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मौद्रिक नीति समिति की 6-8 फरवरी 2023 के दौरान हुई बैठक का कार्यवृत्त

22 फरवरी 2023

मौद्रिक नीति समिति की 6-8 फरवरी 2023 के दौरान हुई बैठक का कार्यवृत्त
[भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45ज़ेडएल के अंतर्गत]

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45जेडबी के तहत गठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की इकतालीसवीं बैठक 6-8 फरवरी 2023 के दौरान आयोजित की गई थी।

2. बैठक में सभी सदस्य – डॉ. शशांक भिड़े, माननीय वरिष्ठ सलाहकार, नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च, दिल्ली; डॉ. आशिमा गोयल, अवकाश प्राप्त प्रोफेसर, इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च, मुंबई; प्रो. जयंत आर. वर्मा, प्रोफेसर, भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद; डॉ. राजीव रंजन, कार्यपालक निदेशक (भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडबी (2) (सी) के अंतर्गत केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित रिज़र्व बैंक के अधिकारी); डॉ. माइकल देवब्रत पात्र, मौद्रिक नीति के प्रभारी उप गवर्नर उपस्थित रहें और इसकी अध्यक्षता श्री शक्तिकान्त दास, गवर्नर द्वारा की गई।

3. भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडएल के अनुसार, रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति समिति की प्रत्येक बैठक के चौदहवें दिन इस बैठक की कार्यवाहियों का कार्यवृत्त प्रकाशित करेगा जिसमें निम्नलिखित शामिल होगा:

  1. मौद्रिक नीति समिति की बैठक में अपनाया गया संकल्प;

  2. उक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर मौद्रिक नीति के प्रत्येक सदस्य को प्रदान किया गया वोट; और

  3. उक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर धारा 45ज़ेडआई की उप-धारा (11) के अंतर्गत मौद्रिक नीति समिति के प्रत्येक सदस्य का वक्तव्य।

4. एमपीसी ने रिज़र्व बैंक द्वारा उपभोक्ता विश्वास, परिवारों की मुद्रास्फीति प्रत्याशा, कॉर्पोरेट क्षेत्र के प्रदर्शन, ऋण की स्थिति, औद्योगिक, सेवाओं और आधारभूत संरचना क्षेत्रों के लिए संभावनाएं और पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के अनुमानों का आकलन करने के लिए किए गए सर्वेक्षणों की समीक्षा की। एमपीसी ने इन संभावनाओं के विभिन्न जोखिमों के इर्द-गिर्द स्टाफ के समष्टि आर्थिक अनुमानों और वैकल्पिक परिदृश्यों की विस्तृत रूप से भी समीक्षा की। उपर्युक्त पर और मौद्रिक नीति के रुख पर व्यापक चर्चा करने के बाद एमपीसी ने संकल्प अपनाया जिसे नीचे प्रस्तुत किया गया है।

संकल्प

5. वर्तमान और उभरती समष्टि-आर्थिक परिस्थिति का आकलन करने के आधार पर मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आज (8 फरवरी 2023) अपनी बैठक में यह निर्णय लिया है कि:

  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत नीतिगत रेपो दर को तत्काल प्रभाव से 25 आधार अंक बढ़ाकर 6.50 प्रतिशत कर दिया जाए।

परिणामस्वरूप, स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 6.25 प्रतिशत और सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.75 प्रतिशत हो गई है।

  • एमपीसी ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने का भी निर्णय लिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति आगे चलकर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के भीतर बनी रहे।

ये निर्णय, संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति को +/- 2 प्रतिशत के दायरे में रखते हुए 4 प्रतिशत का मध्यावधि लक्ष्य हासिल करने के अनुरूप है।

इस निर्णय में अंतर्निहित मुख्य विचार नीचे दिए गए विवरण में व्यक्त किए गए हैं।

आकलन

वैश्विक अर्थव्यवस्था

6. प्रतिकूल भू-राजनीतिक परिस्थिति के बने रहने और विश्व भर में केंद्रीय बैंकों द्वारा किए गए मौद्रिक नीति सख्ती के प्रभाव के बावजूद, हाल के महीनों में वैश्विक संवृद्धि की संभावना में सुधार हुआ है। बहरहाल, 2023 के दौरान वैश्विक संवृद्धि में गिरावट आने की उम्मीद है। मुद्रास्फीति, उच्च स्तरों से कुछ नरमी दिखा रही है, जो केंद्रीय बैंकों को दर संबंधी कार्रवाइयों के आकार और गति को कम करने के लिए प्रेरित कर रहा है। हालांकि, केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को अपने लक्ष्य के करीब लाने की अपनी प्रतिबद्धता दोहरा रहे हैं। बॉण्ड प्रतिफल अस्थिर बनी हुई है। अमेरिकी डॉलर अपने हालिया उच्च स्तर से नीचे आ गया है, और पिछली एमपीसी बैठक के बाद से इक्विटी बाज़ारों में बढ़ोत्तरी हुई है। प्रमुख उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) में कमजोर बाह्य मांग, संरक्षणवादी नीतियों की बढ़ती घटना, अस्थिर पूंजी प्रवाह और ऋण संकट, हालांकि, उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।

घरेलू अर्थव्यवस्था

7. 6 जनवरी 2023 को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी किए गए प्रथम अग्रिम अनुमान (एफ़एई) ने भारत के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की संवृद्धि को 2022-23 के लिए 7.0 प्रतिशत वर्ष-दर-वर्ष (व-द-व) रखा, जो कि निजी उपभोग और निवेश द्वारा संचालित था। आपूर्ति पक्ष पर, योजित सकल मूल्य (जीवीए), 6.7 प्रतिशत पर अनुमानित था।

8. उच्च आवृत्ति संकेतक यह बताते हैं कि 2022-23 की तीसरी और चौथी तिमाही में आर्थिक गतिविधि मजबूत रही है। 3 फरवरी 2023 तक की स्थिति के अनुसार रबी बुवाई का क्षेत्रफल पिछले वर्ष के क्षेत्रफल से 3.3 प्रतिशत अधिक था। औद्योगिक उत्पादन में अक्तूबर में 4.2 प्रतिशत तक की गिरावट के बाद नवंबर में 7.1 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई। विनिर्माण में क्षमता उपयोग अब अपने दीर्घकालिक औसत से ऊपर है। दिसंबर में बंदरगाह माल भाड़ा ट्रैफिक, ई-वे बिल और टोल कलेक्शन में तेजी रही। पिछले महीने की तुलना में कुछ नरमी के बावजूद जनवरी में विनिर्माण और सेवाओं के लिए क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) विस्तार में बना रहा।

9. मजबूत विवेकाधीन खर्च से घरेलू मांग को बनाए रखा गया है। जैसा कि बेहतर यात्री वाहनों की बिक्री और घरेलू हवाई यात्री यातायात में परिलक्षित होता है, शहरी मांग ने आघात-सहनीयता का प्रदर्शन किया है। ग्रामीण मांग में सुधार हो रहा है। निवेश गतिविधि धीरे-धीरे जोर पकड़ रही है। दिसंबर में तेल से इतर स्वर्ण से इतर आयात में बढ़ोत्तरी हुई। दूसरी ओर, कमजोर वैश्विक मांग के कारण वस्तुओं का निर्यात दिसंबर में संकुचित हुआ।

10. सब्जियों की कीमतों में दोहरे अंकों की अपस्फीति के कारण सीपीआई हेडलाइन मुद्रास्फीति, नवंबर में 5.9 प्रतिशत तक कम होने के बाद, दिसंबर 2022 में घटकर 5.7 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) हो गया। दूसरी ओर, अनाज, प्रोटीन आधारित खाद्य पदार्थों और मसालों में मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ा। मुख्य रूप से मिट्टी के तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण ईंधन मुद्रास्फीति में बढ़ोत्तरी हुई। स्वास्थ्य, शिक्षा और व्यक्तिगत देखभाल और प्रभावों में निरंतर मूल्य दबाव के कारण मूल सीपीआई (अर्थात्, खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई) मुद्रास्फीति दिसंबर में बढ़कर 6.1 प्रतिशत हो गई।

11. एलएएफ के अंतर्गत औसत दैनिक अवशोषण अक्तूबर-नवंबर में औसतन ₹1.4 लाख करोड़ से बढ़कर दिसंबर-जनवरी के दौरान ₹1.6 लाख करोड़ होने के कारण, समग्र चलनिधि अधिशेष में बनी हुई है। वर्ष-दर-वर्ष आधार पर, 27 जनवरी 2023 तक मुद्रा आपूर्ति (एम3) में 9.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि गैर-खाद्य बैंक ऋण में 16.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 27 जनवरी 2023 तक की स्थिति के अनुसार भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधियां 576.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर थीं।

