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समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ : दूसरी तिमाही समीक्षा 2009-10

26 अक्टूबर 2009

समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ : दूसरी तिमाही समीक्षा 2009-10

भारतीय रिज़र्व बैंक ने 27 अक्टूबर 2009 को घोषित की जानेवाली मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा 2009-10 की पृष्ठभूमि को दर्शाने वाला "समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ 2009-10" दस्तावेज आज जारी किया।

मुख्य-मुख्य बातें

वैश्विक आर्थिक स्थितियाँ

  • वैश्विक अर्थव्यवस्था ने वैश्विक मंदी से दूर हटने का संकेत देते हुए सुधार के अस्थायी संकेत प्रदर्शित करना शुरू कर दिया है। तथापि, वैश्विक सुधार को मंदी लेकिन इसमें नीचे आनेवाले उल्लेखनीय जोखिमों के साथ व्यापक रूप से धीमे और क्रमिक रूप में देखा जा रहा है।

  • वर्ष 2009 के लिए वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि संभावना के प्रति क्रमिक तथा निरंतर अवनतिशील संशोधनों के बाद अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वृद्धि उन्नयन की समीक्षा की है और पहली बार अक्टूबर 2009 में इसे (-) 1.4 प्रतिशत से (-) 1.1 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया है।

  • विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के अनुसार पण्य वस्तु निर्यात में पिछली तिमाही की तुलना में वर्ष 2009 की दूसरी तिमाही में लगभग 8.0 प्रतिशत की वृद्धि हुई है यद्यपि, वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि में 33.0 प्रतिशत तक गिरावट जारी रही है।

  • अतर्राष्ट्रीय वित्त संस्थान (आइआइएफ) के आकलन यह प्रस्तावित करते हैं कि उभरती हुई बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं (इएमइ) को निवल निजी पूँजी प्रवाह ने जिसमें वर्ष 2009 की दूसरी तिमाही में सुधार हुआ था तिसरी तिमाही में गति पकड़ी है; 30 उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के बारे में अनुमान है कि वे वर्ष 2009 में 349 बिलियन अमरीकी डॉलर प्राप्त करेंगी। तथापि, यह अभी भी वर्ष 2007 में प्राप्त निवल प्रवाह के उच्चतम स्तर का केवल चौथाई भाग है।

संभावनाएं - भारतीय अर्थव्यवस्था

उत्पादन

  • भारत में वर्ष 2009-10 की पहली तिमाही में 6.1 प्रतिशत की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि (जीडीपी) वर्ष 2008-09 की दूसरी छमाही में आनेवाली दो तिमाहियों के दौरान दर्ज 5.8 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में एक हलके सुधार को दर्शाती है। तथापि, वर्ष 2003-08 की पाँच वषीय अवधि के दौरान दर्ज 8.8 प्रतिशत की उच्चतर औसत वृद्धि की तुलना में वर्ष 2009-10 में पहली तिमाही वृद्धि अभी भी मंदी के जारी रहने का उल्लेख करती है।

  • वर्ष 2009-10 की दूसरी तिमाही में विभिन्न अग्रणी संकेतकों पर उपलब्ध जानकारी प्रस्तावित करती है कि मानसून में कमी के कारण खरीफ उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

  • अप्रैल-अगस्त 2009 के दौरान 5.8 प्रतिशत की वृद्धि के साथ औद्योगिक क्षेत्र ने सुधार प्रदर्शित करना शुरू कर दिया है जो गत वर्ष की तदनुरूपी तिमाही के दौरान 4.8 प्रतिशत था।

  • अगस्त 2009 में मुख्य मूलभूत सुविधा में उल्लेखनीय तेज़ी दिखाई दी और अप्रैल-अगस्त 2009 में यह गत वर्ष की तदनुरूपी तिमाही के दौरान 3.3 प्रतिशत की तुलना में यह 4.8 प्रतिशत के उच्च स्तर पर रही।

  • सेवाओं के अग्रणी संकेतक यह प्रस्तावित करते हैं कि पर्यटन और बंदरगाहों पर व्यवस्थित माल जैसी बाह्य माँग निर्भरता सेवाओं के मंद रहने पर भी निर्माण और दूर संचार से संबंधित गतिविधियों में तेज़ी आयी है।

सकल माँग

  • सकल माँग में गिरावट जो वर्ष 2008-09 की दूसरी छमाही में दिखाई दी वह वर्ष 2009-10 के दौरान जारी रही। निजी उपभोग माँग में वृद्धि में गिरावट वर्ष 2009-10 की पहली तिमाही में 1.6 प्रतिशत तक कम रही। निवेश माँग में भी और गिरावट हुई और सरकारी उपभोग माँग में उच्चतर वृद्धि में जो वर्ष 2008-09 की अंतिम दो तिमाहियों में देखी गई थी, सुधार हुइा।

