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वर्ष 2011-12 के लिए मौद्रिक नीति वक्तव्य डॉ. डी.सुब्बाराव, गवर्नर का प्रेस वक्तव्य

3 मई 2011

वर्ष 2011-12 के लिए मौद्रिक नीति वक्तव्य
डॉ. डी.सुब्बाराव, गवर्नर का प्रेस वक्तव्य

"सर्वप्रथम भारतीय रिज़र्व बैंक की ओर से मैं अपनी वार्षिक मौद्रिक नीति की इस घोषणा के लिए आपका स्वागत करता हूँ।

2.         वर्ष 2011-12 के लिए वार्षिक नीति उस स्थिति में निर्धारित की गई जो उल्लेखनीय रूप से एक वर्ष पूर्व की स्थिति से भिन्न है। पिछले वर्ष की नीति वैश्विक अर्थव्यवस्था की हालात के बारे में शुरूआती घरेलू सुधार और अनिश्चितता के एक वातावरण में तैयार की गई थी। हालांकि मुद्रास्फीति के संकेत दिखाई दे रहे थे वे मुख्यत: खाद्य मदों द्वारा प्रारंभिक रूप से संचालित हो रहे थे। फिर भी जैसेही सुधार समेकित हुआ और घरेलू संसाधन का उपयोग उस स्तर तक बढ़ा जिसने क्षमताओं का विस्तार किया, एक अधिक सामान्यीकृत मुद्रास्फीति पर खाद्य कीमतों के दबाव के फैलने का स्पष्ट जोखिम था। पिछले संपूर्ण वर्ष में मौद्रिक नीति का लक्ष्य आपूर्ति पक्ष मुद्रास्फीति के फैलाव को रोकने का प्रयत्न करते समय निरंतर वैश्विक अनिश्चितता के समक्ष सुधार को मज़बूत बनाने का रहा।

3.         रिज़र्व बैंक ने पिछले वर्ष समायोजित कड़ाई की नीति अपनाई। यह वर्ष 2010-11 की दूसरी और तीसरी तिमाही में सुधरती मुद्रास्फीति  और समेकित वृद्धि की प्रवृत्ति के द्वारा न्यायोचित था।  तथापि, पिछले वर्ष की पिछली तिमाही में मुद्रास्फीति का पुन: उभरना चिंता का विषय हो गया। यद्यपि, इसकी शुरूआत अंतर्राष्ट्रीय पण्य वस्तु कीमतों में तीव्र बढ़ोतरी की प्रवृत्ति थी, सच्चाई यह थी कि ये घरेलू  विनिर्मित वस्तुओं की समस्त श्रेणी में तेज़ी से प्रवेश कर गए थे जिससे यह संकेत मिलता है कि मूल्य निर्धारण शक्ति महत्त्वपूर्ण है। दूसरे शब्दों में माँग इतनी अधिक मज़बूत रही है कि इससे इनपुट कीमतों का उल्लेखनीय पासथ्रू बढ़ता है। महत्त्वपूर्ण रूप से यह तब हो रहा है जब सुधरती हुई वृद्धि खासकर  पूँजिगत वस्तु उत्पादन और निवेश व्यय में सुधरती हुई वृद्धि के स्पष्ट संकेत है जो यह प्रस्तावित करते हैं कि संचयी मौद्रिक कार्रवाईयों का प्रभाव माँग पर पड़ने जा रहा है।

4.         इस प्रकार तीन कारकों ने वर्ष 2011-12 के लिए मौद्रिक रणनीति की संभावना को आकार दिया है।

  • पहला, वैश्विक पण्य वस्तु कीमतें जो हाल के महीने में तेज़ी से उछली हैं, उनके सही रूप से मज़बूत रहने की संभावना है और इस वर्ष के दौरान और अधिक बढ़ सकती हैं। इससे यह प्रस्तावित होता है कि उच्चतर मुद्रास्फीति जारी रहेगी और यह वास्तव में और खराब होगी।

