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वर्ष 2010-11 की दूसरी तिमाही में समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ

1 नवंबर 2010

वर्ष 2010-11 की दूसरी तिमाही में समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ : दूसरी तिमाही समीक्षा वर्ष 2010-11 दस्तावेज़ जारी किया। यह दस्तावेज 2 नवंबर 2010 को घोषित की जाने वाली मौद्रिक नीति 2010-11 की दूसरी तिमाही समीक्षा की पृष्ठभूमि को दर्शाता है।

समग्र आकलन

• अनिश्चित वैश्विक संभावना और कतिपय क्षेत्रों में आपूर्ति कठिनाइयों का प्रभुत्व जो मुद्रास्फीति मार्ग में कठिनाई लाता है, वृद्धि को नुकसान पहुँचाए बिना मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाओं को व्यवस्थित रखने के मौद्रिक नीति के उद्देश्य के लिए एक भारी चुनौती खड़ा करता है।

मुख्य-मुख्य बातें

वैश्विक आर्थिक स्थितियाँ

• वैश्विक सुधार की गति जो 2010 की पहली छमाही में प्रत्याशाओं से अधिक थी पिछले कुछ महीनों में धीमी हो गई है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के अनुमानों के अनुसार वर्ष 2010 की दूसरी छमाही में वैश्विक वृद्धि की गति में अस्थायी कमी वर्ष 2011 की पहली छमाही तक कायम रह सकती है।

• उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में सुधार की कमज़ोरी बेरोज़गारी और अपस्फीति दोनों के बारे में चिंताएं खड़ी करती है। पहले से ही बढ़े हुए राजकोषीय प्रोत्साहनों के लिए क्षमता के साथ तथा वैश्विक ऋण के बारे में चिंताओं को देखते हुए पुन: परिमाणात्मक सरलता वृद्धि में कमज़ोरी का समाधान करने के लिए अधिमान विकल्प दिखाई देती है।

• जारी उत्पादन अंतर अधोमूल्यांकित मूल्य दरों के लिए अधिमानता के साथ प्रतिरक्षात्मक उपायों हेतु प्रयत्न करने के लिए उन्नत अर्थव्यवस्थाओं को आकर्षित कर सकता है जो वैश्विक सुधार के प्रति अवनतिशील जोखिम ला सकता है।

• उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएँ जिन्होंने वैश्विक सुधार लाया है वे वृद्धि की मजबूत गति प्रदर्शित कर रही हैं। वर्ष की दूसरी छमाही में गति में कुछ संभावित नरमी के बावजूद उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से संबंधित वृद्धि असंतुलन के बने रहने की आशा है।

भारतीय अर्थव्यवस्था

उत्पादन

• भारतीय अर्थव्यवस्था का तेज़ और व्यापक आधारवाला सुधार जो वर्ष 2009-10 की दूसरी छमही में शुरू हुआ वर्ष 2010-11 की पहली तिमाही के दौरान जारी है जिससे इस प्रवृत्ति के चारों ओर वृद्धि का समेकन हुआ है।

• पिछले वर्ष के अत्यधिक कम मानसून के बाद वर्ष 2010-11 में वृद्धि की प्रवृत्ति दर से अधिक कृषि क्षेत्र वृद्धि को उन्नत करने के लिए एक सामान्य मानसून प्रत्याशित है।

• औद्योगिक उत्पादन ने मज़बूत वृद्धि दर्शाया यद्यपि, इस प्रवृत्ति के चारों ओर व्यापक अस्थिरता थी। मुख्य मूलभूत सुविधा क्षेत्र औद्योगिक उत्पादन में विकास की गति से पीछे रहा है।

• सेवा गतिविधियों के अग्रणी संकेतक गति के जारी रहने का प्रस्ताव करते हैं।

• आर्थिक कार्यनिष्पादन के संकेतकों पर वर्तमान आँकड़े जुलाई 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में अनुमानित 8.5 प्रतिशत की वृद्धि के अनुरूप बने हुए हैं।

सकल माँग

• बाह्य माँग स्थितियों के कमज़ोर होने तथा राजकोषीय समेकन की आवश्यकता को देखते हुए जारी वृद्धि निरंतर निजी उपभोग और निवेश माँग पर जारी रहेगी। पूँजीगत वस्तुओं के उत्पादन में प्रवृत्तियाँ, कंपनियों, गैर-तेल आयातों की पूँजी व्यय योजनाएं तथा वर्ष 2010-11 के दौरान गैर-बैंकिंग ॉााटतों से वित्तीय सहायता के साथ-साथ ऋण में वृद्धि अब तक निवेश गतिविधियों के लिए मज़बूत स्थितियाँ प्रस्तावित करती रही है।

• वर्ष 2010-11 की पहली तिमाही के लिए निजी उपभोग व्यय आँकड़े तथा कंपनी विक्रय में प्रवृत्तियों के साथ-साथ उपभोक्ता स्थायी वस्तुओं के उत्पादन में तेज़ी के संकेत हैं।

• सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटा दोनों पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि की तुलना में अबतक न्यूनतर रहे हैं। तथापि, इस वर्ष राजस्व और पूँजी व्यय दोनों में उच्चतर वृद्धि रही है। इससे वृद्धि प्रक्रिया में माँग सहायता उपलब्ध होती है।

• सकल घरेलू उत्पाद के व्यय पक्ष पर वृद्धि के लिए निवल निर्यातों का योगदान वर्ष 2010-11 की पहली तिमाही में नकारात्मक था। इस प्रवृत्ति के वर्ष की शेष अवधि के दौरान बने रहने की आशा है।

बाह्य क्षेत्र

• अदृश्य खाते में उच्चतर व्यापार घाटा और अधिशेष में नरमी के कारण वर्ष 2010-11 की पहली तिमाही में भुगतान संतुलन में चालू खाता घाटा बढ़ा।

