23 अक्टूबर 2008 समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ - मध्यावधि समीक्षा - वर्ष 2008-09 रिज़र्व बैंक ने आज 24 अक्तूबर 2008 को जारी किए जानेवाले वर्ष 2008-09 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा की पृष्ठभूमि में "समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ - मध्यावधि समीक्षा - वर्ष 2008-09" दस्तावेज़ जारी किया। वर्ष 2008-09 के दौरान अब तक समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों की मुख्य-मुख्य बातें इस प्रकार हैं । वास्तविक अर्थव्यवस्था
- केंद्रीय साख्यिकीय संगठन (सीएसओ) द्वारा अगस्त 2008 में जारी किए गए वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही के अनुमानों के अनुसार वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही के दौरान वास्तविक सकल उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि 7.9 प्रतिशत रखी गई थी जो वर्ष 2007-08 की तदनुरूपी अवधि के दौरान 9.2 प्रतिशत थी। वृद्धि में यह कमी सभी तीन क्षेत्रों यथा; कृषि और सहबद्ध गतिविधियाँ, उद्योग और सेवाओं में फैली हुई थी।
- वर्ष 2008 के दक्षिणी पश्चिमी मानसून मौसम (जून-सितंबर) के दौरान संचयी वर्षा समस्त देश में सामान्य से 2 प्रतिशत नीचे रहते हुए लगभग सामान्य रही जो गत वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान सामान्य से 5 प्रतिशत अधिक थी। प्रथम अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2008-09 के दौरान खरीफ खाद्यान्न उत्पाद वर्ष 2007-08 (चतुर्थ अग्रिम अनुमान) के दौरान 121.0 मिलियन टन की तुलना में 115.3 मिलियन टन रखा गया था।
- अप्रैल-अगस्त 2008-09 के दौरान औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में वर्ष-दर-वर्ष 4.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई जो अप्रैल-अगस्त 2007-08 के दौरान 10.0 प्रतिशत थी। विनिर्माण क्षेत्र में अप्रैल-अगस्त 2008-09 के दौरान (अप्रैल-अगस्त 2007-08 के दौरान 10.6 प्रतिशत) 5.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई तथा विद्युत क्षेत्र ने 2.3 प्रतिशत (अप्रैल-अगस्त 2007-08 के दौरान 8.3 प्रतिशत) की वृद्धि दर्ज की।
- मूलभूत सुविधा क्षेत्र में कोयला के अतिरिक्त सभी क्षेत्रों में कमी प्रदर्शित करते हुए अप्रैल-अगस्त 2008-09 के दौरान 3.4 प्रतिशत (अप्रैल-अगस्त 2007-08 के दौरान 7.1 प्रतिशत) की वृद्धि दर्ज की।
- अब तक वर्ष 2008-09 के दौरान सेवा क्षेत्र गतिविधि के अग्रणी संकेतकों पर उपलब्ध सूचना वर्ष 2007-08 की तदनुरूपी अवधि की तुलना में रेलवे राजस्व अर्जक यातायात किराया, वाणिज्यिक वाहन उत्पादन, दूरभाष संयोजन और नागरिक उड्डयन द्वारा व्यवस्थित निर्यात माल जैसे कुछ संकेतकों के संबंधों में भारी वृद्धि प्रस्तावित करती है। दूसरी ओर निर्यात माल को छोड़कर प्रमुख बंदरगाहों पर व्यवस्थित माल और नागरिक उड्डयन के अन्य संकेतकों के संबंध में वृद्धि में कमी हुई। कुछ कमी पर्यटकों के आगमन तथा सिमेंट और इस्पात के उत्पादन में भी देखी गई।
राजकोषीय स्थिति
