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आरबीआई बुलेटिन – अगस्त 2024

आज, भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने मासिक बुलेटिन का अगस्त 2024 अंक जारी किया। बुलेटिन में मौद्रिक नीति वक्तव्य, पाँच भाषण, सात आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।

सात आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. क्या खाद्य कीमतों में प्रभाव-विस्तार हो रहा है? III. केंद्रीय बजट 2024-25: एक मूल्यांकन; IV. भारत के सेवा क्षेत्र के लिए अतिरिक्त क्षमता का अनुमान; V. फिनटेक और केंद्रीय बैंकों का उद्भव: एक टेक्स्ट माइनिंग-आधारित सर्वेक्षण; VI. निजी कॉर्पोरेट निवेश: 2023-24 में संवृद्धि और 2024-25 के लिए संभावना ; और VII. धारणीय विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में प्रगति को मापना: बजट दस्तावेजों पर प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपी) का अनुप्रयोग

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

    निरंतर भू-राजनीतिक तनाव, प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में संभावित मंदी की आशंकाओं का फिर से उठना और मौद्रिक नीति विचलन के कारण वित्तीय बाजार में अस्थिरता ने वैश्विक आर्थिक संभावनाओं पर प्रभाव डाला, यद्यपि विभिन्न देशों में मुद्रास्फीति में धीरे-धीरे कमी आई है। भारत में, बढ़ती आय के कारण ग्रामीण खपत में बहाली के साथ सकल मांग की स्थिति, गति प्राप्त कर रही है। मांग में इस बढ़ोत्तरी से कुल निवेश में निजी क्षेत्र की अब तक की धीमी सहभागिता को फिर से बल मिलने की आशा है। हेडलाइन मुद्रास्फीति जून में अपने शीर्ष स्तर से जुलाई में 3.5 प्रतिशत तक कम हो गई, लेकिन यह मुख्य रूप से आधार प्रभाव प्रेरित अधोगामी सांख्यिकी के कारण था।

II. क्या खाद्य कीमतों में प्रभाव-विस्तार हो रहा है?

माइकल देब्रत पात्र, जॉइस जॉन और आशीष थॉमस जॉर्ज द्वारा

भारत में खाद्य पदार्थों की बढ़ी कीमतों के संबंध में हाल के अनुभव के संदर्भ में, यह आलेख खाद्य मुद्रास्फीति के बने रहने के कारणों और इसके प्रभाव विस्तार की जांच करता है, ताकि मौद्रिक नीति के लिए इसके निहितार्थों को समझा जा सके।

मुख्य बातें:

  • खाद्य मुद्रास्फीति की निरंतरता - आघात के बाद सामान्य स्थिति में लौटने में लगने वाले समय के संदर्भ में - मुख्य रूप से बढ़ती तीव्रता वाली प्रतिकूल जलवायु घटनाओं के कारण आपूर्ति में आवर्ती आघातों से प्रेरित बढ़ती प्रत्याशाओं के कारण बढ़ी है।
  • निरंतर खाद्य मुद्रास्फीति, सामान्य मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं के माध्यम से लागत, सेवा प्रभारों और उत्पादन कीमतों पर विस्तारित हो रही है, तथापि इस पूर्ण प्रभाव को मौद्रिक नीति द्वारा संतुलित किया गया है।
  • मुद्रास्फीति संबंधी दबावों के सामान्यीकरण को रोकने के लिए मौद्रिक नीति पर सतर्कता की आवश्यकता है, ताकि समग्र मूल्य स्थिरता प्राप्त की जा सके और इस प्रकार उच्च संवृद्धि पथ की नींव को संरक्षित और मजबूत किया जा सके।

III. केंद्रीय बजट 2024-25: एक मूल्यांकन

आयुषी खंडेलवाल, हर्षिता यादव, आकाश राज, सक्षम सूद, इप्सिता पाधी, विचित्रानंद सेठ, अनूप के. सुरेश और समीर रंजन बेहरा द्वारा

यह आलेख केंद्रीय बजट 2024-25 का मूल्यांकन प्रस्तुत करता है। बजट संवृद्धि को गति प्रदान करने, रोजगार सृजन को बढ़ावा देने और समष्टि आर्थिक स्थिरता को मजबूत करने के बीच संतुलन बनाता है।

मुख्य बातें:

