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वर्ष 2007-08 में समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ

28 अप्रैल 2008

वर्ष 2007-08 में समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ

भारतीय रिज़र्व बैंक ने 29 अप्रैल 2008 को घोषित किए जानेवाले वर्ष 2008-09 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की पृष्ठभूमि को प्रस्तुत करने के लिए आज "वर्ष 2007-08 में समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधयाँ" दस्तावेज जारी किया।

वर्ष 2007-08 के दौरान समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधयों की मुख्य-मुख बातें इस प्रकार हैं:

वास्तविक अर्थव्यवस्था

  • भारतीय अर्थव्यवस्था का लगातार पाँचवें वर्ष के लिए वर्ष 2007-08 के दौरान मज़बूती से बढ़ना जारी रहा। केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) द्वारा जारी किए गए आकलन के अनुसार वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर वर्ष 2006-07 में 9.6 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2007-08 में 8.7 प्रतिशत रही जो सभी तीनों क्षेत्र अर्थात् कृषि और सहबद्ध क्रियाकलाप उद्योग और सेवा क्षेत्र में सामान्य कमी दर्शाते हैं। सामान्य कमी को गिनती में न लेते हुए वृद्धि का निष्पादन वर्ष 2003-04 से 2007-08 की पाँच वर्ष की अवधि के दौरान प्रति वर्ष 8.7 प्रतिशत की उच्च औसत वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद के अनुसार रहा।
  • वर्ष 2007-08 के लिए तृतीय अग्रिम आकलन के अनुसार कुल खाद्यान्न उत्पादन में पिछले वर्ष (217.3 मिलियन टन) से 4.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए अब तक के सर्वोच्च पर 227.3 मिलियन टन पर पहुँचने की संभावना है। वर्ष 2007-08 के दौरान उत्पादन पहले दर्ज लक्ष्य (221.5 मिलियन टन) से 5.8 मिलियन टन तक बढ़ने की संभावना है।
  • वर्ष 2007-08 (अप्रैल-फरवरी) के दौरान औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में वर्ष 2006-07 (अप्रैल-फरवरी) की 11.2 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में 8.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई। विनिर्माण क्षेत्र ने अप्रैल-फरवरी 2006-07 की 12.2 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2007-08 (अप्रैल-फरवरी) के दौरान 9.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की।
  • वर्ष 2007-08 (अप्रैल-फरवरी) के दौरान मूलभूत सुविधा क्षेत्र ने पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरन 8.7 प्रतिशत की तुलना में 5.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई जिससे यह दर्शाया गया कि कोयला को छोड़कर सभी क्षेत्रों में कमी आयी।
  • सेवा क्षेत्र ने गति में कुछ कमी के बावजूद वर्ष 2007-08 के दौरान 10.6 प्रतिशत पर अपनी दो अंकों में वृद्धि दर्ज करना जारी रखा। यह क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद का प्रमुख अंशदाता रहना जारी रखा। अप्रैल-फरवरी 2007-08 के लिए सेवा क्षेत्र गतिविधि के अग्रणी संकेतक यह सुझाव देते है कि पर्यटकों के आगमन, रेलवे के मालभाड़ा ट्रैफिक राजस्व अर्जन, वाणिज्यिक वाहन उत्पादन, नए सेल-फोन कनेक्शन्स, घरेलू हवाई अड्डों पर नागरिक उड्डयन द्वारा यात्रियों की संख्या, सिमेंट और स्टील पिछले वर्ष की तुलना में सामान्य रहे।
  • चालू बाज़ार मूल्य पर सकल देशी उत्पाद के रूप में सकल देशी बचत 2005-06 के 34.3 प्रतिशत की तुलना में 2006-07 में 34.8 प्रतिशत थी जिससे निजी कारपोरेट और सरकारी क्षेत्र के बचत कार्यनिष्पादन में हुआ सुधार परिलक्षित होता है। दूसरी ओर वित्तीय बचत दर में गिरावट के कारण घरेलू बचत दर में 2006-07 में पिछले वर्ष की दर से थोड़ी-सी गिरावट आ गई। रिज़र्व बैंक के नमूना गैर-सरकारी, गैर-वित्तीय कंपनियों की बिक्री और निवल लाभ पिछले वर्ष की तुना में 2007-08 के दौरान (दिसंबर 2007 तक) सीमित रहे। तथापि, इसी अवधि में बिक्री की तुलना में सकल लाभ अनुपात में सीमांत रूप से सुधार हुआ।

