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समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ : तीसरी तिमाही समीक्षा 2009 -10

28 जनवरी 2010

समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ : तीसरी तिमाही समीक्षा 2009 -10

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ : तीसरी तिमाही समीक्षा 2009 -10 के दस्तावेज़ जारी किया जो 29 जनवरी 2010 को घोषित की जाने वाली मौद्रिक नीति की तीसरी तिमाही समीक्षा 2009-10 के लिए पृष्ठभूमि को दर्शाता है।

मुख्य-मुख्य बातें
वैश्विक आर्थिक परिस्थितियाँ

  • कई विकसित अर्थव्यवस्थाओं द्वारा सकारात्मक वृद्धि दर्ज कराने के चलते 2009 की तीसरी तिमाही में वैश्विक दृष्टिकोण में उल्लेखनीय सुधार हुआ।

  • अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने जनवरी 2010 की अपनी अद्यतन स्थिति में 2010 के लिए वैश्विक वृद्धि दृष्टिकोण में उल्लेखनीय संशोधन (पूर्व की 3.1 प्रतिशत की प्रत्याशाओं से 3.9 प्रतिशत) किया है। तथापि, विकसित अर्थव्यवस्थाओं में पूर्व स्थिति की प्राप्ति की गति धीमी रहने की संभावना है जबकि उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं (इमइ) और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक गतिविधियाँ घरेलू माँग के कारण तेज़ी से बढ़ने की संभावना है।

  • पूर्व स्थिति की प्राप्ति की गति और मात्रा अभी भी अनिश्चित हैं। सबसे बड़ी चिंता का विषय यह है कि राजकोषीय प्रोत्साहन और मौद्रिक समायोजन हटा देने के बाद पूर्व स्थिति की प्राप्ति की गति धीमी पड़ सकती है।

  • विकसित अर्थव्यवस्थाओं में अत्यधिक बेरोज़गार का स्तर, बढ़ता राजकोषीय घाटा और उत्पादक क्षेत्रों में ऋण मंदी जारी रहने की चिंता है।

  • उभरती अर्थव्यवस्थाएं जो पहले ही पूर्व स्थिति की प्राप्ति के पथ पर है को पूँजी प्रवाहों, सक्षम मुद्रास्फीतिकारी दबावों और ऋण पुनर्जीवन की विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

  • जबकि अल्पावधि विवाद एक्सइट नीतियों का समय और सूचीकरण के इर्दगिर्द केंद्रित है, कई मध्यम अवधि मामले सामने आए हैं। इनमें सरकारों का उधार भार बढ़ना, पूँजी नष्ट होने के कारण उत्पादकता में स्थायी हानि होना, वैश्विक असंतुलन का सामना करना और विनियामक ढाँचे का सुधार करना शामिल हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था
उत्पादन

  • 2009-10 की दूसरी तिमाही में 7.9 प्रतिशत पर सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि ने पहले तिमाही में दर्शाई गई पूर्व स्थिति की प्राप्ति जारी रखी।

  • कृषि और सहबद्ध क्रियाकलापों ने 0.9 प्रतिशत की प्रत्याशित वृद्धि से भी बेहतर वृद्धि दर्ज की। तथापि, यह खरीफ उत्पाद पर दक्षिण-पश्चिमी मानसून घाटे के समग्र प्रतिकूल प्रभाव का केवल एक भाग मात्र दर्शाता है।

  • प्रथम अग्रिम आकलनों के अनुसार खरीफ अनाज़ और तिलहन के उत्पाद में पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 16 प्रतिशत कमी की संभावना है।

  • दूसरी तिमाही में जीडीपी की पूर्व स्थिति की प्राप्ति के पीछे मज़बूत औद्योगिक पूर्व स्थिति की प्राप्ति एक प्रमुख कारण रहा है। कोर मूलभूत सुविधा क्षेत्र ने भी अप्रैल-दिसंबर 2009 के दौरान मज़बूत वृद्धि दर्शाई है।