  • दूसरा, हेडलाईन और मुख्य मुद्रास्फीति उल्लेखनीय रूप से इतनी बढ़ी हैं कि पिछले कुछ महीनों के दौरान निराशाजनक अनुमानों से भी अधिक हैं। इससे मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं के अनियंत्रित होने के बारे में चिंताएं उभरती हैं।

  • तीसरा कारक जो उपर्युक्त शक्तियों का सामना करने का है, वह माँग के नरम होने की संभावना है जिससे मूल्य निर्धारण ताकतों और पण्य वस्तु कीमतों के पासथ्रू के विस्तार में कमी होगी। इस  विरूद्ध प्रवृत्ति की उपेक्षा नीति गणना में नहीं की जा सकती। तथापि, वर्ष के दौरान सकल माँग को प्रभावित करनेवाला एक उल्लेखनीय कारक राजकोषीय स्थिति होगी। बज़ट आकलन ने एक राजकोषीय पुनरावर्तन का पुन: आश्वासन दिया है। तथापि, महत्त्वपूर्ण धारणा यह है कि पेट्रोलियम और उर्वरक आर्थिक सहायता को सीमित किया जाए जो गंभीरता के साथ व्याप्त कच्चे तेल की कीमतों के परिक्षण के लिए निर्धारित है। यद्यपि, घरेलू खुदरा कीमतों का समायोजन मुद्रास्फीति दर में दीर्घावधि में योगदान कर सकता है, रिज़र्व बैंक का विश्वास है कि इसे यथाशीघ्र करने की ज़रूरत है। अन्यथा, राजकोषीय घाटा बढ़ेगा और यह सकल माँग में सुधार की प्रवृत्ति का विरोध करेगा।

5.         मौद्रिक नीति की सीमा जो इस वार्षिक वक्तव्य में शुरू की जा रही है वह निम्नलिखित मौलिक प्रस्तावना पर आधारित है। दीघावधि के दौरान उच्चतर मुद्रास्फीति जारी वृद्धि का विरोधी है क्योंकि यह अनिश्चितता सृजित करने के द्वारा निवेश को हानि पहुँचाती है। मुद्रास्फीति की बढ़ी हुई वर्तमान दरें भविष्य की वृद्धि के लिए महत्त्वपूर्ण जोखिम हैं। अत: अल्पावधि में कुछ वृद्धि की लागत पर भी उन्हें नीचे लाना एक श्रेष्ठ कार्य होगा।

मौद्रिक नीति रूझान

6.         उपर्युक्त पृष्ठभूमि के समक्ष रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति का रूझान निम्नप्रकार होगा :

  • पहला, एक ब्याज दर वातावरण बनाए रखना होगा जो मुद्रास्फीति में नरमी लाता है तथा मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को रोक रखता है।

  • दूसरा, मूल्य स्थिरता के वातावरण पर ध्यान केंद्रित करना होगा जो वित्तीय स्थिरता के साथ मिलकर मध्यावधि में जारी वृद्धि के अनुकूल है।

  • तीसरा, यह सुनिश्चित करने के लिए चलनिधि का प्रबंध करना कि यह भारी अधिशेष को मौद्रिक अंतरण में तो बदलने और नहीं निधि प्रवाहों को बंद करनेवाले भारी घाटे के साथ व्यापक रूप से संतुलन में रहे।

मौद्रिक नीति की परिचालन प्रक्रिया में परिवर्तन

7.         अपने नीति उपायों की घोषणा करने के पूर्व मैं उन परिवर्तनों पर टिप्पणी करना चाहूँगा जिन्हें हम मौद्रिक नीति की परिचालन प्रक्रिया में करने जा रहे हैं।

8.         पिछली जुलाई में रिज़र्व बैंक ने मौद्रिक नीति की परिचालन प्रक्रिया की समीक्षा के लिए एक कार्यदल का गठन किया था। कार्यपालक निदेशक श्री दीपक मोहंती की अध्यक्षता में इस कार्यदल की रिपोर्ट प्रतिसूचना और अभिमत आमंत्रित करते हुए मार्च 2011 में वेबसाईट पर रखी गई थी।

