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मौद्रिक नीति समिति की 3, 5 और 6 अप्रैल 2023 के दौरान हुई बैठक का कार्यवृत्त

20 अप्रैल 2023

मौद्रिक नीति समिति की 3, 5 और 6 अप्रैल 2023 के दौरान हुई बैठक का कार्यवृत्त
[भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45ज़ेडएल के अंतर्गत]

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45जेडबी के तहत गठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बयालीसवीं बैठक 3, 5 और 6 अप्रैल 2023 के दौरान आयोजित की गई थी।

2. बैठक में सभी सदस्य – डॉ. शशांक भिड़े, माननीय वरिष्ठ सलाहकार, नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च, दिल्ली; डॉ. आशिमा गोयल, अवकाश प्राप्त प्रोफेसर, इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च, मुंबई; प्रो. जयंत आर. वर्मा, प्रोफेसर, भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद; डॉ. राजीव रंजन, कार्यपालक निदेशक (भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडबी (2) (सी) के अंतर्गत केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित रिज़र्व बैंक के अधिकारी); डॉ. माइकल देवब्रत पात्र, मौद्रिक नीति के प्रभारी उप गवर्नर उपस्थित रहें और इसकी अध्यक्षता श्री शक्तिकांत दास, गवर्नर द्वारा की गई।

3. भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडएल के अनुसार, रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति समिति की प्रत्येक बैठक के चौदहवें दिन इस बैठक की कार्यवाहियों का कार्यवृत्त प्रकाशित करेगा जिसमें निम्नलिखित शामिल होगा:

(क) मौद्रिक नीति समिति की बैठक में अपनाया गया संकल्प;

(ख) उक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर मौद्रिक नीति के प्रत्येक सदस्य को प्रदान किया गया वोट; और

(ग) उक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर धारा 45ज़ेडआई की उप-धारा (11) के अंतर्गत मौद्रिक नीति समिति के प्रत्येक सदस्य का वक्तव्य।

4. एमपीसी ने रिज़र्व बैंक द्वारा उपभोक्ता विश्वास, परिवारों की मुद्रास्फीति प्रत्याशा, कॉर्पोरेट क्षेत्र के प्रदर्शन, ऋण की स्थिति, औद्योगिक, सेवाओं और आधारभूत संरचना क्षेत्रों के लिए संभावनाएं और पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के अनुमानों का आकलन करने के लिए किए गए सर्वेक्षणों की समीक्षा की। एमपीसी ने इन संभावनाओं के विभिन्न जोखिमों के इर्द-गिर्द स्टाफ के समष्टि आर्थिक अनुमानों और वैकल्पिक परिदृश्यों की विस्तृत रूप से भी समीक्षा की। उपर्युक्त पर और मौद्रिक नीति के रुख पर व्यापक चर्चा करने के बाद एमपीसी ने संकल्प अपनाया जिसे नीचे प्रस्तुत किया गया है।

संकल्प

5. वर्तमान और उभरती समष्टि-आर्थिक परिस्थिति का आकलन करने के आधार पर मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आज (6 अप्रैल 2023) अपनी बैठक में यह निर्णय लिया है कि:

  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा जाए।

स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 6.25 प्रतिशत तथा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.75 प्रतिशत पर अपरिवर्तित बनी हुई है।

  • एमपीसी ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने का भी निर्णय लिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो।

ये निर्णय, संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति को +/- 2 प्रतिशत के दायरे में रखते हुए 4 प्रतिशत का मध्यावधि लक्ष्य हासिल करने के अनुरूप है।

इस निर्णय में अंतर्निहित मुख्य विचार नीचे दिए गए विवरण में व्यक्त किए गए हैं।

आकलन

वैश्विक अर्थव्यवस्था

6. उच्च स्तर पर मुद्रास्फीति के बने रहने, कुछ उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) की बैंकिंग प्रणाली में उथल-पुथल, तंग वित्तीय स्थितियों और दीर्घकालिक भू-राजनीतिक युद्ध स्थिति के बीच वैश्विक आर्थिक गतिविधि आघात-सहनीय बनी हुई है। हाल की वित्तीय स्थिरता संबंधी चिंताओं ने जोखिम से बचने, सुरक्षित बने रहने को प्रेरित किया है और वित्तीय बाजार में अस्थिरता को बढ़ा दिया है। आक्रामक मौद्रिक रुख और संचार पर फरवरी में तेज वृद्धि को उलटते हुए, सुरक्षित आश्रय की मांग पर सॉवरेन बांड प्रतिफल में मार्च में तेज गिरावट आई। एमपीसी की पिछली बैठक के बाद से इक्विटी बाजारों में गिरावट आई है और अमेरिकी डॉलर ने अपने लाभ को कम कर दिया है। कमजोर बाहरी मांग, कुछ उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में बैंकिंग संकट से स्पिलओवर, अस्थिर पूंजी प्रवाह और कुछ कमजोर अर्थव्यवस्थाओं में ऋण संकट, संवृद्धि की संभावनाओं पर दबाव डालते हैं।

घरेलू अर्थव्यवस्था

7. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा 28 फरवरी 2023 को जारी दूसरे अग्रिम अनुमान (एसएई) में 2022-23 में भारत के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर को 7.0 प्रतिशत रखा गया है। निजी खपत और सार्वजनिक निवेश, संवृद्धि के प्रमुख चालक थे।

8. चौथी तिमाही में आर्थिक गतिविधि आघात-सहनीय बनी रही। रबी खाद्यान्न उत्पादन 2022-23 में 6.2 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। जनवरी में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में 5.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि आठ प्रमुख उद्योगों का उत्पादन जनवरी में 8.9 प्रतिशत और फरवरी में 6.0 प्रतिशत की तेजी से बढ़ा, जो औद्योगिक गतिविधि की क्षमता का संकेत देती है। सेवा क्षेत्र में, घरेलू हवाई यात्री यातायात, बंदरगाह माल-भाड़ा यातायात, ई-वे बिल और टोल संग्रह ने चौथी तिमाही में बेहतर वृद्धि दर्ज की, जबकि रेलवे माल-भाड़ा यातायात में मामूली वृद्धि दर्ज की गई। क्रय प्रबंधकों के सूचकांक (पीएमआई) ने मार्च में विनिर्माण और सेवाओं दोनों में सतत वृद्धि का संकेत दिया।

9. शहरी मांग संकेतकों में, यात्री वाहनों की बिक्री में फरवरी में मजबूत वृद्धि दर्ज की गई, जबकि जनवरी में टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री में कमी आई। ग्रामीण मांग संकेतकों में, फरवरी में ट्रैक्टर और दोपहिया वाहनों की बिक्री मजबूत रही। जहां तक निवेश गतिविधि का संबंध है, फरवरी में इस्पात की खपत और सीमेंट उत्पादन की वृद्धि में तेजी आई। पण्य निर्यात और तेल से इतर स्वर्ण से इतर आयात फरवरी में संकुचित हुए जबकि सेवा निर्यात में मजबूत वृद्धि जारी रही।

10. अनाज, दूध और फलों में उच्च मुद्रास्फीति और सब्जियों की कीमतों में धीमी अवस्फीति के कारण सीपीआई हेडलाइन मुद्रास्फीति दिसंबर 2022 में 5.7 प्रतिशत से बढ़कर फरवरी 2023 में 6.4 प्रतिशत हो गई। ईंधन मुद्रास्फीति उच्च बनी रही, हालांकि मिट्टी के तेल (पीडीएस) की कीमतों में गिरावट और अनुकूल आधार प्रभावों के कारण फरवरी में कुछ नरमी देखी गई थी। मूल मुद्रास्फीति (अर्थात्, खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई) उच्च बनी रही और यह जनवरी-फरवरी में 6 प्रतिशत से ऊपर थी। कपड़े और जूते, तथा परिवहन और संचार की मुद्रास्फीति में देखी गई कमी, व्यक्तिगत देखभाल और प्रभाव तथा आवास में मुद्रास्फीति में तेजी से काफी हद तक ऑफसेट हुई।

11. एलएएफ के अंतर्गत औसत दैनिक अवशोषण दिसंबर-जनवरी में औसतन ₹1.6 लाख करोड़ से घटकर फरवरी-मार्च के दौरान ₹1.4 लाख करोड़ हो गया। 2022-23 के दौरान, मुद्रा आपूर्ति (एम3) में 9.0 प्रतिशत की वृद्धि हुई और खाद्य से इतर बैंक ऋण में 15.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 31 मार्च 2023 तक भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि 578.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।