राजकोषीय स्थिति

  • राजकोषीय जवाबदेही और बजट प्रबंध (एफआरबीएम) अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार के लिए राजकोषीय सुधार और समेकन की प्रक्रिया 2007-08 के दौरान जारी रही; वर्ष के लिए संशोधित अनुमान (आरई) में राजस्व घाटा और सकल राजकोषीय घाटा क्रमश: सकल देशी उत्पाद के 1.4 प्रतिशत और 3.1 प्रतिशत थी जो वास्तविक अर्थ और सकल देशी उत्पाद की तुलना दोनों में बजट अनुमानों से कम रहा। वर्ष 2007-08 (आरई) के दौरान 2006-07 के प्रतिशत से सकल राजकोषीय घाटा और राजस्व घाटा में क्रमश: सकल देशी उत्पाद के 0.4 प्रतिशत और 0.5 प्रतिशत की कटौती से एफआरबीएम नियमावली, 2004 के अंतर्गत सकल राजकोषीय घाटा और राजस्व घाटा के लिए निर्धारित सकल देशी उत्पाद के 0.3 प्रतिशत और 0.5 प्रतिशत के न्यूनतम प्रारंभिक स्तर की पूर्ति हो गई। केंद्र का सकल प्राथमिक अधिशेष वर्ष 2007-08 (आरई) के दौरान सकल देशी उत्पाद के 0.6 प्रतिशत पर रखा गया जो उसी वर्ष के बजट अनुमानों से 0.2 प्रतिशत उच्चतर स्तर पर है।
  • रिज़र्व बैंक अभिलेखों के अनुसार वर्ष 2007-08 के दौरान सकल और निवल बाजार उधार (364-दिवसीय ट्रेजरी बिलों सहित) वर्ष के अनुमानित उधारों के 99.7 प्रतिशत और 99.9 प्रतिशत रहते हुए क्रमश: 1,88,205 करोड़ रुपए और 1,09,504 करोड़ रुपए थे। 14.90 वर्षों के लिए वर्ष 2007-08 के दौरान जारी की गई दिनांकित प्रतिभूतियों की भारित औसत परिपक्वता पिछले वर्ष के दौरान 14.72 वर्षों के लिए जारी की गई दिनांकित प्रतिभूतियों की भारित औसत परिपक्वता से अधिक थी। वर्ष 2007-08 के दौरान जारी दिनांकित प्रतिभूतियों का भारित औसत प्रतिफल वर्ष 2006-07 के दौरान 7.89 प्रतिशत की तुलना में 8.12 प्रतिशत थी।
  • राज्य सरकारों के बजट में 2006-07 में 0.1 प्रतिशत (आरई) के राजस्व घाटे की तुलना में 2007-08 में सकल घरेलू उत्पाद का 0.3 प्रतिशत राजस्व अधिशेष रहा। 2007-08 में बजट में सकल राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 2.3 प्रतिशत था जो पिछले वर्ष की तुलना में 0.4 प्रतिशतता पाइंट कम था।
  • वर्ष 2007-08 के दौरान राज्यों ने (संघ शासित प्रदेश पुडुचेरी सहित) नीलामियों के माध्यम से पिछले वर्ष के दौरान 20,825 करोड़ रुपए की तुलना में (सकल आंबंटित राशि का 78.3 प्रतिशत) 67,779 करोड़ रुपए (सकल आंबंटित राशि का 84.1 प्रतिशत) के बाजार ऋण जुटाए। उच्चतम आय 7.84 - 8.90 प्रतिशत रही। बाजार उधारों पर भीतर औसत आय पिछले वर्ष 8.10 प्रतिशत की तुलना में 2007-08 के दौरान 8.25 प्रतिशत रही।
  • राज्यों द्वारा अर्थोपाय अग्रिम और ओवरड्राफ्ट का औसत दैनिक उपयोग 2006-07 के दौरान 248 करोड़ रुपए की तुलना में 2007-08 के दौरान 648 करोड़ रुपए था। राज्यों की नकदी अधिशेष स्थिति, जो खजाना बिलों (14-दिवसीय और नीलामी खजाना बिलों) में उनका निवेश दर्शाते हैं, बड़ी मात्रा में रहे। खजाना बिलों में राज्यों का औसत निवेश निछले वर्ष के दौरान 63,718 करोड़ रुपए की तुलना मे 2007-08 के दौरान 73,680 करो रुपए था।
  • 2008-09 के केंद्र बजट में प्रस्ताव था कि राजस्व घाटे और सकल राजकोषीय घाटे, जैसे घाटे के प्रमुख निर्देशकों से राजकोषीय समेकन प्रक्रिया जारी रखें ताकि इसे 0.4-0.6 प्रतिशतता पाइंट और प्राथमिक अधिशेष 2008-09 के पिछले वर्ष की तुलना में 0.5 प्रतिशतता पाइंट अधिक किया जा सके। हालांकि सकल राजकोषीय घाटे से संबंधित एफआरबीएम लक्ष्य अधिदेश के अनुरूप प्राप्त किए जा रहे हैं, बजट में एफआरबीएम नियमावली 2004 के अंतर्गत मुख्यतया राजस्व व्यय गहन कार्यक्रमों और योजनाओं के पक्ष में योजना प्राथमिकताओं में परिवर्तन करने से 2008-09 तक राजस्व घाटा शून्य करने का लक्ष्य है।