संभावना

12. मुद्रास्फीति की संभावना मिश्रित है। जबकि रबी फसल, विशेष रूप से गेहूं और तिलहन के लिए, की संभावनाओं में सुधार हुआ है, लेकिन प्रतिकूल मौसमी घटनाओं का जोखिम बना हुआ है। कच्चे तेल सहित वैश्विक कोमोडिटी मूल्य संभावना, मांग की संभावनाओं से जुड़ी अनिश्चितताओं के साथ-साथ भू-राजनीतिक तनावों के कारण आपूर्ति में व्यवधान के जोखिमों के अधीन है। विश्व के कुछ हिस्सों में कोविड के कारण आवाजाही पर लगे प्रतिबंधों में ढील के कारण कमोडिटी की कीमतों पर ऊर्ध्वगामी दबाव का प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। आउटपुट मूल्य में इनपुट लागतों का निरंतर प्रभाव-अंतरण, विशेष रूप से सेवाओं में, मूल मुद्रास्फीति पर दबाव जारी रख सकता है। रिज़र्व बैंक के उद्यम सर्वेक्षण, विनिर्माण में इनपुट लागत और आउटपुट मूल्य दबावों में कुछ नरमी का संकेत करते हैं। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए और कच्चे तेल की औसत कीमत (भारतीय टोकरी) 95 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल मानते हुए, चौथी तिमाही में 5.7 प्रतिशत के साथ 2022-23 में मुद्रास्फीति 6.5 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया है। सामान्य मानसून के अनुमान पर, सीपीआई मुद्रास्फीति 2023-24 के लिए 5.3 प्रतिशत अनुमानित है, जोकि पहली तिमाही में 5.0 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.6 प्रतिशत तथा जोखिम समान रूप से संतुलित रहना अनुमानित है (चार्ट 1)।

13. कृषि और संबद्ध गतिविधियों की मजबूत संभावनाओं से ग्रामीण मांग को बढ़ावा मिलने की संभावना है। संपर्क-गहन क्षेत्रों में वापसी और विवेकाधीन खर्च से शहरी खपत को समर्थन मिलने की उम्मीद है। रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए सर्वेक्षण से पता चलता है कि कारोबार और उपभोक्ता, संभावना के बारे में आशावादी हैं। मजबूत ऋण संवृद्धि, आघात-सहनीय वित्तीय बाजार और पूंजीगत व्यय तथा अवसंरचना पर सरकार का निरंतर बल, निवेश के लिए एक अनुकूल वातावरण तैयार करता है। दूसरी ओर, निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव के साथ, वैश्विक गतिविधि में मंदी से बाह्य मांग में कमी आने की संभावना है। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2023-24 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि 6.4 प्रतिशत अनुमानित है, जोकि पहली तिमाही में 7.8 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 6.2 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6.0 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.8 प्रतिशत तथा जोखिम व्यापक रूप से संतुलित रहना अनुमानित है (चार्ट 2).

Chart1

14. पिछले दो महीनों में मुद्रास्फीति में कमी, सब्जियों में मजबूत अपस्फीति से प्रेरित थी, जो गर्मी के मौसम में तेजी के साथ समाप्त हो सकती है। सब्जियों को छोड़कर हेडलाइन मुद्रास्फीति ऊपरी सहन-सीमा बैंड से काफी ऊपर बढ़ रही है और विशेष रूप से उच्च कोर मुद्रास्फीति दबावों के साथ उच्च बनी रह सकती है। इसलिए, मुद्रास्फीति, संभावना के लिए एक बड़ा जोखिम बनी हुई है। राजकोषीय समेकन जारी रहने से निजी निवेश के लिए अवसर मिलने के बावजूद, केंद्रीय बजट 2023-24 में पूंजी और अवसंरचना व्यय पर सतत ध्यान देने से घरेलू आर्थिक गतिविधि के आघात-सहनीय बने रहने की उम्मीद है। भले ही, मई 2022 से नीतिगत रेपो दर में की गई बढ़ोत्तरी, सिस्टम में अपने तरीके से काम कर रही है, लेकिन फिर भी मुद्रास्फीति पर सतर्क रहना अनिवार्य है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह सहन-सीमा बैंड के भीतर बनी रहे और लक्ष्य के साथ उत्तरोत्तर संरेखित हो। कुल मिलाकर, एमपीसी का यह विचार है कि मुद्रास्फीति के अनुमानों को नियंत्रित करने, मूल मुद्रास्फीति की सततता को रोकने और इस तरह मध्यम अवधि की संवृद्धि संभावनाओं को मजबूत करने के लिए आगे चलकर सुविचारित मौद्रिक नीति कार्रवाई आवश्यक है। तदनुसार, एमपीसी ने नीतिगत रेपो दर को 25 आधार अंक बढ़ाकर 6.50 प्रतिशत करने का निर्णय लिया। एमपीसी ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने का भी निर्णय लिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति आगे चलकर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के भीतर बनी रहे।

15. डॉ. शशांक भिडे, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने नीतिगत रेपो दर को 25 आधार अंकों तक बढ़ाने के लिए वोट किया। डॉ. आशिमा गोयल और प्रो. जयंत आर. वर्मा ने रेपो दर में वृद्धि के विरुद्ध वोट किया।

16. डॉ. शशांक भिडे, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने के लिए वोट किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति आगे चलकर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के भीतर बनी रहे। डॉ. आशिमा गोयल, और प्रो. जयंत आर. वर्मा ने संकल्प के इस हिस्से के विरुद्ध वोट किया।

17. एमपीसी की बैठक का कार्यवृत्त 22 फरवरी 2023 को प्रकाशित किया जाएगा।

18. एमपीसी की अगली बैठक 3, 5 और 6 अप्रैल 2023 के दौरान निर्धारित है।

पॉलिसी रेपो दर को बढ़ाकर 6.50 प्रतिशत करने के संकल्प पर मतदान

सदस्य मत
डॉ. शशांक भिडे हाँ
डॉ. आशिमा गोयल नहीं
प्रो. जयंत आर. वर्मा नहीं
डॉ. राजीव रंजन हाँ
डॉ. माइकल देवब्रत पात्र हाँ
श्री शक्तिकान्त दास हाँ

डॉ. शशांक भिडे का वक्तव्य

19. दिसंबर 2022 की एमपीसी बैठक के दौरान की स्थिति के सापेक्ष मुद्रास्फीति और संवृद्धि के वर्तमान प्रक्षेपवक्र नवंबर से दिसंबर के दौरान देखी गई सीपीआई मुद्रास्फीति की गति में निरंतर सुधार को दर्शाते हैं और वित्त वर्ष 2022-23 के लिए अनुमानित संवृद्धि के संवेग को भी बनाए रखते हैं। तथापि, मुद्रास्फीति में देखा गया सुधार मुख्य रूप से कुछ खाद्य वस्तुओं के कारण है और नवंबर-दिसंबर 2022 के दौरान खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई वर्ष दर वर्ष आधार पर 6 प्रतिशत या उससे अधिक रहा। संवृद्धि के मोर्चे पर, वैश्विक उत्पादन संवृद्धि की गति में मंदी ने बाह्य मांग स्थितियों को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। जबकि विनिर्माण और सेवाओं दोनों के लिए गैर-खाद्य बैंक ऋण, जीएसटी संग्रह और पीएमआई जैसे संकेतक घरेलू मांग की निरंतर संवेग को दर्शाते हैं, 2022-23 की दूसरी छमाही में समग्र वर्ष दर वर्ष संवृद्धि पहली छमाही की तुलना में कम रहने की आशा है। अल्पावधि में संवृद्धि और मुद्रास्फीति के उभरते प्रक्षेपवक्र महत्वपूर्ण अनिश्चितता के अधीन हैं।

20. वित्त वर्ष 2022-23 के लिए एनएसओ द्वारा राष्ट्रीय आय का पहला अग्रिम अनुमान पिछले वर्ष की तुलना में वास्तविक जीडीपी वृद्धि को 7 प्रतिशत पर रखता है, जो एमपीसी की दिसंबर 2022 की बैठक के दौरान प्रदान किए गए आकलन से थोड़ा अधिक है। एनएसओ द्वारा वर्ष 2022-23 के लिए आर्थिक गतिविधि का पहला आधिकारिक अनुमान, पूरे वर्ष के दौरान उभरीं चुनौतियों का सामना करते हुए महामारी से पहले के वर्ष से निरंतर साधारण संवृद्धि की गति को दर्शाता है। निजी उपभोग व्यय, सकल स्थायी पूंजी निर्माण और वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर वृद्धि हुई, लेकिन 2021-22 की तुलना में धीमी गति से। वित्तीय वर्ष 2022-23 में संवृद्धि निष्पादन में मुख्य रूप से पहली तिमाही में 13.5 प्रतिशत की तीव्र वृद्धि और बाद की तीन तिमाहियों में 5.1 प्रतिशत की अपेक्षित औसत वृद्धि का योगदान था। तथापि, वर्ष में तिमाही-दर-तिमाही संवृद्धि की गति स्थिर रही है।