संभावना

12. 2023-24 में मुद्रास्फीति की गति को घरेलू और वैश्विक दोनों कारकों द्वारा आकार दिया जाएगा। रिकॉर्ड रबी खाद्यान्न उत्पादन की उम्मीद, खाद्य कीमतों की संभावना के लिए अच्छा संकेत है। हालांकि, हाल की बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के प्रभाव पर नजर रखने की जरूरत है। उच्च लागत और मौसमी कारकों के कारण दूध की कीमतें स्थिर रह सकती हैं। कच्चे तेल की कीमतों की संभावना उच्च अनिश्चित बनी हुई है। आयातित मुद्रास्फीति जोखिमों की संभावित बढ़ोत्तरी के कारण वैश्विक वित्तीय बाजार में अस्थिरता बढ़ी है। रिज़र्व बैंक के उद्यम सर्वेक्षणों के अनुसार, लागत में कमी की स्थिति, विनिर्माण और सेवाओं के उत्पादन मूल्य वृद्धि की गति में कुछ कमी ला रही है। तथापि, इनपुट लागतों का विलंबित प्रभाव अंतरण मूल मुद्रास्फीति को बढ़ाए रख सकता है। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए तथा 85 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल की वार्षिक औसत कच्चे तेल की कीमत (भारतीय टोकरी) और सामान्य मानसून की आशा करते हुए, सीपीआई मुद्रास्फीति 2023-24 के लिए 5.2 प्रतिशत पर अनुमानित है, जोकि पहली तिमाही में 5.1 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.2 प्रतिशत और जोखिम समान रूप से संतुलित रहना अनुमानित है (चार्ट 1)।

13. एक अच्छी रबी फसल से ग्रामीण मांग मजबूत होनी चाहिए, जबकि संपर्क-गहन सेवाओं में निरंतर उछाल से शहरी मांग को समर्थन मिलना चाहिए। विनिर्माण में क्षमता उपयोग की प्रवृत्ति से ऊपर पूंजीगत व्यय पर सरकार का जोर, दोहरे अंकों की ऋण वृद्धि और कमोडिटी की कीमतों में कमी से विनिर्माण और निवेश गतिविधि को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। भारतीय रिज़र्व बैंक के सर्वेक्षणों के अनुसार, व्यवसाय और उपभोक्ता भविष्य की संभावना को लेकर आशान्वित हैं। धीमे वैश्विक व्यापार और उत्पादन को देखते हुए, विलंबित बाह्य मांग में वृद्धि हो सकती है। दीर्घकालिक भू-राजनीतिक तनाव, तंग वैश्विक वित्तीय स्थिति और वैश्विक वित्तीय बाजार में अस्थिरता से संभावना के लिए जोखिम उत्पन्न हो सकता है। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2023-24 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि 6.5 प्रतिशत अनुमानित है; जोकि जोखिम में समान रूप से संतुलन के साथ पहली तिमाही में 7.8 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 6.2 प्रतिशत; तीसरी तिमाही में 6.1 प्रतिशत; और चौथी तिमाही में 5.9 प्रतिशत रहना अनुमानित है (चार्ट 2)।

Chart 1 and 2

14. सीपीआई हेडलाइन मुद्रास्फीति के लगातार सहन-सीमा बैंड के ऊपर रहने के कारण, एमपीसी ने लक्ष्य के साथ मुद्रास्फीति को संरेखित करने पर दृढ़ता से ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया। मूल्य दबावों के सामान्यीकरण को नियंत्रित करना और मुद्रास्फीति की उम्मीदों को स्थिर करना आवश्यक है। घरेलू आर्थिक गतिविधि में आघात-सहनीयता को बनाए रखने के लिए न्यून एवं स्थिर कीमतों का वातावरण आवश्यक है। हालांकि, मई 2022 से नीति दर में संचयी रूप से 250 आधार अंकों की वृद्धि की गई है, जो अभी भी सिस्टम के माध्यम से काम कर रही है, लेकिन फिर भी मूल्य स्थिरता पर अपनी तैयारी में किसी भी प्रकार की ढिलाइ नहीं बरत सकते हैं। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए, एमपीसी ने इस बैठक में नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया, साथ ही, यदि आवश्यक हो तो कार्रवाई करने के लिए तैयार है। एमपीसी उभरती मुद्रास्फीति और संवृद्धि की संभावना पर कड़ी निगरानी रखना जारी रखेगी और भावी बैठकों में आवश्यक कार्रवाई करने में संकोच नहीं करेगी। एमपीसी ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने का भी निर्णय लिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो।

15. एमपीसी के सभी सदस्य - डॉ. शशांक भिड़े, डॉ. आशिमा गोयल, प्रो. जयंत आर. वर्मा, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने सर्वसम्मति से नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने के लिए वोट किया।

16. डॉ. शशांक भिड़े, डॉ. आशिमा गोयल, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने के लिए वोट किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो। प्रो. जयंत आर. वर्मा ने संकल्प के इस हिस्से पर आपत्ति जताई।

17. एमपीसी की बैठक का कार्यवृत्त 20 अप्रैल 2023 को प्रकाशित किया जाएगा।

18. एमपीसी की अगली बैठक 6-8 जून 2023 के दौरान निर्धारित है।

पॉलिसी रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर रखने के संकल्प पर मतदान

सदस्य मत
डॉ. शशांक भिड़े हाँ
डॉ. आशिमा गोयल हाँ
प्रो. जयंत आर. वर्मा हाँ
डॉ. राजीव रंजन हाँ
डॉ. माइकल देवब्रत पात्र हाँ
श्री शक्तिकान्त दास हाँ

डॉ. शशांक भिड़े का वक्तव्य

19. वित्त वर्ष 2022-23 के लिए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी राष्ट्रीय आय के दूसरे अग्रिम अनुमान (एसएई) में सकल घरेलू उत्पाद की समग्र वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि को 7 प्रतिशत पर बरकरार रखा, जैसा कि 6 जनवरी 2023 को प्रकाशित प्रथम अग्रिम अनुमान (एफएई) में उल्लेख किया गया था। हालाँकि, अनंतिम अनुमानों को 2021-22 के लिए प्रथम संशोधित अनुमानों (एफ़आरई) द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है, क्यों कि 2022-23 के लिए आधार और अनुमानित जीडीपी अब वास्तव में एफ़एई की तुलना में एसएई में 1.3 प्रतिशत अधिक है। वित्त वर्ष 2022-23 में निजी अंतिम उपभोग व्यय, सकल स्थिर निवेश व्यय तथा वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात की संवृद्धि दर, समग्र सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि दर से अधिक हो गई है। सरकारी अंतिम उपभोग व्यय की धीमी वृद्धि और उच्च आयात ने अन्य मांग घटकों की संवृद्धि की उच्च गति को ऑफसेट कर दिया है।

20. जबकि सकल घरेलू उत्पाद की समग्र संवृद्धि, अर्थव्यवस्था के आघात-सहनीयता को दर्शाती है, इस क्षमता का एक बड़ा हिस्सा वर्ष की पहली तिमाही में तेज वृद्धि द्वारा प्रभावित है, जो वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही के तेज कोविड-19 प्रभाव से पलटाव का प्रतिबिंब है। 2022-23 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वर्ष दर वर्ष संवृद्धि दर अब 13.2 प्रतिशत और बाद की दो तिमाहियों में 6.3 और 4.4 प्रतिशत पर रखी गई है। क्षेत्रीय स्तर पर, संपर्क गहन व्यापार, होटल, परिवहन, संचार और प्रसारण से संबंधित सेवाएं; बिजली, जलापूर्ति और अन्य सुविधाएं; तथा निर्माण संवृद्धि के संचालक है, जिन्होंने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 6.6 प्रतिशत की समग्र जीवीए संवृद्धि दर की तुलना में योजित सकल मूल्य की उच्च वर्ष-दर-वर्ष संवृद्धि दर दर्ज की है। वित्त वर्ष 2022-23 में विनिर्माण के जीवीए की संवृद्धि दर 1 प्रतिशत से भी कम है। इसलिए संवृद्धि निष्पादन, उत्पादन क्षेत्रों में असमान संवृद्धि और वित्त वर्ष 2022-23 की हालिया तिमाहियों में धीमी संवृद्धि दोनों की ओर इशारा करता है।

