मौद्रिक नीति समिति की 7 से 9 अक्तूबर 2024 के दौरान हुई बैठक का कार्यवृत्त - आरबीआई - Reserve Bank of India
मौद्रिक नीति समिति की 7 से 9 अक्तूबर 2024 के दौरान हुई बैठक का कार्यवृत्त
[भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45ज़ेडएल के अंतर्गत] भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45जेडबी के अंतर्गत गठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की पचासवीं बैठक 6 से 8 अगस्त 2024 के दौरान आयोजित की गई थी। 2. बैठक में सभी सदस्य – डॉ. नागेश कुमार, निदेशक और मुख्य कार्यपालक, इंस्टिट्यूट फॉर स्टडीज इन इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट, नई दिल्ली; श्री सौगत भट्टाचार्य, अर्थशास्त्री, मुंबई; प्रोफेसर राम सिंह, निदेशक, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, दिल्ली; डॉ. राजीव रंजन, कार्यपालक निदेशक (भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडबी (2) (सी) के अंतर्गत केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित रिज़र्व बैंक के अधिकारी); डॉ. माइकल देवब्रत पात्र, मौद्रिक नीति के प्रभारी उप गवर्नर उपस्थित रहें और इसकी अध्यक्षता श्री शक्तिकान्त दास, गवर्नर ने की। 3. भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडएल के अनुसार, रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति समिति की प्रत्येक बैठक के चौदहवें दिन इस बैठक की कार्यवाहियों का कार्यवृत्त प्रकाशित करेगा जिसमें निम्नलिखित शामिल होगा: (क) मौद्रिक नीति समिति की बैठक में अपनाया गया संकल्प; (ख) उक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर मौद्रिक नीति के प्रत्येक सदस्य को प्रदान किया गया वोट; और (ग) उक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर धारा 45ज़ेडआई की उप-धारा (11) के अंतर्गत मौद्रिक नीति समिति के प्रत्येक सदस्य का वक्तव्य। 4. एमपीसी ने भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उपभोक्ता विश्वास, परिवारों की मुद्रास्फीति प्रत्याशा, कॉर्पोरेट क्षेत्र के प्रदर्शन, ऋण की स्थिति, औद्योगिक, सेवाओं और आधारभूत संरचना क्षेत्रों की संभावनाएं और पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के अनुमानों का आकलन करने के लिए किए गए सर्वेक्षणों की समीक्षा की। एमपीसी ने इन संभावनाओं के विभिन्न जोखिमों के इर्द-गिर्द स्टाफ के समष्टि आर्थिक अनुमानों और वैकल्पिक परिदृश्यों की विस्तृत रूप से भी समीक्षा की। उपर्युक्त पर और मौद्रिक नीति के रुख पर व्यापक चर्चा करने के बाद एमपीसी ने संकल्प अपनाया जिसे नीचे प्रस्तुत किया गया है। संकल्प 5. वर्तमान और उभरती समष्टि-आर्थिक स्थिति के आकलन के पश्चात, मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आज (9 अक्तूबर 2024) अपनी बैठक में यह निर्णय लिया है कि:
परिणामस्वरूप, स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 6.25 प्रतिशत तथा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.75 प्रतिशत पर यथावत् बनी हुई है।
ये निर्णय संवृद्धि को समर्थन देते हुए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति के लिए +/- 2 प्रतिशत के दायरे में 4 प्रतिशत के मध्यम अवधि लक्ष्य को प्राप्त करने के उद्देश्य के अनुरूप हैं। संवृद्धि और मुद्रास्फीति की संभावना 6. वैश्विक अर्थव्यवस्था आघात-सह बनी हुई है और भू-राजनीतिक संघर्षों के बढ़ने से होने वाले अधोगामी जोखिमों के बावजूद, शेष वर्ष में इसकी गति स्थिर रहने की उम्मीद है। भारत में, निजी खपत और निवेश के कारण वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) ने 2024-25 की पहली तिमाही में 6.7 प्रतिशत की संवृद्धि दर्ज की। आगे देखते हुए, सामान्य से अधिक वर्षा और जलाशयों के मजबूत स्तरों के कारण कृषि क्षेत्र के बेहतर कार्य-निष्पादन की उम्मीद है, जबकि विनिर्माण और सेवा गतिविधियाँ स्थिर बनी हुई हैं। मांग पक्ष पर, खरीफ की अच्छी बुआई और त्यौहारी समय में उपभोक्ता खर्च में निरंतर वृद्धि निजी खपत के लिए शुभ संकेत है। उपभोक्ता और कारोबारी विश्वास में सुधार हुआ है। निवेश संभावना को आघात-सह गैर-खाद्य बैंक ऋण संवृद्धि, उच्च क्षमता उपयोग, बैंकों और कॉरपोरेट्स के मजबूत तुलन-पत्र और बुनियादी ढांचे पर खर्च पर सरकार के निरंतर जोर से समर्थन मिल रहा है। वैश्विक व्यापार मात्रा में सुधार से बाह्य मांग को समर्थन मिलने की उम्मीद है। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2024-25 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि 7.2 प्रतिशत अनुमानित है, जिसमें यह दूसरी तिमाही में 7.0 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 7.4 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 7.4 प्रतिशत अनुमानित है। 2025-26 की पहली तिमाही के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि 7.3 प्रतिशत अनुमानित है (चार्ट 1)। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं। 7. जुलाई और अगस्त में हेडलाइन मुद्रास्फीति तेजी से घटकर क्रमशः 3.6 और 3.7 प्रतिशत हो गई, जबकि जून में यह 5.1 प्रतिशत थी। आगे चलकर, आधार प्रभाव प्रतिकूल होने तथा खाद्य कीमतों में वृद्धि से सितम्बर माह के मुद्रास्फीति आंकडों में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिल सकती है। तथापि, बेहतर खरीफ आवक और अच्छे रबी मौसम की बढ़ती संभावनाओं के कारण खाद्य मुद्रास्फीति 2024-25 की चौथी तिमाही तक कम होने की उम्मीद है। प्रमुख खरीफ फसलों की बुवाई पिछले वर्ष की तुलना में तथा दीर्घावधि औसत से अधिक है। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अनाज के लिए पर्याप्त बफर भंडार उपलब्ध हैं। जलाशयों का पर्याप्त स्तर, अच्छी सर्दी की संभावना और अनुकूल मिट्टी की नमी की स्थिति, आगामी रबी मौसम के लिए शुभ संकेत हैं, तथापि प्रतिकूल मौसम की घटनाएं जोखिम बनी हुई हैं। रिज़र्व बैंक के उद्यम सर्वेक्षणों में शामिल कंपनियों को उम्मीद है कि निविष्टि लागत का दबाव कम होगा; तथापि, प्रमुख वस्तुओं, विशेषकर धातुओं और कच्चे तेल की कीमतों में हाल ही में हुई तेजी पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत है। