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मौद्रिक नीति समिति की 5-7 दिसंबर 2022 के दौरान हुई बैठक का कार्यवृत्त

21 दिसंबर 2022

मौद्रिक नीति समिति की 5-7 दिसंबर 2022 के दौरान हुई बैठक का कार्यवृत्त
[भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45ज़ेडएल के अंतर्गत]

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45जेडबी के तहत गठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की चालीसवीं बैठक 5-7 दिसंबर 2022 के दौरान आयोजित की गई थी।

2. बैठक में सभी सदस्य – डॉ. शशांक भिड़े, माननीय वरिष्ठ सलाहकार, नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च, दिल्ली; डॉ. आशिमा गोयल, अवकाश प्राप्त प्रोफेसर, इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च, मुंबई; प्रो. जयंत आर. वर्मा, प्रोफेसर, भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद; डॉ. राजीव रंजन, कार्यपालक निदेशक (भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडबी (2) (सी) के अंतर्गत केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित रिज़र्व बैंक के अधिकारी); डॉ. माइकल देवब्रत पात्र, मौद्रिक नीति के प्रभारी उप गवर्नर उपस्थित रहें और इसकी अध्यक्षता श्री शक्तिकान्त दास, गवर्नर द्वारा की गई।

3. भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडएल के अनुसार, रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति समिति की प्रत्येक बैठक के चौदहवें दिन इस बैठक की कार्यवाहियों का कार्यवृत्त प्रकाशित करेगा जिसमें निम्नलिखित शामिल होगा:

(क) मौद्रिक नीति समिति की बैठक में अपनाया गया संकल्प;

(ख) उक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर मौद्रिक नीति के प्रत्येक सदस्य को प्रदान किया गया वोट; और

(ग) उक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर धारा 45ज़ेडआई की उप-धारा (11) के अंतर्गत मौद्रिक नीति समिति के प्रत्येक सदस्य का वक्तव्य।

4. एमपीसी ने रिज़र्व बैंक द्वारा उपभोक्ता विश्वास, परिवारों की मुद्रास्फीति प्रत्याशा, कॉर्पोरेट क्षेत्र के प्रदर्शन, ऋण की स्थिति, औद्योगिक, सेवाओं और आधारभूत संरचना क्षेत्रों के लिए संभावनाएं और पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के अनुमानों का आकलन करने के लिए किए गए सर्वेक्षणों की समीक्षा की। एमपीसी ने इन संभावनाओं के विभिन्न जोखिमों के इर्द-गिर्द स्टाफ के समष्टि आर्थिक अनुमानों और वैकल्पिक परिदृश्यों की विस्तृत रूप से भी समीक्षा की। उपर्युक्त पर और मौद्रिक नीति के रुख पर व्यापक चर्चा करने के बाद एमपीसी ने संकल्प अपनाया जिसे नीचे प्रस्तुत किया गया है।

संकल्प

5. वर्तमान और उभरती समष्टि आर्थिक परिस्थिति का आकलन करने के आधार पर मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आज (7 दिसंबर 2022) अपनी बैठक में यह निर्णय लिया है कि:

  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत नीतिगत रेपो दर को तत्काल प्रभाव से 35 आधार अंक बढ़ाकर 6.25 प्रतिशत कर दिया जाए।

परिणामस्वरूप, स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 6.00 प्रतिशत और सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.50 प्रतिशत हो गई है।

  • एमपीसी ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने का भी निर्णय लिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति आगे चलकर संवृद्धि को सहारा प्रदान करते हुए लक्ष्य के भीतर बनी रहे।

ये निर्णय, संवृद्धि को सहारा प्रदान करते हुए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति को +/- 2 प्रतिशत के दायरे में रखते हुए 4 प्रतिशत का मध्यावधि लक्ष्य हासिल करने के अनुरूप है।

स निर्णय में अंतर्निहित मुख्य विचार नीचे दिए गए विवरण में व्यक्त किए गए हैं।

आकलन

वैश्विक अर्थव्यवस्था

6. वैश्विक आर्थिक परिदृश्य अधोगामी बना हुआ है। मौद्रिक नीति की कार्रवाइयों से वित्तीय स्थितियों के सख्त होने और आजीविका की बढ़ती लागत के साथ उपभोक्ता विश्वास कमजोर होने से वैश्विक संवृद्धि में गिरावट होना निश्चित है। खाद्य और ऊर्जा की कीमतों के आघातों और कमियों का सामना कर रहे देशों में मुद्रास्फीति ऊंची और स्थिर बनी हुई है। हाल ही में, तथापि, मूल्य दबावों में कमी के कुछ संकेत मिल रहे हैं, जिससे मौद्रिक सख्ती की गति में कमी आने की आशा बढ़ गई है। सॉवरेन बॉण्ड प्रतिफल में कमी के साथ-साथ अमेरिकी डॉलर अपने उच्च स्तर से नीचे आ गया है। उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) में पूंजी प्रवाह अस्थिर बना हुआ है और वैश्विक प्रभाव विस्तार संवृद्धि की संभावनाओं के लिए जोखिम उत्पन्न कर रहा है।

घरेलू अर्थव्यवस्था

7. घरेलू मोर्चे पर, वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वर्ष-दर-वर्ष (वाई-ओ-वाई) आधार पर 2022-23 की पहली तिमाही में 13.5 प्रतिशत की वृद्धि के बाद दूसरी तिमाही में 6.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आपूर्ति पक्ष पर योजित सकल मूल्य (जीवीए) में दूसरी तिमाही में 5.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

8. तीसरी तिमाही में आर्थिक गतिविधियां आघात सहनीयता प्रतीत हो रहीं हैं। कृषि क्षेत्र में, रबी की बुवाई में तेजी (2 दिसंबर को एक वर्ष पहले की तुलना में 6.4 प्रतिशत अधिक) को उत्तर-पूर्वी मानसून की अच्छी प्रगति और उच्च्च औसत जलाशय स्तर से समर्थन प्राप्त हो रहा है। जैसा कि क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) और अन्य उच्च आवृत्ति संकेतकों में परिलक्षित होता है, उद्योग और सेवा क्षेत्रों में गतिविधियां विस्तार की ओर हैं।

9. त्यौहारी मौसम के दौरान संचित व्यय और विवेकाधीन व्यय ने कुल मांग की स्थिति का समर्थन किया है, यद्यपि उनका विकास कुछ क्षेत्रों में असमान है। शहरी मांग उच्च बनी हुई है और ग्रामीण मांग में बहाली हो रही है। निवेश गतिविधि में कुछ सुधार है। पण्य निर्यात में लगातार 19 महीनों तक वृद्धि के बाद अक्टूबर में कमी आई। गैर-तेल गैर-स्वर्ण आयात संवृद्धि में कमी आई।

10. सीपीआई मुद्रास्फीति सितंबर में 7.4 प्रतिशत से घटकर अक्टूबर 2022 में 6.8 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) रही, जिसने अनुकूल आधार प्रभावों के साथ अक्टूबर में मूल्य गति में वृद्धि के प्रभाव को कम किया। अनाज, दूध और मसालों की कीमतों में निरंतर दबाव के बावजूद सब्जियों और खाद्य तेलों में मुद्रास्फीति कम होने से खाद्य मुद्रास्फीति में कमी आई। एलपीजी, मिट्टी के तेल (पीडीएस) और ईंधन की लकड़ी और चिप्स के मूल्य मुद्रास्फीति में कमी के कारण अक्टूबर में ईंधन मुद्रास्फीति में कुछ कमी दर्ज की गई। मूल सीपीआई (अर्थात, खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई) मुद्रास्फीति अपने अधिकांश घटक उप-समूहों में कीमतों के दबाव के साथ 6 प्रतिशत के ऊंचे स्तर पर बनी रही।

11. चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत औसत दैनिक अवशोषण अगस्त-सितंबर में 2.2 लाख करोड़ की तुलना में अक्टूबर-नवंबर में 1.4 लाख करोड़ के साथ कुल चलनिधि अधिशेष बनी हुई है। वर्ष-दर-वर्ष आधार पर, मुद्रा आपूर्ति (एम3) में 18 नवंबर 2022 को 8.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि बैंक ऋण में 17.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2 दिसंबर 2022 को भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधियाँ 561.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर रही।