21. कमजोर वैश्विक आर्थिक वातावरण, वित्तीय बाजारों और ऊर्जा बाजारों में मांग में गिरावट और अनिश्चितता द्वारा परिलक्षित है। कतिपय कमजोर मांग की स्थिति का मुख्य कारण प्रमुख उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीति की सख्ती और चीन में संवृद्धि की धीमी गति है। वित्तीय बाजार की अनिश्चितता का मुख्य कारण धीमी वैश्विक संवृद्धि, उच्च मुद्रास्फीति दर को कम करने के लिए मौद्रिक नीति कार्रवाइयां और ऊर्जा सहित बाजारों की शृंखला को प्रभावित करने वाली दीर्घकालिक यूक्रेन युद्ध है। इन स्थितियों के कम से कम तब तक बने रहने की उम्मीद है जब तक कि मुद्रास्फीति की दर उल्लेखनीय रूप से कम नहीं हो जाती। आईएमएफ़ और विश्व बैंक दोनों ने 2023 में 3 प्रतिशत से कम और 2024 में मामूली रूप से 3 प्रतिशत से अधिक की वैश्विक उत्पादन की वर्ष-दर-वर्ष संवृद्धि दर का अनुमान लगाया है। इन प्रतिकूल वैश्विक मांग स्थितियों के कारण भारत के निर्यात- विशेष रूप से माल निर्यात - पर दबाव है, इसलिए, वित्त वर्ष 2023-24 में भी इसके बने रहने की उम्मीद है।

22. लघु अवधि में घरेलू उत्पादन संवृद्धि की स्थिति निर्धारित करने में कई कारकों की भूमिका होती हैं। उच्च आवृत्ति संकेतकों की गतिकी, संवृद्धि की वर्तमान गति को जारी रखने की ओर इशारा करती है। उदाहरणस्वरूप, मार्च में विनिर्माण और सेवाओं के लिए पीएमआई ने एक विस्तारित चरण को प्रतिबिंबित करना जारी रखा है, हालांकि दोनों अपने हालिया शिखर से नीचे हैं। जीएसटी संग्रह और रेलवे माल यातायात संकेतक वित्त वर्ष 2022-23 की तीसरी तिमाही और जनवरी-फरवरी 2023 के हाल के महीनों में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि में नरमी दिखाते हैं। हालांकि, खाद्य से इतर ऋण संवृद्धि ने दोहरे अंकों की दर से विस्तार जारी रखा। कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिए बिक्री संवृद्धि डेटा इंगित करता है कि वित्त वर्ष 2022-23 की तीसरी तिमाही में मूल्य वृद्धि राजस्व वृद्धि का एक महत्वपूर्ण चालक है।

23. कारोबारी परिदृश्य में मिली-जुली तस्वीर दिखाई दे रही है। जनवरी-मार्च 2023 के दौरान आयोजित भारतीय रिज़र्व बैंक का उद्यम सर्वेक्षण, वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र की फर्मों के लिए अपने व्यावसायिक अपेक्षाओं के सूचकांक में कमी की ओर इशारा करता है, हालांकि मौजूदा परिस्थितियों के लिए व्यापार मूल्यांकन सूचकांक वित्त वर्ष 2022-23 की चौथी तिमाही में बढ़ा है। दोनों सूचकांक आर्थिक गतिविधियों के विस्तार का संकेत देते हैं। समग्र कारोबारी स्थिति की प्रत्याशाएँ वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही से लेकर 2023-24 की तीसरी तिमाही तक सेवाओं और अवसंरचना क्षेत्र में उद्यमों के मामले में बढ़ती आशावाद का संकेत देती हैं। सेवाओं और बुनियादी ढांचे में उद्यमों के बजाय वित्त वर्ष 2022-23 की चौथी तिमाही की तुलना में वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में स्पष्ट रूप से छोटे अनुपात से लाभ मार्जिन में सुधार की उम्मीद है। लाभ मार्जिन में सुधार लाने के लिए बिक्री मूल्य में वृद्धि आवश्यक प्रतीत होती है। मार्च 2023 के लिए उपभोक्ता विश्वास का सर्वेक्षण सामान्य आर्थिक स्थितियों और घरेलू आय संबंधी मनोभावों में मामूली गिरावट के साथ सर्वेक्षण के पिछले दौर में धारित अपेक्षाओं की तुलना में रोजगार के लिए बेहतर स्थितियों की उम्मीदों की ओर इशारा करता है। अर्थव्यवस्था की धारणाओं के सभी तीन संकेतकों में, एक वर्ष आगे की स्थिति वर्तमान से काफी बेहतर दिखाई दे रही है।

24. जनवरी 2023 से आगे की अवधि में कई एजेंसियों द्वारा प्रदान किए गए सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि (वर्ष-दर-वर्ष) का अनुमान वित्त वर्ष 2023-24 के लिए लगभग 6 प्रतिशत रहा है। मार्च 2023 में आयोजित भारतीय रिज़र्व बैंक के व्यावसायिक पूर्वानुमानकर्ताओं का सर्वेक्षण 2023-24 के लिए 6.0 प्रतिशत का औसत पूर्वानुमान प्रदान करता है। 2023 के लिए सामान्य मानसून की धारणा के साथ-साथ संवृद्धि को प्रभावित करने वाले संवृद्धि के रुझान और कारकों को ध्यान में रखते हुए, वित्त वर्ष 2023-24 के लिए सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है, जोकि पहली तिमाही में 7.8 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 6.2 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6.1 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है। निकट भविष्य में संवृद्धि से संबंधित मुख्य चिंता का विषय बाह्य मांग की कमजोर स्थितियों के कारण होने वाला खिंचाव है। भारतीय कृषि पर किसी भी प्रतिकूल मौसम की स्थिति का प्रभाव संवृद्धि पथ के लिए अतिरिक्त अधोगामी जोखिम प्रदान करता है।

25. हेडलाइन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक जनवरी और फरवरी 2023 में क्रमशः 6.5 और 6.4 प्रतिशत बढ़ा, जो नवंबर और दिसंबर 2022 के दो माह के लिए 6 प्रतिशत के मुद्रास्फीति दर से कम रहने के बाद, 4% मुद्रास्फीति के नीतिगत लक्ष्य की सहन-सीमा बैंड की ऊपरी सीमा को पार कर गया। हाल के दो महीनों में समग्र मुद्रास्फीति दर के इस उच्च स्तर के प्रमुख चालक खाद्य पदार्थ थे, विशेष रूप से, अनाज, दूध और उत्पाद, मसाले और 'तैयार भोजन, नाश्ता और मिठाई'। हालांकि, खाद्य और ईंधन तथा प्रकाश को छोड़कर सम्मिलित अन्य वस्तुओं की श्रेणी की मुद्रास्फीति दर भी वर्तमान कैलेंडर वर्ष के पहले दो महीनों में 6 प्रतिशत या उससे ऊपर बनी हुई है। मूल मुद्रास्फीति के घटकों में, जिसमें खाद्य और ईंधन आइटम शामिल नहीं हैं, कपड़े और जूते, घरेलू सामान और सेवाएं, स्वास्थ्य और व्यक्तिगत देखभाल एवं प्रभावों के मामले में मूल्य वृद्धि 6 प्रतिशत से अधिक थी। वित्त वर्ष 2022-23 के पहले 11 महीनों में ईंधन और बिजली भी दोहरे अंकों की महंगाई दर के करीब रही है। समग्र मुद्रास्फीति की प्रवृति की सकारात्मक विशेषता, माह-दर-माह की प्रवृति है जो फरवरी 2023 में कम हो रही है। इस गतिविधि पर नजर रखने की जरूरत है क्योंकि मौसमी प्रवृति इस पैटर्न को बदल सकते हैं।

26. अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी की कीमतों में गिरावट का संयुक्त प्रभाव, मई 2022 के बाद से मौद्रिक नीति दर में हुई उल्लेखनीय वृद्धि से बैंकों की जमाराशियों में बढ़ोत्तरी हुई है, लेकिन उधार दरों को सतत रूप से लक्ष्य के ऊपरी सहन-सीमा बैंड के नीचे मुद्रास्फीति दरों में बदलना शेष है। उत्पादन संवृद्धि की गति के लिए काफी अधोगामी जोखिम हैं और फर्मों के लिए मूल्य आधारित राजस्व से लाभ सीमित हो सकते हैं। जबकि नीतिगत दर में वृद्धि मई 2022 से फरवरी 2023 की अवधि में प्रभावी हुई थी, इन नीतिगत कार्रवाइयों का संचयी प्रभाव अभी तक नहीं देखा गया है। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा हाल ही में परिवारों का मुद्रास्फीति प्रत्याशा सर्वेक्षण, 3-माह आगे और एक वर्ष आगे की मुद्रास्फीति दर में कमी की उम्मीदों की ओर इशारा करता है। भारतीय प्रबंध संस्थान अहमदाबाद द्वारा फर्मों का सर्वेक्षण, जनवरी 2023 की तुलना में फरवरी 2023 में लागत आधारित कारोबारी मुद्रास्फीति सूचकांक के आधार पर एक वर्ष आगे की प्रत्याशित कारोबारी मुद्रास्फीति में कमी की ओर इशारा करता है। दोनों दौरों में 5 प्रतिशत से नीचे की मुद्रास्फीति की दर की प्रत्याशा के साथ सर्वेक्षण में दिसंबर 2022 की प्रत्याशा की तुलना में फरवरी 2023 में सीपीआई मुद्रास्फीति की एक वर्ष आगे की प्रत्याशा में मामूली वृद्धि भी पाई गई है।1

