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वर्ष 2010-11 की पहली तिमाही में समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ

26 जुलाई 2010

वर्ष 2010-11 की पहली तिमाही में समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ : पहली तिमाही समीक्षा वर्ष 2010-11 दस्तावेज़ जारी किया जो 27 जुलाई 2010 को घोषित की जाने वाली मौद्रिक नीति 2010-11 की पहली तिमाही समीक्षा की पृष्ठभूमि को दर्शाता है।

समग्र आकलन

  • वर्ष 2010-11 में रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति की सामान्य स्थिति वृद्धि और मुद्रास्फीति के बाढ़ते हुए सामान्यीकरण की मज़बूत गति द्वारा लक्षित परिवर्तनशील वृद्धि मुद्रास्फीति गतिशीलता के माध्यम से अब तक नियंत्रित होती रही है।

  • सुधार में गिरावट की चिंता के साथ सामान्यीकृत मुद्रास्फीति के बढ़ते हुए जोखिम यह संकेत देते हैं कि मौद्रिक नीति में समायोजित सामान्यीकरण प्रक्रिया जारी रखनी होगी।

मुख्य-मुख्य बातें

वैश्विक आर्थिक स्थितियाँ

  • वर्ष 2010 की पहली तिमाही में वैश्विक उत्पादन 5 प्रतिशत तक बढ़ा लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था में उसके बाद यूरो क्षेत्र में अनुभवजन्य ऋण स्थिति से उत्पन्न चिंताओं के कारण हल्का आघात लगा है।

  • उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) से अपेक्षित है कि वे अपने मज़बूत सुधार, उभरते हुए मुद्रास्फीतिकारी दबावों तथा आस्ति मूल्य निर्माण के जोखिमों की दृष्टि से मौद्रिक नीति के सामान्यीकरण की प्रक्रिया जारी रखें। दूसरी ओर उन्नत अर्थव्यवस्थाएं सुधार में उत्पन्न नए जोखिमों तथा अपनी सुव्यवस्थित मुद्रा स्फीतिकारी प्रत्याशाओं के कारण भी मौद्रिक बर्हिगमन में पुन: देरी कर सकती हैं।

  • वैश्विक माँग वर्ष 2010 की दूसरी छमाही में कमज़ोर हो सकती है यदि यूरो क्षेत्र राजकोषीय दबाव में संभावित बढ़ोतरी तथा उन्नत अर्थव्यवस्थाओं द्वारा राजकोषीय तटस्थता उपाय के अंगीकरण के कारण वैश्विक सुधार की गति मंद हो जाती है।

भारतीय अर्थव्यवस्था

उत्पादन

  • अबतक मानसून की प्रगति को देखते हुए कृषि उत्पादन पिछले वर्ष की अपेक्षा बेहतर रहने की आशा है। औठद्योगिक उत्पादन वर्तमान वर्ष में दुहरे अंक में प्रदर्शित हो रहा है, मई 2010 में कुछ नरमी के होते हुए भी वृद्धि के लिए नकारात्मक जोखिम बहुत कम है। सेवा गतिविधियों के लिए अग्रणी संकेतक वृद्धि के गति के जारी रहने का प्रस्ताव करते हैं।

  • इस प्रकार वर्ष 2010-11 में सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में अनुमानित 8.0 प्रतिशत से अधिक रहने की आशा है।

  • जून 2010 में रिज़र्व बैंक द्वारा आयोजित व्यवसायिक अनुमानकर्ताओं का सर्वेक्षण वर्ष 2010-11 के लिए समग्र (माध्यमिक)  सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर के 8.4 प्रतिशत का अनुमान करता है जो इस सर्वेक्षण के पिछले दौर में रिपोर्ट किए गए 8.2 प्रतिशत से अधिक है।

सकल माँग

  • वर्ष 2009-10 की अंतिम तिमाही में निजी निवेश माँग में तेज़ी से सुधार हुआ। पूँजीगत वस्तुओं में उत्पादन प्रवृत्ति आनेवाली अवधि में मज़बूत निवेश गतिविधियों के जारी रहने का उल्लेख करती है।

  • उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं और गैर-टिकाऊ वस्तुओं के उत्पादन, आटो बिक्रय और गैर-तेल आयात जैसी अलग-अलग जानकारी आगे चलकर निजी उपभोग माँग में मज़बूत सुधार प्रस्तावित करती है।

  • निजी क्षेत्र से ऋण के लिए माँग में तेज़ी, कंपनी बिक्रय में तेज़ वृद्धि और अगले अनुमान के सर्वेक्षणों से उपलब्ध आदेश पुस्तिकाओं पर जानकारी घरेलू माँग के मज़बूत होने का उल्लेख करती है।

  • सरकारी उपभोग माँग में वृद्धि बज़ट में निर्धारित राजकोषीय समेकन को दर्शाते हुए नरम रहने की संभावना है।

  • समग्रत: निजी उपभोग और निवेश माँग वर्ष 2010-11 के दौरान वृद्धि के दो मुख्य संचालक बनेंगे।

राजकोषीय स्थितियाँ

  • वर्ष 2010-11 के केंद्रीय बज़ट में निर्धारित रोजकाषीय समेकन योजनाओं को 3जी/ब्राडबैंड वायरलेस एक्सेस (बीडब्ल्यूए) स्पेक्ट्रम नीलामियों से प्रत्याशित संग्रहण की अपेक्षा भारी लाभ प्राप्त होगा जिसमें दोनों मिलकर सकल घरेलू उत्पाद की 1 प्रतिशत बिंदु का प्रतिनिधित्व करेंगे।

