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समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां : तीसरी तिमाही समीक्षा 2007-08

28 जनवरी 2008

समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां : तीसरी तिमाही समीक्षा 2007-08

भारतीय रिज़र्व बैंक ने 29 जनवरी 2008 को घोषित की जानेवाली वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की तीसरी तिमाही समीक्षा की पृष्ठभूमि में आज "समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां : तीसरी तिमाही समीक्षा 2007-08" दस्तावेज़ जारी किया।

वर्ष 2007-08 के दौरान समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों की मुख्य-मुख्य बातें इस प्रकार हैं :

वास्तविक अर्थव्यवस्था

  • भारतीय अर्थव्यवस्था ने वर्ष 2007-08 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के दौरान मजबूत वृद्धि प्रदर्शित करना जारी रखा, यद्यपि, उसमें कुछ नरमी रही। केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) द्वारा अगस्त 2007 में जारी किए गए आकलन के अनुसार वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि 2007-08 की दूसरी तिमाही के दौरान 8.9 प्रतिशत रही जो वर्ष 2006-07 की उसी अवधि के दौरान 10.2 प्रतिशत थी। जबकि ‘कृषि और संबद्ध गतिविधियों ने गत वर्ष की तदनुरूपी अवधि में दर्ज की गई वृद्धि की तुलना में वर्ष 2007-08 की पहली छमाही के दौरान उच्चतर वृद्धि दर्ज की, औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों में वृद्धि गत वर्ष की पहली छमाही के दौरान दर्ज की गई वृद्धि से कुछ कम थी।
  • दक्षिण पश्चिमी मानसून 2007 (1 जून से 30 सितंबर) के दौरान संचयी वर्षा सामान्य से 5 प्रतिशत अधिक थी जो गत वर्ष की तदनुरूपी अवधि में सामान्य से एक प्रतिशत कम थी। उत्तर-पूर्वी मानसून के दौरान (1 अक्तूबर 2007 से 31 दिसंबर 2007 तक) संचयी वर्षा गत-वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान सामान्य से 21 प्रतिशत कम की तुलना में सामान्य से 32 प्रतिशत कम रही। खरीफ फसल का सूचित बुआई क्षेत्र (26 अक्तूबर 2007 तक) बढ़कर 2.7 प्रतिशत हो गया जबकि रबी फसल का बुआई क्षेत्र (18 जनवरी 2008 तक) एक वर्ष पूर्व की अपेक्षा लगभग 3.7 प्रतिशत कम रहा।
  • अप्रैल-नवंबर 2007 के दौरान औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आइआइपी) बढ़कर 9.2 प्रतिशत हो गया जिसने गत वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान 10.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की थी। विनिर्माण क्षेत्र ने अप्रैल-नवंबर 2007 के दौरान 9.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जो अप्रैल-अगस्त 2006 के दौरान 11.8 प्रतिशत था।
  • मूलभूत सुविधा क्षेत्र ने अप्रैल-नवंबर 2007 के दौरान 6.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जो एक वर्ष पूर्व की अपेक्षा सभी क्षेत्रों द्वारा वृद्धि दर प्रदर्शित करने के साथ गत वर्ष में 8.9 प्रतिशत थी।
  • सेवा क्षेत्र ने अप्रैल-सितंबर 2007 में दुहरे अंकों में (10.5 प्रतिशत) वृद्धि दर्ज करना जारी रखा। अप्रैल-अक्तूबर 2007 के लिए सेवा क्षेत्र गतिविधि के अग्रणी संकेतक दर्शाते हैं कि रेलवे मालभाड़ा अर्जन, वाणिज्यिक वाहन उत्पादन, नए सेल फोन कनेक्शन्स, घरेलू हवाई अड्डों पर नागरिक उड्डयन द्वारा व्यवस्थित यात्रियों, सिमेंट और स्टील के राजस्व में कुछ सुधार हुआ, यद्यपि यह उच्चतर आधार पर था।

