मौद्रिक नीति की तिमाही के मध्य में समीक्षा : सितंबर 2012 - आरबीआई - Reserve Bank of India
मौद्रिक नीति की तिमाही के मध्य में समीक्षा : सितंबर 2012
17 सितंबर 2012 मौद्रिक नीति की तिमाही के मध्य में समीक्षा : सितंबर 2012 मौद्रिक और चलनिधि उपाय वर्तमान समष्टि आर्थिक स्थिति के आकलन के आधार पर यह निर्णय लिया गया है कि :
परिचय 2. जुलाई में रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति की पहली तिमाही समीक्षा के बाद कई उल्लेखनीय गतिविधियां हुई हैं। वैश्विक स्तर पर जबकि जोखिम बढ़े हैं, यूरोपीयन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) और यूएस फेडरल दोनों ने वित्तीय बाज़ारों को शांत रखने तथा आर्थिक गतिविधि को और प्रोत्साहन उपलब्ध कराने के अभिप्राय से चलनिधि उपायों के साथ कार्रवाई की है। जबकि इन उपायों ने निश्चित रूप से अल्पावधि वृद्धि और वित्तीय जोखिमों को कम किया है, वे वैश्विक आस्ति मूल्यों और खासकर पण्य वस्तु कीमतों पर भी दबाव डालेंगे। घरेलू स्तर पर एक नकारात्मक निवेश वातावरण के बीच वृद्धि कमज़ोर बनी हुई है, तथापि, सरकार द्वारा शुरू किए गए हाल के सुधारात्मक उपायों ने भावनाओं में परिवर्तन लाना शुरू कर दिया है। सरकार ने ईंधन आर्थिक सहायता में कमी तथा सार्वजनिक उद्यमों में स्टेक की बिक्री के द्वारा राजकोषीय समेकन के प्रति लम्बे समय से प्रत्याशित उपाय शुरू किए हैं। इसके अलावा विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) बढ़ाने के लिए किए गए उपाय अधिकतम पूंजी अंतर्वाह और दीर्घावधि में उच्चतर उत्पादकता खासकर, खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में दोनों योगदान करेंगे। तथापि, महत्वपूर्ण रूप से इस क्षण थोक तथा खुदरा स्तर दोनों पर मुद्रास्फीतिकारी दबाव अभी भी मज़बूत हैं। 3. अप्रैल में रिज़र्व बैंक ने निवेश और वृद्धि की गिरावट का समाधान करने के लिए आपूर्ति पक्ष प्रयासों के साथ-साथ मुद्रास्फीति प्रबंध के लिए राजकोषीय नीति सहायता की प्रत्याशाओं पर 50 आधार अंकों की प्रारंभिक प्रभाव वाली नीति दर में कमी को कार्यान्वित किया है। चूंकि ये प्रत्याशाएं कार्यान्वित नहीं हुई तथा मुद्रास्फीति 7.5 प्रतिशत के ऊपर मजबूती से बनी रही, इसलिए रिज़र्व बैंक ने जून की अपनी तिमाही मध्य की समीक्षा (एमक्यूआर) और जुलाई की पहली तिमाही समीक्षा (एफक्यूआर) में अपनी नीति को आसानी को विराम लगाने का निर्णय लिया। चूँकि मुद्रास्फीतिकारी प्रवृत्तियां बनी हुई हैं, मौद्रिक नीति का प्रारंभिक ध्यान मुद्रास्फीति को रोक रखना तथा मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाओं को व्यवस्थित करने पर है। इस संदर्भ में सरकार के हाल की कार्रवाईयों ने उपभोग (आर्थिक सहायता) से अलग हटकर तथा निवेश के प्रति (एफडीआई के माध्यम को शामिल करते हुए) व्यय में एक बदलाव शुरू करने के द्वारा अधिक अनुकूल वृद्धि-मुद्रास्फीति गतिशीलता के लिए मार्ग सुगम किया है। हालांकि कई चुनौतियां बनी हुई हैं जिनमें से एक निरंतर जारी मुद्रास्फीति है। लेकिन वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए नीति कार्रवाई कार्यान्वित होती है तो मौद्रिक नीति इन