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आरबीआई बुलेटिन - अप्रैल 2023

21 अप्रैल 2023

आरबीआई बुलेटिन - अप्रैल 2023

आज रिज़र्व बैंक ने अपने मासिक बुलेटिन का अप्रैल 2023 अंक जारी किया। बुलेटिन में 3, 5 और 6 अप्रैल, 2023 का मौद्रिक नीति वक्तव्य, अप्रैल 2023 की मौद्रिक नीति रिपोर्ट, एक भाषण, पांच आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।

ये पांच आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. मुद्रास्फीति में नवीन व्यवस्थागत बदलाव : भारत का अनुभव; III. भारतीय राज्यों का पूंजी परिव्यय: इसकी भूमिका और निर्धारकों का तथ्यपरक आकलन; IV. औद्योगिक संबंध संहिता और श्रम उत्पादकता: एक देशांतर अधिविश्लेषण; और V. भारत में स्थावर-संपदा क्षेत्र की गतिविधि का एक समग्र संकेतक।

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

वित्तीय स्थितियों में अस्थिरता और वित्तीय बाज़ार में उथल-पुथल के कारण वैश्विक आर्थिक स्थितियाँ उच्च अनिश्चितता से घिरी हैं। भारत में, संपर्क-गहन सेवाओं में तेजी के कारण सकल मांग की स्थिति दृढ़ बनी हुई है। रबी-फसल की उच्च आमद प्रत्याशा, अवसंरचना पर राजकोषीय बल और चुनिंदा क्षेत्रों में कॉर्पोरेट निवेश में पुनरुद्धार, अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत हैं। मौद्रिक नीति कार्रवाइयों और आपूर्ति पक्ष के उपायों की प्रतिक्रिया में, हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति धीरे-धीरे, अप्रैल 2022 में 7.8 प्रतिशत के अपने चरम से मार्च 2023 में 5.7 प्रतिशत तक कम हो गई है और 2023-24 की चौथी तिमाही में इसके 5.2 प्रतिशत तक आने का अनुमान है।

II. मुद्रास्फीति में नवीन व्यवस्थागत बदलाव : भारत का अनुभव

माइकल देबब्रत पात्र, जॉइस जॉन और आशीष थॉमस जॉर्ज द्वारा

यह आलेख भारत में मुद्रास्फीति में हाल के व्यवस्थागत परिवर्तनों की पड़ताल करता है।

प्रमुख बिंदु:

  • जैसा कि, मुद्रास्फीति की निरंतरता में गिरावट, इसकी अंतर्निहित प्रवृत्ति में नरमी, आधार-व्याप्ति में कमी और आयातित मुद्रास्फीति की भूमिका में ह्रास से संकेत मिलता है, 2022-23 की दूसरी छमाही के बाद से, भारतीय अर्थव्यवस्था, निम्न मुद्रास्फीति व्यवस्था की ओर संकेत दिखा रही है।

  • घरेलू वस्तु और सेवाओं, शिक्षा और आवास, जैसी श्रेणियों से उत्पन्न चक्रीय रूप से संवेद मुद्रास्फीति का दखल हाल की अवधि में बढ़ रहा है। इसलिए, मौद्रिक नीति को अग्र-सक्रिय कार्रवाई हेतु तैयार रहना होगा ताकि मुद्रास्फीति, मौसमी मांग का सामना करते हुए लक्ष्य तक रह सके।

III. भारतीय राज्यों का पूंजी परिव्यय: इसकी भूमिका और निर्धारकों का तथ्यपरक आकलन

देब प्रसाद रथ, बिचित्रानंद सेठ, समीर रंजन बेहरा और अनूप के सुरेश, द्वारा

यह आलेख राज्यों के पूंजीगत परि‍व्यय और सकल राज्य देशी उत्पाद (जीएसडीपी) के बीच संबंधों की जांच करता है, साथ ही उन कारकों की भी पहचान करता है जो राज्यों के पूंजीगत परि‍व्यय निर्णयों को प्रभावित करते हैं। यह विश्लेषण, समग्र ऋण स्तर को कम और धारणीय रखने के लक्ष्य के साथ उच्च पूंजीगत परि‍व्यय की आवश्यकता को संतुलित करने की ज़रूरत को सामने लाता है।

