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वर्ष 2009-10 की समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ

19 अप्रैल 2010

वर्ष 2009-10 की समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज वर्ष 2009-10 की समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ दस्तावेज़ जारी किया जो 20 अप्रैल 2010 को वर्ष 2010-11 के लिए घोषित किए जानेवाले मौद्रिक नीति वक्तव्य की पृष्ठभूमि को दर्शाता है।

समग्र आकलन

  • सुधरती हुई वृद्धि संभावना के साथ मौद्रिक और राजकोषीय बर्हिगमन उपाय शुरू हो गए हैं।

  • जबकि वृद्धि की गति को और तेज़ बनाने के लिए निजी माँग में सुधार को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है, पहले से ही बढ़ी हुई हेडलाइन मुद्रास्फीति यह प्रस्तावित करती है कि नीति संतुलन का दबाव मुद्रास्फीति को रोकने में लगाना चाहिए क्योंकि उच्चतर मुद्रास्फीति वृद्धि में सुधार को स्वयं धीमी कर देगी।

  • उभरते हुए समष्टि आर्थिक परिदृश्य में वर्ष 2010-11 में मौद्रिक नीति प्रबंध पर वृद्धि प्रभावों का सहायक रहते हुए सुधरती हुई मुद्रास्फीति की चुनौतियों पर मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को रोक रखने का प्रभाव पड़ेगा।

मुख्य-मुख्य बातें

वैश्विक आर्थिक स्थितियाँ

  • वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार ने वर्ष 2009 की चौथी तिमाही में गति पकड़ी। तथापि सुधार की गति उल्लेखनीय रूप से विविधताभरी रही। वर्ष 2010 के लिए वैश्विक उत्पादन के अनुमान सामान्यत: उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं (इएमइ) के कारण सुधार के मज़बूत होने का उल्लेख करते हैं। विश्व व्यापार संगठन का अनुमान है कि वर्ष 2010 में विश्व व्यापार एक मज़बूत सुधार दर्शाएगा।

  • तथापि समग्र वैश्विक समष्टि आर्थिक वातावरण के लिए जोखिमों में वृद्धि संभावित उत्पादन में कमी, उच्चतर बेरोज़गारी दर, खराब वित्तीय प्रणालियों और नीति प्रोत्साहनों से समयपूर्व बहिगर्मन से संबंधित चितांओं की पृष्ठभूमि में उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में भारी सार्वजनिक ऋण के कारण हुई।

  • उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में घरेलू माँग, सुधरते हुए आयात तथा पूँजी प्रवाहों की वापसी द्वारा व्यापक रूप से संचालित मज़बूत सुधार के साथ उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं मुद्रास्फीति और आस्ति मूल्य निर्माण के जोखिम का सामना कर रही हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था

उत्पादन

  • भारतीय अर्थव्यवस्था ने सुधार में स्पष्ट गति प्रदर्शित की तथा कृषि उत्पादन पर कम मानसून के प्रभाव के बावजूद वर्ष 2009-10 के लिए सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि 7.2 प्रति अनुमानित है जो वर्ष 2008-09 में दर्ज 6.7 प्रतिशत से अधिक है।

  • घरेलू उत्पादन वृद्धि के बारे में और चिंताएं कम हो गई हैं क्योंकि सुधार और अधिक व्यापक आधार पर हो रहा है। यह औद्योगिक उत्पादन में वापसी, रबी फसल के लिए बेहतर संभावनाएं तथा सेवा क्षेत्र में जारी अनुकूलन का परिणाम है।

  • सर्वेक्षण आँकड़े हाल के महीनों में क्षमता उपयोग स्तरों में तेज़ी का प्रस्ताव करते हैं जो अभी भी पहले की ऊँचाईयों से कम है। वर्ष 2010-11 में उत्पादन वृद्धि सामान्य मानसून के अनुमान द्वारा वर्ष 2009-10 की अपेक्षा उच्चतर रहने की अपेक्षा है। वृद्धि में जारी गति के लिए सहायता की आशा सभी तीन प्रमुख संघटकों अर्थात् कृषि, उद्योग और सेवाओं से की जा सकती है।

सकल माँग

  • वर्ष 2009-10 के दौरान अंतिम उपभोग व्यय धीमा बना रहा क्योंकि निजी अंतिम उपभोग व्यय और सरकारी अंतिम उपभोग व्यय दोनों में कमी आयी। तथापि, निवेश माँग खासकर सकल निर्धारित पूँजी निर्माण ने वर्ष के दौरान एक क्रमिक सुधार दर्शाया।