कार्रवाईयों के सकारात्मक प्रभाव पर मुद्रास्फीति प्रबंध पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए पुन: बल प्रदान करेगी। केवल इसी से यह सुनिश्चित होगा कि अर्थव्यवस्था हाल की और प्रत्याशित राजकोषीय तथा आपूर्ति पक्ष नीति उपायों से अधिकतम लाभ प्राप्त करेगी। वैश्विक अर्थव्यवस्था 4. वर्ष 2012 की तीसरी तिमाही में वैश्विक गतिविधि कमज़ोर हो गई है। व्यापारिक माल कारोबार प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में निरपेक्ष सुधारों के साथ अधिक मंद हुआ है। वैश्विक क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) विनिर्माण में कमी तथा सेवाओं में केवल मामूली वृद्धि की ओर इशारा करते हैं। यूरो क्षेत्र में कमज़ोर होती आर्थिक गतिविधि के बीच व्याप्त सरकारी ऋण दबाव वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रति उल्लेखनीय प्रारंभिक जोखिम उत्पन्न करते हैं। इन चिंताओं ने ईसीबी द्वारा सरकारी बाण्ड क्रय के रूप में सीधे मौद्रिक लेनदेन (ओएमटी) के कार्यक्रम की घोषणा के लिए प्रेरित किया है। यूएस फेडरल ने श्रम बाज़ार स्थितियों में आवश्यक सुधार होने तक अतिरिक्त एजेंसी बंधक-समर्थित प्रतिभूतियों के क्रय की घोषणा की है तथा वर्ष 2015 के मध्य तक अतिरिक्त नीति आर्थिक सहायता प्रदान किया है। 5. उभरती हुई और विकासशील प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं (ईडीई) में वृद्धि हुई। पिछले तीन वर्षों में चीन के वर्ष 2012 की दूसरी तिमाही में वृद्धि इसके न्यूनतम दर को दर्शाते हुए नरम हो रही है। मंद वैश्विक मांग ने इन अर्थव्यवस्थाओं में औद्योगिक गतिविधि और निर्यात को प्रतिकूल ढंग से प्रभावित किया है। इसके अलावा, विश्व के प्रमुख अन्न उत्पादक क्षेत्रों में सूखे की स्थिति परिमाणात्मक कमी के नए उपचार की दृष्टि से अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों को और मज़बूत होने की संभावना समग्र वैश्विक समष्टि आर्थिक संभावनाओं के प्रति सर्वव्यापी जोखिम उत्पन्न करती है। घरेलू अर्थवयवस्था वृद्धि 6. पूर्ववर्ती तिमाही के संबंध में वर्ष 2012-13 की पहली तिमाही में आर्थिक गतिविधि कुछ तेज़ हुई है लेकिन पहली तिमाही में मूल्यवर्धित मंद गति अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों और खासकर उद्योग में प्रत्यक्ष दिखाई देती है। अग्रणी संकेतक दूसरी तिमाही में भी कम गतिविधियों की ओर इशारा करते हैं। औद्योगिक उत्पादन जुलाई में मात्र 0.1 प्रतिशत तक बढ़ा है। अगस्त में विनिर्माण पीएमआई ऊर्जा की कमी और गिरते हुए निर्यात मांग के कारण उत्पादन बाधाओं के परिणामस्वरूप अब तक वर्ष 2012 के दौरान अपने न्यूनतम स्तर तक गिरा है। तथापि सेवा पीएमआई ने नई मांग और रोज़गार में वृद्धि पर अगस्त में कुछ तेज़ी दिखाई है। कम वर्षा में क्रमिक कमी के साथ यद्यपि अभी भी सामान्य से कम है, खरीफ की बुआई में सुधार हुआ है। पुन: आश्वस्त करते हुए वर्षा ने जलाशयों में भंडारण को बढ़ाया है जो कृषि संभावनाओं के बारे में चिंताओं को कुछ हद तक कम करते हुए रबी की फसल के लिए संभावनाओं को उन्नत बनाएगी। मुद्रास्फीति 7. हेडलाईन डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति (वर्ष-दर-वर्ष) अब तक वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान लगभग 7.5 प्रतिशत पर स्थिर बनी हुई है। अलग-अलग स्तरों पर प्राथमिक खाद्य वस्तुओं के भीतर जुलाई-अगस्त में सब्जियों की कीमतों में कमी बड़े पैमाने पर अनाज़ों और दालों की कीमतों में उछाल के द्वारा शुरू हुई थी। प्रोटिन समृद्ध मदों के संबंध में मांग-आपूर्ति असंतुलन बने हुए हैं। अगस्त में ईंधन मूल्य मुद्रास्फीति में तेज़ी आयी जो व्यापक रूप से ऊर्जा कीमतों में बढ़े हुए संशोधन को दर्शाती है। स्वागत के रूप में जैसाकि डीज़ल की कीमतों में हाल की वृद्धि/एलपीजी आर्थिक सहायता को औचित्यपूर्ण बनाने के लिए किया गया है, लागू कीमतों के प्रति पासथ्रू अधूरा बना हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतें संवेदनशील हैं जो वैश्विक चलनिधि के द्वारा पुन: संचालित हो रही है। मुख्य मुद्रास्फीति दबाव गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति अप्रैल में 5.1 प्रतिशत से बढ़कर अगस्त में 5.6 प्रतिशत होने के साथ मज़बूत बने हुए हैं तथा गतिशीलता संकेतक अभी भी बढ़े हुए हैं। यद्यपि, मांग दबाव नरम हुए हैं, आपूर्ति बाध्यताएं और रुपया अवमूल्यन कीमतों को स्थिर रखते हुए उन पर दबाव डाल रहे हैं। 8. नए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के अनुसार मुद्रास्फीति (वर्ष-दर-वर्ष) खाद्य मदों की बढ़ती हुई कीमतों द्वारा प्रभावित होकर जून से जुलाई तक 10 प्रतिशत के नज़दीक रहते हुए व्यापक रूप से अपरिवर्तित रही। जुलाई में कुछ कमी के बावजूद मुख्य सीपीआई मुद्रास्फीति (खाद्य और ईंधन समूह को छोड़कर) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक बढ़े हुए स्तर पर रहा। 9. डीज़ल की कीमतों में हाल की बढ़ोतरी के संशोधन तथा एलपीजी के लिए आर्थिक सहायता को औचित्यपूर्ण बनाना जबकि एक उल्लेखनीय उपलब्धि है, अल्पावधि में हेडलाईन मुद्रास्फीति पर दबाव बने रहेंगे। तथापि, मध्याविध के दौरान यह समष्टि आर्थिक मौलिक तत्वों को मज़बूत बनाएगा। यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि ये संशोधन अप्रैल की नीति के समय प्रस्तावित थे जब एक प्रारंभिक प्रभाव वाली रिपो दर कमी शुरू की गई थी। दीर्घावधि के दौरान जैसाकि वर्ष 2012-12 के लिए केंद्रीय बज़ट में उल्लेख किया गया है, सकल घरेलू उत्पाद के 2 प्रतिशत के अंतर्गत आर्थिक सहायता को धारण करना मुद्रास्फीति पर मांग पक्ष दबावों का प्रबंध करने के लिए महत्वपूर्ण है। मुद्रास्फीतिकारी दबावों को रोक रखना तथा मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को कम करने के लिए निवेश को बढ़ाने, आपूर्ति बाधाओं को दूर करने तथा उत्पादकता में सुधार लाने हेतु हाल की नीति कार्रवाईयों की गति को बनाए रखने की ज़रूरत है। चलनिधि स्थितियां 10. मु्द्रा आपूर्ति (एम3), बैंक ऋण एवं जमाराशियों में उनकी सांकेतिक सीमाओं के संबंध में आर्थिक गतिविधि की मंदी को दर्शाते हुए नरमी आयी है। इस पृष्ठभूमि के विपरित पहली तिमाही समीक्षा से ही चलनिधि स्थितियां सहज बनी हुई हैं। तथापि, आगे जाकर जमा वृद्धि और ऋण वृद्धि के बीच की खाई वर्ष की दूसरी छमाही में ऋण