27. वित्त वर्ष 2023-24 का पूर्वानुमान, मुद्रास्फीति दर में 6 प्रतिशत के उच्च सहन-सीमा बैंड में गिरावट, जिसमें पहली तिमाही में 5.1 प्रतिशत, दूसरी और तीसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत, चौथी तिमाही में 5.2 प्रतिशत और 5.2 की वार्षिक औसत दर का संकेत मिलता है। अनुमानित मुद्रास्फीति दरों में गिरावट को वित्त वर्ष 2022-23 में उच्च मुद्रास्फीति दर के आधार प्रभाव का भी समर्थन प्राप्त है।

28. जबकि ये अनुमान मध्यावधि में मुद्रास्फीति लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक मार्ग की ओर इशारा करते हैं, लेकिन इन अनुमानों के साथ स्पष्ट रूप से ऊर्ध्वगामी जोखिम जुड़े हुए हैं। वैश्विक स्तर पर और घरेलू बाजारों में प्रमुख कृषि कीमतों को प्रभावित करने वाली मौसम की अनिश्चितता, भू-राजनीतिक संघर्षों और नीतियों के परिणामस्वरूप आपूर्ति में व्यवधान के कारण उच्च ईंधन और ऊर्जा की कीमतें, मुद्रास्फीति की दर में तेजी ला सकती हैं और इन आघातों से तुरंत उबरा भी नहीं जा सकता है। इस संदर्भ में, अन्य घटनाक्रमों के अलावा, मुद्रास्फीति दर पर मौद्रिक नीति कार्रवाइयों के प्रभाव की सीमा का आकलन करना महत्वपूर्ण है।

29. वित्त वर्ष 2023-24 के लिए संवृद्धि और मुद्रास्फीति के अनुमानित पैटर्न, इन अनुमानों से जुड़े जोखिमों और अब तक की मौद्रिक नीति कार्रवाइयों के संचयी प्रभाव को देखने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, मेरा मानना है इस बैठक में बिना किसी उतरोत्तर कार्रवाई की प्रतिबद्धता के नीतिगत दरों में ठहराव उचित है, सिवाय इसके कि मुद्रास्फीति की दर को लक्ष्य के साथ संरेखित करना एक नीतिगत प्राथमिकता बनी रहेगी।

30. तदनुसार मैं:

(क) नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने, और

(ख) निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो, के लिए वोट करता हूँ।

डॉ. आशिमा गोयल का वक्तव्य

31. वैश्विक मंदी अपेक्षा से कम गंभीर है लेकिन संवृद्धि और मुद्रास्फीति दोनों में मंदी के संकेत हैं जो बताते हैं कि केंद्रीय बैंकों (सीबी) की सख्ती पर्याप्त है और इसके अनुगामी प्रभाव मुद्रास्फीति में आवश्यक और अधिक गिरावट लाएंगे। लेकिन जैसे कुछ उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) में वित्तीय दबाव प्रकट हुआ, जैसा कि निरंतर अतिरिक्त चलनिधि के बाद तेज सख्ती अपेक्षित थी, प्रमुख सीबी को वित्तीय प्रभुत्व की अनुपस्थिति को प्रदर्शित करने के लिए सख्ती को जारी रखना पड़ा। सौभाग्य से, भारत में महामारी से पहले वित्तीय सुधार, अधिक मजबूत और अधिक व्यापक-आधारित विनियमन तथा पर्यवेक्षण के साथ-साथ कॉर्पोरेट सुशासन पर निरंतर ध्यान था, इसलिए इसके वित्तीय क्षेत्र ने वास्तव में बहु-आघातों2 में बेहतर प्रदर्शन किया है। निरंतर विनियामक सतर्कता आवश्यक है, लेकिन यहां वित्तीय प्रभुत्व से स्वतंत्रता प्रदर्शित करना आवश्यक नहीं है। इसके बजाय, भारत की बेहतर नीतियां और बफर एई सीबी और उनकी कमजोरियों से स्वतंत्रता प्रदर्शित करना संभव बनाते हैं। यहाँ की मुद्रास्फीति भी अलग है। यह अपेक्षाकृत लक्ष्य के करीब है- अति-प्रोत्साहन के कारण अतिरिक्त मांग या सख्त श्रम बाजार के कारण दूसरे दौर के प्रभाव इसे नहीं बढ़ा रहे हैं।

32. यद्यपि संवृद्धि आघात-सह है, कुछ उच्च आवृत्ति आंकड़ों में मंदी के संकेत हैं। गैर-तेल गैर-स्वर्ण आयात में कमी, घरेलू मांग में कमजोरी की ओर इशारा करती है; मंद निर्यात विनिर्माण को प्रभावित कर रहा है; बढ़ती ऋण दरें कम आय वाले आवास की मांग को कम कर रही हैं।

33. वर्ष 2012 के भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर3 में यह पाया गया कि मौद्रिक नीति 2-3 तिमाहियों के अंतराल के साथ उत्पादन को और 3-4 तिमाहियों के अंतराल के साथ मुद्रास्फीति को प्रभावित करती है तथा यह प्रभाव 8-10 तिमाहियों तक बना रहता है। ब्याज दर चैनल का उत्पादन संवृद्धि पर मौद्रिक आघातों के कुल प्रभाव का लगभग आधा और मुद्रास्फीति पर कुल प्रभाव का लगभग एक-तिहाई हिस्सा है। उत्पादन पर इसका प्रभाव मुद्रास्फीति की तुलना में 2-3 गुना अधिक था। विनिमय दर में परिवर्तन का उत्पादन संवृद्धि पर नगण्य प्रभाव पड़ा, लेकिन मुद्रास्फीति पर गैर-नगण्य प्रभाव पड़ा। उससे पहले और उसके बाद से कई समय श्रृंखला अनुमानों के परिणामों का पैटर्न समान था। हाल ही में मौद्रिक संचारण पर आईजीआईडीआर एम.फिल. ने वर्तमान आंकड़ों का उपयोग करते हुए, जीडीपी घटकों का भी विश्लेषण किया और पाया कि कम होती इक्विटी कीमतों के माध्यम से मौद्रिक नीति का निवेश पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा4

34. अक्तूबर 2022 तक रेपो दर एक मजबूत स्तर (5.9%) तक बढ़ गई थी, साथ ही चलनिधि की स्थिति भी सख्त हो रही थी और कई अल्पकालिक बाजार लिखितों के लिए स्प्रेड बढ़ रही थी। और हम दो तिमाहियों के बाद संवृद्धि में कुछ कमी होते हुए देखते हैं। दर वृद्धि के अनुगामी प्रभाव अभी शुरू हो रहे हैं, और अगले कुछ महीनों तक जारी रह सकते हैं। मुद्रास्फीति पर प्रभाव इसका अनुसरण करेंगे।

35. लेकिन उपरोक्त अनुमानों में मौद्रिक नीति संचारण की प्रत्याशाओं का चैनल शामिल नहीं है। जिस सीमा तक नीतिगत दरें मुद्रास्फीति के साथ बढ़ती हैं और मुद्रास्फीति लक्ष्य पर स्पष्ट संचार मुद्रास्फीति की प्रत्याशा को स्थिर करता है, और इसके लिए साक्ष्य हैं5, ब्याज दर चैनल को समायोजन का पूरा बोझ नहीं उठाना पड़ता है। मुद्रास्फीति तेजी से गिरेगी और मुद्रास्फीति लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अपेक्षित संवृद्धि त्याग कम होगा। यह और भी अधिक होगा यदि आपूर्ति पक्ष की कार्रवाई भी मुद्रास्फीति को कम करे। ऐसी नीति बीसीसीआर दृष्टिकोण का हिस्सा है- राजकोषीय और मौद्रिक नीति में अच्छे समन्वय के साथ संतुलित, प्रतिचक्रीय नीति और निरंतर सुधार, जिसने एक अंधकारमय वैश्विक समष्टि आर्थिक परिदृश्य में भारत को एक दीप्तिमान स्थान बनाने में मदद की है।

