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2004-05 में मैक्रो आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां - आरबीआई - Reserve Bank of India

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2004-05 में मैक्रो आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां


27 अप्रैल 2005

2004-05 में मैक्रो आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां

अतीत में, मैक्रो आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों को वार्षिक वक्तव्य के जारी किये जाने के साथ साथ एक अलग से अनुलग्नक दस्तावेज़ के रूप में जारी किया जाता था। अलबत्ता, इस वर्ष यह दस्तावेज़ कल जारी किये जा रहे वार्षिक नीति वक्तव्य से एक दिन पहले जारी किया जा रहा है ताकि यह मौद्रिक नीति तैयार करने के संदर्भ और उसके औचित्य की पफ्ष्ठभूमि का कार्य कर सके।

2004-05 में मैक्रो आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों की खास-खास बातें इस प्रकार हैं:

I. वफ्द्धि बचत और निवेश

  • 2004-05 में वास्तविक सकल देशी उत्पाद वफ्द्धि 6.9 प्रतिशत के साथ भारत की मैक्रो आर्थिक निष्पादकता उम्मीद से कहीं अधिक मज़बूत रही।
  • प्रतिकूल मानसून के बावजूद, वफ्षिगत और संबंधित गतिविधियों से होने वाले वास्तविक सकल देशी उत्पाद में 1.1 प्रतिशत की वफ्द्धि हुई और खाद्यान्न उत्पादन 210 मिलियन टन से भी अधिक रहा।
  • औद्योगिक सुधार ने मज़बूती और विस्तार दर्शाया और इसके पीछे मुख्य रूप से निर्माण क्षेत्र और अधिक मात्रा में निर्यात रहे।
  • सेवा क्षेत्र वफ्द्धि का प्रमुख स्रोत बना रहा।
  • सकल घरेलू बचत की दर 2003-04 में सकल देशी उत्पाद के 28.1 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है और सकल घरेलू पूंजी गठन की दर 26.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है।

II. राजकोषीय स्थिति

  • फिस्कल रिस्पॉन्सीबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट रूल्स, 2004 के शुरू होने से राजकोषीय समेकन प्रक्रिया में एक नयी शुरुआत हुई है।
  • हालांकि फिस्कल रिस्पॉन्सीबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट रूल्स में केंद्र के राजस्व घाटे और राजकोषीय घाटे में अपेक्षित कमी लायी जा सकी थी लेकिन 2004-05 के लिए बजटीय लक्ष्य पूरे नहीं किये जा सके।
  • सकल कर राजस्व, जो कि 3.7 प्रतिशत था, बजट अनुमानों से कम रहा। इसका कारण यह रहा कि निगम कर वसूलियां तथा केंद्रीय उत्पाद शुल्क कम रहे; ऋण अदला-बदली लेनदेनों के निवल शुद्ध व्यय बजटीय स्तर से 1.0 प्रतिशत कम रहे।
  • 2004-05 में राजकोषीय सुधारों को आगे ले जाने के राज्य सरकारों के सतत प्रयासों के कारण राज्यों के लिए प्रमुख घाटे के संकेतकों में गिरावट की व्यवस्था की गयी है।
  • 2005-06 में केंद्रीय बजट में बारहवें वित्त आयोग की सिफारिशों को लागू करने और वैट को लागू करने के कारण किसी राजस्व हानि के लिए राज्यों को क्षतिपूर्ति करने की ज़रूरत को देखते हुए एफआरबीएम द्वारा निर्धारित पथ में ‘रोक’ की व्यवस्था की गयी है।
  • केंद्रीय सरकार के राजकोषीय घाटे के 2005-06 के दौरान पिछले वर्ष के 4.5 प्रतिशत से गिरावट के साथ 4.3 प्रतिशत पर रहने का बजट रखा गया है जबकि 2004-05 के संशोधित अनुमानों में शुद्ध बाज़ार उधार 45943 करोड़ रुपये की तुलना में उच्चतर अर्थात् 103791 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया है।

III. मौद्रिक तथा चलनिधि स्थितियां

  • 2004-05 में मौद्रिक स्थितियां कमोबेश पिछले वर्ष की ही तरह बड़े पैमाने पर पूंजी आगमनों से प्रेरित रहीं।
  • 12.8 प्रतिशत पर मुद्रा आपूर्ति (एम3) 2004-05 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य द्वारा लक्षित 14.0 प्रतिशत की सीमाओं के भीतर ही बनी रही।
  • बैंक जमाराशियों में वफ्द्धि स्थितियों के डाक जमाराशियों के पक्ष में हो जाने के कारण लक्षित वफ्द्धि से मामूली सी कम रही।
  • रिज़र्व बैंक की विदेशी मुद्रा आस्तियों में 2004-05 में 115044 करोड़ रुपये की वफ्द्धि हुई जबकि 2003-04 में 141428 करोड़ रुपये की वफ्द्धि दर्ज़ की गयी थी।
  • जुलाई 2004 से गैर-खाद्यान्न ऋण में तीव्र वफ्द्धि बनी हुई है।
  • बड़ी मात्रा में पूंजी आगमनों के साथ वर्ष की शुरुआत में चलनिधि के ओवरहैंग के साथ रिज़र्व बैंक को कुछेक प्रासंगिक दबावों को छोड़ कर वर्ष के दौरान चलनिधि को खपाना जारी रखना पड़ा।
  • बाज़ार स्थिरीकरण योजना नाम के एक नये तंत्र के ज़रिए स्थिरीकरण परिचालन संचालित किये गये।

