मौद्रिक नीति समिति की 5 से 7 जून 2024 के दौरान हुई बैठक का कार्यवृत्त - आरबीआई - Reserve Bank of India
मौद्रिक नीति समिति की 5 से 7 जून 2024 के दौरान हुई बैठक का कार्यवृत्त
भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45जेडबी के अंतर्गत गठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की उनचासवीं बैठक 5 से 7 जून 2024 के दौरान आयोजित की गई थी। 2. बैठक में सभी सदस्य – डॉ. शशांक भिड़े, माननीय वरिष्ठ सलाहकार, नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च, दिल्ली; डॉ. आशिमा गोयल, अवकाश प्राप्त प्रोफेसर, इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च, मुंबई; प्रो. जयंत आर. वर्मा, प्रोफेसर, भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद; डॉ. राजीव रंजन, कार्यपालक निदेशक (भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडबी (2) (सी) के अंतर्गत केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित रिज़र्व बैंक के अधिकारी); डॉ. माइकल देवब्रत पात्र, मौद्रिक नीति के प्रभारी उप गवर्नर उपस्थित रहें और इसकी अध्यक्षता श्री शक्तिकान्त दास, गवर्नर ने की। 3. भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडएल के अनुसार, रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति समिति की प्रत्येक बैठक के चौदहवें दिन इस बैठक की कार्यवाहियों का कार्यवृत्त प्रकाशित करेगा जिसमें निम्नलिखित शामिल होगा: 4. एमपीसी ने भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उपभोक्ता विश्वास, परिवारों की मुद्रास्फीति प्रत्याशा, कॉर्पोरेट क्षेत्र के प्रदर्शन, ऋण की स्थिति, औद्योगिक, सेवाओं और आधारभूत संरचना क्षेत्रों की संभावनाएं और पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के अनुमानों का आकलन करने के लिए किए गए सर्वेक्षणों की समीक्षा की। एमपीसी ने इन संभावनाओं के विभिन्न जोखिमों के इर्द-गिर्द स्टाफ के समष्टि आर्थिक अनुमानों और वैकल्पिक परिदृश्यों की विस्तृत रूप से भी समीक्षा की। उपर्युक्त पर और मौद्रिक नीति के रुख पर व्यापक चर्चा करने के बाद एमपीसी ने संकल्प अपनाया जिसे नीचे प्रस्तुत किया गया है। संकल्प 5. वर्तमान और उभरती समष्टि-आर्थिक स्थिति के आकलन के आधार पर, मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आज (7 जून 2024) अपनी बैठक में यह निर्णय लिया है कि: ये निर्णय, संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति को +/- 2 प्रतिशत के दायरे में रखते हुए 4 प्रतिशत का मध्यावधि लक्ष्य प्राप्त करने के अनुरूप है। आकलन और संभावना 6. वैश्विक आर्थिक गतिविधि पुनः संतुलित हो रही है और 2024 में इसके स्थिर गति से बढ़ने की आशा है। मुद्रास्फीति असमान रूप से कम हो रही है, सेवाओं की मुद्रास्फीति उच्च बनी हुई है और इसकी लक्ष्य की ओर प्रगति धीमी हो रही है। केंद्रीय बैंकों द्वारा नीतिगत बदलावों की गति और समय पर अनिश्चितता, वित्तीय बाज़ारों को अस्थिर बनाए हुए है। उन्नत और उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं दोनों में इक्विटी बाज़ारों ने नई ऊंचाइयों को छुआ है। गैर-ऊर्जा कमोडिटी की कीमतों में मजबूती आई है, जबकि अमेरिकी डॉलर और बॉण्ड प्रतिफल उभरती बाज़ार मुद्राओं पर प्रभाव विस्तार के साथ दोतरफा गति प्रदर्शित कर रहे हैं। सुरक्षित आश्रय मांग के कारण स्वर्ण की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई हैं। 7. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा 31 मई 2024 को जारी अनंतिम अनुमानों के अनुसार, 2023-24 की चौथी तिमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) संवृद्धि 7.8 प्रतिशत रही, जबकि तीसरी तिमाही में यह 8.6 प्रतिशत थी। 2023-24 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि 8.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है। आपूर्ति पक्ष पर, 2023-24 की चौथी तिमाही में वास्तविक योजित सकल मूल्य (जीवीए) में 6.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2023-24 में वास्तविक जीवीए में 7.2 प्रतिशत की संवृद्धि दर्ज की गई। 8. आगे, घरेलू गतिविधि के उच्च आवृत्ति संकेतक 2024-25 में आघात-सहनीयता प्रदर्शित कर रहे हैं। दक्षिण-पश्चिम मानसून के सामान्य से अधिक रहने की आशा है, जो कृषि और ग्रामीण मांग के लिए अच्छा संकेत है। विनिर्माण और सेवा गतिविधि में धारणीय गति के साथ, इससे निजी खपत में बहाली संभव होनी चाहिए। उच्च क्षमता उपयोग, बैंकों और कॉर्पोरेट्स के स्वस्थ तुलन-पत्र, बुनियादी ढांचे पर व्यय पर सरकार के निरंतर जोर और कारोबारी मनोभावों में आशावाद के साथ निवेश गतिविधि के मजबूत रहने की संभावना है। वैश्विक व्यापार संभावनाओं में सुधार बाह्य मांग को समर्थन प्रदान कर सकता है। तथापि, भू-राजनीतिक तनाव, अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी कीमतों में अस्थिरता और भू-आर्थिक विखंडन से होने वाली बाधाएँ संभावना के लिए जोखिम उत्पन्न करती हैं। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, वर्ष 2024-25 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि पहली तिमाही में 7.3 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 7.2 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 7.3 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 7.2 प्रतिशत के साथ 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है (चार्ट 1)। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं। 