36. वर्ष भर में मुद्रास्फीति कम होने की आशा है। आधारभूत प्रभाव तो है लेकिन कुछ उपभोक्ता वस्तुओं की गति कम हो रही है। भारतीय रिज़र्व बैंक के उद्यम सर्वेक्षण से पता चलता है कि कंपनियां को निविष्टि लागत और बिक्री कीमतों में कमी की आशा है। विनिमय दर स्थिर या मजबूत हो रही है। जैसे-जैसे बाजार की कीमतों में गिरावट आती है, पिछले 2 महीनों के दौरान अनाज की कीमतों में तेजी से वृद्धि करने वाले भारांक के मुद्दे का विपरीत प्रभाव होने की आशा है।

37. चूँकि वित्तीय वर्ष 2024 के लिए मुद्रास्फीति का पूर्वानुमान चौथी तिमाही के लिए 5.2% के साथ 5.2% पर है, 6.5% रेपो दर का अर्थ है कि वास्तविक नीतिगत दर एक से अधिक है। अन्य अनुपूरक नीतियों और प्रमुख नए आघातों को छोड़कर मुद्रास्फीति को उत्तरोत्तर 4% के लक्ष्य की ओर लाने के लिए यह पहले से ही अधिक सख्ती है। वर्तमान में वास्तविक ब्याज दरों में और वृद्धि से बचना सबसे अच्छा है क्योंकि उच्च वास्तविक दरें एक गैर-रैखिक स्विच को न्यूनतर संवृद्धि पथ पर ट्रिगर कर सकती हैं6

38. भारत जैसे देश में जहां ब्याज दर का सबसे बड़ा प्रभाव संवृद्धि पर होता है, नीतिगत दरों को ओवरशूट करने और फिर कटौती करने का कोई तर्क नहीं है, रुपये के अपेक्षित मूल्यह्रास और ब्याज दरों के बीच का संबंध कमजोर है, विनिमय दर की अत्यधिक अस्थिरता को कम करने के लिए कई उपकरण उपलब्ध हैं और इनका सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है, चालू खाता घाटा कम हो गया है और इसका वित्तपोषण अब कोई मुद्दा नहीं है। इसके अलावा, विनिमय दर प्रत्यक्ष रूप से एमपीसी के अधिदेश में शामिल नहीं है।

39. इन तर्कों को ध्यान में रखते हुए, मैं विराम के लिए वोट करती हूं। लेकिन अनिश्चित मौसम और निरंतर वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण, और जब तक यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि मुद्रास्फीति लक्ष्य तक पहुंचने के मार्ग पर है, इस बात पर जोर देना आवश्यक है कि यह दर वृद्धि का अंत नहीं हो सकता है। अतः मैं रुख के रूप में निभाव को वापस लेने के लिए भी वोट करती हूं। लेकिन यह रुख अब रेपो दर के संबंध में है, इसलिए यदि आघात इतने बड़े हैं कि एलएएफ उपकरण अपर्याप्त साबित हो तो यह टिकाऊ चलनिधि के अंतर्वेशण के अनुरूप है। प्रमुख सीबी ने अपनी तुलन-पत्र को अन्य कारणों से आवश्यकतानुसार विस्तारित करने की अनुमति दी है, जबकि साथ ही मौद्रिक नीति उद्देश्यों के लिए रेपो दरों में वृद्धि की है।

प्रो. जयंत आर. वर्मा का वक्तव्य

40. फरवरी की बैठक के बाद से दो मुद्रास्फीति जोखिम सामने आए हैं। पहला जोखिम एमपीसी बैठक से ठीक पहले सप्ताहांत के दौरान ओपेक+ द्वारा उत्पादन में कटौती की घोषणा से उत्पन्न होता है। कच्चे तेल ने हाल के पूर्ववर्ती सप्ताहों की संपूर्ण कीमत गिरावट को प्रतिगामी कर दिया और फरवरी की बैठक के दौरान के स्तरों से थोड़ा ऊपर पहुँच गया। उत्पादन में कटौती स्वयं में चिंताजनक नहीं है क्योंकि यह ओपेक+ द्वारा मंद वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्त मांग के साथ आपूर्ति को संरेखित करने का प्रयास हो सकता है। यह तभी चिंता का विषय बनेगा जब यह प्रमुख तेल उत्पादक देशों के भू-राजनीतिक संरेखण में संरचनात्मक परिवर्तन का संकेत दे। अब तक, इस गतिविधि से कच्चे तेल का बाजार निश्चिंत है, क्योंकि वायदा वक्र अधोगामी झुकाव की ओर है। फिर भी, एमपीसी को इस उभरती स्थिति पर सावधानीपूर्वक नजर रखने की आवश्यकता है। यदि कच्चा तेल तीन डिजिट मार्क की ओर बढ़ता है, तो मौद्रिक प्रतिक्रिया की आवश्यकता हो सकती है।

41. दूसरा जोखिम मानसून से संबंधित है। अप्रैल के मध्य के आसपास ही वैज्ञानिक कुछ हद तक भरोसे के साथ मानसून का पूर्वानुमान प्रदान करने में सक्षम होते हैं, और मई के अंत तक पूर्वानुमान की सटीकता में सुधार होता है। अतः इस बैठक में, एमपीसी के पास सामान्य मानसून की डिफ़ॉल्ट धारणा के अंतर्गत परिचालन के अलावा कोई विकल्प नहीं है। तथापि, हाल के सप्ताहों में, कुछ प्रतिकूल समुद्री पैटर्न के बारे में चिंता बढ़ गई है जो इस वर्ष मानसून को प्रभावित कर सकते हैं। एक कमजोर मॉनसून मुद्रास्फीति के दबाव उत्पन्न कर सकता है जिसे मौद्रिक नीति उपायों के साथ प्रतिक्रिया की आवश्यकता होगी। तथापि, हमें इस मामले पर उचित स्पष्टता के लिए मई या जून की शुरुआत तक इंतज़ार करना होगा।

42. संवृद्धि के मोर्चे पर संभावित मंदी के शुरुआती चेतावनीपूर्ण संकेत फरवरी की तुलना में काफी हद तक प्रतीत हो रहे हैं। उच्च मुद्रास्फीति की वर्तमान स्थिति में, मौद्रिक नीति के पास संवृद्धि की इन विपरीत परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया देना संभव नहीं है। वास्तव में, यह लगभग स्वयंसिद्ध है कि मौद्रिक कार्रवाई केवल मांग को कम करके ही मुद्रास्फीति को कम कर सकती है। तथापि, नीति निर्माताओं को टर्मिनल नीतिगत दर को ओवरशूट करने और इस तरह मुद्रास्फीति को लक्ष्य तक ले जाने के लिए जितनी आवश्यकता है, उससे कहीं अधिक हद तक अर्थव्यवस्था को धीमा करने के प्रति सतर्क रहना चाहिए।

43. मेरे विचार में, फरवरी की बैठक के बाद से जोखिमों का संतुलन मुद्रास्फीति की ओर थोड़ा सा अंतरित हो गया है, लेकिन वर्तमान में सबसे अच्छा अनुमान यह है कि ओवरनाइट ब्याज दर की 315 आधार अंक (3.35% की प्रतिवर्ती रेपो दर से 6.50% की रेपो दर) की प्रभावी सख्ती मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लाने के लिए पर्याप्त होगी। अतः, मैं इस बैठक में नीतिगत दर को अपरिवर्तित रखने के पक्ष में वोट करता हूं।

44. रुख की ओर आते हुए, मैं यह स्वीकार करता हूँ कि मैं इसका अर्थ समझने में विफल रहा। एमपीसी में मेरे सहयोगियों ने मुझे विश्वास दिलाया कि इसकी भाषा बाजार सहभागियों और अन्य लोगों के लिए बिल्कुल स्पष्ट है। यह हो सकता है कि मैं अकेला व्यक्ति हूं जिसे इसे समझने में कठिनाई हो रही है। लेकिन मैं इस साधारण तथ्य, कि फरवरी 2019 में पिछले सुलभता चक्र की शुरुआत में प्रचलित रेपो दर को 6.50% के स्तर तक पहले ही बढ़ा दिया गया है, अतः आगे कोई "निभाव को वापस लेना" शेष नहीं है, के साथ रुख की भाषा से सामंजस्य करने में असमर्थ हूं। यह निश्चित रूप से संभव है कि और सख्ती करनी पड़े, लेकिन यह कल्पना के किसी भी खंड द्वारा "निभाव को वापस लेना" नहीं होगा।