संभावना

12. आगे का मुद्रास्फीति पथ वैश्विक और घरेलू दोनों कारकों द्वारा निर्धारित होगा। खाद्य के मामले में, जबकि सब्जियों की कीमतों में मौसमी सर्दी के कारण कमी की संभावना है, अनाज और मसालों की कीमतें, आपूर्ति संबंधी चिंताओं के कारण निकट भविष्य में बढ़ी रह सकती हैं। उच्च चारा लागत भी दूध के संबंध में मुद्रास्फीति को बढ़ा सकती है। प्रतिकूल जलवायु घटनाएं - घरेलू और वैश्विक दोनों - तेजी से खाद्य कीमतों के लिए ऊर्ध्वगामी जोखिम का एक महत्वपूर्ण स्रोत बनती जा रही हैं। वैश्विक मांग कमजोर हो रही है। निरंतर भू-राजनीतिक तनाव, खाद्य और ऊर्जा की कीमतों की संभावना को अनिश्चितता प्रदान कर रहा है। औद्योगिक निविष्टि कीमतों और आपूर्ति श्रृंखला दबावों में कमी, यदि जारी रहती है, तो उत्पादन कीमतों पर दबाव कम करने में मदद मिल सकती है; परंतु निविष्टि लागत का लंबित प्रभाव- विस्तार मूल मुद्रास्फीति को स्थिर रख सकता है। अमेरिकी डॉलर के उतार-चढ़ाव से आयातित मुद्रास्फीति के जोखिमों पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत है। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए और औसत कच्चे तेल की कीमत (भारतीय समूह) 100 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल मानते हुए, 2022-23 में मुद्रास्फीति 6.7 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6.6 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.9 प्रतिशत के साथ अनुमानित है जिसमें जोखिम समान रूप से संतुलित हैं। सामान्य मानसून की अवधारणा पर 2023-24 की पहली तिमाही के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति 5.0 प्रतिशत और दूसरी तिमाही के लिए 5.4 प्रतिशत पर अनुमानित है (चार्ट 1)।

13. संवृद्धि पर, अच्छी रबी फसल की संभावनाओं के साथ, कृषि की संभावना उज्ज्वल है। संपर्क-गहन क्षेत्रों में निरंतर वृद्धि, शहरी उपभोग का समर्थन कर रही है। मजबूत और व्यापक आधार वाली ऋण संवृद्धि और पूंजीगत व्यय और बुनियादी ढांचे पर सरकार के जोर से निवेश गतिविधि को समर्थन मिलना चाहिए। भारतीय रिज़र्व बैंक के सर्वेक्षण के अनुसार, उपभोक्ता विश्वास में सुधार हो रहा है। तथापि, अर्थव्यवस्था को प्रलंबित भू-राजनीतिक तनावों, वैश्विक वित्तीय स्थितियों के सख्त होने और बाहरी मांग के मंद होने से विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2022-23 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि 6.8 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 4.4 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 4.2 प्रतिशत के साथ अनुमानित है, जिसमें जोखिम समान रूप से संतुलित हैं। वास्तविक जीडीपी संवृद्धि 2023-24 की पहली तिमाही के लिए 7.1 प्रतिशत और दूसरी तिमाही के लिए 5.9 प्रतिशत अनुमानित है (चार्ट 2)।

Chart 1 and 2

14. जनवरी 2022 से मुद्रास्फीति ऊपरी सहन स्तर पर या उससे ऊपर बनी हुई है और मूल मुद्रास्फीति लगभग 6 प्रतिशत बनी हुई है। 2022-23 की तीसरी और चौथी तिमाही में हेडलाइन मुद्रास्फीति के ऊपरी सीमा के करीब या ऊपर रहने की उम्मीद है। 2023-24 की पहली छमाही में इसके कम होने की संभावना है, लेकिन फिर भी यह लक्ष्य से काफी ऊपर बनी रहेगी। इस बीच, आर्थिक गतिविधि अच्छी है और घरेलू मांग के समर्थन से इसके आघात-सह होने की आशा है। बाहरी मांग की बदलती परिस्थितियों के कारण निवल निर्यात कमजोर रहेगा। इसके अलावा, किए गए मौद्रिक नीति उपायों के प्रभाव पर नज़र रखने की आवश्यकता है। समग्र रूप से, एमपीसी का विचार है कि मुद्रास्फीति की प्रत्याशाएं स्थिर रखने, मूल मुद्रास्फीति की दृढ़ता को कम करने और दूसरे दौर के प्रभावों को कम करने के लिए अधिक नपी-तुली मौद्रिक नीति कार्रवाई की आवश्यकता है ताकि मध्यावधि संवृद्धि संभावनाओं को मजबूत किया जा सके। तदनुसार, एमपीसी ने नीतिगत रेपो दर को 35 आधार अंकों से बढ़ाकर 6.25 प्रतिशत करने का निर्णय लिया। एमपीसी ने यह भी सुनिश्चित करने के लिए निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया कि आगे चलकर मुद्रास्फीति संवृद्धि का समर्थन करते हुए लक्ष्य के भीतर बनी रहे।

15. डॉ. शशांक भिड़े, डॉ. आशिमा गोयल, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने नीतिगत रेपो दर में 35 आधार अंकों की वृद्धि करने के लिए वोट किया। प्रो. जयंत आर. वर्मा ने रेपो दर में वृद्धि के विरुद्ध वोट किया।

16. डॉ. शशांक भिड़े, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने के लिए वोट किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति आगे चलकर संवृद्धि को सहारा प्रदान करते हुए लक्ष्य के भीतर बनी रहे। डॉ. आशिमा गोयल, और प्रो. जयंत आर. वर्मा ने संकल्प के इस हिस्से के विरुद्ध वोट किया।

17. एमपीसी की बैठक का कार्यवृत्त 21 दिसंबर 2022 को प्रकाशित किया जाएगा।

18. एमपीसी की अगली बैठक 6-8 फरवरी 2023 के दौरान निर्धारित है।

पॉलिसी रेपो दर को बढ़ाकर 6.25 प्रतिशत करने के संकल्प पर मतदान

सदस्य मत
डॉ. शशांक भिडे हाँ
डॉ. आशिमा गोयल हाँ
प्रो. जयंत आर. वर्मा नहीं
डॉ. राजीव रंजन हाँ
डॉ. माइकल देवब्रत पात्र हाँ
श्री शक्तिकान्त दास हाँ

डॉ. शशांक भिड़े का वक्तव्य

19. वित्त वर्ष 2022-23 की दूसरी तिमाही में वर्ष-दर-वर्ष वास्तविक जीडीपी वृद्धि संबंधी 6.3 प्रतिशत का आधिकारिक अनुमान, भारतीय रिज़र्व बैंक के सितंबर 2022 के पूर्वानुमान के बराबर है। यद्यपि वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि दूसरी तिमाही में पहली तिमाही में दर्ज 13.5 प्रतिशत से काफी कम है, फिर भी यह 3.6 प्रतिशत की तिमाही-दर-तिमाही वृद्धि के साथ एक मजबूत अनुक्रमिक गति को दर्शाता है। निजी अंतिम उपभोग व्यय, सकल स्थायी पूंजीगत व्यय तथा वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात ने पहली तिमाही में अनुक्रमिक विस्तार दिखाया है। हालांकि, आगे चलकर, संवृद्धि-समर्थक नीतिगत उपाय द्वारा अर्थव्यवस्था में नए अवसर प्रदान करने के बावजूद वैश्विक संवृद्धि धीमी होने से संवृद्धि परिदृश्य प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगा।

20. हाल की आर्थिक गतिविधियों के संकेतकों की विस्तृत शृंखला की समीक्षा, संवृद्धि की मिश्रित संभावना की ओर इशारा करती है। सितंबर 2022 के लिए औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी), जिस नवीनतम महीने के लिए आंकड़े उपलब्ध हैं, में वर्ष दर वर्ष आधार पर 3.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। हालांकि, समय के साथ सभी क्षेत्रों में पैटर्न असमान रहा है। जुलाई में 2.2 प्रतिशत की मामूली वृद्धि के बाद अगस्त में वृद्धि ऋणात्मक थी। आईआईपी उपभोक्ता गैर-टिकाऊ वस्तुओं में जुलाई, अगस्त और सितंबर में गिरावट आई, जबकि उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के लिए यह अगस्त और सितंबर में ऋणात्मक था। वित्तीय वर्ष 2022-23 की दूसरी तिमाही में विनिर्माण और उद्योग में कुल मिलाकर सकल मूल्य वर्धन में गिरावट आई और सेवाओं में इसमें वृद्धि हुई। दूसरी तिमाही में भारी गिरावट के बाद अक्तूबर में व्यापारिक वस्तुओं के निर्यात के मूल्य में अमेरिकी डॉलर के संदर्भ में 12.1 प्रतिशत की गिरावट आई। सेवाओं के निर्यात में अक्तूबर में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर वृद्धि हुई है लेकिन सितंबर के सापेक्ष इसमें गिरावट आई है।

21. सकारात्मक बात यह है कि पूंजीगत वस्तुओं और अवसंरचना, तथा निर्माण के लिए आईआईपी ने सितंबर में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर तेजी दर्ज की। विनिर्माण और सेवाओं के लिए क्रय प्रबंधक सूचकांक, अक्तूबर और नवंबर 2022 में विस्तार क्षेत्र में बना रहा। हालांकि तेल से इतर स्वर्ण से इतर आयात में सितंबर की तुलना में अक्तूबर में गिरावट आई, लेकिन वे पिछले वर्ष की इसी अवधि के स्तर से ऊपर बने रहे। जीएसटी संग्रह ने अक्तूबर और नवंबर में वर्ष-दर-वर्ष दोहरे अंकों में वृद्धि दर्ज की। खाद्य से इतर ऋण वृद्धि अधिक थी, जो सितंबर-नवंबर के दौरान औसतन 17.6 प्रतिशत रही।