9. फरवरी 2024 से हेडलाइन मुद्रास्फीति में क्रमिक रूप से कमी देखी गई है, यद्यपि यह फरवरी में 5.1 प्रतिशत से अप्रैल 2024 में 4.8 प्रतिशत तक सीमित रही। तथापि, सब्जियों, दालों, अनाज और मसालों में मुद्रास्फीति के दबाव के बने रहने के कारण खाद्य मुद्रास्फीति उच्च बनी हुई है। मार्च-अप्रैल के दौरान ईंधन की कीमतों में अवस्फीति और भी बढ़ गई, जो तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) की कीमतों में कटौती को दर्शाती है। अप्रैल में मूल (खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई) मुद्रास्फीति और भी कम होकर 3.2 प्रतिशत हो गई, जो वर्तमान सीपीआई शृंखला में सबसे कम है, साथ ही मूल सेवाओं की मुद्रास्फीति भी ऐतिहासिक निचले स्तर पर आ गई है। 10. भविष्य की ओर देखते हुए, प्रतिकूल जलवायु घटनाओं की बढ़ती घटनाओं से उत्पन्न होने वाले अतिव्यापी आघात, खाद्य मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र में काफी अनिश्चितता उत्पन्न करते हैं। कीमतों में हाल ही में आई तेज उछाल को ध्यान में रखते हुए, प्रमुख रबी फसलों, विशेष रूप से दालों और सब्जियों की बाज़ार में आवक पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत है। तथापि, सामान्य मानसून वर्ष के दौरान खाद्य मुद्रास्फीति के दबाव को कम कर सकता है। निविष्टि लागतों से दबाव बढ़ने लगा है और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सर्वेक्षण किए गए उद्यमों के शुरुआती परिणामों से बिक्री कीमतों के मजबूत रहने की आशा है। कच्चे तेल की कीमतों और वित्तीय बाज़ारों में अस्थिरता के साथ-साथ गैर-ऊर्जा कमोडिटी की कीमतों में मजबूती, मुद्रास्फीति के लिए जोखिम उत्पन्न करती है। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए, वर्ष 2024-25 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति पहली तिमाही में 4.9 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 3.8 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 4.6 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 4.5 प्रतिशत के साथ 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है (चार्ट 2)। जोखिम समान रूप से संतुलित है। 11. एमपीसी ने कहा कि अप्रैल 2024 में हुई इसकी पिछली बैठक के बाद से घरेलू संवृद्धि-मुद्रास्फीति संतुलन में अनुकूल रूप से प्रगति हुई है। घरेलू मांग के समर्थन से आर्थिक गतिविधि आघात-सहनीय बनी हुई है। निवेश की मांग में तेजी आ रही है और निजी खपत में बहाली के संकेत मिल रहे हैं। यद्यपि, मूल मुद्रास्फीति धीरे-धीरे कम हो रही है, जो इसके मूल घटक में नरमी के कारण है, लेकिन प्रतिकूल मौसम की घटनाओं के कारण अस्थिर और उच्च खाद्य मुद्रास्फीति के कारण अवस्फीति का मार्ग बाधित हो रहा है। मुद्रास्फीति, बाद में पलटने से पहले,अनुकूल आधार प्रभाव के कारण 2024-25 की दूसरी तिमाही के दौरान अस्थायी रूप से लक्ष्य से कम होने की आशा है। मुद्रास्फीति को लक्ष्य तक लाने और उसे स्थिर करने के लिए, मौद्रिक नीति को खाद्य मूल्य दबावों से मूल मुद्रास्फीति और मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं तक के प्रभाव विस्तारों के प्रति सतर्क रहना होगा। एमपीसी मुद्रास्फीति को धारणीय आधार पर 4 प्रतिशत के लक्ष्य के अनुरूप लाने की अपनी प्रतिबद्धता में दृढ़ रहेगी। तदनुसार, एमपीसी ने इस बैठक में नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत रखने का निर्णय लिया। एमपीसी ने अवस्फीतिकारक रुख को तब तक जारी रखने की आवश्यकता दोहराई, जब तक कि हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति धारणीय रूप से लक्ष्य के साथ संरेखित नहीं हो जाती है। टिकाऊ मूल्य स्थिरता उच्च संवृद्धि की धारणीय अवधि के लिए मजबूत नींव रखती है। अतः, एमपीसी ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने का भी निर्णय लिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उत्तरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो। 12. डॉ. शशांक भिडे, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने के लिए वोट किया। डॉ. आशिमा गोयल और प्रो. जयंत आर. वर्मा ने नीतिगत रेपो दर को 25 आधार अंकों तक कम करने के लिए वोट किया। 13. डॉ. शशांक भिडे, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने के लिए वोट किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो। डॉ. आशिमा गोयल और प्रो. जयंत आर. वर्मा ने रुख को तटस्थ के रूप में बदलने के लिए वोट किया। 14. एमपीसी की इस बैठक का कार्यवृत्त 21 जून 2024 को प्रकाशित किया जाएगा। 15. एमपीसी की अगली बैठक 6 से 8 अगस्त 2024 के दौरान निर्धारित है। नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने के संकल्प पर वोटिंग
डॉ. शशांक भिडे का वक्तव्य 16. 2023-24 के दौरान समष्टि आर्थिक पर्यावरण को अर्थव्यवस्था की उच्च संवृद्धि दर और मुद्रास्फीति दर में कमी से पहचाना गया। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा 31 मई 2024 को जारी अनंतिम अनुमान (पीई) पिछले संवृद्धि आकलन को और मजबूत करते हैं। 2022-23 में 7 प्रतिशत और 2021-22 में 9.7 प्रतिशत की संवृद्धि दर के बाद, 2023-24 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि अब 8.2 प्रतिशत अनुमानित है। यद्यपि अप्रैल एमपीसी बैठक के समय उपलब्ध समष्टि अनुमानों और क्षेत्रवार संवृद्धि दरों के लिए नवीनतम पीई तथा बाह्य और घरेलू दोनों कारकों के कारण समग्र मांग के स्रोतों के बीच महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव और भिन्नता रही हैं, फिर भी समग्र संवृद्धि दर मजबूत बनी हुई है, जो एसएई में 7.6 प्रतिशत से अधिक है। इस बीच, हेडलाइन मुद्रास्फीति दर, वर्ष-दर-वर्ष, 2023-24 के लिए 5.4 प्रतिशत और 2023-24 की चौथी तिमाही में 5 प्रतिशत है। 