- वर्ष 2008-09 (अप्रैल-अगस्त) के लिए केंद्र सरकार वित्त पर उपलब्ध सूचना से यह संकेत मिलता है कि एक वर्ष पूर्व की अपेक्षा सकल राकोषीय घाटे और राजस्व घाटे को अधिक रखा गया था। राजस्व घाटा वर्ष 2008-09 के लिए बज़ट अनुमान का 177.4 प्रतिशत था जो एक वर्ष पूर्व 74.9 प्रतिशत (भारतीय स्टेट बैंक में रिज़र्व बैंक के स्टेक को केंद्र सरकार को बेचने पर लाभ के निवल अंतरण का 122.9 प्रतिशत) था। इसी अवधि के दौरान सकल राजकोषीय घाटा अप्रैल-अगस्त 2007 में 68.5 प्रतिशत की तुलना में बज़ट अनुमान का 87.7 प्रतिशत था। अप्रैल-अगस्त 2007 की अवधि के बाद कर राजस्व में 26.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई। सकल व्यय में (भारतीय स्टेट बैंक में रिज़र्व बैंक के स्टेक के लागत अधिग्रहण के लिए समायोजित) राजस्व व्यय मुख्यत: खाद्य और उर्वरक सहायता, पेंशन और ग्रामीण विकास में तीव्र वृद्धि के कारण बढ़ोतरी हुई।
- वर्ष 2008-09 के दौरान (22 अक्तूबर 2008 तक) सकल और निवल बाज़ार उधार (दिनांकित प्रतिभूतियाँ और 364 दिवसीय खजाना बिलों) क्रमश: 1,27,872 करोड़ रुपए और 64,808 करोड़ रुपए थे जो वर्ष के लिए अनुमानित बाज़ार उधारों का 72.8 प्रतिशत 65.5 प्रतिशत थे। गत वर्ष की तदनुरुपी अवधि के दौरान सकल और निवल बाज़ार उधार वर्ष के लिए अनुमानित बाज़ार उधारों के क्रमश: 66.5 प्रतिशत और 68.1 प्रतिशत थे।
- वर्ष 2008-09 (18 अक्तूबर 2008 तक) के दौरान केंद्र सरकार ने 16 दिनों के लिए अर्थोपाय अग्रिमों (डब्ल्यूएमए) का सहारा लिया जो वर्ष 2007-08 की तदनुरूपी अवधि के दौरान 91 दिनों का था। 18 अक्तूबर 2008 तक केंद्र सरकार ने रिज़र्व बैंक के पास 31,349 करोड़ रुपए का एक अतिरिक्त नकदी शेष बनाए रखा।
- वर्ष 2008-09 के दौरान (22 अक्तूबर 2008 तक) 11 राज्य सरकारों और संघ-शासित क्षेत्र
पुडुचेरी ने 7.97-9.90 की सीमा में कट-ऑफ-प्रतिलाभ के साथ नीलामियों के माध्यम से 22,196 करोड़ रुपए (सकल आबंटन का 35.4 प्रतिशत) की राशि प्राप्त की जबकि गत वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान 19 राज्य सरकारों द्वारा (8.00 - 8.90 प्रतिशत की सीमा में कट-ऑफ प्रतिलाभ) प्राप्त की गई राशि 20,362 करोड़ रुपए थी।
- अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान राज्यों द्वारा अर्थोपाय अग्रिम और ओवर-ड्राफ्ट का औसत दैनिक उपयोग वर्ष 2007-08 की तदनुरूपी अवधि के दौरान 986 करोड़ रुपए की तुलना में 243 करोड़ रुपए था।
- अप्रैल-सितंबर 2008 के दौरान खज़ाना बिलों (14 दिवसीय मध्यावधि खज़ाना बिलों और नीलामी खज़ाना बिलों) ने राज्यों द्वारा औसत दैनिक निवेश वर्ष 2007-08 की तदनुरूपी अवधि के दौरान 72,805 करोड़ रुपए की तुलना में 82,382 करोड़ रुपए था।
मौद्रिक और चलनिधि स्थितियाँ
- 10 अक्तूबर 2008 को व्यापक मुद्रा (एम3) में वृद्धि वर्ष-दर-वर्ष (वाइ-ओ-वाइ) सुधरकर एक वर्ष पूर्व (6,43,963 करोड़ रुपए) के 21.9 प्रतिशत की तुलना में 20.3 प्रतिशत (7,29,338 करोड़ रुपए) हो गई।
- बैंको की सकल जमाराशियों में वर्ष दर वर्ष वृद्धि एक वर्ष पहले की 23.5 प्रतिशत (5,85,253 करोड रु.) की तुलना में 10 अक्तूबर 2008 को 20.4 प्रतिशत (6,28,140 करोड़ रु.) थी।
