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मौद्रिक नीति समिति की 3 से 5 अप्रैल 2024 के दौरान हुई बैठक का कार्यवृत्त [भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45ज़ेडएल के अंतर्गत]

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45जेडबी के अंतर्गत गठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की अड़तालीसवीं बैठक 3 से 5 अप्रैल 2024 के दौरान आयोजित की गई थी।

2. बैठक में सभी सदस्य – डॉ. शशांक भिड़े, माननीय वरिष्ठ सलाहकार, नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च, दिल्ली; डॉ. आशिमा गोयल, अवकाश प्राप्त प्रोफेसर, इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च, मुंबई; प्रो. जयंत आर. वर्मा, प्रोफेसर, भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद; डॉ. राजीव रंजन, कार्यपालक निदेशक (भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडबी (2) (सी) के अंतर्गत केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित रिज़र्व बैंक के अधिकारी); डॉ. माइकल देवब्रत पात्र, मौद्रिक नीति के प्रभारी उप गवर्नर उपस्थित रहें और इसकी अध्यक्षता श्री शक्तिकान्त दास, गवर्नर ने की।

3. भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडएल के अनुसार, रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति समिति की प्रत्येक बैठक के चौदहवें दिन इस बैठक की कार्यवाहियों का कार्यवृत्त प्रकाशित करेगा जिसमें निम्नलिखित शामिल होगा:

(क) मौद्रिक नीति समिति की बैठक में अपनाया गया संकल्प;
(ख) उक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर मौद्रिक नीति के प्रत्येक सदस्य को प्रदान किया गया वोट; और
(ग) उक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर धारा 45ज़ेडआई की उप-धारा (11) के अंतर्गत मौद्रिक नीति समिति के प्रत्येक सदस्य का वक्तव्य।

4. एमपीसी ने भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उपभोक्ता विश्वास, परिवारों की मुद्रास्फीति प्रत्याशा, कॉर्पोरेट क्षेत्र के प्रदर्शन, ऋण की स्थिति, औद्योगिक, सेवाओं और आधारभूत संरचना क्षेत्रों की संभावनाएं और पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के अनुमानों का आकलन करने के लिए किए गए सर्वेक्षणों की समीक्षा की। एमपीसी ने इन संभावनाओं के विभिन्न जोखिमों के इर्द-गिर्द स्टाफ के समष्टि आर्थिक अनुमानों और वैकल्पिक परिदृश्यों की विस्तृत रूप से भी समीक्षा की। उपर्युक्त पर और मौद्रिक नीति के रुख पर व्यापक चर्चा करने के बाद एमपीसी ने संकल्प अपनाया जिसे नीचे प्रस्तुत किया गया है।

संकल्प

5. वर्तमान और उभरती समष्टि-आर्थिक स्थिति के आकलन के आधार पर, मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आज (5 अप्रैल 2024) अपनी बैठक में यह निर्णय लिया है कि:
• चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखा जाए।

परिणामस्वरूप, स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 6.25 प्रतिशत तथा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.75 प्रतिशत पर यथावत् बनी हुई है।
• एमपीसी ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने का भी निर्णय लिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो।
ये निर्णय, संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति को +/- 2 प्रतिशत के दायरे में रखते हुए 4 प्रतिशत का मध्यावधि लक्ष्य प्राप्त करने के अनुरूप है।

आकलन और संभावना

6. वैश्विक अर्थव्यवस्था आघात सहनीयता प्रदर्शित कर रही है और 2024 में इसके स्थिर संवृद्धि को बनाए रखने की संभावना है। अनुकूल आधार प्रभावों द्वारा समर्थित मुद्रास्फीति अधोगामी है, तथापि सेवाओं की अविनेय कीमतें लक्ष्य के सापेक्ष इसे ऊंचा रख रही हैं। जैसे-जैसे केंद्रीय बैंक अवस्फीति के अंतिम पड़ाव पर पहुँच रहे हैं, वित्तीय बाज़ार, मौद्रिक नीति प्रक्षेपवक्र के समय और गति पर बदलती धारणाओं पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं। इक्विटी बाज़ारों में तेजी आ रही है, जबकि सॉवरेन बॉण्ड प्रतिफल और अमेरिकी डॉलर में उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है। सुरक्षित निवेश मांग के कारण स्वर्ण की कीमतों में उछाल आया है।

7. घरेलू अर्थव्यवस्था की गति मजबूत है। दूसरे अग्रिम अनुमान (एसएई) के अनुसार, घरेलू मांग में मजबूत वृद्धि के कारण 2023-24 में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 7.6 प्रतिशत की दर से बढ़ा। मजबूत निवेश गतिविधि और निवल बाह्य मांग में कमी के कारण तीसरी तिमाही में वास्तविक जीडीपी में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आपूर्ति पक्ष पर, विनिर्माण और निर्माण गतिविधि द्वारा संचालित, योजित सकल मूल्य में 2023-24 में 6.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।

8. आगे, अपेक्षित सामान्य दक्षिण-पश्चिम मानसून से कृषि गतिविधियों को समर्थन मिलना चाहिए। निरंतर लाभप्रदता के कारण विनिर्माण की गति बरकरार रहने की आशा है। सेवा गतिविधि के महामारी-पूर्व प्रवृत्ति से ऊपर बढ़ने की संभावना है। ग्रामीण गतिविधियों में और तेजी तथा स्थिर शहरी मांग के साथ निजी खपत को गति मिलनी चाहिए। भारतीय रिज़र्व बैंक के उपभोक्ता सर्वेक्षण के अनुसार, शहरी परिवारों द्वारा अपेक्षित विवेकाधीन व्यय में वृद्धि और आय के स्तर में सुधार निजी खपत की मजबूती के लिए अच्छा संकेत है। कारोबारी आशावाद, कॉर्पोरेट और बैंक के मजबूत तुलन पत्र, मजबूत सरकारी पूंजीगत व्यय और निजी पूंजीगत व्यय चक्र में तेजी के संकेतों के साथ निश्चित निवेश की संभावनाएं उज्ज्वल बनी हुई हैं। तथपि, भू-राजनीतिक तनाव, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाज़ारों में अस्थिरता, भू-आर्थिक विखंडन, लाल सागर में बढ़ते व्यवधान और चरम मौसम की घटनाओं से प्रतिकूल परिस्थितियाँ, संभावना के लिए जोखिम उत्पन्न करती हैं। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2024-25 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि पहली तिमाही में 7.1 प्रतिशत; दूसरी तिमाही में 6.9 प्रतिशत; तीसरी तिमाही में 7.0 प्रतिशत; और चौथी तिमाही में 7.0 प्रतिशत के साथ 7.0 प्रतिशत रहने का अनुमान है (चार्ट 1). । जोखिम समान रूप से संतुलित हैं।

9. जनवरी-फरवरी 2024 के दौरान हेडलाइन मुद्रास्फीति घटकर 5.1 प्रतिशत हो गई, जो दिसंबर में 5.7 प्रतिशत थी। जनवरी में सुधार के बाद, फरवरी में खाद्य मुद्रास्फीति बढ़कर 7.8 प्रतिशत हो गई, जो मुख्य रूप से सब्जियों, अंडे, मांस और मछली के कारण बढ़ी। फरवरी में ईंधन की कीमतें लगातार छठे महीने अवस्फीति में रहीं। मूल सीपीआई (खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई) की अवस्फीति फरवरी में इसे 3.4 प्रतिशत पर ले आई - यह वर्तमान सीपीआई शृंखला में सबसे कम में से एक थी, जिसमें वस्तुओं और सेवाओं दोनों घटकों में मुद्रास्फीति में गिरावट दर्ज की गई थी।