21. 2022 और 2023 के लिए विश्व उत्पादन संवृद्धि के आईएमएफ अनुमानों को अक्तूबर 2022 में मूल्यांकन की तुलना में जनवरी 2023 विश्व आर्थिक संभावना अद्यतन में ऊर्ध्वगामी संशोधित किया गया है। तथापि, 2023 में उत्पादन संवृद्धि दर 2022 में 3.4 प्रतिशत से घटकर 2.9 प्रतिशत होने और फिर 2024 में 3.1 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है। विश्व व्यापार की मात्रा की संवृद्धि में 2023 में तीव्र गिरावट और 2024 में वृद्धि का अनुमान है। आईएमएफ द्वारा 2023 और 2024 में कमोडिटी की कीमतों - ईंधन और गैर-ईंधन दोनों - में गिरावट का अनुमान है। आईएमएफ अद्यतन में यह भी नोट किया गया है कि अनुमानों के जोखिम निम्नतर संवृद्धि और उच्चतर मुद्रास्फीति के साथ अधोगामी हैं, लेकिन इसके अक्तूबर 2022 के आकलन की तुलना में कम हैं।

22. विश्व स्तर पर संवृद्धि की मंदी का भारत के बाह्य क्षेत्र पर प्रभाव रुपये के स्थिर मूल्य के संदर्भ में वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात और आयात की संवृद्धि की धीमी गति के रूप में अवलोकनीय था। अमेरिकी डॉलर मूल्य के संदर्भ में, व्यापारिक माल निर्यात संवृद्धि 2022-23 की तीसरी तिमाही में नकारात्मक थी। व्यापारिक माल आयात संवृद्धि, वर्ष-दर-वर्ष आधार पर, तीसरी तिमाही में तेजी से कम हुई, जो दिसंबर में नकारात्मक हो गई।

23. चूंकि बाह्य मांग की स्थिति कमजोर बनी हुई है, सकल मांग को बनाए रखने के लिए घरेलू संवृद्धि के आवेग आवश्यक हैं। एफएई, वर्ष 2022-23 में व्यापार, परिवहन, संचार और प्रसारण सेवाओं में 13.7 प्रतिशत की जीवीए संवृद्धि का संकेत देता है, जो सेवा क्षेत्र में समग्र रूप से 9.1 प्रतिशत की संवृद्धि प्रदान कर रहा है। इसके विपरीत, जीवीए के संदर्भ में उद्योग के 3 प्रतिशत से कम और विनिर्माण के 2 प्रतिशत से कम बढ़ने का अनुमान है। उद्योग के लिए, आईआईपी के संदर्भ में भी, 2022-23 में संवृद्धि निष्पादन में उतार-चढ़ाव रहा है। अक्तूबर में कमजोर संवृद्धि के बाद, पूंजीगत वस्तुओं और बुनियादी ढांचे / निर्माण वस्तुओं के लिए आईआईपी, नवंबर 2022 में वर्ष दर वर्ष आधार पर तेजी से बढ़ा। ऐसा ही पैटर्न अगस्त और सितंबर 2022 के दौरान देखा गया था। आईआईपी टिकाऊ और गैर-टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं में अगस्त 2022 से अक्तूबर 2022 के दौरान नकारात्मक वर्ष- दर- वर्ष संवृद्धि दर दर्ज की गई, जो नवंबर 2022 में बढ़ी। इस अर्थ में, एक संतुलित संवृद्धि निष्पादन के लिए विनिर्माण संवृद्धि में महत्वपूर्ण तेजी लाने की आवश्यकता होगी जिसके लिए विनिर्मित वस्तुओं की बढ़ती मांग की भी आवश्यकता होगी। 2023-24 के लिए केंद्रीय बजट अपने पूंजीगत व्यय में वृद्धि के साथ बुनियादी ढांचे के प्रमुख क्षेत्रों में पूंजी निर्माण को समर्थन प्रदान करेगा।

24. अग्रगामी आंकड़ों के संदर्भ में, जनवरी 2023 में किए गए उपभोक्ता विश्वास का आरबीआई सर्वेक्षण, उच्च व्यय, बेहतर सामान्य आर्थिक स्थितियों, रोजगार और आय की अपेक्षाओं से समर्थित एक वर्ष आगे की प्रत्याशा में सुधार को दर्शाता है। तथापि, व्यय की प्रवृत्ति सतर्क प्रतीत होती है, विशेष रूप से 'गैर-आवश्यक व्यय'। जबकि सर्वेक्षण के पिछले दौर की तुलना में 'आवश्यक वस्तुओं' पर अधिक व्यय करने की प्रत्याशा वाले नमूना परिवारों के अनुपात में वृद्धि हुई है, अब से एक वर्ष बाद नमूना परिवारों को 'गैर-आवश्यक व्यय' बढ़ाने या न बढ़ाने की प्रत्याशाओं पर समान रूप से विभाजित किया गया है। यह सतर्कता उच्च मुद्रास्फीति दर की प्रत्याशा से संबंधित प्रतीत होती है। एक वर्ष बाद की उपभोक्ता प्रत्याशाएँ वर्तमान परिस्थितियों की तुलना में उच्च मुद्रास्फीति दर की ओर इशारा करती हैं।

25. मध्य अक्तूबर से मध्य दिसंबर 2022 के दौरान भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए संभावना संबंधी उद्यम सर्वेक्षण, विनिर्माण और बुनियादी ढांचे के लिए 2022-23 की चौथी तिमाही की तत्काल अवधि में समग्र व्यापार स्थिति में सुधार को दर्शाता है, लेकिन सभी तीन खंडों के लिए तीसरी तिमाही में समग्र महत्वपूर्ण सुधार के बाद सेवाओं के लिए स्थिर है। 2023-24 की पहली दो तिमाहियों के लिए प्रत्याशाएँ मिश्रित हैं, विनिर्माण क्षेत्र के उद्यमों में प्रत्याशाएँ कम दिख रही हैं, जबकि सेवाओं और बुनियादी ढांचे के उद्यमों की प्रत्याशाएँ 2022-23 की चौथी तिमाही से अपरिवर्तित बनी हुई हैं। दिसंबर 2022 में किए गए उद्यमों के त्रैमासिक सर्वेक्षण के आधार पर एनसीएईआर-एनएसई कारोबार विश्वास सूचकांक1 वर्ष-दर-वर्ष आधार पर उच्चतर था, लेकिन 2022-23 की पहली और दूसरी तिमाही की तुलना में क्रमिक रूप से घटा।

26. नवंबर और दिसंबर 2022 में मुद्रास्फीति का पैटर्न सकल स्तर पर कीमतों के दबाव में कमी को दर्शाता है, लेकिन यह कमी मुख्य रूप से सब्जियों की कीमतों में तेज गिरावट के कारण हुई है। नवंबर और दिसंबर में हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत से नीचे आ गई। सीपीआई के 'खाद्य और पेय पदार्थ' घटक ने इन दो महीनों में 6 प्रतिशत से कम की वृद्धि दर्ज की, ईंधन और प्रकाश के लिए सीपीआई में दोहरे अंक की दर से वृद्धि हुई और खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई में 6 प्रतिशत या उससे अधिक की वृद्धि दर्ज की गई। मुद्रास्फीति दर में गिरावट की वर्तमान गति एक या दो वस्तु समूहों में मूल्य परिवर्तन के प्रति संवेदनशील बनी हुई है। खाद्य क्षेत्र के भीतर मुख्य कमोडिटी समूहों में, उनमें से कई में 6 प्रतिशत से ऊपर की वर्ष-दर-वर्ष मुद्रास्फीति दर दर्ज की गई है। सीपीआई में खाद्य और पेय समूह के आधे से अधिक भार वाले अनाज और उत्पाद, अंडे, दूध और उत्पाद, मसाले और तैयार भोजन तथा स्नैक्स की कीमतें दिसंबर 2022 में 6 प्रतिशत से अधिक की दर से बढ़ीं। सितंबर-दिसंबर 2022 के दौरान अनाज और उत्पाद दोहरे अंकों की वर्ष-दर- वर्ष दरों पर बढ़े। आईआईएम अहमदाबाद द्वारा मुख्य रूप से विनिर्माण फर्मों को शामिल करने वाले कारोबार मुद्रास्फीति प्रत्याशा सर्वेक्षण (बीआईईएस) ने अक्तूबर 2022 में 5.32 प्रतिशत की तुलना में दिसंबर 2022 में वर्ष-दर-वर्ष उपभोक्ता मुद्रास्फीति की एक वर्ष आगे की प्रत्याशा में 4.91 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की है। सर्वेक्षण में इकाई लागत के आधार पर एक वर्ष आगे की 'कारोबार मुद्रास्फीति' के आकलन की रिपोर्ट भी दी गई है, जो अक्तूबर 2022 में 4.70 प्रतिशत से कम होकर दिसंबर 2022 में 4.19 प्रतिशत थी। दोनों ही मामलों में, जून 2022 के बाद की अवधि में अनुमानित मुद्रास्फीति की दर में आम तौर पर गिरावट आई है।