45. एक व्याख्या जो प्रस्तुत की गई है वह यह है कि हाल ही में प्रकाशित मुद्रास्फीति दर का उपयोग करके मापी गई वास्तविक ब्याज दर में और वृद्धि करने की आवश्यकता है। यह निस्संदेह सत्य है, लेकिन मौद्रिक नीति को रियर व्यू मिरर देखकर संचालित नहीं किया जाना चाहिए। वास्तविक ब्याज दर को 3-4 तिमाही आगे की अनुमानित मुद्रास्फीति दर के सापेक्ष मापा जाना चाहिए, और, अभी जैसी स्थिति है, सही ढंग से मापी गई वास्तविक ब्याज दर में और वृद्धि पर चर्चा का बहुत कम आधार है। इसके अलावा, भले ही वास्तविक ब्याज दर की त्रुटिपूर्ण परिभाषा को स्वीकार कर लिया जाए, इस वास्तविक दर में अनुमानित वृद्धि के लिए एमपीसी द्वारा किसी भी कार्रवाई की आवश्यकता नहीं होगी; यह कम होती मुद्रास्फीति दर और अपरिवर्तित नीतिगत दर के यांत्रिक परिणाम के रूप में होगा। और मुद्रास्फीति की दर में अनुमानित गिरावट एमपीसी द्वारा पहले ही किए गए कार्यों का परिणाम होगी, न कि आने वाले महीनों में यह क्या करेगी।

46. मैं अपना नाम किसी ऐसे रुख पर नहीं रख सकता जिसे मैं समझ भी नहीं सकता। साथ ही, यह स्पष्ट है कि मुद्रास्फीति के विरुद्ध युद्ध अभी तक जीता नहीं गया है, और इस सख्ती चक्र को समाप्त करने की घोषणा करना अपरिपक्व होगा। जिन नए जोखिमों को मैंने पहले अपने वक्तव्य में रेखांकित किया है, उनके समक्ष सतर्कता बढ़ाने की आवश्यकता है। इन कारणों से, मैं संकल्प के इस हिस्से पर असहमति जताने से बचता हूं और स्वयं को इस पर आपत्ति जताने तक ही सीमित रखता हूं।

डॉ. राजीव रंजन का वक्तव्य

47. मैं वहीं से शुरू करता हूं जहां से मैंने फरवरी 2023 के अपने आखिरी कार्यवृत्त समाप्त किए थे: "आगे बढ़ते हुए, संचयी दर वृद्धि के प्रभाव का मूल्यांकन, विशेष रूप से बैंक आधारित अर्थव्यवस्था में उच्च नीति संचरण को देखते हुए महत्वपूर्ण हो जाएगा"। उस आकलन के अनुरूप और नई जानकारी के मद्देनजर जो उपलब्ध हो गई है, मैं आज की बैठक में विराम देने के लिए वोट करता हूं।

48. सबसे पहले, दुनिया भर में अनिश्चितता प्रतिकूल प्रवृत्ति (क्रॉस करंट) जारी है। हाल के दिनों में सामने आई चुनौतियों ने अत्यधिक अनिश्चितता में मौद्रिक नीति के संचालन के बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए हैं। अर्थव्यवस्था में अप्रत्याशितता की प्रवृत्ति, निकट अवधि में मात्रात्मक जोखिमों से लेकर लंबी अवधि के क्षितिज पर अज्ञात नाइटियन अनिश्चितता (नाइट, 1921)7 तक गहरी चलती है। इन अनिश्चितताओं का सामना करते हुए, मौद्रिक नीति का 'विज्ञान' - जो एक दूरंदेशी और नियम-आधारित दृष्टिकोण (क्लेरिडा, गली और गर्टलर, 1999)8 पर आधारित है - को मौद्रिक नीति की 'कला' के साथ मिश्रित किया जाना चाहिए, जो डेटा-केंद्रित हो और नीति निर्माताओं के विवेकपूर्ण निर्णय पर आधारित हो। ऐसे समय में नीति निर्माण के लिए एक अच्छा मार्गदर्शक है, सावधानी से चलना (ऑर्फेनाइड्स, 2003)।9 ईसीबी के तत्कालीन अध्यक्ष मारियो ड्रैगी ने कहा है, "एक अंधेरे कमरे में आप छोटे कदमों से आगे बढ़ते हैं।”10 मेरा मानना है कि घरेलू और वैश्विक स्थिति के अनुसार मौद्रिक नीति अच्छी तरह से सुविचारित की गई है, फिर भी हम वर्तमान में इस मोड़ पर उचित रूप से फ्रंट-लोडेड दर कार्रवाई की पृष्ठभूमि में रुकने के लिए तैयार हैं।

49. दूसरा, घरेलू मोर्चे पर कुछ स्पष्ट सकारात्मक संकेत दिखाई दे रहे हैं। मुद्रास्फीति की उम्मीदें धीरे-धीरे कम हो रही हैं, घरेलू संवृद्धि की गति मजबूत बनी हुई है और भारत अब तक वैश्विक बैंकिंग संकट से अछूता है।

50. तीसरा, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जनवरी-फरवरी 2023 की उच्च मुद्रास्फीति की रीडिंग में अनाज के उपचार के संबंध में सांख्यिकीय प्रभाव के लिए काफी शोर था।11

51. चौथा, हालांकि वर्तमान में मुद्रास्फीति सुविधा क्षेत्र से ऊपर बनी हुई है, भविष्य में आशावाद बने रहने के कारण हैं। फरवरी की गर्मी की लहर और मार्च की बेमौसम बारिश से केवल कुछ स्थानीय प्रभाव पड़ने की उम्मीद है, जिससे कुल मिलाकर अच्छी रबी फसल की संभावना बढ़ जाती है। मार्च महीने के लिए उच्च आवृत्ति वाले खाद्य मूल्य संकेतक पहले से ही गेहूं की कीमतों में गिरावट का संकेत दे रहे हैं। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय खाद्य कीमतों में मार्च 2022 में अपने चरम से फरवरी 2023 में लगभग 19 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जो उपयुक्त व्यापार नीतियों के माध्यम से महत्वपूर्ण आयात पर निर्भर खाद्य पदार्थों की लागत कम करने में मदद कर सकती है। वैश्विक धातु और औद्योगिक इनपुट कीमतों में भी मार्च 2022 के अपने चरम स्तर से महत्वपूर्ण सुधार देखा गया है, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष भर में मुख्य मुद्रास्फीति के दबावों में नरमी आ सकती है, हालांकि वह एक लंबे तरीके से होगी। प्रमुख कारक जो 2023-24 में मुद्रास्फीति की गति को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकते हैं, वे हैं जलवायु संबंधी, दूध और अस्थिर कच्चे तेल की कीमतों जैसे महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थों में संरचनात्मक मांग-आपूर्ति असंतुलन। वर्तमान में, इस बात को लेकर काफी अनिश्चितता है कि वर्षभर ये आयोजन कैसे होंगे; इसलिए, प्रतीक्षा करें और देखें का दृष्टिकोण एक बेहतर कार्यनीति हो सकती है।

52. पांचवां, हालांकि मुख्य सीपीआई मुद्रास्फीति (खाद्य और ईंधन को छोड़कर) स्थिर और उच्च बनी हुई है, फरवरी में मामूली नरमी के संकेत हैं, जो कि विभिन्न अन्य अपवर्जन के साथ-साथ अंतर्निहित मुद्रास्फीति के कम औसत उपायों में भी देखा गया था। मुख्य सीपीआई की माह-दर-माह (एमओएम) मौसमी रूप से समायोजित वार्षिक दर (एसएएआर) भी दिसंबर 2022 में लगभग 6 प्रतिशत से फरवरी 2023 में लगभग 5 प्रतिशत तक धीमी हो गई है। इसके अलावा, फरवरी के लिए हेडलाइन सीपीआई प्रसार सूचकांक, हालांकि कीमतों के विस्तार का संकेत देते हैं, साथ ही यह भी दिखा रहा है कि जुलाई 2022 के बाद पहली बार, सीपीआई टोकरी में 6 प्रतिशत (एसएएआर) से कम की कीमतों में वृद्धि हुई है। मुख्य सीपीआई के लिए प्रसार सूचकांक जिसमें पेट्रोल, डीजल, स्वर्ण और चांदी भी शामिल नहीं है, ने भी नवंबर 2022 से 6 प्रतिशत (एसएएआर) से कम दरों पर मूल्य विस्तार का संकेत दिया है। रिज़र्व बैंक के नवीनतम सर्वेक्षण से पता चली नरम घरेलू मुद्रास्फीति की उम्मीदें आश्वासन प्रदान करती हैं कि मुद्रास्फीति पर दूसरे क्रम के प्रभाव भी कमजोर रहेंगे।