22. सितंबर और नवंबर 2022 के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के शहरी परिवारों के सर्वेक्षण के गुणात्मक संकेतक, समग्र आर्थिक स्थितियों, रोजगार और आय से संबंधित मनोभावों में क्रमिक सुधार की ओर इशारा करते हैं। केवल एक वर्ष आगे के आधार पर 'विवेकाधीन' खर्च के लिए मनोभावों में अपेक्षित सुधार के साथ उपभोक्ता व्यय में वृद्धि को ‘अनावश्यक' वस्तुओं द्वारा समर्थन प्राप्त है।

23. वित्त वर्ष 2022-23 की तीसरी तिमाही में आर्थिक गतिविधि के स्तर में बदलाव से आघात-सहनीयता का संकेत मिलता है, हालांकि, संभावना को वैश्विक संवृद्धि की धीमी स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। सितंबर के अंत में एमपीसी की पिछली बैठक के बाद से वैश्विक संवृद्धि की संभावना में कमी आई है। आईएमएफ़ ने अपने अक्तूबर 2022 के वैश्विक आर्थिक संभावना में अनुमानों के अधोगामी जोखिम के कारण वर्ष-दर-वर्ष आधार पर विश्व उत्पादन वृद्धि में 2021 में 6.0 प्रतिशत से 2022 में 3.2 प्रतिशत और 2023 में 2.7 प्रतिशत तक की गिरावट का अनुमान लगाया है। परिणामस्वरूप, ईएमई के लिए बाह्य मांग की स्थिति और पूंजी प्रवाह कमजोर हो सकते हैं। जैसा कि वैश्विक संवृद्धि धीमा होने के कारणों में, सभी देशों में मौद्रिक नीति सख्ती उपायों के अलावा चीन में कोविड 19 संबंधी मुद्दे और यूक्रेन युद्ध का प्रभाव शामिल है, ऊर्जा और खाद्य की उच्च कीमतों के जोखिम से भी संभावना प्रभावित हुई है क्योंकि उनकी आपूर्ति शृंखलाएँ बाधित हो गई है।

24. प्रमुख बहिर्जात वैश्विक और घरेलू स्थितियों के रुझानों को ध्यान में रखते हुए, वर्ष-दर-वर्ष आधार पर वित्त वर्ष 2022-23 के लिए संशोधित वास्तविक जीडीपी संवृद्धि दर, तीसरी तिमाही और चौथी तिमाही में क्रमशः 4.4 और 4.2 प्रतिशत के साथ 6.8 प्रतिशत है। वित्त वर्ष 2022-23 के लिए संशोधित संवृद्धि दर सितंबर एमपीसी बैठक में प्रदान किए गए अनुमानों से 20 आधार अंक कम है। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि दर पहली तिमाही के लिए 7.1 प्रतिशत और दूसरी तिमाही के लिए 5.9 प्रतिशत अनुमानित है।

25. खाद्य मुद्रास्फीति में 140 आधार अंकों और ईंधन और प्रकाश में 50 बीपीएस की गिरावट के कारण, वर्ष-दर-वर्ष सीपीआई मुद्रास्फीति सितंबर में 7.4 प्रतिशत से घटकर अक्तूबर में 6.8 प्रतिशत हो गई। खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई घटकों पर आधारित मूल मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत पर बनी रही। तथापि, कीमतों की माह-दर-माह उतार-चढ़ाव उच्च बनी रही। सितंबर की तुलना में अक्तूबर में हेडलाइन सीपीआई में 0.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसका मुख्य कारण सीपीआई के सभी प्रमुख घटकों में माह-दर-माह हुई महत्वपूर्ण वृद्धि है।

26. मांग की समग्र स्थिति में क्रमिक सुधार के बावजूद, मुद्रास्फीति पर सामान्य ऊर्ध्वमुखी दबाव के लिए पिछले निविष्टि मूल्य वृद्धि के अधूरे संचरण को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। निविष्टि और ऊर्जा की बढ़ती कीमतों, खाद्य कीमतों और मजबूत अमेरिकी डॉलर के साथ शुरू होने वाली लागत और कीमतों को प्रभावित करने वाले आपूर्ति पक्ष के निरंतर झटके सभी क्षेत्रों में बढ़ती बिक्री कीमतों से पूरी तरह से ऑफसेट नहीं हो सकते हैं। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) मुद्रास्फीति, उत्पादक स्तर की कीमतों का एक उपाय, अप्रैल 2021 के बाद से दोहरे अंकों की वार्षिक वृद्धि के बाद पहली बार अक्तूबर 2022 में एकल अंक (8.4 प्रतिशत) तक गिर गया। विनिर्मित उत्पादों की श्रेणी के लिए डब्ल्यूपीआई वर्ष-दर-वर्ष मुद्रास्फीति जून 2022 से समग्र रूप से एकल अंकों में है, हालांकि कई ऊर्जा वस्तुओं के लिए, मुद्रास्फीति दर दोहरे अंकों में बनी हुई है। वित्त वर्ष 2022-23 की दूसरी तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र के कॉर्पोरेट निष्पादन में देखी गई फर्मों की लाभप्रदता की गिरावट, सभी लागत वृद्धि को पूरी तरह से ठीक करने में असमर्थता का एक संकेत है।

27. शहरी क्षेत्रों में नवंबर में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा आयोजित परिवारों का मुद्रास्फीति प्रत्याशा सर्वेक्षण, सितंबर की तुलना में नवंबर 2022 में औसत अनुमानित हेडलाइन मुद्रास्फीति दर में गिरावट का संकेत देता है। तीन माह आगे और एक वर्ष आगे की मुद्रास्फीति दर के अनुमान भी सितंबर के अनुमानों की तुलना में नवंबर में कम हुई हैं। हालांकि, गिरावट ने सितंबर में देखे गए सुधार का अनुसरण किया है और तदनुसार, अक्तूबर में सीपीआई मुद्रास्फीति में कमी ने परिवार की मौजूदा प्रत्याशाओं को प्रभावित किया ऐसा हो सकता है। भारतीय प्रबंध संस्थान अहमदाबाद1 द्वारा किया गया कारोबार मुद्रास्फीति अनुमान सर्वेक्षण, अगस्त और सितंबर 2022 में इकाई लागत के आधार पर एक वर्ष आगे की मुद्रास्फीति का 5 प्रतिशत से कम होने की ओर इशारा करते हैं, हालांकि 45 प्रतिशत उत्तरदाताओं का यह मानना है कि एक वर्ष आगे की मुद्रास्फीति दर 6 प्रतिशत या उससे ऊपर रहेगी। सर्वेक्षण में एक वर्ष आगे के सीपीआई मुद्रास्फीति दर में गिरावट के पैटर्न को भी दर्शाया गया है।

28. घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी दोनों की कीमतों और उनके प्रमुख निर्धारकों के मौजूदा रुझानों को ध्यान में रखते हुए, पूरे चालू वित्त वर्ष के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति की दर 6.7 प्रतिशत पर बरकरार रखी गई है, जो कि सितंबर की बैठक के समान स्तर पर है। दूसरी और तीसरी तिमाही के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति दर का अनुमान क्रमश: 6.6 और 5.9 प्रतिशत है। 2023-24 की पहली और दूसरी तिमाही के लिए अनुमानित वर्ष-दर-वर्ष मुद्रास्फीति दर भी 6 प्रतिशत से नीचे है। नवंबर 2022 में आयोजित भारतीय रिज़र्व बैंक के पेशेवर पूर्वानुमानकर्ता सर्वेक्षण द्वारा अनुमानित औसत हेडलाइन मुद्रास्फीति दर वित्तीय वर्ष 2022-23 की तीसरी तिमाही के लिए 6.6 प्रतिशत और वित्तीय वर्ष 2022-23 की चौथी तिमाही के लिए 6.1 प्रतिशत है, संपूर्ण रूप से पूरे वित्तीय वर्ष के लिए 6.7 प्रतिशत है।

29. आघात-सहनीयता का संकेत देने वाले समग्र घरेलू संवृद्धि के साथ, प्रतिकूल वैश्विक समष्टि आर्थिक स्थितियों के लिए आवश्यक है कि घरेलू मुद्रास्फीति दर सतत आधार पर मुद्रास्फीति लक्ष्य की सहन-सीमा बैंड के भीतर मध्यम स्तर पर हो। मुद्रास्फीति लक्ष्य की सहन सीमा बैंड की ऊपरी सीमा पर मूल मुद्रास्फीति का बने रहना विशेष चिंता का विषय है। संवृद्धि और मुद्रास्फीति दोनों लक्ष्यों पर एक साथ गिरावट एक खराब परिणाम होगा। मुद्रास्फीतिकारी दबावों में सतत तरीके से मोडरेशन प्राप्त करने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, इस स्तर पर मौद्रिक नीति की सख्ती के उपायों को जारी रखना आवश्यक है।