27. आर्थिक गतिविधि के स्तर के विभिन्न संकेतकों के रुझान 2022-23 में 7 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि के एफएई को प्राप्त करने की ओर इशारा करते हैं। सख्त मौद्रिक नीति स्थितियों और रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते कमजोर वैश्विक संवृद्धि के कारण 2023-24 में लगभग 6.4 प्रतिशत की न्यूनतर संवृद्धि होगी, जिसका एमपीसी संकल्प में तिमाही विवरण प्रदान किया गया है। जनवरी 2023 में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं का सर्वेक्षण, वर्ष- दर- वर्ष आधार पर, वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 6.9 प्रतिशत की जीडीपी संवृद्धि दर और वित्त वर्ष 2023-24 के लिए 6.0 प्रतिशत का अनुमान करता है।

28. नवंबर और दिसंबर 2022 में हेडलाइन मुद्रास्फीति की दर 6 प्रतिशत से कम होने के बावजूद भी मुद्रास्फीति का दबाव बना हुआ है। सब्जियों की कीमतों में गिरावट, हेडलाइन मुद्रास्फीति दर में कमी के लिए मुख्य योगदानकर्ता, एक मौसमी विशेषता है, तथापि यह गिरावट समय पहले हुई है और सामान्य गिरावट से ज्यादा है। कई अन्य कमोडिटी की कीमतों का पैटर्न, जहां मूल्य वृद्धि तीव्र रही है, मूल्य स्थिरता के दृष्टिकोण से चिंता का विषय है। हेडलाइन मुद्रास्फीति में नरमी की निरंतर आधार पर आशा तभी की जा सकती है, जब सूचकांक के अधिकांश प्रमुख घटक 6 प्रतिशत अंक के भीतर आ जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी कीमतों जैसे बाह्य कारकों से कीमतों के मोर्चे पर राहत मिलने की आशा है; लेकिन इस लाभ का उपभोक्ता वर्ग तक प्रभाव विस्तार विनिमय दर में बदलाव और पेट्रोलियम ईंधन के घरेलू मूल्य निर्धारण से प्रभावित होगा। वित्त वर्ष 2022-23 और वित्त वर्ष 2023-24 के लिए हेडलाइन मुद्रास्फीति दर अब क्रमशः 6.5 प्रतिशत और 5.3 प्रतिशत पर अनुमानित है, जिसका तिमाही विवरण एमपीसी संकल्प में प्रदान किया गया है। इसकी तुलना में, जनवरी 2023 में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किया गया पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं का सर्वेक्षण वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 6.5 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2023-24 के लिए 5.1 प्रतिशत की हेडलाइन मुद्रास्फीति दर का अनुमान करता है।

29. इस स्तर पर मूल मुद्रास्फीति का उच्च स्तर पर बने रहना एक महत्वपूर्ण चिंता है। मुद्रास्फीति पर मांग पक्ष के दबाव को कम करना और संवृद्धि के संवेग को बनाए रखने के लिए विभिन्न हितधारकों की मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं को नीतिगत लक्ष्य के करीब लाना महत्वपूर्ण है।

30. तदनुसार, मैं (1) नीतिगत रेपो दर को 25 आधार अंक बढ़ाने के लिए और साथ ही (2) निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने के लिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति आगे चलकर संवृद्धि का समर्थन करते हुए लक्ष्य के भीतर बनी रहे के लिए वोट करता हूं।

डॉ. आशिमा गोयल का वक्तव्य

31. मुद्रास्फीति बढ़ने के बाद दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों को महामारी के समय में बड़ी कटौती को वापस लेने के लिए तेजी से दरें बढ़ानी पड़ीं। लेकिन उच्च मुद्रास्फीति सत्तर के दशक की तरह जारी नहीं रही, अतः दीर्घावधि की मुद्रास्फीति की प्रत्याशा काफी हद तक स्थिर रहीं। आपूर्ति श्रृंखलाओं का सामान्यीकरण, कमोडिटी की कीमतों में नरमी और वैश्विक मांग में गिरावट अधिकांश देशों में मुद्रास्फीति को नीचे ला रही है। आंकड़ों से परे 'उच्चतर लंबे समय तक' संबंधी यूएस फेड संचार उचित नहीं हो रहा और कुछ हद तक नरम हो गया है। ऐसा लगता है कि अर्थव्यवस्था अच्छी तरह से सख्त मजबूती से बची हुई है, क्योंकि बेहतर संवृद्धि ने उच्च दरों की भरपाई की है। बाज़ारों को गिराना नीतिगत संचरण प्राप्त करने का एक बहुत महंगा तरीका होगा। उभरते बाजारों (ईएम) की मुद्राओं पर दबाव और डॉलर में मजबूती से मुद्रास्फीति कम हुई है।

32. यद्यपि वैश्विक संवृद्धि की संभावनाओं में सुधार हुआ है, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मंदी जारी है। भारतीय निर्यात में दबाव के संकेत दिख रहे हैं। भारतीय पीएमआई नया निर्यात आदेश सूचकांक दिसंबर में 53.4 से गिरकर जनवरी में 51.2 हो गया। पीएमआई, विनिर्माण और सेवाओं दोनों के लिए भी कम हो गया है, तथापि यह 50 से ऊपर बना हुआ है। निजी निवेश में अभी भी बहाली के शुरुआती संकेत हैं, जो अभी तक एक दशक लंबी मंदी से बाहर नहीं आया है। भारतीय रिज़र्व बैंक उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण दिखाता है कि जहां उपभोक्ता विश्वास में सुधार हो रहा है, वहीं यह अभी भी 2019 के स्तर से नीचे है। चालू खाता घाटा भी स्थायी स्तरों की ओर कम हो रहा है।

33. हेडलाइन मुद्रास्फीति पूर्वानुमानों से कम हो गई, तथापि यह मुख्य रूप से सब्जियों की कीमतों में तेज क्षणिक गिरावट से प्रेरित थी। लेकिन लगता है कि कृषि लंबे समय तक बारिश के प्रति आघात-सहनीय रही है, जो उत्पादकता में सुधार की ओर इशारा करती है जो भविष्य के लिए भी शुभ संकेत है। अनाज से भिन्न विविधीकरण ने उत्पादन को कम अस्थिर कर दिया है। तथापि, यूक्रेन युद्ध के बाद अनाज की कीमत में आघात भारतीय मुद्रास्फीति को बढ़ाने वाला एक प्रमुख कारक रहा है। चारे की ऊंची कीमतें दूध की कीमतों को बढ़ा रही हैं। लेकिन सरकारी स्टॉक से बिक्री और अच्छी फसल की आशा से गेहूं की कीमतों में भी नरमी आ सकती है।

34. सरकार अपने घोषित राजकोषीय समेकन पथ पर बनी हुई है और बुनियादी ढांचे पर निरंतर प्रोत्साहन के साथ आपूर्ति का विस्तार करते हुए मांग में सरकारी योगदान को कम कर रही है। यह मुद्रास्फीति को कम करने के लिए आपूर्ति पक्ष के अन्य उपायों के साथ भी जारी है। ये उत्कृष्ट मौद्रिक-राजकोषीय समन्वय को सक्षम करते हैं जिसने मुश्किल समय में भारत के तुलनात्मक रूप से बेहतर निष्पादन में योगदान दिया है।

35. तथापि, यह कुछ और उत्पाद शुल्क कटौती का समय हो सकता है क्योंकि कई आपूर्ति आघातों ने मुद्रास्फीति को दृढ़ता प्रदान की है। भारत के उपभोक्ता मूल्य समूह में बड़े कमोडिटी घटक, और आपूर्ति बाधाओं के क्षेत्र, राजकोषीय कार्रवाई हेतु बेहतर प्रतिक्रिया देते हैं। हमारी सरकार ने इस तरह की कार्रवाई का महामारी काल में बहुत प्रभावी ढंग से उपयोग किया है। मुद्रास्फीति में अभी भी कई प्रशासित मूल्य घटक हैं और इसे प्राप्त करने के लिए सभी विनियामकों को मुद्रास्फीति लक्ष्य को आंतरिक करने की आवश्यकता है। यदि मुद्रास्फीति अपने सहन-स्तर के भीतर रहती है तो एमपीसी वास्तविक ब्याज दरों को कम रख सकती है ताकि संवृद्धि उच्च बनी रहे और सरकारी ऋण/ जीडीपी अनुपात को कम करने में योगदान दे सके।