18. वास्तविक जीवीए के संदर्भ में, कृषि और संबद्ध गतिविधियों की वर्ष-दर-वर्ष संवृद्धि 2022-23 में 4.7 प्रतिशत से घटकर 2023-24 में 1.4 प्रतिशत हो गई। उद्योग जीवीए 2022-23 में (-)0.6 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 9.3 प्रतिशत हो गया, जिसका नेतृत्व विनिर्माण ने किया। तथापि निर्माण जीवीए में 2023-24 में लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई, लेकिन समग्र सेवा क्षेत्र जीवीए की संवृद्धि पिछले वर्ष के 9.9 प्रतिशत से कम होकर 2023-24 में 7.9 प्रतिशत रह गई। सभी तीन प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में, 2023-24 के लिए एसएई की तुलना में पीई में वर्ष-दर-वर्ष संवृद्धि दर समान या अधिक है। 19. विभिन्न संकेतक 2024-25 में संवृद्धि की गति के जारी रहने को दर्शाते हैं। वैश्विक स्तर पर, 2024 में विश्व व्यापार की मात्रा में बहाली की आशा है, साथ ही संवृद्धि भी जारी रहने की आशा है। अपने अप्रैल 2024 के आकलन में, आईएमएफ़ ने 2024 में विश्व उत्पादन में 3.2 प्रतिशत की वार्षिक संवृद्धि, जो 2023 के समान है और 2024 में वस्तुओं और सेवाओं में विश्व व्यापार की मात्रा में 2023 में 0.3 प्रतिशत की तुलना में 3 प्रतिशत की संवृद्धि अनुमानित की है। वैश्विक पीएमआई में प्रवृत्तियाँ, विनिर्माण की तुलना में सेवाओं के मामले में मजबूत संवृद्धि संभावनाओं का सुझाव देती हैं, जिसमें फरवरी से अप्रैल 2024 तक दोनों विस्तार क्षेत्र में हैं। 21. विनिर्माण और सेवाओं के लिए पीएमआई जैसे संकेतक अप्रैल-मई के दौरान विस्तार क्षेत्र में रहे हैं। अप्रैल-मई 2024 के दौरान गैर-खाद्य बैंक ऋण और जीएसटी संग्रह में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर दोहरे अंकों की दर से वृद्धि हुई। 22. शहरी परिवारों के संबंध में रिज़र्व बैंक के उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण में सतर्क आशावाद का संकेत मिलता है। मई 2024 में किए गए सर्वेक्षण में एक वर्ष आगे आवश्यक और गैर-आवश्यक दोनों तरह के व्यय में वृद्धि की आशा को दर्शाया गया है। घरेलू आय पर भविष्य के मनोभावों में परिवर्तन मामूली है, तथापि, सामान्य आर्थिक स्थितियों और रोजगार के बारे में प्रत्याशाएँ एक वर्ष आगे के आधार पर कम हुई हैं। 24. पहली तिमाही के पहले दो महीनों में निवेश मांग के संकेतक मिश्रित तस्वीर दर्शाते हैं। अप्रैल में स्टील की खपत में 9.6 प्रतिशत की मजबूत संवृद्धि हुई है, जबकि महीने के दौरान सीमेंट उत्पादन 0.6 प्रतिशत पर स्थिर रहा। अप्रैल में पूंजीगत वस्तुओं के आयात में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर सुधार हुआ। सार्वजनिक क्षेत्र में पूंजीगत व्यय से पिछले वर्ष की तरह निवेश मांग को समर्थन मिलने की आशा है। 25. 2024-25 के लिए संवृद्धि की संभावनाओं का आकलन, 2023-24 में कार्य-निष्पादन द्वारा निर्धारित गति तथा कतिपय वैश्विक और घरेलू कारकों द्वारा निर्धारित किया गया है। जबकि 2024-25 में आर्थिक संवृद्धि को प्रभावित करने वाली उभरती समष्टि आर्थिक स्थितियों के सकारात्मक पहलू महत्वपूर्ण हैं, वहीं प्रतिकूल परिदृश्यों से जोखिम भी हैं। जारी अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीतिक संघर्षों, विश्व भर में व्यापार को सीमित करने वाली नीतियों, कृषि उत्पादन को प्रभावित करने वाली चरम मौसम की घटनाओं के प्रभाव-विस्तार इन प्रतिकूल परिस्थितियों को उत्पन्न करते हैं। 26. मई 2024 में रिज़र्व बैंक द्वारा आयोजित पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के सर्वेक्षण में 2024-25 में 6.8 प्रतिशत की वास्तविक जीडीपी संवृद्धि का माध्यिका पूर्वानुमान दिया गया है, जिसे मार्च में सर्वेक्षण के पिछले दौर में 6.7 प्रतिशत से संशोधित किया गया है। निजी अंतिम उपभोग व्यय और सकल स्थायी पूंजी निर्माण इन अनुमानों में संवृद्धि के चालक हैं। 27. एमपीसी की अप्रैल की बैठक में, 2024-25 के लिए वार्षिक वास्तविक जीडीपी संवृद्धि 7 प्रतिशत अनुमानित की गई थी। सामान्य मानसून और निवेश की निरंतर गति को ध्यान में रखते हुए, 2024-25 के लिए जीडीपी संवृद्धि अब 7.2 प्रतिशत अनुमानित की गई है। जीडीपी के लिए तिमाही संवृद्धि दरें इस प्रकार हैं: पहली तिमाही में 7.3 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 7.2 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 7.3 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 7.2 प्रतिशत। 28. हाल की अवधि में वर्ष-दर-वर्ष हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति दर में गिरावट की गति स्थिर रही है। यह 2023-24 की तीसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत से घटकर चौथी तिमाही में 5 प्रतिशत हो गई। यह दर जनवरी 2024 में 5.1 प्रतिशत से घटकर अप्रैल में 4.8 प्रतिशत हो गई। जबकि ईंधन और प्रकाश तथा गैर-खाद्य और गैर-ईंधन श्रेणियों के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत से काफी नीचे रही, खाद्य मुद्रास्फीति चालू वर्ष में 2023-24 की चौथी तिमाही में 7.5 प्रतिशत से अधिक और अप्रैल में 7.9 प्रतिशत रही। कृषि संवृद्धि की बहाली में सहायक अनुकूल मानसून और उपयुक्त आपूर्ति प्रबंधन उपाय वर्ष के आगे बढ़ने के साथ खाद्य मुद्रास्फीति को कम करने की कुंजी होंगे। 