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आरबीआई बुलेटिन – जून 2022

16 जून 2022

आरबीआई बुलेटिन – जून 2022

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन का जून 2022 अंक जारी किया। बुलेटिन में मौद्रिक नीति वक्तव्य, 2022-23, मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) का संकल्प 8 जून 2022, दो भाषण, नौ आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।

नौ आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. प्रतिफल वक्र हमें अर्थव्यवस्था के बारे में क्या बता रहा है?; III. जोखिमग्रस्त पूँजी प्रवाह: भारत का अनुभव; IV. भारत की स्वाभाविक ब्याज दर पर पुनर्विचार; V. केंद्रीय बैंक तुलन पत्र का आकार और मुद्रास्फीति: अस्पष्ट समीकरण को सुलझाना VI. राज्य वित्त: एक जोखिम विश्लेषण; VII. भारत के व्यापार की मालभाड़ा लागत; VIII. औद्योगिक क्रांति 4.0: क्या इस बार भारत के लिए कुछ अलग होगा? IX. वैश्विक संवृद्धि का तात्कालिक अनुमान।

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

पण्य कीमत चालित मुद्रास्फीति के अधिक सामान्यीकृत हो जाने के जोखिम के साथ वैश्विक संवृद्धि के प्रति अधोमुखी जोखिम बढ़ गए हैं। वैश्विक प्रतिकूलताओं के बावजूद, घरेलू समष्टि आर्थिक स्थितियाँ सुदृढ़ होती रहीं। वर्ष 2021-22 में 8.7 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ, भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) महामारी से पूर्व (2019-20) के स्तर से 1.5 प्रतिशत अधिक हो गया और वर्ष 2022-23 में अब तक की बहाली मजबूत बनी हुई है। सात महीने की लगातार वृद्धि के बाद मई के लिए मुद्रास्फीति के आँकड़े पिछले महीने की तुलना में कम थे।

II. प्रतिफल वक्र हमें अर्थव्यवस्था के बारे में क्या बता रहा है?

सरकारी प्रतिभूतियों के प्रतिफल वक्र को व्यापक रूप से भविष्य के समष्टि आर्थिक विकास के मूल्यवान पूर्वानुमानकर्ता के रूप में माना जाता है। भारतीय परिस्थितियों में उपयुक्त रूप से रूपांतरित गतिशील अंतर्निहित कारक दृष्टिकोण को अपनाते हुए, इस आलेख में स्टेट स्पेस -मैक्रो मॉडल का प्रयोग करते हुए यह दिखाया गया है कि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत, आर्थिक संभावनाओं और मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को लेकर बाजार की प्रत्याशाओं के संबंध में उपयोगी जानकारी प्रतिफल वक्र के ढलान के बजाय इसके स्तर और वक्रता में होती है।

प्रमुख बिंदु:

  • सरकारी प्रतिभूतियों के प्रतिफल वक्र में अर्थव्यवस्था के संभावित व्यवहार के संबंध में महत्वपूर्ण संकेत होते हैं।

  • महामारी-संबंधी नीतिगत ढील की शुरुआत के साथ प्रतिफल वक्र का ढलान तेज हो गया जो हाल की नीतिगत सख्ती वाले समय में विपरीत हो गया है।

  • महामारी से संबंधित ढील के दौरान और वर्ष 2021-22 के लिए एक बड़े बाजार उधार कार्यक्रम की केंद्रीय बजट घोषणा के बाद अप्रैल 2021 में जी-एसएपी की घोषणा तक वक्रता तेजी से बढ़ी।

  • प्रतिफल वक्र दीर्घावधि संवृद्धि संभावनाओं में सुधार और प्रत्याशित मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं में वृद्धि का संकेत दे रहा है। साथ ही, यह तथ्य कि प्रतिफल वक्र अधिक ढालू और अवतल हो गया है, आने वाली अवधि में सख्त मौद्रिक नीति की प्रत्याशाओं की पुष्टि करता है।