36. भारतीय रिज़र्व बैंक की मुद्रास्फीति प्रत्याशा सर्वेक्षण, घटनाओं से अत्यधिक प्रभावित होने वाली घरेलू प्रत्याशा को दर्शाता है। अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतों में लगातार नरमी के प्रभाव विस्तार से वैश्विक अनिश्चितता के प्रतिकूल प्रभावों का मुकाबला करने और मुद्रास्फीति की प्रत्याशा को कम करने में मदद मिल सकती है। तेल विपणन कंपनियों को लागत वसूली पूरी करने के लिए पर्याप्त समय मिल चुका है।

37. चूंकि मुद्रास्फीति पर मजदूरी या मांग के कारण दूसरे दौर के प्रभावों के अभी भी बहुत कम संकेत हैं, तथापि, वर्ष के दौरान मूल मुद्रास्फीति नरम हो सकती है। कुछ मुख्य घटकों (परिवहन, वस्त्र और मनोरंजन और मनोरंजन सेवाओं) में उक्त संकेत हैं। चूंकि फर्मों को अंतरराष्ट्रीय निविष्टि लागत में कमी का लाभ मिला है और मांग भी कम हो रही है, इसलिए वे कीमतें बढ़ाने में संकोच कर सकती हैं। डब्ल्यूपीआई में फर्म स्तर की कीमतें शामिल हैं और डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति में भारी गिरावट आई है। जैसे-जैसे आक्रामक एमपीसी सख्ती का पूरी तरह से प्रभाव विस्तार होता है, इससे मांग में और कमी आएगी। बड़ी युवा आबादी द्वारा फ्लैट खरीदने और उन्हें ऋण पर सन्नद्ध करने के कारण भारत में आउटपुट की ब्याज लोच अधिक है।

38. वास्तविक दर पहले से ही सकारात्मक है और यदि मुद्रास्फीति घटती है तो इसके और भी अधिक होने की संभावना है। भारतीय रिज़र्व बैंक का वित्त वर्ष 2024 के लिए 5.3 प्रतिशत औसत मुद्रास्फीति का अनुमान, ऐसा वास्तविक ब्याज दर प्रदान करता है जो 6.25 प्रतिशत की रेपो दर के साथ लगभग समान है। यदि मुद्रास्फीति 95 डॉलर के तेल मूल्य पर आधारित प्रत्याशा से नीचे आती है तो यह इससे ऊपर जा सकता है, जो संवृद्धि पर दबाव के बावजूद नीति के सख्त होने के कारण चक्रीय रुख को जोखिम में डालेगा। नीति तब अति सूक्ष्म प्रतिचक्रीय रुख से दूर हो जाएगी जो हाल के बाहरी प्लूरी-आघातों को सुचारू करने में बहुत प्रभावी रही है। बाजार मुद्रास्फीति की प्रत्याशा भारतीय रिज़र्व बैंक की प्रत्याशा से कम हैं। ब्लूमबर्ग मतैक्य पूर्वानुमान 5 प्रतिशत है।

39. लगभग समान वास्तविक रेपो दर, चक्र के वर्तमान चरण के अनुकूल है। यह मुद्रास्फीति और संवृद्धि, बचतकर्ताओं और उधारकर्ताओं की परस्पर विरोधी अपेक्षाओं को भी अच्छी तरह से संतुलित करता है। यह अपेक्षित मुद्रास्फीति के साथ दरों में मामूली वृद्धि सुनिश्चित करता है, जैसा कि मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण में अपेक्षित है, लेकिन बड़ी मौद्रिक अस्थिरता को रोकता है। अनुसंधान से पता चलता है कि अस्थिरता को सीमित करना बेहतर है ताकि वास्तविक ब्याज और विनिमय दरें, जो वास्तविक क्षेत्र को प्रभावित करती हैं, उनके संतुलन मूल्यों से ज्यादा विचलित न हों2। मौद्रिक दरों की कुछ अस्थिरता वित्तीय स्थिरता के लिए अच्छी है, जब तक अस्थिरता सीमित है।

40. यूएस फेड में ज्यादा सुधार और बाद में कटौती की आशा है। लेकिन केवल अल्पकालिक बाज़ार सहभागी होते हैं जो अत्यधिक अस्थिरता और विनिमय और ब्याज दरों के ओवरशूटिंग से लाभान्वित होते हैं, जो वास्तविक क्षेत्र के साथ-साथ उन लोगों को भी नुकसान पहुंचाता है जो बुनियादी बातों के आधार पर बाजार में लेन-देन करते हैं।

41. जब फेड सख्ती कर रहा होता है, तो ईएम, जिनमें तीव्र मुद्रा मूल्यह्रास होता है, के लिए ब्याज दरें अधिक बढ़ जाती हैं। विदेशी मुद्रा बाजारों में मध्यक्षेप से रुपये की अस्थिरता कम हुई है और फेड के रुख से स्वतंत्र रहने की मदद मिली है। आरक्षित निधियों में भी बहाली हुई है। फेड कार्रवाई, बड़ी अतिरिक्त मांग, सख्त श्रम बाजारों और मुद्रास्फीति लक्ष्य से अभूतपूर्व विचलन के कारण है। भारत में यह स्थितियाँ नहीं हैं और उसके पास फेड का अनुसरण न करने की गुंजाइश है। इसकी शुरुआत उच्च मौद्रिक नीतिगत दरों से भी हुई।

42. यदि वास्तविक नीतिगत दर में तीव्र वृद्धि, जो काफी हद तक समान स्तर से ऊपर हो, निजी निवेश और संवृद्धि के निचले रुझान की ओर बदलाव को ट्रिगर करती है, तो अवस्फीति का त्याग अनुपात बहुत अधिक हो सकता है, जैसा कि 20103 में था। जब इस तरह के कई रास्ते मौजूद हों, तो वर्तमान में जरूरत से ज्यादा सख्ती से भविष्य में सुधार नहीं होता है। आपूर्ति की बाधाओं के बढ़ने से समय के साथ मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।

43. दर वृद्धि के अत्यधिक फ्रंट-लोडिंग में ओवर-शूटिंग का जोखिम होता है जिससे भारतीय संदर्भ में अप्रतिरोध्य कारणों से सबसे अच्छा बचा जाए: सबसे पहले, मांग को कम करने के लिए वास्तविक नीतिगत दरों को बढ़ाने से मुद्रास्फीति की तुलना में संवृद्धि पर अधिक प्रभाव पड़ता है4। दूसरा, चूंकि भारत में मौद्रिक संचारण में अधिक अंतराल हैं, अस्थिरता सहित ओवर-शूटिंग से यहां लगातार हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं। तीसरा, समष्टि आर्थिक स्थिरता सबसे तेजी से बहाल होती है यदि वास्तविक ब्याज दरों को संवृद्धि दर के नीचे सुचारू रूप से रखा जाए और बाह्य आघातों का मुकाबला किया जाए। भारतीय अर्थव्यवस्था इस संयोजन को प्राप्त करने और अपनी पुरानी बेरोजगारी को कम करने के लिए अच्छी तरह से तैयार है।

44. इन तर्कों के ध्यानार्थ, मैं विराम के लिए वोट करता हूं। बेहतर होगा कि मुद्रास्फीति और संवृद्धि दोनों में संभावित नरमी तथा पिछली मौद्रिक सख्ती के प्रभाव सामने आने के लिए समय दिया जाए। मैं एक तटस्थ रुख में बदलाव के भी पक्ष में हूं जो अपेक्षित मुद्रास्फीति पर वैश्विक और घरेलू कारकों के प्रभाव के आधार पर किसी भी दिशा में प्रतिक्रिया के अनुरूप है। नीति और बाजार समायोजन, आने वाले आंकड़ों और भविष्य की संभावना पर इसके प्रभाव पर आधारित होंगे।

प्रो. जयंत आर. वर्मा का वक्तव्य

45. मैंने अपने दिसंबर के वक्तव्य में जो कुछ कहा था, वह अब भी मान्य है। उन तर्कों को बार-बार दोहराने के बजाय, मैं बहुत संक्षेप में बोलूंगा। 2021-22 की दूसरी छमाही में, मौद्रिक नीति मुद्रास्फीति के बारे में चिंतामुक्त थी, और हम 2022-23 में अस्वीकार्य रूप से उच्च मुद्रास्फीति के संदर्भ में इसकी कीमत चुका रहे हैं। 2022-23 की दूसरी छमाही में, मेरे विचार में, मौद्रिक नीति संवृद्धि के बारे में चिंतामुक्त हो गई है, और मैं आशा करता हूँ कि हम 2023-24 में अस्वीकार्य रूप से कम संवृद्धि के संदर्भ में इसकी कीमत न चुकाएं।