राजकोषीय स्थिति

  • वर्ष 2007-08 (अप्रैल-नवंबर) के लिए केंद्र सरकार वित्त पर मुख्य घाटा संकेतक यथा, राजस्व घाटा और सकल राकोषीय घाटा गत वर्ष की तदनुरूपी अवधि की तुलना में निरपेक्ष रूप से और बज़ट आकलन के प्रतिशत दोनों स्तरों पर कम रहे। न्यूनतर राजस्व घाटा के अलावा प्रतिरक्षा पूंजी व्यय में कमी से भी बज़ट घाटे में सुधार हुआ। अप्रैल-नवंबर 2007 के दौरान प्राथमिक अधिशेष में 8,047 करोड़ रुपए के बज़टीय अधिशेष की तुलना में 7,374 करोड़ रुपए था।
  • केंद्र सरकार के सकल और निवल बाज़ार उधार (364-दिवसीय खज़ाना बिलों सहित) वर्ष 2007-08 (25 जनवरी 2008 तक) क्रमश: 1,73,429 करोड़ रुपए और 1,03,092 करोड़ रुपए थे जो वर्ष के लिए अनुमानित उधारों के 91.8 प्रतिशत और 94.1 प्रतिशत थे।
  • वर्ष 2007-08 (25 जनवरी 2008 तक) के दौरान राज्यों द्वारा नीलामियों के माध्यम से 47,449 करोड़ रुपये की राशि के बाज़ार ऋण प्राप्त किए गए जो गत वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान 14,204 करोड़ रुपए थे।

मूल्य स्थिति

  • हेडलाईन मुद्रास्फीति प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में वर्ष 2007-08 की तीसरी तिमाही के दौरान उच्चतर खाद्य और इंधन मूल्यों के साथ-साथ विशेषत: उभरते हुए बाज़ारों में मजबूत मांग स्थितियों के संयुक्त प्रभाव को दर्शाते हुए बढ़ गई। तथापि, तिमाही के दौरान मौद्रिक नीति की प्रतिक्रिया वित्तीय स्थिरता पर अमरीकी सब-प्राइम संकट से उत्पन्न ऋण में कमी के प्रभावों से बढ़ी हुई चिंताओं की दृष्टि से मिली-जुली रही।
  • खाद्य और कच्चे तेल की कीमतों के कारण वर्ष 2007-08 की तीसरी तिमाही में वैश्विक वस्तुओं की कीमतें मजबूत बनी रहीं यद्यपि धातुओं की कीमतों में तिमाही के दौरान कुछ सुधार हुआ। वेस्ट टेक्सास इंटरमिडीएट (डब्लूटीआइ) द्वारा दर्शाई गई अंतराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतें 2 जनवरी 2008 को 99.6 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल के स्तर की ऐतिहासिक उँचाई पर पहुंच गई। यद्यपि, बाद में कीमतों में कुछ कमी आयीं लेकिन वे एक बढ़े हुए स्तर (23 जनवरी 2008 को 89.9 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल) पर बनी रही। गेंहू और तिलहन/खाद्य तेलों के कारण वर्ष 2007-08 की तीसरी तिमाही के दौरान अंतरराष्ट्रीय खाद्य कीमतों में अंशत: मौसम संबंधी असंतुलनों के कारण बढ़ती हुई मांग (उपभोग मांग और जैविक उत्पादन जैसे खाद्यतर उपयोगों के लिए मांग दोनों में) और प्रमुख फसलों के कम स्टॉक को दर्शाते हुए वृद्धि हुईं।
  • भारत में थोक मूल्य सूचकांक (डब्लूपीआई) में उतार-चढ़ाव के आधार पर 12 जनवरी 2008 को (सितंबर 2007 के अंत में 3.4 प्रतिशत) मार्च 2007 के अंत में 5.9 प्रतिशत की तुलना में (और एक वर्ष पूर्व 6.2 प्रतिशत) 3.8 प्रतिशत थी। एक वर्ष पूर्व की मुद्रास्फिति में हुई कमी प्राथमिक खाद्य वस्तुओं और कुछ विनिर्मित उत्पादन मदों के कारण थी।
  • प्राथमिक वस्तु मुद्रास्फीति में, वर्ष दर वर्ष जो मार्च 2007 के अंत को 10.7 प्रतिशत था, 3 सितंबर 2007 के अंत को 6.2 प्रतिशत और निछले वर्ष के 9.5 प्रतिशत से 12 जनवरी 2008 को 3.9 प्रतिशत का सुधार हुआ। ह्रास मुख्य रूप से खाद्य वस्तु मुद्रास्फीति में सुधार के कारण हुआ। विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति में, वर्ष-दर-वर्ष, जो निछले वर्ष 5.8 प्रतिशत था, सितंबर 2007 के अंत को 4.5 प्रतिशत और मार्च 2007 के अंत को 6.1 प्रतिशत से 12 जनवरी 2008 को 3.9 प्रतिशत का सुधार हुआ। विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति में ह्रास, वर्ष-दर-वर्ष, मुख्यत: लौह से इतर धातुओं, कपड़ा और चीनी के मूल्यों में कमी के कारण हुआ। इंधन समूह मुद्रास्फीति जो जून/नवंबर 2007 के दौरान नकारात्मक हो गई थी दिसंबर 2007 की शुरूआत में (12 जनवरी 2008 को 3.7 प्रतिशत) सकारात्मक हो गई जो अंशत: इंधन (पेट्रोल और डीज़ल) के निछले वर्ष के मूल्य और नफ्था, फनैन्स तेल और एविएशन टरवाईन इंधन जैसे कुछ पेट्रोल उत्पादों के मूल्य में वृद्धि के मूल प्रभाव को दर्शाते है।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में मुद्रास्फीति आधारित वर्ष-दर-वर्ष परिवर्तन भी नवंबर/दिसंबर 2007 (एक वर्ष पूर्व से) के दौरान कम हुआ लेकिन मुख्य रूप से थोक मूल्य सूचकांक की तुलना में उपभोक्ता मूलय संचकांक में खाद्याान्न की कीमतों और उनके उच्चतर भार को दर्शाते हुए थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति के ऊपर बना रहा।