29. फसल के मौसम के दौरान वर्षा के अस्थायी और स्थानिक वितरण, मौसम की स्थिति तथा अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीतिक संघर्षों के प्रभाव की अनिश्चितताओं को देखते हुए सीपीआई मुद्रास्फीति दर में प्रत्याशित गिरावट के जोखिम हैं। 30. अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कमोडिटी की कीमतों की प्रवृत्तियाँ मिश्रित स्वरूप प्रस्तुत करती हैं। कृषि कीमतों के मामले में, अप्रैल और मई में, गेहूं की कीमतों में वृद्धि हुई है, चावल की कीमतें स्थिर बनी हुई हैं तथा चीनी और पाम तेल की कीमतों में गिरावट देखी गई है। अन्य कमोडिटी के मामले में, ऊर्जा की कीमतें अस्थिर रही हैं और धातुओं में वृद्धि हुई है। विश्व विनिर्माण उत्पादन में सुधार, मौसम की अलग-अलग स्थितियाँ और चल रहे भू-राजनीतिक संघर्षों के प्रभाव पर अनिश्चितताएँ, अल्पावधि में विश्व कमोडिटी कीमतों को प्रभावित करती रहेंगी। 31. मई 2024 के पहले पखवाड़े में रिज़र्व बैंक द्वारा आयोजित शहरी परिवारों के मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं के सर्वेक्षण में उपभोक्ता कीमतों में मौजूदा कमी को दर्शाया गया है, लेकिन यह तीन महीने और एक वर्ष की अल्पावधि में मुद्रास्फीति दर में क्रमशः 20 और 10 आधार अंकों की अपेक्षित मामूली वृद्धि की ओर भी इशारा करता है। अप्रैल-जून के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा चल रहे उद्यम सर्वेक्षणों के शुरुआती परिणाम, 2023-24 में विशेष रूप से सेवाओं और बुनियादी ढांचे में बढ़ते निविष्टि मूल्य दबावों की ओर इशारा करते हैं। विनिर्माण, सेवाओं और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में अधिकांश उत्तरदाताओं द्वारा बिक्री मूल्यों में वृद्धि की प्रत्याशा के बाद निविष्टि मूल्य दबाव भी हैं। 33. इन कारकों को ध्यान में रखते हुए, अब 2024-25 में हेडलाइन मुद्रास्फीति दर 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो अप्रैल एमपीसी बैठक के समान स्तर पर है। तिमाही पूर्वानुमान पहली तिमाही में 4.9 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में घटकर 3.8 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में बढ़कर 4.6 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 4.5 प्रतिशत है। 2024-25 की दूसरी तिमाही में तीव्र गिरावट उस अवधि के अनुरूप है जब मुद्रास्फीति दर 2023-24 में 6.4 प्रतिशत के उच्च स्तर पर थी। 34. मार्च और अप्रैल में हेडलाइन मुद्रास्फीति दर के उत्तरोत्तर 5 प्रतिशत से नीचे जाने, और दूसरी तिमाही में 4 प्रतिशत से कम रहने का अनुमान एक महत्वपूर्ण समष्टि-आर्थिक स्थिति को दर्शाता है जो धारणीय संवृद्धि को सहारा प्रदान कर सकती है। स्पष्ट रूप से, कम मुद्रास्फीति दर को धारणीय संवृद्धि हेतु एक प्रभावी स्थिति बनने के लिए टिकाऊ होना होगा। इस संदर्भ में, नीति को मध्यम अवधि में लक्ष्य के अनुरूप मुद्रास्फीति दर को बनाए रखने पर अपना ध्यान केंद्रित करना जारी रखना होगा। वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में अनुमानित मुद्रास्फीति दर में 4.5 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि अंतर्निहित मूल्य दबावों को दर्शाती है, जिससे यदि निपटा नहीं किया गया तो नीतिगत लक्ष्य प्राप्त नहीं होगा। चूंकि इन मूल्य दबावों का एक बड़ा हिस्सा खाद्य मुद्रास्फीति से संबंधित है, अतएव यह सुनिश्चित करने के लिए कि उच्च खाद्य मुद्रास्फीति का उपभोग समूह में अन्य वस्तुओं की कीमतों पर प्रभाव-विस्तार ना हो, सतर्क दृष्टिकोण अपनाना उचित होगा। चूंकि 2024-25 के लिए कुल उत्पादन अनुमान मजबूत जीडीपी संवृद्धि को दर्शाते हैं, अतः इस समय मुद्रास्फीति लक्ष्य को टिकाऊ आधार पर प्राप्त करने पर मौद्रिक नीति का ध्यान केंद्रित रखना उचित है। डॉ. आशिमा गोयल का वक्तव्य 36. भारतीय संवृद्धि ने एक बार फिर उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन किया है, जो दर्शाता है कि इसकी जड़ें मजबूत हैं। आपूर्ति पक्ष की कार्रवाई के साथ-साथ तटस्थ के करीब वास्तविक नीतिगत दरें, मुद्रास्फीति को लक्ष्य की ओर लाते हुए संवृद्धि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण रही हैं। जैसा कि पहले के कार्यवृत्त में तर्क दिया गया था, तटस्थ वास्तविक नीतिगत दर (एनआईआर) उच्च बेरोजगारी और उच्च उत्पादकता वाले रोजगार के लिए चल रहे परिवर्तन की भारतीय स्थितियों में एकरूपता के आसपास है । 1 . 37. इस वर्ष जनवरी से हेडलाइन मुद्रास्फीति लगभग 5% रही है जबकि दिसंबर 2023 से मूल मुद्रास्फीति 4% से नीचे रही है। अस्थिर कमोडिटी की कीमतें, अल नीनो और गर्मी की लहर (हीट वेव) लक्ष्य के प्रति दृष्टिकोण को उलटने में सक्षम नहीं रही हैं। 2024-25 के लिए 4.5% का हेडलाइन मुद्रास्फीति अनुमान 2% की औसत वास्तविक रेपो दर देता है जिसका अर्थ है कि यदि रेपो दर अपरिवर्तित रहती है तो वास्तविक रेपो दर बहुत लंबे समय तक तटस्थ से ऊपर रहेगी। गिरती मुद्रास्फीति ने वास्तविक रेपो को एक से अधिक कर दिया है। इससे कुछ समय के अंतराल के साथ वास्तविक संवृद्धि दर में कमी आएगी। 2024-25 में प्रत्याशित संवृद्धि दर 2023-24 में प्राप्त 8 प्रतिशत से कम लगभग 7 प्रतिशत है 2 । यथास्थितिवाद को सतर्कता के रूप में जाना जाता है। लेकिन अगर कुछ न करने से वास्तविक परिवर्ती विकृत होते हैं तो यह उन्हें सुचारू करने के बजाय आघातों को बढ़ाता है और जोखिम बढ़ाता है। 39. आपूर्ति पक्ष की कार्रवाई और एनआईआर को तटस्थ बनाए रखने के साथ मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं को नियंत्रित करने के कारण अतीत में संवृद्धि के किसी बड़े त्याग के बगैर मुद्रास्फीति में कमी आई है। तो फिर मुद्रास्फीति, जो न्यूनतर है, से लड़ने के लिए अब उच्च वास्तविक नीतिगत दरों की आवश्यकता क्यों होगी? जब कुल आपूर्ति लोचदार होती है, जैसा कि भारत में है, तो तटस्थ से ऊपर एनआईआर से त्याग अनुपात बहुत अधिक होता है। 