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2024-25 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत अनुमानित है, जिसमें यह दूसरी तिमाही 4.1 प्रतिशत, तीसरी तिमाही 4.8 प्रतिशत और चौथी तिमाही 4.2 प्रतिशत अनुमानित है। 2025-26 की पहली तिमाही के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति 4.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है (चार्ट 2)। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं। मौद्रिक नीति निर्णयों का औचित्य 8. एमपीसी ने कहा कि घरेलू संवृद्धि संभावना घरेलू चालकों - निजी खपत और निवेश के समर्थन से आघात-सह बनी हुई है। यह मौद्रिक नीति को लक्ष्य के साथ मुद्रास्फीति के टिकाऊ संरेखण को प्राप्त करने के लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अवसर प्रदान करता है। एमपीसी ने दोहराया कि स्थायी मूल्य स्थिरता, उच्च संवृद्धि की निरंतर अवधि की नींव को मजबूत करती है। निकट भविष्य में क्षणिक उछाल के बाद, हेडलाइन मुद्रास्फीति में ऊपर बताए गए अनुमान के अनुसार कमी आने की उम्मीद है। खरीफ और रबी दोनों फसलों के लिए बेहतर संभावनाओं और खाद्यान्नों के पर्याप्त बफर भंडार के कारण, अब वित्तीय वर्ष के अंत में अवस्फीति के मार्ग पर अधिक विश्वास है। वर्तमान और अपेक्षित मुद्रास्फीति-संवृद्धि गतिकी को ध्यान में रखते हुए, जो कि अच्छी तरह से संतुलित है, एमपीसी ने मौद्रिक नीति के रुख को, निभाव को वापस लेने से बदलकर 'तटस्थ' करने तथा संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए मुद्रास्फीति को लक्ष्य के साथ टिकाऊ आधार पर संरेखित करने पर स्पष्ट रूप से ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया। रुख में परिवर्तन से एमपीसी को लचीलापन प्राप्त होगा, साथ ही इससे उसे अवस्फीति की प्रगति पर नजर रखने में भी मदद मिलेगी, जो अभी भी अधूरी है। वैश्विक भू-राजनीतिक जोखिमों, वित्तीय बाज़ार में अस्थिरता, प्रतिकूल मौसम की घटनाओं और वैश्विक खाद्य एवं धातु की कीमतों में हाल की बढ़ोतरी से संबंधित अनिश्चितताओं से जोखिम उत्पन्न हो रहे हैं। अतएव, एमपीसी को उभरती मुद्रास्फीति संभावना के प्रति सतर्क रहना होगा। तदनुसार, एमपीसी ने इस बैठक में नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया। 9. श्री सौगत भट्टाचार्य, प्रोफेसर राम सिंह, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने के लिए वोट किया। डॉ. नागेश कुमार ने नीतिगत रेपो दर में 25 आधार अंकों की कमी करने के लिए वोट किया। 10. डॉ. नागेश कुमार, श्री सौगत भट्टाचार्य, प्रोफेसर राम सिंह, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने रुख को निभाव को वापस लेने से बदलकर 'तटस्थ' करने तथा संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए मुद्रास्फीति को लक्ष्य के साथ टिकाऊ आधार पर संरेखित करने पर स्पष्ट रूप से ध्यान केंद्रित करने के लिए वोट किया। 11. एमपीसी की इस बैठक का कार्यवृत्त 23 अक्तूबर 2024 को प्रकाशित किया जाएगा। 12. एमपीसी की अगली बैठक 4 से 6 दिसंबर 2024 के दौरान निर्धारित है। नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने के संकल्प पर वोटिंग
डॉ. नागेश कुमार का वक्तव्य 13. सबसे पहले, मैं यह कहना चाहूँगा कि वैश्विक आर्थिक स्थिति को देखते हुए, भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रबंधन पर गर्व महसूस होता है, जिसने इसे अन्य सुदृढ़ समष्टि-आर्थिक बुनियादी बातों के साथ-साथ अपेक्षाकृत कम मुद्रास्फीति दर, विनिमय दर स्थिरता, बृहद विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि के कारण वैश्विक स्तर पर सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था बना दी है। वित्त मंत्रालय के पिछले कुछ वर्षों के विवेकपूर्ण राजकोषीय प्रबंधन के साथ आरबीआई के प्रभावी मौद्रिक प्रबंधन की सराहना की जानी चाहिए। 14. हालांकि, मौजूदा समय के समग्र स्थिति को ध्यान में रखते हुए, एमपीसी को कुछ बिंदुओं पर विचार करने की आवश्यकता है। मैं देश की समग्र संवृद्धि से संबंधित प्राथमिकताओं के संदर्भ में नीतिगत दरों और मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण पर चर्चा को वास्तविक क्षेत्र, विशेष रूप से विनिर्माण क्षेत्र के दृष्टिकोण से रखना चाहता हूं। आखिरकार, नीतियां हमारे संवृद्धि संबंधी आकांक्षाओं को पूरा करने का 'साधन' हैं। 15. भारत की युवा आबादी के लिए रोजगार सृजन की अनिवार्यता ने सरकार को विनिर्माण क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया है, जिसमें न केवल प्रत्यक्ष रूप से बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से भी अच्छे रोजगार सृजित करने की क्षमता है, खासकर अर्ध-कुशल और अकुशल श्रमिकों के लिए। पिछले दशक में ‘मेक-इन-इंडिया’ के अंतर्गत कई सुधार और पीएलआई जैसे नीतिगत उपाय किए गए हैं। विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने में भारत अकेला नहीं है। उदाहरण के लिए, हाल ही तक मुक्त बाजारों का सबसे बड़ा समर्थक अमेरिका, मुद्रास्फीति न्यूनीकरण अधिनियम, चिप्स और विज्ञान अधिनियम, और 2022 में अपनाए गए अवसंरचना निवेश और रोजगार अधिनियम की त्रिमूर्ति के साथ आक्रामक रूप से औद्योगिक नीति को आगे बढ़ा रहा है, जिसने सामूहिक रूप से उद्योग को प्रोत्साहन और कर छूट के रूप में दिए जाने वाले एक ट्रिलियन डॉलर से अधिक की राशि उपलब्ध करवाई है, इसके अलावा घरेलू उद्योग की रक्षा के लिए चीन से आयात पर भारी शुल्क लगाया गया है। यूरोपीय संघ भी इसी रणनीति का अनुसरण कर रहा है। 16. हालांकि, औद्योगिक नीति को बढ़ावा देने संबंधी बाहरी कारक 1990 के दशक और 2000 के दशक के शुरुआती हिस्से, जब चीन की औद्योगिक नीति को तेजी से बढ़ते विश्व व्यापार और निवेशों का समर्थन प्राप्त था, की तुलना में कम सौम्य हो गया है। विश्व व्यापार और निवेश वैश्विक वित्तीय संकट से कभी भी पूरी तरह से उबर नहीं पाए हैं और उनकी संवृद्धि दर विश्व व्यापार के लिए 16% से अधिक के वार्षिक औसत से घटकर 4% से कम हो गई है और जीएफसी से पहले और बाद की अवधि के बीच एफडीआई के लिए लगभग 20% से घटकर केवल 2% रह गई है। पश्चिम में संरक्षणवाद का उदय, व्यापार युद्ध और बहुपक्षीय व्यापार वार्ताओं के पतन ने वैश्वीकरण को 'धीमेपन' में बदल दिया है। स्थिति और भी जटिल हो गई है, विशेष रूप से भारत के लिए, क्योंकि चीन में बड़ी मात्रा में अतिरिक्त औद्योगिक क्षमताएं मौजूद हैं, जिससे पश्चिमी बाजारों तक पहुंच और अधिक कठिन हो गई है, और हमारे बाजारों में अप्रतिस्पर्धी डंपिंग का खतरा वास्तविक है। 