30. तदनुसार, (1) मैं नीतिगत रेपो दर को 35 आधार अंक बढ़ाने के लिए वोट करता हूं और (2) मैं निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने के लिए भी वोट करता हूं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति आगे चलकर संवृद्धि का समर्थन करते हुए लक्ष्य के भीतर बनी रहे।

डॉ. आशिमा गोयल का वक्तव्य

31. कई वैश्विक जोखिम जारी हैं लेकिन चूंकि संवृद्धि में मंदी के कारण कई देशों को खतरा है, प्रमुख केंद्रीय बैंकों की मुद्रास्फीति और दर संबंधी कार्रवाई भी धीमी हो रही है। कड़े शब्दों में बात करना जारी रखते हुए, यहां तक कि यूएस फेड ने भी मौद्रिक अंतराल के महत्व को स्वीकार किया है तथा आर्थिक और सामाजिक विकास के प्रति प्रतिक्रिया दे रहे हैं। ऐसा विचार है कि चूंकि अमेरिकी दीर्घावधि मुद्रास्फीति प्रत्याशाएं 3 प्रतिशत पर बनी हुई हैं, पूर्वानुमानित वास्तविक दर पहले से ही प्रतिबंधात्मक है।

32. बाज़ारों ने एक संभावित धुरी पर मूल्य निर्धारण किया है, हालांकि संचार आघात, अस्थिरता उत्पन्न करना जारी रखे हुए हैं। डॉलर विशेष रूप से कमजोर हो रहा है क्योंकि अन्य उन्नत अर्थव्यवस्था वाले केंद्रीय बैंकों ने भी दरें बढ़ाई हैं। सबसे बुरा समायोजन अतीत लगता है। नवंबर में अन्य उभरते बाजारों (ईएम) में वापसी से कुछ महीने पहले, भारत ने जुलाई में अंतर्वाह की वापसी देखी- जो भारत के बेहतर निष्पादन में विश्वास का संकेत देता है। विदेशी मुद्रा आरक्षित निधियाँ फिर से बढ़ रही हैं। आने वाले महीनों में रुपये के बृहद मूल्यह्रास से मुद्रास्फीति दबाव बढ़ने की संभावना नहीं है।

33. वैश्विक पण्य कीमतों में नरमी आई है। भारतीय आपूर्ति शृंखला दबाव सूचकांक मई 2021 से गिर रहा है। यह अब दीर्घकालिक औसत से नीचे है। इसका असर भारत के डब्ल्यूपीआई में तेज गिरावट के रूप में दिखाई दे रहा है। यह कि यह सीपीआई के पर्याप्त प्रभाव-अंतरण के बिना गिर रहा है, जो यह बताता है कि फर्मों ने निविष्टि लागत दबावों की सीमा तक कीमतों में वृद्धि नहीं की है। यह आंशिक रूप से सौम्य मांग और लागत-बचत उपायों के कारण हो सकता है, और उम्मीद है कि यह बहाली की शुरुआत है और यदि मुद्रास्फीति लक्ष्य अनुमानों को नियंत्रित करने के लिए काम कर रहा है, तो लागत झटके अस्थायी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के कारोबार मुद्रास्फीति प्रत्याशा सर्वेक्षण, लागत दबावों और बिक्री में नरमी दिखाता है, जबकि एक वर्ष आगे के मुद्रास्फीति अनुमान 5% से नीचे बनी हुई है, हालांकि लागतों में गिरावट के कारण लाभ मार्जिन बढ़ने की उम्मीद है। विनिर्माण के लिए पीएमआई इनपुट और आउटपुट कीमतों के बीच का अंतर लगभग समाप्त हो गया है, जबकि सेवाओं के लिए यह मई के उच्चतम स्तर से काफी गिर गया है। ज्यादा बारिश के बावजूद अच्छी बुआई से खाद्य कीमतों में गिरावट आ रही है।

34. मूल मुद्रास्फीति में परिवहन और संचार का योगदान कम हो रहा है, जैसा कि अगस्त में कपास के बाद कपड़े की कीमतों, जोकि एक अन्य प्रमुख घटक है, में बढ़ोत्तरी हुई है। यह सततता, दूसरे दौर के प्रभावों की तुलना में कई आपूर्ति झटकों के कारण है। भारतीय रिज़र्व बैंक के मुद्रास्फीति के पूर्वानुमान भारतीय कच्चे तेल के बास्केट के 100 डॉलर पर होने की धारणा पर आधारित हैं, लेकिन भारत की मौजूदा बास्केट इस स्तर से बहुत नीचे चल रही है। हालांकि घरेलू प्रभाव-अंतरण होना अभी बाकी है, मुद्रास्फीति के लिए अधोगामी जोखिम अधिक हैं।

35. वैश्विक मांग के साथ भारतीय निर्यात और विनिर्माण उत्पादन धीमा हो रहा है; यह कि आयात भी कम हो रहे हैं, यहां तक कि नए ऋणों में केवल लगभग 60% प्रभाव अंतरण, यह सुझाव देता है कि घरेलू मांग में भी कमी आ रही है। उपाख्यानात्मक साक्ष्य इंगित करते हैं कि छोटी फर्मों को निवेश करना बहुत महंगा लग रहा है। उनका योगदान पिछले दशक की निवेश मंदी को उलटने, भविष्य की बाधाओं और लागत में वृद्धि को रोकने और निर्यात और रोजगार क्षमता संवर्धन करने के लिए आवश्यक है। भारत के पास आंशिक रूप से तेल से इतर आयात अधिक हैं क्योंकि यह क्षमता पिछले दशक में संवर्धित नहीं हुई थी।

36. यदि नीतिगत दरें प्रत्याशित मुद्रास्फीति के साथ एक के बाद एक बढ़ती हैं, तो मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करते हैं, इसलिए अपेक्षित वास्तविक दर सकारात्मक होती है और संतुलन दर के करीब होती है। दूसरा, उच्च नीतिगत दरों के विलंबित संचरण से मांग कम होती है। एमपीसी ने पहले के बारे में सुनिश्चित कर लिया है और दूसरा प्रक्रिया में है।

37. अगली चार तिमाहियों के लिए औसत मुद्रास्फीति का अनुमान 5.7% है और वित्तीय वर्ष 24 की दूसरी तिमाही के लिए यह 5.4% है। अतः वास्तविक नीतिगत दर सकारात्मक है और यह पूरे वर्ष बढ़ेगी। चूंकि मांग को कम करने के लिए कई कारक काम कर रहे हैं, इसलिए इन्हें जोड़ने में नीति को सावधान रहना होगा। बहु अनुमानों से पता चलता है कि संचरण के मांग चैनल के माध्यम से, भारतीय ब्याज दरें पहले उत्पादन को प्रभावित करती हैं और मुद्रास्फीति को कम और केवल लंबे अंतराल के साथ प्रभावित करती है।

38. इसके अलावा, भारतीय प्रणाली में ब्याज दर स्प्रेड अधिक है। जबकि दुर्लभ मुद्रा सॉवरेन प्रतिफल पर निवेश ग्रेड जी-सेक का प्रतिफल स्प्रेड उभरते बाजारों2 के लिए औसतन 200 बीपीएस रहा; यूएस 10 वर्षीय जी-सेक स्प्रेड की तुलना में भारतीय 10 वर्षीय जी-सेक स्प्रेड लगभग दोगुना (1 दिसंबर को 3.5% की तुलना में दरें 7.21% थीं) है। 3 माह का वाणिज्यिक पत्र दर 7% से ऊपर है। अधिक स्प्रेड का आशय है कि मांग में वृद्धि होने से नीतिगत रेपो दर में वृद्धि का प्रभाव कम होता है। ऋण दरों के लिए बाह्य बेंचमार्क के कारण ऋण दरों में प्रभाव अंतरण भी तेज है।

39. हालाँकि, वर्तमान में, भारतीय आयात अभी भी बहुत अधिक हैं। व्यापार आघात की एक अवरुद्ध शर्त संभावित उत्पादन को कम करती हैं, जिसके लिए मांग में गिरावट की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, मुद्रास्फीति अभी भी लगातार 10वें महीने एमपीसी सहन-सीमा बैंड से अधिक है। अतः मैं रेपो दर को 35 आधार अंक बढ़ाकर 6.25% करने के लिए वोट करती हूं। मैं 25 आधार अंक की अल्प वृद्धि को प्राथमिकता देती, लेकिन 6.25% फोकल दर के रूप में अच्छी तरह से काम करेगा।