46. मेरा मानना है कि एमपीसी के बहुमत द्वारा अनुमोदित 25 आधार अंक दर वृद्धि घटती मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं और बढ़ी हुई संवृद्धि की चिंताओं के वर्तमान संदर्भ में आवश्यक नहीं है। अतः मैं इस संकल्प के विरुद्ध वोट करता हूं।

47. रुख की ओर देखते हुए, मेरा मानना है कि 6.50% की रेपो दर मूल्य स्थिरता प्राप्त करने के लिए अपेक्षित नीतिगत दर से अधिक होने की संभावना है, और अधिक सख्ती वांछनीय नहीं है। अतः मैं इस संकल्प के विरुद्ध भी वोट करता हूं।

डॉ. राजीव रंजन का वक्तव्य

48. विश्व भर में नीति सामान्यीकरण की गति में बढ़ते विचलन के अलावा, प्रणालीगत केंद्रीय बैंकों द्वारा हाल की मौद्रिक नीति कार्रवाइयाँ, नीतिगत कार्रवाइयों और रुख के बीच एक द्विभाजन का सुझाव देती हैं। इसके अलावा, जबकि लगभग सभी ने दर वृद्धि की छोटी मात्रा की ओर एक आधार के साथ दरों में वृद्धि की है, मौजूदा अनिश्चितताओं की पृष्ठभूमि में मुद्रास्फीति के पूर्वसंकेत का अनुमान लगाने में कठिनाई को देखते हुए स्पष्ट आगे का मार्गदर्शन गायब है। घटी हुई दरों में वृद्धि और रुख में नरम रुख से संकेत लेते हुए, वैश्विक वित्तीय बाजारों ने दरों में कटौती की और उसके परिणामस्वरूप वर्ष के उत्तरार्ध में प्रमुख उन्नत अर्थव्यवस्थाओं द्वारा दरों में कटौती की गई है। हालांकि, मुद्रास्फीति की निरंतरता, परिणामी बाजार उथल-पुथल के साथ जोखिम के बड़े पुनर्मूल्यांकन का कारण बन सकती है। इसके अलावा, तेज मौद्रिक नीति सख्त होने के बावजूद विश्व भर में वित्तीय स्थितियां आसान हो गई हैं, जो केंद्रीय बैंकों के लिए एक चुनौती है।5 अतः, मुद्रास्फीति पर नियंत्रण को कम करना जल्दबाजी होगी क्योंकि मुद्रास्फीति से लड़ने में केंद्रीय बैंकों की विश्वसनीयता का मुद्रास्फीति के स्थिरीकरण और मुद्रास्फीति की प्रत्याशा को मजबूती से नियंत्रित करने के लिए बड़े प्रभाव होते हैं।

49. भारतीय संदर्भ में, भले ही मुद्रास्फीति नवंबर-दिसंबर 2022 में लगातार दो महीनों के लिए 6 प्रतिशत की ऊपरी सहिष्णुता सीमा से नीचे रही, सीपीआई मुद्रास्फीति में गहरा गोता लगाना, एक निर्णायक और टिकाऊ अवस्फीति प्रक्रिया के कम सबूत का संकेत देता है। हेडलाइन मुद्रास्फीति में नरमी का मुख्य कारण सब्जियों की कीमतों में तेज और शुरुआती मौसमी सुधार को माना जा सकता है। सब्जियों को छोड़कर, नवंबर-दिसंबर 2022 के दौरान खाद्य और हेडलाइन मुद्रास्फीति दोनों में वृद्धि हुई। 12 खाद्य उप-समूहों में से आठ, जिसमें सीपीआई खाद्य टोकरी का 66 प्रतिशत शामिल है, ने दिसंबर में मुद्रास्फीति में वृद्धि दर्ज की।6 कोर (खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई) मुद्रास्फीति 6.0 प्रतिशत से अधिक हो गई, जबकि अन्य अपवर्जन-आधारित कोर मुद्रास्फीति उपाय 6.0-6.8 प्रतिशत की सीमा में थे। सीपीआई के लिए मुद्रास्फीति और प्रसार सूचकांकों के छंटनी के औसत उपाय, सीपीआई टोकरी में अंतर्निहित और सामान्यीकृत मुद्रास्फीति दबावों को बढ़ाते हैं।

50. हमारा मुद्रास्फीति अनुमान 95 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल पर कच्चे तेल की कीमतों पर आधारित है। मेरा मानना है कि कच्चे तेल की कीमतों पर रूढ़िवादी बने रहना और कच्चे तेल की कीमतों की अस्थिर प्रकृति, चीन के प्रगतिशील उद्घाटन और यूरोप में जारी युद्ध को देखते हुए सर्वोत्तम स्थिति से बचना आवश्यक है। इसके अलावा, खुदरा पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं होने से, कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति मुद्रास्फीति की संवेदनशीलता अल्पावधि में कम है, लेकिन बाहरी क्षेत्र के लिए प्रासंगिक बनी हुई है।

51. आगे बढ़ते हुए, 2023-24 में मुद्रास्फीति के 5.3 प्रतिशत तक कम होने का अनुमान है। हालाँकि, इसका तिमाही पथ आधार प्रभावों के बड़े प्रभाव के कारण काफी भिन्नता दर्शाता है - विशेष रूप से 2023-24 की पहली तिमाही में। इस आधारभूत प्रक्षेपवक्र में काफी अनिश्चितता मौजूद है। संभावित रबी फसल से खाद्य मुद्रास्फीति में नरमी आ सकती है; हालांकि, प्रतिकूल मौसम की घटनाओं से उत्पन्न होने वाले जोखिम हो सकते हैं। वैश्विक पण्य कीमतों का प्रक्षेपवक्र अनिश्चित बना हुआ है, भले ही लंबित लागत दबावों का आउटपुट मूल्य पास-थ्रू जारी है, विशेष रूप से सेवाओं में। सीपीआई में आवास घटक के साथ-साथ इस पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत है, क्योंकि कोर मुद्रास्फीति लगभग 6 प्रतिशत पर बना हुआ है।

52. दूसरी ओर, मैं भारतीय अर्थव्यवस्था की अंतर्निहित ताकत के बारे में यथोचित रूप से आश्वस्त हूं जो (i) उच्च आवृत्ति संकेतकों; (ii) लचीली घरेलू मांग; (iii) पूंजीगत व्यय पर बजटीय ध्यान; (iv) कॉर्पोरेट्स और बैंकिंग क्षेत्र की अच्छी सेहत; (v) बाहरी क्षेत्र के संकेतकों में सुधार; और (vi) वित्तीय बाजारों की गहराई में प्रतिबिंबित होता है। इसके अलावा, फरवरी 2023 राजकोषीय मौद्रिक समन्वय के लिए एक निर्णायक क्षण रहा है, जो महामारी के दौरान प्रमाणांकन रहा है। उच्च व्यय के माध्यम से राजकोषीय विस्तार, व्यापार चक्र के चरण और व्यय की गुणवत्ता के आधार पर संवृद्धि को प्रोत्साहित या मंद कर सकता है।7 सरकार ने केंद्रीय बजट 2023-24 में व्यय को राजस्व से पूंजी में पुनर्प्राथमिकता देकर राजकोषीय समेकन के पथ पर जारी रखा है, जो मध्यम अवधि में निवेश के उच्च गुणक प्रभाव के माध्यम से वृद्धि को बढ़ावा देगा। इस प्रकार, केंद्रीय बजट ने समष्टि आर्थिक उद्देश्य के साथ-साथ रिज़र्व बैंक के मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण जनादेश को पूरा किया। इस मोड़ पर विवेकपूर्ण राजकोषीय और मौद्रिक नीतियां हमें इष्टतम समष्टि आर्थिक आउटलुक - लचीला संवृद्धि परिणामों के बीच क्रमिक अवस्फीति के माध्यम से अर्थव्यवस्था के लिए एक नरम आधार देने की संभावना है। 2023-24 के लिए 6.4 प्रतिशत की संवृद्धि का अनुमान इन अंतर्निहित शक्तियों को दर्शाता है। वास्तविक जीडीपी के प्रक्षेपण में तिमाही गति अब पूर्व-कोविड दशक के करीब है।

