आइसीआइसीआइ लिमिटेड का आइसीआइसीआइ - आरबीआई - Reserve Bank of India
आइसीआइसीआइ लिमिटेड का आइसीआइसीआइ
आइसीआइसीआइ लिमिटेड काआइसीआइसीआइ
बैंक लिमिटेड के साथ विलय
26 अप्रैल 2002
आइसीआइसीआइ लिमिटेड के आइसीआइसीआइ बैंक लिमिटेड के साथ विलय के संबंध में विनियामक अनुमोदन के लिए आवेदनपत्र 25 अक्तूबर 2001 को भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत किया गया था।
संवैधानिक, विनियामक तथा अन्य विवेकशील अपेक्षाओं को तथा बैंकिंग विनियम अधिनियम, 1949 के विभिन्न प्रावधानों की आइसीआइसीआइ बैंक लिमिटेड द्वारा अनुपालन की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए रिज़र्व बैंक ने अनुरोध की जांच की।
आपको याद होगा कि विलय की योजना को क्रमश: 7 मार्च 2002 को गुजरात उच्च न्यायालय तथा 11 अप्रैल 2002 को मुंबई उच्च न्यायालय की मंजूरियां पहले ही मिल चुकी हैं।
अन्य विनियामक एजेंसियों से यथा अपेक्षा अनुमोदन प्राप्त कर लेने के बाद रिज़र्व बैंक ने आज निम्नलिखित शर्तों पर विलय के लिए अनुमोदन दे दिया है।
(i) आरक्षित निधियों की अपेक्षा का अनुपालनआइसीआइसीआइ बैंक लिमिटेड, बैंक की शुद्ध मांग और मीयादी देयताओं पर बैंकों पर यथा लागू नकदी प्रारक्षित निधियों (रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 के अंतर्गत) तथा सांविधिक चलनिधि प्रारक्षित अपेक्षाओं (बैंकिंग विनियम अधिनियम, 1949 की धारा 24 के अंतर्गत), जिनमें विलय की तारीख से आइसीआइसीआइ लिमिटेड से संबंधित अपेक्षाएं शामिल हैं, का अनुपालन करेगा। परिणामस्वरूप, आइसीआइसीआइ बैंक लिमिटेड को तदनुसार गणना की गयी सीआरआर/एसएलआर और मौजूदा अनुदेशों के अंतर्गत यथा अपेक्षित शुद्ध मांग और मीयादी देयताओं की स्थिति के संदर्भ में अपेक्षाओं का पालन अनुपालन करना होगा।
(ii) अन्य विवेकशील मानदंड
आइसीआइसीआइ बैंक लिमिटेड रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी पूंजी पर्याप्तता, आस्ति वर्गीकरण, आय निर्धारण तथा प्रावधानीकरण के संबंध में बैंकों पर यथा लागू समस्त विवेकशील अपेक्षाओं, दिशानिर्देशों और अन्य अनुदेशों का, विलय के बाद बैंक की आस्तियों और देयताओं के संपूर्ण पोर्टफोलियो के संबंध में अनुपालन करेगा।
(iii) अदला-बदली (स्वैप) से संबंधित स्थिति
चूंकि प्रस्तावित विलय एक बैंकिंग कंपनी और एक वित्तीय संस्था के बीच में है, स्वैप अनुपात सहित शेयर होल्डिंग से जुड़े सभी मामले किये गये प्रावधान के अनुसार कंपनी अधिनियम, 1956 के प्रावधानों द्वारा संचालित होंगे। किसी विवाद की स्थिति में कंपनी अधिनियम में विधिक प्रावधान और न्यायालय के निर्णय लागू होंगे।
(iv) निदेशकों की नियुक्ति
बैंक को बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 20 का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए, जो कि ऐसी कंपनियों को ऋणों की मंजूरी के संबंध में है, जिनके निदेशक बैंक के भी निदेशक हैं। आइसीआइसीआइ लिमिटेड द्वारा कॉमन निदेशकों वाली कंपनियों को मंजूर ऋणों के संबंध में हालांकि आइसीआइसीआइ बैंक लिमिटेड के लिए यह कानूनी रूप से आवश्यक नहीं होगा कि विलय के बाद इस तरह की कंपनियों को पहले से ही मंजूर ऋणों को वापिस मंगाये, विलय के बाद इस तरह की कंपनियों को कोई नये ऋण अथवा अग्रिम मंजूर करने की बैंक को अनुमति नहीं होगी। इस निषेध में किसी ऋण का नवीकरण अथवा मौजूदा ऋण सुविधाओं को बढ़ाना शामिल है। ऊपर बताये गये अधिनियम की धारा 20 में दिये गये प्रतिबंध में व्यावसायिक निदेशकों तथा अन्य निदेशकों में कोई फर्क नहीं किया गया है और यह सभी निदेशकों पर लागू होगा।
(v) प्राथमिकता क्षेत्रों को ऋण
इस बात पर विचार करते हुए कि आइसीआइसीआइ लिमिटेड के अग्रिम प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों को ऋणों के संबंध में बैंकों पर यथा लागू अपेक्षाओं के अधीन नहीं आते थे, विलय के बाद बैंक 40.00 प्रतिशत की अपेक्षा से ऊपर 10.00 प्रतिशत अधिक अर्थात् बैंक के कुल अग्रिमों के शेष भाग पर शुद्ध बैंक ऋण का कुल 50.00 प्रतिशत बनाये रखेंगे। प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के अग्रिमों के रूप में यह अतिरिक्त 10.00 प्रतिशत तब तक लागू रहेगा जब तक कुल प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र अग्रिम, बैंक के कुल शुद्ध बैंक ऋण के 40.00 प्रतिशत के स्तर तक नहीं पहुंच जाते। प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों को ऋणों के अंतर्गत उपलक्ष्यों पर तथा प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों को अग्रिमों के रूप में गणना के लिए निवेशों/निधियों के विभिन्न प्रकारों की पात्रता के संबंध में रिज़र्व बैंक के मौजूदा अनुदेश बैंक पर लागू होंगे।