  • 2024-25 में सकल राजकोषीय घाटा 2023-24 में जीडीपी के 5.6 प्रतिशत से घटकर जीडीपी का 4.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है (अनंतिम खाते, पीए)।
  • पूंजीगत व्यय को 2010-20 के दौरान जीडीपी के 1.7 प्रतिशत के औसत से बढ़ाकर 2024-25 में जीडीपी का 3.4 प्रतिशत करने का बजट है, जबकि राजस्व व्यय को 2023-24 (पीए) की तुलना में 2024-25 (बजट अनुमान, बीई) में 6.2 प्रतिशत बढ़ाने का बजट है।
  • प्राप्तियों के संबंध में, सकल कर राजस्व में 1.1 की उछाल के साथ 10.8 प्रतिशत की वृद्धि का बजट अनुमान है, जो 2010-11 से 2018-19 के दौरान के औसत के अनुरूप है।

IV. भारत के सेवा क्षेत्र के लिए अतिरिक्त क्षमता का अनुमान

अभिलाष अरुण सतापे, निवेदिता बनर्जी, आरती सिन्हा, एम. श्रीरामुलु और सुप्रिया मजूमदार द्वारा

राष्ट्रीय उत्पादन में सेवा क्षेत्र की प्रमुख हिस्सेदारी को देखते हुए, सेवा क्षेत्र में अतिरिक्त क्षमता का अनुमान लगाना महत्वपूर्ण है। यह आलेख भारतीय सेवा क्षेत्र के लिए अतिरिक्त क्षमता का अनुमान लगाने के लिए वैचारिक पृष्ठभूमि और पद्धतिगत पहलुओं को प्रस्तुत करता है।

मुख्य बातें:

  • यह आलेख सेवाओं और मूलभूत सुविधा संभावना सर्वेक्षण (एसआईओएस) के माध्यम से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर जनवरी-मार्च 2021 से अतिरिक्त क्षमता के तिमाही अनुमान प्रस्तुत करता है।
  • परिणाम बताते हैं कि भारतीय सेवा क्षेत्र की अतिरिक्त क्षमता 2021-24 की 3 वर्ष की अवधि के दौरान 11 से 14 प्रतिशत की सीमा में थी। हालांकि  यह ध्यान देने योग्य है कि नमूना अवधि काफी हद तक महामारी के बाद की अवधि के अनुरूप है।
  • विनिर्माण क्षेत्र के लिए क्षमता उपयोग के साथ-साथ सेवा क्षेत्र में अतिरिक्त क्षमता की जानकारी मुद्रास्फीति और उत्पादन गतिकी को समझने तथा नीति निर्माण के लिए इनपुट को मजबूत कर सकती है।

V. फिनटेक और केंद्रीय बैंकों का उद्भव: एक टेक्स्ट माइनिंग-आधारित सर्वेक्षण

मनु शर्मा, दीर्घाऊ केशव राउत, शोभित गोयल एंड मधुरेश कुमार द्वारा

बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था और वित्त के लिए इसके अनुप्रयोगों के साथ, नीति निर्माताओं को ऐसे स्थापित ढांचे की आवश्यकता है जो आगे नवाचार और उपभोक्ता विश्वास को बढ़ावा दे सके। इस पृष्ठभूमि के साथ, यह आलेख केंद्रीय बैंकों के समाचार लेखों, भाषणों और साक्षात्कारों के लिए प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण आधारित टेक्स्ट माइनिंग दृष्टिकोण को अपनाते हुए वैश्विक केंद्रीय बैंकों / बहुपक्षीय संस्थानों के फिनटेक के क्षेत्रों में नीतिगत केंद्र- बिन्दु का विश्लेषण करता है।

मुख्य बातें:

  • विश्लेषण से पता चलता है कि फिनटेक के विभिन्न क्षेत्रों में केंद्रीय बैंकों द्वारा नवाचारों और विनियमन दोनों के संदर्भ में 'भुगतान प्रणाली' एक प्राथमिकता है।
  • केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (सीबीडीसी) और इसका उपयोग, नीतिगत चर्चाओं और पहलों के केंद्रीय क्षेत्र के रूप में उभर रहा है, जिसमें प्रयोज्य प्रौद्योगिकी और वित्तीय प्रभावों से संबंधित पहले की चिंताओं से सीबीडीसी कार्यान्वयन के तौर-तरीकों की ओर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
  • वैश्विक स्तर पर फिनटेक नीतिगत विचार, इन प्रौद्योगिकियों को लागू करने वाली संस्थाओं के अलावा, बिगटेक फर्मों और विशिष्ट प्रौद्योगिकियों (आईओटी, डीएलटी और क्लाउड कंप्यूटिंग सहित) पर भी केंद्रित हो गए हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक उपभोक्ताओं, सेवा वितरण और वित्तीय समावेशन पर उचित ज़ोर देता है। विनियामक केंद्र- बिन्दु का उद्देश्य विनियामक और बाजार/नवप्रवर्तकों को एक साथ लाना है।

