27 जनवरी 2009 को रिज़र्व बैंक की तीसरी तिमाही समीक्षा जारी होने के बाद वैश्विक वित्तीय और आर्थिक परिस्थितियों में और अधिक मंदी आई जैसा कि उपलब्ध अद्यतन जानकारी से पता चलता है। वर्ष 2008 की चौथी तिमाही में अमरीकी की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में एक वार्षिक दर पर 6.2 प्रतिशत की अत्यधिक गिरावट आयी और अमरीका की बेरोज़गारी की दर 7.6 प्रतिशत तक बढ़ गई। वर्ष 2008 की चौथी तिमाही में यूरो क्षेत्र में भी वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की दर 1.5 प्रतिशत से घटी। वैश्विक माँग में मंदी के प्रभाव के कारण जनवरी 2009 में जापानी निर्यात में 45.7 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) की कमी आई। वर्ष 2008 की चौथी तिमाही में जापानी अर्थव्यवस्था में भी 3.3 प्रतिशत की अत्यधिक कमी आई। कई विकसित अर्थव्यवस्थाओं में चौथी तिमाही की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद संख्याओं की स्थिति अपेक्षा से भी अधिक खराब हुई। अत: वैश्विक स्थिति सुधरने में और अत्यधिक अनिश्चितता आई। इसकी प्रतिक्रिया में, विश्व भर की सरकारों द्वारा राजकोषीय नीतियों का विस्तार करना निरंतर जारी रहा। केंद्रीय बैंकों ने भी माँग को प्रोसाहित करने और वैश्विक मंदी के प्रभाव को कम करने तथा अपनी अर्थव्यवस्थाओं पर ऋण की कमी से उभरने के लिए विभिन्न उपाय किए है। अमरीका के फेडरल बैंक और बैंक ऑफ जापान ने मात्रा बढ़ाने और ऋण आसान बनाने के उपाय किए हैं। यू.के. ने अपनी नीति दर को 50 आधार बिन्दुओं से घटाते हुए 1.0 प्रतिशत किया। उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं (इएमइ) में कोरिया, इंडोनेशिया, थाइलैंण्ड, चिली और मैक्सिको ने अपनी नीति दरें घटाई। भारतीय वित्तीय क्षेत्र ने वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान भी लचीलापन बनाए रखा है। हमारे वित्तीय बाज़ारों का ठीक तरह से कार्य करना जारी रहा। तथापि, भारत की विकास की गति वित्तीय संकट और उससे उभरी वैश्विक आर्थिक मंदी दोनों के कारण प्रभावित हुई। यह प्रभाव पहले सोचा था उससे भी अधिक गहरा और व्यापक हो गया है। फिर भी, वैश्विक गतिविधियों और हमारी आपूर्ति और माँग प्रबंधन के उपायों और तीसरी तिमाही समीक्षा की अपेक्षाओं के कारण थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति कम हो रही है। इन गतिविधियों को दर्शाते हुए रिज़र्व बैंक द्वारा सितंबर 2008 के मध्य से किए गए विभिन्न उपायों का लक्ष्य घरेलू और विदेशी मुद्रा चलनिधि को बढ़ाना है और यह सुनिश्चित करना है कि अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों को ऋण प्रवाह जारी रहे। उल्लेखनीय रूप से सितंबर 2008 के मध्य से रिज़र्व बैंक ने चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत रिपो दर को 9.0 प्रतिशत से 5.5 प्रतिशत तक घटाया, चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो दर को 6.0 प्रतिशत से 4.0 प्रतिशत तक घटाया और आरक्षित नकदी निधि अनुपात को 9.0 प्रतिशत से 5.0 प्रतिशत से घटाया और सांविधिक चलनिधि अनुपात को एनडीटीएल के 25.0 प्रतिशत से 24.0 प्रतिशत से घटाया। रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए विभिन्न उपायों के माध्यम से वित्तीय प्रणाली को उपलब्ध कराई गई वास्तविक अथवा संभाव्य प्राथमिक चलनिधि की संचयी राशि 3,88,000 करोड़ रुपए है। इसके अलावा सांविधिक चलनिधि अनुपात में एनडीटीएल के एक प्रतिशत बिंदु से कमी ने ऋण बढ़ाने के