III. जोखिमग्रस्त पूँजी प्रवाह: भारत का अनुभव

1990 के दशक के बाद से उभरते बाजारजनित संकटों और वैश्विक वित्तीय संकट तथा इसके बाद के अनुभव के पश्चात, ध्यान पूँजी प्रवाह से जुड़े लाभों से हटकर वित्तीय कमजोरियों में वृद्धि, समष्टि आर्थिक अस्थिरता में वृद्धि और संक्रमण विस्तार जैसे उनके परिणामों पर केंद्रित हो गया है। इस आलेख का आधार 'जोखिमग्रस्त पूँजी प्रवाह' ढाँचे में हाल के घटनाक्रम हैं जो विभिन्न कर्षण व दबाव कारकों (पुल एंड पुश फैक्टर्स) पर निर्भर पूँजी प्रवाह के प्रति जोखिमों का अनुमान लगाता है ताकि विभिन्न जोखिम कारकों के प्रभाव का आकलन किया जा सके।

प्रमुख बिंदु:

  • निष्कर्षों से पता चलता है कि भारत में पूँजी प्रवाह को आकर्षित करने में कर्षण कारकों की प्रमुख भूमिका है, जिनमें वृद्धि अंतराल और घरेलू टर्म प्रीमियम महत्वपूर्ण हैं। दूसरी ओर, यह अस्थिरता सूचकांक (वीआईएक्स) में परिलक्षित वैश्विक जोखिम विमुखता है, जो पूँजी बहिर्वाह, विशेषत: पोर्टफोलियो प्रवाह को प्रभावित करती है जो वैश्विक स्तर पर जोखिम रुख में बदलाव और परिणामी प्रसार-प्रभाव (स्पिलओवर) के प्रति सर्वाधिक संवेदनशील है।

  • अनुभवजन्य परिणामों से संकेत मिलता है कि निम्नलिखित स्थितियों की प्रतिक्रिया में जीडीपी के 3.2 प्रतिशत के लगभग भारत से पोर्टफोलियो बहिर्वाह की 5 प्रतिशत संभावना है (i) वास्तविक जीडीपी वृद्धि में कोविड-जैसे संकुचन, या (ii) अमेरिका की तुलना में ब्याज दर अंतर में जीएफसी जैसी गिरावट, या (iii) वीआईएक्स में जीएफसी जैसी वृद्धि।

  • आघातों के मिश्रण से निर्मित किसी अप्रत्याशित घटना में संभावित पोर्टफोलियो बहिर्वाह जीडीपी के 7.7 प्रतिशत तक बढ़ सकता है, जो अस्थिरता के ऐसे संभावित दौर से निपटने के लिए आयात और ऋण चुकौती (सर्विसिंग) कवर की मानक व्यवस्था के अलावा चलनिधि भंडार को बनाए रखने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

IV. भारत की स्वाभाविक ब्याज दर पर पुनर्विचार

स्वाभाविक दर एक संतुलन वास्तविक दर का प्रतिनिधित्व करती है जिसे मुद्रास्फीति को लक्ष्य के अनुरूप संरेखित करके और आउटपुट को अपने संभावित स्तर पर या उसके निकट रखकर प्राप्त किया जाता है। महामारी के बाद, स्वाभाविक दर के कई निर्धारकों ने स्पष्ट परिवर्तन दर्शाए हैं, जिससे इस बारे में अनिश्चितता बनी हुई है कि क्या वे सामान्य हो सकते हैं और कब तक। साहित्य में यह तर्क दिया गया है कि संभावित वृद्धि का मार्ग, जो स्वाभाविक दर का एक प्रमुख निर्धारक है, बुनियादी ढांचे पर सार्वजनिक खर्च में बड़ी वृद्धि, डिजिटलीकरण, स्टार्ट-अप और नए व्यावसायिक अवसरों से नवाचार को बढ़ावा देने के कारण बढ़ सकता है, लेकिन श्रम बाजार, अवैश्वीकरण एवं बाजार संकेन्द्रण और शिक्षा पर महामारी के प्रतिकूल प्रभावों के कारण इसमें गिरावट भी आ सकती है। अध्ययन से पता चलता है कि एक बड़े संकट के बाद, स्वाभाविक दर आमतौर पर कम हो जाती है, और लंबे समय तक नीचे रहती है। यह लेख इस पृष्ठभूमि में भारत के लिए स्वाभाविक दर के अनुमान पर पुनर्विचार करता है।