10. आगे चलकर, खाद्य मूल्य अनिश्चितताएं मुद्रास्फीति की संभावना पर प्रभाव डालती रहेंगी। तथापि, 2023-24 में अपेक्षित रिकॉर्ड रबी गेहूं उत्पादन से अनाज की कीमतों को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। सामान्य मानसून के शुरुआती संकेत भी ख़रीफ़ सीज़न के लिए अच्छे संकेत हैं। दूसरी ओर, जलवायु संबंधी आघातों की बढ़ती घटनाएं खाद्य कीमतों के लिए एक प्रमुख जोखिम बनी हुई हैं। जलाशयों का निम्न स्तर, विशेष रूप से दक्षिणी राज्यों में और अप्रैल-जून के दौरान सामान्य से अधिक तापमान का पूर्वानुमान भी चिंता का विषय है। कुछ दालों की सख्त मांग आपूर्ति की स्थिति और प्रमुख सब्जियों की कीमतों पर कड़ी निगरानी की आवश्यकता है। एलपीजी की कीमतों में हालिया कटौती के बाद निकट भविष्य में ईंधन की कीमतों में और गिरावट की संभावना है। निरंतर नरमी के बाद, कंपनियों पर लागत वृद्धि का दबाव ऊर्ध्वगामी प्रतीत हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में हालिया बढ़ोतरी के कारण कड़ी निगरानी की आवश्यकता है। भू-राजनीतिक तनाव और वित्तीय बाज़ारों में अस्थिरता भी मुद्रास्फीति की संभावना के लिए जोखिम उत्पन्न करती है। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए और सामान्य मानसून की परिकल्पना करते हुए, 2024-25 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति पहली तिमाही में 4.9 प्रतिशत; दूसरी तिमाही में 3.8 प्रतिशत; तीसरी तिमाही में 4.6 प्रतिशत; और चौथी तिमाही में 4.5 प्रतिशत के साथ 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है और (चार्ट 2)। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं।

Chart 1 and 2

11. एमपीसी ने कहा कि घरेलू आर्थिक आघात-सह बनी हुई है, जो मजबूत निवेश मांग और उत्साहित कारोबारी और उपभोक्ता मनोभावों से समर्थित है। हेडलाइन मुद्रास्फीति दिसंबर के चरम स्तर से नीचे आ गई है; तथापि, खाद्य कीमतों का दबाव चालू अवस्फीति प्रक्रिया को बाधित कर रहा है, जिससे मुद्रास्फीति के लक्ष्य तक अंतिम रूप से पहुँचने में चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं। प्रतिकूल जलवायु घटनाओं से अप्रत्याशित आपूर्ति पक्ष के आघातों और कृषि उत्पादन पर उनके प्रभाव के साथ-साथ भू-राजनीतिक तनाव तथा व्यापार और कमोडिटी बाज़ारों में प्रभाव विस्तार ने संभावना के लिए अनिश्चितताएं बढ़ा दी हैं। चूँकि जब तक मुद्रास्फीति टिकाऊ आधार पर 4 प्रतिशत के लक्ष्य तक नहीं पहुंच जाती, अवस्फीति के मार्ग को कायम रखने की आवश्यकता है, एमपीसी ने इस बैठक में नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने का निर्णय लिया। मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं को नियंत्रित करने और पूर्ण संचरण को सुनिश्चित करने के लिए मौद्रिक नीति को सक्रिय रूप से अवस्फीतिकारी बने रहना चाहिए। एमपीसी, मुद्रास्फीति को लक्ष्य के साथ संरेखित करने की अपनी प्रतिबद्धता पर दृढ़ रहेगी। एमपीसी का मानना है कि टिकाऊ मूल्य स्थिरता उच्च संवृद्धि के लिए मजबूत नींव स्थापित करेगी। एमपीसी ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने का भी निर्णय लिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो।

12. डॉ. शशांक भिडे, डॉ. आशिमा गोयल, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने के लिए वोट किया। प्रो. जयंत आर. वर्मा ने नीतिगत रेपो दर को 25 आधार अंकों तक कम करने के लिए वोट किया।

13. डॉ. शशांक भिडे, डॉ. आशिमा गोयल, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने के लिए वोट किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो। प्रो. जयंत आर. वर्मा ने रुख को तटस्थ के रूप में बदलने के लिए वोट किया।

14. एमपीसी की इस बैठक का कार्यवृत्त 19 अप्रैल 2024 को प्रकाशित किया जाएगा।

15. एमपीसी की अगली बैठक 5-7 जून 2024 के दौरान निर्धारित है।

नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने के संकल्प पर वोटिंग

सदस्य

वोट

डॉ. शशांक भिडे

हाँ

डॉ. आशिमा गोयल

हाँ

प्रो. जयंत आर. वर्मा

नहीं

डॉ. राजीव रंजन

हाँ

डॉ. माइकल देवब्रत पात्र

हाँ

श्री शक्तिकान्त दास

हाँ

डॉ. शशांक भिडे का वक्तव्य

16. उच्च संवृद्धि और सौम्य मुद्रास्फीति दरों ने मौजूदा समष्टि-आर्थिक स्थितियों को परिलक्षित किया है। राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन ने अपने दूसरे अग्रिम अनुमान में हाल ही में किए गए आकलन के अनुसार 2023-24 की तीसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वर्ष- दर- वर्ष संवृद्धि दर को 8.4 प्रतिशत पर रखा है, यह इस वर्ष की लगातार तीसरी तिमाही है, जिसमें 8 प्रतिशत से ऊपर की संवृद्धि दर है। 2023-24 के लिए सकल घरेलू उत्पाद की वार्षिक संवृद्धि अब 7.6 प्रतिशत अनुमानित है, जो पिछले वर्ष की 7 प्रतिशत की संवृद्धि से अधिक है, और यह वर्तमान वर्ष के प्रथम अग्रिम अनुमान से भी अधिक है। फरवरी के लिए वार्षिक हेडलाइन मुद्रास्फीति दर पिछले महीने के समान स्तर अर्थात् 5.1 प्रतिशत पर और दिसंबर 2023 में 5.7 प्रतिशत से काफी नीचे थी।

17. मुख्य उत्पादन क्षेत्रों में कृषि और संबद्ध गतिविधियां एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जिसमें जीवीए में 1 प्रतिशत से कम की मामूली संवृद्धि हुई है। 2023-24 में उद्योग की संवृद्धि दर 8.3 प्रतिशत और सेवाओं की वृद्धि दर 7.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है। उद्योग में वृद्धि ने 2022-23 में नकारात्मक संवृद्धि (-0.6) प्रतिशत का अनुसरण किया है और सेवा क्षेत्र ने पिछले वर्ष के 9.9 प्रतिशत के अलावा 7.9 प्रतिशत की उच्च संवृद्धि दर्ज की है। उद्योग और निर्माण में खनन और विनिर्माण तथा सेवाओं में समग्र वित्तीय, स्थावर संपदा और व्यक्तिगत सेवाओं में जीवीए की वर्ष-दर-वर्ष संवृद्धि दर 2023-24 में 8 प्रतिशत से अधिक रही। हालाँकि, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक से पता चलता है कि विनिर्माण में रसायन, कपड़ा, रेडीमेड परिधान और चमड़ा जैसे उप-क्षेत्र हैं जिनमें अप्रैल-2023-जनवरी 2024 के दौरान उत्पादन संवृद्धि कम रही है। बाहरी मांग की स्थिति में कमजोरी ने कुछ निर्यातोन्मुख उद्योगों पर बाधाएँ उत्पन्न कर दी हैं।