  • कंपनी निष्पादन आँकड़े यह संकेत देते हैं कि बिक्री में वृद्धि वर्ष 2009-10 की पहली तिमाही में कम हुई यद्यपि लाभप्रदता ने सुधार दर्शाया।

  • कम मानसून और उससे जुड़े देश के कई हिस्से में सूखे जैसी स्थिति तथा कुछ अन्य हिस्सों में हाल की अधिक बाढ़ ने ग्रामीण माँग में कमी लायी।

  • भारत में वृद्धि संभावना की अनुकूलता में घरेलू माँग की पूर्वव्यापी भूमिका को देखते हुए कमज़ोर निजी उपभोग और निवेश माँग में तीव्र सुधार की गति जारी रही।

  • वृद्धि में मंदी के प्रति बढ़ती हुई राजकोषीय प्रतिक्रिया की निरंतरता को दर्शाते हुए केंद्रीय सरकार के मुध्य घाटा संकेतक अर्थात् राजस्व घाटे और सकल राजकोषीय घाटे उल्लेखनीय रूप से गत वर्ष की तदनुरूपी अवधि से अप्रैल-अगस्त 2009 के दौरान उच्चतर बने रहे। मंदी ने राजस्व प्राप्तियों में गिरावट लायी यद्यपि इसने इस प्रवृत्ति में आंशिक योगदान किया।

बाह्य अर्थव्यवस्था

  • बाह्य माँग कमज़ोर बनी रही। कारोबारी आँकड़े दर्शाते हैं कि अप्रैल-अगस्त 2009 के दौरान पण्य वस्तु माल निर्यात और आयात में गत वर्ष की तदनुरूपी अवधि से क्रमश: 31.0 प्रतिशत और 33.4 प्रतिशत तक गिरावट हुई।

  • भुगतान संतुलन आधार पर वर्ष 2009-10 की पहली तिमाही के दौरान जब निर्यात में गिरावट हुई तो उसकी पूर्ववर्ती तिमाही के दौरान मुख्य रूप से उच्चतर तेल कीमतों को दर्शाते हुए आयात में वृद्धि हुई जिसका परिणाम उच्चतर व्यापार घाटा था। उछाल भरे विप्रेषण अंतर्वाहों के कारण निवल उदृश्य प्राप्तियों में अधिशेष व्यापार घाटे के लगभग 78 प्रतिशत तक वित्त प्रदान करने के रूप में दिखाई दिए।

  • इस प्रकार चालू खाता लगभग 5.8 बिलियन अमरीकी डॉलर के घाटे में बना रहा। वर्ष 2008-09 में संकट के प्रति भारत के लचीलेपन और अर्थव्यवस्था की वृद्धि संभावना को दर्शाते हुए पूँजी प्रवाह जो 2008-09 की अंतिम तिमाहियों में नकारात्मक हो गए उनमें पहली तिमाही में बदलाव आया। इससे विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधि से कोई सहायता लिए बिना चालू खाता घाटे को वित्तीय सहायता सुनिश्चित की गई।

  • वर्ष 2009-10 की दूसरी तिमाही के दौरान पूँजी अंतर्वाह अप्रभावित बने रहे। विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधि पर मूल्यांकन लाभ और भारत में अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष द्वारा आबंटित एसडीआर सहित भारत की विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधि वर्ष 2009-10 (16 अक्टूबर 2009 तक) 31.8 बिलियन अमरीकी डॉलर तक बढ़कर 284.8 बिलियन अमरीकी डॉलर के स्तर तक हो गई।

मौद्रिक स्थितियाँ

  • वैश्विक वित्तीय संकट की प्रतिक्रिया में खासकर सितंबर 2008 के बाद रिज़र्व बैंक द्वारा अंगीकृत आर्थिक सहायता वाले मौद्रिक नीति रुझान अब तक 2009-10 में जारी रहे हैं। इस नीति रुझान का लक्ष्य पर्याप्त रुपया चलनिधि उपलब्ध कराना, सुविधाजनक डॉलर चलनिधि सुनिश्चित करना और उत्पादक क्षेत्रों के लिए ऋण प्रवाह हेतु अनुकूल बाज़ार वातावरण बनाए रखना है।

  • निरंतर आधार पर चलनिधि स्थितियाँ अधिशेष में बनी रही जिनका अवशोषण रिज़र्व बैंक द्वारा चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो परिचालन के माध्यम से किया गया।

