं के हितों को नुकसान पहुंचाने वाले ऋण उत्पादों के ऐसे वेब-एकत्रीकरण से संबंधित कई मामले हमारे ध्यान में आए हैं। अतः, ऋण उत्पादों के वेब-एकत्रीकरण के लिए एक विनियामक ढांचा तैयार करने का निर्णय लिया गया है। इससे डिजिटल उधार देने में ग्राहक केंद्रितता और पारदर्शिता बढ़ने की उम्मीद है।
फिनटेक रिपॉजिटरी की स्थापना
- भारत में बैंक और एनबीएफसी जैसी वित्तीय संस्थाएं तेजी से फिनटेक के साथ साझेदारी कर रही हैं। फिनटेक पारिस्थितिकी तंत्र में गतिविधियों की बेहतर समझ और इस क्षेत्र का समर्थन करने के लिए, एक फिनटेक रिपॉजिटरी स्थापित करने का प्रस्ताव है। इसे अप्रैल 2024 या उससे पहले रिज़र्व बैंक इनोवेशन हब द्वारा शुरू किया जाएगा। फिनटेक को इस रिपॉजिटरी को स्वेच्छा से प्रासंगिक जानकारी प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
निर्दिष्ट श्रेणियों के लिए यूपीआई लेनदेन सीमा बढ़ाना
- यूपीआई लेनदेन की विभिन्न श्रेणियों की सीमा की समय-समय पर समीक्षा की गई है। अब अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों को भुगतान के लिए यूपीआई लेनदेन की सीमा ₹1 लाख से बढ़ाकर ₹5 लाख प्रति लेनदेन करने का प्रस्ताव है। इससे उपभोक्ताओं को शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल उद्देश्यों के लिए अधिक राशि का यूपीआई भुगतान करने में मदद मिलेगी।
आवर्ती ऑनलाइन लेनदेन के लिए ई-अधिदेश - निर्दिष्ट श्रेणियों के लिए सीमा में वृद्धि
- आवर्ती प्रकृति के भुगतान करने के लिए ई-अधिदेश ग्राहकों के बीच लोकप्रिय हो गए हैं। इस ढांचे के अंतर्गत, वर्तमान में ₹15,000 से अधिक के आवर्ती लेनदेन के लिए प्रमाणीकरण का एक अतिरिक्त कारक (एएफए) आवश्यक है। अब म्यूचुअल फंड सब्सक्रिप्शन, बीमा प्रीमियम सब्सक्रिप्शन और क्रेडिट कार्ड पुनर्भुगतान के आवर्ती भुगतान के लिए इस सीमा को प्रति लेनदेन ₹1 लाख तक बढ़ाने का प्रस्ताव है। इस उपाय से ई-अधिदेश के उपयोग में और तेजी आएगी।
भारत में वित्तीय क्षेत्र के लिए क्लाउड सुविधा की स्थापना
- बैंक और वित्तीय संस्थाएँ डेटा की लगातार बढ़ती मात्रा बनाए रख रहे हैं। उनमें से कई इस उद्देश्य के लिए क्लाउड सुविधाओं का उपयोग कर रहे हैं। इस उद्देश्य के लिए रिज़र्व बैंक भारत में वित्तीय क्षेत्र के लिए क्लाउड सुविधा स्थापित करने पर काम कर रहा है। ऐसी सुविधा से डेटा सुरक्षा, अखंडता और गोपनीयता बढ़ेगी। इससे बेहतर मापनीयता (स्केलेबिलिटी) और व्यापार निरंतरता की सुविधा भी प्राप्त होगी। क्लाउड सुविधा को मध्यमावधि में अंशशोधित रूप से शुरू करने का इरादा है।
निष्कर्ष
- अनिश्चितताओं से घिरी वैश्विक अर्थव्यवस्था में, मौद्रिक नीति कार्रवाई और संचार, आर्थिक एजेंटों की अपेक्षाओं को पूरा करके एक स्थिर शक्ति हो सकती है। प्रभावी मौद्रिक नीति के लिए कार्रवाई और संचार में स्पष्टता और निरंतरता एक समय-परीक्षणित सिद्धांत है। नीति निर्माताओं को कुछ महीनों के अच्छे डेटा या इस तथ्य कि सीपीआई मुद्रास्फीति लक्ष्य सीमा के भीतर आ गई है, ऐसा मानकर चलने के जोखिम के प्रति सचेत रहना होगा । उन्हें अत्यधिक सख्ती के जोखिम के प्रति भी सचेत रहना होगा, विशेषकर जब बड़े संरचनात्मक परिवर्तन, भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक बदलाव हो रहे हों। इसके अलावा, उन्हें नए झटकों के जोखिमों से भी सावधान रहना होगा जो अर्थव्यवस्था को कभी भी, कहीं से भी प्रभावित कर सकते हैं।
हम अब ऐसे चरण में पहुंच गए हैं जब समग्र समष्टि आर्थिक और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए हर कार्रवाई पर और भी अधिक सावधानी से विचार करना होगा; और भी अधिक, क्योंकि आगे स्थितियाँ अस्थिर हो सकती हैं। हमें सतर्क रहना होगा और उभरते दृष्टिकोण के अनुसार कार्य करने के लिए तैयार रहना होगा। कई अन्य देशों की तुलना में भारत अनिश्चितताओं का सामना करने में बेहतर स्थिति में है। जैसे-जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था उज्जवल भविष्य की राह पर आगे बढ़ रही है, मुझे महात्मा गांधी के शब्द याद आते हैं: "जब भी ... एक अटल दृढ़ संकल्प होता है तो प्रगति निश्चित रूप से सुनिश्चित होती है।" धन्यवाद। नमस्कार। (योगेश दयाल) मुख्य महाप्रबंधक प्रेस प्रकाशनी: 2023-2024/1437