मौद्रिक और चलनिधि स्थितियाँ

  • वर्ष-दर-वर्ष व्यापक मुद्रा (एम3) में वृद्धि मार्च 2008 के अंत तक एक वर्ष पूर्व के 21.5 प्रतिशत (5,86,548 करोड़ रुपये) की तुलना में 20.7 प्रतिशत (6,86,096 करोड़ रुपये) थी।
  • बैंकों की सकल जमाराशियाँ, वर्ष-दर-वर्ष बढ़कर एक वर्ष पूर्व के 22.3 प्रतिशत (5,16,134 करोड़ रुपए) की तुलना में मार्च 2008 के अंत में 21.2 प्रतिशत (5,99,687 करोड़ रुपए) हो गईं।
  • पिछले तीन वर्षों में सुदृढ़ गति के बाद बैंक ऋण की वृद्धि में वर्ष 2007-08 के दौरान कुछ सुधार हुआ। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंको (एससीबी) द्वारा खाद्येतर ऋण वर्ष-दर-वर्ष एक वर्ष पूर्व के 28.5 प्रतिशत (4,18,282 करोड़ रुपए) से सुधरकर 28 मार्च 2008 तक 22.3 प्रतिशत (4,19,425 करोड़ रुपए) हो गया।
  • प्रारक्षित मुद्रा में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि 31 मार्च 2008 तक 30.9 प्रतिशत हुई जो बैंकों की वर्ष के अंत में चलनिधि अपेक्षाओं को प्रतिबिंबित करती हुई एक वर्ष पूर्व 23.7 प्रतिशत थी। आरक्षित नकदी निधि अनुपात में प्रथम दौर की वृद्धि को समायोजित किया गया जिससे प्रारक्षित मुद्रा में वृद्धि पिछले वर्ष की 18.9 प्रतिशत की तुलना में 25.3 प्रतिशत हो गई।
  • पूँजी प्रवाहों और सरकारों के नकदी शेषों में उतार-चढ़ाव से वर्ष 2007-08 के दौरान चल-निधि स्थितियाँ प्रभावित होती रहीं। रिज़र्व बैंक ने चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत बाजार स्थिरीकरण योजना के अंतर्गत प्रतिभूतियाँ जारी करने सहित आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर)तथा खुले बाजार परिचालनों(ओएमओ) के समुचित उपयोग माध्यम से चलनिधि के सक्रिय प्रबंधन की नीति जारी रखी।