40. अधिक सतत चालू खाता घाटा (सीएडी) हासिल करने के लिए मांग संकुचन के अलावा अन्य साधन भी उपलब्ध हैं। इनमें निर्यात प्रोत्साहन, घरेलू क्षमता संवर्धन और तेल आयात पर निर्भरता कम करना शामिल है। भारत का विप्रेषण और सॉफ्टवेयर निर्यात मजबूत बना हुआ है और हरित अर्थव्यवस्था में परिवर्तन सुव्यवस्थित रूप से आगे बढ़ रहा है। वित्तीय बचत का बढ़ता हिस्सा भी सीएडी को कम करेगा। सीएडी के लिए कई वित्तपोषण विकल्प भी हैं।

41. चूंकि भारत में पूर्ण पूंजी खाता परिवर्तनीयता नहीं है, खुला ब्याज समता (यूआईपी) संबंध जो कहता है कि सांकेतिक घरेलू ब्याज दरों को अमेरिकी सांकेतिक दरों के बराबर होना चाहिए, साथ ही, रुपये का अनुमानित मूल्यह्रास अपने शुद्ध रूप में नहीं होता है। यूआईपी पर आधारित मानक सलाह दूसरे देशों को अमेरिकी नीति का पालन करने के लिए मजबूर करने का एक तरीका है। मूल्यह्रास को रोकने के लिए उन्हें या तो फेड दरों के साथ घरेलू दरें बढ़ानी चाहिए; या मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के अंतर्गत मुद्रा का मूल्यह्रास होने दें और फिर मुद्रास्फीति बढ़ने पर दरें बढ़ाएं। लेकिन यह विदेशी आघातों को बढ़ाने का तरीका है।

42. भारत के पास घरेलू जरूरतों के अनुरूप नीति को अनुकूल बनाने के अवसर हैं और इसने बेहतर काम किया है क्योंकि इसने इसका इस्तेमाल किया है। पूंजी प्रवाह प्रबंधन और मध्यक्षेप ने अत्यधिक मूल्यह्रास को सफलतापूर्वक रोका है। आरक्षित निधि फिर से बढ़ रही हैं। दीर्घावधि के लिए और वास्तविक रूप में3 ब्याज अंतराल बड़ा है। बैंकों की खुली स्थिति की सीमा को कम करने जैसे कम दरों के लिए विवेकपूर्ण उपाय, यदि आवश्यक हो, को अमेरिकी दर में वृद्धि का अनुसरण किए बिना इस्तेमाल किया जा सकता है।

43. रुख पर विचार करते हुए, जब तक बृहद चलनिधि अधिशेष और महामारी के समय किए गए दर में अत्यधिक कटौती जारी रही, तब तक निभाव को वापस लेना ठीक था। लेकिन ऐसा लगता है कि टिकाऊ चलनिधि इतनी अधिक संकुचित हो गई है कि एलएएफ प्रणाली पिछले दो महीनों के दौरान चलनिधि के आघातों की भरपाई करने में सक्षम नहीं रही है। मांग मुद्रा दर अधिकांश समय के लिए रेपो दर से अधिक रही है। यह एक तटस्थ रुख की ओर बढ़ने का समय है, जहां किसी भी अपेक्षित दिशा की ओर बढ़ना डेटा-आधारित हो सकता है, क्योंकि नई जानकारी आगे के अनुमानों को प्रभावित करती है। तदनुसार, मैं निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित करने वाले संकल्प के हिस्से के विरुद्ध मतदान करती हूं।

44. एक ईएम को बृहद चलनिधि आघातों का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से तब, जब प्रमुख देश मात्रात्मक सख्ती को अपनाते हैं। एलएएफ प्रणाली ने काफी प्रगति की है और इसका अत्यधिक अल्पकालिक चलनिधि सख्ती को रोकने में सक्षम होना चाहिए। यदि आघात बहुत बड़े हैं तो टिकाऊ चलनिधि में पर्याप्त अधिशेष बनाया जाना चाहिए। एक मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण व्यवस्था ही मुद्रास्फीति नियंत्रण प्रदान करती है; यह नियंत्रण धन या चलनिधि आपूर्ति नहीं है।

45. ट्रस बजट के बाद बाजार की अस्थिरता के जवाब में, बैंक ऑफ इंग्लैंड ने दिखाया है कि कैसे स्पष्ट संचार बाजार-निर्माण को चलनिधि के मौद्रिक नीति कार्य से अलग कर सकता है। उच्च लीवरेज वाले एई में और गैर-बैंक वित्तीय क्षेत्र के विनियमन के अंतर्गत बाज़ार निर्माण की आवश्यकता हो सकती है, भारत में इसका उपयोग यह सुनिश्चित करने के लिए किया जा सकता है कि रेपो दरों में वृद्धि के बावजूद वित्तीय स्थिति ऋण के निर्माण का समर्थन करने में सक्षम हैं। वित्तीय विनियमन और तुलन- पत्र मजबूत हुई है, उधार जोखिम आधारित है, कॉरपोरेट्स ने डी-लीवरेज किया है। यह पिछले दशक के ऋण संबंधी सूखे से वापसी का समय है।

प्रो. जयंत आर वर्मा का वक्तव्य

46. सितंबर की बैठक के बाद से, वैश्विक और घरेलू, दोनों स्तर पर जोखिम का संतुलन निर्णायक रूप से मुद्रास्फीति से संवृद्धि की ओर अग्रसर हो गया है। अब स्पष्ट संकेत हैं कि महामारी और यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न वैश्विक आपूर्ति पक्ष के आघात अंततः कम हो रहे हैं। सबसे मजबूत संकेत नवंबर के दूसरे पखवाड़े में कच्चे तेल की कीमतों में तेज गिरावट है। ऐसा प्रतीत होता है कि वैश्विक मुद्रास्फीति चरम-स्तर पर पहुंच चुकी है और अब संभवतः अधोगामी है। इसके अलावा यह तथ्य भी है कि अगली कुछ तिमाहियों में ही वास्तविक अर्थव्यवस्था को विश्व के केंद्रीय बैंकों द्वारा फ्रंट-लोडेड सख्ती के परिणामों का सामना करना पड़ेगा। कुल मिलाकर, वैश्विक मुद्रास्फीति में दबाव कम होने के बारे में आशावादी होने के कई कारण हैं।

47. इस संदर्भ में, मैं यह बताना चाहूंगा कि आरबीआई के मुद्रास्फीति पूर्वानुमान (साथ ही आरबीआई द्वारा किए गए कुछ पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के सर्वेक्षण) अभी भी 100 डॉलर के औसत कच्चे मूल्य (भारतीय समूह) की धारणा पर आधारित हैं। यह इस बैठक के समय ब्रेंट कच्चे तेल के वायदा वक्र से लगभग 15-20% अधिक है। संभवतः, इन पूर्वानुमानकर्ताओं का मानना है कि ब्रेंट वायदा बाजार विभिन्न व्यवहारिक पूर्वाग्रहों के कारण अविश्वसनीय है। लेकिन तरल बाजार की कीमतों से इतनी तीव्र विचलन की धारणा को आर्थिक और भू-राजनीतिक बुनियादी सिद्धांतों के आधार पर उचित ठहराने की जरूरत है। नवंबर के मध्य में, ऐसा प्रतीत होता है कि दृष्टिगत राजनीतिक परिणामों के आलोक में वायदा बाजार ने भू-राजनीतिक तनावों और ओपेक पर दबावों का पुनर्मूल्यांकन किया है। यदि पूर्वानुमानकर्ता इस पुनर्मूल्यांकन से असहमत हैं, तो उन्हें अपने वैकल्पिक आख्यान को स्पष्ट और उचित ठहराने की आवश्यकता है। इस तरह की अभिव्यक्ति की अनुपस्थिति में, किसी को यह सुझाव देने के लिए क्षमा किया जा सकता है कि $ 100 ब्रेंट कच्चे तेल की धारणा, अनुभव और रूढ़िवाद के प्रसिद्ध व्यवहारिक पूर्वाग्रहों को दर्शाती है।

48. घरेलू स्तर पर भी मुद्रास्फ़ीति दबाव कम होने के मजबूत साक्ष्य हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि उत्पादकों की कीमत निर्धारण क्षमता नाटकीय रूप से कम हो गई है जैसा कि कॉर्पोरेट लाभप्रदता में तेज कमी से परिलक्षित होता है। वर्ष के मध्य में देखी गई 7%+ के स्तर से मुद्रास्फीति कम हो गई है, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि परिवारों और कारोबारियों दोनों की मुद्रास्फीति प्रत्याशाएं कम हो गई हैं।