17. महामारी के दौरान व्यवधानों ने वैश्विक कंपनियों द्वारा चीन+1 के आधार पर अपनी आपूर्ति शृंखलाओं का पुनर्गठन करके जोखिम कम करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है। वैश्विक कंपनियों द्वारा आपूर्ति शृंखलाओं के पुनर्गठन की यह प्रवृत्ति भारत के लिए अपनी उत्पादक क्षमताओं के संवर्धन के लिए निवेश आकर्षित करने का एक अवसर हो सकती है, यदि हम साथी देशों के मुकाबले निवेश के माहौल, कुशल लॉजिस्टिक, स्थिर समष्टि-आर्थिक वातावरण, पूंजी लागत और व्यापार करने की समग्र लागत के मामले में एक साथ कार्रवाई कर सकें। कुछ हद तक, भारत में iPhones को असेंबल करने के लिए Apple और इसके वेंडरों जैसे Foxconn को आकर्षित करने में भारत की सफलता इस प्रवृत्ति का एक हिस्सा है। 18. भारतीय अर्थव्यवस्था में उभरते रुझान 2023-24 में 8.2% से 2024-25 की पहली तिमाही में 6.7% तक की आर्थिक संवृद्धि की मंदी का संकेत देते हैं और पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के सर्वेक्षण के अनुसार, संपूर्ण वर्ष 2024-25 के लिए अनुमान को 10 आधार अंकों से घटाकर 6.9% कर दिया गया है। सरकार द्वारा 2023-24 से अभूतपूर्व पूंजीगत व्यय के माध्यम से भारी अवसंरचना को बढ़ावा देने के बावजूद सीमेंट, लोहा और इस्पात, तथा रसायन जैसे प्रमुख क्षेत्रों ने पिछली दो तिमाहियों में नकारात्मक संवृद्धि दिखाई है, जो चिंता का विषय है। मार्च 2022, जब से आरबीआई ने नीतिगत दरें बढ़ानी शुरू कीं, तब से निजी कंपनियों के वित्त संबंधी लागत लगातार बढ़ रही है। उद्यम सर्वेक्षण के अनुसार, प्रमुख क्षेत्रों में विनिर्माण में मांग की स्थिति और नौकरी परिदृश्य नरम रही। उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षणों से पता चलता है कि एक वर्ष पहले की तुलना में सामान्य आर्थिक स्थिति खराब हुई है। 2024-25 की दूसरी तिमाही में समग्र कारोबारी मनोभाव में नरमी आई है। सितंबर में विनिर्माण के लिए पीएमआई में कुछ कमी आई, हालांकि यह विस्तार क्षेत्र में रहा। ये सभी रुझान सामान्य रूप से घरेलू अर्थव्यवस्था और विशेष रूप से उद्योग में मांग में कमजोरी की ओर इशारा करते हैं। इसी तरह, विदेशों में मांग में कमी के कारण अगस्त में भारत के वस्तु निर्यात में 9.3% की कमी आई है। अप्रैल-अगस्त में व्यापारिक निर्यात में मामूली 1.1% की संवृद्धि हुई है। 19. अतः, भारतीय उद्योग स्पष्ट रूप से घरेलू और बाहरी दोनों बाजारों में मांग की कमी से जूझ रहा है। मांग की कमी शायद वह कारण हो सकता है कि कंपनियों की स्वस्थ तुलन पत्र और सरकार द्वारा किए गए सभी सुधारों एवं प्रोत्साहनों के बावजूद निजी निवेश में तेजी नहीं आई है। 20. दूसरी ओर, मुद्रास्फीति के रुझान बताते हैं कि आरबीआई के मौद्रिक नीति कार्रवाई से मुद्रास्फीति के प्रबंधन में काफी सफलता मिली है। सीपीआई हेडलाइन लगभग 4.5% रही है, और जुलाई-अगस्त 2024 में 3.6% पर थोड़ी कम थी। सब्जियों को छोड़कर मुद्रास्फीति 3.2% (जुलाई-अगस्त) पर और भी कम है। खाद्य मुद्रास्फीति विशेष रूप से अनाज और सब्जियों में चुनौतीपूर्ण रही है, लेकिन यह मांग के बजाय चक्रीय आपूर्ति पक्ष के मुद्दों से प्रभावित है जिसका समाधान मौद्रिक नीति द्वारा किया जाता है। पारिवारिक मुद्रास्फीति संबंधी अपेक्षाओं/ धारणाओं में 10 आधार अंकों की गिरावट आई है। कुछ परिवारों का यह मानना है कि 3 या 12 महीनों में कीमतें और मुद्रास्फीति बढ़ेगी। इसलिए, यह स्पष्ट है कि आरबीआई द्वारा नीतिगत सख्ती, मुद्रास्फीति संबंधी अपेक्षाओं को सुव्यवस्थित तरीके से नियंत्रित करने में सफल रही है। 21. इसके अलावा, कई औद्योगिक और उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने आर्थिक संवृद्धि को पुनर्जीवित करने के लिए ब्याज दरों में कटौती शुरू कर दी है। अमेरिका में, फेड ने नीतिगत दर में 50 आधार अंकों की कटौती की है। यूरोपीय संघ, स्विट्जरलैंड, मैक्सिको, चीन और दक्षिण अफ्रीका ने दरों में कटौती करके मौद्रिक नीति को सामान्य करना शुरू कर दिया है। यदि हम सामान्यीकरण की प्रक्रिया का पालन नहीं करते हैं तो भारत की मुद्रा के लिए मूल्यवृद्धि का जोखिम है। रुपया पहले से ही वास्तविक रूप से मजबूत हो रहा है, इसलिए आगे और मूल्यवृद्धि से भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता को नुकसान पहुंचेगा। 22. यह देखते हुए कि मुद्रास्फीति संबंधी अपेक्षाओं को सफलतापूर्वक नियंत्रित किया गया है, तथा घरेलू और निर्यात दोनों बाजारों में औद्योगिक मांग कम हो रही है, दर में कटौती से मांग को पुनः बढ़ाने और निजी निवेश को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है। मेरा मानना है कि आरबीआई के लिए मौद्रिक नीति को सामान्य बनाने की प्रक्रिया शुरू करने का यह एक उपयुक्त समय है। इन टिप्पणियों के मद्देनजर, मैं रेपो दर में 25 आधार अंकों की कटौती और मौद्रिक नीति में तटस्थ रुख अपनाने के पक्ष में वोट करता हूँ। श्री सौगत भट्टाचार्य का वक्तव्य 23. वैश्विक संवृद्धि, आघात-सह होने के बावजूद, असमान बनी हुई है तथा कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में धीमी हो रही है, जो केंद्रीय बैंकों को नीतिगत दरों में कटौती शुरू करने के लिए प्रेरित करता है। भविष्य में मांग संबंधी संभावनाएं अस्पष्ट बनी हुई हैं, क्योंकि प्रत्येक उभरता हुआ डेटा बिंदु एक भ्रामक और कभी-कभी असंगत संभावना प्रस्तुत करता प्रतीत होता है। पूर्वानुमान अपडेट के लिए आगामी आईएमएफ़ वर्ल्ड इकोनोमिक संभावना का इंतजार किया जा रहा है। भविष्य में G-7 केंद्रीय बैंकों की दर संबंधी कार्रवाइयां और मार्गदर्शन, आर्थिक गतिविधि को प्रभावित करने के अलावा, वित्तीय बाजारों में अस्थिरता उत्पन्न कर सकते हैं, जिसका प्रभाव- विस्तार उभरते बाजारों पर भी पड़ने की आशा है। 