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आरबीआई बुलेटिन – जनवरी 2023

19 जनवरी 2023

आरबीआई बुलेटिन – जनवरी 2023

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन का जनवरी 2023 अंक जारी किया। बुलेटिन में तीन भाषण, पांच आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।

पांच आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II भारत में उत्पादकता वृद्धि: अनुभवजन्य मूल्यांकन; III स्टार्ट-अप द्वारा भारत में निधि जुटाने वाले कारक क्या हैं? IV भारत में खुला बाजार परिचालन - एक मूल्यांकन; और V. बैंकिंग सेवाओं की आपूर्ति और ऋण उठाव: पूर्वी क्षेत्र में आकांक्षी जिला कार्यक्रम से साक्ष्य।

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

वैश्विक अर्थव्यवस्था के बड़े क्षेत्रों में मंदी की संभावनाओं के कारण संवृद्धि में मंदी आधारभूत मूल्यांकन बन गया है, भले ही मुद्रास्फीति लक्ष्य से काफी ऊपर का औसत हो। उभरते हुए बाजार पिछले वर्ष की तुलना में अधिक सुदृढ़ दिखाई दे रहे हैं, लेकिन 2023 में उनका सबसे बड़ा जोखिम अमेरिकी मौद्रिक नीति और अमेरिकी डॉलर से उत्पन्न हुआ है। भारत में मजबूत राजस्व के बीच जिंसों की कीमतों और अन्य लागतों में नरमी ने कॉरपोरेट प्रदर्शन को बढ़ावा दिया है। मुद्रास्फीति को टॉलरेंस बैंड में लाए जाने से समष्टि-आर्थिक स्थिरता मजबूत हो रही है और प्रमुख संकेतकों से यह पता चल रहा है कि वर्ष 2022 और 2023 की शेष अवधि में चालू खाता घाटा कम होने की राह पर है।

II. भारत में उत्पादकता वृद्धि: अनुभवजन्य मूल्यांकन

श्रीरूपा सेनगुप्ता और साधन कुमार चट्टोपाध्याय द्वारा

उत्पादकता वृद्धि या तो संसाधन पुनराबंटन या प्रौद्योगिकीय प्रगति के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है। इस आलेख में इस बात की जांच करने का प्रयास किया गया है कि क्या भारत में समग्र उत्पादकता वृद्धि संसाधन पुनराबंटन प्रभावों से प्रेरित है या वर्ष 2001-19 के दौरान प्रत्येक क्षेत्र में प्रौद्योगिकीय प्रगति में वृद्धि से हुई है। इस आलेख में उन प्रमुख क्षेत्रों पर भी नज़र डाला गया है जिन्होंने समग्र उत्पादकता वृद्धि में योगदान दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्ष 2001-2019 के दौरान निम्न से उच्च उत्पादक क्षेत्रों में संसाधनों का पुनराबंटन कुल उत्पादकता वृद्धि का 63 प्रतिशत और उत्पादन वृद्धि का 5 प्रतिशत था।

  • उप-अवधि के विश्लेषण से पता चलता है कि कुल कारक उत्पादकता वृद्धि वर्ष 2001-10 के दौरान 1.33 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2011-19 के दौरान 2.72 प्रतिशत हो गई, जो मुख्य रूप से प्रौद्योगिकीय प्रगति में उद्योग के भीतर हुए सुधार के कारण हुआ है।

  • समग्र उत्पादकता में योगदान देने वाले शीर्ष प्रदर्शन वाले क्षेत्रों में वस्त्र, मशीनरी उपकरण और वित्तीय एवं कारोबारी सेवाएं शामिल हैं।

III. स्टार्ट-अप द्वारा भारत में निधि जुटाने वाले कारक क्या हैं?

राजस सरोय, आशीष खोबरागड़े, रेखा मिश्र, साक्षी अवस्थी और शरत ढल द्वारा

इस आलेख में उद्यम पूंजी वित्तपोषण मॉडल के विहंगावलोकन के साथ पिछले एक दशक में भारतीय स्टार्टअप द्वारा निधि जुटाने का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। इस आलेख में अनुभवजन्य रूप से उन महत्वपूर्ण कारकों का पता लगाया गया है जो अर्थव्यवस्था के व्यापक स्तर के साथ-साथ संस्था स्तर पर स्टार्ट-अप निधीयन की मात्रा निर्धारित करते हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्ष 2014 के बाद से भारतीय स्टार्ट-अप द्वारा निधि जुटाने में वृद्धि हुई है। इसमें, स्टार्टअप इंडिया पहल के साथ-साथ अन्य समर्थकारी नीतियों और अर्थव्यवस्था के बढ़ते डिजिटलीकरण द्वारा योगदान है। कोविड-19 ने निधि जुटाने को अस्थायी तौर पर बढ़ावा दिया।

  • समग्र स्तर पर, लंबे समय तक स्टार्ट-अप निधीयन काफी हद तक घरेलू इक्विटी बाजार द्वारा वैश्विक बेंचमार्क से ऊपर प्रस्तुत किए गए अतिरिक्त प्रतिलाभ और घरेलू आर्थिक गतिविधि के स्तर से प्रेरित है।