VI. निजी कॉर्पोरेट निवेश: 2023-24 में संवृद्धि और 2024-25 के लिए संभावना

कमल गुप्ता, राजेश बी कावेडिया, सूक्ति खांडेकर और स्निग्धा योगिन्द्रन

निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र की निवेश गतिविधियां, अर्थव्यवस्था में समग्र निवेश वातावरण को संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र द्वारा दर्शाए गए पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) की चरणबद्ध योजनाओं के आंकड़ों का उपयोग करते हुए, यह लेख निजी कॉर्पोरेट्स के निवेश इरादों के साथ-साथ उनके निकट-अवधि की संभावना का आकलन प्रदान करता है।

मुख्य बातें:

  • निजी कॉरपोरेट्स के निवेश इरादे 2023-24 के दौरान उत्साहजनक बने रहे, जैसाकि परियोजनाओं की कुल संख्या में वृद्धि के साथ-साथ बैंकों/वित्तीय संस्थाओं द्वारा स्वीकृत परियोजनाओं की कुल लागत में भी  परिलक्षित होता है, जिसमें ग्रीन फील्ड (नई) परियोजनाओं का वित्तपोषित परियोजनाओं की कुल लागत में लगभग 89 प्रतिशत का हिस्सा है।
  • ‘सड़क एवं पुल’ तथा ‘विद्युत’ क्षेत्र के निर्देशन में  अवसंरचना क्षेत्र ने अनुमानित पूंजी निवेश का बड़ा हिस्सा आकर्षित करना जारी रखा।
  • चरणबद्ध योजना यह दर्शाता है कि 2023-24 में निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र द्वारा लक्षित कुल पूंजीगत व्यय में पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 57 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
  • प्रक्रियाधीन परियोजनाओं के वित्त की चरणबद्ध रूपरेखा से पता चलता है कि परिकल्पित पूंजीगत व्यय 2023-24 में ₹1,59,221 करोड़ से बढ़कर 2024-25 में ₹2,45,212 करोड़ होने का अनुमान है।

VII. धारणीय विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में प्रगति को मापना: बजट दस्तावेजों पर प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपी) का अनुप्रयोग

राजनी दहिया और शशि कांत द्वारा

यह आलेख धारणीय विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने की दिशा में प्रगति को मापने के लिए प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपी) में प्रगति का लाभ उठाते हुए एक नवीन दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। यह केंद्र सरकार और भारत के चुनिंदा राज्यों (आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, ओडिशा, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल) के बजट दस्तावेजों में एसडीजी पर ध्यान केंद्रित करने में विविधता का पता लगाने के लिए विषय (टॉपिक)  मॉडलिंग का उपयोग करता है और जांच करता है कि विभिन्न एसडीजी पर उनका ध्यान वर्षों में कैसे भिन्न रहा है।

मुख्य बातें:

  • यह लेख बजट दस्तावेजों से जानकारी निकालने और एसडीजी के बारे में सरकार के समग्र कथन और संदेश को उजागर करने के लिए बड़े भाषा मॉडल (एलएलएम) के अनुप्रयोग को प्रदर्शित करता है।
  • परिणाम दर्शाते हैं कि केंद्र सरकार और चुनिंदा राज्यों द्वारा एसडीजी पर संयुक्त ध्यान 2012 की तुलना में 2023 में बढ़ गया है, जो दोनों की ओर से मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • बदलती परिस्थितियों के आधार पर विभिन्न एसडीजी पर ज़ोर, समय के साथ बदलता रहता है तथा केंद्र सरकार और चुनिंदा राज्यों के बीच अलग-अलग एसडीजी पर ध्यान देने के संदर्भ में काफी विविधता है।
  • यह पाया गया है कि एसडीजी परस्पर विशिष्ट नहीं हैं और किसी विशेष एसडीजी को लक्षित करने से  अन्य जुड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी मदद मिल सकती है। एसडीजी के परस्पर संबद्धता का विश्लेषण करने से एकीकृत नीति दृष्टिकोण की पहचान करने में मदद मिलती है जो एक साथ कई लक्ष्यों को पूरा करते हैं।

बुलेटिन के आलेखों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।

 

(पुनीत पंचोली)  
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2024-2025/927

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