40. हम रेपो दर में कमी के विरुद्ध दिए जाने वाले कतिपय सामान्य तर्कों की जांच करें। 41. सबसे पहले, आपूर्ति के आवर्ती आघातों का डर। अप्रैल में नीति के दौरान रही अस्थिरता कम हुई है। वैश्विक अनिश्चितताएं जारी हैं, लेकिन विश्व ने उनके साथ जीना सीख लिया है। उत्पादन और व्यापार संवृद्धि में सुधार हो रहा है। संघर्षों पर काबू पा लिया गया है और भारत के लिए महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतें ओपीईसी तेल कटौती के विस्तार के बावजूद कम हो रही हैं, जो ओपीईसी की एकाधिकार शक्ति में कमी की ओर इशारा करती है। यद्यपि वैश्विक कमोडिटी मुद्रास्फीति मिश्रित है, लेकिन पाम ऑयल मुद्रास्फीति, जो भारत में कई उपभोक्ता वस्तुओं की लागत को प्रभावित करती है, कम हो रही है। 42. पूर्वानुमानित अच्छा मानसून पहले ही आ चुका है और इससे खाद्य मुद्रास्फीति में कमी आने की संभावना है। चुनाव समाप्त हो चुके हैं। परिणाम राजनीतिक स्थिरता का संकेत देते हैं, लेकिन विघटनकारी परिवर्तनों के बजाय नीतिगत निरंतरता का भी संकेत देते हैं। भारत को एक विश्वसनीय विपक्ष मिला है, जो लोकतंत्र को मजबूत करता है। फिर भी, सुव्यवस्थित कार्यान्वयन रिकॉर्ड वाली एक रूढ़िवादी सरकार वापस आएगी और व्यय की बेहतर संरचना तथा अन्य अल्पकालिक और दीर्घकालिक अल्प लागत वाले आपूर्ति पक्ष सुधारों के माध्यम से राजकोषीय समेकन को जारी रखेगी। 43. बड़े आपूर्ति आघातों की कम संभावना के अलावा, पिछले वर्ष के अनुभव से पता चलता है कि आपूर्ति आघात अब मुद्रास्फीति या मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं पर सतत प्रभाव नहीं डालते हैं। हमने इन आघातों के प्रभाव को देखने के लिए एक वर्ष तक इंतजार किया है, अब इससे आगे बढ़ने का समय है। महामारी के बाद की अवधि में परिवार की मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं में अस्थिरता बहुत कम हो गई हैं, जोकि मुद्रास्फीति के साथ-साथ धीरे-धीरे कम हो रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कतिपय नियंत्रण ने उन्हें अल्पकालिक आघातों से बचा लिया है। 44. इसके अलावा, मुद्रास्फीति लक्ष्य के प्रति टिकाऊ दृष्टिकोण मुद्रास्फीति में अल्पकालिक वृद्धि के अनुरूप है। 2015 की गलती से बचना आवश्यक है जब अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में काफी गिरावट आई थी, लेकिन उनके फिर से बढ़ने के डर से नीतिगत दर में पर्याप्त कटौती नहीं की गई थी। वास्तविक ब्याज दरें काफी बढ़ गईं और जिससे संवृद्धि को नुकसान पहुंचा। 45. दूसरी बात यह है कि चूंकि संवृद्धि मजबूत है, इसलिए कटौती की कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन संभावना से कम संवृद्धि हुई है और खपत कमजोर रहने के कारण यह और भी धीमी हो सकती कता है। खपत के साथ-साथ निजी निवेश को बढ़ावा देने का एकमात्र स्थायी तरीका आय और रोजगार बढ़ाना ही है। एक छोटे प्रतिशत का बदलाव एक अरब लोगों को समृद्धि नहीं दे सकता। बेरोजगारी को कम करना राजनीतिक और वित्तीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है। उत्पादक रोजगार में वृद्धि के बिना, आक्रामक पुनर्वितरण की संभावना अधिक हो जाएगी और इससे धन का पलायन हो सकता है, जिससे भारत सत्तर के दशक की मंदी की ओर वापस जा सकता है। 46. लेकिन क्या कम रेपो दरें पहले से ही उच्च व्यक्तिगत ऋण संवृद्धि को और अधिक बढ़ा देंगी? पिछले दो वर्षों में कुल ऋण संवृद्धि लगभग 15% प्रति वर्ष रही है। इसका अर्थ है कि ऋण अनुपात में मामूली वृद्धि हुई है क्योंकि नाममात्र जीडीपी संवृद्धि लगभग 12% है। भारतीय निजी ऋण अनुपात को सहकर्मी देशों के स्तरों की ओर सुरक्षित और स्थिर रूप से बढ़ना होगा, जिससे चीन की संवृद्धि के साथ हुए ऋण विस्फोट से बचा जा सके। जनवरी 2024 से ऋण संवृद्धि में मौसमी रूप से समायोजित मासिक गति कुछ हद तक धीमी हो रही है, विशेषकर तब जब क्षेत्रीय विवेकपूर्ण विनियमन अत्यधिक लीवरेज के निर्माण को कम करता है। यह विनियमन निवारक है और मौद्रिक दर कार्रवाई की आवश्यकता को कम करता है जिसका व्यापक प्रभाव पड़ता है4। 47. भारत में स्प्रेड बहुत अधिक हैं। औसत ऋण दरें दोहरे अंकों में हैं। जबकि जोखिम-आधारित मूल्य निर्धारण की आवश्यकता है, रेपो दरों में कटौती, खुदरा ब्याज दरों को असहनीय स्तरों तक बढ़ने से रोकेगी। स्व-रोजगार की तुलना में ऋण में कुछ तनाव हो सकता है। यदि लीवरेज बढ़ रहा है, तो कम ब्याज दरें लागत और संभावित ऋणग्रस्तता जाल को कम करती हैं। रेपो कटौती के बाद कुछ शुरुआती कमी के बावजूद, बढ़ती ऋण मांग और धीमी जमा संवृद्धि, ऋण और जमा दोनों दरों को बढ़ाने की ओर अग्रसर होगी। 48. तीसरा, वित्तीय बाजारों में यह धारणा व्यापक है कि भारत अमेरिकी फेड से पहले दरों में कटौती नहीं कर सकता। लेकिन अमेरिका की अपनी विशेष समस्याएं हैं जो अन्यत्र लागू नहीं होती हैं। कई अन्य केंद्रीय बैंक दरों में कटौती कर रहे हैं। भारत के चालू खाता घाटे में कमी, सूचकांक समावेशन और रेटिंग अपग्रेड ऐसे कई कारण हैं जो अमेरिका के साथ ब्याज अंतर को कम महत्वपूर्ण बनाते हैं। अमेरिका के साथ भारत का मुद्रास्फीति अंतर भी फिर से कम हो रहा है। 