24. भारत में, संवृद्धि की गति के संकेत मिश्रित तस्वीर प्रस्तुत करते हैं, जिसमें कुल मांग के बारे में अनिश्चितता बनी हुई है। आरबीआई ने वित्त वर्ष 25 के लिए 7.2% वास्तविक जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाया है। कई संस्थागत और बहुपक्षीय संगठनों के पूर्वानुमान धीरे-धीरे इसके करीब पहुंचते दिख रहे हैं। 25. हालांकि, निकट भविष्य में, कुछ उच्च आवृत्ति वाले आर्थिक संकेतक (हार्ड डेटा और सर्वेक्षण दोनों) गति के धीमा होने का संकेत देते हैं, लेकिन फिर भी कोई महत्वपूर्ण मंदी नहीं दिखाते हैं। सितंबर के लिए विनिर्माण एवं सेवा क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) और आईआईएम अहमदाबाद अगस्त कारोबार संभावना सर्वेक्षण, वर्तमान और अपेक्षित गतिविधि मेट्रिक में नरमी दिखा रहे हैं। सीमेंट और इस्पात की संवृद्धि में कमी चिंता का विषय है, लेकिन यह आंशिक रूप से वित्त वर्ष 24 में इसी महीनों में बहुत अधिक वृद्धि दर के आधार प्रभावों को दर्शा सकता है। घरेलू आईटी नियुक्तियों में कमी की खबर है। व्यक्तिगत वाहनों (पीवी) की खुदरा बिक्री में बहुचर्चित मंदी, जिसमें डीलरों के पास बड़ी मात्रा में इन्वेंट्री स्टॉक की खबर है, चिंता का विषय है। ग्रामीण मजदूरी के लिए अंतिम रिपोर्ट किए गए प्रिंट अभी भी कम हैं। निर्यात में धीमी संवृद्धि चिंताजनक है, जो चीन द्वारा अतिरिक्त क्षमता को “डंप” करने की खबरों से और बढ़ गई है। 26. एक विपरीत दृष्टिकोण भी उतना ही आकर्षक है। आरबीआई के सर्वेक्षणों से पता चलता है कि उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़ रहा है, दोपहिया वाहनों की बिक्री अच्छी चल रही है, खासकर ग्रामीण इलाकों में। अच्छी बारिश से ग्रामीण मांग में तेजी आने की संभावना है। अप्रैल-अगस्त 20241 के दौरान स्टील की खपत में वर्ष दर वर्ष दोहरे अंकों में संवृद्धि दर्ज की गई। ऑटोमोबाइल डीलरशिप उद्योग निकाय ने बताया कि अक्तूबर में पीवी बिक्री में वृद्धि की उम्मीदें बेहतर हुई हैं। मौसमी रूप से समायोजित विनिर्माण क्षमता उपयोग (सीयू) वित्त वर्ष 25 की पहली तिमाही में थोड़ा बढ़ा था, जो निजी क्षेत्र के निवेश के लिए अच्छा संकेत है। वित्त वर्ष 24 में बैंकों के पूंजीगत व्यय अनुमोदन और संवितरण पर एक अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है2। हालांकि पुराने, गैर-वित्तीय निजी सूचीबद्ध कॉर्पोरेट वित्तीय वर्ष 25 की पहली तिमाही के परिणामों के आरबीआई के संकलन से पता चलता है कि उच्च ब्याज दरों ने कॉर्पोरेट फाइनेंशियल्स को किसी भी महत्वपूर्ण सीमा तक नुकसान नहीं पहुंचाया है; बिक्री के हिस्से के रूप में ब्याज लागत वास्तव में कम (वित्तीय वर्ष 25 की पहली तिमाही में 2.7%) हो रही थी। खुदरा ऋण, जिसे उपभोग मांग का चालक माना जाता है (हालांकि परीक्षण नहीं किया गया है), धीमा होने के बावजूद अभी भी मजबूत बना हुआ है। इन मापदंडों को देखते हुए, भले ही हम निकट अवधि के आर्थिक संकेतकों में संवृद्धि पर बारीकी से नज़र रखने की आवश्यकता को मान्यता देते हैं, हमारा आकलन है कि घरेलू संवृद्धि संबंधी संभावना काफी हद तक आघात-सह बना हुआ है। 27. दूसरी ओर, मुद्रास्फीति अब और स्थिर प्रतीत होती है। औसत से अधिक बारिश और अधिक बुवाई वाले क्षेत्रों के अपेक्षाकृत अच्छे वितरण को देखते हुए, लगातार उच्च खाद्य मुद्रास्फीति धीरे-धीरे कम हो सकती है। उच्च जलाशय स्तर और जमीन की नमी रबी फसलों के लिए शुभ संकेत हैं। सब्जियों को छोड़कर, पिछले 8 महीनों से सीपीआई मुद्रास्फीति 4% से नीचे बनी हुई है। लगातार और ओवरलैपिंग खाद्य मूल्य आघातों के बावजूद मूल मुद्रास्फीति के सभी सिंथेटिक उपाय स्थिर रहे हैं। सीपीआई कोर के लिए मूल्य फैलाव के प्रसार सूचकांक ने भी 4 से 6 प्रतिशत से कम की मौसमी रूप से समायोजित वार्षिक दर (एसएएआर) मूल्य गति का संकेत दिया3। फिर भी, सितंबर की सीपीआई मुद्रास्फीति पिछले कुछ महीनों की तुलना में काफी अधिक होने की संभावना है। हालाँकि हम आशा करते हैं कि यह संभावित वृद्धि कुछ महीनों में अस्थायी होगी, लेकिन हमें कमोडिटी की कीमतों के रुझानों पर बारीकी से नज़र रखने की आवश्यकता है। मुद्रास्फीति के विरुद्ध कठिन लड़ाई अभी तक जीती नहीं जा सकी है, लेकिन हम सीपीआई मुद्रास्फीति को लक्ष्य के करीब लाने में अंततः सफल होने के प्रति अधिक आश्वस्त हैं। इस आत्मविश्वास का एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि घरेलू मुद्रास्फीति की अपेक्षाएँ सुव्यवस्थित रूप से नियंत्रित हैं और नवीनतम सर्वेक्षण दौर में कम हुई हैं। 28. तथापि, कमोडिटी मुद्रास्फीति पर जोखिम बढ़ता दिख रहा है। सितंबर 2024 में एफएओ खाद्य मूल्य सूचकांक (एफएफपीआई) में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 2.1% की वृद्धि हुई। भू-राजनीतिक जोखिम तेजी से बढ़े हैं। अधिकांश धातुओं की कीमतें अब तक कम स्तर पर बनी हुई थीं, जिसका मुख्य कारण चीन में मंदी थी, लेकिन अब कुछ धातुओं, विशेष रूप से एल्युमीनियम की कीमतों में तेजी का रुख है। चीन के मौजूदा प्रोत्साहन के आयाम और आकार तथा चीनी मांग पर उनके प्रभाव के बारे में अभी भी स्पष्ट जानकारी नहीं है। एक अध्ययन में जनवरी-मार्च 20244 के लिए भारत की संभावित उत्पादन संवृद्धि का अनुमान 7% लगाया गया था, जो समय-पूर्व नरमी के बढ़ते जोखिमों की पुष्टि करता है। 29. इस आकलन को देखते हुए, इस समय, सन्निकट संवृद्धि - मुद्रास्फीति तालमेल के जोखिम काफी हद तक संतुलित प्रतीत होते हैं, भले ही मुद्रास्फीति के लक्ष्य की ओर बढ़ने का अनुमान है और अंततः इसके साथ स्थायी रूप से संरेखित होने की संभावना है। इस मोड़ पर नीतिगत कार्रवाइयों को निर्देशित करने के लिए उभरती और अस्थिर आर्थिक स्थितियों पर वर्तमान अनिश्चितता के प्रभावों को अधिक विस्तार से समझने की आवश्यकता है। तथापि, आर्थिक संकेतों से उत्पन्न अस्पष्टता की सीमा, आने वाले आंकड़ों के आधार पर, उभरती आर्थिक स्थितियों पर तत्काल प्रतिक्रिया करने में सक्षम होने की नीति की आवश्यकता को दर्शाती है। पहला कदम नीतिगत रुख को तटस्थ में बदलना है, जिससे भविष्य की कार्रवाइयों के लिए लचीलापन और वैकल्पिकता प्रदान की जा सके। 