9.         इस दल की अनुशंसाओं के आधार पर तथा प्राप्त प्रतिसूचना के आलोक में यह निर्णय लिया गया है कि मौद्रिक नीति की परिचालन प्रक्रिया में निम्नलिखित परिवर्तन किए जाएं:

  • पहला, भारित औसत ओवरनाईट माँग मुद्रा दर रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति का परिचालन लक्ष्य होगा।

  • दूसरा, अबसे केवल एक स्वतंत्र रूप से भिन नीति दर होगी और वह रिपो दर होगी। एकल स्वतंत्र भिन्न नीति दर की ओर अंतरण से यह आशा की जाती है कि वह मौद्रिक नीति रुझान का अधिक सटीक संकेत देगी।

  • तीसरा, प्रत्यावर्तनीय रिपो दर परिचालन में रहेगी लेकिन इसे रिपो दर से 100 आधार बिन्दु कम पर निर्धारित किया जाएगा। अत: प्रत्यावर्तनीय रिपो दर अब स्वतंत्र चर वस्तु नहीं रहेगी।

  • चौथा, हम एक नई सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) स्थापित करेंगे। बैंक एमएसएफ से रातभर के लिए अपनी संबंधित निवल माँग और मीयादी देयताओं अथवा एनडीटीएल के एक प्रतिशत तक उधार ले सकेंगे। इस सुविधा से प्राप्त राशि पर ब्याज की दर रिपो दर से 100 आधार बिन्दु अधिक होगी।

  • उपर्युक्त योजना के अनुसार संशोधित सीमा में 200 आधार बिन्दुओं की एक निर्धारित व्यापकता रहेगी। रिपो दर मध्य में होगा। प्रत्यावर्तनीय रिपो दर इससे 100 आधार बिन्दु कम होगी तथा एमएसएफ दर इससे 100 आधार बिन्दु अधिक होगा।

10.       परिचालनागत ढांचे में एमएसएफ संबंधी परिवर्तनों को छोड़कर ये परिवर्तन तत्काल प्रभाव से लागू होंगे।  एमएसएफ 7 मई 2011 से शुरू होनेवाले पखवाड़े से लागू हो जाएंगे।

मौद्रिक उपाय

11.       नीतिगत रुझान के आधार पर मैंने उपर्युक्त रूपरेखा दी है और निर्धारित परिचालनगत प्रक्रिया के अनुसार हमने निम्नलिखित नीति उपाय करने का निर्णय लिया हैः

  1. चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत  रिपो दर में 50 आधार बिन्दुओं की वृद्धि की गई है। तदनुसार, वह  6.75 प्रतिशत से बढ़कर 7.25 प्रतिशत हो गई है।

  2. नई परिचालनगत प्रक्रिया के अनुसार एलएएफ के अंतर्गत रिपो दर से 100 आधार बिंन्दु कम के स्प्रेड के साथ निर्धारित प्रत्यावर्तनीय रिपो दर 6.25 प्रतिशत पर समायोजित की जाएगी।

  3. रिपो दर से 100 आधार बिन्दु अधिक के स्प्रेड के साथ निर्धारित सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर 8.25 प्रतिशत पर निश्चित की गई है।

  4. बैंक दर 6.0 प्रतिशत ही है।

  5. प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) अनुसूचित बैंकों के एनडीटीएल के 6 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया है।

बचत बैंक जमा ब्याज दर

12.       अब मैं बचत बैंक जमा ब्याज दर के मुद्दे पर आता हूं जिस पर मीडिया ने पिछले सप्ताह भर में  काफी टिप्पणी की है। एक सप्ताह पहले रिज़र्व बैंक ने इस प्रस्ताव के पक्ष-विपक्ष पर चर्चा करने के लिए `चर्चा पेपर' निकाला था। हम प्राप्त होनेवाली प्रतिसूचना के आधार पर हम बचत बैंक जमा दर अविनियमित करने की नीति की समीक्षा करेंगे।

13.       हमने निर्णय लिया है कि इस संबंध में अंतिम निर्णय लंबित रखते हुए बचत बैंक जमा ब्याज दर को तत्काल प्रभाव से वर्तमान के 3.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.0 प्रतिशत किया जाए।