IV. मूल्य स्थिति

  • 2004 के दौरान पूरी दुनिया में मुद्रास्फीतिकारी स्थितियां मज़बूत बनी रहीं।
  • केंद्रीय बैंकों ने मुद्रास्फीतिकारी अपेक्षाओं को स्थिर करने के लिए अपनी एकोमोडेटिव मौद्रिक नीति अवस्थिति के लौटने के संकेत देने शुरू किये।
  • पण्य मूल्य, खास तौर पर कच्चे तेल, धातुओं और कोयले के मूल्य विश्वव्यापी मांग के कारण तेज़ हुए जबकि आर्थिक गतिविधियों को मज़बूती के साथ आपूर्ति कम बनी रही।
  • आपूर्ति पक्ष के दबाव घरेलू मुद्रास्फीति परिदृश्य पर हावी रहे।
  • थोक मूल्य सूचकांक ने वर्ष-दर-वर्ष परिवर्तनों द्वारा मापी जानेवाली हैडलाइन मुद्रास्फीति 2004-05 के दौरान दो चरणों में आगे बढ़ी।
    • अप्रैल-अगस्त 2004 के दौरान आयातित मुद्रास्फीति और प्रतिकूल दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के कारण कोयले, पेट्रोलियम उत्पादों तथा धातुओं के घरेलू मूल्यों में सख्ती बनी रही;
    • सितंबर 2004 - मार्च 2005 में जब मुद्रास्फीतिकारी दबाव नीचे आने शुरू हुए और मानसून का असर कम होने लगा तो अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों के पास थ्रू को जगह देने के लिए राजकोषीय उपाय और ज़रूरत से अधिक चलनिधि को बाहर निकालने तथा मुद्रास्फीतिकारी अपेक्षाओं पर लगाम लगाने के लिए मौद्रिक नीति उपाय शुरू किये गये।

V. वित्तीय बाज़ार

  • 2004-05 के दौरान घरेलू वित्तीय बाज़ार कमोबेश स्थिर बने रहे।
  • कुछेक प्रासंगिक दबावों को छोड़ कर मुद्रा बाज़ार खंड ने आसान चलनिधि स्थितियां दर्शायी।
  • विदेशी मुद्रा बाज़ार आमतौर पर विनिमय दर पर मामूली से ऊपर उठने वाले दबाव के साथ आमतौर पर व्यवस्थित बना रहा।
  • मुद्रास्फीतिकारी दबावों से फिर से उभरने और अंतर्राष्ट्रीय ब्याज दरों के मज़बूत होने के कारण सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में प्रतिफल मज़बूत किये।
  • स्टॉक बाज़ार ने बीच-बीच के संशोधनों के खिलाफ निवेशक आशावाद के साथ भारतीय व्यवस्था के मज़बूत आधारभूत सिद्धांतों में विश्वास को बढ़ाना जारी रखा।
  • मुंबई स्टॉक एक्सचेंज सेन्सेक्स कई प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय स्टॉक बाज़ार सूचकांकों से ऊपर रहा।
  • 2004-05 के दौरान सार्वजनिक निर्गमों के खंड में निवेशक की दिलचस्पी गौण बाज़ार ने उछाल की भावनाओं के कारण प्रोत्साहित रही।

VI. बाह्य अर्थव्यवस्था

  • 2004-05 के पहले ग्यारह महीनों के दौरान भारत के व्यापारिक निर्यातों में 27.1 प्रतिशत की वफ्द्धि हुई - ये भारत सरकार द्वारा 2004-05 के लिए निर्धारित 16.0 प्रतिशत के लक्ष्य से बहुत अधिक थे
  • भारत के आयातों में 36.4 प्रतिशत (अप्रैल-फरवरी) की शानदार वफ्द्धि हुई; तेल आयातों में 44.6 प्रतिशत की वफ्द्धि और गैर-तेल आयातों में 33.3 प्रतिशत की वफ्द्धि से व्यापार घाटा अब तक के सर्वाधिक उच्च स्तर पर रहा।
  • परोक्ष प्राप्तियों में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर अप्रैल-दिसंबर 2004 के दौरान 37.5 प्रतिशत की वफ्द्धि हुई और उसके लिए सॉफ्टवेयर, बाहर से आनेवाली राशियों और पर्यटन से आय का प्रमुख योगदान रहा।
  • यात्राओं, परिवहन, बीमा तथा कारोबार सेवाओं के कारण अप्रैल-दिसंबर 2004 में परोक्ष भुगतानों में 62.3 प्रतिशत की तेज़ वफ्द्धि दर्ज़ की गयी।
  • चालू खाता शेष राशियां 2001-02 तथा 2003-04 के बीच लगातार अधिशेष की स्थिति में रहने के बाद 2004-05 के दौरान मामूली से घाटे की स्थिति में आ गयीं।
  • अप्रैल-दिसंबर 2004 के दौरान आनेवाली निवल पूंजीगत राशियां 20.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहीं जो कि पिछले वर्ष की इस अवधि के दौरान दर्ज़ 16.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में 25.0 प्रतिशत अधिक थीं।
  • भारत के विदेशी मुद्रा भंडारों में 31 मार्च 2005 की स्थिति के अनुसार 28.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वफ्द्धि हुई और ये 141.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गये जो कि विश्व में पांचवें नंबर पर सर्वाधिक है।

अल्पना किल्लावाला

मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2004-2005/1119

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