49. अंत में, आइए कटौती की प्रक्रिया और इससे संबंधित संचार पर नज़र डालें। वर्तमान में मुद्रास्फीति में गिरावट के साथ रेपो को संरेखित करने के लिए केवल छोटे कदमों की आवश्यकता है, इसलिए इसे दर कटौती चक्र की शुरुआत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। संचार से यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि कोई नरमी का रास्ता नहीं है और भावी मार्गदर्शन (फॉरवर्ड गाइडेंस) डेटा द्वारा निर्धारित रहता है। एक तटस्थ रुख उचित है क्योंकि तब दर आवश्यकतानुसार किसी भी दिशा में बढ़ सकती है। 50. उपरोक्त तर्क के अनुरूप, मैं रेपो दर में 25 आधार अंकों की कटौती और रुख को तटस्थ करने के पक्ष में वोट करती हूँ। इन परिवर्तनों के साथ भी, मौद्रिक नीति मुद्रास्फीति को विश्वसनीय रूप से लक्ष्य तक लाने की दिशा में अवस्फीतिकारी बनी रहेगी। प्रो. जयंत आर. वर्मा का वक्तव्य 51. पिछली बैठक (अप्रैल 2024) के लिए अपने वक्तव्य में मैंने प्रतिबंधात्मक मौद्रिक नीति के कारण 2024-25 में संवृद्धि में कमी आने संबंधी चिंता व्यक्त की थी। अब ऐसा प्रतीत होता है कि अनावश्यक रूप से लंबे समय तक प्रतिबंधात्मक नीति को बनाए रखने से 2025-26 में भी वृद्धि में कमी आएगी। आरबीआई द्वारा सर्वेक्षण किए गए पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं का अनुमान है कि 2025-26 और 2024-25 में संवृद्धि 2023-24 की तुलना में 0.75% से अधिक कम होगी, और संभावित संवृद्धि दर (मान लीजिए 8%) से 1% से अधिक कम होगी। यह देखते हुए कि हेडलाइन मुद्रास्फीति लक्ष्य से केवल 0.5% अधिक होने का अनुमान है, और मूल मुद्रास्फीति बेहद सौम्य है, यह अस्वीकार्य रूप से संवृद्धि में उच्च त्याग है। 52. जैसा कि मैंने पिछली कई बैठकों में कहा है, लगभग 2% की वर्तमान वास्तविक नीति दर (अनुमानित मुद्रास्फीति के आधार पर) मुद्रास्फीति को उसके लक्ष्य तक ले जाने के लिए आवश्यक स्तर से काफी ऊपर है। अतः मैं रेपो दर को 25 आधार अंकों तक कम करने और रुख को तटस्थ करने के लिए वोट करता हूँ। डॉ. राजीव रंजन का वक्तव्य 53. मेरे पिछले वक्तव्य में दिए गए तर्क अभी भी मान्य हैं। परिवर्तन काल के दौर में, तीन सी- सावधानी (Caution) जो प्राप्त अधिक सूचनाओं के साथ लक्ष्य के लिए मुद्रास्फीति के टिकाऊ संरेखण के बारे में दृढ़ विश्वास को दर्शाती है; स्थिरता (Consistency) जो पीछे हटने से रोकती है; और विश्वसनीयता (Credibility) जो प्रत्याशाओं को नियंत्रित करने में सुविधा प्रदान करती है- की भूमिका बहुत अधिक प्रासंगिक है। कुल मिलाकर, हम मोटे तौर पर पिछली दो द्वि-मासिक समीक्षाओं की तरह ही मौद्रिक नीति की स्थिति में हैं। संवृद्धि मजबूत बनी हुई है और इसने ऊर्ध्वगामी स्तर पर आगे भी चौंकाया है। जबकि मूल मुद्रास्फीति में और नरमी आई है, खाद्य मुद्रास्फीति का जोखिम अभी भी उच्च बना हुआ है। 54. 2024-25 के लिए हमारे संवृद्धि के पूर्वानुमान को निम्नलिखित कारणों से ऊर्ध्वगामी संशोधित किया गया है। सबसे पहले, जीडीपी ने 2023-24 की चौथी तिमाही में 7.8 प्रतिशत की मजबूत गति (तिमाही-दर-तिमाही वृद्धि) दर्ज की, जबकि कोविड-पूर्व अवधि (2012-13 से 2019-20) की इसी तिमाहियों के दौरान यह औसतन 5.8 प्रतिशत थी। यहां तक कि योजित सकल मूल्य (जीवीए) की गति भी 2023-24 की चौथी तिमाही के दौरान 5.7 प्रतिशत पर मजबूत थी, जबकि कोविड-पूर्व अवधि के दौरान औसत गति 2.4 प्रतिशत थी। यह मजबूत गति 2024-25 में संवृद्धि को समर्थन देना जारी रखेगी। अप्रैल-मई के लिए उपलब्ध उच्च आवृत्ति संकेतक, गति को बनाए रखने के लिए आशावाद प्रदर्शित करते हैं। दूसरा, निजी खपत जो पीछे चल रही थी, अब सामान्य से बेहतर दक्षिण-पश्चिम मानसून और कृषि क्षेत्र में सुधार के कारण ग्रामीण मांग में उछाल से गति प्राप्त करेगी। तीसरा, वैश्विक व्यापार के लिए बेहतर संभावनाओं के साथ बाहरी मांग में बदलाव देखने को मिल रहा है। अप्रैल में, पण्य निर्यात सकारात्मक क्षेत्र में प्रवेश कर गया और सेवाओं के निर्यात में दोहरे अंकों की मजबूत वृद्धि दर्ज की गई। इसके अलावा, 2021-22 के लिए उपलब्ध केएलईएमएस डेटाबेस से पता चलता है कि कुल कारक उत्पादकता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। अर्थव्यवस्था के और अधिक डिजिटलीकरण और औपचारिकीकरण के कारण उत्पादकता में वृद्धि हुई है, साथ ही जैसा कि मैंने अपने पिछले चार वक्तव्यों में कहा है, अनुकूल जनसांख्यिकी, बढ़ती श्रम शक्ति सहभागिता और त्वरित पूंजी निर्माण के कारण उच्च संभावित संवृद्धि हुई है। शायद उच्च संवृद्धि के परिदृश्य में मूल मुद्रास्फीति से कम दबाव और कम चालू खाता घाटा इसका संकेत हो सकता है। अवश्य ही, कम इनपुट लागत के साथ मौद्रिक नीति मूल अपस्फीति का मुख्य चालक रही है। 55. मुद्रास्फीति के संबंध में, हेडलाइन और मूल मुद्रास्फीति प्रत्याशित रूप से कम हुई है। हालाँकि, निकट अवधि में थोड़ी राहत की संभावना है, क्योंकि मुद्रास्फीति 2024-25 की पहली तिमाही में लगभग 4.9 प्रतिशत पर स्थिर रहने का अनुमान है, जिसका मुख्य कारण सब्जियों और फलों की गर्मियों की फसल पर अनोखी गर्मी की लहर की स्थिति का प्रभाव; कृषि और बागवानी उत्पादन अनुमानों में कमी; प्रमुख सहकारी समितियों में दूध की कीमतों में संशोधन; तथा लोजिस्टिक एवं परिवहन लागत के साथ-साथ कमोडिटी की कीमतों में बदलाव के संकेत हैं। सीपीआई में 45.9 प्रतिशत भार के साथ खाद्य पदार्थों ने अप्रैल 2024 में मूल मुद्रास्फीति में तीन-चौथाई योगदान दिया, जबकि एक वर्ष पहले यह लगभग 40 प्रतिशत था। अनुकूल आधार प्रभावों के कारण 2024-25 की दूसरी तिमाही में मुद्रास्फीति में संभावित एकबारगी गिरावट को छोड़कर, चल रही अवस्फीति प्रक्रिया, हालांकि धीरे-धीरे, 2024-25 की दूसरी छमाही में जारी रहने की उम्मीद है, जिसमें 2025-26 की चौथी तिमाही तक मूल मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। सामान्य मानसून की प्राप्ति, विशेष रूप से इसके स्थानिक और सामयिक वितरण के संदर्भ में, और जलाशयों का पुनर्भरण, खाद्य और हेडलाइन सीपीआई में निरंतर अवस्फीति के लिए महत्वपूर्ण होगा। 