अपेक्षित परिणाम

14.       परिणामों के संबंध में, उपर्युक्त मौद्रिक नीतिगत कार्रवाई से अपेक्षित है किः

  • पहला, मांग पक्ष के दबावों को नियंत्रित करते हुए मुद्रास्फीति को सीमित रखना और मुद्रास्फीतिकारी अपेक्षाओं को रोकना; तथा

  • दूसरा, इन कार्रवाइयों से अपेक्षित है कि मुद्रास्फीति को काबू में रखते हुए मध्यावधि में वृद्धि जारी रखी जाए।

15.       मैं आगे आनेवाले समय के लिए कुछ मार्गदर्शन करना चाहता हूं। रिज़र्व बैंक के बेसलाइन मुद्रास्फीति संबंधी अनुमान ऐसे हैं कि मुद्रास्फीति में गिरावट आने से पहले 2011-12 की पहली छमाही में वह मार्च 2011 के समीप उच्चतर बनी रहेगी। ये अनुमान पेट्रोल और डीजल की कीमतों में होनेवाले बढ़ते मुल्य पर आधारित हैं। इस नीति में आगामी कुछ माह में मुद्रास्फीति बनी रहने की बात करते समय रिज़र्व बैंक ने अपने मुद्रास्फीति विरोधी रुझान पर डटे रहने की बात की है।

विहंगालोकन

16.       अब मैं हमारे मौद्रिक नीतिगत रुझान और वृद्धि तथा मुद्रास्फीति पर हमारे अनुमानों को प्रभावित करनेवाली वैश्विक और देशी व्यापक आर्थिक गतिविधियों का संक्षिप्त विवरण देता हूं।

वैश्विक संभावना

17.       वैश्विक स्तर पर होनेवाले सुधार को वर्ष 2011 में बने रहने की आशा है यद्यपि इसे राजकोषीय प्रोत्साहनों तथा तेल और पण्य वस्तुओं की कीमतों के चरणबद्ध रूप से कम होने के कारण वर्ष 2010 की इसकी गति से मामूली रूप से कम होने अनुमान किया गया है। उभरती हुई बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि में भी मौद्रिक कड़ाई और बढ़ती हुई पण्य कीमतों के कारण गिरावट आने की आशा है। उन्नत अर्थव्यवस्थाएं उच्चतर पण्य कीमतों से मुद्रास्फीतिकारी दबावों का सामना कर रही है जबकि  उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए मुद्रास्फीतिकारी दबाव मज़बूत घरेलू माँग और उच्चतर पण्य कीमतें दोनों से उभर रही हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था

वृद्धि

18.       अब स्वदेशी समष्टि अर्थव्यवस्था की ओर लौटते हैं, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अनुमान है कि इसमें विगत वर्ष की तुलना में 8.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी रहेगी। अच्छे मानसून की वजह से कृषि-संवृद्धि अनुमान से अधिक रही। विगत वर्ष की पहली छमाही में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आइआइपी) 10.7 प्रतिशत बढ़ा, बाद में इसमें नरमी रही और अप्रैल-फरवरी 2010-11 के लिए समग्र संवृद्धि 7.8 प्रतिशत पर गई। पूंजीगत माल उत्पादन और निवेश व्यय में विशेष विशेष तौर पर महत्वपूर्ण गिरावट रही।

19.       आइये आगे देखते हैं तो तेल और अन्य पण्यों की उच्च कीमतों और रिज़र्व बैंक के मुद्रास्फीति विरोधी रुख के प्रभाव के कारण संवृद्धि में नरमी रही। सामान्य मानसून की प्रत्याशा और संपूर्ण वर्ष 2011-12 के दौरान कच्चे तेल की औसतन 110 अमरीकी डालर प्रति बैरल की कीमतों के आधार पर नीतिगत प्रयोजनों के लिए वर्ष 2011-12 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि का बेसलाइन अनुमान लगभग 8 प्रतिशत है।