प्रयोजन के लिए 40,000 करोड़ रुपए तक की राशि की चलनिधि निधियाँ उपलब्ध कराई है। इतनी व्यापक राशि से चलनिधि स्थिति सुगम रही। ओवर-नाइट मुद्रा बाज़ार दर 3 नवंबर 2008 से निरंतर चलनिधि समायोजन सुविधा सीमा के करीब अथवा उससे नीचे बनी रही। राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज़ की घोषणा के फलस्वरूप वर्ष 2008-09 के लिए केंद्रीय सरकार के बाज़ार उधार कार्यक्रम के बज़ट की राशि 1,76,453 करोड़ रुपए (सकल) और 99,000 करोड़ रुपए (निवल) के बदले 3,42,769 करोड़ रुपए (सकल) और 2,66,539 करोड़ रुपए (निवल) तक बढ़ाई। इस उधार कार्यक्रम में की गई वृद्धि के फलस्वरूप 3 मार्च 2009 तक केंद्रीय सरकार का बाज़ार उधार 2,66,276 करोड़ रुपए (सकल) और 1,92,315 करोड़ रुपए (बवल) हो गया। 26 फरवरी 2009 को बाज़ार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) पर समझौता ज्ञापन में किए गए संशोधन के अंतर्गत 31 मार्च 2009 तक एमएसएस नकद खाता से किस्तों में 45,000 करोड़ रुपए तक की एक राशि भारत सरकार के सामान्य नकद खाते में अंतरित की जाएगी। एमएसएस के अंतर्गत जारी सरकारी प्रतिभूतियों की एक समान राशि अब भारत सरकार की सामान्य बाज़ार उधार का एक भाग होगा। इस व्यवस्था से बाज़ार को सुगमता उपलब्ध होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त रिज़र्व बैंक ने अपने खुले बाज़ार परिचालनों (ओएमओ) के अंतर्गत सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद भी आयोजित की है। ऐसे परिचालन उभर रही मौद्रिक और वित्तीय बाज़ार परिस्थितियों के अनुरूप आयोजित की जाएंगी। 10 वर्षीय बेंचमार्क सरकारी प्रतिभूतियों पर प्रतिलाभ जो 23 जनवरी 2009 को 5.87 प्रतिशत से 30 जनवरी 2009 को 6.43 प्रतिशत हो गया था, में अब 3 मार्च 2009 को 6.04 प्रतिशत की नरमी आई। हाल के महीनों में हुए रिपो और प्रत्यावर्तनीय रिपो दरों में कटौती से संकेत लेकर सभी सार्वजनकि क्षेत्र बैंकों और विभिन्न निजी क्षेत्र और विदेशी बैंकों ने अपने बेंचमार्क मूल उधार दरों (बीपीएलआर) को घटाया। तीसरी तिमाही समीक्षा की घोषणा के बाद से ग्यारह बैंकों ने अपने बीपीएलआर को 25 आधार बिंदुओं से 125 आधार बिंदुओं तक घटाया। कई बैंकों ने भी अपनी जमा ब्याज दरें घटाई। रिज़र्व बैंक वैश्विक गतिविधियों और घरेलू आर्थिक परिस्थितियों पर निरंतर निगरानी रखे हुए है। हर्ष की बात यह है कि मुद्रास्फीतिकारक दबाव उल्लेखनीय रूप से सुगम हुए। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआा) में वर्ष-दर-वर्ष के घट-बढ़ से मापी गई मुद्रास्फीति 14 फरवरी 2009 को 3.36 प्रतिशत तक घटी जोकि 2 अगस्त 2008 को 12.91 प्रतिशत की उच्च मुद्रास्फीति से तीन-चौथाई से भी ज्यादा कम हुई। तथापि, उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति जैसेकि दिसंबर 2008-जनवरी 2009 को 9.85 से 11.62 प्रतिशत की स्तर में विभिन्न उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों में दर्शाई गई है में अभी सुगमता दर्शाना बाकी है। प्राथमिक वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि के कारण उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फिति का स्तर में वृद्धि बनी रही। चूँकि थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फिति उल्लेखनीय रूप से सामान्य रही यह अपेक्षा है कि उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फिति में भी कमी आएगी। साथ ही, आर्थिक क्रियाकलापों में मंदी और अधिक दिखाई दे रही है। निर्यात ने