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आरबीआई बुलेटिन - मार्च 2022

17 मार्च 2022

आरबीआई बुलेटिन - मार्च 2022

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन का मार्च 2022 का अंक जारी किया। बुलेटिन में दो भाषण, पांच आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।

पांच आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. केंद्रीय बजट 2022-23: कुछ सुखद राजकोषीय अंकगणित; III. भारतीय बैंकों के लिए हरित संक्रमण जोखिम; IV. एनबीएफसी के भारतीय लेखांकन मानक वित्तीय विवरणों में उचित मूल्य वर्गक्रम (हाइरार्की) को डिकोड करना; और V. अंधानुकरण - क्या यह भारतीय शेयर बाजार में मौजूद है।

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

जारी भू-राजनैतिक संकट ने वैश्विक समष्टि-आर्थिक और वित्तीय परिदृश्य पर अनिश्चितता को बढ़ा दिया है, यहां तक कि विश्व अर्थव्यवस्था महामारी से उबरने के लिए संघर्ष कर रही है। जैसे-जैसे संघर्ष बढ़ रहा है, वैसे-वैसे तेल और अन्य कमोडिटी की कीमतें कई वर्षों के उच्च स्तर पर पहुंच रही हैं, और बड़े पैमाने पर बिकवाली के कारण वित्तीय बाजार में घबराहट है। इस परीक्षा की अवधि में, भारतीय अर्थव्यवस्था स्पिलओवर का अनुभव कर रही है क्योंकि यह महामारी की तीसरी लहर से उबर रही है। मांग की स्थिति में सुधार के साथ-साथ उपभोक्ता और कारोबार विश्वास बढ़ रहा है। आपूर्ति पक्ष की ओर, सुदृढ़ कृषि क्षेत्र और औद्योगिक एवं सेवा दोनों क्षेत्रों में निरंतर बहाली को व्यापक बना रही है।

II. केंद्रीय बजट 2022-23: कुछ सुखद राजकोषीय अंकगणित

इस आलेख में केंद्रीय बजट 2022-23 का आकलन प्रस्तुत किया गया है, जो व्यावहारिक राजकोषीय शुद्धता के साथ वृद्धि पर जोर देता है।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्ष 2021-22 के लिए सकल घरेलू उत्पाद के 6.8 प्रतिशत के बजटीय सकल राजकोषीय घाटे (जीएफडी) के मुकाबले, जीएफडी के लिए संशोधित अनुमान (आरई) सकल घरेलू उत्पाद का 6.9 प्रतिशत था। वर्ष 2022-23 में, जीएफडी को सकल घरेलू उत्पाद के 6.4 प्रतिशत पर बजट किया गया है।

  • पूंजीगत व्यय और बुनियादी ढांचे पर राजकोषीय नीति का जोर 2022-23 (बीई) में पूंजीगत व्यय में 24.5 प्रतिशत की वृद्धि में परिलक्षित होता है, जो मध्यम अवधि में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को बढ़ावा देगा।

  • वर्ष 2022-23 के लिए दिनांकित प्रतिभूतियों के माध्यम से सकल बाजार उधार का बजट 14.95 लाख करोड़ है। जीएफडी के वित्तपोषण में निवल बाजार उधारी के हिस्से में वृद्धि के साथ वित्तपोषण के महामारी से पहले के पैटर्न के लिए एक प्रत्यावर्तन की भी परिकल्पना की गई है। केंद्र सरकार के कर्ज स्थिरता विश्लेषण से पता चलता है कि जीडीपी की वृद्धि कर्ज समेकन की कुंजी होगी।

III. भारतीय बैंकों के लिए हरित संक्रमण जोखिम

इस आलेख में इस बात की जांच की गयी है कि निवल-शून्य कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य की ओर संक्रमण से बैंकिंग क्षेत्र कैसे प्रभावित हो सकता है। इसमें उन उद्योगों के प्रति बैंकों के एक्सपोजर की जांच की गयी है जिन्हें इस संक्रमण और संबंधित स्पिलओवर जोखिमों के कारण उच्च समायोजन लागत का सामना करना पड़ सकता है।

प्रमुख बिन्दु:

  • भारत ने 2030 के भीतर ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन तीव्रता को कम करने का लक्ष्य रखा है। कुछ क्षेत्रों में वैश्विक मानकों की तुलना में उच्च उत्सर्जन तीव्रता है और भविष्य में उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए समायोजन लागत का सामना करना पड़ सकता है।