मुद्रास्फीति

20.       मुद्रास्फति प्राथमिक समष्टि आर्थिक चिंता रही और अभी भी है। विगत वर्ष मुद्रास्फीति का संचालन संरचनागत और अंतरण कारकों के मिश्रण से हुआ। मुद्रास्फीति के प्रेरकों के आधार पर बीते हुए साल को मोटे तौर पर तीन अवधियों में बांटा जा सकता है।

  • अप्रैल से जुलाई 2010 की पहली अवधि में, थोक मूल्य सूचकांक में 3.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी रही, यह मुख्यतया खाद्य वस्तुओं से संचालित रही।

  • अगस्त से नवंबर 2010 की द्वितीय अवधि के दौरान थोक मूल्य सूचकांक की बढ़ोतरी घटकर 1.8 प्रतिशत पर गई, इसकी मुख्य संचालक खाद्येतर प्राथमिक वस्तुएँ रहीं।

  • दिसंबर 2010 से मार्च 2011 की तीसरी अवधि में थोक मूल्य सूचकांक में 3.4 प्रतिशत की तेज बढ़ोतरी रही, इसके मुख्य संचालक खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद रहे।

  • मुद्रास्फीति के दबाव जो प्रारम्भ में खाद्य से शुरू हुए थे, वर्ष में आगे बढ़ते-बढ़ते स्पष्टतया साधारण रूप ले चुके थे।

21.       अब आगे बढ़ते हैं, मुद्रास्फीति का परिदृष्य निम्नलिखित कारकों के आधार पर आकार ग्रहण करेगाः

  • पहला कारक यह कि जब ईंधन और विद्युत समूह की नियंत्रित कीमतों में संशोधन किया जाएगा तो कितना किया जाएगा।

  • दूसरा, पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका में अनिश्चित भौगोलिक और राजनैतिक स्थिति को देखते हुए निकट भविष्य में कच्चे तेल की कीमतों का अनुमान। किसी भी हाल में तेल की कीमतों में नरमी आने की  संभावना बहुत ही कम है।

  • तीसरा, कारक जो मुद्रास्फीति के परिदृश्य को आकार देगा वह है विभिन्न महत्वपूर्ण औद्योगिक कच्चे माल की कीमतों में तेज बढ़ोतरी जैसे कि खनिज, फाइबर, रबर, कोयला और कच्चा तेल। इसके अलावा, मजदूरी बढ़ने का दबाव भी है। जिस सीमा तक इनपुट कीमतों में होनेवाली बढ़ोतरी आउटपुट कीमतों को प्रभावित करेगी, उतना ही प्रभाव मुद्रास्फीति के पथ पर पड़ेगा।

  • अन्ततः मानसून की चाल एक महत्वपूर्ण कारक होगा जो आगे चलकर मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं को आकार देगा।

22.       स्वदेशी माँग-आपूर्ति के संतुलन को ध्यान में रखते हुए पण्यों की कीमतों की विश्वव्यापी प्रवृत्ति और संभावित माँग परिदृश्य के आधार पर मार्च 2012 में थोक मूल्य सूचकांक के लिए हमारा बेसलाइन अनुमान 6 प्रतिशत हैं जिसमें ऊपर जाने की प्रवृत्ति रहेगी।

23.       वर्ष के दौरान जहाँ तक ट्रेजेक्टेरी का संबंध है तो वर्ष की पहली छमाही में मुद्रास्फीति के उच्च स्तर पर रहने की संभावना है, फिर मार्च 2012 तक यह धीरे-धीरे नरम होकर 6 प्रतिशत पर रहेगी।वर्ष के दौरान यह ट्रेजेक्टेरी समुचित नीतिगत कार्रवाईयों पर निर्भर करेगी।

मौद्रिक और चलनिधि स्थितियाँ

24.       संरचनागत और प्रतिरोधी कारकों के मिश्रण के कारण विगत वर्ष में ज्यादातर समय चलनिधि की स्थिति असामान्य रूप से तंग रही। वर्ष के दौरान एसएएफ कॉरीडोर लगभग पूरी तरह से इन्जेक्शन मोड में रहा। आप याद कीजिए कि रिज़र्व बैंक ने प्रणाली की अत्यधिक तंगहाली में सहजता लाने के लिए बहुत से उपाय किए।