हाल ही के लगातार चार महीनों अक्तूबर 2008-जनवरी 2009 के लिए नकारात्मक वृद्धि दर्ज की है। समग्र निर्यात वृद्धि में 2008-09 (अप्रैल-जनवरी) के दौरान 13.2 प्रतिशत की वृद्धि पिछले वर्ष की उसी अवधि के दौरान 24.2 प्रतिशत की वृद्धि उल्लेखनीय रूप से कम थी। औद्योगिक उत्पाद का सूचकांक (आइआइपी) ने दिसंबर 2008 के दौरान 2.0 प्रतिशत नकारात्मक वृद्धि दर्ज की जिसमें विनिर्माण क्षेत्र ने 2.5 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि दर्ज की। सभी प्रमुख क्षेत्रों में मंदी के कारण 3.2 प्रतिशत पर अप्रैल-दिसंबर 2008 के दौरान आइआइपी वृद्धि पूववर्ती वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान 9.0 प्रतिशत से एक-तिहाई से भी कम थी। सेवा क्षेत्र जोकि पिछले कई वर्षों से विकास प्रमुख चालक रहा है में भी मंदी आई है। व्यवसाय के विश्वास पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा है और निवेश माँग में कमी आई। खाद्येतर बैंक ऋण वृद्धि 12 अक्तूबर 2007 को 23.3 प्रतिशत (3,74,054 करोड़ रुपए) की तुलना में 10 अक्तूबर 2008 को वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 29.4 प्रतिशत (5,82,344 करोड़ रुपए) तक अधिकतम पर पहुँची। इसके बाद वर्ष-दर-वर्ष खाद्येतर बैंक ऋण वृद्धि में 19 दिसंबर 2008 को 24.3 प्रतिशत की कमी आई क्योंकि 10 अक्तूबर 2008 और 19 दिसंबर 2008 के बीच के अवधि के दौरान 30,889 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हुई जो पूर्ववर्ती वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान 1,05,774 करोड़ रुपए की तुलना में काफी कम थी। अद्यतन आँकड़ों के अनुसार खाद्येतर बैंक ऋण 15 फरवरी 2008 को 22.7 प्रतिशत की तुलना में 13 फरवरी 2009 को 19.7 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) से और अधिक कमी आई क्योंकि 19 दिसंबर 2008 और 13 फरवरी 2009 के बीच की अवधि के दौरान ऋण वृद्धि 8,091 करोड़ रुपए पर ऋण वृद्धि पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में 86,978 करोड़ रुपए से अत्यधिक कम थी। इस स्तर पर खाद्येतर बैंक ऋण वृद्धि मौद्रिक नीति की तीसरी तिमाही समीक्षा में 24.0 प्रतिशत सांकेतिक प्रत्याशा से काफी कम थी। वर्ष 2008-09 के दौरान अब तक (13 फरवरी 2009 तक) बैंकों और गैर-बैंकों से वाणिज्यिक क्षेत्रों को ॉााटतों का कुल प्रवाह पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के दौरान 6,08,351 करोड़ रुपए से कम होकर 4,98,136 करोड़ रुपए हो गया। हालांकि रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति के रूझान की प्रतिक्रिया में कुछ सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्रों की बैंकों ने अपनी उधार दरों में कटौती की है फिर भी बढ़ती ऋण जोखिम पर चिंता के साथ-साथ आर्थिक क्रियाकलापों की मंदी से ऋण वृद्धि में कमी होना दिखाई दे रहा है। रिज़र्व बैंक बैंकों को निरंतर अपने ऋण संविभाग की निगरानी रखने पर ज़ोर देने को कहा है और अशोध्य आस्तियों को बढ़ने से संपूर्णत: रोकना और आस्ति गुणवत्ता को सुधारने में कई वर्षों से प्राप्त लाभों की सुरक्षा करना सहित त्वरित कार्रवाई करने पर ज़ोर दे रहा है। साथ ही, बैंकों को चाहिए कि वे अपने जोखिम का उपयुक्त मूल्य लगाएं और यह सुनिश्चित करें कि गुणवंत उद्यमों को निधि उपलब्ध कराना जारी रखा जाए। वर्तमान वैश्विक और घरेलू समष्टि आर्थिक परिस्थिति की समीक्षा करने पर रिज़र्व बैंक ने निम्नलिखित अतिरिक्त उपाय करने का निर्णय लिया: |