53. उपरोक्त संदर्भ में, मुद्रास्फीति के प्रति सतर्कता को कम करना जल्दबाजी होगी। जैसा कि मिल्टन फ्रीडमैन ने उल्लेख किया है, एक अंतर है: "... एक स्थिर मुद्रास्फीति के बीच, जो अधिक या कम स्थिर दर पर आगे बढ़ती है, और एक आंतरायिक मुद्रास्फीति, जो फिट और स्टार्ट द्वारा आगे बढ़ती है..."।8 नीति विकल्प तैयार करते समय "स्थिर मुद्रास्फीति" और "आंतरायिक मुद्रास्फीति" के बीच यह महत्वपूर्ण अंतर सर्वोपरि है। "आंतरायिक मुद्रास्फीति" की अगुवाई में मुद्रास्फीति में हालिया गिरावट पर बहुत अधिक ध्यान देने से मौद्रिक नीति कार्रवाई में एक असामयिक विराम लग सकता है, जो एक महंगी नीतिगत त्रुटि होगी। निरंतर उच्च कोर मुद्रास्फीति "स्थिर मुद्रास्फीति" में बने रहने की ओर इशारा करती है, जिसके लिए सावधानी जरूरी है। इस प्रकार, जब मुद्रास्फीति, विशेष रूप से कोर मुद्रास्फीति में मंदी के कोई निश्चित संकेत नहीं हैं, तो यह समय से पहले रुकना माना जाएगा। तथापि, जैसा कि मुद्रास्फीति के लिए समायोजित नीति दर अब सकारात्मक हो गई है, भले ही मुश्किल से ही, दर वृद्धि की गति को सामान्य 25 बीपीएस तक कम करना होगा।

54. ये कारक संवृद्धि के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, लक्ष्य की ओर मुद्रास्फीति में एक निर्णायक और टिकाऊ संतुलन सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत रुख और प्रतिक्रिया में निरंतरता की मांग करते हैं। उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए, मैं रुख बदले बिना 25 बीपीएस की कम दर वृद्धि के लिए वोट करता हूं। आगे बढ़ते हुए, संचयी दर वृद्धि के प्रभाव का आकलन, विशेष रूप से मुख्य रूप से बैंक आधारित अर्थव्यवस्था में उच्च नीतिगत प्रसारण को देखते हुए महत्वपूर्ण हो जाएगा।

डॉ. माइकल देवव्रत पात्र का वक्तव्य

55. पिछले वर्ष के दौरान, मौद्रिक नीति कार्रवाई की गई है और मूल्य स्थिरता को बहाल करने के लिए निभाव को वापस ले लिया गया है। इन कार्रवाइयों का प्रभाव संचरण के चैनलों में दिखाई देने लगा है। हालांकि यह थोड़ा आराम प्रदान करता है, क्योंकि सर्दियों में सब्जियों की कीमतों में स्पष्ट कमी को छोड़कर, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के लगभग हर दूसरे घटक में मूल्य दबावों का सख्त होना दिखाई दे रहा है। अंतर्निहित मुद्रास्फीति के सांख्यिकीय और अपवर्जन-आधारित उपाय वास्तव में वृद्धि दिखा रहे हैं। इस बात की प्रबल संभावना है कि जैसे-जैसे ठंडा मौसम गर्मी की ओर जाएगा, वैसे ही सब्जियों की कीमतें फिर से बढ़ेंगी जैसा कि आमतौर पर होता है। परिवार इसे महसूस करते हैं, जैसा कि बड़े पैमाने पर अपरिवर्तित मुद्रास्फीति की संभावनाओं और मौन विवेकाधीन खर्च से पता चलता है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में। व्यवसायों को तदनुसार बिक्री और राजस्व में कमी का सामना करना पड़ रहा है। निविष्टि लागत के दबावों को अभी भी व्यय में पारित किया जा रहा है, पूंजीगत व्यय संयमित है।

56. अतः, मौद्रिक नीति के रुख को तब तक अवस्फीतिकारी बने रहने की आवश्यकता होगी जब तक कि मुद्रास्फीति लक्ष्य पर वापस नहीं आ जाती। भारतीय अर्थव्यवस्था ने दुर्जेय वैश्विक प्रतिकूलताओं का सामना करने में ताकत का प्रदर्शन किया है और महामारी और युद्ध के खिंचाव से लगातार उभरने के पीछे सकारात्मक गति है। जबकि आर्थिक गतिविधियों पर मौद्रिक नीति कार्रवाइयों के पूर्ण प्रभाव अभी देखे जाने बाकी हैं, तेजी से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि मुद्रास्फीति घरेलू खपत और निवेश के साथ-साथ विश्वास को भी कमजोर कर रही है। धीमी वैश्विक गतिविधि के मंदी के प्रभावों और राजकोषीय व्यय के अपेक्षित समेकन के कारण निर्यात पर खिंचाव के साथ संयुक्त रूप से, 2023-24 में संवृद्धि की संभावनाएं मूल्य स्थिरता, स्थिर मुद्रास्फीति की संभावनाओं तथा कृषि, उद्योग और सेवाओं में आपूर्ति प्रतिक्रियाओं में सुधार के आसपास टिकी हुई हैं।

57. हालांकि ऐसा लगता है कि यह चरम पर है, मुद्रास्फीति उच्च बनी हुई है और मेरे विचार से यह समष्टिआर्थिक संभावना के लिए सबसे बड़ा खतरा है। मूल्य स्थिरता की बहाली - जैसा कि संवैधानिक रूप से अनिवार्य है - भारत की क्षमता को साकार करने वाले संवृद्धि प्रक्षेपवक्र के लिए एक ठोस आधार प्रदान करेगा। मुद्रास्फीति की ऊंचाई, वर्तमान और अनुमानित को ध्यान में रखते हुए, मौद्रिक और वित्तीय स्थितियां अभी भी कुछ सुस्ती को दर्शाती हैं, हालांकि वे हाल की मौद्रिक नीति कार्रवाइयों के अनुसरण के साथ तंग क्षेत्र में जा रहे हैं। यह सही समय का मुद्दा है।

58. मुद्रास्फीति के विरुद्ध लड़ाई वैश्विक संभावना के कारण जटिल है। पहले की आशंका की तुलना में एक मामूली मंदी के आसपास कुछ आम सहमति बन रही है, हालांकि भौगोलिक असमानताएं पूर्वानुमान को जटिल बनाती हैं। जैसा भी हो, वैश्विक मुद्रास्फीति के लिए संभावना पहले की तुलना में अधिक अनिश्चित होती जा रही है। जबकि केंद्रीय बैंक केवल एक जिद्दी सहजता की उम्मीद करते हैं, वित्तीय बाजार अधिक नाटकीय गिरावट पर दांव लगा रहे हैं क्योंकि कमोडिटी की कीमतों का दबाव कम हो रहा है और आपूर्ति श्रृंखला में सुधार हो रहा है। बहरहाल, युद्ध और महामारी से जुड़े भविष्य के झटके संभव हैं।

59. नीति के निहितार्थों की ओर मुड़ते हुए, एमपीसी को अपने प्राथमिक जनादेश के लिए प्रतिबद्ध रहना होगा। हाल के अनुभव ने पर्याप्त रूप से प्रदर्शित किया है कि कम और स्थिर मुद्रास्फीति, संवृद्धि के पुनरोद्धार के लिए विश्वसनीय सांकेतिक आश्रय है। नीतिगत दर को दृढ़ गति से प्रतिबंधात्मक क्षेत्र में ले जाने से दर वृद्धि के क्रम को मध्यम करने के लिए हेडरूम प्रदान किया गया है। यह हमें संभावना के आसपास के जोखिमों को ध्यान में रखते हुए सावधानी से हमारे कार्यों के प्रभाव का आकलन करने में सक्षम बनाता है। यह किसी भी बैकट्रैक के बिना सावधानीपूर्वक कैलिब्रेटेड दर परिवर्तनों के माध्यम से हमारे कार्यों की विश्वसनीयता को भी प्रदर्शित करता है। अंतिम विश्लेषण में, दर परिवर्तन का आकार और समय, रुख की सबसे अच्छी अभिव्यक्ति है। संवृद्धि के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, जब हम अपने भविष्य के प्रक्षेपवक्र का चार्ट बनाते हैं तब पैर को ब्रेक पर रहना चाहिए। व्यावहारिक आधार पर, यह महत्वपूर्ण है कि 2023-24 में मुद्रास्फीति को सहिष्णुता बैंड के भीतर कम से कम रखा जाए क्योंकि यह लक्ष्य के साथ मुद्रास्फीति को संरेखित करने में पहला मील का पत्थर है। तदनुसार, मैं निभाव को वापस लेना जारी रखते हुए नीतिगत दर में 25 आधार अंकों की वृद्धि के लिए वोट करता हूं।