(vi) 5.00 प्रतिशत की ईक्विटी एक्सपोज़र की अधिकतम सीमा
विलय की तारीख के अनुसार परियोजना वित्त के माध्यम से जुटाये गये आइसीआइसीआइ लिमिटेड के निवेश ईक्विटी तथा ईक्विटी से जुड़े विलेखों के एक्सपोज़र के लिए अग्रिमों की 5.00 प्रतिशत की अधिकतम सीमा से 5 वर्ष की अवधि के लिए बाहर रखे जायेंगे क्योंकि इन निवेशों को परियोजना की व्यावहार्यता अथवा विस्तार पर कोई प्रतिकूल प्रभाव डालने से बचाये रखने की ज़रूरत बनी रहेगी। अलबत्ता, बैंक को चाहिए कि इन अभिलेखों को मार्केट को मार्क करे और बैंक के निवेशों के लिए निर्धारित विधि से उनके मूल्य में किसी भी हानि के लिए प्रावधान करे। ईक्विटी निवेश की उपर्युक्त परियोजना वित्त श्रेणी में किसी भी वृद्धिशील बढ़ोतरी को बैंक के लिए ईक्विटी एक्सपोज़र के लिए 5.00 प्रतिशत की अधिकतम सीमा के भीतर ही गिना जायेगा।
(vii) दूसरी कंपनियों में निवेशबैंक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी अन्य कंपनी, जिसमें विलय से पूर्व आइसीआइसीआइ लिमिटेड के निवेश थे, में उसके निवेश बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 19(2) के अनुपालन में हैं। इसके अंतर्गत संबंधित कंपनी की चुकता शेयर पूंजी के 30 प्रतिशत से अधिक की ईक्विटी अथवा उसकी स्वयं की चुकता शेयर पूंजी तथा प्रारक्षित निधियों के 30 प्रतिशत की धारिता, जो भी कम हो, का प्रतिबंध है।
(viii) सहायक कंपनियां(क) विलय के बाद आइसीआइसीआइ लिमिटेड की सहायक कंपनियों को टेकओवर करते समय बैंक यह सुनिश्चित करे कि सहायक कंपनी की गतिविधियां बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 6 तथा उक्त अधिनियम की धारा 19(1) के अंतर्गत बैंक द्वारा की जानेवाली अनुमत गतिविधियों की अपेक्षाओं को पूरा करती हैं।
(ख) वर्तमान में आइसीआइसीआइ लिमिटेड के स्वामित्व की कुछेक सहायक कंपनियों का आइसीआइसीआइ बैंक लिमिटेड द्वारा टेकओवर अन्य विनियामक एजेंसियों उदाहरण के लिए आइआरडीए, सेबी, राष्ट्रीय आवास बैंक आदि के अनुमोदन, यदि आवश्यक हो, के अधीन होगा।
(ix) अधिमान शेयर पूंजीबैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 12 में यह अपेक्षा की गयी है कि बैंकिंग कंपनी की पूंजी के अंतर्गत केवल साधारण शेयर (1944 से पूर्व जारी अधिमान्य शेयरों को छोड़कर) होंगे। अत्एव, विलय के बाद बैंक के पूंजी ढ़ांचे में 350 करोड़ रुपये की अधिमान्य शेयर पूंजी को शामिल करने (विलय से पूर्व आइसीआइसीआइ लिमिटेड द्वारा जारी एक करोड़ रुपये प्रत्येक के 350 शेयर) बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के उपर्युक्त प्रावधान के लागू होने से छूट प्राप्ति की शर्त पर होंगे जो केंद्रीय सरकार द्वारा उक्त अधिनियम धारा 53 के अनुसार पांच वर्ष की अवधि के लिए मंजूर की गयी है।
(x) आइसीआइसीआइ लिमिटेड की आस्तियों का मूल्यांकन तथा
अधिप्रमाणन
आइसीआइसीआइ बैंक लिमिटेड को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि खातों के विलय से पूर्व आइसीआइसीआइ लिमिटेड की आस्तियों का उचित मूल्यांकन उसकी संतुष्टि के अनुसार सांविधिक लेखा-परीक्षकों द्वारा किया जाता है और आइसीआइसीआइ लिमिटेड की बहियों में अपेक्षित प्रावधानों की ज़रूरतों को विधिवत् पूरा किया जाता है। सांविधिक लेखा-परीक्षकों से इस संबंध में प्रमाणपत्र प्राप्त कर लिया जाना चाहिए और रिकाड़ के लिए रख लिये जाने चाहिए।
(xi) विलय की तारीख
चूंकि विलय की योजना उच्च न्यायालयों द्वारा अनुमोदित की गयी थी, रिज़र्व बैंक को तय तारीख अर्थात् 30 मार्च 2002 अथवा उच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसार किसी अन्य तारीख को विलय होने पर कोई आपत्ति नहीं है।
अल्पना किल्लावाला
महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2001-2002/1190