49. दूसरी ओर, हाल के महीनों में विश्व और घरेलू दोनों स्तर पर संवृद्धि संबंधी चिंताएं और अधिक चिंताजनक हो गई हैं। मंदी की संभावना में कई उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में वित्तीय बाजार मूल्य निर्धारण कर रहे हैं। महामारी के दौरान, निर्यात और सरकारी व्यय दो संवृद्धि के इंजन थे जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने आने वाली विपरीत परिस्थितियों का प्रतिकार किया। इनमें से, वैश्विक मंदी के कारण निर्यात संवृद्धि का इंजन पहले ही थम गया है। राजकोषीय बाधाएं अर्थव्यवस्था को समर्थन प्रदान करने हेतु सरकारी खर्च की क्षमता को सीमित करती हैं। निजी निवेश द्वारा मंदी से उभरने की संभावना नहीं है। उपाख्यानात्मक साक्ष्य बताते हैं कि भविष्य की संवृद्दि संभावनाओं के बारे में चिंताएं, 80% से अधिक क्षमता उपयोग तक पहुंच चुकी कंपनियों द्वारा भी पूंजी निवेश को रोक रही हैं। अब केवल निजी खपत रह जाता है जो उत्प्लावक बनी हुई है, लेकिन यह देखा जाना बाकी है कि इसमें से कितना मांग में वृद्धि के कारण है, जो आने वाले महीनों में समाप्त हो सकती है। इन सबका अर्थ है कि आर्थिक संवृद्धि अभी बेहद कमजोर है और निश्चित रूप से अत्यधिक मौद्रिक सख्ती का सामना करने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत नहीं है।

50. मेरा मानना है कि एमपीसी के बहुमत द्वारा अनुमोदित 35 आधार अंक की दर वृद्धि, कम होते मुद्रास्फीति दबावों और बढ़ी हुई संवृद्धि चिंताओं के इस संदर्भ में आवश्यक नहीं है। अतः, मैं इस संकल्प के विरुद्ध वोट करता हूं।

51. रुख की ओर देखते हुए, मेरे विचार सितंबर के समान हैं जब मैंने विराम हेतु तर्क दिया था। क्योंकि मौद्रिक नीति अंतराल के साथ कार्य करती है, नीतिगत दर को वास्तविक अर्थव्यवस्था में अंतरित होने में 3-4 तिमाहियों का समय लग सकता है, और चरम प्रभाव में 5-6 तिमाहियों तक का समय लग सकता है। एमपीसी ने लगभग आठ महीनों में रेपो दर में 225 आधार अंकों की बढ़ोतरी की है। इस तथ्य के ध्यानार्थ कि 2021 में मुद्रा बाजार की दरें प्रतिवर्ती रेपो दर (रेपो दर से 65 आधार अंक नीचे) के करीब थीं, मौद्रिक सख्ती का पूर्ण परिमाण 290 आधार अंक होगा। इस बड़ी फ्रंट-लोडेड मौद्रिक नीति कार्रवाई का अधिकांश प्रभाव वास्तविक अर्थव्यवस्था में अभी महसूस किया जाना बाकी है। इन कारणों से, मेरा मानना है कि 6.25% रेपो दर स्वयं में ही मूल्य स्थिरता प्राप्त करने हेतु आवश्यक रेपो दर से अधिक है, और आर्थिक संवृद्धि के लिए एक अनुचित जोखिम उत्पन्न करती है। एमपीसी के अधिकांश सदस्य कह रहे हैं कि वे निभाव को वापस लेकर और भी ज्यादा सख्ती करना चाहते हैं। यह रुख कमजोर संवृद्धि संभावना के लिए और भी हानिकारक होगा और इसलिए मैं इस संकल्प के विरुद्ध भी वोट करता हूं।

डॉ. राजीव रंजन का वक्तव्य

52. इस अनिश्चित और कठिन समय में, मौद्रिक नीति निर्माण एक कठिन कार्य है। विश्वसनीयता प्राप्त करना और उसे बनाए रखना4 - किसी भी केंद्रीय बैंक के लिए एक मूल्यवान आस्ति - अभी भी एक बड़ी चुनौती है। संवृद्धि का समर्थन करते हुए मुद्रास्फीति नियंत्रित करने की तलाश में , केंद्रीय बैंकों को 'कितनी तेजी से, कितनी दूर और कितनी देर तक'5 वर्तमान सख्ती के चरण को जारी रखना चाहिए, का एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ रहा है। कठिन तालमेल के दौरान, ये विकल्प और इसके संयोजन, जैसा कि अंततः केंद्रीय बैंकों द्वारा तय किया जाएगा, महत्वपूर्ण बने रहेंगे और आगामी वर्ष में वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा तय करेंगे। कुछ केंद्रीय बैंकों ने पहले से ही धीमी गति और कम मात्रा में दरों में वृद्धि या सख्ती के चक्र पर विराम लेने की दिशा में विचार करना शुरू कर दिया है।

53. भारत अलग नहीं है। कई ताकतें कार्यरत हैं। हमें न केवल उभरती घरेलू संवृद्धि और मुद्रास्फीति की गतिशीलता के बारे में, बल्कि अन्य कारकों के अलावा संचयी सख्ती और इसके प्रभाव, संचारण अंतराल, अप्रत्याशित वैश्विक और घरेलू आघात, टर्मिनल दर जैसे संबंधित कारकों पर भी विचार करना होगा। धीरे-धीरे आगे बढ़ने और बहुत कम करने से, मुद्रास्फीति प्रत्याशा के अस्थिर होने के साथ समष्टिआर्थिक अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है, जिससे महत्वपूर्ण रूप से बाद में मजबूत कार्रवाई की आवश्यकता हो सकती है जो अधिक सख्ती6 की लागत से कहीं अधिक हानिकारक हो सकती है। इसके विपरीत, बहुत अधिक सख्ती से संवृद्धि को क्षति हो सकती है। परंपरागत रूप से, मौद्रिक नीति की विश्वसनीयता, अपनाई गई नीति के साथ अंतर्जात रूप से भिन्न होती है और एक गैर-क्रमिक दृष्टिकोण से विश्वसनीयता में वृद्धि होती है, तेजी से अवस्फीति ला सकता है जो न्यूनतर त्याग अनुपात (सार्जेंट, 1986; बॉल, 1994) 7 को आवश्यक बना देता है। तथापि, ये परिणाम कई दृढ़ता और तर्कहीनता के अधीन हैं, जिसके परिणामस्वरूप बड़ा संवृद्धि त्याग संभव है। अतः, मौद्रिक नीति को क्रमिकता और बहुत तेजी से कार्य करने के बीच संतुलन में उभरते समष्टि आर्थिक संकेतों के आधार पर सतर्क रहने की आवश्यकता है।

54. जैसा कि मैंने सितंबर 2022 के अपने वक्तव्य में संकेत दिया था, नीतिगत रेपो दर में 35 आधार अंक या 50 आधार अंक के बीच वृद्धि की आवश्यकता थी। मई 2022 से दरों में बड़ी वृद्धि के बाद, मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र के पथ पर पैनी नजर रखते हुए दर वृद्धि पर विराम लगाना अब आवश्यक है। इसके अलावा, व्यापक रूप से प्रत्याशित पथ के साथ-साथ मुद्रास्फीति पथ के आगे बढ़ने और साथ ही, पहले की मौद्रिक नीति कार्रवाइयों के चल रहे प्रभाव विस्तार और संवृद्धि-मुद्रास्फीति की गतिशीलता को देखते हुए, मौद्रिक नीति प्रतिक्रिया को कम मात्रा में कैलिब्रेट किया जा सकता है। इस प्रकार, निभाव को वापस लेने के रुख को जारी रखते हुए , 35 आधार अंक की वृद्धि वर्तमान समय में उपयुक्त है, और मैं उसी के लिए वोट करता हूं। इस स्तर पर रुख में किसी भी बदलाव को मुद्रास्फीति के खतरे से लड़ने के हमारे संकल्प के कमजोर होने और मौद्रिक नीति संचारण को बाधित करने के रूप में समझा जा सकता है। इसका उद्देश्य अविरत अवस्फीति को सुनिश्चित करना है जो संवृद्धि का समर्थन करते हुए अल्पावधि में मुद्रास्फीति को सहन स्तर के भीतर और मध्यम अवधि में लक्ष्य के करीब लाए। ये निर्णय निम्नलिखित विचारों पर आधारित हैं।

55. अक्तूबर में मुद्रास्फीति में 60 आधार अंक की कमी आने के बावजूद, कुछ अंतर्निहित प्रवृत्तियों पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत है। सर्वप्रथम, अक्तूबर में कीमत का संवेग मई 2022 के बाद से उच्चतम स्तर पर था और अगस्त 2022 के बाद से इसमें क्रमिक वृद्धि भी दर्ज की गई। दूसरा, कोर (खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई) मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत पर बनी हुई है, अक्तूबर में इसकी गति मौसमी रूप से समायोजित आधार पर भी अप्रैल 2022 के बाद से सबसे अधिक है। वास्तव में, पेट्रोल और डीजल में अवस्फीति ने कोर मुद्रास्फीति के दबावों को पूरी तरह से ढक दिया है। पेट्रोल और डीजल को छोड़कर परिवहन और संचार मुद्रास्फीति 7.7 प्रतिशत पर थी। मुद्रास्फीति के सुव्यवस्थित माध्य उपाय ऊंचे बने रहे। तीसरा, विशेष रूप से कोर मुद्रास्फीति में मूल्य दबावों के निरंतर सामान्यीकरण का प्रमाण है। सीपीआई हेडलाइन और कोर के लिए प्रसार सूचकांकों ने सीपीआई टोकरी में कीमतों में मजबूत वृद्धि जारी रखी। ये कारक लगातार मूल्य दबावों का संकेत देते हैं, जो भू-राजनीतिक तनावों और प्रतिकूल जलवायु घटनाओं के साथ-साथ अनिश्चितता को बढ़ाता है, जिसके कारण सुविचारित मौद्रिक नीति कार्रवाई को जारी रखना आवश्यक है।