मूल्य स्थिति

  • हेडलाईन मुद्रास्फीति प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में वर्ष 2007-08 की दूसरी छमाही के दौरान उच्चतर खाद्य और ईंधन मूल्यों के साथ-साथ विशेषत: उभरते हुए बाज़ारों में मजबूत मांग स्थितियों के संयुक्त प्रभाव को दर्शाते हुए बढ़ गई। तथापि, वर्ष की अंतिम अवधि के दौरान मौद्रिक नीति की प्रतिक्रिया वित्तीय स्थिरता और आर्थिक वृद्धि पर अमरीकी सब-प्राइम संकट से उत्पन्न ऋण में कमी के प्रभावों से बढ़ी हुई चिंताओं की दृष्टि से मिली-जुली रही।
  • खाद्य और कच्चे तेल की कीमतों में तीव्र वृद्धि के कारण वर्ष 2007-08 में वैश्विक वस्तुओं की कीमतें मजबूत बनी रहीं। तथापि,कृषि संबंधी कच्चे माल की कीमतें वर्ष 2007-08 के दौरान मुख्यतया सीमा में रहीं। धातुओं की कीमतों में जून-दिसंबर 2007 के दौरान कुछ सुधार हुआ जिनमें जनवरी -मार्च 2008 के दौरान पुनः बढ़ोतरी हुई। वेस्ट टेक्सास इंटरमिडीएट (डब्लूटीआइ) द्वारा दर्शाई गई अंतराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतें 22 अप्रैल 2008 को 119.2 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल के स्तर की ऐतिहासिक उणंचाई पर पहुंच गई। यद्यपि, बाद में कीमतों में कुछ कमी आयी लेकिन वे एक बढ़े हुए स्तर (23 जनवरी 2008 को 89.9 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल) पर बनी रही। गेंहू, चावल और तिलहन/खाद्य तेलों के कारण वर्ष 2007-08 की दूसरी छमाही के दौरान खाद्य कीमतों में बढ़ती हुई मांग (उपभोग मांग और जैविक उत्पादन जैसे खाद्यतर उपयोगों के लिए मांग दोनों में) और प्रमुख फसलों के कम स्टॉक को दर्शाते हुए मजबूती आई।
  • भारत में थोक मूल्य सूचकांक (डब्लूपीआई) में उतार-चढ़ाव के आधार पर हेडलाइन मुद्रास्फीति राजकोषीय वर्ष के प्रारंभ में 6.4 प्रतिशत हो गई जो प्राथमिक खाद्य वस्तुओं, ईंधन समूहों और कुछ विनिर्मित उत्पादन मदों के कारण 29 मार्च 2008 को पुनः बढ़कर 7.4 प्रतिशत होने के पहले 13 अक्तूबर 2007 को कम होकर 3.1 प्रतिशत हो गई।
  • प्राथमिक वस्तु मुद्रास्फीति अप्रैल 2007 के प्रारंभ में 12.2 प्रतिशत से वर्ष दर वर्ष कम होकर दिसंबर 2007 के अंत में संपूर्ण वर्ष के सबसे निचले स्तर को दर्शाते हुए 3.7 प्रतिशत थी लेकिन मुख्यतःफलों,सब्जियों,तिलहनों,कच्चे कपास और लौह अयस्क के कारण 29 मार्च 2008 को बढ़कर 8.9 प्रतिशत हो गई। ईंधन समूह मुद्रास्फीति,जून-नवंबर 2007 के दौरान नकारात्मक रहने के बाद नाप्था,भट्ठी तेल,एवियेशन टरबाइन इंधन(एटीएफ) और बिटुमेन जैसे कुछ पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि तथा फरवरी 2008 में पेट्रोल और डीज़ल की घरेलू कीमतों में बढ़ोतरी के संशोधन को दर्शाते हुए 29 मार्च 2008 को 6.7 प्रतिशत तक पहुँचने के लिए नवंबर 2007 के मध्य से सकारात्मक बन गईं। विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति वर्ष-दर-वर्ष कम होती गई, वर्ष की शुरुआत में 6.4 प्रतिशत से कम होकर 24 नवंबर 2007 को 3.5 प्रतिशत हो गई लेकिन मुख्यतःखाद्य तेलों/ऑयल, केक,आधारभूत भारी रसायनों,और आधारभूत धातु और मिश्र-धातुओं की कीमतों में जारी वृद्धि को दर्शाते हुए 29 मार्च 2008 को बढ़कर 7.1 प्रतिशत हो गई।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में मुद्रास्फीति आधारित वर्ष-दर-वर्ष परिवर्तन भी मुख्यतः खाद्य कीमतों की मुद्रास्फीति में कमी को दर्शाते हुए जनवरी 2008 तक कमी आई। उसके बाद खाद्य और ईंधन की कीमतों के कारण उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में मुद्रास्फीति उपायों में कुछ बढ़ोतरी हुई है। फरवरी/मार्च 2008 के दौरान उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति के उपायों को 5.5-7.9 की सीमा में रखा गया है जो मार्च 2007 में 6.7-9.5 की सीमा में रखा गया था।
  • थोक मूल्य सूचकांक पर अद्यतन उपलब्ध सूचना के अनुसार,हेडलाइन मुद्रास्फीति मार्च 2008 के अंत में 7.4 प्रतिशत से कम होकर 12 अप्रैल 2008 को समाप्त सप्ताह के दौरान सीमांत रूप से कम होकर 7.3 प्रतिशत हो गई।