- बैंक ऋण तेज गति से बढ़ते जा रहे हैं। अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा खाद्येतर ऋण में वर्ष दर वर्ष वृद्धि पिछले वर्ष 23.3 प्रतिशत (3,74,054 करोड़ रु.) की तुलना में 10 अक्तूबर 2008 को 29.3 प्रतिशत (5,80,060 करोड़ रु.) थी। जमा वृद्धि से संबंधित उच्चतर ऋण वृद्धि से अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की क्रमिक ऋण जमा अनुपात (वर्ष दर वर्ष) एक वर्ष पहले 66.8 प्रतिशत से बढ़कर 10 अक्तूबर 2008 को 96.2 प्रतिशत हो गया। वित्तीय वर्ष2008-09 के दौरान (10 अक्तूबर 2008 तक) खाद्येतर ऋण में पिछले वर्ष की तद्नुरुपी अवधि के दौरान 5.0 प्रतिशत (93,781 करोड़ रु.) की तुलना में, 10.4 प्रतिशत (2,40,995 करोड़ रु.) की वृद्धि गुई।
- 29 अगस्त 2008 तक उपलब्ध अलग-अलग क्षेत्र-वार आँकड़ों से परिलक्षित होता है कि उद्योग द्वारा लिए गए खाद्येतर ऋण (वर्ष दर वर्ष) में पिछले वर्ष की तदनुरुपी अवधि मे 40 प्रतिशत (1,43,614 करोड़ रु.) की तुलना मे 45 प्रतिशत (2,18,246 करोड़ रु.) की क्रमिक वृद्धि हुई है। कृषि क्षेत्र मे पिछले वर्ष की तदनुरुपी अवधि में वृद्धिशील खाद्येतर बैंक ऋण के 8 प्रतिशत (40,913 करोड़ रु.) के लगभग की खपत हुई। वृद्धिशील खाद्येतर ऋण का लगभग 17 प्रतिशत (81,729 करोड़ रु.) व्यक्तिगत ऋण था; व्यक्तिगत ऋणों में वृद्धिशील आवास ऋणों का हिस्सा 40 प्रतिशत (32,792 करोड़ रु.)था।
- 17 अक्तूबर 2008 को प्रारक्षित मुद्रा वृद्धि वर्ष-दर-वर्ष 17.6 प्रतिशत थी जो एक वर्ष पूर्व के 24.4 प्रतिशत से कम थी।
- रिज़र्व बैंक ने आरक्षित नकदी निधि अनुपात और खुले बाज़ार के परिचालन, बाज़ार स्थिरीकरण योजना सहित और चलनिधि समायोजन सुविधा के समुचित उपयोग और नीतिगत लिखतों के अपने लचीले निपटान के जरिये चालू वित्तीय वर्ष के दौरान चलनिधि के सक्रीय प्रबंधन की अपनी नीति बनायी रखी। अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू चलनिधि स्थिति पर प्रभाव पड़ा है। फिर भी, लिखतों के मिश्रण के लचीले उपयोग के जरिये चलनिधि में सुधार को किसी महत्वपूर्ण सीमा तक, अतिरिक्त बाज़ार दबाव को अवशोषति और सही स्थितियां सुनिश्चित करते हुए घरेलू वित्तीय बाज़ार में अंतरराष्ट्रीय उथल-पुथल से राहत मिली है।
मूल्य स्थिति
- सुर्खियों में आईद मुद्रा स्थिति 2008-09 के दौरान अब तक मुख्य अर्थ व्यवस्थाओं में स्थिर रही। तथापि, मुद्रास्फीतिकारक दबाव में नियंत्रण के संकेत दिखायी दे रहे हैं, जिससे खाद्यान्न, ईंधन और अन्य पण्यवस्तुओं की किमतों में उल्लेखनीय गिरावट के साथ साथ वैश्विक वित्तीय बाज़ार संकट के गहन होने से वृद्धि कीं अघोमुखी जोखिम में बढ़ोतरी हुई है।
- वैश्वक पण्य मूल्यों में वर्ष 2008-09 की दूसरी तिमाही के दौरान कुछ हद तक कमी आयी जो कच्चे तेल, लोहा और खाद्य के मूल्यों में कमी के कारण थी। अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के मूल्य 3 जुलाई 2008 को 145.3 अमरीकी डालर प्रति बैरल के स्तर पर ऐतिहासिक उच्चतर मूल्यों जो वेस्ट टैक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआइ) का प्रतिनिधित्त्व करते है, को छूने के बाद, में ओइसीडी देशों में माँग में कमी के कारण सुधार हुआ और गैर-ओपीइसी देशों में आपूर्ति संभावनाओं में कुछ हद तक सुधार हुआ। डब्ल्यूटीआइ कच्चे तेल का मूल्य 22 अक्तूबर 2008 को 66 अमरीकी डालर प्रति बैरल के आसपास था। वर्ष 2008-09 की दूसरी तिमाही के दौरान लोहे के मूल्यों में और अधिक नरमी आयी जो ओइसीडी देशों में कमज़ोर निर्माण माँग तथा खासकर चीन में आपूर्ति में कुछ सुधार को दर्शाते हैं। खाद्य मूल्यों में 2008-09 की पहली तिमाही तक तेज वृद्धि हुई थी, जो उच्च माँग और कम स्टॉक को दर्शाते हैं, में वर्ष की दूसरे तिमाही के दौरान कुछ हद तक नरमी आयी। यह नरमी प्रमुख उत्पाद देशों में खासकर तिलहन और बीज में आपूर्ति संभावनाओं में सुधार के कारण थी।