30. वैश्विक और घरेलू दोनों ही प्रकार की मौजूदा अनिश्चितता को देखते हुए इस बात पर ज़ोर दिया जाना चाहिए कि नरमी के लिए बहुत ही सतर्क और सुविचारित दृष्टिकोण की आवश्यकता है; "नीतिगत त्रुटि" की लागत बहुत बड़ी होने की संभावना है। इस समय और भविष्य में रेपो दर में कटौती के बहुआयामी प्रभावों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। इनमें से एक वित्तीय स्थितियों में और अत्यधिक सुलभता हो सकती है; इन स्थितियों के कारण, एक हद तक, हाल के दिनों में प्रतिबंधात्मक नीति में वस्तुतः नरमी आ गई है। इसके अलावा, संरचनात्मक प्रणाली चलनिधि समय के साथ घाटे से अधिशेष में बदल गई है, जिससे एक-दिवसीय (ओवरनाइट) और अल्पकालिक दरों को रेपो दर के करीब रखने में मदद मिली है। अन्य बातों के साथ-साथ, चल रहे त्यौहारी सीज़न की बिक्री और वित्त वर्ष 2025 की जुलाई-सितंबर तिमाही के लिए सूचीबद्ध निजी क्षेत्र की कंपनियों के परिणामों पर अपडेट से उभरती मांग स्थितियों पर अधिक स्पष्टता मिल सकती है। 31. तदनुसार, इस जटिल आर्थिक परिवेश के प्रति उचित प्रतिक्रिया के अपने आकलन के आधार पर, मैं मौद्रिक नीति के रुख को तटस्थ करने तथा रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने के पक्ष में वोट करता हूँ। प्रोफेसर राम सिंह का वक्तव्य घरेलू संवृद्धि 32. अब तक उपलब्ध समष्टि आर्थिक डेटा और संकेतक बताते हैं कि घरेलू आर्थिक गतिविधि स्थिर बनी हुई है। वास्तविक जीडीपी 2024-25 की पहली तिमाही में 6.7 प्रतिशत बढ़ी है, जो तिमाही के लिए अनुमानित मूल्य से थोड़ा कम है। दूसरी ओर, जीवीए 2024-25 की पहली तिमाही में 6.8 प्रतिशत बढ़ा, जो पिछली तिमाही में 6.3 प्रतिशत से अधिक है। उत्पादन के मूल, अर्थात विनिर्माण और सेवाओं में क्रमशः 7.0 प्रतिशत और 7.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई, और इसने मुख्य रूप से पहली तिमही में जीवीए की वृद्धि को बढ़ावा दिया। डेटा यह भी बताता है कि निजी खपत में बहाली और निजी निवेश में सुधार ने पहली तिमाही में संवृद्धि को बढ़ावा दिया है। 2024-25 की पहली तिमाही में जीएफ़सीएफ़ 7.5 प्रतिशत रहा है। यह भी उल्लेखनीय है कि सकल जीडीपी के हिस्से के रूप में निवेश 34.8 प्रतिशत तक पहुंच गया है - जो 2012-13 की दूसरी तिमाही के बाद से सबसे अधिक है। 33. कृषि और सेवा क्षेत्र आघात-सह बने हुए हैं। सामान्य से अधिक मानसून वर्षा के कारण बेहतर खरीफ बुवाई से संवृद्धि पथ को बनाए रखने में मदद मिलने की आशा है। जलाशयों के स्तर में सुधार और मिट्टी की नमी की स्थिति भी आगामी रबी फसल के लिए शुभ संकेत है। सेवा क्षेत्र में स्थिर गति से वृद्धि जारी है। सितंबर में 57.7 पर पीएमआई सेवाएं मजबूत विस्तार का संकेत देती हैं, यद्यपि मांग में कमी के कारण सितंबर में गति धीमी होकर 10 माह के निचले स्तर पर आ गई। 34. प्रतिकूल आधार पर अगस्त में आठ प्रमुख उद्योगों का उत्पादन 1.8 प्रतिशत गिरा। अत्यधिक वर्षा ने अगस्त में बिजली, कोयला और सीमेंट जैसे कतिपय क्षेत्रों में भी उत्पादन को कम कर दिया। यह पिछले कतिपय महीनों में पीएमआई में गिरावट की प्रवृत्ति की पृष्ठभूमि में आता है। तथापि, पीएमआई एक पर्याप्त मार्जिन के साथ विस्तार क्षेत्र में बना हुआ है, और भारत ने क्रमशः जुलाई 2022 और अप्रैल 2023 से विनिर्माण और सेवाओं के लिए प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में उच्चतम पीएमआई रीडिंग दर्ज करना जारी रखा है। इसके अलावा, विनिर्माण फर्मों के औद्योगिक संभावना सर्वेक्षण से पता चलता है कि 2024-25 की चौथी तिमाही और 2025-26 की पहली तिमाही के दौरान उत्पादन, ऑर्डर बुक, रोजगार, क्षमता उपयोग और समग्र कारोबारी स्थिति के लिए बेहतर प्रत्याशाएँ हैं। इसके अलावा, न्यूनतर पण्य और अन्य निविष्टि लागतों के साथ घरेलू मांग में सुधार, विनिर्माण गतिविधियों की स्थिरता के लिए अनुकूल है। बाहरी मोर्चे पर, हाल ही में व्यापारिक वस्तुओं के निर्यात में कमी आई है, लेकिन सेवा निर्यात समग्र संवृद्धि का समर्थन कर रहा है। 35. मांग के संबंध में, पीएफ़सीई संवृद्धि ने सामान्य लेकिन निरंतर ऊर्ध्वगामी गति दिखाई है। यह 2024-25 की पहली तिमाही में सात तिमाहियों के उच्चतम स्तर 7.4 प्रतिशत पर पहुंच गई। ग्रामीण मांग में वृद्धि हो रही है, जैसा कि कई महत्वपूर्ण संकेतकों: जुलाई-अगस्त 2024 के दौरान दोपहिया वाहनों की बिक्री, जुलाई-सितंबर के दौरान मनरेगा (MGNREGA) कार्य की मांग में 16.6 प्रतिशत की गिरावट और ग्रामीण क्षेत्रों में एफ़एमसीजी की उच्च संवृद्धि, से पता चलता है। टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री और हवाई यातायात धारणीय शहरी मांग को दर्शाता है। 36. निवेश भी उत्साहजनक बना हुआ है, जैसा कि इस्पात की खपत, उत्पादन और पूंजीगत वस्तुओं के आयात से संकेत मिलता है। 2024-25 की पहली तिमाही के दौरान 0.2 प्रतिशत संकुचन के बाद जीएफसीई में मामूली सुधार हो रहा है। आम चुनावों के कारण पहली तिमाही में देखे गए संकुचन से सरकारी पूंजीगत व्यय भी बढ़ रहा है। केंद्र और राज्यों के सरकारी व्यय में तीसरी और चौथी तिमाही में और तेजी आने की आशा है। पूंजीगत व्यय और मजबूत दोहरे तुलन-पत्र पर सरकार का निरंतर जोर कारोबारी आशावाद को बनाए रखने में मदद करेगा। 37. अधिकांश विनिर्माण और बुनियादी ढांचे के उप-क्षेत्रों के लिए गैर-खाद्य बैंक ऋण में विस्तार निजी निवेश को बनाए रख रहा है। मौसमी रूप से समायोजित क्षमता उपयोग में वृद्धि - 2023-24 की चौथी तिमाही में 74.6 प्रतिशत से 2024-25 की पहली तिमाही में 75.8 प्रतिशत तक - भी सकारात्मक संभावना को बढ़ाती है, साथ ही निवेश इरादों में भी वृद्धि होती है। तैयार माल सूची (एफजीआई)/बिक्री में गिरावट और कच्चे माल के स्टॉक (आरएमआई)/ बिक्री में स्थिरता भी राहत का एक स्रोत है। 38. शेष वित्तीय वर्ष में संवृद्धि इस बात पर भी निर्भर करेगी कि शेष दो तिमाहियों में सरकारी व्यय, बजट अनुमानों, मूल उद्योगों की संवृद्धि दर, तथा वाणिज्यिक क्षेत्र में वित्तीय संसाधनों के प्रवाह में संवृद्धि के अनुरूप रहता है या नहीं। 