18. व्यय पक्ष को उपभोग के सापेक्ष निवेश मांग में उच्च संवृद्धि द्वारा चिह्नित किया गया है। पहले वाले में पिछले वर्ष के अलावा10.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई और बाद वाले में 3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। तिमाही आकलन, उपभोग व्यय में सुधार की ओर इशारा करते हैं क्योंकि निजी अंतिम उपभोग व्यय 2023-24 की दूसरी तिमाही में 2.4 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में तीसरी तिमाही में 3.5 प्रतिशत बढ़ गया।

19. मुद्रास्फीति के स्तर पर, पैटर्न वही बना हुआ है, जो फरवरी की एमपीसी बैठक के समय प्रचलित था: ईंधन और उपभोग की 'मुख्य' वस्तुओं की मुद्रास्फीति दरों में नरमी की उम्मीद से 2023-24 की चौथी तिमाही में हेडलाइन मुद्रास्फीति में नरमी आएगी। जनवरी और फरवरी के लिए वास्तविक मुद्रास्फीति दरों ने अनुमानित रुझानों को प्रतिबिंबित किया है क्योंकि हेडलाइन दर गिरकर 5.1 प्रतिशत हो गई और खाद्य मुद्रास्फीति 7.5 प्रतिशत से ऊपर थी। यद्यपि फरवरी एमपीसी की बैठक में 2024-25 के लिए अनुमान 4.5 प्रतिशत था, हेडलाइन मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र 2024-25 में चार में से तीन तिमाहियों के लिए 4.5 प्रतिशत से ऊपर की दर को प्रतिबिंबित करता है।

20. अतः, अल्पावधि की अनुकूल संभावना, वर्तमान संवृद्धि और मुद्रास्फीति के रुझान की निरंतरता पर आधारित है। 2023-24 में आर्थिक स्थितियां, समग्र वैश्विक आर्थिक संवृद्धि की धीमी बहाली और कमोडिटी की कीमतों, विशेष रूप से कच्चे तेल और वनस्पति तेलों में गिरावट के साथ मुद्रास्फीति दरों में नरमी से भी प्रभावित हुईं। सहायक आर्थिक नीतियों ने घरेलू संवृद्धि और निवेश अंतर्वाह को बनाए रखा है।

21. वर्तमान आर्थिक गतिविधि के संकेतक कई क्षेत्रों में संवृद्धि की मजबूत गति को दर्शाते हैं। विनिर्माण क्षेत्र में क्षमता उपयोग का उच्च स्तर, सरकारी पूंजीगत व्यय, एफडीआई अंतर्वाह जैसे संकेतक, निवेश व्यय के लिए सकारात्मक बने हुए हैं। यद्यपि निजी उपभोग व्यय का विस्तार, जीएफसीएफ और निर्यात से पीछे रह गया है, यहां तक कि 2019-20 के स्तरों के संदर्भ में भी, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए नमूना घरेलू सर्वेक्षणों में दर्शाए अनुसार शहरी परिवारों के उपभोक्ता विश्वास में, विशेष रूप से सामान्य आर्थिक स्थितियों, रोजगार और घरेलू आय में लगातार सुधार हुआ है। जनवरी से मार्च 2024 के दौरान किए गए भारतीय रिज़र्व बैंक के उद्यम सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि विनिर्माण और अवसंरचना फर्मों के लिए 2024-25 की पहली छमाही में मांग की स्थिति स्थिर रहने की उम्मीद है; सेवाओं के मामले में, स्थितियों में उल्लेखनीय सुधार होने की उम्मीद है। आर्थिक गतिविधि के व्यापक उपाय जैसे बेरोजगारी दर में गिरावट और स्थिर बैंक ऋण संवृद्धि, अनुकूल परिस्थितियों की ओर इशारा करते हैं। 2024-25 में संभावना को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख बाहरी कारक इस वर्ष मानसून की प्रकृति है। वर्तमान उम्मीदें सामान्य मानसून के लिए हैं, जो कृषि के उत्पादन निष्पादन, ग्रामीण मांग को बढ़ाने, और मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने में मदद करेगी।

22. इन कारकों को ध्यान में रखते हुए 2024-25 के लिए सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि दर 7 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो एमपीसी की फरवरी की बैठक के स्तर के समान है। तिमाहीगत अनुमान हैं- पहली तिमाही में 7.1 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 6.9 प्रतिशत तथा तीसरी और चौथी तिमाही में 7-7 प्रतिशत। मार्च 2024 में किए गए भारतीय रिज़र्व बैंक के पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के सर्वेक्षण में 2024-25 के लिए 6.7 प्रतिशत की औसत वास्तविक जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाया गया है, जिसमें इसके पिछले आकलन 6.5 प्रतिशत से ऊर्ध्वगामी संशोधन होने का अनुमान है।

23. मुद्रास्फीति के संबंध में, जैसा कि उल्लेख किया गया है, टिकाऊ आधार पर 4 प्रतिशत के नीतिगत लक्ष्य के करीब हेडलाइन मुद्रास्फीति की गति को बनाए रखने के लिए खाद्य मुद्रास्फीति के रुझान महत्वपूर्ण बने रहेंगे। कमोडिटी की कीमतों को प्रभावित करने वाली वैश्विक स्थितियां, ईंधन की कीमतों और अन्य इनपुट की कीमतों को प्रभावित करने वाले अन्य बाहरी तत्व हैं। ये स्थितियां- खाद्य मुद्रास्फीति और वैश्विक आपूर्ति तथा मूल्य स्थितियां, अनिश्चित मौसम की घटनाओं और आपूर्ति शृंखलाओं को प्रभावित करने वाले भू-आर्थिक संघर्षों को देखते हुए महत्वपूर्ण जोखिमों के अधीन बनी हुई हैं। हालाँकि, हाल की अवधि में मुद्रास्फीति प्रत्याशा संबंधी परिवारों के पूर्वानुमान (भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद के मिश्रा सेंटर फॉर फाइनेंशियल मार्केट्स एंड इकोनॉमी द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक का परिवारों का मुद्रास्फीति प्रत्याशा सर्वेक्षण और कारोबार मुद्रास्फीति प्रत्याशा सर्वेक्षण) में नरमी की प्रवृत्ति को देखते हुए, अल्पावधि वृद्धि अनुमानित हेडलाइन मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र को प्रभावित नहीं कर सकते हैं। लेकिन आपूर्ति की स्थिति में दीर्घकालिक गड़बड़ी चिंता का विषय रहेगी।

24. विकासशील स्थिति के आकलन और सामान्य मानसून की धारणा के आधार पर, 2023-24 की चौथी तिमाही के लिए हेडलाइन मुद्रास्फीति 5 प्रतिशत, 2024-25 की पहली तिमाही के लिए 4.9, दूसरी तिमाही के लिए 3.8, तीसरी तिमाही के लिए 4.6 और चौथी तिमाही के लिए 4.5 प्रतिशत का अनुमान लगाया गया है। 2024-25 के लिए औसत मुद्रास्फीति दर 4.5 प्रतिशत अनुमानित है, जोकि फरवरी एमपीसी बैठक के समान है। मार्च 2024 में आयोजित भारतीय रिज़र्व बैंक के पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के सर्वेक्षण में भी 2024-25 के लिए पूर्वानुमान 4.5 प्रतिशत रखा गया है।