- वैश्वक प्रवृत्तियों को दर्शाते हुए भारत में मुद्रास्फीति में वर्ष 2008-09 के दौरान अब तक वृद्धि हुई किंतु उसमें हाल ही में कुछ नरमी आयी। मुद्रास्फीति, वर्ष-दर-वर्ष थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) में उतार-चढ़ाव पिछले वर्ष की 3.1 प्रतिशत और मार्च 2008 के अंत में 7.7 प्रतिशत की तुलना में 11 अक्तूबर 2008 को 11.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह वृद्धि अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के मूल्यों की वृद्धि का कुछ प्रभाव घरेलू मूल्यों पर पड़ने का असर दर्शाती हैं तथा लोहे और स्टील मूल्यों के स्तर में बढ़ोतरी, मूलभूत भारी अकार्बनिक रसायनों, मशीनरी और मशीनरी ऐजारों, तिलहन, शक्कर, कच्चे कपास और कपड़े की मज़बूत माँग तथा अंतर्राष्ट्रीय पण्य मूल्य दबावों के कारण प्रभाव पड़ा। तथापि जून 2008 के अंत में मुक्त मूल्यवाले पेट्रोल उत्पाद और खाद्य तेल/खली के मूल्य कुछ सामान्य हुए।
- प्राथमिक वस्तु मुद्रास्फीति वर्ष-दर-वर्ष में एक वर्ष पहले के 4.6 प्रतिशत और जून 2008 के अंत में 11.0 प्रतिशत (मार्च 2008 के अंत में 9.7 प्रतिशत) की तुलना में 11 अक्तूबर 2008 को 11.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह वृद्धि खाद्य वस्तुं, खासकर गेहूँ, चावल, फल और सब्जियों, दूध और अण्डों, मछली और माँस तथा खाद्येतर वस्तुं जैसे खली और कच्चे कपास के मूल्यों में वृद्धि दर्शाते हैं।
- इंधन समूह मुद्रास्फीति में पिछले वर्ष की 1.5 प्रतिशत की कमी तथा मार्च 2008 के अंत में 6.8 प्रतिशत की वृद्धि (यह जून 2008 के अंत में 16.3 प्रतिशत थी) की तुलना में 11 अक्तूबर 2008 को 14.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह वृद्धि मार्च 2008 के अंत में 14.1 प्रतिशत से खनिज तेल मूल्यों में वृद्धि के कारण थी। तथापि, जुलाई 2008 की शुरूआत में उच्चतम अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल मूल्यों में कमी के कारण मुक्त मूल्य खनिज तेल वस्तुओं जैसे नाफ्ता, फर्नेस तेल और एवीएशन, टर्बाइन इंधन के घरेलू मूल्य अगस्त 2008 के शुरुआत में 12 से 22 प्रतिशत के स्तर में कमी आयी।
- विनिर्माण उत्पाद मुद्रास्फीति पिछले वर्ष की 4.3 प्रतिशत और जून 2008 के अंत को 10.9 प्रतिशत (मार्च 2008 के अंत को 7.3 प्रतिशत थी) की तुलना में 11 अक्तूबर 2008 को 9.5 प्रतिशत रही। विनिर्माण उत्पाद मूल्यों में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि मुख्य रूप से शक्कर, खाद्य तेल, खली, कपड़ा, रसायन, लोहा और स्टील तथा मशीनरी और मशीन औज़ार के कारण थी। तथापि, मार्च 2008 के अंत में खाद्य तेल और अनाज़ मिल उत्पादों में कुछ कमी आयी।
- उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति में अगस्त/सितंबर 2008 के दौरान और वृद्धि हुई। यह वृद्धि प्रमुखत: खाद्य, ईंधन और सेवाओं ("विविध" समूह के प्रतिनिधित्त्व से) के मूल्यों में वृद्धि के कारण हुई।
- औद्योगिक कर्मचारियों के लिए उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति में जून 2008 के 7.7 प्रतिशत और एक वर्ष पहले के 7.3 प्रतिशत की तुलना में अगस्त 2008 में 9 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