  • सेवा गतिविधियों (जीडीपी का 64.5 प्रतिशत हिस्सा) ने 2009-10 की दूसरी तिमाही में 9.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है। यह पूर्व स्थिति की प्राप्ति मुख्य रूप से "सामुदायिक, सामाजिक और व्यक्तिगत सेवाओं" में 12.7 प्रतिशत की वृद्धि के कारण थी जो छठवें वेतन आयोग अवार्ड से संबंधित बकाया राशि (अरियर्स) के भुगतान को दर्शाती है। इस बकाया राशि को यदि न गिना जाए तो सेवा क्षेत्र वृद्धि 2009-10 की दूसरी तिमाही के दौरान 7.0 प्रतिशत हो सकती थी।

  • सेवा गतिविधियों के अग्रणी संकेतक यह सुझाव देते हैं कि घरेलू माँग पर निर्भर सेवाओं ने अप्रैल-दिसंबर 2009 के दौरान जोरदार वृद्धि दर्शायी और बाह्य माँग पर निर्भर सेवाओं ने भी हाल के महीनों में कुछ सुधार दर्शाया है।

सकल माँग

  • निवेश माँग में दबी हुई वृद्धि के अलावा 2009-10 की पहली तिमाही में 1.6 प्रतिशत की निजी उपभोग माँग की वृद्धि में तेज़ कमी जीडीपी वृद्धि में तेज़ी से पूर्व स्थिति की प्राप्ति के लिए एक प्रमुख बाधा के रूप में उभर कर आयी है।

  • तथापि, 2009-10 की दूसरी तिमाही में निजी उपभोग माँग में 5.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो पिछली छह तिमाहियों में सबसे अधिक वृद्धि रही है।

  • सकल निर्धारित पूँजी निर्माण में वृद्धि के अंतर्गत निवेश माँग में भी 7.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो पिछले चार तिमाहियों में सब से अधिक वृद्धि रही है। तथापि, दूसरी तिमाहियों में माल में कमी को समायोजित करने से वृद्धि सामान्य बनी रही।

  • सरकारी उपभोग व्यय में वृद्धि जिसे वैश्विक मंदी के चलते आर्थिक वृद्धि पर निजी माँग में कमी के प्रभाव को कम करना था ने पिछले चार तिमाहियों में निजी माँग में वृद्धि को कम करना जारी रखा।

  • 2009-10 की दूसरी तिमाही में सरकारी उपभोग व्यय में 27 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो आंशिक रूप से छठवें वेतन आयोग एवार्ड से संबंधित बकाया राशि के भुगतान के कारण थी।

  • 2009-10 की दूसरी तिमाही तक कंपनी निष्पादन आँकड़े यह दर्शाते हैं कि बिक्री में वृद्धि चरणबद्ध त्रैमासिक वृद्धि सकारात्मक बनी रही। 2009-10 की तीसरी तिमाही में आंशिक आँकड़े बिक्री में उल्लेखनीय (वर्ष-दर-वर्ष) वृद्धि दर्शाते है।

बाह्य अर्थव्यवस्था

  • व्यापारिक निर्यात में लगातार तेरह महिनों से गिरावट की अवधि के बाद नवंबर 2009 में 18.2 प्रतिशत की सकारात्मक वृद्धि दर्शाई और आयातों में गिरावट की गति भी 2.6 प्रतिशत पर उल्लेखनीय रूप से सामान्य बनी रही।

  • 2009-10 की दूसरी तिमाही में भुगतान संतुलन में चालू खाता घाटा पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में उसी स्तर पर बना रहा।

  • 2009-10 की पहली तिमाही में देखे गए पूँजी अंतर्वाह में पुन: प्रप्ति के संकेत थे, जिसका दूसरी तिमाही में उल्लेखनीय सुधार हुआ। पूँजी प्रवाहों के विशिष्ट घटकों पर अद्यतन जानकारी यह सुझाव देते हैं कि 2009-10 की तीसरी तिमाही में भी कुल अंतर्वाह में पुनरूज्जीवन बना रहा।