56. इस पृष्ठभूमि के सापेक्ष, मैं इस बारे में और अधिक विस्तार से बताना चाहूँगा कि हम इस समय अपनी नीतिगत कार्रवाई पर कोई गलत निर्णय क्यों नहीं ले सकते। सबसे पहले, भले ही हम लगातार आठ महीनों से सहनीय बैंड के भीतर चल रही हेडलाइन मुद्रास्फीति से कुछ राहत पा सकते हैं, लेकिन हम अपनी सतर्कता नहीं छोड़ सकते क्योंकि हेडलाइन मुद्रास्फीति अभी भी लक्ष्य के अनुरूप नहीं है। खाद्य कीमतों में बार-बार होने वाले आघात, मुद्रास्फीति के लक्ष्य तक पहुँचने में देरी कर रहे हैं। हालाँकि, यह उत्साहजनक है कि पिछले छह महीनों में खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि ने मूल मुद्रास्फीति को प्रभावित नहीं किया है, जो हमारे परिपक्व लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण ढांचे की विश्वसनीयता से होने वाले लाभ को दर्शाता है। तथापि, घरेलू उपभोग बास्केट में खाद्य पदार्थों की बड़ी हिस्सेदारी को देखते हुए, हमें इस तरह के किसी भी प्रभाव-प्रसार का विरोध करने के लिए सतर्क रहने की आवश्यकता है और यह सुनिश्चित करना होगा कि इस तरह के मूल्य दबाव स्पष्ट रूप से समाप्त हो जाएं। नीति परिवर्तन पर किसी भी विचार पर भविष्य में पीछे हटने से बचने के लिए इस पहलू को ध्यान में रखना होगा। 5. 57. दूसरा, यह तर्क दिया जा सकता है कि लगातार आठ नीतियों के लिए विराम एक लंबा विराम है। मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूं कि निष्क्रियता की जड़ता से हमें कार्रवाई के लिए प्रेरित नहीं करना चाहिए। बल्कि संवृद्धि और मुद्रास्फीति की व्यापक आर्थिक परिस्थिति प्रेरक शक्ति होनी चाहिए। स्पष्ट रूप से, अनुकूल संवृद्धि-मुद्रास्फीति संतुलन और संभावना यथास्थिति की ओर इशारा कर रहे हैं। लेकिन , भले ही फरवरी 2023 से रेपो दर को अपरिवर्तित रखा गया है, तथापि, चलनिधि , संचरण और संचार पर कई नीतिगत कार्रवाइयों ने अर्थव्यवस्था को और स्थिर करने में मदद की है। सभी प्रमुख हितधारकों के विचार और आकलन इस स्तर पर कोई कार्रवाई न करने की ओर एकमत हैं। किसी भी मामले में, हम उन उन्नत अर्थव्यवस्थाओं द्वारा सामना किए जा रहे दबावों का सामना नहीं कर रहे हैं, जिन्होंने वर्तमान दर वृद्धि चक्र में बहुत प्रतिबंधात्मक नीति निर्धारण अपनाई हैं। 58. तीसरा, यह भी तर्क दिया जा रहा है कि राजकोषीय समेकन के साथ, नीति दरों को कम करके मौद्रिक नीति को संवृद्धि के लिए और अधिक सहायक बनाना चाहिए। इस संबंध में जबाबी तर्क दोहरा है: (ए) हमें यह देखने की जरूरत है कि राजकोषीय समेकन को क्या प्रेरित करता है - यदि यह काफी हद तक लाभांश सहित उच्च राजस्व द्वारा संचालित होता है, जो कि वर्तमान में ऐसा है, तो संवृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव मौजूद नहीं हो सकता है। इसके विपरीत, राजकोषीय समेकन वास्तव में संवृद्धि को बढ़ावा दे सकता है यदि यह देश की रेटिंग में सुधार करता है, निजी क्षेत्र के लिए वित्तीय स्थितियों को आसान बनाता है और समग्र मनोभावों में सुधार करता है। (बी) अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि मौद्रिक नीति दीर्घकालिक संवृद्धि में जो सबसे अच्छा योगदान दे सकती है वह मूल्य स्थिरता के माध्यम से है।6 इस संदर्भ में, मैं अपने पिछले कार्यवृत्त में कही गई बात पर कायम हूं कि हमें मजबूत संवृद्धि से प्राप्त अवसर का उपयोग मुद्रास्फीति पर ध्यान केंद्रित करने के लिए करना चाहिए। 59. संक्षेप में, हमारी मौद्रिक नीति कार्रवाईयां मुख्य रूप से घरेलू समष्टि आर्थिक स्थितियों और संभावना द्वारा निर्देशित होनी चाहिए। वर्तमान समय में संवृद्धि-मुद्रास्फीति मिश्रण, हमें मुद्रास्फीति के मोर्चे पर अधिक सावधानी से आगे बढ़ने की अनुमति देता है। इसलिए, हमें मूल्य स्थिरता पर अपने ध्यान से विचलित नहीं होना चाहिए जो हमारे दीर्घकालिक सतत संवृद्धि के परिणाम के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। तदनुसार, मैं इस नीति में दर और मौद्रिक नीति रुख पर यथास्थिति के लिए वोट करता हूँ। डॉ. माइकल देवब्रत पात्र का वक्तव्य 60. भारत में आर्थिक गतिविधि मोटे तौर पर आधारभूत पूर्वानुमान के अनुरूप विकसित हो रही है। अनुकूल मानसून की संभावना से सुस्त पड़ती गति समायोजित हो जाएगी, जो महामारी के बाद की अवधि में पहली तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद की एक विशिष्ट विशेषता बन गई है। ग्रामीण व्यय में सुधार से निजी उपभोग को बढ़ावा मिलने से घरेलू मांग, अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करती रहेगी। कॉर्पोरेट तुलन पत्र, अचल संपत्तियों में बढ़ते निवेश को दर्शा रहे हैं, जिसकी अभिव्यक्ति पूर्ण पूंजीगत व्यय में वृद्धि के रूप में मिलनी चाहिए। उत्पादन, अपनी क्षमता के अनुरूप व्यापक संतुलन में होने के कारण, इस समय मौद्रिक नीति संवृद्धि के प्रति तटस्थ रह सकती है तथा मुद्रास्फीति को लक्ष्य के अनुरूप लाने पर केंद्रित रह सकती है। यह उद्देश्य अधूरा रह गया है, जिससे मध्यम अवधि की संवृद्धि संभावनाएं कमजोर हो सकती हैं। 