21 जनवरी 2021 रिज़र्व बैंक बुलेटिन - जनवरी 2021 भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन के जनवरी 2021 के अंक को जारी किया। बुलेटिन में एक भाषण, चार लेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं। ये चार लेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. भारतीय रुपये की प्रभावी विनिमय दर सूचकांक; III. लघु वित्त बैंक: वित्तीय समावेशन और व्यवहार्यता को संतुलित करना; IV. भारत में हरित वित्त: प्रगति और चुनौतियां I. अर्थव्यवस्था की स्थिति
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2020 एक ऐसा वर्ष रहा जिसमें सब कुछ बदल गया। वर्ष 2021 की शुरुआत दुनिया भर के देशों द्वारा एक बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान के साथ हुई।
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भारत में, समष्टि आर्थिक परिदृश्य में हालिया बदलावों ने दृष्टिकोण को उज्ज्वल किया है, जिसमें जीडीपी सकारात्मक क्षेत्र को प्राप्त करने को है और मुद्रास्फीति लक्ष्य के करीब पहुंच रही है।
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ईएमई मजबूत पोर्टफोलियो अंतर्वाह प्राप्त करने के साथ वित्तीय बाजार उत्तेजित बने हुए हैं और भारत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के रिकॉर्ड वार्षिक अंतर्वाह प्राप्त करने के मार्ग पर है।
II. भारतीय रुपये की प्रभावी विनिमय दर सूचकांक भारतीय अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन और भारत के विदेश व्यापार वारंट अपडेट के पैटर्न में बदलाव से भारतीय रूपये में नाममात्र / वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (एनईईआर /आरईईआर) के व्यापक(मौजूदा 36-मुद्रा-आधारित) सूचकांक को अद्यतन करने की आवश्यकता को दर्शाता है। यह लेख दो महत्वपूर्ण नवाचारों के साथ अद्यतन श्रृंखला प्रस्तुत करता है: आधार वर्ष 2004-05 से 2015-16 में परिवर्तित किया गया है; और मौजूदा बास्केट को 36 से 40 करेंसी तक विस्तारित किया गया है, जिसमें आठ नई करेंसी शामिल हैं और चार करेंसी को निकाला गया है। मुख्य बातें:
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2004-05 से 2019-20 तक के नमूना अवधि के अधिकांश भाग के लिए नए आरईईआर सूचकांक बेंचमार्क (अर्थात, वर्ष का आधार मूल्य 100) के आसपास बने हुए हैं, जो भारत की बाहरी प्रतिस्पर्धा को पुरानी श्रृंखला से बेहतर दर्शाते हैं।
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भारत और इसके प्रमुख व्यापारिक भागीदारों के बीच मुद्रास्फीति के अंतर में गिरावट आई है और लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (एफआईटी) ढांचे को अपनाने के बाद से स्थिर हो गई है, जो भारत की बाहरी प्रतिस्पर्धा के साथ अच्छी जा रही है।
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नई आरईईआर, औसत आधार पर 2016-17 से 2019-20 के दौरान अपने आधार वर्ष के स्तर से 0.8 प्रतिशत ऊपर थी, जो एफआईटी व्यवस्था के तहत देखी गई मध्यम मुद्रास्फीति को दर्शाती है।
III. लघु वित्त बैंक: वित्तीय समावेशन और व्यवहार्यता को संतुलित करना लघु वित्त बैंक (एसएफ़बी) भारतीय बैंकिंग प्रणाली में एक नया प्रवेश है। यह आलेख वित्तीय समावेशन के अपने उद्देश्य के लिए विशिष्ट संदर्भ के साथ एसएफ़बी के कार्यनिष्पादन का विश्लेषण करता है, जबकि उनकी वित्तीय व्यवहार्यता से संबंधित मुख्य पहलुओं पर भी प्रकाश डालता है। इस विश्लेषण के प्रमुख अवलोकन निम्नानुसार हैं:
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एसएफबी मध्यप्रदेश और राजस्थान सहित कुछ कम बैंक सुविधा वाले राज्यों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है। हालाँकि, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक सहित अपेक्षाकृत अच्छी बैंक युक्त राज्यों में उनकी शाखाएं हैं। उनकी शाखाएं अर्ध-शहरी और शहरी केंद्रों में भी हैं।
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एसएफ़बी सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) और कृषि जैसे अल्प सेवा प्राप्त क्षेत्रों तक पहुंचने में काफी सफल रहे हैं। मार्च 2020 में कुल एसएफ़बी क्रेडिट का लगभग 41 प्रतिशत हिस्सा एमएसएमई का रहा। इसके अलावा, एसएफ़बी का ऋण पोर्टफोलियो छोटे आकार के ऋणों की ओर अग्रसर है।
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आस्ति पर रिटर्न, जो वित्तीय व्यवहार्यता का एक संकेतक है, एसएफबी के लिए उच्च रहा है। उनकी निधि लागत, उनके जमा आधार में चालू और बचत खातों (सीएएसए) के अल्प प्रतिशत द्वारा स्वतः स्पष्ट है। हालांकि, उच्च स्प्रेड ने उन्हें निधि पर उच्च लाभ अर्जित करने में सक्षम बनाया है।
एनपीए अनुपात, वित्तीय व्यवहार्यता का एक और महत्वपूर्ण संकेतक, इन संस्थानों द्वारा क्रेडिट जोखिमों के बेहतर प्रबंधन को दर्शाते हुए, शुरुआत से ही एसएफबी के लिए मोडरेट रहा है।
IV. भारत में हरित वित्त: प्रगति और चुनौतियां हरित वित्त सतत आर्थिक संवृद्धि की दिशा में संसाधन आवंटन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह लेख भारत में हरित वित्त से संबंधित हालिया विकास और चुनौतियों पर प्रकाश डालता है। मुख्य बातें:
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सार्वजनिक नीति के लिए दुनिया भर में हरित वित्त एक प्राथमिकता के रूप में उभरा है। भारत सरकार, भारतीय रिज़र्व बैंक और भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ने भारत में हरित वित्त को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं, जिनमें अन्य बातों के साथ-साथ, अनिवार्य सतत प्रकटीकरण का कार्यान्वयन और नवीकरणीय ऊर्जा को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के तहत ऋण देने संबंधी योजना के दायरे में लाना, वे उपाय जो फर्मों और परिवारों द्वारा अपारंपरिक ऊर्जा के उत्पादन और उपयोग को प्रोत्साहित करते हैं, शामिल हैं।
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विभिन्न डेटा स्रोतों के आधार पर हमारे निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि भारत में हरित वित्त के लिए सार्वजनिक जागरूकता और वित्तपोषण विकल्पों में सुधार हुए हैं।
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कुछ प्रमुख चुनौतियां, ऋण लेने की उच्च लागत, पर्यावरणीय अनुपालन के झूठे दावे, हरित ऋण परिभाषाओं की बहुलता और परिपक्वता बेमेल हो सकती हैं। इस सिलसिले में, बेहतर सूचना प्रबंधन के माध्यम से असममित जानकारी में कमी और हितधारकों के बीच समन्वय में वृद्धि से हरित और सतत दीर्घकालिक आर्थिक विकास की ओर मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
(योगेश दयाल) मुख्य महाप्रबंधक प्रेस प्रकाशनी: 2020-2021/974 |