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मार्च 2006 के अंत में भारत का बाह्य ऋण -मुख्य बातें

30 जून 2006

मार्च 2006 के अंत में भारत का बाह्य ऋण -मुख्य बातें

  • मार्च 2006 के अंत में भारत वर्&ींुीर्हीvा;ी कुल बाह्य ऋण स्थिति 125.2 बिलियन अमरीकी डालर पर रही। इस स्तर पर, बाह्य ऋण स्टॉक मार्च 2005 की तुलना में लगभग 2 बिलियन अमरीकी डालर बढ़ा (चार्ट 1)।
  • अन्य प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं की तुलना में अमरीकी डालर का मूल्य बढ़ जाने के कारण बाह्य ऋण स्टॉक पर मूल्यन प्रभाव का मामूली असर पड़ा।

  • ऋण के विभिन्न घटकों में, वर्ष के दौरान एनआरआई जमाराशियों, व्यापार ऋण एवं बहुपक्षीय ऋण में बढ़ोतरी हुई (सारणी 2)।
  • वर्ष के दौरान बाह्य वाणिज्यिक उधारों (इसीबी), द्विपक्षीय और रुपया ऋण में कमी आई। इंडिया मिलेनियम डिपॉजिट्स के मूल धन की चुकौती के एकमात्र प्रभाव के कारण बाह्य वाणिज्यिक उधारों (आइएमडी) (5.5 बिलियन अमरीकी डालर) (सारणी 2) (चार्ट 2) ने निवल बहिर्वाह दर्ज किया।

सारणी 2ः घटकों द्वारा बाह्य ऋण में भिन्नता

मद

के अंत तक

2005-06 के दौरान भिन्नता

मार्च 06

मार्च 05

राशि

राशि

पूर्ण भिन्नता

प्रतिशत भिन्नता

(मिलियन अमरिकी डॉलर)

(मिलियन अमरिकी डॉलर)

(मिलियन अमरिकी डॉलर)

(प्रतिशत)

(1)

(2)

(3)

(4)

(5)

1. बहुपक्षीय

32,558

(26.0)

31,702

(25.7)

856

2.7

2. द्विपक्षीय

15,784

(12.6)

16,930

(13.7)

-1,146

-6.8

3. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष

0

(0.0)

0

(0.0)

0

0.0

4. व्यापार ऋण

र् ी. 1 वर्ष से अधिक

5,326

(4.3)

4,980

(4.1)

346

6.9

ं. 1 वर्ष तक*

8,788

(7.0)

7,524

(6.1)

1,264

16.8

5. वाणिज्यिक उधार

25,560

(20.4)

27,024

(21.9)

-1,464

-5.4

6. एनआरआई जमाराशियां (दीर्घकालिक)

35,134

(28.1)

32,743

(26.6)

2,391

7.3

7. रुपया ऋण

2,031

(1.6)

2,301

(1.9)

-270

-11.7

8. कुल ऋण

1,25,181

(100.0)

1,23,204

(100.0)

1,977

1.6

मेमो मदें

क. दीर्घावधि ऋण

1,16,393

(93.0)

1,15,680

(93.9)

713

0.6

ख. अल्पावधि ऋण

8,788

(7.0)

7,524

(6.1)

1,264

16.8

 

 

  • भारत के विदेशी ऋण में मार्च 2006 के अंत में मुद्राओं में डॉलर सबसे प्रमुख मुद्रा थी जिसकी मात्रा कुल विदेशी ऋण में 45.1 प्रतिशत थी (चार्ट 3)।

ऋण भार वहन क्षमता के संकेतक

विदेशी ऋण के सूचकों में कई वर्षों में दृष्टिगोचर सुधार हुआ है जिसका प्रभाव भारत के विदेशी ऋण के भारवहन की क्षमता में वृद्धि के रूप में दिखाई देता है।

  • मार्च 2006 के अंत में, सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में विदेशी ऋण में 15.8 प्रतिशत की कमी हुई जो कि मार्च 2005 के अंत में 17.3 प्रतिशत और मार्च 1995 के अंत में 30.8 प्रतिशत था।
  • वर्ष 2005-06 में ऋण भुगतान का अनुपात बढ़कर 10.2 प्रतिशत हो गया जोवि 2004-05 में 6.1 प्रतिशत था। यह वृद्धि इंडिया मिलेनियम डिपॉजिट्स की चुकौती के कारण हुई। यह उललेखनीय है कि वर्ष 1999-2000 में ऋण सेवा अनुपात 17.1 प्रतिशत था।
  • वर्ष 2005-06 के दौरान अल्पावधि ऋण में वृद्धि के कारण कुल ऋण में अल्पावधि ऋण और रिज़र्व में अल्पावधि ऋण का अनुपात बढ़कर क्रमशः 7.0 प्रतिशत और 5.8 प्रतिशत हो गया (सारणी 3)।

सारणी 3ः ऋण -भारवहन क्षमता के संकेतक

(प्रतिशत में )

संकेतक

मार्च 06 के अंत में

मार्च 05 के अंत में

(1)

(2)

(3)

कुल ऋण / जीडीपी

15.8

17.3

अल्पावधि / कुल ऋण

7.0

6.1

अल्पावधि ऋण / प्रारक्षित

5.8

5.3

रियायती ऋण / कुल ऋण

31.5

33.3

प्रारक्षित / कुल ऋण

121.1

114.9

ऋण सेवा अनुपात *

10.2

6.1

* राजकोषीय वर्ष 2005 - 06 और 2004-05 से संबंधित

  • कुल विदेशी ऋण में रियायती ऋण का हिस्सा मार्च 2005 के अंत में रहे 33.3 प्रतिशत से घट कर मार्च 2006 के अंत में 31.5 प्रतिशत हो गया (सारणी 3)। याद किया जाए कि यह अनुपात मार्च 1991 के अंत में लगभग 45.9 प्रतिशत था। इससे यह सूचित होता है कि भारत के विदेशी ऋण भंडार में गैर रियायती निजी ऋण में लगातार वृद्धि हो रही है। इस स्तर पर, फिर भी कुल विदेशी ऋण में रियायती ऋण की मात्रा अधिक बनी रही है, विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय मानकों के लिहाज से।
  • भारत का विदेशी मुद्रा भंडार विदेशी ऋण से 26.4 बिलियन अमरीकी डॉलर अधिक हो गया है जो कि मार्च 2006 के अंत में विदेशी ऋण भंडार के 121.1 प्रतिशत तक सुरक्षा प्रदान करता है (चार्ट 4)।

मार्च 2005 से मार्च 2006 तक की अवधि के लिए ऋण स्टॉक की गति की संपूर्ण जानकारी विरण घ् और 2 में प्रस्तुत है।

बी.वी.राठोड़

प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2005-2006/ 1710

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