19 मार्च 2021 रिज़र्व बैंक बुलेटिन – मार्च 2021 भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन का मार्च 2021 के अंक जारी किया। बुलेटिन में एक भाषण चार आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं। चार आलेख ये हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. कोविड – 19 के समय अपारंपरिक मौद्रिक नीति ; III. यूनियन बजट 2021-22: एक आकलन; IV. ति 2:2020-21 हाउसहोल्ड वित्तीय बचतों के प्रारंभिक अनुमान – और हाउसहोल्ड ऋण-जीडीपी अनुपात I. अर्थव्यवस्था की स्थिति दुनिया के देशों द्वारा अपनी आबादी को टीका लगाने की आपा-धापी को देखते हुए अनुमान है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था दूसरी तिमाही (ति2) में खोई हुई गति को पुनः प्राप्त कर ले। हालांकि बॉन्ड विजिलेंट्स से समुत्थान को नुकसान पहुँच सकता है, वित्तीय बाजार अस्थिर हो सकते हैं और उभरते बाजारों से पूँजी का पलायन हो सकता है। रिज़र्व बैंक प्रतिफल वक्र (यील्ड कर्व) का सुसंगत विकास सुनिश्चित करने हेतु प्रयासरत है, लेकिन ताली बजाना हो या तांडव रोकना, एक हाथ से नहीं हो सकता। पूंजीगत व्यय के मुक्त होने व पलटने तथा बाजार की प्रत्याशाओं को पछाड़ती कॉरपोरेट आय परिणामों के संकेत बता रहे हैं कि भारत की फिज़ां में उच्च वृद्धि को फिर से हासिल करने को लेकर एक बेचैनी है। मुद्रास्फीति में उर्ध्वमुखी दबाव देखने को मिला है। II. कोविड-19 काल में अपारंपरिक मौद्रिक नीति
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कोविड-19 संक्रमण फैलने की वजह से पूरी दुनिया में जीवन और जीविका के समक्ष असंख्य चुनौतियाँ खड़ी हो गयीं जिसके फलस्वरूप राष्ट्रीय सरकारों और केंद्रीय बैंकों को इतने बड़े पैमाने पर नीतिगत उपाय करने पड़े जितने पहले कभी नहीं किए गए थे। राजकोषीय प्रोत्साहन के अलावा, केंद्रीय बैंकों द्वारा कई अपरंपरागत मौद्रिक नीति उपाय (यूएमपीटी) किए गए ताकि वित्तीय बाजारों को फिर से गतिशील बनाया जा सके और आर्थिक गतिविधियों को पुन: शुरू किया जा सके।
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यह लेख दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों द्वारा आजमाए गए विभिन्न यूएमपीटी और उन्हें अपनाने के औचित्य का संक्षिप्त लेखा-जोखा प्रस्तुत करता है। अंतरराष्ट्रीय अनुभवों के मद्देनज़र इस लेख में रिज़र्व बैंक द्वारा घोषित कई उपायों और वित्तीय बाजार गतिविधियों को पुनर्जीवित करने में उनके प्रभाव पर चर्चा की गई है।
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अनुभवजन्य विश्लेषण से पता चलता है कि दीर्घकालिक रिपो परिचालनों (एलटीआरओ) और लक्षित दीर्घकालिक रिपो परिचालन (टीएलटीआरओ) की घोषणा से मुद्रा और बॉण्ड बाजारों पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा, जबकि विशेष ओएमओ (ऑपरेशन ट्विस्ट्स) की घोषणा से जी-सेक बाजार में टर्म प्रीमियम में काफी कमी आयी जिससे निधीयन की लागत घटी और वित्तीय हालात सुधरे।
III. केंद्रीय बजट 2021-22: आकलन इस लेख में केंद्रीय बजट 2021-22 का आकलन किया गया है। इस बजट में वृद्धि में कोविड पश्चात हुए सुधार के लिए प्रति-चक्रिय निवेश-प्रेरित राजकोषीय सहारे को प्राथमिकता देते हुए एकदम सटीक संतुलन प्रस्तुत किया गया है। प्रमुख बातें :