53. छठी, नई आने वाली जानकारी से पता चलता है कि 2023-24 के लिए संवृद्धि दृष्टिकोण में सुधार हुआ है, निवेश पुनरुद्धार के साथ-साथ बाहरी मांग में कमी के साथ-साथ और अधिक मजबूत होने की संभावना है। बुनियादी ढांचे के व्यय पर सरकार का निरंतर ध्यान निजी निवेश में भी वृद्धि करेगा और संवृद्धि का समर्थन करेगा।12

54. सातवां, मौद्रिक नीति के सामान्यीकरण के पिछले एक वर्ष के दौरान, मौद्रिक नीति का परिचालन लक्ष्य लगभग 320 आधार अंकों तक बढ़ गया है, जिसका प्रभाव अभी पूरी तरह से घरेलू समष्टि आर्थिक कुल राशि (एग्रीगेट्स) तक पहुंचाना शेष है। वित्तीय बाजारों में बढ़ती गहराई और तरलता की पृष्ठभूमि में, मौद्रिक नीति के लंबे और परिवर्तनशील अंतराल हाल के वर्षों में कम हो सकते हैं, जो बेहतर संचार के पूरक उपकरणों, आगे के मार्गदर्शन और तुलन-पत्र नीतियों द्वारा समर्थित हैं। बाहरी बेंचमार्क उधार दर (ईबीएलआर) में बदलाव एक अतिरिक्त कारक है जिसने संचरण की गति को तेज कर दिया है। इन परिस्थितियों में, मौद्रिक नीति को सख्त करने के लिए विवेकपूर्ण ढंग से सुविचारित करने की आवश्यकता है।

55. आठवां, वास्तविक नीतिगत दरें चाहे प्रत्याशित हों या यथार्थ, चाहे हेडलाइन या मुख्य मुद्रास्फीति पर आधारित हों, अब सकारात्मक हैं और हमारे अनुमानित मुद्रास्फीति पथ को देखते हुए और बढ़ने की उम्मीद है।13

56. इसके बावजूद, मैं बता दूं कि यह एक 'प्रतीक्षा करें और देखें' विराम है। यह न तो 'समय से पहले' विराम है और न ही 'स्थायी'। 'समय से पहले' नहीं क्योंकि हमने पहले 5 महीनों के दौरान लगभग 190 बीपीएस की फ्रंटलोडेड दर कार्रवाई के साथ लगभग एक वर्ष में नीतिगत दर में 250 बीपीएस की वृद्धि की है। 'स्थायी' नहीं है क्योंकि 4 प्रतिशत के लक्ष्य की ओर मुद्रास्फीति में कोई स्थायी गिरावट अभी भी दूर है।14 इसलिए, मैं निभाव वापस लेने के अपने रुख को जारी रखने के लिए वोट करता हूं। भविष्य में मुद्रास्फीति सामान्य रहने की उम्मीद के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था की अंतर्निहित शक्ति और लचीलापन हमारे कार्यों के प्रति विश्वास को प्रेरित करता है।

डॉ. माइकल देवब्रत पात्र का वक्तव्य

57. भारत में आर्थिक गतिविधियों की गति व्यापक हो रही है, और सुस्ती को खींचा जा रहा है। अंतर्निहित मूल्य निर्माण इंगित करता है कि मांग दबाव मजबूत बना हुआ है, विशेष रूप से संपर्क-गहन सेवाओं के लिए। इसलिए, मुद्रास्फीति उच्च और सामान्य बनी हुई है; और, जैसा कि मैंने एमपीसी की फरवरी 2023 की बैठक के समय कहा था, यह भारतीय अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण के लिए सबसे बड़ा जोखिम है।

58. अनुभव के सबक और अनुभवजन्य साक्ष्य निर्विवाद रूप से दिखाते हैं कि मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत से ऊपर है - जैसा कि 2022-23 के दौरान हुआ है – संवृद्धि के लिए प्रतिकूल रूप से हानिकारक है। यह पहले से ही निजी उपभोग व्यय में गिरावट और कॉर्पोरेट क्षेत्र में बिक्री संवृद्धि में कमी के रूप में दिखाई दे रहा है, जो बदले में, नए निवेश को बाधित कर रहा है। मेरे विचार से, 2023-24 के लिए 6.5 प्रतिशत की वास्तविक जीडीपी संवृद्धि के बेसलाइन अनुमान को बजटीय पूंजीगत व्यय से लाभ मिलेगा; हालाँकि, इस लाभ को मुद्रास्फीति के कारण गंवाना नहीं चाहिए। वर्तमान गणना के अनुसार, मुद्रास्फीति का भविष्य का मार्ग कई आपूर्ति झटकों के प्रति संवेदनशील है। एमपीसी को तदनुसार हाई अलर्ट पर रहना चाहिए और यदि जोखिम दोनों पक्षों की प्रतिबद्धता: मूल्य स्थिरता और संवृद्धि के लिए तेज हो जाता है तो पहले से अधिकृत कार्रवाई के लिए तैयार रहना चाहिए।

59. मौद्रिक नीति को निभाव को वापस लेने के लिए डटे रहना चाहिए। मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत के लक्ष्य के साथ संरेखित करने के अपने संकल्प में नीति का रुख अवस्फीतिकारी और अटूट रहना चाहिए। अब तक की मौद्रिक नीति के संचयी कड़ेपन का मूल्यांकन करते हुए मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र के लिए भविष्य के झटकों का अनुमान लगाना विवेकपूर्ण है। बैंक ऋण संवृद्धि पहले से ही पिछली मौद्रिक नीति कार्रवाइयों के पास-थ्रू को दर्शाती है, हालांकि यह अर्थव्यवस्था में अंतर्निहित गतिविधि की गति के सापेक्ष मजबूत बनी हुई है, और वित्तीय स्थितियां आम तौर पर संवृद्धि के लिए सहायक होती हैं।

60. मेरे इस बैठक में विराम के लिए वोट करने के साथ समष्टि आर्थिक दृष्टिकोण के चल रहे आकलन से मौद्रिक नीति को लगातार कार्रवाई के साथ अधिक प्रतिबंधात्मक रुख की ओर फिर से सुविचारित किया जा सकता है बशर्ते मुद्रास्फीति के प्रक्षेपवक्र के जोखिम को अमल में लाया जाए और लक्ष्य के साथ इसके संरेखण को बाधित किया जाए। मुद्रास्फीति को लक्ष्य पर वापस लाने की प्रक्रिया धीरे-धीरे और असमान हो सकती है, लेकिन मौद्रिक नीति का मिशन, दूसरे दौर के प्रभावों को नियंत्रित करते हुए और मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं को स्थिर करते हुए संभावित बाधाओं के माध्यम से इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाना है।

श्री शक्तिकान्त दास का वक्तव्य

61. फरवरी 2023 में एमपीसी की पिछली बैठक के बाद से, वैश्विक आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय बदलाव आया है। जबकि भू-राजनीति और उच्च मुद्रास्फीति के मुद्दों ने संभावना को प्रभावित करना जारी रखा है, अटलांटिक के दोनों किनारों पर बैंकिंग क्षेत्र की उथल-पुथल के उद्भव और ओपेक+ देशों द्वारा तेल उत्पादन में अचानक कटौती की घोषणा ने वैश्विक संभावना को और भी अनिश्चित बना दिया है। वैश्विक मुद्रास्फीति कम हो रही है, लेकिन धीमी गति से। सेंट्रल बैंक एक रनवे का सामना कर रही हैं जो सॉफ्ट-लैंडिंग के लिए संकरा और ऊबड़-खाबड़ होता जा रहा है।