56. दूसरी ओर, मुख्यतया निवल निर्यात से उत्पन्न कर्षण के साथ संवृद्धि आघात-सह बनी हुई है। चीन में प्रतिबंधों का तेजी से हटना, अमेरिका में मुद्रास्फीति में गिरावट के संकेत और वैश्विक कमोडिटी की कीमतों में कमी वे कारक हैं जो 2023 में विश्व की मांग में गिरावट को सीमित कर सकते हैं। हमारे दृष्टिकोण से, चीन के जल्द ही फिर से खुलने की खबरों के बावजूद कच्चे तेल की कम कीमतों के साथ अमेरिकी डॉलर में मूल्य वृद्धि के चरम पर पहुंचने के संकेत मजबूत सकारात्मक संकेत हैं। तथापि, तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) की कम बहाली जारी रहने के कारण पेट्रोल और डीजल पंप की कीमतों में बदलाव न होने के चलते कच्चे तेल की कम कीमतों से तत्काल8 मुद्रास्फीति में मदद नहीं मिलेगी, लेकिन कम आयात के साथ बाह्य क्षेत्र संतुलन में मदद मिलेगी, जो पहले से ही कम होने का संकेत दे रहा है। महत्वपूर्ण रूप से, सकल घरेलू उत्पाद के प्रमुख घटकों की गति में प्रवृत्ति भरोसा दिलाने वाली है। उदाहरण के लिए, 2022-23 की दूसरी तिमाही में वास्तविक जीडीपी की गति महामारी पूर्व (2012-13 से 2019-20) के औसत 0.9 प्रतिशत के मुकाबले 3.6 प्रतिशत पर मजबूत रही है; इसी तरह, जीडीपी के दो मुख्य चालकों - निजी खपत और निवेश – में दूसरी तिमाही में क्रमशः 1.0 प्रतिशत और 3.4 प्रतिशत की गति दर्ज की गई, जबकि महामारी पूर्व दूसरी तिमाही के लिए नकारात्मक औसत गति [2012-13 से 2019-20 के दौरान (-)0.1 प्रतिशत और (-) 1.4 प्रतिशत, क्रमशः)] थी। आपूर्ति पक्ष पर, संपर्क-गहन सेवाओं (व्यापार, होटल, परिवहन, संचार और अन्य) में 16.0 प्रतिशत (2012-13 से 2019-20 तक के दौरान (-)1.6 प्रतिशत की महामारी पूर्व औसत गति की तुलना में) की गति के साथ एक मजबूत बहाली ने दूसरी तिमाही में वास्तविक जीवीए में संवृद्धि को रेखांकित किया।

57. मौद्रिक नीति में टर्मिनल दर पर चर्चा, संवृद्धि और मुद्रास्फीति के आवेगों के आयाम और दिशा पर अनिश्चितता से घिरी हुई है। इस परिदृश्य में, ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि टर्मिनल दर समय के साथ बदलती रहती है तथा आने वाले आंकड़ों और उभरती स्थिति के आधार पर इसे तय किए जाने की आवश्यकता है। अब तक की गई दर वृद्धि के साथ, और मुद्रास्फीति की संभावना को देखते हुए, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि वास्तविक दरें निर्णायक रूप से सकारात्मक क्षेत्र की ओर बढ़ गई हैं, फिर भी यदि कोई वर्तमान मुद्रास्फीति, जो अनिश्चित परिस्थितियों9 में तेजी से बढ़ रही है, का तर्क देता है, तो वह इसके बारे में सुनिश्चित नहीं हो सकता है। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि मौद्रिक स्थितियों और रुख को वर्तमान संवृद्धि-मुद्रास्फीति गतिशीलता के लिए उचित रूप से कैलिब्रेट किया गया है, क्योंकि बैंक जमा और उधार दरें वास्तविक रूप से महामारी पूर्व स्तर से बहुत कम हैं।

58. कुल मिलाकर, उत्पादन की गतिशीलता को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता की दिशा में तैयार की गई मौद्रिक नीति स्थायी समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सबसे अच्छी गारंटी है। इसके अलावा, सभी संभावनाओं में, विश्व स्तर पर और भारत में संवृद्धि संबंधी चिंताएं 2023 में प्रमुखता ग्रहण कर सकती हैं क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था सख्त वित्तीय स्थितियों के कारण धीमी हो सकती है, भले ही वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बहाल हो जाए और इनपुट लागत दबाव मौजूदा स्तरों से कम हो जाए।

डॉ. माइकल देवब्रत पात्र का वक्तव्य

59. वर्तमान डेटा आगमन, 2022-23 की दूसरी तिमाही में वास्तविक जीडीपी संवृद्धि की मौसमी समायोजित गति में सकारात्मक क्षेत्र में वृद्धि की ओर इशारा करता है। विशेष रूप से, यह सुधार घरेलू चालकों के बल पर हुआ है जिसने शुद्ध निर्यात में संकुचन को पार कर लिया है। अनुमानों से संकेत मिलता है कि शेष वर्ष के दौरान सकारात्मक गति बनी रहने की संभावना है। यह देखा जाना शेष है कि क्या उस गति की ताकत मजबूत रहकर, महामारी से प्रेरित प्रतिकूल आधार प्रभावों को ऑफसेट करने में सक्षम है। वैश्विक मंदी की चेतावनियों और जिसके परिणामस्वरूप भारत के लिए शुद्ध निर्यात से बढ़ती खींचतान, कई उद्योगों में क्षमता उपयोग के रुझान के स्तर को पार करने के बावजूद अभी भी मौन घरेलू निजी निवेश; और कड़ी वित्तीय स्थिति को देखते हुए, 2023-24 के लिए, इस वर्ष की दर के सापेक्ष वास्तविक जीडीपी वृद्धि की गति को ध्यान में रखने की आवश्यकता है।

60. दूसरी ओर, केवल अनुकूल आधार प्रभावों के कारण अक्तूबर में भारी गिरावट के बावजूद, भारत में मुद्रास्फीति अनजाने में उच्च, निरंतर और सामान्यीकृत बनी हुई है। मूल्य वृद्धि की गति, वास्तव में, मई 2022 के बाद सबसे अधिक थी। बढ़ती कीमतों की गति के साथ कोर मुद्रास्फीति अडिग और बिखरी हुई बनी हुई है क्योंकि यह स्वयं ऊपरी सहिष्णुता बैंड का परीक्षण करती है, और इसे दबाने के लिए दृढ़ मौद्रिक नीति संकल्प की आवश्यकता होती है। हमारे अनुमानों के साथ-साथ उभरती हुई वैश्विक मुद्रास्फीति गतिविधियों से संकेत मिलता है कि शेष वर्ष के दौरान भारत की हेडलाइन मुद्रास्फीति थोड़ी कम हो सकती है। आपूर्ति प्रतिक्रियाओं में सुधार द्वारा समर्थित, अब तक की गई मौद्रिक नीति कार्रवाइयों के प्रभाव, औसत हेडलाइन मुद्रास्फीति में 7 प्रतिशत से अधिक बहाव को तोड़ सकते हैं और आने वाले वर्ष में इसे 5-6 प्रतिशत की सीमा में रोक सकते हैं। इस प्रकार, अगले 12 महीनों में मुद्रास्फीति के लक्ष्य से ऊपर रहने की उम्मीद की जा सकती है।

61. मौजूदा स्तरों पर मुद्रास्फीति जितनी अधिक समय तक रहती है, उम्मीदों के अनियंत्रित होने का खतरा उतना ही अधिक होता है, जो घरों, व्यवसायों और पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के हालिया सर्वेक्षणों में रिपोर्ट किए गए मॉडरेशन को व्यर्थ कर देता है। मुद्रास्फीति के जोखिम से क्रय शक्ति कम होना और उपभोक्ता खर्च कमजोर होना , विशेष रूप से विवेकाधीन वस्तुओं पर, महत्वपूर्ण होता जा रहा है। मुद्रास्फीति की प्रत्याशाएं क्षमता निर्माण में निजी निवेश को भी रोक सकती हैं, जैसा कि 2022-23 की दूसरी तिमाही के दौरान कॉर्पोरेट निष्पादन में परिलक्षित होता है।

62. तदनुसार, आपूर्ति की स्थिति में कुल मांग को फिर से संतुलित करने और मुद्रास्फीति को पहले सहिष्णुता बैंड में और फिर लक्ष्य के साथ संरेखित करने के लिए निभाव को वापस लेने की आवश्यकता है। संवृद्धि की गति में सकारात्मक मोड़ को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है।