- शहरी गैर-मैन्युअल कर्मचारियों के लिए उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति में जून 2008 के 7.3 प्रतिशत और एक वर्ष पूर्व के 6.4 प्रतिशत की तुलना में अगस्त 2008 में 8.5 प्रतिशत तक रही।
- कृषि मज़दूरों के लिए उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति में जून 2008 के 8.8 प्रतिशत और एक वर्ष पहले के 7.9 प्रतिशत की तुलना में सितंबर 2008 में 11.0 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
- ग्रामीण मज़दूरों के लिए उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति जून 2008 के 8.7 प्रतिशत और एक वर्ष पूर्व के 7.6 प्रतिशत की तुलना में सितंबर 2008 में 11.0 प्रतिशत रही।
वित्तीय बाज़ार
- जुलाई-अक्तूबर 2008 के दौरान वैश्वक वित्तीय बाज़ार परिस्थितियों में भारी गिरावट आयी। दिवालियापन/बिक्री/पुर्नसंरचना का और भी व्यापक प्रसार हुआ और यह बंधक उधार लेनेवाली संस्थाओं से लेकर प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण वित्तीय संस्थाओं और उससे भी फैली आगे वाणिज्य बैंकों तक व्यापक रूप से बढ़ी। बैंकों और वित्तीय संस्थाओं की विफलता भौगोलिक रूप से भी अमरीका से लेकर कई यूरोपीय देशों तक फैल गई। इसके फलस्वरूप, अंतर-बैंक मुद्रा बाज़ार में निधि उपलब्ध कराने का दबाव बना रहा। इक्विटी बाज़ार और अधिक कमज़ोर हुआ और प्रति पक्ष ऋण जोखिम बढ़ा। केंद्रीय बैंकों ने अपनी चलनिधि सुविधाओं को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए स्वतंत्र रूप से तथा समन्वित तरीके से कार्रवाई जारी रखी।
- उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाएं (ईएमई) जो वित्तीय संकट के शुरूआती चरण में कुछ हद तक नरम थीं, हाल ही के महीनों में परिवर्तित वातावरण दिखाई दिया जो सख्त चलनिधि परिस्थितियों और बढ़ती जोखिम को दर्शाता हैं।
- भारत में वित्तीय बाज़ार जो अप्रैल 2008 से सितंबर 2008 के मध्य तक काफी हद तक सुगम रहे, सितंबर 2008 के मध्य और अक्तूबर 2008 के मध्य के बीच उनमें काफी उतार-चढ़ाव दिखाई दिया।
- मुद्रा बाज़ार में ब्याज दरें उभरती चलनिधि परिस्थितियों के अनुरूप जारी रहीं। दैनिक औसत माँग दर, जो अधिकतर 2008-09 की प्रथम तिमाही के दौरान चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के प्रत्यावर्तनीय रिपो और रिपो दरों द्वारा निर्धारित औपचारिक कॉरिडोर के भीतर रही, दूसरी तिमाही के दौरान रिपो दर के आस-पास मंड़राती रही। लेकिन कठोर बाज़ार चलनिधि के कारण सितंबर के अंत में इसमें कुछ छिटपुट उछाल दिखाई दिए। मुद्रा बाज़ार के संपाश्र्वक खंडों में ब्याज दरें मांग दर के अनुरूप चलीं और दूसरी तिमाही में लगातार मांग दर से नीचे बनी रहीं ।
- विदेशी मुद्रा बाज़ार में भारतीय रुपये का मूल्य सामान्य रूप से प्रमुख मुद्राओं की तुलना में घटा।
- ऋण बाज़ार में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की उधार दरों में वृद्धि हुई।
- सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में प्रतिलाभ सामान्य रूप से 2008-09 की दूसरी तिमाही के दौरान सुगम रहा।
- भारतीय इक्विटी बाज़ार में प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय इक्विटी बाज़ारों की प्रवृत्तियों तथा घरेलू मुद्रास्फीति के कारण कमी आयी।