  • व्यापक मुद्रा (एम3) में वृद्धि ने हाल की अवधि में मामूली सुधार दर्शाया लेकिन 18.9 प्रतिशत (9 अक्टूर 2009 को) यह वर्ष 2009-10 के लिए रिज़र्व बैंक के 18.0 प्रतिशत के सांकेतिक वृद्धि पथ की अपेक्षा उच्चतर बना रहा।

  • संसाधनों की ओर मौद्रिक विस्तार सरकार के भारी उधार कार्यक्रम द्वारा संचालित हुआ जबकि वाणिज्यिक क्षेत्र को बैंक ऋण में गिरावट (10.7 प्रतिशत के वृद्धि के साथ) जारी रही।

वित्तीय बाज़ार

  • भारत में वित्तीय बाज़ार जो संकट की ऊँचाई पर भी सामान्य रूप से कार्य करते रहे उन्होंने जोखिम-अंतरों और उच्चतर लेन-देन मात्राओं में और गिरावट दर्ज की। ओवर-नाईट माँग दर प्रणाली में प्रचुर चलनिधि को दर्शाते हुए चलनिधि समायोजन सुविधा सीमा के आरंभिक स्तर के इर्द-गिर्द मंड़राती रही।

  • संपार्श्विक खण्डों नामत: बाज़ार रिपो तथा संपार्श्वीकृत उधार और ऋण देयताओं(सीबीएलओ) में ब्याज दरें अंतर-बैंक माँग दरों से नीचे बनी रहीं जबकि गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई। वाणिज्यिक पत्र (सीपी) और जमा प्रमाणपत्र (सीडी) बाज़ारों में भी मात्राओं में बढ़ोतरी हुई।

  • सरकारी प्रतिभूति बाज़ारों में अब तक निवल उधार अपेक्षा के 80.4 प्रतिशत की पूर्ति हो चुकी है; निजी क्षेत्र में ऋण की कमज़ोर माँग और सुविधाजनक चलनिधि स्थितियों ने प्रतिलाभों पर दबावों को रोक रखने में सहायता की है।

  • कंपनी बॉण्ड प्रतिलाभों में कुछ बढ़ोतरी हुई लेकिन जोखिम-अंतर पूर्व-लेहमन स्तरों पर आ गया।

  • ऋण बाज़ार में ऋण और जमा दरों में क्रमिक सुधार वर्ष 2009-10 की दूसरी तिमाही में जारी रहा। तथापि, निजी क्षेत्र को ऋण प्रवाह समग्र निजी उपभोग और निवेश माँग की गिरावट के कारण मंद बना रहा।

  • गैर-बैंकिंग ॉााटतों से संसाधनों के प्रवाह में वाणिज्यिक पत्रों और निजी नियोजनों के निर्गम के स्वरूप में घरेलू ॉााटतों के कारण सीमांत रूप से वृद्धि हुई।

  • विदेशी मुद्रा बाज़ार में रुपए की मूल्य वृद्धि मार्च के अंत के स्तर से अमरीकी डॉलर के मुकाबले 10.0 प्रतिशत तक हुई।

  • इक्विटी बाज़ार में अप्रैल 2009 से ही देखे गए शेयर मूल्यों में सुधार की सीमा तक उभरती हुई अधिकांश बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में अपेक्षा से अधिक निष्पादन हुआ। प्राथमिक बाज़ार गतिविधियों में भी सार्वजनिक निर्गमों और निजी नियोजनों के माध्यम से संग्रहित उच्चतर निधियों, बाज़ार में जोखिम माँग की वापसी को दर्शाते हुए कतिपय नए निर्गमों में भारी अंशदान और पारस्परिक निधियों द्वारा संसाधनों की वसूली में बहुविध बढ़ोतरी के साथ उल्लेखनीय तेजी आयी।

मुद्रास्फीति स्थिति

  • अगस्त 2008 में अपने 12.9 प्रतिशत के उच्चतम स्तर से हेडलाइन थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति (डब्ल्यूपीआइ) में भारी गिरावट ने वैश्विक संकट के प्रभाव को कम करने के लिए वृद्धि समर्थक आर्थिक सहायता वाली मौद्रिक नीति के अंगीकरण हेतु जगह बनाई है।

  • लगातार 13 सप्ताहों तक नकारात्मक बने रहने के बाद थोक मूल्यांक सूचकांक मुद्रास्फीति सितंबर 2009 में सुधरकर सकारात्मक हो गई। 1.2 प्रतिशत (10 अक्टूबर 2009 को) न्यूनतम हेडलाइन मुद्रास्फीति (वर्ष-दर-वर्ष) के नीचे रहने के बावजूद मुद्रास्फीतिकारी दबाव उभरने शुरु हो गए जो थोक मूल्य सूचकांक के मार्च 2009 स्तर के ऊपर 5.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाते हुए तथा उपभोक्ता मूल्य सूवकांक के मज़बूती के साथ दुहरे अंकवाले स्तर पर बने रहने से प्रमाणित है।