मांग में मौसमी तेज़ी की सहायता से बढ़ सकती है। इससे अग्रिम कर भुगतानों तथा त्यौहार संबंधी मुद्रा मांग की शुरूआत के कारण बर्हिर्वाहों के साथ अगले कुछ सप्ताहों के दौरान चलनिधि पर दबाव मज़बूत हो सकते हैं। इन स्थितियों में समुचित चलनिधि का प्रबंध यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत आहरण व्यापक रूप से निवल मांग और मीयादी देयताओं के +/- 1 प्रतिशत के सांकेतिक लक्ष्य के भीतर बना रहेगा जिसके द्वारा मौद्रिक नीति अंतरण को सुविधा मिलेगी तथा अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों को ऋण के पर्याप्त प्रवाहों में सहायता मिलेगी। बाह्य क्षेत्र 11. जबकि वर्ष 2012-13 के पहले पांच महीनों में व्यापार घाटा कम हुआ है, सापेक्षिक रूप से जुलाई-अगस्त में निर्यात की भारी गिरावट खराब होती हुई वेश्विक संभावना से चालू खाते के प्रति जोखिमों के संकेत हैं। जहां तक बाहरी वित्तीय सहायता का संबंध है प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अंतर्वाह में कमी की पूर्ति अंशत: अनिवासी जमाराशियों में उछाल तथा हाल के महीनों में विदेशी संस्थागत निवेश प्रवाहों के नवीकरण के द्वारा हुई है। इसके परिणामस्वरूप पहली तिमाही समीक्षा के बाद से रुपया एक संकीर्ण सीमा के भीतर कारोबार कर रहा है। आगे देखते हुए घरेलू नीति गतिविधियों की प्रतिक्रिया में बढ़े हुए अंतर्वाहों के साथ व्यापार घाटे में नरमी से भुगतान संतुलन पर दबाव कम हो सकते हैं। तथापि, पूंजी आवाज़ाही और तेल की कीमतें दोनों के अनुसार वैश्विक कारकों से जोखिमें बनी रहेंगी। इन बाहरी जोखिमों को देखते हुए धारणीय स्तरों तक सीएडी को धारण किए रखना स्थायी राजकोषीय समेकन और खासकर आर्थिक सहायता से पूंजी व्यय की ओर सार्वजनिक व्यय को ले जाने पर निर्भर करेगा जो निजी निवेश में ईकठ्ठा होता है जिससे वृद्धि को पुनर्ज्जीवित करने के लिए आधार तैयार होता है। मार्गदर्शन 12. प्रथम तिमाही समीक्षा के बाद से वृद्धि जोखिमें जबकि बढ़ गई हैं, मुद्रास्फीति जोखिमें बनी हुई हैं। वृद्धि जोखिमों में कमी तथा अर्थव्यवस्था को एक उच्चतर धारणीय वृद्धि सीमा तक ले जाने के लिए कई क्षेत्रों के भीतर समायोजित नीति कार्रवाई अपेक्षित है जो एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पिछले सप्ताहों की कार्रवाई ने उल्लेखनीय योगदान किया है। मौद्रिक नीति की एक महत्वपूर्ण भूमिका वृद्धि के पुनज्जीवन में सहायता करना भी है। तथापि, वर्तमान स्थिति में जुड़वें घाटों - चालू खाता घाटे और राजकोषीय घाटे से उत्पन्न जोखिमों के साथ-साथ जारी मुद्रास्फीतिकारी दबाव वृद्धि जोखिम के लिए मौद्रिक नीति की एक मज़बूत कार्रवाई के लिए बाध्य करते हैं। तदनुसार, जैसे ही एक प्रक्रिया विकसित होती है, मौद्रिक नीति का रूझान उभरती हुई वृद्धि मुद्रास्फीति गतिशीलता, चलनिधि स्थितियों के प्रबंध की सतर्क और निरंतर निगरानी द्वारा व्यवस्थित होगी ताकि उत्पादक क्षेत्रों को ऋण का पर्याप्त प्रवाह सुनिश्चित किया जा सके तथा बाह्य गतिविधियों से उत्पन्न आघातों के प्रति समुचित कार्रवाई की जा सके। अल्पना किल्लावाला प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/452 |