25. मौजूदा समष्टि-आर्थिक स्थितियां, 2024-25 में मजबूत संवृद्धि की गति जारी रहने का संकेत देती हैं, विशेष रूप से सामान्य मानसून कृषि क्षेत्र की संभावनाओं के लिए राहत प्रदान कर सकता है। खाद्य मुद्रास्फीति दर के वर्तमान उच्च स्तर को नीचे लाने के लिए एक अनुकूल मानसून भी महत्वपूर्ण है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था में उपभोग मांग का भी समर्थन करेगा। संवृद्धि की गति को बनाए रखने के लिए उपभोक्ता मुद्रास्फीति के मध्यम स्तर की आवश्यकता होगी। खाद्य और ऊर्जा के स्तर पर आपूर्ति पक्ष के आघातों को प्रबंधित करने में सख्त मौद्रिक नीति और सरकारी हस्तक्षेप मुद्रास्फीति को कम करने में महत्वपूर्ण रहे हैं। जबकि अनुमानित मुद्रास्फीति रुझान 2024-25 में मुद्रास्फीति दर में और कमी की ओर इशारा करते हैं, वे वर्ष की दूसरी छमाही में 4 प्रतिशत की लक्ष्य दर से काफी ऊपर की वृद्धि का भी संकेत देते हैं। इस समय संवृद्धि की मजबूत गति को देखते हुए, लक्ष्य के साथ मुद्रास्फीति के रुझान को संरेखित करने पर मौद्रिक नीति का ध्यान बनाए रखना आवश्यक है।

26. अतः, मैं:
i. नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने, और
ii. निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो, के लिए वोट करता हूँ।

डॉ. आशिमा गोयल का वक्तव्य

27. वैश्विक व्यापार में सुधार होता दिख रहा है लेकिन संवृद्धि मिश्रित है और भू-राजनीतिक जोखिम जारी हैं। मुद्रास्फीति में काफी कमी आई है लेकिन आगे की प्रगति धीमी है। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) के लिए वर्तमान शोध की आम सहमति से यह प्रतीत होता है कि जो लोग सोचते थे कि मुद्रास्फीति काफी हद तक आपूर्ति-पक्ष की बाधाओं से प्रेरित थी, वे बिल्कुल सही थे, क्योंकि दीर्घकालिक समष्टि-आर्थिक सख्ती के बिना इसमें तेजी से गिरावट आई है। श्रम बाजार की तंगी के कारण आपूर्ति शृंखला के सुलझने की तुलना में यह लंबे समय तक बनी रही। 1. दीर्घावधि मुद्रास्फीति की प्रत्याशाएं नियंत्रित रहीं और केंद्रीय बैंक की सख्ती से यह सुनिश्चित करने में मदद मिली।

28. भारत में श्रम बाजार तंग नहीं था, लेकिन बार-बार खाद्य कीमतों के आघातों ने मुद्रास्फीति को कायम रखा। रेपो दरों में तेजी से वृद्धि, साथ ही सरकारी आपूर्ति-पक्ष कार्रवाई ने मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं को नियंत्रित करने में मदद की। समतुल्यता के करीब वास्तविक दरों ने आपूर्ति के साथ मांग को संतुलन में रखा है।

29. परिणामस्वरूप आंशिक रूप से, 2023 में कमोडिटी झटके क्षणिक थे। इस क्षणिकता से पता चलता है कि भविष्य के संभावित आघातों के कारण दरों को ऊंचा रखना आवश्यक नहीं है। इसके अलावा, 4% तक पहुंचने पर भी कोई गारंटी नहीं है कि यदि महामारी से पहले और बाद के जैसे बड़े झटके आते हैं तो मुद्रास्फीति 4% पर ही रहेगी।

30. वर्तमान और अपेक्षित मूल मुद्रास्फीति के संदर्भ में, वास्तविक ब्याज दरें अब स्वाभाविक या तटस्थ ब्याज दर (एनआईआर) से अधिक हैं, जो मुद्रास्फीति को लक्ष्य पर और आउटपुट को संभावित स्तर पर रखने के अनुकूल है। वर्तमान में यह कम चिंता का विषय है, क्योंकि कॉर्पोरेट लाभ भी अधिक है और कुछ मुद्दों के बावजूद, संवृद्धि मजबूत बनी हुई है; उन क्षेत्रों में निजी निवेश बढ़ रहा है जहां नवाचार है या क्षमता पहुंच गई है; निर्यात और ग्रामीण खपत में सुधार हो रहा है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ऋण संवृद्धि लगातार मजबूत बनी हुई है। गति में थोड़ी कमी, विशेष रूप से तेज वृद्धि वाली श्रेणियों में, वांछनीय है क्योंकि ऋण वृद्धि जोखिम उत्पन्न करती हैं। भारत के अपेक्षाकृत कम ऋण/जीडीपी अनुपात को बढ़ाना होगा, लेकिन यह सबसे अच्छा होगा यदि यह धीरे-धीरे हो ताकि यह टिकाऊ हो।

31. लेकिन समय-समय पर होने वाले हेडलाइन आघातों की भरपाई के लिए मूल मुद्रास्फीति को कम करने की एक सीमा होनी चाहिए। मूल के 4% से नीचे बने रहने का अर्थ है कि वास्तविक नीतिगत दरें संकुचन क्षेत्र में हैं।

32. महामारी के बाद वास्तविक नीति दरों को लगभग इकाई की तटस्थ दर के करीब रखा गया, साथ ही आघातों को बेअसर करने के लिए आपूर्ति पक्ष की कार्रवाई ने मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं को नियंत्रित करते हुए संवृद्धि का समर्थन किया। लेकिन जब मुद्रास्फीति में गिरावट आती है, तब वास्तविक दरें बढ़ती हैं और यदि वे तटस्थ दरों से ऊपर बनी रहती हैं तो मौद्रिक नीति के प्रभाव कुछ महीनों के बाद संवृद्धि को कम करना शुरू कर देंगे। लचीला मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (एफआईटी) दूरदर्शी है और इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अपेक्षित वास्तविक दरें एनआईआर से ऊपर न बढ़ें। चूँकि एनआईआर समय-समय पर बदलता रहता है और इसका सटीक अनुमान लगाना कठिन है, इसलिए यह निर्णय महत्वपूर्ण हो जाता है।

33. नीति संबंधी समय- सीमा3में भारतीय एनआईआर को प्रभावित करने वाले प्रासंगिक कारकों का आकलन करना संभव है। उच्च संवृद्धि और ऋण की मांग एनआईआर को बढ़ाती है, लेकिन संभावित उत्पादन में वृद्धि और न्यूनतर प्रति व्यक्ति आय में गैर-मुद्रास्फीति वृद्धि को सक्षम करने वाले सुधार; उच्चतर पूंजी प्रवाह, न्यूनतर चालू खाता घाटा, राजकोषीय घाटे में कमी, विवेकपूर्ण जोखिम भार का उपयोग और प्रावधानीकरण, जो जोखिम वाले प्रीमियम को कम करता है4; उत्पादकता संवृद्धि से कम वेतनवृद्धि, एनआईआर को कम करती है। चूँकि ये कारक विपरीत दिशाओं में काम करते हैं इसलिए वे एक-दूसरे को निष्प्रभाव कर सकते हैं।

34. उभरते बाज़ारों में मौजूदा नीति के लिए अपेक्षित मध्यम अवधि के परिवर्ती अधिक महत्वपूर्ण हैं जो स्थिर स्थिति से बहुत दूर हैं। अतः मुद्रास्फीति स्वयं व्यवहार्य या संभावित संवृद्धि को निर्धारित करने के लिए उपयोगी अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। लक्ष्य के करीब पहुंच रही मुद्रास्फीति अतिसक्रियता की अनुपस्थिति का संकेत देती है, इसलिए संवृद्धि संभावना से कम है और एनआईआर में वृद्धि नहीं हुई है। यदि मजबूत संवृद्धि के बावजूद मूल मुद्रास्फीति 4% से कम है, और गिरावट भी जारी है, तो अधिक मांग नहीं हो सकती है। आईआईएम अहमदाबाद के सर्वेक्षण से पता चलता है कि कंपनियों की औसत मुद्रास्फीति की प्रत्याशाएँ पिछले वर्ष 4.3% पर स्थिर रहीं। कंपनियों ने पुनर्गठन और लागत कम करने के अलावा मुद्रास्फीति लक्ष्य को भी आत्मसात कर लिया होगा। गैर-मुद्रास्फीतिकारी उच्च संवृद्धि एक माध्यमिक कैच-अप प्रक्रिया के भाग के रूप में संभव है जो भारत के अल्प-रोज़गारप्राप्त युवाओं के लिए उत्पादक नौकरियां उत्पन्न करेगा।