  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा विशेष आहरण अधिकार के आबंटन और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से रिज़र्व बैंक द्वारा स्वर्ण की खरीद के कारण देश की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि के स्तर और विन्यास में हाल के समय में बदलाव आया है। इसमें मार्च 2009 के अंत में 252 बिलियन अमरीकी डालर की तुलना में 15 जनवरी 2010 को 285.2 बिलियन अमरीकी डॉलर की वृद्धि हुई।

  • उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं के पूँजी प्रवाहों में प्रत्याशित वृद्धि के संदर्भ में बड़े पूँजी अंतर्वाहों के समष्टि आर्थिक फैलाव का आकलन और निगरानी एक बड़ी चुनौती होगी।

मौद्रिक स्थितियाँ

  • प्रणाली में विद्यमान समग्र मौद्रिक और चलनिधि परिस्थितियाँ रिज़र्व बैंक के समायोजित मौद्रिक नीति रूझान को दर्शाती हैं जो अब तक समग्र ब्याज दर ढाँचे पर दबाव के बिना सरकार के बड़े उधार कार्यक्रम को पूरा करने को सुनिश्चित करते हुए वृद्धि में ज़ोरदार सुधार की प्राप्ति को सहायता देने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए तैयार रहा है।

  • व्यापक मुद्रा (एम3) वृद्धि ने 1009-10 की मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा में प्रस्तुत 17.0 प्रतिशत की प्रत्याशित सांकेतिक मुद्रा वृद्धि की तुलना में हाल ही के महीनों में कुछ सीमित वृद्धि दर्शाई है जो 15 जनवरी 2010 को 16.5 प्रतिशत है।

  • मुद्रा वृद्धि के घटक के संबंध में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की 16.8 प्रतिशत की जमाराशि वृद्धि, 2009-10 की मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा में प्रत्याशित सांकेतिक 18.0 प्रतिशत से कम रही। जमाराशियों के घटकों में उल्लेखनीय बदलाव दिखाई दिया - मीयादी जमाराशियों की वृद्धि में कमी आयी जो आंशिक रूप से वर्ष के दौरान मीयादी जमाराशि ब्याज दरों में कमी को दर्शाता है।

  • मुद्रा वृद्धि के खातों की ओर चूँकि बैंकिंग प्रणाली निजी क्षेत्र को दिए जानेवाले ऋण की वृद्धि में कमी आयी, सरकार को दिया गया ऋण मुद्रा वृद्धि में मुख्य निर्धारक बना रहा। तथापि, 2009-10 की तीसरी तिमाही में सरकार को वाणिज्य बैंकों के ऋण में वृद्धि सीमित रही।

  • खाद्येतर ऋण वृद्धि जिसमें अक्टूबर 2008 की चरम स्थिति के बाद बारह महीनों के दौरान कमी आयी ने नवंबर 2009 से इस प्रवृत्ति में परिवर्तन दर्शाया है। अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (एससीबी) की खाद्येतर ऋण वृद्धि 15 जनवरी 2010 को 14.4 प्रतिशत है जो पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में देखी गई 21.9 प्रतिशत और 2009-10 की मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा में प्रस्तुत 18.0 प्रतिशत की सांकेतिक वृद्धि दोनों से कम बनी रही।

  • गैर-बैंकिंग खातों से उपलब्ध संसाधनों में अप्रैल-जनवरी 2009-10 के दौरान लगभग 50,000 करोड़ रुपए की उल्लेखनीय वृद्धि हुई। यह वृद्धि मुख्य रूप से आइपीओ, निजी नियोजनों, कंपनियों द्वारा वाणिज्यिक पत्र के निवल निर्गमों और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के अंतर्गत अंतर्वाह से हुई।

  • निजी क्षेत्र और राजकोषीय रूझान से पूँजी प्रवाहों के तरीकों, ऋण के लिए माँग में पुर्नस्थिति की गति से आने वाले समय में मौद्रिक और चलनिधि परिस्थितियों को प्रभावित करेगी।

वित्तीय बाज़ार

  • भारत में वित्तीय बाज़ार सुदृढ़ बने रहे और अर्थव्यवस्था में मज़बूत सुधारों की संभावनाओं, उच्चतर पूँजी प्रवाहों का प्रभाव और रिज़र्व बैंक के समायोजित मौद्रिक नीति रूझान से आगे जाना दर्शाया है।