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2020-21 हेतु जीडीपी के 3.5 प्रतिशत के बजटीय सकल राजकोषीय घाटे (जीएफडी) के विरुद्ध जीएफडी के लिए संशोधित प्राक्कलन (आरई) जीडीपी का 9.5 प्रतिशत रहा जो मुख्य रूप से सब्सिडीस के ऑन-बड्जटिंग के कारण उच्च व्यय के साथ-साथ राजस्व में चक्रिय कमी की वजह से था। 2021-22 हेतु बजटीय जीएफडी राजस्व व्यय में कटौती तथा विनिवेश से होने वाली उच्च प्राप्तियों की बदौलत जीडीपी के 6.8 प्रतिशत पर है।
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वर्ष 2021-22 की दिनांकित प्रतिभूतियों के माध्यम से सकल बाजार उधार 2020-21 (आरई) की ₹12.8 लाख करोड़ की तुलना में ₹ 12.1 लाख करोड़ बजट किया गया है। बाजार उधार के अलावा, राष्ट्रीय अल्प बचत निधि (एनएसएसएफ) भी वित्त पोषण के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में उभरा है, जो कि जीएफडी का लगभग 26 प्रतिशत है। इस बजट में यह परिवर्तन किया गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की एनएसएसएफ तक पहुँच को समाप्त कर दिया है। वर्ष 2020-21 (आरई) में अधिक उधारी के कारण, केंद्र का ऋण-जीडीपी अनुपात बढ़कर 64.3 प्रतिशत हो गया, जो कि 2021-22 के लिए 62.5 प्रतिशत बजट किया गया था।
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हालांकि, राजकोषीय समेकन को बढ़ाया गया है, बजट में प्रस्तावित उपायों को, यदि अच्छी तरह से लागू किया जाता है, तो यह अपने उद्देश्य को साकार करने में मदद कर सकता है, और मध्यम अवधि में उच्च विकास दर हासिल करने मे एक गेम चेंजर हो सकता है।
IV. वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही के लिए घरेलू वित्तीय बचत और हाउसहोल्ड ऋण-जीडीपी अनुपात का अनुमान रिज़र्व बैंक के नवंबर 2020 के बुलेटिन लेख, "हाउसहोल्ड वित्तीय बचत का प्रारंभिक अनुमान - वर्ष 2020-21की पहली तिमाही", के अनुक्रम में यह लेख जीडीपी अनुपात में दूसरी तिमाही के लिए 2020-21 के हाउसहोल्ड के ऋण अनुमान प्रस्तुत करता है। लेख की प्रमुख बातें निम्नानुसार हैं: प्रमुख बातें:
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प्रारंभिक अनुमानों से पता चलता है कि हाउसहोल्ड वित्तीय बचत दर में अच्छी-ख़ासी गिरवाट हुई और वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही में यह जीडीपी का 10.4 प्रतिशत तक हो गई जबकि इसके ठीक पहले वाली तिमाही में यह 21.0 प्रतिशत थी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अर्थव्यवस्था के धीरे-धीरे खुलने के साथ ही हाउसहोल्ड ‘सिर्फ अत्यावश्यक’ खर्च के बजाए विवेकपूर्ण खर्च करने लगे।
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जीडीपी की तुलना में हाउसहोल्ड कर्ज का अनुपात वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में 35.4 प्रतिशत से तेजी से बढ़कर वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही में 37.1 प्रतिशत हो गया, जो वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही से लगातार बढ़ता आ रहा है।
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हाउसहोल्ड की वित्तीय परिसंपत्तियों में वृद्धि के बावजूद उनकी वित्तीय बचत में गिरावट आई है, क्योंकि वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही में बैंकों और एनबीएफसी से लिए गए ऋणों की वजह से वित्तीय देनदारियों का प्रवाह सकारात्मक क्षेत्र में लौट आया है।
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खपत और आर्थिक गतिविधियों में तेजी आने से वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही में हाउसहोल्ड की वित्तीय बचत दर और गिर सकती है।
(योगेश दयाल) मुख्य महाप्रबंधक प्रेस प्रकाशनी: 2020-2021/1272 |