35. मूल का लक्षित मुद्रास्फीति के निकट बने रहने और औसत हेडलाइन मुद्रास्फीति के 5 से नीचे रहने का तात्पर्य लक्ष्य की ओर विश्वसनीय दृष्टिकोण है, क्योंकि एफआईटी अवधि के लिए शोध से पता चलता है कि महामारी के आघातों के बावजूद दीर्घकालिक आकस्मिकता, मूल से हेडलाइन मुद्रास्फीति तक बनी हुई है ।5मूल मुद्रास्फीति के पूर्वानुमानों को प्रकाशित करने से मुद्रास्फीति को लक्षित करने के लिए हेडलाइन के अभिसरण में मदद मिल सकती है। एफआईटी व्यवस्था में प्रतिस्पर्धी पूर्वानुमान एक महत्वपूर्ण विषय है। हेडलाइन की तुलना में मूल कम अस्थिर है लेकिन सही पूर्वानुमानों के लिए यह समझने की आवश्यकता है कि नए आंकड़े भारतीय संरचना में कैसे कार्य करते हैं।

36. जबकि जोखिम बने हुए हैं, भविष्य में आपूर्ति के आघातों और उनके प्रभावों में कमी की आशा करने के कारण भी हैं – यथा बेहतर अभिशासन 6और निवेश में लगातार वृद्धि, बाधाओं और लॉजीस्टिक्स लागत को कम कर रही है; विकास और विविधता के साथ आघात सहनीयता बढ़ रही है; अल नीनो, ला नीना में बदल रहा है; तेल से दूर, एलपीजी और पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कटौती के साथ प्रतिस्थापन का प्रभाव और उपभोग समूह में भोजन जैसी अस्थिर मूल्य वाली वस्तुओं का भार कम होना।

37. भले ही प्रचुर सावधानी के कारण एनआईआर को 1.5% तक बढ़ा दिया गया है क्योंकि स्थिर संवृद्धि मुद्रास्फीति लक्ष्य तक पहुंचने पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देती है, वास्तविक नीति दर वित्त वर्ष 2025 की अपेक्षित हेडलाइन मुद्रास्फीति (4.5%) के संदर्भ में भी 2% से ऊपर है; और अपेक्षित मूल मुद्रास्फीति के संदर्भ में और भी अधिक है। रेपो दरों में कटौती के बावजूद नीति अभी भी संकुचनकारी रहेगी। तथापि, कई प्रकार की अनिश्चितताओं की वर्तमान स्थिति में स्थिरता बनाए रखना प्राथमिकता होनी चाहिए। अतएव, मैं रेपो दर में विराम और अपरिवर्तित रुख के लिए वोट करना जारी रखता हूं। भविष्य की रेपो दर के संकेत देना डेटा-आधारित मार्गदर्शन के अनुकूल नहीं है और यह बाज़ार में अनावश्यक उथल-पुथल उत्पन्न कर सकता है जैसा कि अमेरिका में हुआ है। नीति भविष्योन्मुखी बनी हुई है क्योंकि यह इस बात पर प्रतिक्रिया देती है कि डेटा, प्रकाशित मुद्रास्फीति और संवृद्धि के पूर्वानुमानों को कैसे प्रभावित करता है। इसके प्रतिक्रिया कार्य को अब तक बाज़ारों द्वारा अच्छी तरह से समझा जाना चाहिए, जिससे उन्हें पर्याप्त मार्गदर्शन मिल सके।

38. बाज़ार में चलनिधि की सख्ती दूर हो गई है। इस तरह की सख्ती छोटी दरों को अधिक प्रभावित करती है, जिसका सकल मांग और मुद्रास्फीति पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है। एफआईटी के अंतर्गत, घरेलू कारकों द्वारा निर्धारित रेपो दर को उचित स्तर पर रखने के माध्यम से नीति संचरण सबसे अच्छा होता है। दरें, बैंकों और बाज़ारों दोनों के माध्यम से संचारित होती हैं। उदाहरण के लिए, वाणिज्यिक क्षेत्र के लिए उपलब्ध संसाधनों के वार्षिक प्रवाह के प्रतिशत के रूप में बैंकों का गैर-खाद्य ऋण, 2007-23 के दौरान औसतन 44.3% रहा है। अन्य स्रोतों से प्रतिस्पर्धा का अर्थ, नीतिगत रेपो का ऋण दरों में पूर्ण संचरण से कम होना हो सकता है, लेकिन यह भारतीय वित्तीय क्षेत्र में बढ़ती विविधता, परिपक्वता, स्प्रेड में गिरावट और बढ़ती दक्षता की ओर इशारा करता है। रेपो दर के साथ बाज़ार दरें भी बढ़ती हैं।

प्रो.जयंत आर.वर्मा का वक्तव्य

39. मेरे विचार काफी हद तक पिछली बैठक (फरवरी 2024) के समान ही हैं और इसलिए मैं संक्षेप में बताऊंगा। कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के बावजूद, मुद्रास्फीति की संभावना अनुकूल बनी हुई है, और मुझे विश्वास है कि 1-1.5% की वास्तविक ब्याज दर मुद्रास्फीति को 4% के लक्ष्य तक ले जाने के लिए पर्याप्त होगी। अतः 2% की वर्तमान वास्तविक नीतिगत दर (2024-25 के लिए अनुमानित मुद्रास्फीति के आधार पर) अत्यधिक है।

40. अल्पावधि फिलिप्स वक्र के कारण यह अनावश्यक उच्च वास्तविक दर अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है। यह तथ्य कि 2024-25 में आर्थिक संवृद्धि 2023-24 की तुलना में आधे प्रतिशत से अधिक धीमी होने का अनुमान है, याद दिलाता है कि उच्च ब्याज दरों के कारण संवृद्धि में बाधा आती है। मौद्रिक नीति को यह सुनिश्चित करते हुए इस बाधा को कम करने का प्रयास करना चाहिए कि मुद्रास्फीति (ए) सीमा के भीतर बनी रहे और (बी) लक्ष्य की ओर अग्रसर हो।

41. अतएव मैं रेपो दर को 25 आधार अंकों तक कम करने और रुख को तटस्थ में बदलने के लिए वोट करता हूं।

डॉ राजीव रंजन का वक्तव्य
42. फरवरी 2024 के अपने पिछले वक्तव्य में, मैंने स्पष्ट रूप से बताया था कि उस समय रुख या दर में कोई ढील वांछनीय क्यों नहीं थी। अब पिछली नीति और इस नीति के बीच क्या बदलाव हुआ है।

43. फरवरी नीति के बाद जारी दूसरे अग्रिम अनुमान (एसएई) के अनुसार, वास्तविक जीडीपी संवृद्धि मजबूत गति के साथ सुदृढ़ हो गई है, जो सभी अनुमानों से बेहतर है। ऐसा लगता है कि महामारी या मौद्रिक सख्ती के कारण संवृद्धि पर न्यूनतम असर पड़ा है।