  • मुद्रा बाज़ार दरें चलनिधि समायोजन सुविधा कॉरिडोर के भीतर सुदृढ़ रूप से बनी रहीं और सीबीएलओ बाज़ार में, जो मुद्रा बाज़ार का लगभग 80 प्रतिशत है में दरें माँग मुद्रा दरों से नीचे बनी रहीं।

  • केंद्र सरकार का निवल बाज़ार उधार कार्यक्रम अब तक 98 प्रतिशत से अधिक पूरा हो गया है।

  • द्वितीयक बाज़ार में, सरकारी प्रतिभूतियों पर प्रतिलाभ में हाल ही के महीनों में कुछ सख्ती आयी है जो सरकारी प्रतिभूतियों की बड़ी आपूर्ति और उभरती मुद्रास्फीतिकारी दबावों को दर्शाते हैं।

  • ऋण बाज़ार में, दोनों जमा और उधार दरे। सामान्य रहीं जो रिज़र्व बैंक के नीति दर परिवर्तनों में धीमे अंतरणों को दर्शाते हैं।

  • शेयर बाज़ार, जो उतार-चढ़ाव भरे रहे, में पिछले महीनों के लाभ बने रहे। उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में भारत सबसे मज़बूत कार्यनिष्पादक बना रहा।

  • प्राथमिक बाज़ार में, आइपीओ और निजी नियोजनों के अंतर्गत कार्यकलापों में वृद्धि हुई। पारस्परिक निधियों द्वारा निवल संग्रहणन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

  • पूँजी अंतर्वाहों की वापसी से और विदेशी मुद्रा बाज़ार में इसके अधिशेषों की स्थिति से प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपए कीं मूल्य वृद्धि हुई।

मुद्रास्फीति स्थिति

  • तीसरी तिमाही के दौरान प्रमुख आपूर्ति कारकों से भी अधिक मुद्रास्फीति प्रमुख चिंता का विषय बनी रही।

  • वर्ष-दर-वर्ष आधार पर दिसंबर 2009 में थोक मूल्य सूचकांक हेडलाइन मुद्रास्फीति 7.3 प्रतिशत थी जबकि खाद्य वस्तुओं को छोड़कर थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति 2.1 प्रतिशत थी जो अब तक मुद्रस्फीति के एक स्थान पर केंद्रित होने का स्वरूप दर्शाती है।

  • थोक मूल्य सूचकांक बास्केट में 27 प्रतिशत के संयुक्त भार के साथ खाद्य वस्तुओं (अर्थात् प्राथमिक और निर्मित) के मूल्यों में 21.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

  • दिसंबर 2009 में सामान्य मुद्रास्फीति के उभरने के संकेत है।

  • प्राथमिक वस्तुओं पर साप्ताहिक थोक मूल्य सूचकांक आँकड़े यह दर्शाते हैं कि प्राथमिक खाद्य वस्तुओं के मूल्यों में 16 जनवरी 2010 को समाप्त सप्ताह के लिए 17.4 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) से वृद्धि हुई।

  • कुछ खाद्य मूल्यों से उभरे हेडलाइन मुद्रास्फीति पर केंद्रित दबाव यह दर्शाते हैं कि वेतन संशोधनों की प्रत्याशाओं के माध्यम से इसका असर अन्य खाद्य वस्तुओं पर भी पड़ने का जोखिम है और यह सामान्य मुद्रास्फीति में परिवर्तित हो जा जायेगा।

  • हालांकि ऐसी स्थिति में मुद्रास्फीति पर नियंत्रण लगाना बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाता है, फिर भी आपूर्ति संबंधी बाधाओं को दूर करना भी किसी भी गैर-स्फीतिकारक नीतिगत उपाय को प्रभावी बनाने के लिए उतना ही जरूरी है।