  • जबकि निवेश माँग में गति बने रहने की आशा है, निजी उपभोग माँग में तेज़ी वृद्धि में सुधार को संचालित कर सकती है। चार लगातार तिमाहियों के दौरान उल्लेखनीय रूप से दबे रहने के बाद कंपनी बिक्री में वृद्धि ने निजी माँग स्थितियों में सुधार दर्शाते हुए वर्ष 2009-10 की तीसरी तिमाही में मज़बूत सुधार दर्शाया।

  • वर्ष 2010-11 के लिए केंद्रीय बज़ट में की गई योजना के अनुसार आगे चलकर राजकोषीय समायोजन की गुणवत्ता पर अधिक ज़ोर देना आवश्यक होने पर भी राजकोषीय बर्हिगमन समग्र मध्यावधि वृद्धि संभावना में सुधार के प्रति योगदान देगा।

बाह्य अर्थव्यवस्था

  • भारत की बाह्य क्षेत्र स्थिति में वैश्विक अर्थव्यवस्था में बेहतरी के साथ-साथ सुधार हुआ है। 12 लगातार महीनों तक नीचे आने के बाद निर्यात में अक्टूबर 2009 में सुधार हुआ है। उसी प्रकार गिरावट के एक चरण के बाद नवंबर 2009 में आयातों में सुधार हुआ है।

  • एक न्यूनतर व्यापार घाटे के बावजूद पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि की तुलना में चालू खाता घाटा अप्रैल-दिसंबर 2009 के दौरान बहुत बढ़ गया। यह अदृश्य प्राप्तियों में कमी खासकर कारोबारी सेवाओं के कारण घटित हुआ।

  • वर्ष 2009-10 के दौरान विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधि 27.1 बिलियन अमरीकी डॉलर तक बढ़ गया जिसमें मुख्यत: स्वर्ण धारिता (8.4 बिलियन अमरीकी डॉलर) एसडीआर (5.0 बिलियन अमरीकी डॉलर) और विदेश मुद्रा आस्तियाँ (13.3 बिलियन अमरीकी डॉलर) शामिल हैं। विदेशी मुद्रा आस्तियों में वृद्धि की मात्रा मूल्यांकन के कारण थी।

  • भारत और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के बीच उच्चतर वृद्धि और भारी ब्याज दर अंतरों की संभावनाओं को दर्शाते हुए वर्तमान वर्ष के दौरान निवल पूँजी अंतर्वाहों के और बढ़ने की आशा है। तथापि, अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की तरह उच्चतर पूंजी अंतर्वाह आस्ति मूल्यों, घरेलू चलनिधि स्थितियों और विनिमय दर को प्रभावित कर सकते हैं। इसका प्रभाव मौद्रिक अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।

मौद्रिक स्थितियाँ

  • आर्थिक गतिविधियों में मज़बूत सुधार को दर्शाते हुए व्यापक मुद्रा (एम3) में वृद्धि तथा निजी क्षेत्र को ऋण प्रवाह वर्ष 2009-10 के लिए रिज़र्व बैंक के सांकेतिक अनुमानों से अधिक हो गए।

  • जबकि जनवरी 2010 की अपनी तीसरी तिमाही समीक्षा में रिज़र्व बैंक द्वारा आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में वृद्धि से चलनिधि आधिक्य में कुछ नरमी आयी, समग्र चलनिधि स्थितियाँ सहज बनी रही, जैसाकि दैनिक प्रत्यावर्तनीय रिपो परिचालनों में दर्शाया गया है।

  • सरकार को बैंकिंग प्रणाली का ऋण वर्ष के दौरान मौद्रिक विस्तार का मुख्य संचालक था। वाणिज्यिक क्षेत्र को संसाधनों का प्रवाह विशिष्ट रूप से बैंक के साथ-साथ गैर-बैंक ॉााटत दोनों से सुधरा।

  • आगे जाकर मुद्रा की माँग में सुधार में तेज़ी तथा मुद्रास्फीति के बढ़े हुए स्तर के साथ बढ़ोतरी हो सकती है।

वित्तीय बाज़ार

  • वैश्विक संकट पूर्व स्तर तक बाज़ार गतिविधि के लौटने के साथ घरेलू वित्तीय बाज़ार में उतार-चढ़ाव एक वर्ष पूर्व जब संकट प्रकट हुआ की अपेक्षा वर्ष 2009-10 के दौरान बहुत कम था।

  • व्यापक स्थिरता और बहिर्गमन की शुरुआत के बावजूद बाज़ारों ने भारी सरकारी उधारों और मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी से उत्पन्न चिंताओं का सामना किया। इससे सरकारी बॉण्ड बाज़ार में प्रतिलाभ प्रभावित हुआ।