1 दिसंबर 2023 तक, रबी की बुआई 434.7 लाख हेक्टेयर (पूरे सीजन के सामान्य क्षेत्र 648.3 लाख हेक्टेयर में से) थी, जो पिछले वर्ष की तुलना में 5.3 प्रतिशत कम है, लेकिन आज की तारीख में 5 वर्ष के औसत (सामान्य एकड़) से 4.3 प्रतिशत अधिक है।
संयुक्त (केंद्र और राज्य) पूंजीगत परिव्यय (अर्थात, पूंजीगत व्यय से ऋण और अग्रिम घटाकर) में अप्रैल- अक्तूबर 2023 में 36.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जबकि पिछले वर्ष यह 29.4 प्रतिशत थी।
पिछली एमपीसी बैठक के बाद से ब्लूमबर्ग कमोडिटी मूल्य सूचकांक में नरमी आई है। संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग (यूएसडीए) के अनुसार अधिकांश कृषि वस्तुओं की कीमतें कम हो गई हैं। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) का खाद्य मूल्य सूचकांक अगस्त 2023 से कम हो गया है।
रिज़र्व बैंक के परिवारों के सर्वेक्षण के अनुसार, सितंबर 2022 और नवंबर 2023 के बीच 3 महीने आगे और 1 वर्ष आगे के लिए मुद्रास्फीति की उम्मीदें क्रमशः 170 और 90 आधार अंक कम हो गईं।
सितंबर के दौरान एमएसएफ की उधारी औसतन लगभग ₹0.95 लाख करोड़ थी जो अक्तूबर -नवंबर 2023 के दौरान बढ़कर ₹1.2 लाख करोड़ हो गई।
एसडीएफ के अंतर्गत रखा गया औसत फंड अक्तूबर और नवंबर में क्रमशः ₹0.62 लाख करोड़ और ₹0.58 लाख करोड़ था।
मौजूदा सख्ती चक्र (मई 2022 – अक्तूबर 2023) के दौरान नए रुपये ऋण पर भारित औसत उधार दर (डब्ल्यूएएलआर) 199 आधार अंक (बीपीएस) बढ़ गई, जबकि बकाया ऋण पर 112 बीपीएस बढ़ गई। इसी अवधि के दौरान नए जमा और बकाया जमा पर भारित औसत घरेलू मियादी जमा दरें (डब्ल्यूएडीटीडीआर) क्रमशः 228 बीपीएस और 172 बीपीएस बढ़ गईं।
[25] वर्तमान में, एलएएफ - एसडीएफ और एमएसएफ के अंतर्गत रिज़र्व बैंक की स्थायी सुविधाओं का लाभ सप्ताहांत और छुट्टियों सहित सभी दिनों में 17:30 बजे से 23:59 बजे तक उठाया जा सकता है। हालाँकि, सुविधाओं का प्रत्यावर्तन - एसडीएफ के लिए जमा धन की निकासी और एमएसएफ के लिए उधार ली गई धनराशि चुकौती - सप्ताहांत और छुट्टियों पर लेनदेन के लिए, मुंबई में केवल अगले कार्य दिवस पर उपलब्ध है।
अमेरिकी डॉलर की तुलना में दैनिक आईएनआर विनिमय दर के लिए भिन्नता का गुणांक 0.66 (सीवाई 2023) था, जो चीन, मलेशिया, रूस, तुर्की, वियतनाम, दक्षिण अफ्रीका और थाईलैंड सहित समकक्ष उभरती अर्थव्यवस्थाओं में सबसे कम है।
अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) के प्रमुख वित्तीय संकेतक और सुधार दिखाते हैं। सितंबर 2023 में, एससीबी का सीआरएआर सितंबर 2022 में 16.0 प्रतिशत से बढ़कर 16.8 प्रतिशत हो गया। सितंबर 2023 तक सकल गैर-निष्पादित आस्ति (जीएनपीए) और निवल गैर-निष्पादित आस्ति (एनएनपीए) अनुपात घटकर क्रमशः 3.3 प्रतिशत और 0.8 प्रतिशत के दशक के निचले स्तर पर आ गया। एससीबी आस्ति पर आय (आरओए) सितंबर 2022 में 1.0 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2023 तक 1.3 प्रतिशत हो गया। एससीबी का निवल ब्याज मार्जिन (एनआईएम) सितंबर 2022 में 3.5 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2023 तक 3.7 प्रतिशत हो गया। एससीबी का चलनिधि कवरेज अनुपात (एलसीआर) 135.4 पर आरामदायक था, जो 100 की न्यूनतम शर्त से काफी ऊपर था। नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के संकेतक भी बैंकिंग प्रणाली के अनुरूप हैं।
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