वृद्धि और मुद्रास्फीति दृष्टिकोण

  • खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति की प्रमुखता को ध्यान में रखते हुए, मौद्रिक नीति संबंधी उपायों के माध्यम से मुद्रास्फीति में सामान्य वृद्धि की स्थिति से बचने और स्थायी उच्च वृद्धि प्राप्त करने के उद्देश्यों के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यकता है। यह रिज़र्व बैंक के लिए सबसे संवेदनशील चुनौती के रूप में उभरा है।

  • निकट भविष्य में वृद्धि की गति बढ़ने की संभावना के कई कारण हैं। इनमें निजी माँग में बढ़ोतरी के संकेत, निवेश और बचत दोनों, मज़बूत औद्योगिक बढ़ोतरी के जारी रहने, रबी फसल के बेहतर होने की संभावना, में निर्यात में वृद्धि की दर सकारात्मक रहने, पूँजी बाज़ार की स्थितियाँ अनुकूल रहने; तथा रिज़र्व बैंक के कारोबारी प्रत्याशा सर्वेक्षण तथा अन्य एजेंसियों के इसी प्रकार के सर्वेक्षण के अनुसार कारोबारी माहौल में सामान्य रूप से सुधार होना शामिल है।

  • दिसंबर 2009 में किए गए भारतीय रिज़र्व बैंक के व्यावसायिक पूर्वानुमान सर्वेक्षण के अनुसार, 2009-10 में वृद्धि के लिए दृष्टिकोण में 6.0 प्रतिशत के स्थान पर 6.9 प्रतिशत की संशोधित वृद्धि होने का अनुमान है।

  • निकट भविष्य में वृद्धि के कम होने के कई कारण हैं जैसे कि अगली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में खरीफ की फसल पर मानसून का प्रतिकूल प्रभाव, सेवा क्षेत्र की गतिविधियों में कमज़ोरी जो कि बाह्य माँग पर निर्भर करती हैं, हालांकि हाल के महीनों में इसमें सुधार के संकेत दिखलाई पड़े हैं; तथा ब्याज दरों पर संभावित दबाव जो कि निजी क्षेत्र से ऋण की माँग में फिर से वृद्धि होने और मुद्रास्फीति के कारण हो सकते हैं।

  • मुद्रास्फीति के लिए दृष्टिकोण आने वाले समय में निरंतर आपूर्ति दबावों में अप साइड जोखिमों, वृद्धि में मज़बूत पुर्नस्थिति के साथ मूल्य निर्धारण शक्ति के संभावित लौटने, उपभोक्ता और कारोबारी विश्वास के सुधार के साथ निजी माँग में और अधिक बढोतरी और उभरती हुई बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में सुधार के चलते वैश्विक पण्य मूल्यों में संभावित बढ़ोतरी और उच्च उपभोक्ता मूल्य सूचकांक और खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति का सामान्यकृत मुद्रास्फीति के कारण सामान्य मूल्य वृद्धि।

  • सुगम ॉााटतों की संभावना जो मुद्रास्फीति के दबावों को कुछ कम कर सकती हैं, में बाज़ार में कतिपय नयी फासलों का आना - खास करके सब्जियों, अनाज के उच्च स्तर के बफर स्टॉक का अतिरिक्त स्टॉक को बाज़ार में लाना और कुछ समय तक नकारात्मक उत्पाद अंतर का बना रहना जो बदले में माँग दबावों को नियत्रण में रखने में सहायक हो सकता है।

  • वृद्धि और मुद्रास्फीति का भारत का संमिश्र स्वरूप जी-20 के अन्य देशों के ऐसे स्वरूप की तुलना में विषम है। वैश्विक सुधार के प्रति प्रतिक्रिया में अंतर्राष्ट्रीय पर मूल्यों में फिरसे आए उछाल के प्रभाव के अलावा पूँजी अंतर्वाहों में वृद्धि की संभावना और सम्बद्ध घरेलू चलनिधि स्थितियों से मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाओं पर भी प्रभाव पड़ेगा।

  • भारत में ज़ोरदार सुधार के साथ खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति की जोखिम का सामान्यकृत मुद्रास्फीति में परिवर्तीत होने की जोखिम को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।

अजीत प्रसाद
प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2009-2010/1045

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