44. सीपीआई हेडलाइन मुद्रास्फीति में कमी प्रत्याशा के अनुरूप बनी हुई है, यद्यपि खाद्य और मूल मुद्रास्फीति के बीच विचलन जारी है। सर्दियों के मौसम में कीमतों में कम सुधार के कारण खाद्य मुद्रास्फीति सब्जियों की कीमतों से प्रभावित बनी हुई है, जो गर्मियों के दौरान सामान्य तापमान से ऊपर रहने की संभावना के कारण बनी रह सकती है। पिछली नीति के बाद से मूल मुद्रास्फीति में और कमी आई है। यह सभी वस्तुओं और सेवाओं के लिए व्यापक आधारित है और सभी बहिष्करण-आधारित मूल उपायों के साथ-साथ सांख्यिकीय रूप से चुनिंदा माध्य उपायों के लिए लगभग सार्वभौमिक है। 7 इसके अलावा, यह कीमत की न्यूनतर गति से प्रेरित है।8 जबकि कम मूल मुद्रास्फीति अवस्फीति प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगी, खाद्य मुद्रास्फीति की संभावना पर चिंताएं बनी हुई हैं। हमें प्रतिकूल जलवायु कारकों, आपूर्ति पक्ष के आघातों और भू-राजनीतिक घटनाओं से मुद्रास्फीति की संभावना के ऊर्ध्वगामी जोखिमों पर सतर्क रहने की आवश्यकता है।

45. आगे बढ़ते हुए, जबकि मौद्रिक नीति सही रास्ते पर लगती है, मुद्रास्फीति के विरुद्ध ढील देना जल्दबाजी होगी। यह महत्वपूर्ण है कि हम 2024-25 के लिए अपने समष्टि आंकड़ों और उनकी बारीकियों पर अधिक विश्वास प्राप्त करें। हम अभी वित्तीय वर्ष की शुरुआत में हैं। वित्तीय वर्ष 2022-23 भी ज्यादा पीछे नहीं है जब अप्रत्याशित घटनाओं के कारण एक महीने के भीतर हमारी सभी धारणाएँ और अनुमान बदल गए। वर्ष के कुछ महीनों में, हमारे पास मानसून और उसके स्थानिक वितरण, चालू तिमाही में अपेक्षित गर्म मौसम के प्रभाव, रबी उत्पादन और खरीद तथा खरीफ की बुआई पर स्पष्टता होगी, ये सभी 2024-25 में संवृद्धि-मुद्रास्फीति संतुलन को आकार देने के लिए महत्वपूर्ण हैं। मध्य पूर्व में भू-राजनीति गतिविधियों के अनुरूप मांग आपूर्ति पर बदलती धारणाओं के साथ कच्चे तेल की संभावना तेजी से बदल रही है, जो बढ़ रही है। इसके अलावा, वैश्विक गतिविधियों के कारण, निविष्टि कीमतों में बढ़ोतरी के संकेत दिख रहे हैं, जिस पर नजर रखने की जरूरत है। मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत के लक्ष्य पर लाना हमारा उद्देश्य है और यहां तक आने के बाद यह ज्यादा दूर नहीं है। हमें मुद्रास्फीति पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूत संवृद्धि द्वारा प्रदान समय का उपयोग करने की आवश्यकता है। कई अन्य उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) के साथ हमारे अपने इतिहास, से पता चलता है कि मुद्रास्फीति के संबंध में कोई भी जोखिम लेने से मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं के अनियंत्रित होने से भारी कीमत चुकानी पड़ती है जो मुद्रास्फीति की घटनाओं को बढ़ाती है और मूल्य स्थिरता के कार्य को और अधिक कठिन बना देती है।

46. वैश्विक स्तर पर, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की केंद्रीय बैंकों द्वारा दरों में शीघ्र और तेजी से कमी की बाज़ार प्रत्याशाएँ आने वाले आंकड़ों के साथ संरेखित नहीं हैं, जिससे प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में नीतिगत सुलभता चक्र के समय के बारे में बाज़ार की धारणाओं में कतिपय अनिश्चितता बढ़ रही है। तथापि, भारत में, वर्तमान में बाज़ार की प्रत्याशाएँ एमपीसी के विचारों और मूल्यांकन से निकटता से संरेखित प्रतीत होती हैं। यह भारत की अवस्फीति प्रक्रिया के अंतिम मील के लिए एक जीत की स्थिति है जब प्रत्याशाएँ दीर्घकालिक अपेक्षाओं को पूरा करने में योगदान देने वाली नीति व्यवस्था के अनुरूप हैं।9 अतः, भले ही मूल्य स्थिरता के लिए वर्तमान ऊर्ध्वगामी जोखिम भौतिक हो, जो मुख्य रूप से अनिश्चित खाद्य या अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी की कीमतों से गैर-प्रमुख घटकों से संबंधित हो, स्थिर मुद्रास्फीति की प्रत्याशाएँ मौद्रिक नीति से परे लाभों के साथ ऐसे आघातों10 के प्रभाव-विस्तार को कम कर सकती हैं।11

47. अंत में, हाल के वर्षों में बड़े और प्रतिकूल आपूर्ति आघातों की श्रृंखला ने कीमतों और उत्पादन दोनों जो प्रतिकूल दिशाओं में बढ़ रहे थे, को स्थिर करने के लिए, मौद्रिक नीति को कठिन समझौताकारी-समन्वयन(ट्रेड-ऑफ)12 के लिए प्रेरित किया है। एमपीसी ने लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण ढांचे के 'लचीलेपन' का उपयोग किया है और हम ऐसी स्थिति में पहुंच गए हैं जहां यह समझौताकारी-समन्वयन मुद्रास्फीति के कम होने और संवृद्धि के मजबूत स्तर पर पहुँचने के कारण धुंधला हो गया है। इस संचरण के दौरान, तीन सी - सावधानी, स्थिरता और विश्वसनीयता - हॉलमार्क रहे हैं। जबकि 'सावधानी' में हमारे दृढ़ विश्वास की पुष्टि के लिए अधिक डेटा की प्रतीक्षा करना शामिल है, 'स्थिरता' नीतिगत निर्णय में बैकपेडलिंग को समाप्त करती है और 'विश्वसनीयता' मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं को मजबूत करने की सुविधा प्रदान करती है। चुनौतियों के बावजूद इस दृष्टिकोण ने हमें अच्छी स्थिति में खड़ा किया है और हमें इसकी खूबियों के कारण इसे जारी रखने की आवश्यकता है। स्मरण करते हुए, मौद्रिक सख्ती की राह पर चलने से ठीक पहले,तब हमारा प्रयास था कि जब तक संवृद्धि अपनी जड़ें नहीं जमा ले और आत्मनिर्भर नहीं हो जाए, तब तक हम निभावकारी नीति निर्धारण को नहीं छोड़ेंगे। परिणाम यह है कि मौद्रिक सख्ती के बावजूद आज संवृद्धि धारणीय है। इसी तरह से, इस दृष्टिकोण द्वारा समर्थित 4 प्रतिशत लक्ष्य की ओर मुद्रास्फीति के धारणीय रूप से अधोगामी होना सुनिश्चित करना, संचरण चुनौतियों का समाधान करने का सबसे अच्छा तरीका है। नीतिगत कार्रवाई में जल्दबाजी की बजाय धैर्य रखना समय की मांग है। अतएव, मैं इस नीति में दर और रुख पर यथास्थिति के लिए वोट करता हूं।