  • जून 2010 में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में आंशिक विनियमन/उर्ध्वगामी संशोधन सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों की कम वसूली से राजकोषीय स्थिति पर दबाव बनायेंगे।

  • जबकि पेट्रोलियम क्षेत्र में मूल्य समायोजन आनेवाली अवधि में हेडलाईन मुद्रास्फीति को बढ़ा सकता है, सुधरी हुई राजकोषीय स्थिति मध्यावधि दौर में मुद्रास्फीति और वृद्धि दोनों के लिए अनुकूल रहेगी।

बाह्य अर्थव्यवस्था

  • निर्यात की वृद्धि में सुधार और पूँजी प्रवाहों की वापसी के साथ बाह्य क्षेत्र स्थितियों में 2009-10 के दौरान सुधार हुआ।

  • तथापि, चालू खाता घाटा वर्ष 2008-09 में सकल घरेलू उत्पाद के 2.4 प्रतिशत से वर्ष 2009-10 में 2.9 प्रतिशत तक बढ़ गया जिसने विदेशी पूंजी के उच्चतर आमेलन के माध्यम से सुधार में योगदान किया।

  • अब तक वर्ष 2010-11 में आयात वृद्धि वैश्विक अर्थव्यवस्था के संबंध में भारत के मज़बूत कार्यनिष्पादन को दर्शाते हुए निर्यात वृद्धि से अधिक हो गई है; पूंजी अंतर्वाह भी पोर्टफोलियो प्रवाह में गिरावट के द्वारा नरम हुए हैं।

मौद्रिक और चलनिधि परिस्थितियाँ

  • वर्ष 2009-10 के संपूर्ण वर्ष के दौरान जो अधिशेष चलनिधि परिस्थितयाँ थी वह रिज़र्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति के आंशिक सामान्यीकरण के चलते वर्ष 2010-11 के शुरुआत में सामान्य होनी शुरू हुई।

  • तथापि जून 2010 में 3जी/बीडब्ल्यूए स्पेक्ट्रम नीलामीयों के अंतर्गत उल्लेखनीय उच्चतर जमा संग्रहण के कारण सरकार के नकदी शेषों में अचानक तेज़ वृद्धि के चलते चलनिधि परिस्थितियाँ अत्यधिक सख्त हुई।

  • मुद्रास्फीति के उच्चतर स्तर को ध्यान में रखते हुए चलनिधि दबावों को कम करते समय रिज़र्व बैंक ने आंशिक मौद्रिक सख्ती को जारी रखा।

  • विकास की पुर्नवापसी के कारण ऋण की माँग में बढ़ोतरी को दर्शाते हुए निजी क्षेत्र में खाद्येतर ऋण वृद्धि तेज़ रही।

वित्तीय बाज़ार

  • वर्ष 2010-11 की प्रथम तिमाही में यूरो क्षेत्र में राजकोषीय सहनीयता के बारे में चिंताओं के कारण वैश्विक बाज़ारों की अस्थिरता भारतीय बाज़ारों खासकर, ईक्विटी बाज़ार में भी फैल गई।

  • जून 2010 में सख्त चलनिधि परिस्थितियों को दर्शाते हुए अल्पावधि ऋणों के ब्याज दरों में बढ़ोतरी हुई जबकि 3जी/बीडब्ल्यूए नीलामी राजस्वों के बाद राजेकाषीय स्थिति में सुधार होने से मध्यम और दीर्घावधि प्रतिलाभ सामान्य बने रहे।

  • बैंकिंग क्षेत्र ने 1 जुलाई 2010 से उधार की नई "आधार दर" प्रणाली अपनाई जिससे यह अपेक्षा है कि ऋण का मूल्य निर्धारित करने में पारदर्शिता बढ़ेगी, ऋण बाज़ार में प्रतियोगिता को प्रोत्साहन मिलेगा और मौद्रिक नीति को अंतरित करने में भी सुधार होगा। प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों द्वारा निर्धारित आधार दरें 7.25 से 8.0 प्रतिशत की संकुचित स्तर में थे।

मुद्रास्फीति स्थिति

  • हेडलाइन थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति फरवरी 2010 से द्वि-अंकों में रही है और प्रत्येक महीने में अन्य मदों पर भी तेज़ी से फैली है।

  • खाद्येतर विनिर्माण मुद्रास्फीति बढ़ती उत्पादन लागतों, निजी माँग की वसूली और मूल्य निर्धारण शक्ति से जूड़े प्रतिलाभ को दर्शाते हुए नवंबर 2009 में लगभग शून्य से बढ़ते हुए जून 2010 में 7.3 प्रतिशत हो गई।

  • नवंबर 2009 से थोक मूल्य सूचकांक में कुल वृद्धि की 42 प्रतिशत वृद्धि लागू मूल्यों में संशोधन और मूल्यों में भूतपूर्व वृद्धियों को दर्ज़ करने में विलंब होने के कारण हुई।

  • उच्च मुद्रास्फीति के कारण समावेशित वृद्धि को होनेवाली जोखिम को ध्यान में रखते हुए अक्टूबर 2009 में शुरू हुई मौद्रिक सुगमता को तब तक जारी रखा जाना चाहिए जब तक मुद्रास्फीति अपेक्षाओं पर काबू नहीं पा लिया जाता है और मुद्रास्फीति कम नहीं हो जाती है।

अजीत प्रसाद
प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2010-2011/132

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