25.       हाल ही के सप्ताहों में चलनिधि स्थितियों में काफी सहजता आई है, जो कि सरकारी नकदी शेषराशियों में तेज़ कटौती, और बैंकों के क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात में नरमी के बाद हुआ। चलनिधि स्थिति इस समय रिज़र्व बैंक के लिए सुविधा क्षेत्र में है।

बाह्य क्षेत्र

26.       बाह्य क्षेत्र के बारे में एक संक्षिप्त लेकिन महत्वपूर्ण टिप्पणी। विगत राजकोषीय वर्ष की अंतिम तिमाही में निर्यातों में उल्लेखनीय उछाल रहा। अप्रैल-दिसंबर 2010 की पहली तीन तिमाहियों में चालू खाते का घाटा जीडीपी का 3.1 प्रतिशत रहा। अंतिम तिमाही में बेहतर कार्य निष्पादन के आधार पर अब अनुमान है कि वर्ष 2010-11 के संपूर्ण वर्ष के दौरान चालू खाते का घटा जीडीपी का लगभग 2.5 प्रतिशत रहेगा, तुलना कीजिए एक वर्ष पहले 2009-10 में यह 2.8 प्रतिशत था।

जोखिम घटक

27.       अब मुझे बताने दीजिए कि हमारी संवृद्धि और मुद्रास्फीति के अनुमानों के लिए जोखिम क्या हैः

  • पहला यह कि इस स्तर पर वैश्विक संवृद्धि में गिरावट के कुछ जोखिम है, जैसेकि : (क) यूरो क्षेत्र में सरकारी ऋण की समस्या, (ख) पण्यों  की उच्च कीमतें, विशेषकर तेल की कीमतें, (ग) राजकोषीय समायोजन के लिए निहितार्थों को देखते हुए विकसित अर्थव्यवस्थाओं ने ब्याज दरों में अचानक ही दीर्घावधि बढ़ोतरी की संभावना; और (घ) बढ़ती हुई बाज़ार-प्रधान अर्थव्यवस्थाओं में स्फीतिकारी दबावों की प्रबलता। यदि इनमें से किसी भी या कुछ घटकों के कारण वैश्विक रिकवरी में गिरावट आती है तो व्यापार, वित्त और भरोसे के मार्गों से हमारी अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी।

  • दूसरा, स्वदेशी संवृद्धि और मुद्रास्फीति दोनों के लिए वैश्विक जिस कीमते एक महत्त्वपूर्ण जोखिम घटक है। कच्चे तेल की भविष्यगत कीमतों का पथ अनिश्चित है।

  • तीसरा, वर्तमान वर्ष के लिए बज़टगत राजकोषीय घाटा माँग के पक्ष को कुछ सहूलियत देता है। तथापि, बज़ट में निर्धारित राजकोषीय लक्ष्यों की प्राप्ति को कच्चे तेल की उच्च अंतर्राष्ट्रीय कीमतों के लिए अत्यधिक अनुदान के बोझ से चुनौती मिल सकती है।

  • चौथा, खाद्य की लगातार बढ़ती कीमतों से मज़दूरी बढ़ने का सतत दबाव बना रहेगा, इस पुकार कीमतों पर लागत का व्यापक दबाव पड़ता रहेगा।

  • अंतत: यदि तेल और पण्यों की कीमतें बढ़ती रहीं तो चालू खाते का घाटा और इसका वित्तपोषण दोनों ही चुनौती बन जाएंगे।

विकास और नियामक नीतियाँ

28.       परंपरा के अनुसार इस वार्षिक मौद्रिक नीति वक्तव्य में भी विकासात्मक और नियामक नीतियों को शामिल किया गया है। अब मुझे कुछ खास प्रयासों का उल्लेख करने दीजिए।

29.       मैं शुरुआत में सूक्ष्म वित्त संस्थानों के नियमन हेतु मालेगाम समिति की रिपोर्ट का उल्लेख करूँगा।