श्री शक्तिकान्त दास का वक्तव्य

60. एमपीसी की दिसंबर (2022) बैठक के बाद से वैश्विक आर्थिक संभावना में सुधार हुआ है। प्रमुख देशों में मुद्रास्फीति हाल के प्रिंटों में कम हुई है लेकिन अपने संबंधित लक्ष्यों से काफी ऊपर बनी हुई है। इस प्रकार मौद्रिक नीति के सख्त होने की उम्मीद है, लेकिन इसके प्रक्षेपवक्र के बारे में अनिश्चितता है। यह वैश्विक वित्तीय बाजारों में अस्थिरता की ओर ले जा रहा है, जिसके प्रभाव-विस्तार (स्पिलओवर) उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के लिए चुनौतियां उत्पन्न कर रहे हैं।

61. अत्यधिक अनिश्चितता की दुनिया में, भारत समष्टिआर्थिक स्थिरता का अनुकूल वातावरण देख रहा है: अर्थव्यवस्था लचीली बनी हुई है; मुद्रास्फीति पिछले दो महीनों में 6 प्रतिशत से कम हो गई है; राजकोषीय समेकन कर्षण प्राप्त कर रहा है; चालू खाता घाटा कम होने के संकेत दे रहा है; विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि में सुधार हुआ है; और बैंकिंग क्षेत्र स्वस्थ रहता है।

62. घरेलू मांग में निरंतर उछाल, विशेष रूप से निजी खपत और निवेश, संवृद्धि को गति दे रहा है। जबकि कमजोर बाहरी मांग हमारे व्यापारिक निर्यात पर एक दबाव है, विप्रेषण और सेवाओं के निर्यात की वृद्धि मजबूत है। आगे बढ़ते हुए, संपर्क-गहन सेवाओं में लगातार सुधार और रबी उत्पादन की अच्छी संभावनाओं से शहरी और ग्रामीण खपत को सहायता मिलने की संभावना है। केंद्रीय बजट 2023-24 में पूंजीगत व्यय और बुनियादी ढांचे पर बढ़ा हुआ जोर विनिर्माण और निवेश गतिविधि को बढ़ावा दे सकता है।

63. मुख्य रूप से सब्जियों की कम कीमतों के कारण सीपीआई मुद्रास्फीति में कमी आई है। कोर मुद्रास्फीति (अर्थात, खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई), हालांकि, लगभग 6 प्रतिशत पर उच्च और स्थिर है। सब्जियों को छोड़कर सीपीआई मुद्रास्फीति अधिक हो गई है। आगे बढ़ते हुए, बेसलाइन अनुमानों से संकेत मिलता है कि 2023-24 में हेडलाइन मुद्रास्फीति के 5.3 प्रतिशत तक कम होने की संभावना है। इन अनुमानों से यह भी संकेत मिलता है कि उच्च स्तर पर कोर मुद्रास्फीति की स्थिरता को देखते हुए लक्ष्य दर की दिशा में अवस्फीति लंबी होने की संभावना है। एक अपस्फीति प्रक्रिया का स्थायित्व केवल खाद्य मुद्रास्फीति पर निर्भर नहीं रह सकता है, इसकी अनिश्चितता और मौसम की घटनाओं के प्रति संवेदनशीलता को देखते हुए। कुल मिलाकर, मौजूदा भू-राजनीतिक तनावों, वैश्विक वित्तीय बाजार में अस्थिरता, गैर-तेल कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि, कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और मौसम संबंधी घटनाओं के कारण मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र पर इस स्तर पर काफी अनिश्चितता है।

64. अतः, हमें संवृद्धि को ध्यान में रखते हुए मध्यावधि में 4 प्रतिशत के लक्ष्य की ओर मुद्रास्फीति में एक निर्णायक और टिकाऊ कमी सुनिश्चित करने के लिए मुद्रास्फीति को कम करने की अपनी प्रतिबद्धता में अटूट रहना चाहिए। अतः, मौजूदा एमपीसी की बैठक में और अधिक अंशांकित मौद्रिक नीति कार्रवाई आवश्यक है ताकि मुद्रास्फीति संभावनाओं को स्थिर रखा जा सके और दूसरे दौर के प्रभाव को कम करते हुए कोर मुद्रास्फीति की दृढ़ता को तोड़ा जा सके। मेरा यह भी मानना है कि हमें दो बातों को ध्यान में रखते हुए दरों में वृद्धि की गति को कम करना चाहिए: (i) हमें अपनी पिछली नीतिगत कार्रवाइयों को प्रणाली के माध्यम से काम करने के लिए समय देने की आवश्यकता है; और (ii) यदि रुकते है तो यह समय के पहले रुकना होगा, ऐसा न हो कि हम सतर्क न हो और बाद में इसे पकड़ने की जरूरत पड़े। अतः, मैं नीतिगत रेपो दर में 25 आधार अंकों की वृद्धि के लिए 6.50 प्रतिशत वोट करता हूं। दर वृद्धि का यह क्रम, भविष्य की मौद्रिक नीति कार्रवाइयों और उभरती समष्टि आर्थिक स्थितियों के आधार पर रुख को जांचने के लिए समय प्रदान करता है।

65. हमारे कार्यवाइयों ने कुछ समय के बाद मुद्रास्फीति के लिए समायोजित नीतिगत दर को सकारात्मक क्षेत्र में आगे बढ़ाया है। चलनिधि अधिकता मोड में बनी हुई है, भले ही अधिकता कम हो रही हो। अतः समग्र मौद्रिक और चलनिधि स्थितियां निभावकारी बनी हुई हैं। ऐसे परिदृश्य में, अवस्फीति की निर्णायक प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए निभाव को वापस लेने के रुख पर कायम रहना आवश्यक है। तदनुसार, मैं निभाव वापस लेने के रुख को जारी रखने के लिए वोट करता हूं।

66. मौद्रिक नीति कार्रवाइयों पर आगे मार्गदर्शन देने की आवश्यकता के बारे में सार्वजनिक स्थान पर कुछ चर्चा हुई है। जैसा कि मैंने कई अवसरों पर कहा है, जब हम कड़े चक्र में हों और जब हम इस तरह की अत्यधिक अनिश्चितता का सामना कर रहे हों तो विशिष्ट मार्गदर्शन प्रदान करना अनुचित होगा। एकमात्र आगे का मार्गदर्शन जो हम प्रदान कर सकते हैं वह यह है कि हम सतर्क रहेंगे, आने वाली प्रत्येक जानकारी और डेटा की निगरानी करेंगे, और मध्यावधि की संवृद्धि को मजबूत करने के हित में मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिए उचित कार्य करेंगे।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2022-2023/1769


1 https://www.ncaer.org/BES/NCAER_NSE_BES_Report_January_2023.pdf.

2 गोयल, ए. और ए. कुमार, 2021। 'एसिमेट्री, टर्म्स ऑफ ट्रेड एंड द एग्रीगेट सप्लाई कर्व इन एन ओपन इकोनॉमी मॉडल', द जर्नल ऑफ इकोनॉमिक एसिमेट्रीज, वॉल्यूम 24, नवंबर, ई00206। https://doi.org/10.1016/j.jeca.2021.e00206

3 गोयल, ए. और जी. गोयल, 2019. 'कोरिलेटेड शॉक्स, हिस्टैरिसीस एंड द सैक्रिफाइस रेशियो: एविडेंस फ्रॉम इंडिया', इमर्जिंग मार्केट्स फाइनेंस एंड ट्रेड। वॉल्यूम 57, अंक 10. पृ. 2929-2945। ऑनलाइन प्रकाशित: 11 अक्टूबर। https://www.tandfonline.com/doi/full/10.1080/1540496X.2019.1668770

4 गोयल, ए. और एस. त्रिपाठी, 2015. 'सेपरटिंग शॉक्स फ्रॉम साइक्लिकैलिटी इन इंडियन एग्रीगेट सप्लाई', जर्नल ऑफ एशियन इकोनॉमिक्स, 38: 93-103। 2015। https://www.sciencedirect.com/science/article/abs/pii/S1049007815000329

5 https://www.imf.org/en/Blogs/Articles/2023/02/02/looser-financial-conditions-pose-conundrum-for-central-banks.

6 इसके अलावा, सीपीआई खाद्य टोकरी के 54 प्रतिशत वाले पांच खाद्य उप-समूहों ने 6 प्रतिशत से अधिक की मुद्रास्फीति दर दर्ज की।

7 मुद्रा और वित्त पर रिपोर्ट, आरबीआई 2021-22। राजस्व व्यय में तेजी के दौरान नकारात्मक गुणक होता है।

8 फ्रीडमैन, मिल्टन (1963), इन्फ्लेशन: कॉजेज एंड कॉन्सिक्वेंस, बॉम्बे: एशिया पब्लिशिंग हाउस, डॉलर्स एंड डेफिसिट्स में पुनर्मुद्रित, एंगलवुड क्लिफ्स, एन.जे.: प्रेंटिस-हॉल, 1968।

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