वित्तीय बाज़ार

  • वर्ष 2007-08 के दौरान वैश्विक वित्तीय बाज़ार उतार-चढ़ाव भरे रहे क्योंकि अमरीकी सब-प्राईम बंधक बाज़ार और अन्य ऋण बाज़ार निवेश बहुत गहन होते गए और उन्होंने अन्य आस्तियों के लिए बाज़ारों पर अपना प्रभाव डाला।
  • वर्ष 2007-08 के दौरान ईक्विटी बाज़ार जिसने प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय ईक्विटी बाज़ारों की प्रवृत्ति के अनुरूप मुख्यत: जनवरी 2008 के दूसरे सप्ताह की शुरूआत से अस्थिरता के कई अवसरों को देखा, को छोड़कर भारतीय वित्तीय बज़ार अधिकांशत: व्यवस्थित रहे। तथापि वर्ष के दौरान ईक्विटी बाज़ार में लाभ दर्ज किए।
  • पूँजी प्रवाहों तथा रिज़र्व बैंक के पास केंद्र सरकार की नकदी शेषों में परिवर्तन के कारण मुद्रा बाज़ार में अस्थिरता के संक्षिप्त अवसर देखे गए।
  • 6 अगस्त 2007 को चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो स्वीकृति पर 3,000 करोड़ रुपए की सीमा हटाए जाने के बाद रात भर के लिए मुद्रा बाज़ारों की ब्याज दरें प्रत्यावर्तनीय रिपो और रिपो सीमा की ओर उन्मुख हुईं और वर्ष के शेष भाग के दौरान उसी सीमा में बनी रही। रातभर के लिए मुद्रा बाज़ार के संपार्श्वीकृत हिस्से में ब्याज दरें वर्ष के दौरान माँग दर से नीचे रही।
  • विदेशी मुद्रा बाज़ार में भारतीय रुपये ने सामान्यत: प्रमुख मुद्राओं के बदले में दुतरफा गतिविधियाँ प्रदर्शित की।
  • सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में 10 वर्षीय प्रतिलाभ वर्ष अधिकांश भाग के दौरान कुछ नरमी आई।

