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सार्थक वित्तीय समावेशन गरीबों के ऋण अंतर को पूरा करने की वाणिज्यिक बैंकों की सामर्थ्‍य पर निर्भर है: केरल में भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसंधान परियोजना अध्‍ययन का निष्‍कर्ष

17 मई 2013

सार्थक वित्तीय समावेशन गरीबों के ऋण अंतर को
पूरा करने की वाणिज्यिक बैंकों की सामर्थ्‍य पर निर्भर है:
केरल में भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसंधान परियोजना अध्‍ययन का निष्‍कर्ष

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर ''गरीब किस प्रकार अपने वित्त का प्रबंध करते हैं : एर्नाकुलम जिला, केरल में गरीब परिवारों के संविभाग विकल्‍पों का एक अध्‍ययन'' शीर्षक एक अनुसंधान परियोजना अध्‍ययन जारी किया। अनुसंधान परियोजना अध्‍ययन सामाजिक आर्थिक पर्यावरण अध्‍ययन (सीएसईएस) केंद्र, कोच्चि और भारतीय रिज़र्व बैंक से संबद्ध अनुसंधानकर्ताओं का समन्वित प्रयास है।

इस अध्‍ययन के प्रयोजन के लिए केरल के एर्नाकुलम जिले में 107 गरीब परिवारों के नमूना आकार पर एक सर्वेक्षण आयोजित किया गया था। इस अध्‍ययन में गरीब परिवारों के वित्तीय जीवन का पता करने में एक मामला अध्‍ययन दृष्टिकोण भी शामिल था।

107 परिवारों से संबंधित भंडार और प्रवाह चर-वस्‍तु दोनों पर सर्वेक्षण आधारित दृष्टिकोण के माध्‍यम से जानकारी संकलित की गई थी, जबकि नकदी प्रवाहों पर जानकारी के संकलन के लिए वित्तीय डायरी पद्धति लागू की गई थी और भंडार चर-वस्‍तुओं के जानकारी के संकलन के लिए एक प्रश्‍नावली लागू की गई थी। इस प्रकार परियोजना अध्‍ययन गरीब परिवारों द्वारा अनुपालित नकदी प्रबंध रणनीतियों को दर्शाते हुए मामला अध्‍ययनों का संकलन प्रस्‍तुत करता है।

इस परियोजना अध्‍ययन के मुख्‍य निष्‍कर्ष में शामिल हैं:

(i) इस नमूने में शामिल गरीब परिावारों द्वारा सामना की जा रही चुनौतियां न केवल अपर्याप्‍त आय हैं बल्कि अनियमित और असंभावित आय प्रवाह भी हैं। गरीबों को आय अंतर्वाहों तथा उपभोग बहिर्वाहों में बारंबार अंतरों को पूरा करने के लिए ऋण की ज़रूरत होती है।

(ii) गरीब परिवारों के बीच छोटी राशि के ऋण और उधार का कभी समाप्‍त नहीं होने वाला एक चक्र पाया गया है। जब कमी रोज़मर्रा के खर्चों को पूरा करने के लिए है, परिवार अधिकांशत: दोस्‍तों और पड़ोसियों से हाथों-हाथ लिए गए कर्ज पर निर्भर करते हैं। तथापि, ऐसे प्रयोजनों जैसेकि गृह निर्माण, भूमि की खरीद आदि के लिए भारी राशि प्राप्‍त करने की यदि ज़रूरत होती है जो गरीब परिवार औपचारिक संस्‍थाओं अधिकांशत: सहकारी समितियों की सहायता भी लेते हैं। अध्‍ययन का यह निष्‍कर्ष है कि वाणिज्यिक बैंकों की तुलना में सहकारी समितियां गरीबों की नकदी ज़रूरतों को पूरा करने में अधिक लचीली रही हैं।

अध्‍ययन इस निष्‍यकर्ष से समाप्‍त होता है कि वाणिज्यिक बैंकों द्वारा गरीबों का सार्थक वित्तीय समावेशन गरीब परिवारों के ऋण अंतरों को पूरा करने में उनकी सामर्थ्‍य पर निर्भर है।

रिज़र्व बैंक ने वास्‍तविक अर्थव्‍यवस्‍था, मौद्रिक क्षेत्र, वित्तीय अर्थशास्‍त्र आदि जैसे क्षेत्रों में आर्थिक अनुसंधान की सहायता के लिए रिज़र्व बैंक की योजना के अंतर्गत बाहरी विशेषज्ञों की सहायता से शुरू किए गए अनुसंधान के प्रतिफल के प्रसारण की दृष्टि से ''अनुसंधान परियोना अध्‍ययन / रिपोर्ट श्रृंखलाएं'' शुरू की थी। यह इसकी वेबसाइट पर '‘प्रकाशन>सामयिक पेपर>>परियोजना अनुसंधान अध्‍ययन' के अंतर्गत उपलब्‍ध है।

अनुसंधान परियोजना अध्‍ययन/रिपोर्टें नीति उन्‍मुख अनुसंधान को प्रोत्‍साहित करने और व्‍यापक रूप में अनुसंधानकर्ताओं के लिए आंकड़े और रिपोर्टें उपलबध कराने के लिए भी रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए दूसरे प्रयास हैं। इस योजना के अंतर्गत निधि की सहायता से अनुसंधान परियोजनाओं को बाहरी अनुसंधान संस्‍थाओं/विद्वानों को सौंपा गया है जिनमें आंतरिक अनुसंधानकर्ता भी समन्विन अनुसंधान के लिए सहबद्ध हैं। इन अनुसंधान परियोजनाओं के पूरा होने पर इन अध्‍ययनों को वर्तमान रूचि के विषयों पर अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं के बीच रचनात्‍मक चर्चा शुरू करने की दृष्टि से व्‍यापक परिचालन के लिए इन्‍हें रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर जारी किया जाता है।

अनुसंधान परियोजना अध्‍ययन/रिपोर्ट सहित रिज़र्व बैंक के सभी अनुसंधान प्रकाशनों में व्‍यक्‍त विचार आवश्‍यक रूप से रिज़र्व बैंक के विचारों को नहीं दर्शाते हैं और इस प्रकार भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों के प्रतिनिधित्‍व के रूप में इनकी रिपोर्ट नहीं की जानी चाहिए। इन अनुसंधान परियोजना रिपोर्टों / अध्‍ययनों का स्‍वत्‍वाधिकार भारतीय रिज़र्व बैंक के पास है।

संगीता दास
निदेशक

प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/1914

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