  • संस्था के स्तर पर, निधि जुटाने के लिए, पहले से ही प्राप्त किए गए मान और परिचालन क्षेत्र के अलावा, संस्थापकों की शैक्षिक पृष्ठभूमि, संस्थागत निवेशकों के साथ पहले से मौजूद संबंध और लोकप्रियता, जैसे अपरंपरागत कारक मायने रखते हैं।

IV. भारत में खुला बाजार परिचालन - एक मूल्यांकन

अभिलाषा, भीमप्पा अर्जुन तलवार, कृष्ण मोहन कुशवाहा और इंद्रनील भट्टाचार्य द्वारा

आधुनिक बाजार-आधारित मौद्रिक नीति परिचालन ढांचे में, खुला बाजार परिचालन (ओएमओ), केंद्रीय बैंकों द्वारा संचालित चलनिधि प्रबंधन का प्रमुख साधन है। यह आलेख ओएमओ पर भारतीय अनुभव की समीक्षा करता है और केंद्रीय बैंक के तुलन-पत्र पर उनके प्रभाव की जांच करता है। यह, प्रभाव-प्रसार वाली दुनिया में ओएमओ की भूमिका की भी जांच करता है।

प्रमुख बिंदु:

  • विश्व स्तर पर, ओएमओ के मान और सीमा - बिक्री और खरीद- दोनों में पिछले पंद्रह वर्षों में काफी वृद्धि हुई है। प्रणालीगत चलनिधि को बढ़ाने/ अवशोषित करने से ओएमओ से प्रतिफल निर्धारित करने में मदद मिलती है जो अन्य वित्तीय बाजार लिखतों में संचारित होता है।

  • भारतीय संदर्भ में, ओएमओ, ऑपरेशन ट्विस्ट (ओटी) जैसी विशेष लेनदेन को छोड़कर, प्रणाली में स्थायी चलनिधि की स्थिति में बदलाव के उपाय हैं। ओएमओ खरीद रिज़र्व बैंक के तुलन-पत्र में घरेलू आस्तियों और आरक्षित निधि में वृद्धि करती है, ठीक इसके विपरीत ओएमओ बिक्री के संदर्भ में होता है।

  • भारतीय संदर्भ में एक अनुभवजन्य जाँच से पता चलता है कि बाहरी / बहिर्जात कारकों, जैसे, अमेरिकी राजकोष प्रतिफल में उतार-चढ़ाव का घरेलू दीर्घकालिक प्रतिफल पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इसे देखते हुए, हमारे अनुभवजन्य परिणाम बताते हैं कि ओएमओ, मौद्रिक नीति के रुख के अनुरूप लंबी अवधि की ब्याज दरों को संचालित करने हेतु प्रभावी उपकरण बना हुआ है।

V. बैंकिंग सेवाओं की आपूर्ति और ऋण उठाव: पूर्वी क्षेत्र में आकांक्षी जिला कार्यक्रम से साक्ष्य

राखे पी. बालचंद्रन और बरखा गुप्ता द्वारा

यह पेपर, 2018 में भारत सरकार द्वारा शुरु किए गए आकांक्षी जिला कार्यक्रम (एडीपी) के अंतर्गत शामिल पूर्वी भारत के जिलों में ऋण और जमाराशि (सी-डी) अनुपात- जो ऋण विमध्यस्थीकरण का एक उपाय है- की पड़ताल करते हुए, ऋण विमध्यस्थीकरण और आर्थिक संवृद्धि के बीच सामयिक संबंध की खोज करता है। यह पेपर पिछड़े क्षेत्रों में सी-डी अनुपात को संचालित करने वाले प्रमुख कारक को समझने की कोशिश करता है, अर्थात, क्या वह बैंकिंग सेवाओं की प्रत्याशित आपूर्ति है या बैंकिंग सेवाओं की मांग है।

प्रमुख बिंदु:

  • आर्थिक पिछड़ेपन के समान स्तरों के बावजूद, पूर्वी क्षेत्र के आकांक्षी जिले ऋण विमध्यस्थीकरण के विभिन्न स्तर दर्शाते हैं।

  • एक उपयुक्त अर्थमितीय पद्धति (सिस्टम जनरलाइज्ड मेथड्स ऑफ मोमेंट्स फ्रेमवर्क) को नियोजित करके यह पेपर दिखाता है कि प्रत्याशित शाखा विस्तार, ऋण विमध्यस्थीकरण के सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  • साक्ष्य दर्शाते हैं कि आर्थिक गतिविधियों के निम्न स्तर के कारण, पिछड़े क्षेत्रों में देखी गई निम्न शाखा व्यवहार्यता से बैंकों का शाखा विस्तार धीमा नहीं हुआ है।

इस बुलेटिन के आलेखों में व्यक्त विचार, संबंधित लेखकों के हैं और वे भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2022-2023/1578

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