61. मुद्रास्फीति में कमी की गति, यहां तक कि देशव्यापी परिप्रेक्ष्य से भी, अब तक निराशाजनक रही है। खाद्य पदार्थों की कीमतें लंबे समय से स्थिर बनी हुई हैं, जो तीव्र गति से अवस्फीति में मुख्य बाधा बनी हुई हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था खाद्य मूल्य झटकों की बंधक बनी हुई है। इनके बार-बार होने से मुद्रास्फीति के अन्य घटकों और अपेक्षाओं पर पड़ने वाले प्रभाव को रोकने के लिए मौद्रिक नीति पर निगरानी बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके लिए मुद्रास्फीति के प्रक्षेप पथ में सांख्यिकीय नरमी पर भी गौर करना होगा, जो जुलाई-अगस्त 2024 के दौरान अनुमानित है, जबकि सितंबर से अपेक्षित तेजी को कम करने के लिए तैयार रहना होगा। खाद्य पदार्थों की कीमतें, मौद्रिक नीति रुख में संभावित परिवर्तन पर विचार करने में बाधा डाल रही हैं। अतः, मैं नीतिगत दर और निभाव वापस लेने के रुख को अपरिवर्तित रखने के पक्ष में वोट करता हूं। श्री शक्तिकान्त दास का वक्तव्य 62. वैश्विक अर्थव्यवस्था आघात-सह है लेकिन अपने ऐतिहासिक रुझान की तुलना में कम दर से बढ़ रही है। 7प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति असमान रूप से कम हो रही है। विभिन्न देशों में संवृद्धि-मुद्रास्फीति की गतिशीलता में भिन्नता के कारण, नीति निर्माण में घरेलू कारकों का महत्व सामने आया है। तदनुसार, विभिन्न देशों में मौद्रिक नीति कार्रवाई पर मतभेद के प्रारंभिक संकेत दिखाई दे रहे हैं। 63. भारतीय अर्थव्यवस्था स्वस्थ दर से बढ़ रही है, पिछले तीन वर्षों में इसकी औसत वृद्धि दर 8.3 प्रतिशत रही है। 2023-24 के दौरान, वैश्विक प्रतिकूलताओं और मौसम संबंधी अनिश्चितताओं के बावजूद अर्थव्यवस्था ने 8.2 प्रतिशत की प्रभावशाली संवृद्धि दर्ज की। यह मुख्यतः घरेलू मांग, विशेषकर निवेश गतिविधि से प्रेरित था। आपूर्ति पक्ष पर, विनिर्माण और सेवाओं ने योजित सकल मूल्य (जीवीए) को प्रमुख समर्थन प्रदान किया। 64. 2024-25 के लिए घरेलू संवृद्धि संभावना आशावादी बना हुई है क्योंकि आर्थिक गतिविधि में तेजी बनी हुई है। दक्षिण-पश्चिम मानसून के सामान्य से अधिक रहने की उम्मीद है, जिससे कृषि गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा और ग्रामीण खपत को सहायता मिलेगी। सेवा गतिविधियों में तेजी से शहरी उपभोग को बढ़ावा मिलेगा। विनिर्माण, सेवाएं और बुनियादी ढांचा क्षेत्रों में कारोबारी विश्वास मजबूत बना हुआ है। बैंकों और कॉर्पोरेट के स्वस्थ तुलन- पत्र और सरकार के पूंजीगत व्यय पर जोर से निवेश गतिविधि को समर्थन मिलने की उम्मीद है। एजेंसियों 8द्वारा वैश्विक व्यापार में सुधार के पूर्वानुमान, जब साकार होंगे, तब बाह्य मांग को बढ़ावा मिलेगा। इन उभरती गतिशीलता को ध्यान में रखते हुए, 2024-25 के लिए सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि अनुमान को बढ़ाकर 20 आधार अंकों से संशोधित कर 7.2 प्रतिशत कर दिया गया है। जब ऐसा होगा, तो यह लगातार चौथा वर्ष होगा जब यह 7.0 प्रतिशत होगी या सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि अधिक होगी। 65. हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति में कमी आ रही है, लेकिन बहुत धीमी गति से। अवस्फीति का अंतिम चरण धीरे-धीरे और लंबे समय तक चलने वाला होता जा रहा है। अप्रैल 2024 की एमपीसी बैठक के बाद से, हेडलाइन मुद्रास्फीति फरवरी 2024 में 5.1 प्रतिशत से लगभग 30 आधार अंकों की कमी के साथ अप्रैल 2024 में 4.8 प्रतिशत हो गई है। अप्रैल 2024 में सीपीआई कोर (खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई) और इसकी सेवाओं के उप-घटक में मुद्रास्फीति ऐतिहासिक न्यूनतम स्तर पर थी। अवस्फीति की धीमी गति के पीछे खाद्य मुद्रास्फीति मुख्य कारक है। आपूर्ति पक्ष में बार-बार आने वाले और एक दूसरे से जुड़े झटके, खाद्य मुद्रास्फीति में बड़ी भूमिका निभाते रहते हैं। 66. आगे बढ़ते हुए, आधारभूत अनुमानों से पता चलता है कि 2024-25 में मुद्रास्फीति औसतन 4.5 प्रतिशत तक कम हो जाएगी। हालाँकि, तत्काल महीनों में, कुछ खराब होने वाली वस्तुओं के उत्पादन पर असाधारण रूप से गर्मी के महीनों का प्रभाव; कुछ दालों और सब्जियों - विशेष रूप से आलू और प्याज - में रबी उत्पादन में कमी की संभावना; और दूध की कीमतों में वृद्धि, करीबी निगरानी की मांग करती है। सामान्य मानसून के कारण अंततः प्रमुख खाद्य वस्तुओं पर मूल्य दबाव कम हो सकता है। बड़े अनुकूल आधार प्रभावों के कारण मुद्रास्फीति, 2024-25 की तीसरी और चौथी तिमाही में पुनः बढ़ने से पहले अस्थायी रूप से और एकबारगी दूसरी तिमाही में लक्ष्य दर से नीचे आ सकती है। 68. संवृद्धि-मुद्रास्फीति संतुलन हमारे अनुमानों के अनुरूप अनुकूल रूप से आगे बढ़ रहा है। आघात- सह संवृद्धि, मौद्रिक नीति के लिए स्पष्ट रूप से मुद्रास्फीति पर ध्यान केंद्रित करने की गुंजाइश उत्पन्न करता है, जो 4.0 प्रतिशत के लक्ष्य से काफी ऊपर बनी हुई है। लगातार उच्च खाद्य मुद्रास्फीति के साथ, यह उचित होगा कि हम अपनी अवस्फीतिकारी नीतिगत स्थिति को जारी रखें जिसे हमने अपनाया है। किसी भी दिशा में जल्दबाजी में की गई कार्रवाई से लाभ के बजाय हानि ही होगी। यह महत्वपूर्ण है कि मुद्रास्फीति को 4.0 प्रतिशत के लक्ष्य के अनुरूप बनाए रखा जाए। मूल्य स्थिरता उच्च एवं टिकाऊ संवृद्धि का आधार है। अतः, मैं नीतिगत रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने तथा निभाव को वापस लेने के रुख को जारी रखने के पक्ष में वोट करता हूं।
(पुनीत पंचोली) प्रेस प्रकाशनी: 2024-2025/539 [1] केएलईएमएस डेटा से पता चलता है कि विनिर्माण और सेवाओं के लिए कुल कारक उत्पादकता (टीएफ़आर) 2015-16 से 2019-20 (5 वर्ष) के दौरान 2010-11 से 2014-15 (5 वर्ष) की तुलना में अधिक गति से बढ़ी है। इससे कीमतों में वृद्धि किए बिना उच्च लागत को अवशोषित करने में मदद मिलती है तथा उच्च संवृद्धि के बावजूद एनआईआर कम हो जाता है।
|