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भारतीय रिज़र्व बैंक ने चलनिधि प्रबंध और ऋण प्रवाह में सुधार के लिए और उपायों की घोषणा की

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28 नवंबर 2008

भारतीय रिज़र्व बैंक ने चलनिधि प्रबंध और ऋण प्रवाह में सुधार
के लिए और उपायों की घोषणा की

डॉ. डी. सुब्बाराव, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक ने सार्वजनिक क्षेत्र तथा विदेशी बैंको वर्तमान चलनिधि और
ऋण स्थितियों की समीक्षा तथा अगले उपाय पर उनके विचारों को जानने के लिए सहित निजी क्षेत्र के चयनिक बैंकरों के साथ आज बैठक की । यह बैठक भारतीय रिज़र्व बैंक, केद्रीय कार्यालय, मुंबई में आयोजित की गई । इस बैठक में उप-गवर्नर डॉ. राकेश मोहन, श्री वी. लीलाधर और श्रीमती उषा थोरात तथा कार्यपालक निदेशक श्री आनंद सिन्हा उपस्थित थे । इस समीक्षा के आधार पर यह निर्णय लिया गया की निम्नलिखित और उपाय किए जाएं :

    (i) 1 नवंबर 2008 को रिज़र्व बैंक ने भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 17 (3बी) के अंतर्गत एक विशेष पुनर्वित्त सुविधा लागू किया था जिसके अंतर्गत सभी वाणिज्यिक बैंको (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंको को छोड़कर) को चलनिधि समायोजन सुविधा रेपो दर पर अधिकतम 90 दिनों की अवधि के लिए 24 अक्तूबर 2008 को प्रत्येक बैंक की निवल मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के 1.0 प्रतिशत के समतुल्य रिज़र्व बैंक से पुनर्वित्त उपलब्ध कराया जाता है । इस अवधि के दौरान पुनर्वित्त का लचीले ढंग से आहरण और उसकी चुकौती की जा सकती है ।यह स्पष्ट किया जाता है कि, यह सुविधा पुनर्निधारणीय हो सकती है । यह निर्णय भी लिया गया है कि इस सुविधा को 30 जून 2009 तक जारी रखा जाए ।
    (ii) 15 अक्तूबर 2008 को रिज़र्व बैंक ने बैंकें को गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों तथा पारस्पारिक निधियों की निधीयन आवश्यकताओं को पूरा करने के प्रयोजन हेतु उनकी निवल माँग और मीयादी देयताओं के 1.5 प्रतिशत की सीमा तक सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) के रखरखाव में छूट के माध्यम से चलनिधि समायोजन के अंतर्गत चलनिधि सहायता का लाभ उठाने की अनुमति दी थी । अब यह निर्णय लिया गया है की इस सुविधा का विस्तार किया जाए ताकि बैंक आवास वित्त कंपनियों (एचएफसी) की निधीयन आवश्यकताओं कि आर्थिक सहायता कर सकें । बैंक पारस्परिक निधियों, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और आवास वित्त कंपनियों के बीच अपनी कारोबारी आवश्यकताओं के अनुसार लचीले ढंग से ऊपर अनुमत कुल आर्थिक सहायता का प्रभाजन कर सकते हैं । इस सुविधा के समापन की तारीख जो वर्तमान में 31 मार्च 2009 है को 30 जून 2009 तक बढ़ा दिया गया है । प्रश्थन उठ सकते हैं कि क्या इस सुविधा का उपयोग विद्यमान निवेशों के लिए किया जा सकता है । यह स्पष्ट किया जाता है कि इस सुविधा तक पहुंच का अभिप्राय पारस्परिक निधियों / गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों / आवास वित्त कंपनियों के लिए नया ऋण तथा विद्यमान सुविधाओं की परिपक्वता पर नवीकरण / पुनर्निधारण के लिए है ।
    (iii) 7 नवंबर 2008 को वैश्विक गतिविधियों के संदर्भ में तथा भारतीय बैंको को उनके समुद्रपारीय कार्यालयें में उनकी अल्पावधि निधीयन आवश्यकताओं के प्रबंध में लचीलापन उपलब्ध कराने के लिए रिज़र्व बैंक ने विदेशी शाखाओं अथवा सहायक कंपनियोंवाले सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी
    क्षेत्र के भारतीय बैंकों को 3 महीने की अवधि तक के लिए विदेशी मुद्रा स्वैप के माध्यम से विदेशी चलनिधि उपलब्ध कराने का निर्णय लिया ।यह निर्णय लिया गया है की यह सुविधा जो अनुरोध पर उपलब्ध है को 30 जून 2009 तक उपलब्ध कराया जाएगा ।
    (iv) बाह्य माँग के कमजोर होने के कारण निर्यातकें द्वारा सामना की जा रही कठिनाईयों की दृष्टि से यह निर्णय लिया गया है कि लदानोत्तर रुपया निर्यात ऋण के पहले स्लैब की स्वत्वाधिकार अवधि जो वर्तमान में न्यूनतम मूल उधार दर (बीपीएलआर) की रियायती ब्याज दर सीमा में 2.5 प्रतिशत बिंदुओं की कमी के साथ उपलब्ध है, को 1 दिसंबर 2008 से 90 दिनों से 180 दिनों तक बढ़ाया जाए ।

    अजीत प्रसाद
    प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2008-2009/798

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