• हाल के महीनों में विदेशी संस्थागत निवेशकों से प्रवाहों के कारण पूँजी अंतर्वाहों ने चालू खाता घाटे की वित्तीय आवश्यकता पूरी कर दी है।

• सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में चालू खाता घाटा 2009-10 में दर्ज किए गए 2.9 प्रतिशत की तुलना में 2010-11 में उच्चतर रहने की संभावना है।

• जबकि घाटे संपूर्णत: पूँजी अंतर्वाहों से वित्तपोषित होंगे किंतु ऐसे प्रवाहों में संभाव्य घट-बढ़ कुछ जोखिम दर्शाते हैं।

• भारतीय रुपया की पिछले वर्ष के महत्त्वपूर्ण मूल्यवृद्धि से अधिक इस वर्ष के दौरान अब तक 6-मुद्रा के वास्तविक प्रभावी विनिमय दर के आधार पर मूल्यवृद्धि हुई है। 36-मुद्रा की वास्तविक प्रभावी विनिमय दर काफी हद तक स्थिर रही।

• भारत और प्रमुख व्यापार साझेदारों के बीच उच्चतर मुद्रास्फीति अंतर भारतीय निर्यातकों की प्रतिस्पर्धा पर दबाव का ॉााटत है। अत: मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना बाह्य शेष स्थिति सुधारने के लिए भी महत्वपूर्ण है।

• विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि 22 अक्टूबर 2010 को 295.4 बिलियन अमरीकी डॉलर रही।

मौद्रिक और चलनिधि परिस्थितियाँ

• 3जी/बीडल्यूए नीलामियों के फलस्वरूप सरकार को बाज़ारों से चलनिधि के अंतरण के कारण मई 2010 के माह में चलनिधि परिस्थितियाँ सख्त हो गई। तब से चलनिधि परिस्थितियाँ सामान्य रूप से घाटे के मोड़ में रही जो रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति रुझान के अनुरूप थी।

• अक्टूबर 2010 के अंत के आस-पास अत्यधिक अस्थायी चलनिधि दबाव को सुगम बनाने के लिए रिज़र्व बैंक ने बाज़ार को अस्थायी चलनिधि व्यवस्था उपलब्ध कराई।

• मार्च 2010 की शुरुआत से रिपो दर को 125 आधार अंकों और रिवर्स रिपो दर को 175 आधार अंकों से बढ़ाते हुए नीति ब्याज दरों को पाँच बार बढ़ाया गया।

• इस अव्यवस्थित सख्ती ने नीति सीमा को 150 आधार अंकों से घटाकर 100 आधार अंक कर दिया। चलनिधि समायोजन सुविधा में परिचालन दर के रूप में रिवर्स रिपो को रिपो से बदलते हुए प्रभावी नीति ब्याज दर में मार्च 2010 से 275 आधार अंकों से बढ़ोतरी हुई।

• व्यापक मुद्रा (एम3) में धीमी वृद्धि दर्शाना जारी रहा। यह खासकर मीयादी जमाराशियों की वृद्धि में कमी के कारण हुआ।

• खाद्येतर ऋण वृद्धि मौद्रिक नीति की तिमाही समीक्षा में दर्शाई गई 20 प्रतिशत की वृद्धि की सीमा में रहने के कारण बैंकों ने अपनी जमाराशियाँ बढ़ाने के प्रयासों को बढ़ावा दिया है जोकि जुलाई 2010 से उनके द्वारा दिए जा रहे उच्चतर जमा दरों से साबित होता है।

वित्तीय बाज़ार

वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में सर्वोत्तम चूककर्ता की चिंताएं कम हुईं किंतु उसकी जगह वैश्विक सुधार में मंदी से उभरी जोखिम की चिंताओं ने ले ली।

• विश्वभर में कई प्रकार से सुधार और उसके कारण समायोजित मौद्रिक रुझान से बाहर आने से उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं को निजी पूँजी प्रवाहों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी के कारण उतार और चढ़ाव दोनों को मज़बूती मिली है।

• भारतीय वित्तीय बाज़ारों में इस प्रवृत्ति का प्रभाव अमरीकी डॉलर की तुलना में रुपए के विनिमय दर की मूल्यवृद्धि और ईक्विटी मूल्यों में तेज़ की बढ़ोतरी से दिखाई दे रहा है। सामान्यत: प्रमुख शहरों में आवास मूल्य में बढ़ोतरी हुई।

• उच्च नीति ब्याज दरों का अंतरण और घाटे की चलनिधि परिस्थितियाँ वित्तीय बाज़ारों के विभिन्न हिस्सों में मज़बूत रहीं।

मुद्रास्फीति

हेडलाइन मुद्रास्फीति जुलाई 2010 तक पाँच महीनों तक दुहरे-अंकों में रहने के बाद सुगम हो रही है।

• खाद्येतर विनिर्मित उत्पादों में मुद्रास्फीति हालांकि अपनी मध्यावधि प्रवृत्ति से ऊपर रही है, उसमें कुछ नरमी दिखाई दे रही है।

• किंतु खाद्य मुद्रास्फीति सामान्य मानसून के बावजूद उच्चतर बनी हुई है। यह परिवर्तन आंशिक रूप से उच्च प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थ जैसे अण्डा, दूध, मछली और मांस की खपत में बढ़ोतरी होने के कारण हुआ क्योंकि इनके मूल्यों में वृद्धि अधिक रही।

• हाल के महीनों में मुद्रास्फीति सामान्य रहने के बावजूद बढ़ी हुई मुद्रास्फीति मौद्रिक नीति के लिए एक चुनौती बनी हुई है।

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2010-2011/606

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