डॉ माइकल देवब्रत पात्र का वक्तव्य
48. हाल के मुद्रास्फीति प्रिंट और मुख्य खाद्य कीमतों पर उच्च आवृत्ति डेटा से संकेत मिलता है कि खाद्य मुद्रास्फीति जोखिम ऊंचा बना हुआ है। मई 2024 तक तापमान बढ़ने के पूर्वानुमान के साथ, गर्मियों की शुरुआत से अपेक्षाकृत उथली हुई और अल्पकालिक शीतकालीन गर्त, कीमतों में वृद्धि का मार्ग प्रशस्त कर रही है। बढ़ती इनपुट लागत और आपूर्ति श्रृंखला दबाव के माहौल में कुछ वैश्विक खाद्य कीमतें मजबूत हो रही हैं। स्थिर मूल अवस्फीति और ईंधन मूल्य अपस्फीति द्वारा प्रदान किया गया अंतराल (हेडरूम), लक्ष्य के साथ हेडलाइन के तेज़ संरेखण का आश्वासन नहीं देती है। परिणामस्वरूप, 2024-25 की दूसरी तिमाही में अनुकूल आधार प्रभाव लागू होने तक हेडलाइन मुद्रास्फीति के सहनशीलता बैंड की ऊपरी पहुंच में बने रहने की उम्मीद की जा सकती है। इसलिए, मौद्रिक नीति के प्रतिबंधात्मक रुख में किसी भी तरह की कमी की स्थिति अभी तक नहीं बनी है। मुद्रास्फीति पर नीचे की ओर दबाव तब तक बनाए रखा जाना चाहिए जब तक कि जोखिमों का बेहतर संतुलन स्पष्ट न हो जाए और निकट अवधि में छाई अनिश्चितता की परतें दूर न हो जाएं। इस अंतराल में, मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत के लक्ष्य के साथ स्थायी रूप से संरेखित करने की प्रतिबद्धता पर जोर देने की आवश्यकता है। मुद्रास्फीति की अपेक्षाओं को स्थिर करने की दिशा में प्रगति हो रही है, जैसा कि भविष्योन्मुखी सर्वेक्षणों में दर्शाया गया है; मुद्रास्फीति लक्ष्य प्राप्त करने के लिए उन्हें नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है।

49. घरेलू मांग बढ़ रही है, और उत्पादन अंतर समाप्त हो गया है। निवेश परिदृश्य में सुधार हो रहा है; हालाँकि, निजी खपत और कॉर्पोरेट बिक्री वृद्धि में मजबूत पुनरुद्धार से अधिक आत्मविश्वास हो सकता है कि मुद्रास्फीति घट रही है। निर्यात निष्पादन में हालिया सुधार, यदि कायम रहता है, तो कुल मांग पर दबाव कम हो जाएगा।

50. आपूर्ति प्रतिक्रियाओं में भी सुधार हो रहा है, लेकिन वे सामान्य मानसून; विनिर्माण बिक्री को बढ़ावा देने और क्षमता की बाधाओं को कम करने के लिए निजी निवेश चक्र में तेजी; और सेवाओं की प्रवृत्ति वृद्धि को बनाए रखने पर निर्भर होंगे। मामूली चालू खाता घाटा, तीव्र पूंजी प्रवाह और बढ़ते विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि के साथ बाहरी तुलन- पत्र मजबूत है। इसे प्रणालीगत केंद्रीय बैंकों की मौद्रिक नीति रुख में व्यवस्था परिवर्तन के जवाब में, घरेलू आर्थिक गतिविधि को वैश्विक स्पिलओवर से बचाना चाहिए, जो या तो चल रहे हैं या आसन्न हैं। तथापि, भारत में समष्टिआर्थिक परिणामों के लिए वित्तीय स्थिरता के जोखिमों की बारीकी से और लगातार निगरानी की जानी चाहिए, और पहले से ही दूर किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर, मूल्य स्थिरता को बहाल करना होगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत जिस बढ़ते संवृद्धि पथ पर आगे बढ़ रहा है, वह कायम रहे।

51. तदनुसार, मैं नीति दर पर यथास्थिति और निभाव को वापस लेने के रुख पर दृढ़ता के लिए वोट करता हूं।

श्री शक्तिकान्त दास का वक्तव्य

52. भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले तीन वर्षों के दौरान 8 प्रतिशत की औसत वार्षिक संवृद्धि के साथ मजबूत गति से बढ़ रही है। भारत विश्व में सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है, जिसे निवेश चक्र में बढ़ोतरी और विनिर्माण क्षेत्र में पुनरुद्धार से मदद मिली है। सेवा क्षेत्र लगातार मजबूत गति से बढ़ रहा है।

53. जनवरी-फरवरी 2024 के दौरान सीपीआई हेडलाइन मुद्रास्फीति (प्रत्येक महीने में 5.1 प्रतिशत) दिसंबर 2023 में देखे गए ऊंचे स्तर (5.7 प्रतिशत) से कम हो गई है। जून 2023 से सीपीआई मूल मुद्रास्फीति (खाद्य और ईंधन मुद्रास्फीति को छोड़कर सीपीआई) में 180 बीपीएस की लगातार और व्यापक नरमी, अवस्फीति प्रक्रिया को चला रही है, हालांकि अस्थिर और ऊंची खाद्य मुद्रास्फीति इसकी गति को बाधित कर रही है।

54. आगे देखते हुए, आधारभूत अनुमानों से पता चलता है कि मुद्रास्फीति 2023-24 में 5.4 प्रतिशत से घटकर 2024-25 में 4.5 प्रतिशत और 2022-23 में 6.7 प्रतिशत हो जाएगी। अवस्फीति प्रक्रिया में इस सफलता से, हमें आपूर्ति पक्ष के झटके की बार-बार होने वाली घटनाओं, विशेष रूप से प्रतिकूल मौसम की घटनाओं और अन्य कारकों के कारण खाद्य मुद्रास्फीति की मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र की भेद्यता से विचलित नहीं होना चाहिए। खाद्य पदार्थों की कीमतों में ओवरलैपिंग के झटके, हेडलाइन मुद्रास्फीति में अस्थिरता प्रदान करने के अलावा, मूल मुद्रास्फीति पर भी प्रभाव डाल सकते हैं। लंबे समय से चल रहे भू-राजनीतिक तनाव और पण्य की कीमतों और आपूर्ति श्रृंखलाओं पर उनके प्रभाव भी मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र में अनिश्चितताओं को बढ़ा रहे हैं। उक्त को देखते हुए, अवस्फीति के अंतिम चरण तक अत्यधिक सावधानी के साथ मौद्रिक नीति कार्यों की आवश्यकता होगी।

55. 2024-25 में भारतीय अर्थव्यवस्था की संवृद्धि संभावनाएं उज्ज्वल दिख रही हैं। 2024 में सामान्य दक्षिण-पश्चिम मानसून की उम्मीदें, कृषि क्षेत्र और ग्रामीण मांग के लिए अच्छा संकेत हैं। उपभोक्ता विश्वास बढ़ने और रोजगार और आय पर आशावाद के साथ-साथ ग्रामीण मांग में मजबूती से निजी खपत को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों की संभावनाएं भी उज्ज्वल बनी हुई हैं। फर्मों के आशावादी व्यावसायिक दृष्टिकोण, स्वस्थ कॉर्पोरेट और बैंक तुलन- पत्र, लंबी अवधि के औसत से ऊपर क्षमता उपयोग के साथ निजी पूंजीगत व्यय चक्र में तेजी से घरेलू निवेश गतिविधि को और बढ़ावा मिलने की उम्मीद की जा सकती है। वैश्विक संवृद्धि और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संभावनाओं में सुधार से बाहरी मांग को बल मिल सकता है।