प्रमुख बिंदु:

  • 2021-22 की तीसरी तिमाही के लिए भारत की स्वाभाविक दर 0.8 प्रतिशत से 1.0 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान है, जो कि 2014-15 की चौथी तिमाही के लिए 1.6 -1.8 प्रतिशत के पहले के तुलनीय अनुमान से लगभग 80 आधार अंक कम है।

  • महामारी के बाद की अवधि के दौरान स्वाभाविक दर के प्रमुख नियामकों के विकास के बारे में बढ़ी हुई अनिश्चितता दर्शाते हुए, अनुमानों के आसपास विश्वास दायरे का विस्तार गया है।

  • लीवरेज अंतराल (या आस्ति बाजार में वित्तीय चक्र) को स्थिर करने के लिए मौद्रिक नीति के बजाय समष्टि-विवेकपूर्ण उपायों का प्रयोग पसंदीदा नीतिगत विकल्प हो सकता है, क्योंकि लीवरेज अंतराल पर ब्याज दर में वृद्धि के प्रभाव का परिमाण अपेक्षाकृत छोटा है और इसमें बड़े अंतराल भी शामिल हैं।

V. केंद्रीय बैंक तुलन पत्र का आकार और मुद्रास्फीति: अस्पष्ट समीकरण को सुलझाना

2021 की दूसरी छमाही के बाद से मुद्रास्फीति में वैश्विक उछाल के कारण, मुद्रास्फीति को बढ़ावा देने में केंद्रीय बैंकों की महामारी के बाद की तुलन पत्र नीतियों (या अपरंपरागत नीतियों) की भूमिका के आकलन में रुचि बढ़ गई है। भारत में भी, उच्च मुद्रास्फीति के एक कारण के रूप में, कोविड के बाद मौद्रिक समुच्चय (यानी, आरक्षित मुद्रा और व्यापक मुद्रा) में वृद्धि को लेकर चिंता व्यक्त की गई है। यह आलेख आरबीआई के तुलन पत्र के आकार, मुद्रा आपूर्ति और सीपीआई मुद्रास्फीति के बीच संबंधों की पड़ताल करता है, जहाँ संबंध को प्रभावित करने में मुद्रा की गति और मुद्रा गुणक में संकटकालीन बड़े बदलावों की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारत में, आरबीआई के तुलन पत्र का आकार सीपीआई मुद्रास्फीति के साथ सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण कारण संबंध प्रदर्शित नहीं करता है।

  • भारत में पैसे के लेन-देन की गति (यानी, सांकेतिक जीडीपी में एम3 ​​या मुद्रा स्टॉक से भाग देने पर प्राप्त) कोविड के बाद 2019-20 में 1.3 से तेजी से घटकर 2020-21 और 2021-22 में 1.1 हो गई। मुद्रा गुणक (यानी एम 3 में आधार मुद्रा से भाग देने पर प्राप्त) भी 2019-20 में 5.57 से घटकर 2020-21 में 5.48 और 2021-22 में 5.2 हो गया। मौद्रिक समुच्चय में उच्चतर वृद्धि, गति और मुद्रा गुणक में गिरावट की भरपाई के लिए अपेक्षित था, जो मुद्रास्फीतिकारी नहीं है।

  • आर्थिक मंदी और अति-सक्रियता (ओवरहीटिंग) की अवधियों के दौरान मुद्रास्फीति पर मुद्रा वृद्धि के असममित प्रभाव को देखते हुए किसी समय बिंदु पर मुद्रा वृद्धि का आकलन करना महत्वपूर्ण है। अनुभवजन्य परिणाम बताते हैं कि आर्थिक सुस्ती में मुद्रा वृद्धि मुद्रास्फीति का जोखिम पैदा नहीं करती है। तथापि, अर्थव्यवस्था जब विस्तार के चरण में होती है तब, मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि से उच्च मुद्रास्फीति हो सकती है।

