17 अगस्त 2023 आरबीआई बुलेटिन – अगस्त 2023 रिज़र्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन का अगस्त 2023 अंक जारी किया। बुलेटिन में 10 अगस्त 2023 का मौद्रिक नीति वक्तव्य, दो भाषण, पांच आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं। पाँच आलेख इस प्रकार हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. बदलते रुझान: भारतीय सरकारी प्रतिभूति बाजार में बैंकेतर निवेशकों का बढ़ता प्रभाव; III. बाहरी आघात और कोविड-19 के बाद भारत की संवृद्धि; IV. भारत में मानसुनी वर्षा पर कृषि की निर्भरता; और V. निजी कॉरपोरेट निवेश: कार्यनिष्पादन और सन्निकट संभावनाएं। I. अर्थव्यवस्था की स्थिति औद्योगिक उत्पादन और व्यापार कमजोर होते जाने के कारण, पहली तिमाही के मजबूत प्रदर्शन के बाद वैश्विक बहाली धीमा हो रही है। इस तनावग्रस्त वैश्विक माहौल में, भारतीय अर्थव्यवस्था वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही में गति पकड़ रही है। निजी खपत और नियत निवेश जैसे घरेलू कारक, निर्यात में संकुचन से होने वाले दबाव की भरपाई कर रहे हैं। जून में देखी गई मुद्रास्फीति में वृद्धि, जुलाई में अचानक बढ़ गई, क्योंकि टमाटर की अभूतपूर्व मूल्य-वृद्धि का प्रभाव-प्रसार अन्य सब्जियों की कीमतों पर भी देखा गया। जहाँ, मूल मुद्रास्फीति में नरमी देखी गई, वहीं दूसरी तिमाही में हेडलाइन मुद्रास्फीति के औसतन 6 प्रतिशत से अधिक रहने के आसार हैं। II. बदलते रुझान: भारतीय सरकारी प्रतिभूति बाजार में बैंकेतर निवेशकों का बढ़ता प्रभाव अमित पवार, मयंक गुप्ता, अभिनंदन बोरड़, सुब्रत कुमार सीत और देब प्रसाद रथ द्वारा यह आलेख, सरकारी प्रतिभूति बाजार में निवेशक आधार में विविधीकरण का सरकारी उधार लागत पर होने वाले प्रभाव का आकलन प्रस्तुत करता है। मुख्य बिन्दु:
-
हालांकि बैंक भारत सरकार की दिनांकित प्रतिभूतियों के बकाया स्टॉक में निवेशकों के बीच अपनी प्रमुख स्थिति बनाए हुए हैं, हाल ही में बीमा कंपनियों, भविष्य निधि और पेंशन निधि तथा म्यूचुअल फंड जैसी बैंकेतर संस्थाओं के हिस्से में वृद्धि हुई है।
-
बैंकों की तुलना में, बैंकेतर निवेशकों की मांग जी-सेक प्रतिफल में परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील पाई गई है।
- जी-सेक की आपूर्ति में वृद्धि प्रतिफल में वृद्धि के साथ जुड़ी हुई पाई गई है; हालांकि, बैंकेतर निवेशकों द्वारा जी-सेक के अवशोषण में वृद्धि से प्रतिफल पर दबाव कम होता है।
III. बाहरी आघात और कोविड-19 के बाद भारत की संवृद्धि अमित कुमार, चैताली भौमिक, कौस्तव के. सरकार, कुणाल प्रियदर्शी, सपना गोयल और सत्यानंद साहू द्वारा यह लेख तीन बृहद बाहरी आघातों- महामारी, यूक्रेन में युद्ध और मौद्रिक नीति की समकालिक वैश्विक सख्ती, की पृष्ठभूमि में हाल ही में जारी किए गए राष्ट्रीय लेखा के आंकड़ों का विश्लेषण प्रस्तुत करता है। मुख्य बिन्दु:
-
महामारी से बहुत पहले से निजी खपत में एक रचनात्मक बदलाव चल रहा है, जो वस्तुओं की तुलना में सेवाओं की हिस्सेदारी में निरंतर वृद्धि में परिलक्षित होता है।
-
भारत में नियत निवेश उच्च जीडीपी वृद्धि, वास्तविक खाद्य से इतर ऋण संवृद्धि तथा आर्थिक नीति निश्चितता के लिए सकारात्मक प्रतिक्रिया प्रदान करता है।
-
आपूर्ति पक्ष पर, विनिर्माण उत्पादन पर ऊर्जा मूल्य आघातों का प्रतिकूल प्रभाव कम हो रहा है। सेवा क्षेत्र की गतिविधियों में उछाल आने वाले समय में भी बरकरार रहने की उम्मीद है।
IV. भारत में मानसूनी वर्षा पर कृषि की निर्भरता कश्यप गुप्ता, सुनील कुमार और सार्थक गुलाटी द्वारा इस अध्ययन का उद्देश्य विशेष रूप से खरीफ मौसम के दौरान कृषि उत्पादन के लिए दक्षिण-पश्चिम मानसून (एसडब्ल्यूएम) के महत्व की अनुभवजन्य जांच करना है। मुख्य बिंदु:
-
जबकि कृषि उत्पादन पर दक्षिण-पश्चिम मानसून (एसडब्ल्यूएम) वर्षा का प्रभाव सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण पाया गया है, समय के साथ इसमें कमी आई है, जो मानसून के आघातों के प्रति कृषि की बढ़ी हुई आघात-सहनीयता की ओर इंगित करता है।
- सिंचाई, मानसून की कमी के प्रतिकूल परिणामों को कम करती है, जिससे सिंचाई पर सार्वजनिक व्यय बढ़ाने की आवश्यकता का संकेत मिलता है।
V. निजी कॉरपोरेट निवेश: कार्यनिष्पादन और सन्निकट संभावनाएं श्रेया भान, राजेंद्र एन. चव्हान और राजेश बी. कावेड़िया द्वारा यह आलेख निजी कंपनियों के पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) चरणबद्ध योजनाओं से संबंधित आंकड़ों का उपयोग करके, उनके निवेश इरादों के आधार पर सन्निकट निवेश संभावनाओं का आकलन प्रदान करता है। मुख्य बिंदु:
-
बैंकों/ वित्तीय संस्थानों द्वारा स्वीकृत परियोजनाओं के आंकड़ों के अनुसार, 2022-23 में निजी कंपनियों के परिकल्पित पूंजी निवेश में लगातार दूसरे वर्ष वृद्धि हुई। 2022-23 में निजी कॉरपोरेट क्षेत्र की कुल पूंजीगत व्यय योजना में पिछले वर्ष की तुलना में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
-
सड़क एवं पुल और बिजली की अगुवाई में अवसंरचना क्षेत्र ने अधिकतम पूंजीगत व्यय आकर्षित करना जारी रखा।
-
वर्ष 2022-23 के दौरान परिकल्पित कुल पूंजीगत व्यय में से लगभग 40 प्रतिशत हिस्से की 2023-24 के दौरान व्यय किए जाने की उम्मीद है।
बुलेटिन आलेखों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों को नहीं दर्शाते हैं। (योगेश दयाल) मुख्य महाप्रबंधक प्रेस प्रकाशनी: 2023-2024/770 |