56. इन संवृद्धि मुद्रास्फीति की गतिशीलता को देखते हुए, मेरा मानना है कि मौजूदा मौद्रिक नीति सेटिंग अच्छी स्थिति में है। बाजार की अपेक्षाएं भी एमपीसी से निकटता से जुड़ी हुई हैं। मौद्रिक नीति का संचरण जारी है और परिवारों की मुद्रास्फीति की उम्मीदें भी और स्थिर हो रही हैं। इस स्तर पर, हमें मार्ग पर बने रहना चाहिए और सतर्क रहना चाहिए। पिछले दो वर्षों में अवस्फीति में प्राप्त लाभ को संरक्षित करना होगा और टिकाऊ आधार पर मुख्य मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत के लक्ष्य तक लाने की दिशा में आगे बढ़ना होगा। 2024-25 के लिए हमारे जीडीपी अनुमानों के साथ मजबूत संवृद्धि गति, हमें मूल्य स्थिरता पर अटूट रूप से ध्यान केंद्रित करने के लिए नीतिगत स्थान देती है। मूल्य स्थिरता हमारा अनिवार्य लक्ष्य है और यह उच्च संवृद्धि की अवधि के लिए मजबूत नींव तैयार करता है। तदनुसार, मैं नीतिगत रेपो दर को अपरिवर्तित रखने और निभाव को वापस लेने पर ध्यान जारी रखने के लिए वोट करता हूं।

 

(योगेश दयाल)      
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2024-2025/138                                          


1इंग्लिश, बी., फोर्ब्स, के. और उबाइड, ए. 2024. 'मोनेटरी पालिसी रेस्पॉन्सेस टु द पोस्ट -पान्डेमिक इन्फ्लेशन ।' सीईपीआर प्रेस। लंदन, यूके। https://cepr.org/publications/books-and-reports/monetary-policy-responses-post-pandemic-inflationपर उपलब्ध है।

2इसके डर से अमेरिकी फेड ने मुद्रास्फीति के लिए नीतिगत दरों से बदलाव के लिए 'लंबे समय तक उच्च' नीति अपनाई है। आउटपुट त्याग को कम करने के लिए मुद्रास्फीति को लंबे समय तक लक्ष्य से थोड़ा ऊपर रहने देने की अधिक इच्छा है।

3आईएमएफ (अप्रैल 2023) ने वर्ल्ड इकनोमिक आउटलुक के अध्याय 2 में अनुमानित है कि दीर्घकालिक भारतीय एनआईआर एई स्तरों में परिवर्तित हो जाएगा जो महामारी-पूर्व के निचले स्तर पर वापस चला जाएगा।

4विनिमय दरों सहित कारकों के क्रॉस-कंट्री अनुमान के लिए, जो ईएम जोखिम प्रीमियम को प्रभावित करते हैं, गोयल एट. अल. (2021) देखें। गोयल (2024) भारतीय ब्याज दरों को प्रभावित करने वाली खुली अर्थव्यवस्था के कारकों का विश्लेषण करते हैं। उदाहरण के लिए, एक वर्ष आगे विनिमय दर प्रीमियम जो 2014-19 में 5.19% था, 2023 में गिरकर 1.95% हो गया। गोयल, ए., वर्मा, ए., और सेनगुप्ता, आर. 2021। ''बाह्य आघात, सीमापारीय प्रवाह और उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में समष्टि आर्थिक जोखिम 'अनुभवजन्य अर्थशास्त्र, 62, पीपी. 2111-2148। https://doi.org/10.1007/s00181-021-02099-zपर उपलब्ध है; गोयल, ए. 2024. 'मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के अंतर्गत भारत की विनिमय दर व्यवस्था। 'इंडियन इकोनॉमिक जर्नल, डॉ. रंगराजन के सम्मान में विशेष अंक, 72(5), अक्तूबर, आगामी। पिछला संस्करण http://www.igidr.ac.in/pdf/publication/WP-2023-015.pdf

पर उपलब्ध है।

5जबकि 2014 में आईएमएफ के एक अध्ययन में हेडलाइन से लेकर मूल मुद्रास्फीति तक आकस्मिकता पाई गई थी, बाद के अध्ययनों में इससे विपरीत पाया गया। अभिसरण में लगने वाला समय आघातों पर निर्भर करता है, लेकिन दिशा विपरीत नहीं होती। मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं के अधिक स्थिर रहने की सीमा तक, आघातों के बावजूद यह तेज हो सकता है, जॉर्ज, ए.टी., भाटिया, एस., जॉन, जे., और दास, पी. 2024। 'हेडलाइन एंड कोर इन्फ्लेशन डायनेमिक्स: हाल के आघातों ने भारत के लिए मूल मुद्रास्फीति विशेषताओं को बदल दिया है? आरबीआई बुलेटिन, फरवरी: 101-116 https://website.rbi.org.in/web/rbi/-/publications/rbi-bulletin/headline-and-core-inflation-dynamics-have-the-recent-shocks-changed-the-core-inflation-properties-22393पर उपलब्ध।

6गोयल, ए. 2012. 'प्रोपेगेशन मैकेनिस्म इन इन्फ्लेशन : गवर्नेंस एज की। एस.एम. देव (एड.) में अध्याय 3, भारत विकास रिपोर्ट 2012, पीपी. 32-46, नई दिल्ली: आईजीआईडीआर और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस।

7दिसंबर 2023 और फरवरी 2024 के बीच विभिन्न अपवर्जन-आधारित उपायों में 10-40 आधार अंकों की सीमा में गिरावट आई। चुनिंदा औसत उपायों में भी दिसंबर 2023 और फरवरी 2024 के बीच 20-50 आधार अंकों की सीमा में गिरावट आई, जिसमें भारित औसत दिसंबर में 4.1 प्रतिशत से घटकर फरवरी में 3.6 प्रतिशत हो गया।

8सीपीआई मूल की गति (मौसमी रूप से समायोजित वार्षिक दर -एसएएआर के आधार पर) जनवरी में 3.1 प्रतिशत से घटकर फरवरी 2024 में 2.4 प्रतिशत हो गई।

9यूसेपी, एस., और बी. प्रेस्टन (2010): "सेंट्रल बैंक कम्युनिकेशन एंड मैक्रोइकॉनॉमिक स्टेबिलाइज़ेशन", अमेरिकन इकोनॉमिक जर्नल: मैक्रोइकॉनॉमिक्स, 2, 235-271।

10गति, एल. (2023), "मोनेटरी पालिसी & एंकर्ड एक्सपेक्टेशंस – एन एंडोजीनियस गेन लर्निंग मॉडल", जर्नल ऑफ़ मोनेटरी इकोनॉमिक्स, खंड 140, अनुपूरक, पीपी एस37-एस47।

11मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं पर नियंत्रण से एफडीआई बढ़ता है, उत्पादन और रोजगार को स्थिर करने में मदद मिलती है। हेल्डर फरेरा डी मेंडोंका और ब्रूनो पाइरेस टिबर्टो ने 1990 से 2019 तक 75 उभरते बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईएमडीई) के डेटा का विश्लेषण किया;   https://www.bis.org/publ/bppdf/bispap143_j.pdf

12जब अर्थव्यवस्था केवल मांग के आघातों से संचालित होती है, तो मूल्य स्थिरता और उत्पादन स्थिरीकरण के लिए मौद्रिक नीति को एक ही दिशा में ले जाने की आवश्यकता होगी और इसमें कोई समझौताकारी-समन्वयन नहीं है - 'दैवीय संयोग' (ब्लैंचर्ड, ओलिवियर द्वारा गढ़ा गया एक शब्द; गैली, जोर्डी (2007) ) "रियल वेज रिजिडिटीज एंड द न्यू कीनेसियन मॉडल", जर्नल ऑफ मनी, क्रेडिट एंड बैंकिंग। 39 (1): (35–65)

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