VI. राज्य वित्त: एक जोखिम विश्लेषण

श्रीलंका का सरकारी कर्ज़ संकट लंबे समय तक कोविड संकट के बाद सरकारी वित्त को एक टिकाऊ रास्ते पर लाने के महत्व की याद दिलाता है। भारत में, उप-राष्ट्रीय वित्त 2020-21 में काफी गिरावट आई है, हालांकि अलग-अलग राज्यों की कमजोरी के स्वरूप में काफी भिन्नता है। इस पृष्ठभूमि में, यह आलेख भारत में राज्य सरकारों के सामने आने वाले राजकोषीय जोखिमों पर प्रकाश डालने का प्रयास करता है, जिसमें भारी ऋणग्रस्त राज्यों पर जोर दिया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • स्वयं के कर राजस्व में मंदी, प्रतिबद्ध व्यय का एक उच्च हिस्सा और बढ़ते सब्सिडी बोझ ने कोविड-19 से बढ़े राज्य सरकार के वित्त को और बढ़ा दिया है।

  • जबकि पाँच सबसे अधिक ऋणग्रस्त राज्यों के लिए कर्ज़-धारणीयता संबंधी चिंताएं बड़ी हैं, अयोग्य मुफ्त वस्तुएं सेवाएं पर बढ़ते खर्च, आकस्मिक देनदारियों के विस्तार और डिस्कॉम्स के बढ़ते अतिदेय के रूप में जोखिम के नए स्रोत सामने आए हैं।

  • दबाव परीक्षण से पता चलता है कि सबसे अधिक ऋणग्रस्त राज्य सरकारों की राजकोषीय स्थिति और भी खराब हो सकती है, उनके ऋण-जीएसडीपी अनुपात के 2026-27 में 40 प्रतिशत से ऊपर रहने की संभावना है, जिसमें कार्यनीतिक सुधारात्मक उपायों की आवश्यकता है।

VII. भारत के व्यापार की मालभाड़ा लागत

कंटेनर शिपिंग उद्योग जो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला लॉजिस्टिक्स का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, उस समय गंभीर दबाव में आया जब विश्व व्यापार महामारी के प्रारंभिक प्रभाव से तेजी से उबर गया, जो सभी पार-महासागरीय व्यापार मार्गों पर मालभाड़ा लागत में वृद्धि में परिलक्षित हुआ। इस पृष्ठभूमि में, अध्ययन हाल की अवधि में भारत के आयात और निर्यात में माल भाड़ाशुल्क की अधिक भूमिका की पड़ताल करता है और मुद्रास्फीति की गतिकी को बढ़ाने में इसकी भूमिका की जांच करता है।

प्रमुख बिन्दु:

  • भारत में मालभाड़ा शुल्क बढ़ रहा है और हाल की तिमाहियों में भारत के निर्यात और आयात के बढ़ते मूल्य में योगदान दे रहा है।

  • आयात की मात्रा और थोक कीमत चैनलों के माध्यम से माल भाड़ाशुल्क में बढ़ोतरी का घरेलू खुदरा कीमतों पर प्रभाव पाया गया है।

  • उच्च मालभाड़ा शुल्क भी आयात लागत के खुदरा मुद्रास्फीति तक प्रभाव अंतरण को बढ़ाते प्रतीत होते हैं।

VIII. औद्योगिक क्रांति 4.0: क्या इस बार भारत के लिए कुछ अलग होगा?

पिछले दशक के प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों ने औद्योगिक उत्पादन के संघटन में क्रांति ला दी है। उद्योग 4.0 जो नई तकनीकों, जैसे- इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी), क्लाउड कंप्यूटिंग और एनालिटिक्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग, को विनिर्माण उत्पादन प्रक्रियाओं और परिचालनों में एकीकृत करता है, 'स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग' के एक नए युग में प्रवेश कर गया है। इस आलेख में, पिछली औद्योगिक क्रांतियों के दौरान दरकिनार किए जाने के बाद, तकनीकी विकास को अपनाने के संबंध में भारत की तैयारी और आईआर-4 का लाभ उठाने के लिए संबंधित पूर्वापेक्षाओं की पड़ताल की गई है।