मौद्रिक और चलनिधि स्थितियाँ

  • वर्ष-दर-वर्ष व्यापक मुद्रा (एम3) में वृद्धि 4 जनवरी 2008 को एक वर्ष पूर्व के 20.8 प्रतिशत (5,26,566 करोड़ रुपये) की तुलना में 22.4 प्रतिशत (6,86,925 करोड़ रुपये) थी।
  • बैंकों की सकल जमाराशियाँ, वर्ष-दर-वर्ष बढ़कर एक वर्ष पूर्व के 21.5 प्रतिशत (4,59,021 करोड़ रुपए) की तुलना में 4 जनवरी 2008 को 23.8 प्रतिशत (6,17,035 करोड़ रुपए) हो गईं।
  • पिछले तीन वर्षों में सुदृढ़ गति के बाद बैंक ऋण की वृद्धि में सुधार हुआ। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंको (एससीबी) द्वारा खाद्येतर ऋण वर्ष-दर-वर्ष एक वर्ष पूर्व के 31.9 प्रतिशत (4,16,418 करोड़ रुपए) से सुधरकर 4 जनवरी 2008 तक 22.2 प्रतिशत (3,82,155 करोड़ रुपए) हो गया।
  • प्रारक्षित मुद्रा में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि 18 जनवरी 2008 तक 30.6 प्रतिशत हुई जो एक वर्ष पूर्व 20.0 प्रतिशत थी। आरक्षित नकदी निधि अनुपात में प्रथम दौर की वृद्धि को समायोजित किया गया जिससे प्रारक्षित मुद्रा में वृद्धि पिछले वर्ष की 17.5 प्रतिशत की तुलना में 21.5 प्रतिशत हो गई।
  • पूँजी प्रवाहों और सरकारों के नकदी शेषों में उतार-चढ़ाव से चल-निधि स्थितियाँ प्रभावित होती रहीं। रिज़र्व बैंक ने आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर), बाजार स्थिरीकरण योजना के अंतर्गत प्रतिभूतियाँ जारी करने, चल-निधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत परिचालनों के माध्यम से चलनिधि के सक्रिय प्रबंधन की नीति जारी रखी।

वित्तीय बाज़ार

  • वर्ष 2007-08 की तीसरी तिमाही के दौरान अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाज़ार उतार-चढ़ाव भरे रहे क्योंकि अमरीकी सब-प्राईम बंधक बाज़ार और ऋण बाज़ार निवेश के बारे में अनिश्चितताएं बनी रहीं।
  • भारतीय वित्तीय बाज़ार वर्ष 2007-08 की तीसरी तिमाही में ईक्विटी बाज़ार में कुछ उतार-चढ़ाव को छोड़कर अधिकांश अवधि में व्यवस्थित रहे। वित्तीय बज़ारों में चलनिधि स्थितियों के प्रमुख कारक सरकार के नकदी शेषों तथा पूंजी प्रवाहों में उतार-चढ़ाव रहे।
  • रातभर की मुद्रा बाज़ारों में ब्याज दरें वर्ष 2007-08 की तीसरी तिमाही के दौरान प्रत्यावर्तनीय रिपो और रिपो दरों द्वारा निर्धारित अनौपचारिक सीमा के भीतर बनी रही। रातभर की मुद्रा बाज़ार के संपार्श्विक क्षेत्र में ब्याज दरें सख्त रही किंतु तिमाही के दौरान मांग दर के नीचे बनी रही।

  • विदेशी मुद्रा बाजार में तिमाही के दौरान सभी प्रमुख मुद्राओं (अमरीकी डॉलर, यूरो, पाउंड स्टर्लिंग और जपानी येन) की तुलना में भारतीय रुपए में सामान्यत: मूल्य वृद्धि हुई।
  • सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में प्रतिफल चरण-बद्ध रही जो अंशत: प्रतिफलों में वैश्विक प्रवृत्ति को दर्शाती है। जनवरी 2008 के प्रथम सप्ताह के शुरू में प्रतिफलों में नरमी आई।