  • इस आलेख में बिजली, रसायन और ऑटोमोबाइल जैसे तीन ऐसे क्षेत्रों की जांच की गई है और निष्कर्ष निकाला गया है कि इन क्षेत्रों में बैंकों का एक्सपोज़र कम है, क्योंकि इन क्षेत्रों में बकाया ऋण का अनुपात अपेक्षाकृत कम है।

  • हालांकि, इन उद्योगों का अन्य उद्योगों पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ सकता है। भविष्य में, इस तरह के अप्रत्यक्ष रूप से अनाश्रित क्षेत्रों के ब्याज कवरेज और अनर्जक ऋण अनुपात की बारीकी से निगरानी की जा सकती है ताकि बैंकिंग क्षेत्र में स्पिलओवर के जोखिम को कम किया जा सके।

IV. एनबीएफसी के भारतीय लेखांकन मानक वित्तीय विवरणों में उचित मूल्य वर्गक्रम (हाइरार्की) को डिकोड करना

भारतीय लेखांकन मानकों ने विभिन्न संस्थाओं के उचित मूल्य पर वित्तीय विवरणों में आस्तियों और देनदारियों का पता लगाने में दूरगामी परिवर्तन लाए हैं। इस आलेख में एनबीएफसी के कुछ वित्तीय विवरणों की जांच की गयी है ताकि यह समझा जा सके कि आस्तियों/देयताओं को उनके उचित मूल्यों पर कैसे पहचाना, मापा और उद्घाटित किया जाता है। इस प्रक्रिया में, आलेख एक ओर विभिन्न उचित मूल्य वर्गक्रमों (हाइरार्की) के बीच सटीक अंतरों को चित्रित करने का और दूसरी ओर उनके बीच संभावित अतिव्यापन का पता लगाने का प्रयास करता है।

प्रमुख बिंदु:

  • अध्ययन से प्राप्त एक निश्चित निष्कर्ष यह है कि कंपनियों द्वारा अपनाए जाने वाले कारोबार मॉडल, आगे चलकर आस्तियों/देनदारियों के उचित मूल्य को निर्धारित करने के लिए उपयोग की जाने वाली मूल्यांकन पद्धतियों और ऐसे उचित मूल्य का निर्धारण करते समय अवलोकन योग्य और अप्राप्य इनपुट के परस्पर क्रिया को समझने की व्यापक आवश्यकता हो सकती है।

  • विभिन्न उचित मूल्य वर्गक्रमों (हाइरार्कीज) में से लेवल 3 वर्गक्रम (हाइरार्की) जो मुख्य रूप से अप्राप्य इनपुट का उपयोग करता है, वित्तीय विवरणों के लेखापरीक्षकों, पर्यवेक्षकों और विवेकशील विश्लेषकों द्वारा जांच किए जाने के लिए यह एक दिलचस्प पहलू होगा।

  • स्तर 3 की आस्तियों के अध्ययन से वित्तीय विवरणों में मौजूद चलनिधि की सीमा का एक आसन्न अध्ययन भी होगा।

V. अंधानुकरण - क्या यह भारतीय शेयर बाजार में मौजूद है

अंधानुकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बाजार में निवेशक अपनी खुद की मान्यताओं या जानकारी पर ज्यादा ध्यान दिए बिना अन्य निवेशकों के निर्णयों और कार्यों की नकल करके एक ही दिशा में खरीद-बिक्री करते हैं। इस आलेख में जनवरी 2019 से मार्च 2020 तक की अवधि के लिए भारतीय शेयर बाजार में अंधानुकरण की जांच की गयी है। सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली कार्य-प्रणाली, क्रॉस-सेक्शनल एब्सोल्यूट डिविएशन का उपयोग अंधानुकरण के परीक्षण के लिए किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारतीय शेयर बाजार में अंधानुकरण मौजूद है लेकिन यह मिड-कैप शेयरों तक सीमित है।

  • ऋणात्मक बाजार प्रतिफल की अवधि और निवल विदेशी संस्थागत बहिर्वाह वाले दिनों के दौरान अंधानुकरण अधिक परिलक्षित होता है।

  • अंधानुकरण के विपरीत, स्मॉल और लार्ज-कैप शेयरों में निवेश करते समय अधिक व्यक्तिगत निर्णय देखने को मिलता है।

वर्तमान सांख्यिकी

अवसरिक शृंखला

सारणी सं. 50(ए): वित्तीय आस्तियों का प्रवाह और हाउसहोल्ड्स की देनदारियां - लिखत-वार

सारणी सं. 50(बी): वित्तीय आस्तियों के स्टॉक और हाउसहोल्ड्स की देनदारियां - चुनिंदा संकेतक

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2021-2022/1875

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