  • रिज़र्व बैंक ने मालेगाम समिति द्वारा अनुशंसित विनियमों की संरचना को व्यापक रूप से स्वीकार कर लिया है। तथापि हमने समिति द्वारा अनुशंसित कुछ मानदण्डों को समायोजित कर लिया है।

  • 1 अप्रैल 2011 को अथवा उसके बाद सूक्ष्म वित्त संस्थानों के रूप में कार्य करने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों सहित सभी सूक्ष्म वित्त संस्थानों को बैंक ऋण प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों को दिए गए ऋणों के रूप में तभी वर्गीकृत किए जाएंगे, यदि, और केवल यही कि वे रिज़र्व बैंक  द्वारा तैयार विनियमों के अनुरूप हैं।

  • मालेगाम समिति द्वारा की गई सिफारिश के अनुसार, रिज़र्व बैंक ने भी प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधारों के वर्गीकरण की समीक्षा हेतु एक समिति नियुक्त करने का निर्णय लिया है।

30.       हमारी वित्तीय समावेशन पहल का व्यापक लक्ष्य मार्च 2012 तक 2000 से अधिक जनसंख्यावाले सभी गाँवो को बैंकिंग सुविधाएँ उपलब्ध कराना है। श्रेणी में आने वाले ऐसे 72,800 गाँवों की पहचान की गई है।  हम बैंकों से यह अपेक्षा कर रहे हैं कि वे इस वर्ष के दौरान खोली जा रही नई शाखाओं में से कम से कम 25 प्रतिशत शाखाएँ टियर 5 और टियर 6 केंद्रों में खोलना सुनिश्चित करें।

31.       वित्तीय बाज़ारों के क्षेत्र में तीन महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं :-

  • पहला, ऋण चूक स्वैप्स पर अंतिम रिज़र्व बैंक दिशानिर्देश शीघ्र जारी करेगा

  • दूसरा, सरकारी प्रतिभूतियों में मंदड़िया बिक्री की अवधि को वर्तमान 5 दिनों से बढ़ा कर अधिकतम तीन  माह कर दिया जाएगा।

  • तीसरा, विदेशी संस्थागत निवेशकों को वित्तीय वर्ष के आरंभ में पोर्टफोलियो के बाजार मूल्य के 10 प्रतिशत तक निरस्त तथा दुबारा बुक करने की अनुमति होगी।

32.       वाणिज्य बैंकों के विनियामक उपायों पर आते हुए दो उपायों पर प्रकाश डालना चाहता हूँ :

  • पहला, अनर्जक अग्रिमों और पुनर्संचित अग्रिमों की कतिपय श्रेणियों पर प्रावधानीकरण अपेक्षाओं को बढ़ाया जाएगा।

  • दूसरा, ऋण उन्मुख म्युच्युअल फंड की चलनिधि वाली योजनाओं में बैंकों द्वारा निवेश पहले वर्ष 31 मार्च को उनकी निवल संपत्ति के 10 प्रतिशत की विवेकपूर्ण सीमा के अधीन होगा।

33.       मैं चाहता हूँ कि हमारे विकासात्मक और विनियामक उपायों को पूरी सूची जानने के लिए नीति दस्तावेज पढ़ें।

34.       समापन करने के पहले मैं वृद्धि-मुद्रास्फीति की शुरुआत पर एक संक्षिप्त टिप्पणी करते हुए उसे दुहराना चाहता हूँ जिसे मैंने पहले कहा था। यह वह मुद्दा है जो इस नीति की तैयारी में व्यापक रूप से चर्चित रहा है। उच्चतर और निरंतर मुद्रास्फीति निवेशकों के लिए अनिश्चितता का सृजन तथा मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाओं के संचालन द्वारा वृद्धि को महत्त्वहीन बनाती है। मूल्य स्थिरता का एक वातावरण मध्यावधि में वृद्धि जारी रखने के लिए एक पूर्व-शर्त है। अत: मुद्रास्फीति को काबू में रखना एक श्रेष्ठ कार्य है यद्यपि न्यूनतर वृद्धि के कारण कुछ अल्पावधि लागतें हो सकती हैं।"

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2010-2011/1592

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