62. इस पृष्ठभूमि पर, भारत में मुद्रास्फीति नवंबर-दिसंबर 2022 के दौरान अस्थायी राहत के बाद जनवरी-फरवरी 2023 के दौरान 6 प्रतिशत की ऊपरी सहन-सीमा को पार कर गई। आगे चलकर, 2023-24 के लिए मुद्रास्फीति का अनुमान औसतन 5.2 प्रतिशत की कमी का संकेत दे रहा है। ऐसा अनुमान है कि इस अपस्फीति को लाने के लिए घरेलू और वैश्विक दोनों कारक प्रभावी होंगे। हाल की बेमौसम बारिश के बावजूद रबी की फसल को लेकर बेहतर आशावाद है। यह रबी खाद्य फसलों, विशेष रूप से गेहूं पर कीमतों के दबाव को काफी हद तक कम कर सकता है। इसके अलावा, खाद्य तेलों की कीमतों में कमी आई है। एक वर्ष पहले के अपने चरम स्तर से वैश्विक कमोडिटी की कीमतों में नरमी, विनिर्मित वस्तुओं और सेवाओं के लिए कम इनपुट लागत दबाव में तब्दील हो रही है। इसके परिणामस्वरूप आगे चलकर मुख्य मुद्रास्फीति में कुछ नरमी आ सकती है। बहरहाल, समग्र स्थिति गतिशील बनी हुई है और तेजी से विकसित हो रही है। मानसून पर स्पष्टता आने वाले महीनों में उपलब्ध होगी। मांग-आपूर्ति के तंग संतुलन और उच्च चारा लागत के कारण दूध की कीमतें कम गर्मी के मौसम में स्थिर रह सकती हैं। अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ती अनिश्चितता पर भी कड़ी निगरानी की आवश्यकता है।

63. इसी प्रकार, 2022-23 की चौथी तिमाही में घरेलू संवृद्धि आवेग सुदृढ़ बने रहे। आगे देखते हुए, सरकार द्वारा अवसंरचना व्यय पर जोर देने से निवेश गतिविधि को समर्थन मिलेगा। निवल बाह्य मांग का कर्षण (ड्रैग) कम हो रहा है। कुल मिलाकर, आर्थिक गतिविधियों के विस्तार और बाहरी क्षेत्र की क्षमता ने हमें मुद्रास्फीति पर स्थिर रूप से ध्यान केंद्रित करने का अवसर दिया है।

64. हमने मई 2022, जब हमने वर्तमान दर वृद्धि चक्र शुरू किया था, से लगातार नीतिगत रेपो दर में 250 आधार अंकों की वृद्धि की है। स्थिर दर प्रतिवर्ती रेपो दर से 40 आधार अंकों से अधिक की दर पर स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) की शुरूआत के साथ, प्रभावी दर वृद्धि 290 आधार अंक हो जाती है। अग्रानुक्रम में, हमारे बाजार परिचालन ने अधिशेष चलनिधि को सुव्यवस्थित तरीके से नियंत्रित किया है। इन कार्रवाइयों को अन्य अल्पकालिक दरों के साथ सामूहिक रूप से भारित औसत मांग मुद्रा दर (डब्ल्यूएसीआर), मौद्रिक नीति के परिचालन लक्ष्य, में अंतरित कर दिया गया है।

65. पिछले एक वर्ष में हमारी मौद्रिक नीति कार्रवाइयों का संचयी प्रभाव अभी भी सामने आ रहा है और इसकी बारीकी से निगरानी करने की आवश्यकता है। 2023-24 के लिए मुद्रास्फीति के नरम होने का अनुमान है, लेकिन लक्ष्य के प्रति अवस्फीति धीमी और प्रलंबित रहने की संभावना है। 2023-24 कि चौथी तिमाही में 5.2 प्रतिशत पर अनुमानित मुद्रास्फीति अभी भी लक्ष्य से काफी ऊपर होगी। इसलिए, इस समय, हमें मुद्रास्फीति में एक टिकाऊ कमी लाने पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा और साथ ही अपने पिछले कार्रवाइयों के प्रभाव की निगरानी के लिए खुद को कुछ समय देना होगा। इसलिए, मेरा विचार है कि हम एमपीसी की इस बैठक में एक सुनियोजित विराम लगाते हैं। तदनुसार, मैं दर कार्रवाई में ठहराव और निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो, के लिए वोट करता हूँ। यह एक सुनियोजित ठहराव है न कि प्रधान आधार या नीतिगत दिशा में बदलाव। हम प्राप्त होने वाली सभी सूचनाओं की निगरानी करना जारी रखेंगे और बदलते आर्थिक संभावना का अग्रगामी मूल्यांकन करेंगे तथा यदि आवश्यक हो, तो कार्रवाई के लिए तैयार रहेंगे। मुद्रास्फीति के विरुद्ध हमारी लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई है और हमें मध्यावधि में मुद्रास्फीति को लक्ष्य के करीब लाने के अपने प्रयासों को जारी रखना होगा।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2023-2024/88


1 https://www.iima.ac.in/sites/default/files/2023-04/February 2023 results.pdf.

2 गोयल, ए. 2023. 'लेसन फ्रॉम आउटपरफॉर्मेंस इन द इंडियन फाइनेंशियल सेक्टर।' आईजीआईडीआर वर्किंग पेपर सं. WP-2023-002। http://www.igidr.ac.in/pdf/publication/WP-2023-002.pdf पर उपलब्ध।

3 खुंद्रकपम, जे.के. और आर. जैन. 2012. 'मॉनेटरी पॉलिसी ट्रांसमिशन इन इंडिया: ए पीप इनसाइड द ब्लैक बॉक्स', आरबीआई वर्किंग पेपर शृंखला सं. 11। /en/web/rbi/-/publications/rbi-wps-depr-11-2012-monetary-policy-transmission-in-india-a-peep-inside-the-black-box-14326 पर उपलब्ध।

4 मोगोर, बी. 2023. 'रिलेटिव इफेक्टिवनेस ऑफ मॉनेटरी पॉलिसी ट्रांसमिशन चैनल्स: एविडेंस फ्रॉम इंडिया', आईजीआईडीआर एम.फिल. लघु शोध, 31 मार्च।

5 गोयल, ए. और परब, पी. 2023. 'वर्किंग ऑफ एक्सपेक्टेशंस चैनल ऑफ मॉनेटरी पॉलिसी इन इंडिया।' जर्नल ऑफ इंटरनेशनल कॉमर्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी, 14(1): 1-38।

6 गोयल, ए. और ए. कुमार। 2018. एक्टिव मोनेटरी पालिसी एंड दि स्लोडाउन: एविडेंस फ्रॉम डीएसजीई बेस्ड इंडियन एग्रीगेट डिमांड एंड सप्लाई’। द जर्नल ऑफ़ इकोनॉमिक एसिमेट्रीज़। 17: 21-40। जून। डीओआई: https://doi.org/10.1016/j.jeca.2018.01.001.

7 https://archive.org/details/riskuncertaintyp00knigrich

8 https://www.aeaweb.org/articles?id=10.1257/jel.37.4.1661

9 ओरफेनाइड्स, ए। (2003)। मॉनेटरी पॉलिसी इवैलुएशन विथ नोइजी इन्फोर्मेशन। जर्नल ऑफ मॉनेटरी इकोनॉमिक्स, 50(3), 605-631.

10 https://www.ecb.europa.eu/press/pressconf/2019/html/ecb.is190307~de1fdbd0b0.en.html

11 जनवरी 2023 से, जिन राज्यों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के अंतर्गत चावल और गेहूं की कीमतों को शून्य कर दिया गया था, वहां अनाज समूह में अन्य वस्तुओं के लिए इन शून्य मूल्य वाली पीडीएस वस्तुओं के सीपीआई भार का पुनर्वितरण किया गया था। बढ़ती बाजार कीमतों के बीच ऐसी बाजार कीमत वाली वस्तुओं के लिए उच्च भारिता ने अनाज में प्रकाशित मुद्रास्फीति दर को तेजी से बढ़ाया (दास, पी. और ए.टी. जॉर्ज (2023), उपभोक्ता मूल्य सूचकांक: एकत्रीकरण विधि मायने रखती है, भारतीय रिजर्व बैंक बुलेटिन, मार्च)।

12 निजी निवेश पर सार्वजनिक निवेश गुणक और वास्तविक जीडीपी तीन वर्ष की अवधि में क्रमशः 1.2 और 1.7 पर एक से अधिक पाया गया है [मौद्रिक नीति रिपोर्ट (एमपीआर), अप्रैल 2023]।

13 कृपया मेरे फरवरी 2023 के कार्यवृत्त का संदर्भ लें, ... छोटी सकारात्मक वास्तविक दरों ने दर वृद्धि को कम करने के लिए पर्याप्त तर्क दिया था, हालांकि यह रुकने के लिए पर्याप्त नहीं था।

14 2023-24 की अंतिम-तिमाही तक भी मुद्रास्फीति का अनुमान 5.2 प्रतिशत है। इसके अलावा, एमपीआर अप्रैल 2023 के अनुसार 2024-25 के लिए औसत 4.5 प्रतिशत है।

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