बाह्य अर्थव्यवस्था

  • वर्ष 2007-08 (अप्रैल-सितंबर) की प्रथम छमाही के दौरान भारत के भुगतान संतुलन की स्थिति सुविधाजनक बनी रही। भुगतान संतुलन आधार पर पण्य व्यापार घाटा अप्रैल-सितंबर 2006 में 33.8 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर अप्रैल-सितंबर 2007 में 42.4 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया। अदृश्य खाते पर निवल अधिशेष (सेवाएं, अंतरण तथा आय को मिलाकर) अप्रैल-सितंबर 2007 (अप्रैल-सितंबर 2006 में 23.4 बिलियन अमरीकी डॉलर) पर उच्च रहा। निवल अदृश्य अधिशेष में अधिकांश व्यापार घाटे का कम किया (अप्रैल-सितंबर 2006 के दौरान 69.4 प्रतिशत की तुलना में अप्रैल-सितंबर के दौरान 74.7 प्रतिशत)—
  • बड़े पण्य व्यापार घाटे के बावजूद उच्चतर निवल अदृश्य अधिशेष जो मुख्यत: निजी अंतरण से उभरे थे ने वर्ष 2007-08 की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर 2006 में 10.3 बिलियन अमरीकी डॉलर) में 10.7 बिलियन अमरीकी डॉलर के चालू खाता घाटे को उसी स्तर पर रोक रखा। चालू खाता घाटे को पूंजी प्रवाहों द्वारा वित्तीय सहायता मिली जो वर्ष 2007-08 के दौरान अब तक अधिक बने रहे।
  • वर्ष 2007-08 के दौरान (11 जनवरी 2008 तक) विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा निवल अंतर्वाह 26.8 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा (वर्ष 2006-07 की तदनुरूपी अवधि में 2.5 बिलियन अमरीकी डॉलर)— विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआइ) के अंतर्गत अंतर्वाह पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान 10.1 बिलियन अमरीकी डॉलर की तुलना में अप्रैल-नवंबर 2007 के दौरान 13.8 बिलियन अमरीकी डॉलर रहे। चालू वित्तीय वर्ष 2007-08 (अप्रैल-सितंबर) के दौरान बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) के अंतर्गत अंतर्वाह (निवल) 10.6 बिलियन अमरीकी डॉलर रहे (अप्रैल-सितंबर 2006 के दौरान 5.7 बिलियन अमरीकी डॉलर)— बाह्य वाणिज्यिक उधार अनुमोदन (स्वचालित मार्ग के अंतर्गत सहित) अप्रैल-दिसंबर 2006 के दौरान 15.3 बिलियन अमरीकी डॉलर की तुलना में अप्रैल-दिसंबर 2007 के दौरान 23.3 बिलियन अमरीकी डॉलर रहे। अनिवासी भारतीय जमाराशियों ने अप्रैल-सितंबर 2006 के दौरान 3.0 बिलियन अमरीकी डॉलर के निवल अंतर्वाह की तुलना में अप्रैल-सितंबर 2007 के दौरान 433 मिलियन अमरीकी डॉलर की राशि निवल बहिर्वाह के रूप में दर्ज की।
  • वाणिज्यिक आसूचना और अंक संकलन महानिदेशालय (डीजीसीआइएण्डएस) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2007-08 के दौरान अब तक (अप्रैल-नवंबर) पण्य निर्यातों ने अप्रैल-नवंबर 2006 के दौरान 26.2 प्रतिशत की वृद्धि दर से साधारण लगभग 22 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की जबकि आयातों ने अप्रैल-नवंबर 2006 में 27.4 प्रतिशत की न्यूनतम वृद्धि दर्ज की। तेल से इतर आयातों ने तेज वृद्धि दर्ज की जबकि तेल आयातों ने वृद्धि में तेज ह्रास दर्ज किया। समग्र रूप से पण्य व्यापार घाटा में अप्रैल-नवंबर 2006 में 38.5 बिलियन अमरीकी डॉलर से अप्रैल-नवंबर 2007 में 52.8 बिलियन अमरीकी डॉलर की वृद्धि हुई।
  • भारत की प्रारक्षित विदेशी मुद्रा वर्ष 2007 के मार्च के अंत के स्तर से 85.7 बिलियन अमरीकी डॉलर की वृद्धि दर्शाते हुए 18 जनवरी 2008 को 284.9 बिलियन अमरीकी डॉलर थी।

 

अल्पना किल्लावाला
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2007-2008/991

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