  • ऋण बाज़ारों के लिए न्यूनतम नीति दरों का अंतरण धीरे-धीरे सुधरा।

  • हाल के महीनों में आस्ति कीमतों में अपेक्षाकृत तेज़ गति से बढ़ोतरी हुई जिससे अर्थव्यवस्था की संभावनाओं के साथ-साथ सरल चलनिधि स्थितियों के बारे में आशावादिता प्रदर्शित होती है।

  • पूँजी अंतर्वाहों की वापसी के साथ सांकेतिक विनिमय दर में बढ़ोतरी हुई। उच्चतर घरेलू मुद्रास्फीति को देखते हुए वास्तविक अर्थों में मूल्य वृद्धि अभी भी उच्चतर थी।

मुद्रास्फीति स्थिति

  • हेडलाइन थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति वर्ष 2009-10 की चौथी तिमाही के दौरान उल्लेखनीय रूप से बनी रही।

  • प्रारंभिक मुद्रास्फीतिकारी दबाव उल्लेखनीय रूप से कृषि उत्पादन पर कम मानसून का प्रभाव और अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल मूल्यों में वृद्धि के प्रभाव को दर्शाते हुए खाद्य और ईंधन मूल्यों में बढ़ोतरी से प्रबल हुआ। वर्ष की दूसरी छमाही में आपूर्ति की ओर निरंतर दबावों के कारण मुद्रास्फीति अन्य वस्तुओं और सेवाओं पर भी सामान्य रूप से बढ़ने लगी।

  • यह गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पादों में मुद्रास्फीति में तेज़ी से प्रत्यक्ष होता है जो नवंबर 2009 में -0.4 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2010 में 4.7 प्रतिशत हो गई।

  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआइ) द्वारा मापी गई मुद्रास्फीति भी उच्चतर बनी रही। यद्यपि, फरवरी 2010 में कुछ नरमी आई।

  • आर्थिक सुधारों की गति में देखी गई मज़बूत गति के साथ इन मुद्रास्फीतिकारी स्थितियों ने मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को रोक रखने के प्रति रिज़र्व बैंक की नीति के ध्यान को हटाने के लिए बाध्यकारी भूमिका का सृजन किया।

वृद्धि से जुड़े जोखिम

  • मानसून संबंधी अनिश्चितताओं के अलावा वृद्धि से जुड़े हुए कुछ जोखिम है :

    पहला, वृद्धि की गति को सहायता देने के लिए निजी उपभोग माँग में उल्लेखनीय सुधार करने की आवश्यकता है।

    दूसरा, वैश्विक सुधार मज़बूती प्राप्त करने के बावजूद कमज़ोर बने रहने की संभावना है जिसका निर्यात पर प्रभाव पड़ता है।

    तीसरा, राजकोषीय प्रोत्साहनों और वृद्धि समर्थित मौद्रिक नीति से बहिगर्मन जब तक सावधानीपूर्व नहीं किया जाता है, उसका असर वृद्धि प्रक्रिया पर पड़ सकता है।

    अंतत: घरेलू बचत दर ने सार्वजनिक क्षेत्र बचत में उल्लेखनीय कमी के कारण कुछ गिरावट दर्शाई है। इससे अर्थव्यवस्था के संभाति विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
  • रिज़र्व बैंक के व्यावसायिक पूर्वानमानकर्ताओं के सर्वेक्षण ने वर्ष 2010-11 के लिए वृद्धि लगभग 8.2 प्रतिशत (मध्यम) होने का सुझाव दिया है।

मुद्रसस्फति दृष्टिकोण

  • मुद्रास्फीति हाल के महीनों में देखी गई अधिकतम स्तरों से अगले कुछ महीनों में सामान्य होने की अपेक्षा है। तथापि, मुद्रास्फीति के कुछ बढ़ते जोखिम हैं:

    पहला, अंतर्राष्ट्रीय पण्य मूल्य, खासकर तेल मूल पुन: बढ़ने लगे हैं। कई पण्यों में उच्चतर अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों के कारण घरेलू मुद्रासफीति को कम रखने के लिए भारत का आयात विकल्प सीमित है।

    दूसरा, निजी उपभोग माँग की वापसी और उत्पादन अंतर कम होने से मुद्रास्फीतिकारी दबाव बढ़ जाएंगे।
  • अंतत: लगभग द्वि-अंकों के हेडलाइन थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति के साथ मुद्रास्फीति अपेक्षाओं के बढ़ने की जोखिम से बचना आवश्यक है।

अजीत प्रसाद
प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2009-2010/1409

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