बाह्य अर्थव्यवस्था

  • वर्ष 2007-08 (अप्रैल-दिसंबर) के दौरान भारत के भुगतान संतुलन की स्थिति सुविधाजनक बनी रही। भुगतान संतुलन आधार पर पण्य व्यापार घाटा अप्रैल-दिसंबर 2006 में 50.3 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर अप्रैल-दिसंबर 2007 में 66.5 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया। अदृश्य खाते पर निवल अधिशेष (सेवाएँ, अंतरण तथा आय को मिलाकर) अप्रैल-दिसंबर 2006 को 36.3 बिलियन अमरीकी डॉलर की तुलना में अप्रैल-दिसंबर 2007 को 50.5 बिलियन अमरीकी डॉलर पर उच्चतर रहा।
  • बड़े पण्य व्यापार घाटे के बावजूद निवल अदृश्य अधिशेष जो मुखतया ओवरसीज़ भारतीयों तथा सॉफ्टवेयर सेवाओं के निर्यात से उभरे अंतरणों से अप्रैल-दिसंबर 2007 के दौरान 16.0 बिलियन अमरीकी डॉलर (अप्रैल-दिसंबर 2006 में 14.0 बिलियन अमरीकी डॉलर) का चालू खाता घाटा रहा। चालू खाता घाटा, पूँजी प्रवाह से मिली सहायता से अप्रैल 2007-08 के दौरान अधिक बना रहा।
  • विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआइआइ) द्वारा निवल अंतर्वाह वर्ष 2007-08 के दौरान सकल रूप से 20.3 बिलियन अमरीकी डॉलर (वर्ष 2006-07 के दौरान 3.2 बिलियन अमरीकी डॉलर) था। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआइ) के अंतर्गत अंतर्वाह वर्ष 2007-08 (अप्रैल-फरवरी) के दौरान 25.5 बिलियन अमरीकी डॉलर थे जो वर्ष 2006-07 (अप्रैल-फरवरी) के दौरान 19.6 बिलियन अमरीकी डॉलर थे। वर्ष 2007-08 के दौरान (अप्रैल-दिसंबर) बाह्य वाणिज्यिक उधारों (ईसीबी) के अंतर्गत अंतर्वाह (निवल) 16.3 बिलियन अमरीकी डॉलर (अप्रैल-दिसंबर 2006 के दौरान 9.8 बिलियन अमरीकी डॉलर) थे। अनिवासी भारतीय जमाराशियों ने वर्ष 2007-08 (अप्रैल-फरवरी) के दौरान 106 मिलियन अमरीकी डॉलर का निवल अंतर्वाह दर्ज किया जो गत वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान 3.9 बिलियन अमरीकी डॉलर था।
  • वाणिज्यिक आसूचना और अंक संकलन महानिदेशालय (डीजीसीआइएण्डएस) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2007-08 के दौरान अब तक (अप्रैल-फरवरी) पण्य निर्यातों ने वर्ष 2006-07 (अप्रैल-फरवरी) के दौरान 23.2 प्रतिशत की वृद्धि दर की तुलना में 22.8 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की जबकि आयातों में पिछले वर्ष की 25.2 प्रतिशत की तुलना में 30.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। तेल से इतर आयात में 31.8 प्रतिशत की महत्त्वपूर्ण वद्धि दर्ज की गई (पिछले वर्ष यह 22.6 प्रतिशत थी) जबकि तेल के आयात में गिरावट दर्ज़ की गई (अप्रैल-फरवरी 2007 के 31.2 प्रतिशत की तुलना में 26.4 प्रतिशत)— पण्य व्यापार घाटा पिछले वर्ष के 49.4 बिलियन अमरीकी डॉलर की तुलना में अप्रैल-फरवरी 2008 में बढ़कर 72.5 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया।
  • भारत की प्रारक्षित विदेशी मुद्रा 31 मार्च 2008 को 2007-08 की अवधि में 110.5 बिलियन अमरीकी डॉलर बढ़कर 309.7 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गई। 18 अप्रैल 2008 को भारत की प्रारक्षित विदेशी मुद्रा 313.5 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गई है।

जी.रघुराज
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2007-08/1391

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