- रिज़र्व बैंक ने चलनिधि डालने के लिए आवश्यक कार्रवाई की और बाज़ार को आश्वासन दिया कि भारतीय बैंकिंग प्रणाली सुदृढ़, सुपूँजीकृत तथा सुनियंत्रित बनी रही हैं।
बाह्य अर्थव्यवस्था
- वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) के दौरान भारत के भुगतान संतुलन की स्थिति में चालू खाता घाटा में बढ़ोतरी और पूँजी प्रवाहों में सुगमता दर्शाई गयी। भुगतान संतुलन आधार पर पण्य व्यापार घाटा में अप्रैल-जून 2007 में 20.7 बिलियन अमरीकी डालर की तुलना में अप्रैल-जून 2008 में 31.6 बिलियन अमरीकी डालर तक की वृद्धि हुई। अदृश्य खाते के अंतर्गत निवल अधिशेष में उछाल रहा जिससे सॉफ्टवेयर निर्यातों और निजी अंतरणों में वृद्धि तथा अप्रैल-जून 2008 के दौरान पण्य व्यापार घाटे का 66.0 प्रतिशत वित्तपोषण हुआ।
- पण्य व्यापार घाटे में अप्रैल-जून 2007 के दौरान उनके स्तर से चालू खाता घाटे में उल्लेखनीय वृद्धि के कारण अप्रैल-जून 2008 के दौरान भारी वृद्धि हुई। चालू खाता घाटा को पूँजी प्रवाह द्वारा वित्तपोषित किया गया जो तथापि 2008-09 के दौरान अब तक अस्थिर रहा।
- वर्ष 2008-09 के दौरान अब तक निवल पूँजी प्रवाह 2007-08 की तदनुरूपी अवधि से अब तक कम रहा। यह 2008-09 के दौरान (10 अक्तूबर 2008 तक) विदेशी संस्थागत निवेशकों (7.3 बिलियन अमरीकी डालर) द्वारा बाह्य प्रवाहों के कारण था जो इसके विपरीत वर्ष 2007-08 की तदनुरूपी अवधि के दौरान निवल विदेशी संस्थागत निवेशक अंतर्वाह के कारण था। दूसरी ओर भारत में निवल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश प्रवाह अप्रैल-अगस्त 2007 के दौरान 8.5 बिलियन अमरीकी डालर की तुलना में अप्रैल-अगस्त 2008 के दौरान 16.7 बिलियन अमरीकी डालर तक अधिक रहा। अनिवासी जमा ने अप्रैल-अगस्त 2007 के दौरान निवल बहिर्वाह (168 अमरीकी डालर) की तुलना में अप्रैल-अगस्त 2008 के दौरान निवल अंतर्वाह (273 मिलियन अमरी डालर) दर्ज किया।
- वाणिज्य आसूचना और अंक संकलन महानिदेशालय (डीजीसीआइएण्डएस) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2008-09 (अप्रैल-अगस्त) के दौरान पण्य निर्यातों ने 35.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जो अप्रैल-अगस्त 2007 के दौरान 19.3 प्रतिशत से अधिक थी। आयातों ने एक वर्ष पहले की 34.2 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में अप्रैल-अगस्त 2008 के दौरान 38.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। पेट्रौल, तेल और लुब्रिकेन्ट्स (पीओएल) के आयात में अप्रैल-अगस्त 2007 के दौरान 17.9 प्रतिशत की तुलना में अप्रैल-अगस्त 2008 के दौरान 16.0 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई। यह वृद्धि मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल मूल्य में हुई वृद्धि के कारण थी। गैर-तेल आयात ने एक वर्ष पूर्व 42.7 प्रतिशत से 28.3 प्रतिशत की सामान्य वृद्धि दर्शाई। पण्य व्यापार घाटे में अप्रैल-अगस्त 2007 के दौरान 34.6 बिलियन अमरीकी डालर से 49.3 बिलियम अमरीकी डालर की वृद्धि हुई।
- भारत की प्रारक्षित विदेशी मुद्रा 17 अक्तूबर 2008 को 273.9 बिलियन अमरीकी डालर भी जो मार्च 2008 के अंत की स्थिति से 35.8 बिलियन अमरीकी डालर कम हुई।
अजीत प्रसाद प्रबंधक प्रेस प्रकाशनी : 2008-2009/551 |