63. नीतिगत दर में और वृद्धि के आकार और गति को इस मुद्रास्फीति के उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए। अब तक की गई संचयी दर वृद्धि के प्रभावों, अब तक प्राप्त लंबी अवधि की दरों में संचरण, वास्तविक ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव, और समष्टिआर्थिक और वित्तीय स्थितियों पर चल रहे प्रभाव जैसे वे विकसित होते हैं, को शामिल करना भी आवश्यक है। तदनुसार, इस बैठक में नीतिगत दर वृद्धि के आकार में मामूली कमी, उस आकलन को सावधानी से नापने का अवसर प्रदान करेगी।

64. क्या आने वाली सूचनाओं से संकेत मिलता है कि हाल ही में मुद्रास्फीति में मामूली कमी एक टिकाऊ मंदी की शुरुआत के बजाय क्षणिक है, इसके मद्देनज़र, वांछित मुद्रास्फीति उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एमपीसी को उचित प्रतिक्रिया देने के लिए तैयार रहना चाहिए। संक्षेप में, एमपीसी को रुख बदलने से पहले मासिक रीडिंग की एक शृंखला में मुद्रास्फीति में निर्णायक गिरावट देखने की जरूरत है, जो अन्यथा समय से पहले होगा।

65. मैं नीतिगत दर में 35 आधार अंकों की वृद्धि और एक रुख जो निभाव को वापस लेने पर केंद्रित रहता है के लिए वोट करता हूं।

श्री शक्तिकान्त दास का वक्तव्य

66. धीमी हो रही वैश्विक संवृद्धि और व्यापार से विपरीत परिस्थितियों के बीच, भारतीय अर्थव्यवस्था लचीलापन प्रदर्शित कर रही है और अच्छी तरह से पकड़ बनी हुई है। 2022-23 की दूसरी तिमाही में 6.3 प्रतिशत की वास्तविक जीडीपी संवृद्धि, हमारे द्वारा अपेक्षित तर्ज पर थी। तीसरी तिमाही के लिए आने वाली जानकारी से संकेत मिलता है कि आर्थिक गतिविधि मजबूत बनी हुई है। एक दूसरे से जुड़ी हुई दुनिया में रहते हुए, हम प्रतिकूल वैश्विक स्पिलओवर से पूरी तरह अलग नहीं रह सकते हैं। बाहरी मांग कमजोर हो रही है और इसका हमारे निर्यात पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। कुल मिलाकर, 2022-23 में भारत की वास्तविक जीडीपी में 6.8 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है और वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी की बढ़ती संभावनाओं के बावजूद भारत सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक रहेगी।

67. हेडलाइन मुद्रास्फीति कम हो रही है, यद्यपि धीरे-धीरे। जबकि सबसे खराब मुद्रास्फीति हमारे पीछे है, यह ऊपरी सहिष्णुता स्तर से ऊपर बनी हुई है। 2023-24 की पहली छमाही में इसमें गिरावट आने की उम्मीद है, लेकिन फिर भी यह लक्ष्य से काफी ऊपर रहेगा। भू-राजनीतिक तनाव, वैश्विक वित्तीय बाजार में उतार-चढ़ाव, घरेलू उत्पादन कीमतों के लिए इनपुट लागत के लंबित पास-थ्रू और मौसम संबंधी व्यवधानों को देखते हुए मुद्रास्फीति के प्रक्षेपवक्र के आसपास अनिश्चितता बहुत बड़ी बनी हुई है। कोर मुद्रास्फीति (भोजन और ईंधन को छोड़कर सीपीआई) पिछले कुछ महीनों से लगभग 6 प्रतिशत की दृढ़ता प्रदर्शित कर रही है। अतः, संतोष के लिए कोई जगह नहीं है और महंगाई के विरुद्ध लड़ाई खत्म नहीं हुई है। इसके लिए कीमतों पर लगातार नजर रखने की जरूरत है।

68. मई 2022 से हमारी क्रमिक दर कार्रवाई, प्रणाली के माध्यम से काम कर रही है। उच्च मुद्रास्फीति के स्तर, विशेष रूप से कोर मुद्रास्फीति में स्थिरता को ध्यान में रखते हुए, अंतर्निहित मुद्रास्फीति के दबावों में वृद्धि को रोकने, मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं को स्थिर रखने और मुद्रास्फीति को मध्यम अवधि से 4 प्रतिशत की लक्षित दर के करीब लाने के लिए आगे की सुविचारित मौद्रिक नीति कार्रवाई की आवश्यकता है । यह भारतीय अर्थव्यवस्था की मध्यम अवधि की विकास संभावनाओं को मजबूत करेगा।

69. अतः, मेरा विचार है कि मौद्रिक नीति कार्रवाई में समय से पहले ठहराव इस समय एक महंगी नीतिगत त्रुटि होगी। अनिश्चित संभावना को देखते हुए, यह एक ऐसी स्थिति उत्पन्न कर सकता है जहां हम बाद की बैठकों में, बढ़ते मुद्रास्फीति के दबावों को दूर करने के लिए, मजबूत नीतिगत कार्रवाइयों के माध्यम से स्वयं को कैच-अप करने का प्रयास करते हुए पाएंगे। अतः, मैं रेपो दर में 35 आधार अंकों की वृद्धि के लिए वोट करता हूं - पिछले तीन अवसरों पर 50 बीपीएस से प्रस्थान - जो स्वयं मुद्रास्फीति की संभावनाओं में सुधार का संकेत देता है।

70. प्रचलित नीति रेपो दर, चलनिधि की स्थिति और अगले कई महीनों में मुद्रास्फीति की अपेक्षित गति को ध्यान में रखते हुए, निभाव को वापस लेने के रुख पर बने रहना आवश्यक है। इसलिए, मैं उसी को वोट देता हूं।

71. अंत में, मैं यह जोड़ना चाहूंगा कि एक कड़े चक्र में, विशेष रूप से उच्च अनिश्चितता की दुनिया में, मौद्रिक नीति के भविष्य के मार्ग पर स्पष्ट मार्गदर्शन देना प्रतिकूल होगा। इसका परिणाम यह हो सकता है कि बाजार और इसके प्रतिभागी वास्तविक स्थितियों से वास्तविक खेल को ओवरशूट कर रहे हों। ऐसी परिस्थितियों में, उभरती मुद्रास्फीति की गतिशीलता पर अर्जुन की नजर रखना और आवश्यक कार्रवाई करने के लिए तैयार रहना बुद्धिमानी होगी। संवृद्धि के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता के लिए किसी भी उभरते जोखिम को संबोधित करने के लिए मौद्रिक नीति को चुस्त होना चाहिए।

(योगेश दयाल)
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2022-2023/1420


1 https://iima.ac.in/faculty-research/centers/Misra-Centre-for-Financial-Markets-and-Economy/BIES.

2 आईएमएफ. 2022. 'ग्लोबल फाइनेंशियल स्टैबिलिटी रिपोर्ट: नेविगेटिंग दि हाई-इंफलेशन एंवाइरोमेंट.' अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष. अक्टूबर. यहां उपलब्ध है: https://www.imf.org/en/publications/gfsrIMF GFSR. एक्जिक्यूटिव समरी में चित्र 3 देखें.

3 दस वर्षीय जी-सेक स्प्रेड यूएस फेड और भारतीय रेपो दरों के बीच के स्प्रेड से दोगुना है। अमेरिकी वास्तविक फेड दर अत्यधिक अधोगामी है जबकि भारतीय वास्तविक रेपो दर जल्द ही सकारात्मक होगी।

4 19 अगस्त 2022 को जारी “मौद्रिक नीति समिति की अगस्त 2022 की बैठक के कार्यवृत्त” में मेरा वक्तव्य देखें।

5 "फ्रंट-लोडिंग" मौद्रिक सख्ती: गुण और दोष, बीआईएस बुलेटिन, दिसंबर 2022।

6 आईएमएफ, वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक, सितंबर 2022।

7 बॉल, एल., 1994. त्याग अनुपात क्या निर्धारित करता है? इन: मैनकीव, एन.जी. (एड.), मौद्रिक नीति। शिकागो विश्वविद्यालय प्रेस, पीपी। 155-193।

सार्जेंट, टी. जे., 1986. स्टॉपिंग मॉडरेट इन्फ्लेशन: द मेथड्स ऑफ पोइनकेयर एंड थैचर। इन: सार्जेंट, टी. जे. (एड.), रैशनल एक्सपेक्टेशंस एंड इन्फ्लेशन। हार्पर एंड रो, न्यूयॉर्क, पीपी। 110-157।

8 तदनुसार, और अनिश्चितताओं को देखते हुए, कच्चे तेल की 100 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल की धारणा को बनाए रखा गया था।

9 "ब्याज दरों में तेजी से वृद्धि हुई है। लेकिन क्या मौद्रिक नीति वास्तव में सख्त है?” द इकोनॉमिस्ट, 12-18 नवंबर 2022।

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