39. तथापि, संवृद्धि के बुनियादी चालक और समग्र मांग का मुख्य आधार - खपत और निवेश मांग - गति पकड़ रहे हैं। समग्र मांग के मुख्य घटक, अर्थात निजी खपत और सकल स्थिर पूंजी निर्माण, पहली तिमाही में 7.0 प्रतिशत से अधिक की संवृद्धि के साथ मजबूत बने हुए हैं, जो संवृद्धि की आघात- सहनीयता का संकेत देते हैं। इसके अलावा, बेहतर कृषि संभावना और ग्रामीण मांग के कारण निजी खपत में गति धारणीय दिखती है। सेवाओं में निरंतर उछाल से शहरी मांग को भी समर्थन मिलने की आशा है। उच्च आवृत्ति संकेतक घरेलू आर्थिक गतिविधि में निरंतर गति की ओर इशारा करते हैं। कुल मिलाकर, 2024-25 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो काफी हद तक प्राप्त करने योग्य प्रतीत होती है। मुद्रास्फ़ीति 40. अगस्त 2024 में लगातार दूसरे महीने हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति दर 4.0 प्रतिशत से नीचे रही। यह बहुत ही राहत देने वाली बात है, विशेषकर इस अवधि के दौरान मूल मुद्रास्फीति रीडिंग 3.3-3.4 प्रतिशत की सीमा में बनी हुई है। सीपीआई का ईंधन घटक संकुचन चरण में बना हुआ है। रिज़र्व बैंक ने 2024-25 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति संतुलित जोखिमों के साथ 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। 41. खाद्य मुद्रास्फीति अनिश्चितता का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जो अगस्त में पिछले महीने से बढ़ी है। इसके अलावा, खाद्य उप-समूहों के भीतर एक महत्वपूर्ण विचलन है। आगे बढ़ते हुए, प्रतिकूल आधार प्रभावों के कारण निकट अवधि में हेडलाइन मुद्रास्फीति में नरमी अस्थिर हो सकती है। पर्याप्त बफर स्टॉक के अलावा मजबूत खरीफ और रबी बुवाई के कारण इस वित्तीय वर्ष के अंत में खाद्य मुद्रास्फीति में नरमी आने की आशा है। तथापि, प्रतिकूल मौसम की घटनाएं खाद्य मुद्रास्फीति के लिए बीमा-अयोग्य जोखिम बनी हुई हैं। 42. इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, खाद्य मुद्रास्फीति के बारे में सतर्क रहने और साथ ही संवृद्धि को समर्थन प्रदान करने की आवश्यकता है। अतएव, मैं:
और
डॉ. राजीव रंजन का वक्तव्य 43. अगस्त 2024 के अपने वक्तव्य में मैंने कहा था कि हम मानसून में लगातार प्रगति, खरीफ की अधिक बुवाई, अनुकूल रबी की संभावनाओं और वैश्विक कमोडिटी कीमतों में नरमी के सहारे मौद्रिक नीति के लिए अपना रास्ता बदलने की संभावना खुलते हुए देख सकते हैं। आज, हमारे पास इनमें से कुछ पहलुओं पर अधिक स्पष्टता और निश्चितता है, जो सभी हमारे अवस्फीति पथ में सकारात्मक योगदान दे सकते हैं। 44. अब यह कहने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि मई 2022 से मौद्रिक नीति की कार्रवाइयों ने अच्छा काम किया है। सबसे पहले, सितंबर 2022, जब वे चरम स्तर पर पहुंच गई थीं, से मुद्रास्फीति की प्रत्याशाएँ काफी कम हो गई हैं। सितंबर 2022 से, वर्तमान धारणा, 3 महीने और 1 वर्ष आगे की घरेलू मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं में क्रमशः 210 बीपीएस, 160 बीपीएस और 100 बीपीएस की गिरावट आई है, जबकि पिछले दो वर्षों में कारोबारी मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं5 में 104 बीपीएस की गिरावट देखी गई है। दूसरा, मई से सितंबर 2022 के दौरान मूल मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत के स्तर से कम होकर चालू वित्त वर्ष के दौरान लगभग 3.2 प्रतिशत पर आ गई है। तीसरा, संचयी दर वृद्धि, व्यापक तौर पर सुलभता चरण के दौरान देखे गए संचरण के अनुरूप, प्रणाली के माध्यम से पर्याप्त रूप से प्रसारित हो गई है। चौथा, निकट अवधि के उतार-चढ़ाव से परे, वित्तीय वर्ष के उत्तरार्ध के दौरान मुद्रास्फीति के अनुमान हमें इस बात से राहत देते हैं कि खाद्य मुद्रास्फीति को, मजबूत खरीफ बुवाई, पर्याप्त बफर स्टॉक और रबी बुवाई के लिए मिट्टी की अच्छी नमी की स्थिति से लाभ होने की संभावना है। 45. पांचवां, मई 2022 से नीतिगत दरों में बढ़ोतरी के साथ-साथ नवंबर 2023 में कुछ असुरक्षित ऋण खंडों के लिए जोखिम भार बढ़ाने के विवेकपूर्ण उपाय ने लक्षित क्षेत्रों में ऋण संवृद्धि को कम करने में मदद की। इस प्रकार, विवेकपूर्ण उपाय - चाहे मौद्रिक सख्ती से पहले हों या उसके दौरान - केंद्रीय बैंकों को मुद्रास्फीति से लड़ने के लिए अधिक नीतिगत गुंजाइश प्रदान करके मौद्रिक नीति का पूरक बनते हैं, साथ ही वित्तीय तनाव की संभावना को कम करने में भी मदद करते हैं।6 हाल के रुझान यह भी संकेत देते हैं कि ऋण और जमा वृद्धि का अंतर, जो कुछ समय से चिंता का विषय रहा है, कम हो रहा है। निरपेक्ष रूप से, चालू वित्त वर्ष के दौरान अब तक बैंक जमा में वृद्धि ऋण वृद्धि से अधिक रही है। 46. मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के अपने कार्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए, मौद्रिक नीति ने यह भी सुनिश्चित किया है कि संवृद्धि एक स्थिर पथ पर बना रहे। संवृद्धि के दोनों प्रमुख चालक, उपभोग और निवेश, जिनकी 2024-25 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी है, अच्छी गति से बढ़ना जारी हैं। घरेलू मांग की मजबूती में विश्वास, ग्रामीण खपत में सुधार के कारण है, जो कृषि गतिविधि में तेजी से हो रही है, जो पिछले दो वर्षों के दौरान धीमी रही थी। त्योहारी सीजन मांग को और बढ़ावा देगा। इसे 2024-25 के लिए किए गए बजट के अनुसार सरकारी खपत (केंद्र और राज्य दोनों सरकारों) में अपेक्षित सुधार से भी समर्थन मिलता है - जो कि अब तक दूसरी तिमाही के लिए उपलब्ध आंकड़ों से स्पष्ट है। पहली तिमाही में संकुचन के बाद सरकारी पूंजीगत व्यय में उछाल आया है। आशा है कि बजट में निर्धारित राशि के बराबर ही इसमें तेजी रहेगी। निजी निवेश में वृद्धि जारी है, जिसे बढ़ती क्षमता उपयोगिता, मजबूत कॉर्पोरेट और बैंक तुलन पत्र और उच्च औद्योगिक ऋण का समर्थन प्राप्त है। पूंजीगत व्यय के बेहतर होती संभावना का नेतृत्व बुनियादी ढांचे, विशेष रसायन, ईवी, फार्मा, सौर पीवी मॉड्यूल, ऑटोमोबाइल, इस्पात और नवीकरणीय ऊर्जा द्वारा किया जा रहा है। वैश्विक व्यापार की मात्रा मजबूत बनी हुई है जो हमारे निर्यात के लिए अच्छी बात है। कच्चे तेल की कीमतों में नरमी बनी रही तो यह संवृद्धि के लिए अनुकूल हो सकती है। 