13 अप्रैल 2020 अप्रैल 2020 का मासिक बुलेटिन भारतीय रिजर्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन के अप्रैल 2020 के अंक को जारी किया। बुलेटिन में वर्ष 2019-20 के लिए सातवीं द्वि-मासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य, मौद्रिक नीति रिपोर्ट - अप्रैल 2020, एक भाषण, दो लेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं। ये दो लेख हैं: I. जलवायु परिवर्तन: जोखिम कम करने के लिए समष्टि आर्थिक प्रभाव और नीति विकल्प; II. केंद्रीय बजट 2020-21: एक आकलन I. जलवायु परिवर्तन: जोखिम कम करने के लिए समष्टि आर्थिक प्रभाव और नीति विकल्प जलवायु परिवर्तन और औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि के बाद मौसम के पैटर्न में संबंधित बदलाव दोनों उन्नत और उभरते बाजार अर्थव्यवस्थाओं के समष्टि आर्थिक संभावना के लिए एक महत्वपूर्ण जोखिम के रूप में उभरा है। भारत ने हाल के दिनों में जलवायु पैटर्न में महत्वपूर्ण बदलाव देखे हैं। पिछले दो दशकों के दौरान, न केवल औसत वार्षिक तापमान में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, बल्कि भारत में दक्षिण पश्चिम मानसून के मौसम की गतिशीलता में भी काफी बदलाव आया है। यह लेख जलवायु परिवर्तन से दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं के समष्टि आर्थिक संभावना के लिए बढ़ते जोखिमों पर प्रकाश डालता है और उपलब्ध जोखिम कम करने संबंधी नीतिगत विकल्पों की समीक्षा भी करता है। विशेष रूप से, यह भारतीय संदर्भ में मुद्रास्फीति (विशेषकर खाद्य मुद्रास्फीति) और आर्थिक गतिविधि पर मौसम के प्रभाव को देखता है। मुख्य बातें:
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1901 के बाद से भारत में प्रमुख मौसम संबंधी घटनाओं के विश्लेषण से पता चलता है कि वृद्धिशील औसत तापमान स्तर और दीर्घावधि औसत (एलपीए) से संबंधित अधिक अस्थिर वर्षा पैटर्न के साथ पिछले दो दशकों में चरम घटनाओं संबंधी गतिविधियों में वृद्धि हुई है।
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जनसंख्या और आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि के साथ, ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन के संचयी स्तर में वृद्धि हुई है, जिससे समय के साथ औसत तापमान में वृद्धि हुई है। तापमान और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) प्रति व्यक्ति के बीच द्वि-दिशात्मक कारण मौजूद है। इसके अलावा, वर्षा उपलब्ध सिंचित क्षेत्र की मात्रा को प्रभावित करती है, जो बदले में कृषि उपज को प्रभावित करती है।
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आंकड़ों से पता चलता है कि भारत के कुछ प्रमुख कृषि राज्य अत्यधिक / बेमौसम वर्षा, गंभीर तापमान में उतार-चढ़ाव और तेज़ गति की हवाओं जैसी मौसम संबंधी अत्यंत घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।
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अनुभवजन्य विश्लेषण से पता चलता है कि मौसम की स्थिति, विशेष रूप से वर्षा, खाद्य मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र पर गहरा प्रभाव डालती है और यह प्रभाव कुछ महीनों तक रहता है। खाद्य के तहत, सब्जियों की कीमतें वर्षा के झटकों के लिए सबसे कमजोर होती हैं।
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अनुभवजन्य विश्लेषण से पता चलता है कि आर्थिक गतिविधियों के कुछ प्रमुख संकेतकों जैसे क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई), औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी), बिजली की मांग, व्यापार, पर्यटक आगमन, ट्रैक्टर और ऑटोमोबाइल की बिक्री पर मौसम की स्थिति का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
II. केंद्रीय बजट 2020-21: एक आकलन यह लेख केंद्रीय बजट 2020-21 का एक आकलन प्रस्तुत करता है। इस बजट का उद्देश्य अल्पकालिक, मध्यम अवधि और दीर्घकालिक उपायों के संयोजन के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था को सक्रिय बनाना है। राजकोषीय अनुशासन का पालन करते हुए, संवृद्धि को प्रति चक्रीय समर्थन प्रदान करने की आवश्यकता को संतुलित करते हुए यह कठिन स्थितियों से गुजरा है। केंद्रीय बजट 2020-21 ने सरलीकृत कर संरचना और सहज अनुपालन के रूप में कर सुधारों की शुरुआत की। इसमें राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने के लिए पूंजीगत व्यय में कटौती करने से भी बचा गया। मुख्य बातें:
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2019-20 के लिए जीडीपी के 3.3 प्रतिशत के बजटीय सकल राजकोषीय घाटे (जीएफडी) के मुकाबले, जीएफडी का संशोधित अनुमान (आरई) जीडीपी के 3.8 प्रतिशत पर रहा। 2020-21 के लिए बजटीय जीएफडी जीडीपी का 3.5 प्रतिशत रहा।
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2019-20 में बजटीय राजकोषीय घाटे के अधिक होने के बावजूद, राजकोषीय के लिए सकल और निवल बाजार उधार बरकरार रखा गया था। 2020-21 (बीई) के लिए, सकल बाजार उधार ₹ 7.8 लाख करोड़ से अधिक है, जबकि निवल उधार का बजट ₹ 5.5 लाख करोड़ है। हाल के वर्षों में केंद्र के उधार कार्यक्रम में राष्ट्रीय लघु बचत कोष (एनएसएसएफ) की बढ़ती हिस्सेदारी भी देखी गई है।
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2019-20 (आरई) में केंद्र सरकार की कुल बकाया देनदारियों (अतिरिक्त बजटीय संसाधनों के माध्यम से उधार सहित) का जीडीपी के 51.0 प्रतिशत तक तेजी से बढ़ने और 2020-21 (बीई) में मामूली 50.6 प्रतिशत होने की संभावना है।
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कर में कम विचलन के कारण 2019-20 (आरई) में केंद्र से राज्यों में संसाधन स्थानान्तरण में गिरावट आई, जो अन्य स्थानान्तरण में वृद्धि से आंशिक रूप से बराबर कर दिया गया। 2020-21 में सकल स्थानान्तरण का बजट सकल घरेलू उत्पाद के 6.2 प्रतिशत पर किया गया है।
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हालांकि, आगामी वर्ष के दौरान देश का राजकोषीय कार्य निष्पादन भारतीय अर्थव्यवस्था पर COVID-19 महामारी के प्रभाव और विकसित स्थिति पर निर्भर करता है।
अजीत प्रसाद निदेशक प्रेस प्रकाशनी: 2019-2020/2211 |