मुख्य बिन्दु:

  • भारत में विनिर्माण क्षेत्र पूँजी पर आधारित है, जिसमें का विनिर्माण क्षेत्र के योजित सकल मूल्य (जीवीए) में संगठित क्षेत्र का लगभग तीन-चौथाई योगदान है। इस क्षेत्र में निम्न और मध्यम अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) उद्योगों का प्रभुत्व है, यद्यपि उच्च और मध्यम अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) गहन उद्योग आईआर -4 से लाभान्वित होने की संभावना को दर्शाते हुए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

  • फर्म स्तर पर, एक पैनल डेटा विश्लेषण से भारत के विनिर्माण क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) व्यय के निर्धारक के रूप में फर्म की परिपक्वता, आकार, लाभप्रदता और तकनीकी जानकारी का पता चलता है।

  • भौतिक बुनियादी ढांचे और मानव पूँजी की औसत से कम गुणवत्ता आगे चलकर आईआर-4 के हितलाभों को प्राप्त करने में बाधा हो सकती है।

IX. वैश्विक संवृद्धि का तात्कालिक अनुमान

प्राप्त होने वाले आंकड़ों से पता चलता है कि 2022 की पहली और दूसरी तिमाही में वैश्विक संवृद्धि की गति कम हो रही है। यह आलेख वैश्विक जीडीपी अनुमानों और वैश्विक आर्थिक गतिविधि के उच्च आवृत्ति संकेतकों की उपलब्धता और आगमन के बीच की खाई को पाटने का प्रयास करता है।

प्रमुख बिन्दु:

  • कई संकेतकों जैसे कि वैश्विक औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी), व्यापार की मात्रा और क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) जिन्हें वैश्विक जीडीपी के साथ अत्यधिक सहसंबद्ध माना जाता है, को यह देखने के लिए आजमाया गया है कि वैश्विक जीडीपी संवृद्धि का पूर्वानुमान करने की उनकी क्षमता कैसी है। स्वप्रतिगामी एकीकृत चल औसत (एआरआईएमए) ढाँचे का बहिर्जात समाश्रयी (एक्सोजेनस रिग्रेसर्स) के साथ प्रयोग करने से, वैश्विक आईआईपी वैश्विक जीडीपी संवृद्धि के सबसे मजबूत अनुमानकर्ता के रूप में उभरकर आता है।

  • पूर्वानुमान के लिए दो वैकल्पिक परिदृश्यों पर विचार किया गया है। आधारभूत परिदृश्य के तहत, ऐसा अनुमान है कि अप्रैल-जून 2022 के दौरान वैश्विक आईआईपी उसी वर्ष-दर-वर्ष दर से बढ़ेगी जैसे वह पिछले छह महीनों में बढ़ी है। वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए जोखिमों का पता लगाने के लिए वैकल्पिक परिदृश्य में अप्रैल-जून 2022 के लिए 2.0 प्रतिशत की धीमी वृद्धि दर का अनुमान लगाया गया है।

  • आलेख में आगे यह पता चलता है कि 2022 की पहली तिमाही के दौरान वैश्विक जीडीपी संवृद्धि की गति क्रमिक और वार्षिक रूप से धीमी पड़ गई है और संभवतः संकुचन क्षेत्र में प्रवेश कर रही है। दूसरे पूर्वानुमान में, यह पूर्वानुमान किया गया है कि वैश्विक जीडीपी संवृद्धि ने आधारभूत परिदृश्य के तहत 2022 की पहली तिमाही में अपनी गति खो दी है और यह संभावना है कि यह 2022 की दूसरी तिमाही में संकुचन क्षेत्र में प्रवेश करेगी। वैकल्पिक परिदृश्य में गिरावट के बहुत तेज होने की उम्मीद है।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2022-2023/378

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