47. वैश्विक मंच पर, ऐसा लगता है कि हम एक दिलचस्प लेकिन चुनौतीपूर्ण दौर में हैं। सबसे पहले, वैश्विक मंच पर अनिश्चितताएं निस्संदेह उच्च बनी हुई हैं, फिर भी कुछ आघात- सहनीयता विकसित हो रहा है। चीनी उत्तेजना और इसकी मांग के प्रभाव के साथ भू -राजनीतिक जोखिमों में वृद्धि के बावजूद, तेल एक सीमा के भीतर अस्थिर है जो न तो असाधारण है और न ही गत वर्ष की तरह चिंता कर रहा है। दूसरा, सभी देश स्वदेशी कारकों के आधार पर अपनी मौद्रिक नीतियों का निर्धारण कर रहे हैं, जबकि फेड के नीतिगत केंद्र- बिन्दु के प्रति काफी हद तक प्रतिरक्षित है। सितंबर के मध्य में फेड दर में कटौती के बाद, विश्व को विभाजित किया गया है - जबकि 10 देशों ने फेड का अनुपालन किया है, दूसरे 11 देशों ने एक विराम लिया है, जबकि एक ने अपनी नीति दर में वृद्धि की है। इस तरह की अलग-अलग मौद्रिक नीति प्रतिक्रियाएं उन देशों में मुद्रास्फीति-संवृद्धि की गतिशीलता में बढ़ती विचलन को दर्शाती हैं, जो निरंतर अनिश्चितताओं के साथ मिलकर विश्व भर के केंद्रीय बैंकों को नीतिगत त्रुटियों के जोखिम को प्रबंधित करने के लिए एक संरक्षित तरीके से अपनी नीति पथ को चलाने के लिए प्रेरित करती हैं। तीसरा, जिन लोगों ने दर में कटौती से अपनी नीतिगत केन्द्रबिन्दु शुरू कर दिया है, उन्हें तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है - जो अपनी अर्थव्यवस्थाओं (यूके, ईयू, दक्षिण कोरिया) में तेज मंदी का सामना करते हैं, जिनके पास बहुत प्रतिबंधात्मक नीतियां थीं (यूएस, कनाडा, नॉर्वे और आइसलैंड ) और अंत में, जिन्होंने 2021 में बहुत जल्दी हाइकिंगशुरू की थी (जैसे ब्राजील, हंगरी, कोलंबिया और चिली)। स्पष्ट है कि, भारत इनमें से किसी भी श्रेणियों में नहीं आता है। 48. अंत में, विश्वास देने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि हम सही रास्ते पर हैं। हमारे सतर्क और कैलिब्रेटेड दृष्टिकोण ने परिणाम दिखाया है। मौद्रिक नीति, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए अच्छी तरह से काम कर रही है। आगे बढ़ते हुए, अब तब तक मुद्रास्फीति पर अधिक आत्मविश्वास है जब तक कि मौसम की घटनाओं और भू-राजनीतिक जोखिमों के बिगड़ने से बहुत बाधित न हो जाए। हमें वैश्विक कमोडिटी की कीमतों, विशेष रूप से भोजन और धातु की कीमतों पर एक करीबी नजर रखने की आवश्यकता है, जिन्होंने सख्त होने के कुछ संकेत दिखाए हैं। संवृद्धि -मुद्रास्फीति संभावना में संतुलन को ध्यान में रखते हुए, रुख को तटस्थ में परिवर्तित करने के लिए जोखिम-लाभ अब अनुकूल है। यह लचीलेपन को विकसित होने की स्थिति के अनुसार अनुकूलित करने और संचालित करने की अनुमति देगा। लेकिन किसी भी तरह से रुख में बदलाव का मतलब यह नहीं है कि मुद्रास्फीति से नज़र को हटाना। वैश्विक मोर्चे पर अभी भी अनिश्चितताओं को ध्यान में रखते हुए, मौद्रिक नीति क्रियाओं के आगे की कार्रवाई के संबंध में एक सतर्क डेटा निर्भर दृष्टिकोण आवश्यक है। अब और दिसंबर के बीच, हमारे पास कुछ अनिश्चितताओं पर अधिक स्पष्टता होगी - अमेरिकी चुनाव, भू -राजनीतिक जोखिम और चीनी राजकोषीय प्रोत्साहन और वैश्विक वस्तु की कीमतों पर इसके प्रभाव। इस मोड़ पर, भारत की आघात-सह संवृद्धि कहानी हमें मुद्रास्फीति पर अपना निर्धारित ध्यान जारी रखने और नीति दर को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने में मदद करती है। अतः, मैं दरों पर एक यथास्थिति और रुख को तटस्थ में परिवर्तित करने के लिए वोट करता हूं। डॉ. माइकल देवब्रत पात्र का वक्तव्य 49. 2022-23 की शुरुआत से, मौद्रिक नीति ने संवृद्धि के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता को बनाए रखने के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक निरंतर प्रतिबंधात्मक रुख अपनाया है। अब इस बात के बढ़ते सबूत हैं कि जैसे- जैसे मुद्रास्फीति को बढ़ाने वाले कुछ वैश्विक झटके के प्रभाव कम हो रहे हैं, हमारी प्रतिबद्धता कुल मांग और कुल आपूर्ति के बीच एक बेहतर संतुलन ला रही है। तदनुसार, मेरे चार तिमाहियों के मेट्रिक द्वारा मुद्रास्फीति से आगे, मुद्रास्फीति का मार्ग आधार रेखा के पूर्वानुमान में लक्ष्य की ओर फिर से जुड़ रहा है। यह प्रक्षेपवक्र संभवतः निकट महीनों में एक कूबड़ का सामना करेगा जैसेकि अनुमानों से संकेत दर्शा रहे हैं, लेकिन यह काफी हद तक एक प्रतिकूल आधार और सब्जियों, खाद्य तेलों और दाल की कीमतों के लिए एक-बंद झटके के कारण है। यह अपेक्षा है कि आपूर्ति की स्थिति में सुधार होने पर दिसंबर तक इन झटकों के प्रभाव भंग हो जाना चाहिए। अतः, मौद्रिक नीति के लिए इन स्पाइक्स को, उनके उद्भव की बारीकी से निगरानी करते हुए देखना संभव है, जब तक वे समाप्त न हो जाए। समग्र मुद्रास्फीति के माहौल में सुधार हो रहा है। परिवारों और व्यवसायों की मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं में कमी आई है और नियंत्रित है। एक वर्ष पहले मूल्य की स्थिति पर उपभोक्ता विश्वास में सुधार हो रहा है। 2024-25 की तीसरी तिमाही के दौरान इनपुट लागत दबावों का विनिर्माण क्षेत्र में कम होने की आशा है और बिक्री की कीमतें सेवाओं और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में मध्यम होने की आशा है। विनिर्माण क्षेत्र में क्षमता के उपयोग में गिरावट, क्षेत्र में आउटपुट अंतराल सुस्त होने के साथ अत्यधिक सहसंबद्ध है, जिससे मुख्य मूल्य दबावों को कम किया जा सकता है। 50. आर्थिक गतिविधि, घरेलू ड्राइवरों द्वारा समर्थित विघटनकारी मौद्रिक नीति रुख के बावजूद आघात-सह बनी हुई है। जबकि कुछ उच्च आवृत्ति संकेतक 2024-25 की दूसरी तिमाही में धीमे हो गए हैं, यह दक्षिण पश्चिम मानसून की वापसी से असामान्य रूप से भारी वर्षा जैसे अज्ञात कारकों और पितृपक्ष के कारण जिम्मेदार प्रतीत होता है। वे वर्ष की दूसरी छमाही में स्थिर हो सकते हैं क्योंकि त्योहार के मौसम में खपत को बढ़ावा मिलता है, ग्रामीण मांग का पुनरुद्धार को अधिक मजबूती मिलती है, और सरकारी पूंजीगत व्यय के लिए किए गए बजट से निवेश को बढ़ावा मिलता है। उद्यमों को विनिर्माण कंपनियों के लिए मांग बढ़ने की आशा है; सेवाएं और बुनियादी ढांचा उद्यम, मांग पर एक आशावादी दृष्टिकोण का संकेत देते हैं। 2024-25 की अंतिम तिमाही और 2025-26 की पहली तिमाही के लिए कुल व्यावसायिक अपेक्षाएं आशावादी हैं। 