25 लाख रुपये से कम की शुद्ध स्वाधिकृत निधि वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां अब गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का कारोबार नहीं कर सकेंगी
25 लाख रुपये से कम की शुद्ध स्वाधिकृत निधि वाली
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां अब गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का कारोबार नहीं कर सकेंगी
9 जनवरी 2003
भारतीय रिज़र्व बैंक ने निदेश दिया है कि ऐसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 झक के प्रावधानों से छूट प्राप्त से इतर) जिन्होंने 9 जनवरी 2003 तक 25 लाख रुपये की न्यूनतम शुद्ध स्वाधिकृत निधि का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया है, इस तारीख के बाद गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्था के रूप में कारोबार जारी रखने के लिए पात्र नहीं हैं भले ही पंजीकरण प्रमाणपत्र के लिए कंपनी के आवेदनपत्र पर भारतीय रिज़र्व बैंक का निर्णय उन्हें सूचित कर दिया गया हो या वह भारतीय रिज़र्व बैंक के पास अनिर्णित पड़ा हो।
जिन गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की 9 जनवरी 1997 को न्यूनतम शुद्ध स्वाधिकृत निधि नहीं थी उन्हें शुद्ध स्वाधिकृत निधि की अपेक्षा पूरी करने और तीन वर्ष की अवधि तक (जो अवधि 9 जनवरी 2002 को समाप्त हो गयी) अथवा बढ़ायी गयी ऐसी अवधि तक जो विशेष रूप से भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मंजूर की गयी हो, गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्था के रूप में कारोबार जारी रखने की अनुमति दी गयी थी। कंपनी पर यह दायित्व आता था कि वह शुद्ध स्वाधिकृत निधि की अपेक्षा को पूरा करने के तीन महीने के भीतर भारतीय रिज़र्व बैंक को सूचित करे। अलबत्ता, धारा 45-झक (3) के परंतुक के अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक कुल मिलाकर भारतीय रिज़र्व बैंक (संशोधन) अधिनियम, 1997 के जारी किये जाने की तारीख, अर्थात् 9 जनवरी 1997 से छ: वर्ष की अवधि से अनधिक तक समय बढ़ाने पर विचार कर सकता है और ऐसी अवधि भी 9 जनवरी 2003 को समाप्त हो चुकी है। अतएव जिन कंपनियों ने 9 जनवरी 2003 तक शुद्ध स्वाधिकृत निधि की अपेक्षा पूरी नहीं की है, वे गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी का कारोबार करने के लिए पात्र नहीं हैं।
अलबत्ता, भारतीय रिज़र्व बैंक ने स्पष्ट किया है कि ऐसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां, जिन्होंने 25 लाख रुपये की न्यूनतम शुद्ध स्वाधिकृत निधि का लक्ष्य पूरा कर लिया है और बैंक को उसके बारे में सूचित कर दिया है, उन्हें पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी किये जाने की तारीख तक अथवा पंजीकरण के लिए आवेदनपत्र रद्द किये जाने की सूचना उन्हें दिये जाने तक गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्था के रूप में कारोबार कर सकती हैं।
रिज़र्व बैंक ने यह भी स्पष्ट किया है कि भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की धारा 58बी (4ए) के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति धारा 45झक की उपधारा (1) के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो उसे कम से कम एक वर्ष की मीयाद के लिए, जिसे पांच वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, दंड के साथ कारावास की सजा हो सकती है। यह दंड एक लाख रुपये से कम नहीं होगा लेकिन उसे पांच लाख रुपये तक बढ़ाया जा सकता है।
अल्पना किल्लावाला
महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2002-2003/724