प्रमुख बिंदु:

  • राज्यों के पूंजीगत परिव्यय और जीएसडीपी के बीच महत्वपूर्ण और सकारात्मक संबंध है।

  • ऋण का उच्च स्तर, राज्यों की पूंजीगत परिव्यय में निवेश करने की क्षमता में बाधक है, खासकर जब ऋण का स्तर उच्च मात्रा में हो।

  • राज्य अपने पूंजीगत परिव्यय के आबंटन में प्रतिचक्रीय व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। हालांकि, वे ऋणात्मक आउटपुट अंतराल की अवधि के दौरान अधिक आक्रामक तरीके से प्रतिक्रिया करते हैं।

IV. औद्योगिक संबंध संहिता और श्रम उत्पादकता: एक देशांतर अधिविश्लेषण

श्रुति जोशी और राखी पी. बालचंद्रन, द्वारा

भारत ने हाल ही में 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को चार श्रम संहिताओं में संहिताबद्ध किया है, अर्थात (i) मजदूरी, (ii) औद्योगिक संबंध, (iii) सामाजिक सुरक्षा और (iv) व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति, से संबंधित संहिता। औद्योगिक संबंध संहिता ने निश्चित अवधि के रोजगार (एफ़टीई) को भी प्रस्तुत किया है। अधि-प्रतिगमन विश्लेषण का उपयोग करते हुए, यह आलेख, देशों में श्रम उत्पादकता पर एफ़टीई के प्रभाव का मूल्यांकन करता है।

प्रमुख बिंदु:

  • हालांकि एफ़टीई भारत के लिए नया है, यह कई वर्षों से कई यूरोपीय देशों में परिचालन में है, जिससे श्रम प्रबंधन में फर्मों की आघात-सहनीयता बढ़ रही है।

  • एफ़टीई का श्रम उत्पादकता पर सकारात्मक और महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

V. भारत में स्थावर-संपदा क्षेत्र की गतिविधि का एक समग्र संकेतक

दीपक आर. चौधरी, आकांक्षा हांडा, प्रियंका उप्रेती और सौरभ घोष, द्वारा

स्थावर-संपदा क्षेत्र एक प्रमुख रोजगार प्रदाता, परिवारों के लिए भौतिक बचत हेतु एक जरूरी विकल्प, देश के योजि‍त सकल मूल्य (जीवीए) में एक प्रमुख योगदानकर्ता और एक प्रारंभिक चेतावनी संकेतक के रूप में, भारत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, निर्माण जीवीए डेटा, 2 महीने के अंतराल के साथ तिमाही आधार पर उपलब्ध है। इस आलेख का उद्देश्य विभिन्न प्रकार के उच्च-आवृत्ति संकेतकों और एक गतिशील कारक मॉडल का उपयोग करके एक स्थावर-संपदा क्षेत्र गतिविधि संकेतक का निर्माण कर, सूचना अभाव को कम करना है।

प्रमुख बिन्दु:

  • स्थावर-संपदा क्षेत्र से संबंधित परंपरागत (जैसे, आवास की कीमतें, इस्पात और सीमेंट उत्पादन, रेल-भाड़ा, औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक) और अपरंपरागत संकेतक (जैसे, व्यापक बाजार उतार-चढ़ाव के लिए समायोजित निफ्टी स्थावर-संपदा सूचकांक और गूगल खोज प्रवृत्ति संकेतक) के मिश्रण का उपयोग स्थावर-संपदा क्षेत्र की गतिविधि हेतु समग्र संकेतक के निर्माण के लिए किया जाता है।

  • अनुमानित गतिशील कारक आवास (डीएफएच), निर्माण जीवीए और निजी एजेंसियों द्वारा जारी स्थावर-संपदा डेटा, का पता लगाता है।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2023-2024/106

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