  • तथापि, बदलता हुआ मुद्रास्फीति वातावरण खाद्य वस्तुओं की कीमतों में मज़बूत वृद्धि के द्वारा संचालित हो रहा है जो अब तक 14.4 प्रतिशत तक (वर्ष-दर-वर्ष) बढ़ चुका है। खाद्यान्न मदों को छोड़कर थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति 3.4 प्रतिशत (-) पर नकारात्मक बनी हुई है।

  • मौद्रिक नीति की दृष्टि से आवश्यक वस्तुओं में निरंतर रूप से जारी उच्चतर मुद्रास्फीति के समक्ष मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को रोक रखना एक मुख्य चुनौती होगी।

वृद्धि और मुद्रास्फीति दृष्टिकोण

  • वर्ष 2009-10 के लिए वर्तमान विकास दृष्टिकोण उन्नतशील संभावनाओं के साथ-साथ अवनतीशील जोखिमों के रूप में है। विकास के प्रति उन्नतशील संभावनाओं में वृद्धि समर्थक राजकोषीय मौद्रिक नीति रुझान, औद्योगिक उत्पादन और मुख्य मूलभूत सुविधा क्षेत्र में सुधार विभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार समग्र कारोबारी विश्वास में उल्लेखनीय बदलाव, संसाधनों के भारी संग्रहण के साथ शेयर बाज़ारों में मज़बूत सुधार, पूँजी अंतर्वाहों की वापसी और वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए दृष्टिकोण में सुधार जो कम होते हुए उपभोक्ता और निवेशक विश्वास को बढ़ा सकता है, शामिल हैं।

  • अवनतिशील जोखिमों में निजी उपभोग माँग में अप्रत्याशित भारी गिरावट और वर्ष 2009-10 की पहली तिमाही में कंपनी विक्रय में कुछ गिरावट, कम मानसून तथा देश के कतिपय भागों में हाल की बाढ़ का कृषि उत्पादन और ग्रामीण माँक पर प्रभाव, ऋण वृद्धि में निरंतर ाटांस और निर्यातों में गिरावट शामिल है।

  • रिज़र्व बैंक के व्यवसायिक अनुमानकर्ताओं का सर्वेक्षण वर्ष 2009-10 में विकास दृष्टिकोण में नीचे की ओर संशोधन दर्शाते हुए इसे 6.5 प्रतिशत से 6.0 प्रतिशत होने का उल्लेख करता है।

  • मुद्रास्फीति दृष्टिकोण वर्तमान में मुद्रास्फीतिकारी दबावों के उभरते संकेतकों द्वारा संचालित होता है तो भी कतिपय गतिविधियाँ दबावों को निक्रिय बना सकती है। इनमें कम औसत माँग और नकारात्मक उत्पादन-अंतर, पिछले कुछ महिनों में अक्टूबर 2009 में बढ़ोतरी के होते हुए भी तेल कीमतों में स्थिरता, खाद्यानों का बफर स्टॉक और एक बेहतर रबी फसल की संभावना जो कम खरीद के प्रतिकूल प्रभाव को अंशत: बदल सकती है, कतिपय वस्तुओं का चयनित आयात और विभिन्न फसल मौसमों के दौरान खाद्य वस्तुओं की कीमतों में पायी गई बदलाव की सामान्य प्रवृत्ति शामिल है।

  • उभरते हुए मुद्रास्फीतिकारी दबाव भी बने रह सकते हैं और आधार प्रभाव के गायब होने, बढ़ी हुई उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति के समक्ष मज़दूरी कीमत संशोधनों के माध्यम से बढ़ते लागत दबाव, अल्पावधि में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति स्थिति को सुधारने में चुनौतियों, वैश्विक सुधार के साथ वैश्विक वस्तु कीमतों पर क्रमिक दबाव और बढ़ी हुई उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति के कारण बढ़ती हुई मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं के कारण पुन: बढ़ सकते हैं।

  • अत: समग्र आर्थिक दृष्टिकोण उन्नतिशील सुधार और जोखिमों की अवनतिशील संभावनाओं का एक मिश्रण है। सहायक वृद्धि और मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाओं को थामे रखने के बीच शुरुआत का प्रबंध करना एक जटिल नीति चुनौती बन जाती है।

जी. रघुराज
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2009-2010/625

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