51. स संभावना को देखते हुए, यह परिकल्पना करना संभव है कि अब तक अनुभव किए गए मुद्रास्फीति के दबावों की दृढ़ता, मौद्रिक नीति के कम प्रतिबंधात्मक रुख के साथ फैल सकती है। यह आकलन मुद्रास्फीति को रोकने में प्राप्त सफलता के साथ विश्वसनीयता प्राप्त करता है। इस बैठक में मौद्रिक नीति रुख का उचित पुनर्मूल्यांकन करना उचित होगा, जो मुद्रास्फीति के आधारभूत प्रक्षेपण में निर्धारित पथ पर बढ़ने की स्थिति में, नीति संयम की मात्रा को कम करने के प्रति खुलेपन को प्रतिबिंबित करता है।उसी समय, संयम को बहुत जल्दी कम करने से अवस्फीति पर की गई प्रगति को नकार सकता है। अतः, नीति दर के संदर्भ में नीति संयम को हटाने के लिए एक क्रमिक प्रतीक्षा-और-मूल्यांकन दृष्टिकोण उचित रहता है जब तक कि मुद्रास्फीति अंतिम रूप से अपने लक्ष्य के करीब नहीं होती है। तदनुसार, मैं इस बैठक में नीति दर पर यथास्थिति बनाए रखने लेकिन रुख में तटस्थ के प्रति बदलाव के लिए वोट करता हूं। श्री शक्तिकान्त दास का वक्तव्य 52. वैश्विक अर्थव्यवस्था स्थिर गति से बढ़ रही है, तथा व्यापार आघात-सह बना हुआ है। असमान प्रगति के बावजूद, हेडलाइन मुद्रास्फीति में नरमी आ रही है। विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न संवृद्धि -मुद्रास्फीति पथों के कारण केंद्रीय बैंकों की मौद्रिक नीति प्रतिक्रियाएं भिन्न-भिन्न हो रही हैं। 53. भारत में, उच्च आवृत्ति संकेतक बताते हैं कि 2024-25 की दूसरी तिमाही के दौरान आर्थिक गतिविधि स्थिर रही। अच्छे दक्षिण-पश्चिम मानसून के कारण कृषि गतिविधि में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इससे जीडीपी वृद्धि के पीछे आपूर्ति और मांग दोनों पक्षों को मदद मिलेगी। विनिर्माण कंपनियों को कम इनपुट लागत से लाभ मिलने की उम्मीद है। सेवा गतिविधि में उछाल बरकरार है। 54. रिज़र्व बैंक के सर्वेक्षणों से उपभोक्ता और व्यावसायिक भावनाओं में सुधार का संकेत मिलता है। 2024-25 की दूसरी तिमाही में सरकारी व्यय में सुधार हुआ है और बजट अनुमानों के अनुरूप शेष वर्ष के दौरान यह प्रवृत्ति जारी रहने की संभावना है। 2024-25 की पहली तिमाही में मौसमी रूप से समायोजित क्षमता उपयोग में सुधार तथा बैंकों और कॉरपोरेट्स की स्वस्थ तुलन-पत्र के साथ निजी कॉर्पोरेट निवेश में तेजी आ रही है। सकल घरेलू उत्पाद के दो प्रमुख चालकों - उपभोग और निवेश - प्रथम तिमाही में देखी गई गति को बरकरार रहने की उम्मीद है। परिणामस्वरूप, 2024-25 में वास्तविक जीडीपी 7.2 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है। इसके अलावा, रिज़र्व बैंक के मॉडल आधारित प्रक्षेपण से पता चलता है कि 2025-26 के दौरान अर्थव्यवस्था 7.1 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी। भारत की विकास कहानी बरकरार है। 55. जुलाई-अगस्त 2024 के दौरान हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति में नरमी आई, जैसा कि अनुमान था, जिसे मुख्य रूप से जुलाई में अनुकूल आधार प्रभाव से लाभ हुआ। जुलाई-अगस्त में खाद्य कीमतों में गिरावट दर्ज की गई, लेकिन सितंबर के लिए उपलब्ध उच्च आवृत्ति वाले खाद्य मूल्य संकेतक, खाद्य कीमतों में उछाल का संकेत देते हैं। बड़े प्रतिकूल आधार प्रभाव के साथ, यह सितंबर में हेडलाइन मुद्रास्फीति में पर्याप्त उछाल की ओर ले जाएगा। अक्तूबर के पहले सप्ताह में भी खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेजी जारी रही, जो यदि बनी रही तो अक्तूबर में भी हेडलाइन मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर बनी रहेगी। हालांकि, अल्पावधि से परे, खरीफ और रबी ऋतु की संभावनाओं में सुधार के कारण खाद्य मुद्रास्फीति संबंधी संभावना अधिक अनुकूल होती जा रही है। प्रमुख लागत-प्रेरित आघातों की अनुपस्थिति में, मूल मुद्रास्फीति, पिछले मौद्रिक नीति कार्रवाई के निरंतर प्रसारण के कारण नियंत्रित रहने की संभावना है। इन विचारों के परिणामस्वरूप 2024-25 के लिए मुद्रास्फीति का अनुमान 4.5 प्रतिशत है। 56. कुल मिलाकर, भारतीय अर्थव्यवस्था स्थिरता और मजबूती की तस्वीर प्रस्तुत करती है। मुद्रास्फीति और संवृद्धि के बीच संतुलन अच्छी तरह से बना हुआ है। निकट अवधि में मुद्रास्फीति में तेजी के बावजूद, वर्ष के उत्तरार्ध और अगले वर्ष की शुरुआत में हेडलाइन मुद्रास्फीति संबंधी संभावना 4 प्रतिशत लक्ष्य के साथ आगे संरेखण की ओर इशारा करता है। इस प्रकार, निभाव को वापस लेकर, मौद्रिक नीति के रुख को तटस्थ में परिवर्तित करने के लिए परिस्थितियाँ उपयुक्त हैं। इससे मौद्रिक नीति को उभरती संभावना के अनुसार कार्य करने के लिए अधिक लचीलापन और विकल्प मिलेगा। यह क्षितिज पर अनिश्चितताओं, जिसमें भू-राजनीतिक तनाव और वस्तु की अस्थिर कीमतों से लेकर खाद्य मुद्रास्फीति में प्रतिकूल मौसम के जोखिम शामिल हैं, पर नज़र रखने के लिए भी अवसर प्रदान करता है। ये महत्वपूर्ण जोखिम हैं और इनके प्रभाव को कम नहीं आंका जा सकता। हमें सतर्क रहने की आवश्यकता है। 57. आर्थिक चक्र के इस चरण में, अब तक इतनी दूर आ जाने के बाद, हम मुद्रास्फीति के एक और दौर का जोखिम नहीं उठा सकते। अब सबसे अच्छा तरीका यही होगा कि हम लचीला बने रहें और मुद्रास्फीति के लक्ष्य के साथ स्थायी रूप से संरेखित होने के और सबूतों का इंतज़ार करें। मौद्रिक नीति केवल मूल्य स्थिरता बनाए रखकर ही सतत संवृद्धि का समर्थन कर सकती है। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, मैं नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखते हुए, निभाव वापस लेने के रुख को बदलकर 'तटस्थ' रुख अपनाने के पक्ष में वोट करता हूँ।
(पुनीत पंचोली) प्रेस प्रकाशनी: 2024-2025/1359 1 भारतीय इस्पात उद्योग: अगस्त 2024, संयुक्त संयंत्र समिति, इस्पात मंत्रालय। 2 के. गुप्ता एट अल, आरबीआई बुलेटिन अगस्त 2024, पीपी। 149-162. 3 आरबीआई मौद्रिक नीति रिपोर्ट, अक्तूबर 2024। 4 एच. के. बेहरा, “महामारी के बाद के साक्ष्य के साथ भारत के लिए ब्याज की आधार दर के अनुमान को अद्यतन करना”, आरबीआई बुलेटिन, जुलाई 2024, पृ. 77-88. 5 भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद के मासिक कारोबारी मुद्रास्फीति प्रत्याशा सर्वेक्षण (बीआईईएस) के अनुसार। 6 Boissay, F., Borio, C., Leonte c., and Shim, I. (2023). “Prudential policy and financial dominance: exploring the link”, BIS Quarterly Review. |